’’तुम यहां क्या कर रही थीं ठक ुराइन?' कोहली राम ने प ूछा ’’ प ूजा करने आई थी। सपने म ेंदर्शन दिए थे, उन्होंने ब ु लाया था म ुझे, तो नंदा को साथ लेकर चली आई। ' गीता नंदी बोली ’’तुम्हारा म ँ ुह है ठाकुर जो रुके ह ु ए हैं , नहीं तो लाठीयां मार मार कर भेजा बाहर कर देते इस का। ' एक जोश से भरा आदमी बोला ’’अरे त ु म मँ ुह देखो ठाकुर का। हम नहीं देखेंगे, मॉरो इस हरामख़ोर को , जान से मार दो !' लोग एक-बार फिर बेक़ाबूहो गए। कुछ लोगों ने बंदक़ वालों पर हमला कर ू के बंद क़ू ें छीन लिया। हालात बिगड़ते देखकर मने एक ऊं ची जगह खड़े हो ैं कर ची ख़ कर कहा ’’सुनो भाईयो, कल्ल ू की जान बच गई है। अल्लाह ने गंगो के बेटे लल्लू को भी बचा लिया है। गीता नंदी और नंदा को पकड़ कर हवेली ले चलो। पूरी बात ठाक ु र को बताओ फिर देखो वो क्या फ़ै सला करते हैं।' ’’फ़ै सला हम कर ेंगे, ठाक ुर नहीं।' ’’फिर भी कोहली राम को प ूरी बात तो बताओ।' ’’ठीक है। ले चलो उस डायन को। ले चलो। ' लोगों ने मेरी इतनी बात मान ली ’’कपड़े फाड़ दिए हैंतुमने उस के, ये चादर ओढ़ा द ं म ू ैंउसे?' ठाक ुर ने कहा
बंदक़ू ें अब दसरों के हाथों म ू ेंथीं इस लिए कोहली राम भी बेबस हो गया था। गीता नंदी और नंदा चमार को मं दिर से बाहर लाया गया। काफ़ी लोग जमा हो गए थे और फिर पूरा जलूस ही वापस चल पड़ा। जनक राम, गंगो और अल्लादीन मेरे साथ थे। रास्ते म ेंजनक राम ने कहा ’’हम किसी पर भरोसा नहीं कर सकते। ठाकु र पु लिस को भी बुला सकता है और अगर प ु लिस आ गई तो ठकुराइन बच जाएगी।' ’’सो तो है ' ’’बस्ती म ेंघ ुसते ही दस बीस आदमीयों को दौड़ा दो। पूरी बस्ती जमा कर लो। सब के सब ठाक ुर की हवेली को घेर लें, किसी को बस्ती से बाहर ना जाने दिया जाये। जिसके पास जो हथियार है, लेकर आ जाये। ठाक ुर कोई चाल ना चल जाये कहीं। " ’’बिलक ुल ठीक कहा त ू ने जनकिया। मैंदौड़ कर बस्ती जाता ह ू ँ। अरे आओ रे आओ, दो-चार मेरे साथ ' गंगो ने कहा। क ुछ लोग उस के साथ हो लिए और गंगो भी ड़ से आगे दौड़ गया। फिर जब बस्ती मेंसब पह ु ंचे तो बस्ती के सभी घर रोशन हो च ुके थे। लोग चीख़तेफिर रहे थे। ''डायन पकड़ी गई भाईयो। सब के सब घरों से निकल आओ। ठाक ु र की हवेली के सामने जमा हो जाओ। डायन पकड़ी गई। ' जल ूस ठाक ुर की हवेली पह ु ंचा तो वहां का नजारा ही बदला ह ु आ मिला। गंगो हवेली के दरवाज़े पर बंदक़ू लिए जमा ह ु आ था। बीस पच्चीस आदमी उस के साथ थे। जो लोग हवेली म ेंथे, उन्हें निहत्ता कर के बाहर जमा कर लिया गया था और दो
आदमी उन पर बंद क़ू ें ताने ह ु ए थे ठाक ुर आगे बढ़ा तो गंगो ने इस पर बंदक़ू तान ली ’’तुम अंदर नहीं जाओगे ठाक ुर। जब तक फ़ै सला नहीं हो जाएगा अंदर नहीं जाओगे गंगो ने कहा ’’तुम लोगों ने मेरे घर पर भी क़ब ज़ा कर लिया है। जानते हो इस के जवाब में प ु लिस क्या करेगी ’’ये काम अब प ु लिस नहीं करेगी ठाकु र, हम कर ेंगे। भू ल जाओ प ु लिस को, बच्चे हमारे मारे गए ह ैं , प ु लिस के नहीं। ' गंगो ने कहा ’’म ैंम ु खिया ह ू ँतुम्हारा!' ’’यहीं पंचायत होगी। यहीं फ़ै सला होगा। फिर अन्दर जाओगे तु म!' ’’तो फिर फ़ै सला तुम ही कर लो, मेरी क्या 4रूरत है।' ’’फ़ै सला तो हो गया है ठाक ु र। ज़ि4ंदा जलाएँगे हम इन दोनों को!' कोहली राम को अंदा 4ा हो गया कि सूरत-ए-हाल बह ु त बिगड़ी ह ुई है। वो परेशानी से द सरों की स ू ूरत देखने लगा। बस्ती के लोग चारों तरफ़ से आकर जमा हो रहे थे। कोहराम मचा ह ु आ था। मैंदिल ही दिल मेंअपने आपको टटोल रहा था और मेरा दिल जवाब दे रहा था। कोई शक नहीं है गीता नंदी के मु जरिम होने म ें। छः मासूम बच्चों की जान ली है उसने। इस के साथ यही सब होना चाहीए। ’’अल्लादिन। कल्ल ूको घर पह ु ंचा दो।' मने कहा ैं
’’कलेजा निकल गया है मुसाफ़िर भैया। हाय क्या हालत हो रही थी मेरे बच्चे की, अरे म ेंतो चाहता था वहीं मार डालते इन दोनों को। ये ठाकुर वहां कै से पह ु ंच गया।' ’’ये बात तो पहले ही तै कर ली गई थी कि क ु छ लोग ठाक ु र को बु ला लाएँगे ताकि वो भी देख ले।' ’’अब कै से रंग बदल रहा है स ुसरा। गंगो ने ठीक करा भैया नहीं तो सुसरा प ु लिस ब ुला लेता और फिर हमरी दाल ना गलती, बचा लेता वो किसी ना किसी तरह ठक ुराइन को, ठीक है म ुसाफ़िर भैया हम कल्लूको घर पह ु ंचा दें। अभी आते ह ैं।' और अल्लादीन वहां से चला गया। म ुझे सूरत-ए-हाल का बख़ूबी अंदा 4ा हो रहा था। बस्ती वाले एक दसरे से बात ू ेंकर रहे थे। वो हैरान थे इस बात पर कि डायन भागभरी नहीं थी और इस की तरफ़ शक ऐसे ही चला गया था। ठक ुराइन असल डायन है, बात धीरे धीरे ख ुलती जा रही थी, लोग एक द सरे को सब क ू ुछ बता रहे थे, वो लोग सबसे ज़्यादा ग ुस्से म ेंथेजिनके बच्चे ठक ुराइन के हाथों मारे गए थे। उनका बस नहीं चलता था व र्ना सब क ुछ वहीं कर डालते लेकिन जो तैयारीयां हो रही थीं उनसे अंदा 4ा होता था कि किसी तरह ठकुराइन और नंदा को छोड़ने पर तैयार नहीं होंगे। बह ु त से लोग जंगल और खेतों की तरफ़ भी निकल गए थे, उनकी वापसी के बाद उनके इरादों का पता चला। लकड़ियाँ काट कर लाए थे और हवेली के सामने ही एक साफ़ स ुथरेहिस्से में ढेर करने लगे थे। ठक ुराइन को हवेली मेंनहीं जानेदिया गया था बल्कि वहीं एक जगह बिठा दिया गया था। नंदा भी थोड़े दरी पर मौज ू ूद था। गीता
नंदी जितना शोर मचा सकती थी, मचा च ुकी थी और अब उस के चेहरे पर डर के निशान साफ न4र आने लगे थे। ठाक ुर कोहली राम लोगों से सलाह मश्वरे कर रहा था। लगभग सारी बस्ती ही उमड आई थी बस औरत ेंऔर बच्चे ही घरों म ेंरह गए थे। तुलसी भी मौजूद था मगर इतने दरी पर ू कि में उस के चेहरे का जाय 4ा नहीं ले सकता था। ये सब हंगामे भरी कार्रवाई जारी रहीं। लोगों की 4बानी उनके फ़ै सलों का पता चल रहा था जो कोहली राम और द सरे लोगों के बीच बातचीत करने से ह ू ु ए थे। पता चला कि सुबह को पंचायत होगी और सारी बात ेंसुनने के बाद फ़ै सलेकिए जाऐंगे। बस्ती म ेंजैसे कोई त्योहार मनाया जा रहा था। पूरी बस्ती मेंउजाला कर दिया गया था ,लोग आ जा रहे थे। ठाक ुर कोहली राम भी एक तरफ़ बैठ गया था थक कर। ये हंगामे सारी रात चलते रहे। अल्लादीन मेरे पास वापस आ गया था। अब वो बेहतर हालत म ेंन4र आ रहा था। जनक राम और गंगो वग़ैरा भी मेरे पास ही मौज ूद थे। इन दोनों को मुझसे बड़ी अक़ीदत(श्रद्धा) हो गई थी खासतौर से गंगो को जिसका बच्चा क़ु र्बान होते होते बच गया था , अल्लादीन के लिए भी बड़ी अक़ीदत के बात कहे जा रहे थे कि उसने अपने बेटे की ज़ि4ंदगी ख़तरे मेंडाल दी थी। अगर वो ऐसा ना करता तो ना तो ठाक ुर कोहली राम ये बात मानता कि इस की धरम पत्नी डायन है और ना ही ठक ुराइन रंगे हाथों पकड़ी जाती। जिन लोगों ने अंदर का नजारा देखा था वो तो ख़ैर किसी और बात पर
यक़ीन करने को तैयार ही नहीं थे ले किन क ु छ लोगों के दिलों मेंशक भी पाया जा सकता था। रात ग ुज़रती रही। आख़िर सुबह हो गई। ठाकुर का चेहरा उतरा ह ु आ था। चारों तरफ़ से बंध कर रह गया था वो। पता नहीं उस के अपने दिल मेंकिया था। ठक ुराइन भी अब थकी और परेशान न4र आ रही थी शायद अब उसे अपनी तक़दीर का फ़ै सला माल ूम हो गया था। सुबह को लोग मुंतशिर ह ु ए और क ुछ देर के बाद पंचायत जम गई। जमाल गढ़ी के बड़े बूढ़े एक जगह बैठ गए। ठाक ुर को इस वक़्त मु खिया का दर्जानहीं दिया गया था लेकिन फिर भी बह ुत से लोग ऐसे थे जो उस की इज़्4त करते थे। ठाक ु र के सब नौकर इस बात पर हैरान भी थे और श र्मिंदा भी कि ठक ुराइन की नौकरी करते रहे थे। अब उनके ख़याला भी बदले ह ु ए न4र आ रहे थे। आख़िर लोगों से ख़ामोश होने के लिए कहा गया और फिर मेरी प ुकार पड़ी। अल्लादीन ने कहा ’’म ैंजानता था भया, पंचायत त ुम्हें4रूर बुलाएगी।" गंगो, जनक राम और वो बह ु त से आदमी जिनके बच्चे मरे थे, मेरे साथ ही आगे बढ़े थे। पंचायत वालों ने म ुझे बैठने के लिए कहा और मेंउनके सामने बैठ गया। ठक ुराइन आग बरसती आँखों से मुझे देख रही थी। नंदा की हालत अब काफ़ी ख़राब हो गई थी। इस की न ज़रेंबार-बार लकड़ीयों के इस ढेर की तरफ उठ जाती थीं , जिसे अब चिता की शक्ल दे दी गई थी। एक रास्ता रखा गया था ठक ुराइन और नंदा को अंदर पहु ंचाने के लिए, बाक़ी
प ूरी चिता ऐसे बना दी गई थी जैसे मुर्दों को जलाने के लिए श्मशानघाट में बनाई जाती है। एक ब ुज़र्ग ु कहा। ’’ठाक ुर कोहली राम सारी बात ेंहमेंपता चल गई हैंऔर अब फ़ै सला करना 4रूरी हो गया है। त ूअगर मु खिया की हैसियत से इस चौकी पर बैठना चाहे तो अब भी बैठ सकता है ले किन फ़ै सला इन्साफ़ से करना होगा, कोई ऐसी बात नहीं मानी जाएगी जो झ ूटी हो।' ’’तुम्हारी म र्ज़ी है धर्मू चाचा, जैसा मन चाहे करो। ' ठाक ुर कोहली राम ने उदास लहजे म ेंकहा ’’म ुसाफ़िर भैया त ु म किसी और बस्ती से इधर आए और तुमने भाग भरी को इस लाश के पास बैठे देखा। क्या ये सच है ?' ’’हाँ बिलक ुल सच है और ये भी सच हैकि भागभरी सिर्फ़ बैठी ह ुई थी जैसा कि म ुझे बाद मेंमाल ूम ह ु आ कि वो पागल है, एक पागल औरत लाश को देखकर इस तरह बैठ भी सकती है , उसे टटोल भी सकती है और यही बात मने द ैं सरों से कही थी। ू ' ’’अच्छा भैया, अब त ुम लोग हमेंये बताओ कि तुम्हेंकै से पता चला कि ठक ुराइन गीता नंदी प ुराने मंदिर मेंबच्चों की बलि देती है।' ’’म ैंबताता ह ू ँचाचा। मुसाफ़िर भैया को शक हो गया था कि कोई गड़बड़ 4रूर है और भागभरी डायन नहीं है। सो वो एक रात प ुराने मंदिर की तरफ़ निकल गए जहां उन्होंने गीता नंदी और नंदा को देखा। वो मेरे बच्चे को पकड़ कर ले गए थे। इस के हाथ पांव बांध रखे थे उन्होंने और वही सब क ु छ हो रहा था जो आज म ने अपनी आँखों से देखा है। मेरा बेटा लल्ल ैं ूवहां पड़ा
ह ु आ था, उस के हाथ पांव बंधे ह ु ए थे, म ुसाफ़िर भैया अके ला था इस लिए उसने शोर मचा दिया। गीता नंदी और नंदा चमार भाग गए वहां से और मेरा बच्चा म ुसाफ़िर भैया की वजह से बच गया। वही इसे लेकर आए, इस से घर का पता प ूछा और चप ु -चाप उसे घर म ेंछोड़ गए। मेरे घर वालों को और म ुझे तो इस का पता भी नहीं था लेकिन सुबह को जब हमने लल्लू की हालत देखी तो वो ते 4 ब ुख़ार मेंतप रहा था और बार-बार ची ख़ चीख़ कर कह रहा था कि म ुझे ना मॉरो। मुझे घर जाने दो। बुरी हालत हो गई हमारी। बड़ी म ु श्किल से हम बच्चे को समझा बुझा कर उस की 4बान ख ु लवाने में कामयाब ह ु ए तो उसने ये कहानी सुनाई। मुसाफ़िर भैया के बारे में भी बताया। हमने माल ूमात कीं तो मुसाफ़िर भैया ने हमेंअसल बात बता दी। वो बाहर के आदमी ह ैंलेकिन हमारेलिए तो देवता समान हैं। मेरे बच्चे का जीवन बचाया है उन्होंने। म ैंतो उन पर ह4ार जीवन क़ु र्बान कर सकता ह ू ँ समझे ध र्मू चाचा। बाद मेंहम सबनेमिलकर ये तैकिया कि ऐसा काम किया जाये जिससे सबको असल बात मालूम हो जाये। काला जाद ू 55 भाग--- ऐसे ही अगर हम कोहली राम को ये बात ेंबताते तो भला चलती हमारी और फिर जनक राम और द सरे क ू ुछ सर जोड़ कर बैठे । अल्लादीन ने अपने बेटे की क़ ु र्बानी देने का फ़ै सला किया और ऐसा मौक़ा दिया कि नंदा, किलो को अग़वा कर ले और हम सब उस की ताक म ेंलग गए। इस की गवाही बहु त
से लोग द ेंगे। सबने अपनी आँखों से देखा है बस कुछ देर ही थी कि गीता नंदी, कल्ल ूको मार डालती मगर हम सब तैयार थे।' ’’गीता नंदी ऐसा क्यों करती थी ?' ’’इसी से प ूछो।' ’’बताएगी ठक ुराइन?' ’’झूट बोल रहे ह ैं , सब के सब झ ूटे हैं। सब पापी दश्मन हो गए ह ु ैंमेरे, एक एक को ठीक कर द ँगी। देखते रहो त ू ुम सब। महाराज अधेरणाचन्द,ू समाधि मेंना बैठे होते तो....तो...!' ’’अधेरणा चन्द!' ु ठाक ुर कोहली राम हैरत से बोला ’’वो काला जाद ूकरने वाला तांत्रिक?!' धर्मू र्मूचाचा ने कहा। उससे तेरा क्या लेना देना?' ’’गीता नंदी। उस से तेरा क्या सम्बंध है। ' ’’क ुछ भी नहीं बताऊं गी किसी को!' ’’ नंदा बताएगा। अरे ओ पापी रोटी के क ु छ टुकड़ों के लिए तू नेकितने घर उजाड़ दिए, 4बान खोल दे शायद बच जाये नहीं तो ज़ि4ंदा फू ं क दिया जाएगा, 4बान खोल दे पापी , अपनी चिता देख रहा है तू।' नंदा की सहन श क्ति जवाब दे गई, दहाड़ें मारने लगा। चीख़ चीख़ कर रोने लगा। ''हम निर्दोष हैंम ु खिया जी। हमारा दोष नहीं है। हमेंतो..... हमेंतो ठक ुराइन ने मजब ूर कर दिया था।'" गीता नंदी चौंक पड़ी। उसने घ ूर कर नंदा को देखा
’’क्या बक रहा है नंदा ?' ’’अरे... अरे चिता तो बनवा दी तुमने हमारी ठकुराइन अब भी चुप रहें क्या?।' ’’अधेरणा चन्द ूतुझे जीता नहीं छोड़ेंगे। भस्म कर देंगे तुझे।' ’’वो तो बाद म ेंभस्म करेंगे, अभी जो भस्म हो रहे ह ैंउसे कौन रोके गा?" ’’अरे बोलने दे गीता नंदी। पंचायत के बीच दख़ल ना दे। ' ’’सब झ ूटे हैं। सब कायर हैंऔर..और त ुम देख रहे हो कोहली राम तु म चप ु देख रहे हो। बंद क़ू ें निकालो, भ ून दो ससरों को। ' ठक ुराइन दहा ड़ते ह ु ए बोली ’’ तू ने ये क्या कर दिया है गीता। जीवन भर मुझे दबाए रखा। मैंइन्हेंकै से दबाऊं ?' ठाक ु र ने बेबसी से बोला ’’रहे ना नीच 4ात के ही। अच्छी 4ात के होते तो बहादरी ु दिखाते। पिता जी ने सच कहा था। ' ठक ुराइन न फ़रत से बोली ’’अरे ऊं ची 4ात वाली तू ने अपनी 4ात ख़ू ब दिखाई।' ठाक ु र को भी ग़स्सा आ गया। गीता नंदी उसे ख़ ु ू नी नज़रों से देखकर ख़ामोश हो गई। नंदा लगातार रोये जा रहा था। उसने कहा। ''हम तो नौकर थे भाईयो। माल किन ने जो कहा वो किया। गोद सू नी थी उस की, टोने टोटके करती थी। हम ेंकई जगह ले गई, ना जाने क्या -क्या करम कराए फिर अधेरणा चन्दूमहाराज मिल गए। उन्होंने ये करम बताए। सात भ ेंट देनी थी शैतान देव के चरणों में। सो हमसे ये भी कराया मालकिन ने।पहले प ुराने मंदिर में शैतान देव की मूर्ति की स्थापना
करवाया और फिर अपनी गोद हरी करने के लिए उसने हमसे छः बच्चे उठवाये, सातवें बली गंगो के छोरा की थी सो हम ले गए उसे और मुसाफ़िर ने देख लिया, बली ना हो सकी। अधेरणा जी समा धि मेंबैठे हैंनहीं तो 4रूर आ जाते। बड़ा सम्बंध है इस का !' ’’और क ु छ सुनना है ठाकु र' धर्मू र्मूचाचा ने कहा ’’म ैंक्या कह ू ं चाचा, म ुझे तो क ु छ मालूम ही ना था।' ’’ख़तम करो ये पंचायत। उसे चिता मेंले जाओ। नंदा को भी भस्म करना होगा। उसने माल किन के कहने पर जो कु छ किया, करने से पहले ख़ुद ना सोचा ? इसे भी भस्म कर दो , जलादो दोनो को। ' लोग बेक़ाब ूहो गए थे। सब कुछ सच पता चलने के बाद लोग बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। इस लिए नंदा को घेर लिया गया, लकड़ीयों को आग लगा दी गई। म ने आँख ैं ेंबंद कर लीं, लोगों ने नंदा को उठा कर आग म ेंझोंक दिया था। फिर वो गीता नंदी की तरफ़ बढ़े। गीता नंदी भी ख़ौफ़-ज़दा न 4र आने लगी थी। नंदा के जलने की चिरांद हवा मेंदर दू र तक फै ल रही थी और उसे ू अपना अंजाम न 4र आ रहा था तभी अचानक पीछे की तरफ क ुछ भगदड़ सी मची। लोग चीख़नेचिल्लाने लगे। म ने भी चौंक कर उधर देखा। एक बे नत्था बैल दौ ैं ड़ता चला आ रहा था, उस की नंगी पीठ पर साध ूओं जैसा ह ु लिया बनाए एक आदमी बैठा ह ु आ था। बह ु त से लोग बैल की पैरो मेंआकर क ुचल गए थे। गीता नंदी ने उसे देखा तो त ुरंत ही हंस पड़ी। ’’महाराज अधीराज अधेरणा चन्द ू म ुझे बचाओ महाराज, म ुझे बचाओ!'
बिफरे ह ु ए लोग रुक गए। उनकी नज़रेंबैल की पीठ पर बैठे साधूपर थीं और इस के आने पर वो बह ु त डर गए थे। उसनेजिस तरह लोगों पर बेल दौड़ा दिया था इस से इस के पत्थदिल होने का पता चलता था और घमंड का भी, जैसे उसे किसी का डर ना हो और वो इन जीते जागते इन्सानों को घास क ूड़ा समझता हो। देखते ही देखते वो पास आ गया। मुझे अंदा4ा हो गया था कि अब क्या होगा। गीता नंदी ने इस का नाम लेकर मुझे उस की पहचान करा दिया था। मने ैं दिल ही दिल मेंदरूद पढ़ना श ु ुरू कर दिया क्योंकि हर मु श्किल के हल के लिए म ुझे यही बताया गया था। अधेरणा चन्द ूने ख़ू नी निगाहों से यहां मौजूद लोगों को देखा और लोग डर से काँपने लगे। काले जाद ूके इस धुरंधर के बारे मेंबस्ती भर के लोग जानते थे, इस से हद से ज्यादा न फ़रत भी करते थे और डरते भी रहते थे। ’’क्या नाटक रचाया है रे कम 4ात तूने। क्या कह रही है ये!' उसने कोहली राम को घ ूरते ह ु ए कहा ’’मने ैं , मने नहीं महाराज ैं , सब बस्ती वालों ने किया है' कोहली राम हाथ जोड़ कर काँपता ह ु आ बोला। लोग धीरे धीरे पीछे हट रहे थे, दर तक ू अधेरणा के लिए जगह छोड़ दिया सबने। ’’काहै रे हरामखोरो काहै मौत को आवा 4 दी तुमने। जानते हो हमारी शरण में है हमारी चेली है गीता नंदी, हमारी श क्ति के छांव मेंहै। अरे ओ बड्ढे ु सरपंच त ूबता क्या है ये सब कु छ।' अधेरणा चन्द ूशायद बस्ती वालों को जानता था, उसने ध र्मू चाचा से सवाल किया था
’’गीता नंदी ठक ुराइन, डायन बन गई है महाराज। ' चाचा ने कपकपाते ह ु ए कहा ’’अरे ओ डायन के सगे। बावले बन गए हो क्या त ुम सारे के सारे देवता को बली दे रही थी वो , उस की गोद भी तो स ूनी थी।' ’’ उसने छः प रिवार सूने कर दिए महाराज छः बच्चों को मार कर उनके कलेजे चबा गई। ' जंग राम हिम्मत कर के बोला ’’अरे पा पियो। अरे बावलो। अरे जन्म के अंधो, अमर हो गए वो देवता के चरणों म ेंभेंट हो कर। तुम सब बाल बच्चों वाले हो, एक एक के घर म ेंछः छः खेल रहे ह ैं। एक के चले जाने से कौन सा फ़र्क़ पड़ गया। ये चीरांध कै से उठ रही है अग्नी से।क्या जला रहे हो त ुम इस में?' ’’उन्होंने नंदा को ज़ि4ंदा भस्म कर दिया है महाराज। ज़ि4ंदा आग मेंझोंक दिया है उसे और म ुझे भी ये अग्नी मेंझोंकने वाले थे"।गीता नंदी शेर होने लगी ’’तुम्हारा सत्यानास पा पियो, अपना न र्क तुमने धरती पर ही बना लिया। तुम्हें माल ूम नहीं था कि नंदा हमारा सेवक था। ठीक है तुमने जो क्या उस का फल भोगोगे। नंदा ने भ ूत बन कर तुम सबको ऐसे ही भस्म ना किया तो हमारा नाम भी अधेरणा चन्द ूनहीं है। कौन सूरमा झोंके गा इसे आग में , आओ आगे बढ़ो , इसे छ ूकर दिखाओ और तू नामर्दकायर, नीच 4ात खड़ा देख रहा है सबको। देख लिया गीता नंदी, ये फ़ र्क़ होता है4ात का। तेरे माता पिता कहते थे तुझसे"
अधेरणा ने कोहली राम की तरफ़ इशारा किया था ’’ये अन्याय है महाराज। हमारे मन स ुलग रहे हैं। हम बदला लेंगे। हमें बदला लेने दो ' क ुछ लोगों ने कहा और अधेरणा चन्द ू की गर्दन उनकी तरफ़ घ ूम गई ’’आओ आओ। आगे आओ , हम न्याय कर द ें। ये अग्नी तुमने जलाई है। बह ु त बड़ी चिता बनाई है तुमने। लाओ पहले इसे बुझा दें। फिर तुम्हारे सुलगते मन भी ब ुझा देंगे" अधेरणा चन्द ूबैल की पीठ से उतर आया। उसने ते4ी से भड़कते शोलों को देखा फिर होंट सिकोड़कर उन पर फूं क मारने लगा। ते4 सनसनाहट के साथ आग दबने लगी। जलती ह ुई मोटी लकड़ियाँ हवा के दबाव से जगह छोड़ने लगीं और लोग घबरा कर उस तरफ से हट गए जिधर लकड़ियाँ सरक रही थीं। शोले ब ुझने लगे। लकड़ियाँ इस तरह बुझ गईं जैसे उन पर ओस पड़ गई हो। नंदा की लाश भी न 4र आने लगी थी। कोयला हो गया था जल कर। मेरे लिए अब क ु छ करना 4रूरी था। मने अपनी सोच म ैं ेंएक घेरा अधेरणा चन्दू के चह ु ंओर बना दिया। अधेरणा ने आग ठंडी कर के अपना काम ख़त्म किया। फिर बोला। ''अब बोलो किस-किस का मन स ुलग रहा है।' लोगों के चेहरे सफे द प ड़ गए थे मगर भागा कोई नहीं था। हो सकता है कि पीछे से क ु छ लोग खिसक गए हों या फिर वो चले गए थे जो ज़ख़मी हो गए थे। गीता नंदी की न4र अचानक म ुझ पर पड़ी और वो मेरी तरफ़ इशारा कर के बोली
’’ये सबसे आगे आगे था महाराज। म ुस्लमान का छोकरा। उसने बड़ा उधम मचाया है।' अधेरणा चन्द ू म ुझे घूरने लगा। फिर क ुछ हैरानी से बोला ’’ये कौन है ? कौन है रे त ू ?' ’’मेरी कहानी तो बह ु त लंबी है चन्दूमगर तूने बह ु त बुरा किया है। गीता नंदी को त ूने ही इस बुरे काम पर तैयार किया था।' ’’हाँ किया तो था। स4ा देगा क्या तू म ुझे।' अधेरणा के आवाज म ेंघमंड और अंदा 4 मेंव्यंग था ’’म ु जरिम तो, तू बस्ती वालों का है वही तुझे स4ा देते तो अच्छा था मगर ये मास ूम लोग तुझसे डरते हैं , मजब ूरन म ुझे ये काम करना पड़ेगा" ’’अच्छा।' अधीरना म ुस्क ु रा कर बोला। "क्या ज ु र्मकिया है हमने महाराज?' वो म 4ाक़ उड़ाते ह ु ए बोला ’’तुम तीनों म ु जरिम हो, तुमने गीता नंदी को ग ुमराह किया और गीता नंदी शैतान बन गई। उसने छः बच्चों की जान ने ली। नंदा ने इस के साथ मिलकर उन बच्चों को अ ग़वा किया। उसे तो स4ा मिल गई तुम दोनों बाक़ी हो।' ’’तो हम ेंभी स4ा दे दो महाराज। तुम्हारी जलाई हुई चिता तो बुझ गई ।' ’’ऐसी ...ऐसी ह ज़ारों चिताएं भड़क सकती हैंअधेरणा। तूने उसे बुझा कर कोई बह ु त बड़ा काम किया है क्या?'
’’जय देवा गोरमा चौ किया। ये महाराज अधीराज क्या कह रहे हैं। जाओ महाराज पहले तो रावण की लंका की सैर कर लो ' उसने मेरी तरफ़ रख कर के होंट गोल कर लिए। ते4 ह ु आ की सनसनाहट सुनाई दी। शायद वो मुझे फँ ूकों से उड़ा देना चाहता था। ले किन उस के होंटों सेनिकलने वाली हवा किसी ठोस दीवार से टकरा कर वापस होने लगी। ये ठोस अनदेखा दीवार मेरी सोच का बनाया ह ु आ घेरा था। मेरा दिल-ख़ुशी से उछलने लगा। हिम्मत बंध गई। ते 4 हवा घेरे मेंही बंध गई थी और अंदर फै ल रही थी जिससे गीता नंदी और ख़ुद अधेरणा चन्दूके बाल और कपड़े उड़ने लगे। साथ साथ अंदर मौज ूद कूड़ा करकट और जली ह ुई लकड़ीयों की राख भी। अधेरणा हैरान हो कर रुक गया। उसने आँख ेंफाड़ कर मुझे देखा तो मने ैं कहा-- ’’तुम्हारे रावण की लंका तो म ुझे न4र नहीं आई। मगर अब तेरा ये बेल तुझे सैर कराने ले जा रहा है। ' मने बैल को घ ैं ूरते ह ु ए कहा। अचानक बैल के तेवर बिगड़ने लगे। उसने अपनी जगह उछलना क ूदना शुरू कर दिया और और अधेरणा एक तरफ़ हट गया। बैल ने ख ुर 4मीन पर घिसे और फिर गर्दन झुका कर अधेरणा पर हमलाकरने लग गया। अधेरणा बदहवास हो कर एक तरफ़ हट गया। बैल आगे बढ़कर अनदेखे घेरे की दीवारों से टकराया और इस का सिर फट गया। इस के सर से ख़ ून बहा तो वो दर्दसे पागल हो गया और फिर उसने अधेरणा को ताक लिया और फुन्कारेंमार मार कर इस पर क़ु लांचेंभरने लगा।
गीता नंदी डर कर भागी ले किन वो घेरे के क़ै दी थे, वो भी अनदेखे दीवार से टकराई और ची ख़ मार कर गिर पड़ी। उधर बैल ने अधेरणा को घेर लिया और सींगों पर उठा कर ब ुरी तरह रगीदने लगा। अधेरणा का दाहिना गाल फट गया मगर बैल उस का पीछा नहीं छो ड़ रहा था। अधेरणा जैसे ही उठने की को शिश करता वो अगले पांव उठा कर पूरी ताकत से टक्कर मारता और अधेरणा कई कई फ ुट उछल कर गिरता। उधर गीता नंदी लगातार कोशिशें कर रही थी। बस्ती वाले सांस रोके खड़े ये तमाशा देख रहे थे। अधेरणा चन्द ू के म ुंह सेदिल दहलाने वाली चीख़ेंनिकल रही थीं। फिर गीता नंदी भी बैल की लपेट म ेंआ गई। कोहली राम के मँ ुह से आवा4 निकल गई जिसे उसने जल्दी से दबा लिया। बस्ती वालों का मौन टूट गया, वो शोर मचाने लगे। ख़ुशी से उछलने लगे ठहाके लगाने लगे। शोर की आवा4 से बैल और बिफर गया। उसने टक्करेंमार मार कर इन दोनों का क़ीमा बना दिया। वो गोश्त के लोथड़े बन गए थे। बैल भी कई बार न दिखने वाली दीवार से टकराया था और ब ुरी तरह ज़ख़मी हो गया था। फिर वो भी गिर प ड़ा और उसने पांव रगड़ रगड़ कर दम तोड़ दिया क ु छ मिनट बीत गए तो मैंआगे बढ़ा और उन लाशों के पास पह ु ंच गया। बस्ती वाले मेरे पास आने की हिम्मत नहीं कर रहे थे। फिर उनकी हिम्मत बढ़ी और द सरे पल वो ू ''म ुसाफ़िर महाराज की जय , म ुसाफ़िर महाराज की जय!' करते ह ु ए क़रीब आ गए। वो मेरे पांव छूरहे थे, हाथ च ूम रहे थे। उन्हें रोकना मेरे बस म ेंनहीं था। मने बेबसी से ैं दिल मेंकहा
’’मालिक म ैंमजब ूर ह ू ँ। कितना ही शोर मचाऊ, ये मेरी नहीं स ु नेंगे। जिस तरह जितना हो सकता था उनसे बच रहा था।' जनक राम ची ख़ कर बोला। ''रुक जाओ भाईओ। रुक जाओ। परेशान ना करो म ुसाफ़िर महाराज को। बाद म ें मिल लेना उनसे परेशान मत करो।' … लेकिन कौन मानता। कोहली राम इस भीड़ म ेंन4र नहीं आरहा था। लोग अधेरणा से भी नफ़रत करते थे इस लिए चिता फिर जलादी गई और उनके जिस्मों के लोथड़े घसीट कर आग म ें फेंक दिए गए। इस काम के बीच मुझे उनसे बच निकलने का मौक़ा मिल गया और मैंवहां से सराय की तरफ़ भागा। सराय में आकर दम लिया था लेकिन अंदा4ा था कि अब क्या होगा। खेल ख़त्म हो गया था। गीता नंदी ख़त्म हो गई थी और इस के साथ एक ख़बीस भी जो काले जाद ू का माहिर था। ना जाने और कितने इन्सानों को इस के हाथों नक़्सान पह ु ु ंचता लेकिन जो क ुछ उस के बाद ह ु आ था और होने वाला था वो मेरे लिए सही नही था। अल्लादीन आगया। बीवी को प ुकारता ह ु आ अंदर घुसा था। ' '4ुबेदा अरी नेक -बीबी कहाँ गई। ' ’’क्या है?' 4ुबेदा की आवा 4 उभरी ’’ग़4ब हो गया। वो म ुसाफ़िर शाह साहब तो बड़े पह ु ंचे ह ु ए हैं। अरी मामू ली आदमी नहीं ह ैंवो। वही हैं , सारी बस्ती उनका नाम ले रही है। म ुक़द्दर फूट गया हमारा। पैसे ना लेते उनसे य ूंही ख़िदमत करते तो बेड़ा पार हो जाता। ख़ुश हो कर क ु छ ऐसी ची4 दे देते हमेंकि वारे न्यारे हो जाते।'
’’म ुसाफ़िर भैया की बात कर रहे हो ?' ’’तो और क्या। ' ’’क्या ह ु आ?' 4ुबेदा ने प ूछा और अल्लादीन उसे कोहली राम के घर पर होने वाले सब बात बताने लगा। ये जगह भी बेकार हो गई। बाद म ेंजब अक़ीदतमंद(श्रद्धालु) यहां पह ु ँचेंगे तो ना जाने कै सी कै सी मु श्किलें आएंगी। ख़ुद अल्लादीन 4ुबेदा से जो कुछ कह रहा था इस से आने वाले वक्त का अंदा 4ा लगाया जा सकता था। 4ुबेदा को मेरे यहां आने का पता था। बस क ुछ देर थी कि वो म ुझ तक पहु ंच जाते। निकल जाना चाहीए। आज के तीन रुपय 4ुबेदा को दे चुका था। एक रुपया पास मेंथा। उठा और ख़ामोशी से बाहर निकल आया। ते4 ते4 चलता ह ु आ बस्ती से बाहर जाने वाले रास्ते पर चल पड़ा। क ु छ लोगों ने म ुझे देखा लेकिन ये वो थेजिन्हेंमेरे बारे मेंमाल ूम नहीं था इस लिए वो म ु श्किल ना बने और मेंउनके बीच सेनिकल आया। खेतों के बीच से हो कर आगे बढ़ा ही था कि क ुछ दरी पर प ू ुराने मंदिर की इमारत न4र आई। वीरान और स ुनसान, इस इमारत म ेंबह ुत भयानक ड्रामे होते रहे थे। रात यहां ग ु4ारी जा सकती है। बस्ती के लोग म ुझे ढूंढते ह ु ए कम से कम यहां नहीं आएँगे। कल दिन के उजाले म ेंयहां सेकिसी भी तरफ निकल जाऊं गा। हालाँकि भयानक जगह थी ले किन मेरेलिए बे-हक़ीक़त थी। अंदर दा ख़िल हो गया एक कोना पसंद कर के आराम करने लगा।
सामने ही वो म ूरत था, उसे देखता रहा। बे -जान पत्थर जिसे इन्सानी हाथों ने तराशा था। एक ऐसी चीज जो किसी को कोई नक्सान नहीं पह ु ु ंचा सकती थी। 4हन ना जाने क्या-क्या सोचता रहा। अंधेरा बढ़ता गया। हाथ को हाथ नहीं स ुझाई दे रहा था। उस मूरत का ह ु लिया भी नहीं न4र आ रहा था। किसी ने इधर आने की हिम्मत नहीं की थी। वैसे भी लोग इस जगह से डरते रहते थे। प ूरी तरह सु क ू न था। रात गुज़रती रही। ना जाने क्या वक़्त था। कई बार नींद के झोंके आए थे ले किन हर बार आँख खुल जाती थी। इस बार भी ऐसा ही ह ु आ था। आँखेंपट से खुल गई थी। चित्त लेटा ह ुआ था। इस लिए मं दिर की छत सामने थी और छत पर दो नन्ही नन्ही आँखेंहिल थीं। पीली भद्दी आँख ें। जानी पहचानी आँखें। आँखेंधीरे धीरे जगह छोड़ रही ' मकड़ी' मेरे 4हन में ख़याल उभरा। ऐसी मकड़ियां भ ूरिया चरण ही की ग ुलाम होती थीं। आह काश यहां रोशनी होती। ऐसी कोई ची 4 होती जिसे रोशन कर के म ेंइस मकड़ी को देख सकता। ये ख़याल दिल मेंग ुज़रा था कि अचानक ही वहां उजाला होने लगा। दीवारें न4र आने लगीं। म ूरत भी साफ़ न4र आने लगा। हर ची4 ऐसेदिखने लग गई कि आम हालात मेंभी ना दिखती लेकिन ये पता नहीं चल रहा था कि रोशनी कहाँ से आ रही है। म ने छत की तरफ़ देखा। मक ैं ड़ी उजाला होते ही ते4 ते4 चल पड़ी और फिर एक छेद मेंघ ुस कर गायब हो गई। पीले रंग की मक ड़ी थी। मैंउठकर बैठ गया। मकड़ी तो ग़ायब हो गई थी लेकिन उजाला वैसा ही था। म ुझे एहसास हु आ कि रोशनी मेरेदिल से फूटी है। मेरे
दिल ने रोशनी मांगी तो आस पास उजाला हो गया। ये एक चमत्कार ही था। ये करम अल्लाह की थी म ुझ पर ,दिल ख ुशी से भर गया। बड़े इनाम से नवा4ा गया था म ुझे। शुक्र नहीं अदा कर सकता था। दिल क ु छ बोझिल सा हो गया। आँखों से आँस ूबहने लग गए। मंदिर से बाहर ख ुली जगह पर निकल आया। बाहर सुनसान ख़ामोशी थी। एक साफ़ सी जगह देखी और सजदे म ेंचला गया। दिल श ुक्रगु4ार था और ज़िक्र इलाही ने सारी तन्हाइयाँ द र कर दी थीं। ू किसी की आवा4 कानों उभरी। ’’तुम तनहा कहाँ हो। हम सब तो ह ैंतुम्हारे साथ। कभी ख़ुद को तनहा ना समझना।' दर दू र तक कोई ना था ले ू किन लग रहा था जैसे बह ु त सेलिबास सरसरा रहे हों , बड़ी हिम्मत और ताकत मिली थी और इस एहसास ने बहु त ख़ुशीयां बख़शी थीं कि मेरी मदद हर पल की जा रही है। क्या कम था ये सब क ु छ, इतना बड़ा द र्जादेदिया गया था म ुझ गुनाहगार को, दिल ख ु शियों में डूब गया था और थोड़ी देर पहले जो कै फ़ीयत हो गई थी वो द र हो गई थी। ू नजाने कब तक उसी जगह सजदे म ेंरहा, ये सजदा श ुक्र का था, यहां तक कि परिंदों के परों की फड़फड़ाहटेंसुनाई देने लगीं। सुबह हो गया था और फ़ज्र की नमा ज़ का वक़्त भी, नमाज़ पढ़ी इस से पहलेकि बस्ती के लोग म ुझे तलाश करते ह ुए इस तरफ़ निकल आएं, मेरा यहां से निकल जाना 4रूरी था। इसलिए नमा ज़ के फ़ौरन बाद चल पड़ा और ते4 रफ़्तारी से उसी ओर बढ़ता रहा, जिधर म ुंह हो गया था। मंज़िल के बारे मेंतो पहले भी कभी नहीं
सोचा था। जानता था कि कोई मंज़िल नहीं है, सफ़र करते करते न जाने कितना व क़्त गुज़र गया। न जाने कौन से रास्ते थे, न जाने किस तरफ मुंह उठा कर चल दिया था। एक पीली सी पगडंडी के क़रीब पह ु ंचा तो सामने से एक बैलगाड़ी आती ह ुई न4र आई। कोई देहाती था जिसने पीछे सबज़ीयों का ढेर लाद रखा था म ुझे देखकर गाड़ी रोक ली और 4ोर से आवाज दी। ’’अरे ओ भैया। भैया रे किधर जा रहे हो?' इस को देखकर म ुझे भी ख़ुशी ह ुई थी। मने क़रीब पह ैं ुंच कर इस पर ग़ौर किया और फिर कहा। ''बस भैया म ुसाफ़िर ह ू ँ , किसी बस्ती की तलाश म ेंथा।' ’’ किसी बस्ती की क्यों ?' ’’रास्ता भ ूल गया ह ू ँ।' मने जवाब ैं दिया ’’परदिन प ूर तो नहीं जाना ?' ’’कहाँ?' मने सवाल ैं किया ’’परदिन प ूर' ’’चले जाऐंगे अगर त ुम ले जाओ तो' मने मद्धम सी म ैं ुस्क ुराहट के साथ कहा ’’तो हम कौन सी अपनी खोपड़ी पर बिठा कर ले जाऐंगे भैया। बैल घसीट लेंगे त ुम्हेंभी। आ जाओ बैठ जाओ।' बैलगाड़ी पर म ैंउस के न4दीक बैठ गया। अच्छे मिज़ाज का नौजवान माल ूम होता था कहने लगा। ' कहाँ से आरहे हो , कहाँ का रास्ता भ ू ल गए थे?'
’’अल्लाह जाने कहाँ से आ रहे ह ैंऔर कहाँ जा रहे हैं , बस चल पड़े थे ऐसे ही।' ’’अरे घर-वाली से लड़कर भागे हो या माँ बाप से नारा ज़ हो कर घर छोड़ा है?' ’’हाँ बस ऐसा ही समझ लो , अपनी तक़दीर से नारा ज़ हो कर घर छोड़ दिया है ब ल्कि तक़दीर ने घर छीन लिया है।' ’’देखो भाई हम ठहरे देहाती आदमी , हमारी खोप ड़िया है छोटी, खरी खरी साफ़ साफ़ बात ेंतो समझ मेंआ जाती हैं , बाक़ी बात ेंअपनी समझ मेंनहीं आतीं। लोग वैसे ही लल्ल ूकहते हैं , वैसे तो नाम हमारा रशीद है , लेकिन म ुझे बात ें4रा कम समझ मेंआती हैंइस लिए सारे के सारे लल्लूकह कर हैं।'' ’’तु म ब ुरा नहीं मानते इस बात का ?' ’’अरे नहीं भैया , जो भी कहता है प्यार से कहता है। ब ुरा मानने की क्या बात है। त ुम्हारा क्या नाम है?' ’’मसऊद' … मने जवाब ैं दिया, फिर म ने इस से कहा। ैं ''तुम पर दिन प ूर मेंरहते हो?' ’’नहीं भैया। हम तो खीरी बस्ती के रहने वाले ह ैं। सबज़ीयां उगाते हैंऔर परदिन प ूर जा कर बेच आते हैं , लगे बंधे ग्राहक ह ैंअपने, खरा माल देते ह ैं , खरे पैसे लेते ह ैं। अब परदिन प ूर जाऐंगे उन लोगों को सब्4ी देंगे पैसे वसू ल करेंगे और भैया घर का सौदा लेकर वापस चले आएँगे। रात तक खीरी पह ु ंच जाऐंगे।'
’’अच्छा,अच्छा, इज़्4त से कमाई करते हो। ये इबादत है। ' मने कहा और वो दोनों हाथ उठा कर बोला। ैं ''बस भया अल्लाह का करम है रो ज़ी दे देता है और सु नो, अगली ईद म ें हमारी शादी हो रही है , लड़की का नाम बशीरन है। भैया बड़ी नेक लड़की है। पता है उस का बाप पिछलेदिनों पाला लगने से अपाहिज हो गया है। बेचारा शरीफ़ आदमी है बख़्शो भी। रोने लगता है मुझे देखकर, कहता है कि दिल में पता नहीं क्या क्या था बेटी के ब्याह के लिए मगर अब क्या कर सकता ह ू ँ। म ने भी कह ैं दिया,भैया, कि लड़की दे दे,दो कपड़ों म ें। अल्लाह का दिया सब क ुछ है तेरे लल्लूके पास, इज़्4त से रखेगा तेरी लौं डिया को, बस भैया इन्सान को इन्सान से म ुहब्बत होनी चाहीए, ये रुपया पैसा है क्या ची 4, आज किसी का, कल किसी का, कै से मर ें हैंलोग इस पर, भैया अपनी तक़दीर लेकर आएगी। दो रोटी खाएगी , हमारा भी घर बस जाएगा क्यों है कि ना?' ’’बिलक ु ल ,बिलक ुल ठीक कहा त ुमने रशीद भैया।' मने जवाब ैं दिया तो वो हँसने लगा। फिर कहने लगा। ' जब कोई हम ेंरशीद कहता है तो हम इधर उधर देखने लगते हैंजैसे रशीद हमारा नाम ही ना हो , तु म भी लल्ल ूही कहो।' ’’जैसी त ुम्हारी मर्ज़ी।' ’’परदिन प ूर मेंकिसी के पास जाओगे" बातें करने का शौक़ीन माल ूम होता था, म ुझे भी ब ुरा नहीं लग रहा था मने कहा। ैं ''किसी सराय म ेंठहरूँगा जा कर।'
’’अच्छा अच्छा कोई है नहीं वहां त ुम्हारा?' ’’नहीं।' ’’कोई काम है वहां किसी से।' ’’हाँ बस ऐसे ही। ' ’’हमारी मानो तो वापस हमारे साथ खीरी चलो , थोड़े दिन हमारे मेहमान रहो, अच्छे आदमी माल ूम होते हो। और भी यार-दोस्त ह ैंवहां, हमारे साथ म4ा आएगा त ुम्हें।' ’’बह ु त बह ु त शुक्रिया रशीद भैया लेकिन म ुझे वहां से कहीं और भी जाना है।' ’’अच्छा अच्छा त ुम्हारी मर्ज़ी।' उसने कहा और इस के बाद ख़ामोश हो गया जैसे अब उस के पास बात ें करने के लिए क ुछ ना रहा हो लेकिन इतनी देर की ख़ामोशी मेंउसने शायद यही सोचा था कि अब आगे क्या बातेंकरे या हो सकता है कुछ सोच रहा हो। थोड़ी देर ख़ामोश रहने के बाद वो फिर बोला । ''अरे हाँ त ुम्हारी शादी हो गई?' ’’नहीं।' ’’माँ बाप, बहन भाई तो होंगे ’’हाँ अल्लाह का श ुक्र है। ' मने जवाब ैं दिया
’’क ु छ खाया पिया? अरे ये लो , असल बात तो भ ूल ही गया। अरे भैया कु छ खाया पिया तुमने या नहीं ' मने धीमे से कहा। ैं ' नहीं लल्ल ूसुबह से कुछ नहीं खाया।' ’’तो फिर कहा क्यों नहीं। अरे वाह भैया अब ऐसा भी क्या कि आदमी भू खा हो और म ँ ुह से कु छ ना बोले।' उसने बैलगाड़ी रोकी पीछे हाथ कर के कपड़े की एक पोटली सी उठाई , उसे खोला, चार रोटियाँ पकी रखी थीं। साथ ही ग ड़ु की डलियां भी थीं। उसने दो रोटियाँ मेरे सामने रख द ेंऔर दो अपने सामने रख लिया। गुड़ भी आधा आधा किया और म ुस्क ु रा कर बोला। ''ग़रीब का खाजा तो यही है , चलो अल्लाह का नाम लेकर श ुरू हो जाओ।' मने ैं बिसमिल्लाह कहा और खाने मेंलग गया। घर की पक्की ह ुई रोटियाँ थीं, इस लिए कोई तकल्लु फ़ नहीं ह ु आ था। हम दोनों ने खाना खाया पानी का भी उसने बंद -ओ-बस्त कर रखा था , पानी पीने के बाद उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी पर दिनप ुर अच्छा-ख़ासा बड़ा क़स्बा था ब ल्कि उसे छोटा मोटा शहर ही कहना भी क ुछ गलत ना था। आबादी मेंदाख़िल होने के बाद मेंइस से अलग हो गया। अल्लाह ने यहां तक पह ु ंचाने का 4रीया पैदा कर दिया था और साथ ही साथ खाने का इंतजाम भी कर दिया था लेकिन यहां इस इलाक़े म ेंमेरे आने का कोई अहम मक़सद नहीं था। जमाल गढ़ी के बारे में
तो ह ु क्म ह ु आ था और मुझे ये अंदा4ा हो गया था कि वहां मुझेक़िस ्लिए भेजा गया था। एक मास ूम औरत मुसीबत से बच गई थी और दसरी शैतान ू औरत जो छः इन्सानों का ख़ ून कर के सातवेंकी ज़ि4ंदगी की गाहक बनी ह ुई एक गंदे शैतान के साथ खतम हो गई थी। नंदा , गेह ू ँ के साथ घुन की तरह से पिस गया था। साफ बात हैकि ज ु र्म मेंसाथ देने वाला भी इतना ही म ु जरिम होता है जितना कि असल मु जरिम, नंदा ने सिर्फ मालकिन की ख ु शी के लिए उन छः बच्चों को अग़वा किया था और बराबर का इस जु र्ममें हिस्सेदार रहा था। इस तरह तीन शैतान अपने अंजाम को पह ु ंच गए थे। अधेरणा चन्दू भी अपने काले जाद ूसे न जानेकिसेकिसे नुक़्सान पह ु ँचाता। गंदे इल्म के ये ध ुरंधर जो गंदगी के 4रीये लोगों को नुक़्सान पह ु ंचाते हैं , इस प ूरी 4मीन पर बदन ुमा धब्बे हैं। शैतानी जंतर मंत्र पढ़ कर वो मासूम इन्सानों को नक़्सान पह ु ुंचाते थे इसलिए उनका खतम हो जाना 4रूरी था। और इस के लिए 4रूरी नहीं था कि मैंइशारों का इंत4ार करूँ। एक सिपाही का फ़र्ज़ होता है कि वो किसी भी जगह क़ानून टूटते देखे तो अपना फ़र्ज़प ूरा करे। क़ानून उसे ताकत इसी लिए देता है इसलिए हर तरफ निगाह रखना 4रूरी है आबादी ब ड़ी थी कोई जगह ठिकाना बन सकता था। शहर मेंआवारागर्दी करने लगा। रेलवे स्टेशन के पास म स्जिद न4र आई, दोपहर की नमा ज़ वहां पढ़ी। म स्जिद के सामने बड़ा मैदान था जहां घने पेड़ लगे ह ु ए थे। ठिकाना ही ठिकाना था। कोई मु श्किल ही नहीं थी। अल्लाह ने दो रोटियाँ
अता कर दी थीं । काम चल गया था। रात का खाना एक नानबाई की द कान ु पर खाया। डेढ़ रुपया ख़ र्चह ुआ था। इधर उधर देखा। दो लोग न4र आए जो शायद भिखारी थे और खाना खाना चाहते थे। पिछले क ुछ पैसे पड़े ह ु ए थे, उन्हें देदिए और सु क ून हो गई। मस्जिद के पास रहने से अच्छी जगह और कौन सी हो सकती थी ,तो मैने वहीं डेरा जमा लिया। रात हो गई नमाज़ पढ़ कर आराम करने लेट गया और नींद आ गई। सुबह ही आँख ख ुली थी। दिन-भर शहर का चक्कर लगाया शाम को रास्ता भ ूल गया। देर तक चकराता रहा ले किन स्टेशन ना पह ु ंच सका। किसी से पूछ लेना सही समझा। क ुछ दर पर एक आदमी चला जा रहा था ले ू किन लंबी दाढ़ी मैले क ु चैले कप ड़े पहने। ’’सुनो भाई।' मने उसे प ैं ुकारा और वो रुक गया। मैंउस के क़रीब पह ु ंच गया ’’रेलवे स्टेशन जाना चाहता ह ू ँ।' ’’तो म ेंक्या करूँ?' वो क ड़वेपन से बोला ’’रस्ता भ ूल गया ह ू ँ।' ’’तो यहां क्यों मर रहे हो। ' ’’जी।' मने हैरत से उसे देखा ैं ’’यहां त ुम्हारा कोई काम नहीं है समझे, वो सामने रेलवे स्टेशन है रेल म ें बैठो और सा लिम नगर चले जाओ। बाबा शाह जहां का उर्सहो रहा है।'
मेरी समझ म ेंक ुछ नहीं आया और मैंहैरानी से इस आदमी को देखने लगा। उसने जेब म ेंहाथ डाल कर कु छ निकाला और फिर बंद मुट्ठी मेरी तरफ़ करते ह ु ए बोला ' टिकट के पैसे स ँभालो।' ’’आप... आप कौन ह ैं?' ’’कोतवाल,... समझे। जाओ अपना काम करो ज़्यादा बक बक नहीं करते , लो पैसे लो। ' उसने ज़बरदस्ती पैसे मेरी जेब मेंठूंसे और ते4 क़दमों से आगे बढ़ गया। म ैंहैरान नज़रों से उसे जाते ह ु ए देख रहा था। फिर जब वो निगाहों से ओझल हो गया तो म ने उस के बातों पर ग़ौर ैं किया कि यहां तुम्हारा कोई काम नहीं है। इस से ज़्यादा साफ बात और क्या होती। सा लिम नगर चले जाओ वो सामने रेलवे स्टेशन है। म ने चौंक कर उस तरफ देखा और हैरान ैं रह गया। रेलवे स्टेशन सामने न 4र आ रहा था। माहौल ही बदल गया था। म ैंदावे से कह सकता था कि ये वो जगह नहीं थी जहां मेंक ुछ देर पहले खड़ा था और जहां से म ने पहले स्टेशन का पता प ैं ूछा था। सोचना बेकार था, आगे क़दम बढ़ा दिए। रेलवे स्टेशन पह ु ंच गया। सालिम नगर के बारे में क ुछ नहीं माल ूम था। बु किं ग विंडो पर गया। ’’सालिम नगर जाना है। ' मने अंदर झाँकते ह ैं ु ए कहा जहां कुछ लोग बैठे चाय पी रहे थे ’’ख़ुदा-हाफ़िज़" एक ने कहा और द सरे ठहाका मारकर हंस पड़े ू ’’रेल किस वक़्त आएगी?'
’’जब अल्लाह की म र्ज़ी होगी" ’’टिकट मिल जाएगा "मने हैरत से प ैं ूछा ’’पैसे दोगे तो 4रूर मिल जाएगा "वो आदमी लगातार म 4ाक़ कर रहा था ’’कितने पैसे होंगे " ’’यार जान को ही आ गया त ूतो, च ुटक ु ला बीच म ेंरह गया। तीस रुपय निकालो।' मने जेब म ैं ेंहाथ डाला। तीस रुपय उसे देदिए और उसने छब्बीस रुपय का टिकट मेरे हवाले कर दिया। टिकट पर लिखा कीमत देखकर मने धीमे से ैं कहा। ''इस पर छब्बीस रुपय लिखे हैं।' ’’चार रुपय टैक्स होता है। ' उसने कहा। म ने ठंडी सांस लेकर ैं खिड़की छोड़ दी। थोड़ी ही दर पह ू ु ंचा था कि अचानक अंदर धमाका सुनाई दिया। पता नहीं क्या ह ु आ था। मैंआगे बढ़ आया। रेलवे स्टेशन पर बह ु त कम लोग न4र आ रहे थे। मेंएक पिलर के सहारे बैठ गया। अभी लाईन ख़ाली पड़ी ह ुई थी। किसी से पूछ लँ ूगा रेल के बारे म ें। बैठे-बैठे कोई बीस मिनट गज़ु रे होंगेकि एक आदमी ते4ी से मेरे पास आ गया। म ने से ध्यान से देखकर पहचान ैं लिया, ये वही रेलवे ब ु किं ग क्लर्क था। मेरे क़रीब बैठ गया। ''माफ़ी चाहता ह ू ँ ,माफ़ कर द ेंगे ’’क्या हो गया भाई। '
’’बस म ुझे माफ़ कर देंमने आपसे बदतमी ैं ज़ी की थी म ुझे स4ा मिल गई। आपने बदद आ दी होगी म ु ुझे।' ’’ख़ुदा ना करे इतनी सी बात पर किसी को बददआ कै से दी जा सकती है। ु ' ’’मेरे दिल ने यही कहा। मने आपसे म ैं 4ाक़ किया और और आपसे चार रुपय ज़्यादा ले लिए। ये देखिए मेरा हाथ ज़ख़मी हो गया और दसरी ू म ुसीबत अलग गले पड़ गई। ' ’’अरे ये क्या हो गया। ' मने उस के हाथ पर कसे ह ैं ु ए रूमाल को देखकर कहा जो ख़ ून से लाल हो रहा था ’’बस भाई साहब एक रेक गिर पड़ा, जो बिलक ुल ठीक रखा ह ु आ था। शीशे का था क ुछ सामान रखा ह ुआ था इस पर वो भी टूट गया और शीशा मेरी कलाई पर लगा। अच्छा -ख़ासा ख़ ून बह गया। मेरे साथ बैठे ह ु ए तीन आदमीयों के भी अच्छी ख़ासी चोट लगी है। हम सब के दिल मेंएक ही ख़याल आया, वो ये कि, हम लोगों ने आपसे बे वजह म 4ाक़ किया और मने चार रुपय ज़्यादा ले ैं लिए। मैंहाथ जोड़ कर आप से दरख़ास्त करता ह ू ँ कि आप म ुझे माफ़ कर देंऔर ये रहे आपके चार रुपए।" उसने चार रुपय मेरी तरफ बढ़ा दिए मने श ैं र्मिंदा सी निगाहों के साथ उसे देखा और कहा। ''आपके चोट लगने का म ुझे अफ़सोस है। अगर थोड़ी सी दिल को तकलीफ ह ुई है मेरे तो उस के लिए मैंआपको माफ़ ह ू ँ।'' ’’बह ु त बह ु त शुक्रिया जनाब मेरी तरफ़ से आप एक प्याली चाय ही पी लीजिए, म ुझे ख़ुशी होगी।'
’’नहीं भाई चाय की जरूरत नहीं है। ' ’’मेरी ख़ु शी के लिए।' वो शायद बह ु त ज़्यादा प्रभावित हो गया था। कुछ ही दर पर चाय बेचने वाले से उसने दो प्याली चाय के ू लिए कहा मने उस से ैं प ूछा ’’अब अगर एहसान ही करना चाहते ह ैंतो मुझे ये बता दीजिए कि सालिम नगर जाने के लिए रेल कितनी देर मेंआएगी।' ’’बस अब से पौने घंटे के बाद ,अगर लेट ना ह ुई हो तो।' ’’किधर से आएगी। ' मने सवाल ैं किया और उसने इशारे से मुझे बता दिया। इतनी देर म ेंचाय आ गई थी। मेरे साथ बैठ कर उसने चाय पी और उठता ह ु आ बोला। ''मेरे हक़ म ेंदआ की ु जिए। आपने मुझे माफ़ तो कर दिया है।?' "हां भाई ,मैने माफ कर दिया" रेल ठीक पौने घंटे के बाद आ गई और म ैंइस के एक डब्बे मेंचढ़ गया। म ुसाफ़िर ज़्यादा-तर सो रहे थे। एक म ुसाफ़िर ने मुझे शी..शी कर के अपनी तरफ़ इशारा और जब म ने उस की तरफ़ देखा तो उसने म ैं ुझे हाथ सेफिर से इशारा भी किया। रेल का डब्बा भरा ह ु आ था। सोने वालों ने ज़्यादा-तर जगह पर क़ब ज़ा कर लिया था। इस आदमी ने मुझे अपने पास जगह देते ह ु ए कहा। ''यहां बैठ जाओ त ुमने रेलवे बाबूसे ये नहीं पछा ू कि सालिम नगर का कितना द र है और त ू ु म किस वक़्त वहां पह ु ँचोगे।'
मने हैरानी से इस को देखा ैं , सूरत शकल मेरे लिए अजनबी थी। सादा सा चेहरा था। म ैंहैरानी से उसे देखते खड़ा ही ह ु आ था कि वो बोला ’’बैठ जाओ ये जगह त ुम्हारेलिए ही रखी गई है और हाँ सुनो सुबह की अ4ान जैसे ही स ुनाई दे नीचे उतर जाना, वही सा लिम नगर का स्टेशन होगा। म स्जिद स्टेशन पर ही है। साफ़ न4र आ जाएगी ,अच्छा ख़ुदा- हाफ़िज़।' वो दरवा ज़े की तरफ बढ़ा फिर वहां से रुक कर पल्टा और मेरी तरफ़ देख कर कहने लगा ’’किसी से उस के बारे म ेंप ूछते नहीं हैं। हाँ जो लोग तुमसे खुद को छु पाना ना चाह ेंउनकी बात और है,वर्ना उनकी माथे पर इस चमक को देख लिया करो जो उन्ह ेंक ुदरत से इनाम मेंमिलती है।' ये कह कर वो नीचे उतर गया और म ेंएक अजीब सी कपकपी अपने आप में महसूस करने लगा। ये सारी राज की बात ेंथीं। उस इन्सान ने अपने आपको कोतवाल बताया था जिसने मेरी रहनुमाई सालिम नगर की तरफ की थी और अब यहां भी मेरे लिए इंतज़ाम मौज ूद थे। रेल एक झटके से आगे बढ़ गई। सी टियों की दो आवाज़ों पर मने ग़ौर ैं नहीं किया था। मेरी निगाहेंखिड़की से परे अंधेरे मेंभटकने लगीं लेकिन कोई और म ुझे न4र नहीं आया। एक अजीब सा एहसास दिल मेंजाग गया था। आँखेंबंद करलीं और उन दो रहनुमाइयों के बारे म ेंसोचता रहा, दिल को वही एहसास ह ु आ था जो उस
वक़्त मेरे दिल मेंआ बसा था, जब म ैंप ुरानी मंदिर के बाहर वीरान जगह सजदे म ें था यानी तनहा ना होने का एहसास, हर जगह हर तरह से जानकारी दी जा रही थी। दिल से दआ ु निकली कि अल्लाह इन मोहब्बतों को बनाए रखे। म ैंतो लाचार ह ू ँसर उठाने का सोच भी नहीं सकता। सफ़र चलता रहा। सा लिम नगर के बारे मेंसोचता रहा जहां बाबा शाहजहां का उ र्सहो रहा था और मुझे वहां उर्समेंशरीक होना था वहां पह ु ंचना था। 55 भाग समाप्त क्रमश: -------------
नाम : काला जादू, मकड़ा सीरीज लेखक: एम. ए. राहत- हिन्दी अन वाद ु - जोकर सहयोग: s.jeet(pdf/epub),जय क ु मार,समीर,विकास नागर,हिमांश ु आर्या, शीतुभाई, v.jaisalwal, पंकज, सहयोगी टेलीग्राम समूह: कॉमिक्स अड्डा प ुस्तक संसार ,इंडियन हिंदी कॉमिक्स,म ू र्खिस्तान, urdu to hindi अन ु वादित और only books और जिनकी मांग पर अन ुवाद किया गया वो सभी प्यारेदोस्त jocker