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Published by sjeet singh, 2024-04-27 20:22:56

kala jadu pdf -jocker-1

urdu to hindi

Keywords: jadu series,horror

मकड़ा सीरीज काला जादू मसऊद आसान रास्तेसेदौलत हासिल करनेके लालच मेंकालेजादू के माहिर भ ूरिया चरण सेजा टकराया जो अपनेलिए किसी आला-ए-कार की तलाश में था। उसने मसऊद को अपने शैतानी जाल में फँसाना चाहा लेकिन जब मसऊद उस के चक्कर मेंनहींआया तो वो उस का दश्मन ु बन गया। उसनेअपनी काली ताकतों सेमसऊद की ज़ि4ंदगी अज़ाब कर डाली। यहां तक वो घर-बार सेमहरूमी के बाद बदहाली की हद को पह ु ंच गया।


ऐसेमेंक ु छ नेक बंदों नेइस की मदद की और भ ूरिया चरण सेछुटकारा दिलानेके साथ क ु छ रुहानी ताकतेंभी उसेदिए। उसेहिदायत की गई थी कि वो अपनी इन सलाहीयतों की मदद सेसब लोगों की मदद करे। मसऊद नेइस हिदायत पर प ूरा प ूरा अमल किया और कई म ुसीबत4दा लोगों की म ु श्किलात हल करने में उनकी मदद की। भ ूरिया चरण जो लगातार उस का पीछा कर रहा था, एक-बार फिर इस पर अपना दांव चलानेमेंकामयाब हो गया जिसके नतीजेमेंमसऊद अपनी इन रुहानी ताकतों सेमहरूम हो गया जो ब ुज़र्गों ु की तरफ सेउसेबख़शी गई थीं। भ ूरिया नेमसऊद को प ूरी तरह सेअपनेक़ाबू मेंकरनेके लिए सात हसीन जादगर ू नियांऔर उनके बीरों की प ूरी फ़ौज उस के पीछेलगा दी। मसऊद किसी ना किसी तरह उनसेजान बचाता फिर रहा था। आख़िर लंबे जान-लेवा आ4माईशों के बाद उसेएक-बार फिर वही करामाती कम्बल वापिस मिल गया जो एक ब ुज़र्ग ु नेउसेअता किया था और जिसेओढ़तेही निगाहों सेछु पेम ु नाज़ि4र इस पर अयाँहो जातेथेऔर इसी कम्बल की


मदद सेवो दसरे ू लोगों की मदद भी कर सकता था। वो एक बस्ती मेंजा पह ु ंचा जहां उसनेकई लोगों की मदद की। इसी दौरान एक और शख़्स अपनी बिप्ता लेकर उस के पास आ पह ु ंचा। येएक ठाक ु र था जो बह ु त ज़ालिम और घमंडी ह ु आ करता था लेकिन अब ख़ुद अपनेज ु ल्म का नतीजा भ ुगतनेपर मजब ूर था। उसनेएक ग़रीब शख़्स को अपनी बहन सेशादी करनेके ज ु र्ममेंइस के प ूरेख़ानदान समेत जला कर राख कर डाला था लेकिन अब उस की औलादेंएक एक करके प ुरअसरार तरीक़े सेमर रही थीं। उसेअपनी गलतियों का एहसास हो चका ु था और वो मसऊद सेमदद चाहता था। मसऊद नेठाक ु र की मदद करनेका वादा कर लिया और रात को इस की हवेली की तरफ चल पड़ा। हवेली तक पह ु ंचतेपह ु ंचतेउस के साथ कई प ुर-असरार वाक़ियात ह ु ए तो इस पर राज ख ु ला कि जिन लोगों को ठाक ु र नेज़ि4ंदा जलवा दिया था, उनकी रूहेंअपना इंतिक़ाम लेनेके लिए बेचैन थीं। उनका म ुतालिबा था कि उन्हेंचिता दी जाये। मसऊद नेफ़ै सला किया कि इन सबको दरिया पार


उनके इलाक़े मेंपह ु ंचा कर उन्हेंचिता के हवालेकर दिया जाये। इसी तरह ठाक ु र और इस के खानदान की जान उनसेछूट सकती थी। वो ठाक ु र और इस के घर वालों के साथ कश्ती मेंसवार हो कर दरिया पार जानेके लिए रवाना ह ु आ लेकिन रास्तेमें इन्ही रूहों ने उन्हें नक़्सान ु पह ु ंचानेके लिए अपनी शरारतेंश ु रू कर दी। ( अब आगे पहिढ़ए )-----


काला जादू भाग 49 मने ैं बंसी राज के बा4ूपर हाथ रखतेह ु ए कहा ’’येकौन है?' बंसी राज नेख़ौफ़4दा निगाहों सेम ुझेदेखा और फिर उस के मँ ुह सेडरी डरी आवा4 निकली ’’हीरा,,,,हीरा।' ’’मैंसब क ु छ समझ गया था। हिरणावती की हंसी भी अब समझ मेंआ रही थी और येअंदा4ा हो गया था कि नाव की विद्युतगति किसी ख़ौफ़नाक हादसेको जन्म देनेवाली है। वो तो एक ख़बीस रूह थी लेकिन बाक़ी सब ज़ी रूह थेऔर रफ़्तार पकड़नेवाली बे-आसरा नाव किसी भी पल दरिया में उलट सकती थी।' मने ैं फ़ौरन ही अपनी जगह छोड़ी। क ु छ क़दम आगेबढ़ा और हीरा के सामने पह ु ंच गया। उसनेबादबान की तरफ़ सेनज़रेंहटा कर मेरी तरफ़ देखा और फिर उस की शरारत सेम ुस्क ु राती ह ुई सुर्ख़आँखों मेंनफ़रत की परछाईयां दौड़नेलगीं। उसनेख़ूख़ार ँ निगाहों सेम ुझेदेखा और रुख बदल लिया।


इस के होंटों सेनिकलनेवाली ह ु आ अब मेरेसीनेपर पड़ी और म ुझेऐसा ही महसूस ह ु आ जैसेकोई सख़्त और मोटी सिल मेरेसीनेपर आ टिकी हो और प ूरी क़ुव्वत सेम ुझेपीछेधके ल रही हो। येह ु वा की ताक़त थी लेकिन ख़ुदा नेम ुझेभी येहिम्मत अता की कि मेंइस शैतानी ताक़त का म ुक़ाबला कर सकं । ू ते4 हवा बे-शक मेरेजिस्म मेंसुराख़ किए देरही थी लेकिन मेरे क़दमों को एक तिल बराबर भी पीछेना हटा सकी। हीरा लगातार कोशिशें करता रहा। तब मने ैं सर्दलहजेमेंकहा। ’’बस हीरा रुक जाओ। इस के बाद तुम्हारेनक़्सान ु की बारी आती है।' वो रुक गया। हवा बंद हो गई। मने ैं उसेघ ूरतेह ु ए कहा ’’जितना क ु छ तु म कर चके ु हो हीरा मेरेख़याल मेंवो बह ु त ज़्यादा हैऔर अब तुम्हेंयेसिलसिला खतम कर देना चाहीए।' उसनेख़ूख़ार ँ अंदा4 में मँ ुह खोला और फिर अपनी जगह सेउठकर खड़ा हो गया ’’अरेओ मियां जी। ज़्यादा बातेंना बना हमारेसामने। बड़ा महात्मा है, बड़ा इलम वाला है। हम ना महात्मा हैं , ना इलम वाले, हम तो म4ल ू म हैं ,


अन्याय ह ु आ हैहमारेसाथ। येपापी, येहत्यारा हमारेप ूरे ख़ानदान को ख़त्म कर चका ु है, अरेतेरा हमारा कोई झगड़ा नहीं हैमियां, बीच मेंमत आ हमारे, जो सौगन्ध हमनेखाई हैउसेप ूरी किए बग़ैर हम नहीं रह सकेंगे, बीच का झगड़ा मत निकाल मियांजी, बीच का झगड़ा मत निकाल।' "तु म इस सेइंतिक़ाम लेचके ु हो। तीन बेटेमार दिए हैंतु मनेउस के और क्या करोगे, बस इतना काफ़ी हैऔर तु म तो उस के ख़ानदान के ही हो, हिरनावती सेशादी ह ुई हैतुम्हारी, क ु छ भी हैयेअपना ख़ानदान हैतुम्हारा, बस इतना ही काफ़ी हैजो तु म कर चके ु , बस इस के बाद तु म अपनी ये कार्यवाहीयांबंद कर दो।' ’’अरेजारेजा। कार्यवाहीयां बंद कर दो। हम उस के ख़ानदान के हैं। ऐसा होता हैख़ानदान वालों के साथ रे, हमेंभी तो इस की तरह इस संसार में भेजा गया था, कौन नीचा है, कौन ऊं चा है, चार पैसेइन्सान को इतना ऊं चा बना देतेहैंकि वो नीचा देख ही नहीं सकता, हम भी इस की बहन को इज़्4त देते, हम भी इज़्4त सेजी लेते। बीच मेंमत आ मियां, वर्नाअच्छा नहींहोगा।'


’’और अगर अब तु मनेकोई कार्रवाई की तब भी अच्छा नहींहोगा हीरा।' ’’ठीक हैफिर, हमेंजो करना हैहम कर रहेहैं , येले। उसनेफिर बादबान की जानिब रुख किया। कश्ती की रफ़्तार अब भी बह ु त ते4 थी और उसे कोई सँभालनेवाला नहीं था , ख़तरा टला नहीं था। अब मेरेलिए 4रूरी था कि मैंख़ुद भी अपनेआपको अमल मेंलाऊं । मने ैं एक ठंडी आह भरी और बादबान की तरफ देखने लगा। मेरे दिल में ये आरज़ूपैदा ह ुई कि ये बादबान जल जायेऔर दसरे ू लम्हेबादबान सेशोलेउभरनेलगे। बादबान किसी सू खेह ु ए काग़4 की तरह जल उठा था और उसमेंएक दम आग भड़क उठी थी। आग के भड़कतेही बादबान की सारी हवा निकल गई और रफ़्तार सुस्त हो गई। हीरा नेमेरी तरफ़ देखा और फिर ख़ूख़ार ँ अंदा4 में आगेबढ़ा। मने ैं दोनों हाथ आगेकर लिए और आहिस्ता सेकहा। ''अब तु म जल कर राख हो जाओगेहीरा। आगेना बढ़ना वर्नायही आग तुम्हें अपनी लपेट में ले-लेगी, सोच लो हीरा, जो क ु छ नक़्सान ु तुम्हें पह ु ंचाया जा चका ु हैमैंउस मेंशरीक होना नहीं चाहता लेकिन अगर तु मने इन लोगों की ज़ि4ंदगी ख़तरे में डाली तो मजब ूरन म ुझेभी तुम्हारे साथ


बदसु ल ू की करनी पड़ेगी। हाँअगर तु म अपनी शैतानी क ु व्वतों को मेरे ख़िलाफ़ इस्तिमाल करना चाहो तो करो अगर नाकाम हो जाओ तो मेरी बात मान लेना और म ुझेजवाबी कार्रवाई के लिए मजब ूर ना करना।'' वो म ुझेदेखता और और फिर उसनेअपनेजलेह ु ए कालेहाथ चेहरेपर रख लिए। ’’सब मरेको मारतेहैं , सब मरेको मारतेहैं , जो ज़ालिम होता हैउसके लिए कोई क ु छ नहींकरता, कोई क ु छ नहींकरता।' ’’हीरा म ुझेतुमसे हमदर्दी है, म ुझेसच-म ु च तुमसे हमदर्दी है, जो क ु छ तुम्हारेसाथ ह ु वा मेंउसेअच्छी निगाहों सेनहीं देखता लेकिन, लेकिन अब तु म अपनी इंतिक़ामी कार्यवाईयों का येसिलसिला बंद कर दो, तु म अपने आपको प ुरसु क ू न करो हीरा, जिस दनि ु या सेतुम्हारा ताल्लुक़ ख़त्म हो चका ु हैअब उस सेयेताल्लुक़ मत रखो।' ’’ताल्लुक़ ख़त्म हो चका ु है??, चिता तक ना मिली हमें , सारा परिवार जला दिया हमारा, चिता तक ना दी पापीयों ने'


’’मैंतुम्हें चिता दिलवा सकता ह ू ँहीरा, मैंतुम्हें चिता दिलवा सकता ह ू ँ समझे। येकाम बंसी राज को करना होगा। बंसी राज तु म अपनेबाग़ की तरफ़ जा रहेहो ना, पहला काम तुम्हारा येहोगा कि हीरा के लिए चिता बनाओ, उस की चिता जलाओ।' बंसी राज नेहाथ जोड़तेह ु ए कहा ’’मैंतैयार ह ू ँमहाराज, सच्चेमन सेतैयार ह ू ँ , जो क ु छ म ुझसेहो चका ु है म ुझेउस का बड़ा दख ु हैहीरा, मेरा दिल कभी ख़ु श ना हो सके गा, मेरी वजह सेमेरेतीन बच्चेम ुझसेछिन गए, मेंतैयार ह ू ँ , हीरा मैंतुझसेमाफ़ी मांगता ह ू ँ।' बंसी राज रोनेलगा। हीरा नेकोई जवाब नहीं दिया था। उसनेपतवार सँभाल लिए। कश्ती का रुख बदलनेलगा। आहिस्ता-आहिस्ता वो दसरे ू किनारेकी तरफ़ जा रही थी। सब के जिस्मों मेंकपकपाहट थी। एक बदरुह को वो अपनी आँखों सेदेख रहेथे। बंसी राज की धरम पत्नी थर-थर काँप रही थी और इस पर अर्धम ुर्छाछाई ह ुई थी। हिरणावती जो क ु छ देर पहले


हंस रही थी, उस की आँखों सेआँसूबह रहेथेऔर रुख़्सारों पर दो लकीरें चल रही थीं। क ु छ अजीब सी हालत थी, शैतानी रूहों सेवास्ता पड़ चका ु था मगर ये पहला शैतान था जो म4ल ू म था। कश्ती किनारेजा लगी। असल जगह से दरू निकल आई थी। बंसी राज का सोना बाग़ दरू रह गया था। हीरा जमीन पर क ूद गया। मेरी हिदायत पर वो लोग भी किसी ना किसी तरह उतर आए। बंसी राज की धरम पत्नी सेचला नहींजा रहा था, मने ैं कहा। ''अपना वादा प ूरा करो बंसी राज।' ’’हाँ, मेंतैयार ह ू ँमगर यहांयहांक्या करूँ , बाग़ तक जाना होगा।' ’’चलो!' मने ैं कहा। सब गिरतेपड़तेबाग़ की तरफ़ चल पड़े। हीरा क ु छ दरू तक हमारेपीछेचला फिर ग़ायब हो गया। मने ैं ही पलट कर देखा था और म ुझेउस केग़ायब होनेका इलम ह ु आ था मगर मने ैं किसी सेक ु छ ना कहा। बाग़ वाक़ई ख़ूबसूरत था। बेचों बीच एक इमारत बनी ह ुई थी जिसमेंबाग़


का रखवाला तेजा रहता था। तेजा नेहैरानी सेमालिकों का स्वागत किया। अब बंसी राज को हीरा के मौज ूद ना होनेका एहसास ह ु आ था ’’गया?' उसनेप ूछा ’’तुम्हेंइस सेमतलब नहींहोनी चाहीए बंसी राज!' ‘‘अब मैंक्या करूँ?' ’’चिता तैयार कराओ' बंसी नेगर्दन झका ु दी। हरे-भरेबाग़ के एक हिस्सेमें लकड़ियाँढेर की जानेलगीं। म ु लाज़ि4म तेजा के साथ बंसी राज के दोनों बेटे और ख़ुद बंसी राज भी मसरूफ़ हो गए थे। मोटी और पतली लकड़ियों के अंबार का अहाता बना दिया गया। तब मेरी निगाह उस पेड़ के चौड़ेतनेकी तरफ़ उठ गई जिसके क़रीब वो सब बैठे थे। ब ूढ़ा लाख ु, तीन औरतें , एक बच्चा। मने ैं बच्चेकी आवा4 सु नी ’’बप्पो अर्थी नहींहै।' ’’चप ु हो जा पतू , पापी के हाथ सेचिता ही मिल जायेतो काफ़ी है।'


पीछे सेहीरा भी आकर बैठ गया था। औरतेंख़ामोश थीं, कोई अजनबी शख़्स तो इस मं4र को समझ भी ना पाता मगर जो शख़्स भी होता, वो होश-ओ-हवास मेंनहीं रह सकता था। बंसी राज की धरम पत्नी को अंदर इमारत मेंभिजवा दिया गया था फिर तेजा नेउन्हेंदेख लिया और एक पल पहलेमने ैं जो सोचा था, वो सामनेआ गया। यक़ीनन तेजा उनके बारेमें जानता होगा, उसनेएक चीख़ मारी और लंबी लंबी छलांगेंलगाता ह ु आ वहां सेभाग गया। बंसी राज और इस के बेटों नेभी अब उन्हेंदेख लिया था और ब ुरी तरह काँपनेथे। ’’अपना काम जारी रख बंसी राज, वादा प ूरा ना हो सका तो मैंतुम्हारी कोई मदद नहींकर सकँ ू गा। बंसी राज पहलेसेज़्यादा ते4रफ़्तारी सेकाम करने लगा था मगर इस तरह कि दहश्त सेउन सबकी ब ुरी हालत थी। चिता तैयार हो गई, लकड़ीयों का अंबार जमा हो गया, बीच मेंजगह थी ’’चलो चाचा चलो मासी चिता तैयार हो गई। सब अंदर चलेजाओ।' हीरा ने कहा और पेड़ के पीछेबैठेसब उठ गए, क ु छ देर के बाद वो लकड़ीयों के ढेर


के अंदर गायब हो गए। हीरा नेहिरणावती को देखा, वो पथराई ह ुई बैठी थी। हीरा नेआहिस्ता सेउसेआवा4 दिया " हिरना ....." मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया। वो इसी तरह बैठी रही तब हीरा आहिस्ता सेबोला ’’चलता ह ू ँहिरना देर हो रही है, पहलेही देर हो गई थी मगर क्या करता ,ठीक हैबंसी राज। सोचा तो येथा कि जब तक मैंरोता रह ू ँगा तुझेरुलाता रह ू ँगा मगर मियां जी बीच मेंआ गए। मियां जी मान ु ष को जीते-जी संसार मेंक ु छ मिलेया ना मिलेमगर उस सेउस की चिता भी छीन ली जाये तो....? अच्छा चलता ह ू ँहिरना चलता ह ू ँ , बंसी राज ये बाग़ तेरे बेटे ने लगाया था ना?' "हाँ' बंसी राज नेकहा ’’अब येतेरा नहीं हैहमारा है, उन सब का हैजो तेरेहाथों मारेगए, इसके एक भी पेड़ पर अब कोई फल ना लगेगा, कोई पेड़ हरा ना रहेगा, सब सू ख जाऐंगे। जब भी यहां सेग ुज़रेगा इसेदेखेगा और तुझेअपना किया ह ु आ


याद आ जाएगा। देख पत्तेसू खनेलगे, शाख़ेंसु लगनेलगीं। सारी आत्माएँ पह ु ंच गई हैं। हम सब यहां रहेंगे, मना कर देना अपनों को, कभी इधर सेना ग ुज़रेंनहीं तो हमेंसब क ु छ याद आ जाएगा। तेरेपरिवार का कोई इधर से ग ुज़रा तूजीता ना जाएगा।' वो मं4र मने ैं भी देखा। दरख़्त पत्तों सेख़ाली होतेजा रहेथे, उनकी शाख़ें टुंड म ुंड होनेलगी थीं। लम्हों मेंऐसा अनोखा उजाड़ किसी नेना देखा होगा। हरा-भरा बाग़ मिनटों मेंसू ख गया था। येसब मेरी आँखेंदेख रही थीं। मैंइन होलनाक नाक़ाबिल-ए-यक़ीन वाक़ियात का गवाह ह ू ँ। हीरा ने आख़िरी न4र हिरणावती पर डाली और फिर चिता की तरफ़ चला गया। ’’अपना काम करो बंसी राज अपना काम।' बंसी राज कपकपातेक़दमों से आगेबढ़ा, जेब सेमाचिस निकाली और सू खी लकड़ीयों मेंआग लगा दी। आहिस्ता-आहिस्ता आग भड़कनेलगी और फिर लकड़ीयों का ढेर जहन्नु म बन गया, शोलेआसमान सेबातेंलगे। ’’चलो विनोद चलो राजेश अपनी माता जी को सँभालो, चलें यहां से महाराज, हिरना उट्ठो बेटी!'


’’मेंमैंकहाँजाऊँ गी भईया जी, येमेरा ससुराल है, मैके मेंबह ु त रह ली अब तो ससुराल मेंरहनेदो ना, कोई रखैल नहीं थी, मैंहीरा की पत्नी ह ू ँ , उस के साथ फे रेकिए थेमने ैं , बिदाई तो ना की तु मने, सती भी ना होनेदोगेक्या, अरेवाह।' वो अपनी जगह सेउठ गई ’’हिरना,,, हिरना.... नहींनहींमेरी बेटी!' ’’जाओ जाओ भैया, माता पिता होतेतो वो ना करतेजो तु मनेक्या, वो दहे4 मेंआग ना देते। ह ु ंह।' उसनेकहा और चिता की तरफ़ बढ़ गई ’’अरे.....अरेविनोद ...राजेश.....पकड़ो उसेअरे... अरे!' बंसी चीख़ा बंसी के दोनों बेटेहिरणावती की तरफ़ लपके मगर वो दौड़ती ह ुई आग मेंदाख़िल हो गई। शोलों की ख़ौफ़नाक गर्मी इतनेफ़ासलेसेजलाए देरही थी। ऐसी आग मेंकिसी के दाख़िल हो जानेका तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता था, मगर मने ैं येभी देखा और येऐसा मरहला था कि मैंख़ुद भी क ु छ नहीं कर


सका। इन्सानी गोश्त के जलनेकी चिरांद उठी और खतम हो गई। भड़कती आग जरा सी देर मेंहिरणावती को चाट गई। राजेश और विनोद देखतेरह गए थे। फिर वो शोलों की गर्मी सेघबरा कर पीछे हट आए। बंसी बिलक बिलक कर रो रहा था। " हिरना सती हो गई ,मेरी हिरना सती हो गई। हाय राम मेरी छोटी सी भ ू ल नेम ुझेकितनों सेदरू कर दिया। दोष मेरा भी नहीं था। येऊं च नीच का फ़र्क़ म ुझेसिखाया गया था। भगवान के बनाए सारेएक जैसेहोतेहैं। येहम ही पापी हैंजो उनमें फ़र्क़ कर देतेहैं। मेरी बहन जल मरी महाराज, मेरी बहन जल मरी।" वो रोता रहा, मैंख़ामोश खड़ा था फिर उसेजैसेक ु छ ख़याल आया उसने आँखेंफाड़ फाड़ कर राजेश और विनोद को देखा। उन्हेंआवा4 दी। दोनों क़रीब पह ु ंचेतो उसनेलपक कर उन्हेंअपनेसीनेसेलगा लिया। ''तु म बच गए, सु न रही हैतूहमारे राजेश और विनोद बच गए। हमारे क ु सु म और श्रद्धा बच गईं, हमारेचार बच्चेबच गए। महाराज आपनेमेरे बच्चों को बचा लिया।'' वो मेरेपैरों पर गिरनेलगा तो मैंपीछेहट गया


’’नहींबंसी,मेरेधर्ममेंयेहराम है। ऐसा ना करो।' ’’आपनेहम पर बड़ा एहसान किया हैमहाराज। बह ु त बड़ा एहसान किया है।' ’’मने ैं क ु छ नहींकिया। जो क ु छ करता हैऊपर वाला करता है, वो किसी को 4रीया बना देता है। तुम्हारेजितनेबच्चेदनि ु या सेचलेगए उन्हेंइसी उम्र मेंजाना था। ऐसेना होता तो क ु छ और होता मगर येतुम्हारेलिए स4ा थी। हो सके तो इन्सानों सेम ुहब्बत करना सीखो बंसी राज। इसी मेंभलाई है।' ’’मैंअपनेपापों का परायश्चित करूं गा महाराज। चलिए वापस चलें, जो ह ु आ बह ु त हो गया। चलिए महाराज।' ’’तुम्हारा काम हो गया बंसी राज। अब तु म नाव मेंबैठ कर वापस जाओ। मेरी मंज़िल कहींऔर है।' ’’नहीं, नहीं महाराज। अब तो मेरेबाग़ मेंफ ू ल खिलेहैं। हम आपकी सेवा करेंगे। ऐसेना जानेदेंगेआपको महाराज।' ’’नहींबंसी राज बस अब तु म जाओ।'


मने ैं कहा। वो बह ु त क ु छ कहता रहा मगर मेंतैयार नहीं ह ु आ। मासू म लोगों की आबादी थी, येवाक़या मशह ू र होगा लोग अपनेअपनेमसलेलेकर दौड़ पड़ेंगे। प ू जा श ु रू कर देंगेमेरी, पहलेही अंदा4ा हो गया था और येसब क ु छ म ु नासिब नहींथा। बड़ी म ु श्किल सेबंसी राज को राज़ी कर सका था ’’हमसेक ु छ भी ना लोगेमहाराज।' वो बोला ’’जो क ु छ म ुझेदेना चाहतेहो ख़ामोशी सेमौलवी हमीद उल्लाह को देदेना, उनकी दो जवान बेटियां हैं। ग़रीब इन्सान हैं। उनकी बेटीयों की शादी का बोझ बांट लेना। समझो म ुझेसब क ु छ मिल जाएगा ’’भगवान की सौगन्द। आपसेवादा करता ह ू ँ। अपनेहाथों सेउनका ब्याह करूं गा। सारा ख़र्चाउठाऊं गा उनका।' ’’उन्हेंमेरा सलाम कह देना।' वो वहां सेआगेबढ़ गया। जो क ु छ ह ु आ था ख़ू ब ह ु आ था।सब क ु छ बह ु त हैरान करनेवाला था अचानक हरा भराबाग़ सू ख गया था। किसी पेड़ पर एक पत्ता न4र नहीं आरहा था। येम4ल ू म रूहों का इंतक़ाम था।


मैंएक और चल पड़ा ना जानेयेरास्ता किस तरफ़ जाता है, क ु छ प ूछा नहीं था बंसी राज सेमगर क्या फ़र्क़ पड़ता है। 4मीन पर किसी भी जगह चला जाऊं । म ुझेजाना ही कहाँहै। हलक़ मेंएक गोला सा आ फं सा, क ु छ यादें 4हन मेंसरसराई मगर म ुझेध्यान नहीं देना था। हिदायत नहीं मिली थी और ख़ुद सोचना भी ग ुनाह था। जल्दी जल्दी वहांसेदरू निकल आया। जब तक चल सकता था चलता रहा। थक गया तो बैठ गया। भ ू क लग रही थी मगर आस-पास क ु छ नहीं था। हाथ उठाकर ख़ुदा का श ुक्र अदा किया। नमाज़ पढ़ी और फिर लेट गया। फ़ि4ा मेंठंडक सी फै ल गई थी जो बढ़ती गई, कम्बल खोल कर ओढ़ लिया। आँखेंबंद करलीं। फिर क ु छ ग़नूदगी सी तारी हो गई। उसेनींद नहीं कहा जा सकता था। जाना-पहचाना सा माहौल न4र आया। ग़ौर करनेलगा कौनसी जगह है। याद आगया येवो जगह थी जहां म ुझेलेजाया गया था। और जहां मने ैं महावती को बिल्ली की तरह इन्सानी गोश्त चबातेथा। बिलक ु ल वही जगह थी। यहां भी उसी देवी का एक बड़ी सी म ूर्तिथी। फिर मने ैं महावती को देखा। सर पर बिजलीयों की तरह कोंदतेहीरों का ताज


था। एक तरफ साधू शंभ ू नाथ था, दसरी ू तरफ़ काली दास। वह बड़ी शान से चलती ह ुई म ूर्तिकी तरफ़ जा रही थी, उस के पीछे बीरों का झुंड था ये प ू र्णियों के बीर थे। म ूर्तिके क़दमों के पास कोई घ ुटनों मेंसर दिए बैठा था ना जानेकौन था। सर घ ुटनों मेंहोनेकी वजह सेचेहरा नहीं न4र आरहा था। फिर बीर रुक गए, काली दास और शंभ ू भी रुक गए। महावती आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ी और म ूर्तिके पैरों के पास बैठेशख़्स के सामनेपह ु ंच गई। अजीब सा खेल हो रहा था। महावती उसेदेखती रही फिर उस के पीछेजा खड़ी ह ुई, उसनेम ूर्तिके क़दमों को छूकर हाथ माथेसेलगाए और फिर म ूर्तिके हाथ मेंदबा ह ु आ ख़ंजर अपनेहाथ मेंलेलिया। मगर उसी वक़्त बीर चीख़ने लगे। इस ग ु फा के बग़ली कोनेसेनारंगी रंग का एक ग़बार ु अंदर दाख़िल हो रहा था जो पहाड़ी ग ु फा के एक सुराख़ सेनिकल रहा था। बीर पीछे हटनेलगे और बह ु त पीछेपह ु ंच गए, महावती भी रुक कर देखनेलगी थी। येग़बार ु


एक इन्सानी जिस्म की शक्ल इख़तियार करनेलगा और फिर इस सेजो इन्सान बना वो भी मेरा जाना-पहचाना था। येभ ूरिया चरण था, जोगिया लबादा ओढ़े ह ु ए, सर पर कोई चार फ ुट ऊं चा ताज पहने ह ु ए, गर्दन में इन्सानी खोपड़ियों की माला पड़ी ह ुई। चेहरेपर ग़स्से ु के निशान थे ’’जय शंखा।' महावती नेख़ंजर नीचेझकाते ु ह ु ए कहा। ''लंगड़ी प ू र्णी।' भ ूरिया चरण ने 4हरीले लहजे में कहा और महावती के चेहरे का रंग बदलनेलगा। उसनेभ ूरिया चरण को घ ूरतेह ु ए कहा ’’कालीकं ड ु मेंशंखा को इज़्4त दी जा रही है, मगर शंखा को भी काली निवास के सम्मान का ख़याल रखना चाहीए।' ’’काली चंडोली अपनी हदों का ख़ुद ख़याल नहीं कर रही, बह ु त आगेबढ़ रही है।' ’’कोई भ ू ल ह ुई म ुझसे?"


’’भ ू ल ही भ ू ल ,तू नेशंखा की पीठ मेंख़ंजर मारेहैं।' ’’कै से?' ’’कई तरह सेनिर्ख़नी, तेरा पद क्या है?' ’’पौर्णी ह ू ँ।' ’’शरम नहींआती तुझे??तू नेपौर्णपाठ किया है।' ’’शंखा तूबड़ा है, तेरी शक्ति महान है। हम तेरा म ुक़ाबला नहीं कर सकते, मगर हमेंहमारी भ ू ल बता।' ’’छः प ूरनियांतेरेपास हैं। सातवींकहाँहै।' ’’तूजानता है?' ’’ हाँमैंजानता ह ू ँ। मने ैं येप ूरनियां एक म ुसलमान को दान की थीं। मेरा उस का प ुराना मामला था। मैंउसका धरम भ्रष्ट करना चाहता था। वो अपनेधरम का सेवक बन गया है। मने ैं उस का ख़ू न बदल कर उसेप ू र्णा बनाया और तो नेवो ख़ू न निचोड़ कर उसेफिर सेपवित्र कर दिया।' ’’तूउसेलेगया था शंखा म ुझेयाद है।'


’’क ु छ ना बिगाड़ सका मैंउस का । तेरी वजह सेउस की पवित्रता उसे वापिस मिल गई।' ’’क्या वो बह ु त बड़ा ज्ञानी है।' ’’था नहीं, तेरी वजह सेबन गया है। एक प ू र्णी उसनेख़ुद मार दी छः को और मारना चाहता था मगर बरसों लग जातेउसे। तू नेउसका बरसों का काम मिनटों मेंकर दिया और उसेअपनेधरम की शक्ति मिल गई।' ’’शंखा सेबड़ी शक्ति?' ’’वो तो तुझेपता चल जाएगा" ’’म ुझेजो पता चलेगा वो मेंदेख लँ ू गी शंखा। मगर तेरेमेरेबीच कोई बात ना हो तो अच्छा है।' ’’कालीकं ड ु मेंजीवन बिता देगी क्या। बाहर ना आएगी इस से,शंखा से म ुक़ाबला करेगी।' ’’भ ू ल कर भी नहीं सोच सकती मगर तूबराबर मेरा अपमान कर रहा है। मेरेबीर इसेअच्छा नहींसमझ रहे।' महावती नेकहा


’’तेरेबीर,....? मेरेबीरों को देखना है। नहीं देखा तो देख ले।' भ ूरिया चरण नेपीलेकपड़ेकी एक झोली मेंहाथ डाल कर उड़द की म ुट्ठी भर दाल निकाली और उसे4मीन पर देमारा। महावती ने4मीन पर बिखरेह ु ए दाल के दानों को देखा जो फ ूलतेजा रहेथेऔर फिर हर दानेसेपीलेरंग की एक मकड़ी निकल आई। पहलेवो नन्ही सी होती फिर एक दम बड़ी होने लगती यहांतक कि छाली के दानेबराबर हो जाती। दानेदरू तक बिखर गए थेऔर इसी हिसाब सेमकड़ियां इस इलाक़े मेंफै ल गई थीं। सबसेपहले शंभ ूऔर काली दास उछल उछल कर ऊं ची जगहों पर चढ़ गए महावती के चेहरेपर अजीब सेचिन्ह न4र आरहेथे। भ ूरिया चरण नेऔर दाल निकाली और पहलेके सेअंदा4 में4मीन पर फेंक दी, मकड़ीयों का प ूरा खेत उग गया, बड़ी मकड़ीयों नेवहांमौज ूद हर ची4 चाटना श ु रू कर दी थी। प ू र्णियों के बीर बदहवास होनेलगेथे, वो बेचैनी सेइधर उधर दौड़नेलगे, मकड़ियां उन पर भी चढ़नेलगीं और वो नाच नाच कर उन्हेंझाड़नेलगे,


उधर बिखरी ह ुई मकड़ीयों नेवहां सफ़ाया श ु रू कर दिया था। अचानक शंभ ू चीख़ा। ’’क्षमा कर देशंखा। क्षमा कर देधन पोरना। तुझेदेवी की सौगंध। तुझे देवता का वास्ता क्षमा कर दे। महावती क्षमा मांग लेशंखा सेहम उस के आगेक ु छ ना कर सकेंगे।' ’मने ैं कब ऐसी बात कही शंभ ू नाथ जी, शंखा महान हैउसेकौन नहीं मानता।' ’’क्षमा मांग लेशंखा से। जय देवी जय महारानी। क्षमा कर देशंखा क्षमा कर दे।' शंभ ूचीख़ा ’’श ु मा कर देमक्कड़ तेरेबीर शक्ति महान हैं।' महावती नेकहा और भ ूरिया चरण उसेघ ूरनेलगा। फिर उसनेदोनों हाथ सीधेकरके इधर उधर किए और मकड़ियांग़ायब हो गईं ’’तेरेबीर तेरेअपमान को अच्छा नहीं समझ रहेथेतो क ु छ कर क्यों ना सके महावती।'


भ ूरिया चरण नेकहा ’’शंखा ग ु रु है। जो जानता हैवही जानता है।' महावती नेकहा ’’बड़ा घमंड हो गया हैतुझे।' ’’शंखा के सामनेनहीं। हाँशंखा के बल पर हो सकता है।' महावती नेअचानक चोला बदल लिया। वो दिलकश अंदा4 मेंम ुस्क ु राने लगी। "मक्कार " शंखा हँसनेलगा। उसनेशंभ ूऔर काली दास को देखा और बोला ’’ससुरी कचोंदी हैनिरी। एक दम कचोंदी। चार मंत्र सीख लिए, कालीखण्ड बन गई। इसेसमझाओ काली संथो है, काली संथाल है, वो पाताल सेगहरे हैं , येचार मंत्र कालीखण्ड नहीं बना देते, जीवन भर कालीपाठ करेगी थोड़ा रहेगा। पगली चण्डोली त्रिया चरित्र दिखा रही हैशंखा को। म ुस्कराकर ल ु भा रही है। उसेजिसनेसात अप्सराएं दान कर दिया एक अनजानेको। वो अप्सराएं जो महाराज की सभा में सितारों की तरह जगमगाती हैं , ह ु ंह लंगड़ी प ू र्णी।'


’’शंखा महान है।' महावती सँभल कर बोली ’’ तू नेइस म ुसल्लेको उसकी धरम शक्ति देदी जो हमनेबड़ी म ु श्किल से छीनी थी और अब वो ज्ञानी बन गया है। उस के हाथों हम को जो न ुक़सान पह ु ँचेगा उस का ज़ि4म्मा कौन लेगा ’’म ुझेपता नहींथा महाराज,,, क्या वो ऐसा कर सकता है।' ’’लाल तलैया का माघ मार दिया उसने। एक क्रोधी परिवार को मोक्ष दिला दिया,, वर्नावो संसार मेंख़ू ब काम करते। येसब तेरी वजह सेह ु आ।' ’’तु म उसेक ु त्तों की तरह घसीटतेलेगए थेमहाराज, मार क्यों ना दिया तु मनेउसे?' ’’तूमार देना चण्डोली,,,आएगा वो तेरे पास भ ू लेगा नहीं तुझे।' भ ूरिया चरण व्यंगात्म लहजेमेंबोला। फिर म ूर्तिके क़दमों मेंबैठे नौजवान से बोला। ''तेरा क्या ख़्याल हैए छोरा। होश ठिकानेआए तेरे?,,, उठ खड़ा हो।' "


वो शख़्स जो घ ुटनों मेंसर दिए बैठा था उठ खड़ा ह ु आ। वो घबराई नज़रों से इधर उधर देखता रहा था फिर उसके चेहरेपर भी घबराहट उभर आई ’’मैंकहाँह ू ँ?' उसनेख़ौफ़4दा लहजेमेंकहा ’’ अभी तो इसी संसार मेंहै। हम क ु छ देर ना आतेतो चण्डोली के पेट में होता। अब क्या कहता है?' ’’येयेसब किया है। ओह महावती , महारानी जी।' ’’इसे.... इसे, क्यों जगा दिया महाराज। येकाली दान है। मैंउसेकाली को भेंट देरही ह ू ँ।' महावती नेबेचैनी सेकहा ’’तेरा सत्यानास हो। सारेकाम वो कर रही हैजो मेरेन ुक़सान के हैं।' ’’ समझी नहीं महाराज? काली भेंट देनेदो। येमेरेकाम का है।' महावती बोली ’’तुझसेपहलेयेमेरेकाम का था, समझी। येअमावस की रात पैदा ह ु आ है और पायल है।' ’’यही मेरे कष्ट को दरू कर सकता है। मने ैं बड़ी म ु श्किल से पाया है महाराज।' महावती गिड़गिड़ा कर बोली


’ कचोंदी है,निरी कचोंदी, हरामख़ोर। अरी बाओली मेरेपास सेभागा ह ु आ है,और येछुपता फिर रहा था कमीना कहींका। जानती हैवो जो एक बेकार सा लड़का था और मने ैं उसेउस की मर्ज़ी सेपीर फाग ु न के म4ार पर भेजना चाहा और वो ना गया उस वक़्त से वो मेरा शिकार है, मगर मेरी ज़ि4द नेउसेज्ञानी बना दिया। वही लड़का जो तेरेपास सेलेगया था। अगर सुसरा म ुझेपीर फ़गनवा द्वार पह ु ंचा देता तो खंडोला बन गया था म, ैं संथरा के सत्रहवीं ज्ञान को जानती है, नाम भी ना सु ना होगा तू नेतो चणडोली। हम पाबंद होतेहैंशंखा की हद सेनिकल कर खंडोला बननेके लिए। संथरा के सत्रहवीं पाठ के और इस मेंपहला आदमी ही होता हैजो आख़िरी आदमी होता हैऔर इस के बाद अगर काम ना हो तो शंखा शक्ति भी चली जाती है। बड़ा पीछा किया हमनेउस ससुरेका और हमारी ही वजह सेवो अपना धरम ज्ञानी बन गया, बड़ी म ु श्किल सेहमनेउस का तोड़ निकाला और येछोकरवा तलाश किया, जो अमावस का पायल है, मगर ये ससुरेम ुसलमान छोकरे, पता नहीं उनके कान मेंक्या भर दिया जाता है, कभी काम के नहीं निकलते। येभाग आया और छुपता छुपाता तेरेपास


पह ु ंच गया मगर सुसरा आकाश सेगिरा खज ूर मेंअटका। तेरे ही पास मरना था इसे, तलाश करतेह ु ए यहां आए हैं , जो क ु छ तुझेबताया हैहमने कान खोल कर सु नले,वो सुसरा तेरेहाथ लगेतो जिस तरह भी हो सके उससेउस का ज्ञान छीन लेना, इस मेंतेरा भला है, आएगा, वो तेरेपास 4रूर आएगा। मैंइसेलेजा रहा ह ू ँ , येमेरेकाम का है।" महावती सख़्त बेचैन न4र आनेलगी, उसनेख़ू नी निगाहों सेअपनेबीरों को देखा, फिर बेबसी सेशंभ ूऔर काली दास को सबनेगर्दनेंझका ु ली थीं बेबस नौजवान जिसकी उम्र उन्नीस बीस साल सेज़्यादा ना होगी, सहमी ह ुई नज़रों सेइस सारेमाहौल को देख रहा था। जब भ ूरिया चरण नेइस का हाथ पकड़ा तो वो दहशत-ज़दा लहजेमेंबोला ’’नहींनहींमेंनहींजाऊं गा नहींजाऊं गा, मैंइस शैतान के साथ।' भ ूरिया चरण नेउस के बा4ू को एक ज़ोरदार झटका दिया।


’’गीदड़ की औलाद, भाग कर शहर ही मेंआया ना, इतनी जल्दी मरनेकी क्यों सोचेहै, हम ना आतेतो उसनेख़ंजर तो उठा ही लिया था, गर्दन काट कर बली देती तेरी और इस के बाद मास खा जाती। गया था बेटा इस संसार से, अरी ऊ चंडालनी, हम झूट बोलेहैंक्या!' महावती ग ुस्सा भरी निगाहों सेभ ूरिया चरण को देख रही थी। नौजवान लड़का सहमेसहमेअंदा4 मेंभ ूरिया चरण के साथ आगेबढ़ गया और इस के बाद अचानक ही जैसेआँख ख ु ली गई। मने ैं आहिस्ता सेकम्बल चेहरेसे हटाया और आँखेंफाड़ कर इधर उधर देखनेलगा। वही माहौल था, वही जगह थी जहां थक कर आराम करनेलेट गया था, आसमान पर बादलों के टुकड़ेघ ू म रहेथे। और रात का अंधेरा दरू दरू तक फै ली ह ुई थी, दिल पर एक अजीब सी बेचैनी तारी हो गई, सोच की हद बढ़ गईं, म ुझेमेरी दसरी ू मंज़िल का एहसास दिलाया गया था म ुझेमेरेआगेके क़दम की निशानदेही की गई थी। वो सब एक अलग ही अंदा4 सेमेरेकानों तक पह ु ंचा था जो म ुझेसोचना चाहीए था। एक पद दिया गया था, म ुझेएक ज़िम्मेदारी दी गई थी, और बताया गया था कि अपनी ज़ि4ंदगी को किस


अंदा4 सेआगेलेजाना है, जो क़ुव्वतेंअता की गई हैंउन्हेंकहाँइस्तिमाल करना है, कौन कौन सेफर्जहैंजो प ूरेकरनेहैं , न जानेक्यों राजा चन्द्रभान को भ ू ल गया था, न जानेक्यों महावती के बाग़ मेंजगह जगह लगेवो अनगिनत म ुरतें4हन सेनिकल गए थेजो महावती के कालेजादू का शिकार थे, उन सबकी मदद तो म ुझ पर क़र्ज़थी और म ुझेख़ुद ही उनके बारेमेंसोचना चाहीए था। सारी थकन दरू हो गई, या ना ह ुई थी तो फ़र्ज़के एहसास नेच ुस्ती फ ुर्ती अता कर दी थी, रुकना नहीं चाहीए बल्कि फ़र्ज़की अदायगी के लिए चलतेरहना 4रूरी है, क ु छ सोचेसमझेबग़ैर, तैकिए बग़ैर अपनी जगह सेउठकर आगेबढ़ गया। इन्सानी आबादीयों की तलाश थी। रास्ता जाननेके लिए किसी इंसान की जरूरत थी और अब उस वक़्त तक ना रुकना था जब तक निशान-एमंज़िल ना मिल जाये, आसमान पर तैरतेह ु ए कालेबादलों के टुकड़ेआपस मेंजड़ु गए और घटाटोप अंधेरा छा गया। फिर क ु छ नन्ही नन्ही बँ ूदों ने माथे, आँख और नाक पर अपनी मौज ूदगी का एहसास दिलाकर डराना


चाहा लेकिन जो एहसान किया गया था म ुझ पर उस का फ़र्ज़यही था कि सब क ु छ भ ू ल जाऊं , चलता रह ू ं , बारिश श ु रू हो गई। ते4 हवा साथ आई थी और मौसम बह ु त ठंडा हो गया था। हवा के थपेड़ेभीगेबदन मेंसुराख़ कर रहेथेमगर वो बदन किसी और का था मेरा क्या था जो मैंसोचता। मेरा 4हन तो उस जगह के बारेमेंसोच रहा था जहां महावती रहती थी, सब क ु छ याद आरहा था। चन्द्रभान, वो बोलते म ूरत जो म4ल ू मियत का निशान थे, उन्हें इस जादगरनी ू सेआजादी दिलानी थी। वो औरत काले जादू की, गंदी रूहों की मलिका, जादू के देवी की प ूजारन थी और अपनेजादू की क़ुव्वतेंबढ़ाना चाहती थी। भ ूरिया चरण शैतान नेजो नापाक ख़ू न मेरेजिस्म मेंदाख़िल कर दिया था, महावती के 4रीयेम ुझेउससेआजादी मिल गई थी। प ूरनियांउस के क़बज़े मेंचली गई थींऔर मैंआ4ाद हो गया था। सही मानेमेंअब भ ूरिया चरण के बर्बादी का आग़ा4 ह ु आ था, मगर वो नौजवान लड़का कौन था जिसेवो औरत पकड़ लाई थी और भ ूरिया चरण जिसेअपनेलिए इस्तेमाल करना चाहता था। आह .... क्या वो लड़का म ुसलमान है। क्या अब उस के 4रीया


वो पीर फाग ु न के म4ार म ुक़द्दस को नापाक करना चाहता है। नहींयेनहीं होना चाहीए। ऐसा नहीं होगा किसी क़ीमत पर नहीं होगा। देखू गा ँ तुझे राक्षस भ ूरिया चरण। मेरेदाँत भिंच गए ’’आपनेम ुझसेक ु छ कहा?' किसी नेम ुझ सेप ूछा और मैंचौंक पड़ा। मने ैं उसेदेखा और फिर हैरानी सेचारों तरफ़ देखा। प ूरी आबादी थी बड़ेबड़े मकान न4र आरहेथे, दिन निकल चका ु था, नजानेकब रात ख़त्म ह ुई, नजानेकब बारिश बंद ह ुई, क ु छ अंदा4ा नहींहो था। ’’नहीं भाई मने ैं तो क ु छ नहीं कहा।' मैंबोला, वो अजीब सी नज़रों सेम ुझे देखनेलगा फिर बोला। ''क ु छ कहा था आपने।' ’’ख़ुद सेबातेंकर रहा था।' ’’आपके कपड़ेब ुरी तरह भीगेह ु ए हैं , कहींपानी मेंगिर पड़ेथे?' ’’ईं ....यहांबारिश नहींह ुई।' ’’बारिश इस मौसम में? येबारिशों का मौसम कहाँहै।' ’’ईं ...हाँशायद।'


मने ैं खोए ह ु ए लहजेमेंकहा। म ुझेवाक़ई कोई अंदा4ा नहीं था लेकिन बारिश ह ुई थी मेरेभीगेह ु ए कपड़ेइसका सबूत थे। इस शख़्स के चेहरेपर ऐसेआसार न4र आए जैसेवो म ुझेपागल समझ रहा हो। वो जानेलगा तो मने ैं उसेरोक कर कहा। ''सु नो भाई! येकौनसा शहर हैबता सकतेहो?' ’’हमेंनहींमाल ूम।' उसनेजवाब दिया और वहां सेआगेबढ़ गया। म ुझेपरेशानी नहीं थी ,पता चल ही जाएगा। देर तक आबादी मेंचलता रहा कपड़ेबदन पर ही सू ख गए थे। एक नानबाई की दकान ु न4र आई तो इस मेंदाख़िल हो गया। बेवक़्त पह ु ंचा था इस लिए गाहक नहीं थे। नानबाई सेखाना तलब किया तो उसने गर्दन हिला दी। ’’कितनी रोटियाँलगा दं ू मियांसाहब?' ’’दो काफ़ी होंगी "मने ैं कहा।


नानबाई नेपहलेतंदरू मेंदो रोटियाँपकाईं फिर सालन वग़ैरा निकाल कर देदिया। "भाई भटिंडा यहांसेकितनी दरू है?' ’’कोई सत्तर कोस दरू होगा मियांसाहब, क्यों प ूछ रहेहो।' ’’जाना हैवहां।' ’’कब्जा रहेहो।' ’’बस जल्दी, हो सकता हैआज ही चला जाऊं ।' ’’यहींपर ही रहतेहो।' ’’नहींबाहर सेआया ह ू ँ।' ’’मियां साहब मेरा एक खत लेजाओगेवहां, मेरी बेटी वहीं ब्याही हैउस के मियांको देदेना।' ’’आप देदीजिए, मैंदेदगा। ू ' ’’तु म रोटी खाओ, लड़की सेकह दं ू4रा लिख देगी। तु म हाथ के हाथ दे दोगे, डाक सेतो कई दिन लग जातेहैं"


नानबाई अन्दर चला गया और दो मिनट के बाद वापस आगया अब वो बड़ी मेहरबानी सेपेश आरहा था। अपनेख़ानदानी मामलात बताता रहा, कहनेलगा। ''मेरा बड़ा भाई श ु रू सेवहीं रहता हैउसी के लौंडेसेब्याह ह ु आ हैमेरी बेटी का।' ’’आप भी जातेरहतेहोंगेवहांतो?' ’’लो भाई, घर आँगन हैहमारा तो। दो-चार महीनेमेंचक्कर लग जाता है।' वो हंस कर बोला ’’राजा चन्द्रभान होतेथेवहां।' ’’हाँरहतेथे। मियां इन राजों महाराजों की क्या प ूछो हो। बस अय्याशियों मेंसब क ु छ खो बैठे ।चन्द्रभान नेतो हद ही कर दी,एक डायन घर मेंडाल ली है। बड़ी कहानियां सु नी हैंइस की तो। सारा भटिंडा ख़ौफ़ सेकाँपेहै उनकेनाम से।' नानबाई बह ु त सेराज खोलतेरहा। फिर उसनेम ुझेखत देदिया। खानेके पैसे उसने बड़ी म ु श्किल से लिए , म ुझे प ूरी रहनुमाई हासिल हो गई।


प्रवीणप ूर सेरेल मेंबैठा और भटिंडा पह ु ंच गया, महावती का शहर आगया था। नानबाई का घर तलाश करता ह ु आ वहांपह ु ंच गया।अभी कोई ठिकाना चाहिए था जो उन पर अच्छेलोगों के पास मिल गया, बस एक ख़त लाया था मगर इतनी मेहमान-नवाज़ी की उन्होंनेकि शर्मिंदा हो गया। रात उन्ही के यहाँग ु4ारी, और फिर रात को जैसी हिदायत मिली थी वैसेही दरूदु शरीफ़ पढ़ कर कम्बल ओढ़ लिया।महावती का महल देखा। बाग़ के म ूर्तियों को देखा। महावती महल मेंनहीं न4र आई, काली दास मौज ूद था। महल पर सन्नाटा छाया था। उस जगह पर ग़ौर किया जहां महावती नेकाली निवास बना रखा था। मगर उस का पता नहीं चल सका, अलबत्ता 4हन ने कहा। हर काम आसान नहीं होता खोज और अमल क़ायम ना रहेतो वज ूद नाकारा होजाता है, अमल लाज़ि4म हैजवाब मिला था ,गांठ बांध लिया और इस के बाद अमल के बारेमेंसोचनेलगा।शुरुआत महल ही सेकरना था। दसरे ू दिन ह ु लिया दरुस्त ु किया और मे4बानों सेइजा4त लेकर चल पड़ा। क ु छ देर के बाद महल के दरवाज़ेपर था। दरबानों नेकड़ी नज़रों सेदेखा तो मने ैं कहा। ''दीवान काली दास सेमिलना।'


’’क्या काम है?' ’’बह ु त 4रूरी काम है। तु म उन्हेंख़बर कर दो।' ’’हमेंहिदायत हैकि महल मेंकिसी नए आदमी को ना आनेदें। ख़बर करना बेकार है।' ’’मगर म ुझेबह ु त 4रूरी काम है।' ’’क्षमा कर भाई, हम वो कर सकतेहैंजो हमसेकहा गया है।' दरबानों सेयेबातेंहो रही थींकि सुंदरी न4र आ गई। सामनेसेग ुज़र रही थी म ुझेदेखकर रुक गई और फिर जल्दी सेमेरेपास आई। ’’आप महाराज, आप?' ’’सुंदरी येम ुझेअंदर आनेसेमना कर रहेहैं।' ’’’अरेना सु खी राम जी ,आनेदेंइन्हे,, येतो महादेवी के ख़ास आदमी हैं।' सुंदरी नेकहा काला जाद ू 50 वां भाग----


’’आईए आईए! ‘‘ मैंसुंदरी के साथ महल मेंचला गया, क ु छ दरू चलनेके बाद अचानक उसने रास्ता बदल दिया। '"इधर सेआ जाईए महाराज, सीधेजाना ठीक नहीं है। आईए इधर सेआ जाईए मैंठिठका फिर आगेबढ़ गया। ''येबांदियों का इलाक़ा है। मैंयहीं रहती ह ू ँ। जल्दी आ जाईए कोई देख ना ले।'' ’’मगर सुंदरी....!' मने ैं ताज्जु ब सेकहा ’’अंदर चल कर बातेंकरेंगेमहाराज जी, वो सामनेही तो मेरा ठिकाना है।" छोटा सा घर था। तीन कमरेबनेह ु ए थे। उसनेम ुझेएक कमरेमेंबिठा दिया। " अब जी भर कर बातेंकरेंगे।' वो गहरी सांस लेकर बोली ’’तु म यहांरहती हो?'


’’ज़्यादा तो महल में रहती ह ू ँ। जब छुट्टी होती हैतो यहां आजाती ह ू ँ। महादेवी तो इन दिनों यहांनहींहैं।' ’’कहाँहैं?' ’’ पता नहींशायद काली निवास मेंहों।' ’’काली निवास कहाँहैसुंदरी?' ’’सौगंध लेलेंम ुझेनहीं माल ूम। बस उस दिन उस के ग ु फा का दरवाज़ा देखा था। उस सेपहलेया उस के बाद कभी नहीं देखा। वो दिन याद करती ह ू ँमहाराज तो जान निकल जाती हैमेरी, अगर तु म ना होतेतो मेरा क्या होता....." ’’सुंदरी म ुझेक ु छ बताओगी तु म?' ’’पता होगा तो 4रूर बताऊं गी ’’ वो सब क्या था सुंदरी??....। महावती आख़िर हैक्या?' ’’तु मनेपहलेभी म ुझसेप ूछा था,,...,, हम बांदियां हैंमहाराज इसी महल में पैदा ह ु ए, इसी मेंजवान ह ु ए और इसी मेंमर जाएंगे, पर हमेंक ु छ नहीं माल ू म होगा। जो कहा जाता हैकरतेहैं , तु मनेहम पर दया की थी उस दिन,


वर्नाना जानेक्या होता, हमेंना तो पहलेपता था ना अब पता है। महावती जी नेजैसा कहा वैसा किया।" सुंदरी बोली और फिर उसनेजल्दी से4बान दाँतों मेंदबा ली और डरी ह ुई नज़रों सेइधर उधर देखनेलगी, मैंउस के इस अंदा4 पर चौंक पड़ा। और उसेग़ौर सेदेखनेलगा। मेरेइस तरह देखनेसेवो और घबरा गई। बोली, ''हमनेकोई ऐसी वैसी बात कह दी महाराज।' ’’ हाँसुंदरी,,, मेरा ख़्याल हैतूसच बोल गई है"। मैं4हरीलेलहजेमेंबोला ’’कौन सा सच?' वो रो देनेवालेलहजेमेंबोली ’’उसनेसच ही कहा हैमहाराज। दसरा ू सच मेंआपके सामनेकह ू ँगा।' दरवाज़ेसेआवा4 सुनाई दी और मने ैं उस तरफ़ देखा, दीवान काली दास खड़ा ह ु आ था। उसनेसुंदरी को इशारा किया और वो वहां सेवापस निकल गई। काली दास अंदर आगया था।


" उसनेसच कहा हैमहाराज, जैसा देवी नेकहा उसनेवैसा ही किया। पहले हमनेक ु छ और सोचा था मगर शंभ ूमहाराज नेएक दम विचार बदल दिया। आप मसऊद जी महाराज हैंना।???' ’’तु म लोग म ुझेभ ू ल गए काली दास?' ’’भला आपको कभी भ ू ल सकतेहैं???.. आप भ ूरिया चरण को भी जानतेहैं , शंखा को। सब क ु छ जानतेहैंआप। उसनेकहा था आप आरहेहैं। महा देवी नेपहरेलगा दिए, फिर उन्होंनेसोचा कि सुंदरी के हाथों आपको बेहोश करा देंऔर क़ै द कर लें, मगर अभी अभी महादेवी नेक ु छ और संदेश भेजा है आप के पास।'' काली दास नेकहा। मैंदिलचस्प नज़रों सेकाली दास को देखता रहा, म ुझेपता था कि भ ूरिया चरण और महावती के बीच क्या बातेंह ुई हैं। "संदेश आपके लिए भी हैमहाराज।'' वो फिर बोला ’’बताओ।' मने ैं कहा


’’उठें मेरे साथ चलें, येपहरेआपकी वजह सेलगाए गए थेमगर नया सदेश क ु छ और है।' ’’महावती बह ु त परेशान माल ू म होती हैशायद। चलो अब कहाँचलना है और वो ख़ुद कहाँछु पी है।' ’’महादेवी आपसेभेंट करेंगी। अवश्य करेंगी और जहांतक उनकी परेशानी की बात हैतो आपका येख़याल ग़लत है, वो परेशान क्यों होंगी। आपको उनकी शक्ति का अंदा4ा नहीं है, जीवन बिता दिया हैउन्होंनेज्ञान ध्यान में।' मैंउस के साथ कमरेसेबाहर निकल आया। वो म ुझेप ुरानी हवेली की तरफ़ ही लेजा रहा था और मैंजानता था कि वहां उसनेअपनी जादूनगरी बना रखी हैलेकिन म ुझेकोई ख़ौफ़ नहींथा। काली दास के साथ मेंप ुरानी हवेली मेंदाख़िल हो गया। मने ैं प ुरानी हवेली प ूरी कभी नहीं देखी थी। इस बार काली दास म ुझेउस के बिलक ु ल पिछलेहिस्सेमेंलेगया। मने ैं इस जगह को जादूनगरी ग़लत नहीं कहा था। एक वीरान और सुनसान बरामदा था जिसमें एक बंद


दरवाज़ा न4र आरहा था, काली दास नेवो बंद दरवाज़ा खोला और म ुझे अन्दर चलनेका इशारा किया। अंदर दाख़िल हो गया लेकिन अंदर क़दम रखतेही दिल-ओ-दिमाग़ ख ु श हो गए। येसच-म ु च जादूनगरी थी। हरे-रंग की मद्धम रोशनी फै ली ह ुई थी और एक बड़ा सा बाग़ न4र आरहा था, लेकिन सौ फ़ीसद नकली बाग़ था। बह ु त ही ऊं चेपेड़ जिनकी टहनी और पतेऊपर जाकर एक दसरे ू मेंइस तरह ग ु थे ह ु ए थेकि आसमान का नाम-ओ-निशान नहीं न4र आता था, मानो एक छत बनी ह ुई थी और सब क ु छ इस छत केनीचेथा। अंग ूरों की बेलेंउनमेंझूलतेकालेऔर हरेअंग ूरों के ग ुच्छे । रंग बिरंगेफ ू ल, चहचहाती चिड़ियांऔर दसरे ू नन्हेपरिंदे, जगह जगह फ़व्वारे, क ु छ जगहों पर फ़व्वारों के पास बनी ह ुई बेंचों पर हसीन लड़कीयां बैठी ह ुई। सब मेरी तरफ़ निहार रही थी, आँखों मेंचंचलता और लगावट लिए ह ु ए, काली दास मेरा मार्गदर्शन करता ह ु आ इस बाग़ मेंबनी एक इमारत के दरवाज़ेपर पह ु ंच गया।


फिर वो दरवाज़ा खोल कर पीछे हट गया और म ुझेअंदर जानेका इशारा किया। ''महावती आपका इंते4ार कर रही हैंमहाराज।'' दरवाज़ेसेअंदर क़दम रखा। सीढ़ीयांबनी ह ुई थीं। येकोई बारह सीढ़ीयांथीं और एक गोल सा कमरा, जिसका फ़र्श-संग मरमर का था। दीवारेंभी सफ़ै द पत्थर ही सेबनी ह ुई थीं। बीच में एक सिंहासन था जिस पर महावती अधलेटी सी थी। शंभ ू नाथ उस के पीछेखड़ा ह ु आ था। इन दोनों के अलावा यहांकोई ना था। मैंसीढ़ीयों सेनीचेउतरा और महावती नेम ुझेदेखकर पांव सिकोड़ लीए। शंभ ू नाथ थोड़ा सा पीछेहट गया और महावती उठकर खड़ी हो गई। इस की आँखों मेंस्वागत के चिन्ह थेऔर होंटों पर मद्धम सी म ुस्क ुराहट फै ली ह ुई थी। शायद वो मेरेआनेपर ख़ु शी जाहिर करना चाहती थी और येपक्का सुलह की एक कोशिश थी, मैंथोड़ा सा और क़रीब पह ु ंचा तो उसनेदोनों हाथ सीनेपर रखकर मोहक अंदा4 मेंगर्दन झकाई ु और फिर सीधी हो कर बोली।


''महावती, महाराज का स्वागत करती है। आईए सिंहासन पर पधारिए महाराज, एक शक्तिमान, दसरे ू शक्तिमान को जो मान देसकता हैवो इस वक़्त मेरेमन मेंआप के लिए है। पधारिए महाराज, म ुझेख ु शी होगी।'' मने ैं आँखेंबंद करकेगर्दन हिलातेह ु ए कहा- ’’नहीं महावती, कालेजादूसेबनी ह ुई हर चीज मेरेधर्ममेंहराम होती है और ऐसी किसी ची4 को बिना किसी मजब ूरी के छू ना मेरेलिए सही नहीं है, मेंइन नापाक चीज़ों को अपनी किसी आराम के लिए इस्तेमाल नहींकर सकता।' महावती की म ुस्क ुराहट सिक ुड़ गई, लेकिन फ़ौरन ही उसनेउन शब्दों के प्रतिक्रिया को भ ूलतेह ु ए कहा। ''तो फिर बताईए मसऊद जी महाराज, मेंआपका स्वागत कै सेकरूँ?' ’’मैंयहांखड़ा ह ु आ ह ू ँमहावती, बस इतना ही काफ़ी है।' ’’तो फिर येतो नहींहो सकता कि येसिंहासन मेरेलिए है, इसेबीच सेहटा देना ही अच्छा होगा।'


उसनेम ुड़कर उस ख़ूबसूरत सिंहासन को देखा और दसरे ू ही पल वो मेरी निगाहों सेओझल हो गया। महावती फिर मेरी ओर आकर्षित हो गई। उसनेकहा। ''मसऊद जी महाराज, बह ु त सी बातेंबड़ेसेबड़ेज्ञानी की समझ मेंनहीं आतीं, आप एक ऐसेआदमी की हैसियत सेमेरेसामनेथे, जिसकी कोई हैसियत ही नहीं थी, लेकिन आपका ज्ञान चीख़ चीख़ कर म ुझेबता रहा था कि आप आम आदमी नहींहैं। अब अगर मैंआपसेकोई बात छु पाऊं तो उसे मैंअपनी बेवक़ू फ़ी के सिवा और क्या कह सकती ह ू ँ। मसऊद जी, महाराज को एक न4र देखतेही मने ैं पहचान लिया था कि वो प ू र्णाहैंऔर प ूरनियां उनके वश मेंहैं , पौर्णभगत हमारेज्ञान मेंबह ु त बड़ा दर्जारखता है। महाराज, पर येबात मेरी समझ मेंनहीं आई थी कि एक म ुसलमान के नाम सेएक कारोबारी शख़्स का नौकर मेरेपास क्यों आया है। सारी बातें मान रही ह ू ँमहाराज। येजानना चाहती थी कि आपकी असलीयत किया है और इसी लिए मने ैं आपको रोक लिया था, पर ना तो मैंसमझ सकी, ना मेरा बीर काली दास और ना ही महाराज शंभ ू नाथ कि आपकी असल किया


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