हैऔर बात बाद मेंसमझ मेंआई, महाराज कि असल मेंआप हमारेधर्मके नही थे, आपका ज्ञान वो था जो हमारी समझ मेंनहीं आ सकता, मगर फिर प ू र्णिया... मेरा मन ललचा गया, क्योंकि मने ैं येदेखा था कि प ू र्णिया होनेके बाद भी आप ना तो प ू र्णियों को अपनी आग़ोश मेंजगह देतेहैंऔर ना ही पौर्णबीरों को कोई काम सौंपतेहैं , हम सब बड़ेपरेशान रहेआपके लिए महाराज, अनहोनी बात थी जो किसी तरह समझ मेंही नहींआती थी। भेद जाननेके लिए हम सारेके सारेबेचैन हो गए, मगर कोई पता नहींचल सका और जब हमारा येकाम ऐसेनहीं ह ु आ तो शंभ ू नाथ महाराज नेदसरे ू खेल खेलना चाहे। इस सेआपको तकलीफ़ पह ु ंची मसऊद जी, पर इन्सान हवस की आग का पतला ु होता है। प ूरनियां माम ू ली ची4 नहीं होतीं और जिसेयेमिल जाएं वो बड़ा शक्ति मान बन जाता है, आधा जीवन भंग करनेके बाद भी प ू र्णियों को हासिल करना आसान नहींहोता, महाराज येबात मेंआपसेइसलिए कह रही ह ू ँकि मैंआपकी बड़ी क़दर करती ह ू ँ , बह ु त बड़ा दर्जाहैआपके लिए मेरेमन में
और अगर आप उसेयेसमझेंकि अपनेकिए पर पछता रही ह ू ँम, ैंकि वो ना करती जो मने ैं किया, बल्कि दसरी ू तरह आपसेअपनी मनोकामना प ूरी कराती, महाराज आपनेअपनी ख़ु शी सेवो गंदी प ूरनियां जो आपके धरम मेंगंदी समझी जाती हैं , मेरेहवालेकर दिए और उनका तरीक़ा वही था जो मने ैं अपनाया और कोई ऐसा काम नहींहो सकता था, जिससेप ूरनियांम ुझे मिल जाएं, परंतु म ुझेमाल ू म ह ु आ हैकि आप ख़ुद उनसेछुटकारा हासिल करना चाहतेथेऔर उन्हेंज़बरदस्ती आप पर सवार कर दिया गया था और जब प ू र्णियों सेआपको छुटकारा मिला, महाराज तो आपनेअपनेज्ञान का पाठ श ु रू कर दिया और आपको वो सारी चीज़ेंमिल गईं जो एक बड़े ज्ञानी को मिलती हैं। एक तरह सेतो महाराज मने ैं आपके साथ दोस्ती ही की और अगर ऐसी बात हैतो मैंचाहती ह ू ँकि इतना बड़ा ज्ञानी, महावती को दोस्त की निगाह सेदेखे। क्या महाराज मेरेमन की बात समझ कर मेरी दोस्ती क़बू ल कर लेंगे??" मने ैं म ुस्क ु राती निगाहों सेमहावती को देखा और फिर धीरेसेबोला
’’महावती, जहां तक तेरी दोस्ती का सवाल है4ाहिर हैकि पहलेतो हम दोनों के धर्मअलग हैंऔर फिर तू, तूतो अपनेही धरम की नहीं है, हिंदू धरम मेंभी कालेजादू को अच्छा नहीं समझा जाता। तुम्हारेदेवी देवताओं का भी ये कहना नहीं है कि काली शक्तियों को इन्सानों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करो, मेरा तो मामला ही बिलक ु ल अलग है। खैर मैंतुझेकोई नक़्सान ु नहीं पह ु ंचाना चाहता, मगर एक काम तुझेकरना होगा और अगर तू येकाम कर देतो म ुझेतुझसेकोई दश्मनी ु ना रहेगी" ’’हाँ.. हाँ...महाराज कहो, ठीक हैतु म म ुझेअपना दोस्त नहीं बना सकते, दासी तो बना सकतेहो, ह ु क्म तो देसकतेहो म ुझे।' ’’अपनेजादू को ख़ाक कर देमहावती, क्योंकि तेरा येजादूइन्सान दश्मनी ु हैऔर म ुझ पर फर्ज़हैकि मैंइन्सानों को तेरेजादू के चंग ु ल सेआजादी दिलाऊं जो ज़ि4ंदगी की म ुसीबतों का शिकार हैंऔर जिन्हेंतू नेअज़ाब में गिरफ़्तार कर लिया है, जैसेपत्थर के वो म ूरत जो जीतेजागतेनौजवान थे और तेरी हवस की भेंट चढ़ गए, जैसेतेरा पति राजा चन्द्रभान, सबको
उनकी जगह देदेऔर ख़ुद जाकर ऐसेवीरानों मेंअपना ठिकाना बना ले जहां इन्सान ना हो, काली ताकत के कालेशैतानों को वीरानों ही मेंरहना चाहीए जिस सेइन्सान उनके अज़ाब सेसुरक्षित रहें , अगर ऐसा कर लेगी महावती, तो मैंयहां सेचला जाऊं गा और मेरी तेरी कोई ऐसी दश्मनी ु नहीं रहेगी जिससेमेरेहाथों तुझेकोई नक़्सान ु पह ु ंचे।' महावती के चेहरेपर रंग आ रहेथेजा रहेथे, अब उस की म ुस्क ुराहट उड़ गई थी और इस की आँखों मेंग़स्से ु के निशान न4र आरहेथे।उसनेकहा। ''क्या येदश्मनी ु नहींहैमसऊद जी महाराज?' ’’कालेजादूसेदश्मनी ु है, तुझ सेनहीं महावती, म ुझेतुझसेक्या लेना देना।' ’’मैंचण्डोली ह ू ँ , काली शक्ति की प ूजारन और काली शक्तियों ने मेरे जीवन भर की तपस्या में म ुझेयेशक्ति दान दी हैऔर तु म कहतेहो मसऊद जी महाराज कि मेंइस शक्ति को भस्म कर दं , ूअरेअगर येशक्ति भस्म हो जाएगी तो मैंकहाँरह ू ंगी, मेंतो बस एक शक्ति ह ू ँ , इस सेआगे क ु छ नहीं।'
’’मेरेलिए तेरी काली ताकतों का ख़ातमा 4रूरी हैमहावती।' ’’अरेवाह, बेफालतूदारोगा बनेफिर रहेहो, तु म अपनेधरम की शक्ति आ4माओ, मेंकभी तुम्हारेरास्तेमेंनहींआऊँ गी, म ुझेमेरेधरम की शक्ति पर रहनेदो।' ’’तेरा धरम क्या हैमहावती?' मने ैं सवाल किया ’’जय काली शक्ति "' ’’जादगरनी ू , इन्सान को नक़्सान ु पह ु ंचानेवाली।' ’’सारेके सारेतुम्हारेधरम के तो नहीं हैं। तुम्हेंशहर का अंदेशा क्यों है, मसऊद जी महाराज?' ’’मेरा धर्मयही कहता हैकि अपनी ताक़त को ब ुराई की ताक़त के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करना 4रूरी हैऔर अगर इन्सानों को कोई नक़्सान ु पह ु ंच रहा है और तुम्हेंऊपर वालेनेवो ताकत दी हैकि तु म नक़्सान ु पह ु ंचानेवालेको
रोक सको तो तु म पर फ़र्ज़हो जाता हैकि तु म नक़्सान ु पह ु ंचानेवालेको नक़्सान ु पह ु ँचाओ।' ’’देखो मसऊद जी महाराज, भ ूरिया चरण को जानतेहोगेऔर क्यों ना जानतेहोगेउसनेम ुझेतुम्हारेबारेमेंसब क ु छ बता दिया है, वो शंखा है, तु म उस की शक्ति का सामना क्यों नहीं करते, एक चण्डोली के पीछेक्यों पड़तेहो। फिर भी अगर तु म येसमझतेहो कि तुम्हारा धरम, तुम्हारा ज्ञान सबसेबड़ा हैतो येतुम्हारी भ ू ल है। मैंतुमसेटक्कर नहींलेना चाहती ,.. लेकिन जो क ु छ तु मनेकहा हैवो सीधा सा दश्मनी ु की निशानी हैऔर जब दश्मनी ु हैतो मेरेलिए 4रूरी हो गया हैकि मैंअपनी दश्मनी ु भी तु मको दिखाऊं , दोस्त नहींमानतेतो फिर तो दश्मनी ु ही होगी।' ’’हाँ... महावती,... तू नेठीक कहा, मने ैं तुझेदोस्ती की एक पेशकश की कि अपनी सारी ताकतों को अपनेहाथों सेखत्म कर दे, इन्सान हो तो इन्सान के रूप मेंआजा, ऐसा ना करेगी तो तुझेमिटाना मेरा फ़र्ज़है।' ’’छोड़ो, छोड़ो मियांजी, हमनेभी जीवन भर चनेनहीं भ ू नेहैं ,ठीक हैअगर ऐसी बात हैतो तु म अपनी शक्ति आज़माओ और हम अपनी।'
महावती ने दोनों हाथ दोनों ओर फै ला दिए और अचानक ही एक आश्चर्यजनक बात हो गया। संगमरमर की सफ़ै द दीवारों मेंसैकड़ों छेद पैदा हो गए और उनमेंसेपानी की ते4 धार नीचेगिरनेलगीं। दरवाज़ेकी सीढ़ीयांएक दम ग़ायब हो गई थींऔर अब येजगह संगमरमर के एक कँ ु वें की जैसेबन गई थी, जो लगभग बारह फ ुट गहरा था और पानी इन दीवारों सेइस तरह निकल रहा था जैसेकिसी तेज बहनेवाली नदी को उनको और मोड़ दिया गया हो, देखतेही देखतेइस हौ4 मेंपानी भरनेलगा, मने ैं काले जादू की ताकत का येआश्चर्यजनक चमत्कार देखा। वैसेतो ज़ि4ंदगी मेंन जानेकिन किन घटनाओं का सामना करना पड़ा था लेकिन येसब क ु छ इतना अचानक ह ु आ था कि एक पल के लिए बदन में झुरझुरी सी आगई। पानी टख़नों सेग ुज़र कर घ ुटनों, घ ुटनों सेग ुज़र कर जांघोंऔर फिर कमर तक पह ु ंच गया और फिर तभी मने ैं महावती को एक मछली मेंबदलतेह ु ए देखा कि चेहरा तो इस का अपना ही था लेकिन गर्दन के बाद सेइस का बदन मछली मेंबदल गया था और वो उस पानी मेंतैरने लगी, बिजली की तेजी सेइधर सेउधर और इधर सेउधर मेरे इर्द-गिर्द
चकरा रही थी, जबकि पानी की ताक़तवर धारेंमेरेजिस्म पर पड़ रही थीं और उनकी क़ुव्वत इतनी थी कि मेरा बदन म ु श्किल सेअपनेको संभाले ह ु ए था लेकिन येधारेंचारों तरफ़ सेपड़ रही थीं, इस लिए मैंकिसी एक ओर नहींल ुढका था, दसरी ू ओर शंभ ू नाथ नेभी अपना रूप बदला और हरे-रंग के एक चपटेसेसाँप की शक्ल मेंबदल गया था, ऐसेसाँप अक्सर पानी में न4र आतेहैं , नागों का येप ुजारी नाग बन गया था और इन दोनों नेइस पानी में अपनेलिए म ुक़ाम हासिल कर लिया था, लेकिन मैं4ाहिर है इन्सान था और इन्सानी शक्ल मेंही रह सकता था। लेकिन हां एक खयाल दिमाग़ में4रूर था, मेरा रब मेरा ख ुदा मेरी मदद 4रूर करेगा। मैंकालेजादू का तोड़ नहीं जानता था लेकिन मेरे रब ने म ु श्किल सेम ु श्किल और ब ुरेसेब ुरा वक्त मेंभी मेरी मदद की थी और इस वक़्त भी मैंइस की रहमत सेमाय ूस नहीं था, इसलिए प ूरेभरोसेके साथ अपनी जगह जमा रहा। कम्बल मने ैं कं धेसेउठा कर सर पर रख लिया था की कहीं वो मेंभीग ना जाये। महावती के चेहरेपर कामयाबी की म ुस्क ुराहट थी और ब ूढ़ा शंभ ूसाँप
की शक्ल मैंख़ुद को महफ़ू4 रखेह ु ए था। पानी गिरनेकी आवा4ेंकान फाड़ रही थीं और माहौल धआँ ु -धार होता जा रहा था। अब वो पानी मेरी कमर सेबढ़ कर कं धेतक और फिर वहांसेगर्दन तक आ चका ु था और बस क ु छ पल बाक़ी थेकि वो सर सेऊं चा हो जाए। मने ैं आँखेंबंद करली और पानी की सतह को ऊं चा होता महसूस करता रहा। पानी के थपेड़ेमेरेक़दम उखाड़ेदेरहेथेलेकिन दिल को किसी ख़ौफ़ का एहसास नहीं था। ख ुदा नेअब म ुझेयेक़ुव्वत अता कर दी थी कि हर ख़ौफ़ मेरेदिल सेनिकल गया था। मैंजानता था कि तमाम दनि ु या मेंआँख खोलनेवालेहर नए पैदा ह ु ए के बारेमेंहम क ु छ और कह सकतेहो या ना कह सकतेहों, ये4रूर कह सकतेहैंकि आख़िर येएक दिन मर जाएगा। मौत सच हैऔर इस को तय करनेवाला भी सच्चा हैऔर सच सेइंकार कै सा... आँखेंइस लिए बंद कर ली थीं कि 4हन किसी तदबीर के झगड़ेमें ना पड़ जायेजो क़ुदरत के खिलाफ हो। अचानक शोर थम गया और सन्नाटेचीख़नेलगे। आँखेंपट सेख ु ल गईं। सामनेमहावती थी जो बेचैनी सेअचानक रुक जानेवालेपानी को देख रही
थी। इस का मछली का बदन पानी मेंज ु ंबिश कर रहा था। तभी फ़र्शमेंएक बड़ा गड्ढा हो गया और पानी दहशतनाक आवा4 के साथ इस मेंदाख़िल होनेलगा। महावती नेएक भयानक चीख़ मारी और कम होतेह ु ए पानी मेंएक छेड़ की तरफ़ लपकी। एक दम उस का बदन लंबी चमकदार लकीर मेंबदल गया और येलकीर तड़प कर एक सुराख़ मेंदाख़िल हो गई लेकिन शंभ ू नाथ जो साँप की शक्ल मेंथा और पानी मेंमज़ेसेतैरता फिर रहा था, उस जैसी फ ुर्ती ना दिखा सका हालाँकि उस का पतला बदन ज़्यादा आसानी सेउन अनगिनत छेदों मेंसेकिसी एक मेंदाख़िल हो सकता था। शायद वो माजरा ही नहीं समझ सका था। पानी इस तेजी सेगड्ढेमेंग़ायब ह ु आ कि क ु छ ही पलों में4मीन साफ़ हो गई। दीवार के छेद ऊं चाई पर थेइस लिए शंभ ू उन तक ना पह ु ंच सका। वो बदहवासी मेंबार-बार चिकनी दीवार पर चढ़नेकी कोशिश करता रहा मगर हर बार फिसल कर नीचेगिर जाता। फिर आख़िरी कोशिश केतौर पर वो मेरी तरफ़ लपका लेकिन म ुझ तक ना पह ु ंच सका। तब मने ैं आगेक़दम
बढ़ाए और झक ु कर उसेफन सेपकड़ लिया। शंभ ूमेरी कलाई सेलिपट गया था। मने ैं पहली बार क़रीब सेउसेदेखा। इस का चेहरा साँप के बदन की हिसाब सेछोटा 4रूर हो गया था लेकिन असल था। वो ब ुरी तरह ख़ौफ़- ज़दा न4र आरहा था। फिर उस की बारीक सी आवा4 उभरी- ''जय हो महात्मा! म ुझेछोड़ दे। छोड़ देमियां छोड़ देम ुझे, मेरा कोई दोष नहींहै। मैंतो संथाहारी ह ू ँ। म ुझेछोड़ दे, वली म ुझेछोड़ दे।' ’’एक ही मक़सद हैमेरा शंभ ू नाथ महावती का जादूख़त्म कर दं।ू उसने जितनेलोगों को अपनेजादू मेंगिरफ़्तार किया है, उन्हेंआ4ादी दिला दं।ू ना मेरी तुझसेकोई दश्मनी ु हैना किसी और से!' ’’वो तो चण्डालनी है, कालेशक्ति की सिथिं या म ु श्किल सेख़तम होगी। पर मैंआत्मा ह ू ँ , म ुझेछोड़ दे!' ’’कहाँभाग गई वो?' ’’मैंनहींजानता, म ुझेनहींमाल ू म , ... हो सकता हैकालीकं ड ु चली गई हो। इस का काला जादूतुझ पर-असर नहीं कर सका। डर कर भागी हैतुझसे,
उस के तो ह4ार ठिकानेहैंधरती पर, तुझसेना बच सकी तो पाताल में चली जाएगी। मारेतो हम गए छोड़ देहमें , छोड़ दे।' शंभ ूबारीक आवा4 मेंचीख़ता रहा ’’म ुझेकालीकं ड ु का रास्ता बता शंभ ू म ुझेवहांलेचल।' ’’वो म ुझेनहींछोड़ेगी ’’इधर मैंतुझेनहींछोड़ ू ँगा" ’’मर गए , हेदेवा सनथ हम तो मर गए। हाय अब हम क्या करें?' मने ैं इस दरवाज़ेकी तरफ़ म ुंह किया जिससेचल कर यहांआया था। बाहर काली दास मौज ूद नहींथा। ''काली दास कहाँगया?' ’’वो अलग कहाँहैमहावती सेवो तो इस का थक ू है, इस का गंद है। साथ ही होगा उस के!' शंभ ू नेबताया। मने ैं चारों तरफ़ देखा। इस ख़ूबसूरत माहौल का निशान तक भी बाकी नहींथा जिससेग ुज़र कर
मैंयहां पह ु ंचा था जबकि येउसी टूटी हवेली की एक उजाड़ राहदारी थी जो सख़्त गंदी पड़ी थी। पेड़ों के पत्ते, क ूड़ा करकट और उस पर दौड़तेह ु ए चहे ू। जो क ु छ देर पहलेदेखा, वो सब बस आंखों का धोखा था। येउस जगह की असल थी। राहदारी का दसरा ू सिरा हवेली के बाहर निकलता था। मैंबाहर निकल आया ’’हाँशंभ ू नाथ,.. किधर चलना है?' मने ैं प ूछा ’’सीधेचलतेरहो महाराज!' उसनेरो देनेवालेआवाज मेंकहा और मने ैं आगेक़दम बढ़ा दिए। शंभ ूमेरी पकड़ मेंथा। उसनेघ ुटी ह ुई बारीक आवा4 मेंकहा "महाराज! मेरी गर्दन छोड़ देंतो मैंइन्सान की रूप मेंआ जाऊं गा। वादा करता ह ू ँकि आपको काली निवास मेंलेजाऊं गा।' ’’नहींशंभ ू नाथ साँप पर भरोसा नहींकिया जा सकता।' ’’मेरी गर्दन तो ढीली कर दें , दम घ ुट कर ही मर जाऊं गा
’’मैंजानता ह ू ँकि तु म ऐसेनहीं मरते। मैंउस वक़्त तक तुम्हेंइसी तरह जकड़ेरह ू ँगा जब तक काली निवास मेरेसामनेनहींआ जाएगा।' ’’सीधेहाथ म ुड़ जाओ।' उसनेम ुर्दालहजेमेंकहा और मने ैं दिशा बदल दिया। भटिंडा के बारेमेंम ुझे जानकारी नहीं थीं लेकिन जो क ु छ हो रहा था, वो ग़लत नहीं था। क ु छ जानी-पहचानी जगहेंन4र आनेलगीं और मेंउन्हेंपहचानता रहा। यहां तक कि वो जगह आ गई जहां मने ैं ख़ुद को देखा था। सामनेही इस ग ु फा का म ुंह न4र आरहा था जहां मैंपहलेभी आ चका ु था। अंदर दाख़िल ह ु आ तो घ ु प अंधेरा फै ला ह ु आ था। शंभ ू नेम ुर्दाआवा4 मेंमहाराज!बिच्छू।' मैंएक दम रुक गया। मेरी आँखों ने4मीन पर बिल्क ु ल नन्ही नन्ही लाल चिनगारियां रेंगती देखीं। फिर आँखेंअंधेरेकी आदी ह ुईं तो मने ैं दो इंच के बिच्छूदेखेजो अपना काला डंक उठाए मेरी तरफ़ लपक रहेथे। नन्ही लाल चिंगारियों जैसी उनकी आँखें थीं। इतनेक़रीब आ गए थेवो कि उनसे बचना म ु श्किल था।
मने ैं अनचाहेमन सेकं धेसेकम्बल उतार कर उनकी तरफ़ लहराया। इस वक़्त मेरेपास इस के सिवा और कोई रास्ता नहीं था। मक़सद येथा कि हवा के झोंकों से डर कर वो दरू हट जाएं लेकिन नतीजा क ु छ और ही निकला। हवा के झोंके उन्हेंछू नेलगेऔर वो जम सेगए। उनके डंक नीचे झक ु गए जो उनकी मौत की निशानी थे। ’’मर गए।' शंभ ू के मँ ुह सेनिकला ’’येबिच्छूपहलेतो नहींथे?' मने ैं कहा ’’हमसेक ु छ ना प ूछो महाराज येकालेबिच्छू हैं। पत्थर पर डंक मारेंतो पानी बन जायेहै।' शंभ ू नेकहा। मैंबिच्छू ओंके बीच सेचल कर आगेबढ़ा तो एक और दहाना न4र आया जिसके दसरी ू तरफ़ रोशनी थी। येवही दहाना था जिसमें , मने ैं महावती को ख़ूख़ार ँ बिल्ली के रूप मेंदेखा था। जैसे ही मने ैं उसके अंदर क़दम रखा, अचानक ते4 गड़-गड़ाहट के साथ बह ु त सारेपत्थर नीचेगिरे। पत्थर क्या, चट्टानेंथीं जिनमेंसेक ु छ सीधेमेरे जिस्म पर गिरी थीं। लेकिन म ुझेबस य ू ंलगा जैसेरूई केगोलेहों लेकिन ये
गोलेनीचेगिर कर टु कड़ेटु कड़ेहो गए और मिट्टी का बादल उठनेलग गया। क़दम रुक गए और मैंउस वक़्त तक चपचाप ु खड़ा रहा जब तक ये सिलसिला ख़तम नहीं हो गया। अब म ुझेअंदा4ा हो गया कि महावती अंदर हैऔर अपना जादू आ4मा रही है। मने ैं माहौल साफ़ होनेके बाद अंदर निगाह डाली। आग की लकीरेंखिंच रही थीं। साएँसाएँकी आवाज़ों के साथ येलकीरेंइधर सेउधर दौड़ ही थीं और उनसेक ु छ फ़ासलेपर कोई काली चीज न4र आ रही थी। फिर वो साफ हो गई। महावती थी लेकिन हद सेज्यादा भयानक शक्ल हो रही थी उसकी ,, कोयलेजैसी काली आँखें , गहरेलाल होंट म ुड़ेह ु ए थे।। ’’आ गया तू,, पापी मसल्ले? हार नहीं मानँ ू गी तुझसे, हार नहीं मानँ ूगी। पीस कर रख दँगी। ू कच्चा चबा जाऊँ गी, कच्चा खा जाऊँ गी तुझे!' उसकी 4बान बाहर निकल आई। एक फ ुट दो फ ुट और फिर तीन फ ुट आँखें भयानक अंदा4 मेंफै लनेलगीं, बदन पर बाल झू लनेलगे। वो भयानक बला की शक्ल मेंबदलती चली जा रही थी। फिर उसनेइतनी डरावनी
चिंघाड़ मँ ुह सेनिकाली कि प ूरा ग ु फा लरज़ कर रह गया। इस चिंघाड़ के साथ ही वो हवा मेंऊं ची उठी ह ुई और उड़ती ह ुई म ुझ पर आई। मने ैं फ़ौरन दरूदु पढ़ना श ु रू कर दिया। वो चमगादड़ की तरह म ुझ पर सेउड़ कर चली गई। क ु छ दरू जाकर वो फिर पलटी। मने ैं दिशा बदल कर इस पर फ ू ं क मारी और य ू ं लगा जैसेउस का उड़ता ह ु आ बदन किसी ठोस दीवार सेटकराया हो। धमाके के साथ चीख़ की आवा4 सुनाई दी और वो नीचेगिर पड़ी लेकिन नीचेगिर कर वो लोटती ह ुई दरू चली गई और इस का जिस्म पत्थर होता गया। क ु छ दरू जाकर उसनेख ुद को काली नागिन की शक्ल मेंबदल लिया और उसके मँ ुह सेशोलेनिकलनेलगे। उसनेएक ख़ौफ़नाक फ ुन्कार मारी और अचानक मेरी कलाई सेलिपटेशंभ ू नाथ के बल ख ु लनेलगे। मेरा पढ़ना चलता जा रहा था। शंभ ूमेरी म ुट्ठी में जकड़ा ह ु आ, अब निकलने की कोशिश कर रहा था और महावती लगातार फ ुन्कारेंमार रही थी। अचानक मने ैं ग ु फा के कोनों सेबह ु त सेफ ूं कर की आवाज सुना।
कालेरंग के अनगिनत साँप बेचैनी सेफ ुं कारतेह ु ए बाहर निकलेथेऔर फिर वो म ुझ पर लपके थे। मने ैं उन पर फ ू ं क मारी और जिधर म ुंह करके मने ैं फ ू ं क मारी थी, वहांसाँप जड़ हो गए। उनके जिस्म लंबेलंबेहो गए थेलेकिन साँप चारों तरफ़ सेलहरातेह ु ए आ रहेथेइस लिए म ुझेचारों तरफ़ का ख़्याल रखना था। मने ैं शंभ ू नाथ को दसरे ू साँपों पर उछाला और फिर पहलेकी तरह पढ़तेह ु ए कम्बल दोनों हाथों मेंसँभाल कर लहरानेलगा। महावती की फ ुन्कारें भयानक हो गईं। कम्बल लहरातेह ु ए साँप मेरी नज़रों सेओझल हो गए। मने ैं क ु छ देर येकाम जारी रखा। फिर उस का नतीजा देखनेके लिए रुका। नतीजा बढ़िया था। सभी साँप म ुर्दा पड़ेथे। उनमेंशंभ ू नाथ भी था एक बदलाव भी ह ु आ था। महावती का नागिन का रूप बदल गया था। अब उस की जगह एक बह ु त ही ब ूढ़ी चड़ैलु बैठी ह ुई थी जिसके सर के बाल बर्फ़ की तरह सफ़ै द और बिखरेह ु ए थे। चेहरेकी झुर्रियाँ इतनी थींकि असल चेहरा छु प गया था।
सारेजिस्म के ख ु लेह ु ए हिस्सों पर नसों का जाल उभरा न4र आ रहा था। पक्का वो उस का असल रूप था। वो इस उम्र की औरत थी और उसनेकाले जादूसेयेरूप और जवानी हासिल कर रखी थी। इस का सर गोलाई मेंघ ू म रहा था, आँखेंचढ़ी ह ुई थीं। अचानक उस के मँ ुह सेगहरा गाढ़ा काला-ख़ू न उबल पड़ा लेकिन इस का सर पहलेकी तरह गोल गोल घ ूमता रहा जिसकी वजह सेख़ू न दरू दरू तक उछलनेलगा। मने ैं कम्बल श्रद्धा सेसमेट लिया मगर इसी तरह पढ़ता रहा। आहिस्ता-आहिस्ता महावती के सर घ ू मनेकी रफ़्तार ते4 हो गई। अब उस के मँ ुह सेएक लगातार भयानक आवा4 भी निकलनेलगी थी। फिर उस की गर्दन की हड्डी टूट गई और उस का बदन तकलीफ से म ुड़नेतुड़नेलगा। इस के बाद वो शांत हो गई। मैंआगेबढ़कर उस के क़रीब पह ु ंच गया। देखा तो वो मर चकी ु थी। मने ैं गहरी सांस ली और ग ु फा मेंहोने वाली बदलाव का जाय4ा लेनेलगा। म ुर्दासाँप हवा मेंगायब होनेलगेथे। ना जानेक्या-क्या अला बला मौज ूद थी, वो भी गायब होती जा रही थींऔर फिर वहां ख़ाली ग ु फा के सिवा क ु छ नहीं रह गया। इस सेअंदा4ा होता था
कि महावती अपनेजादूसमेत खतम हो चकी ु है। दिल ख ु शी सेभर गया। किसी रास्तेका च ु नाव किए बग़ैर चल पड़ा। दिल मेंचाहत थी कि महावती के महल जाऊं । अंदाजा सही ही निकला। थोड़ी देर के बाद आबादी न4र आ गई और आबादी तलाश करनेके बाद महल तलाश करनेमेंभी कोई दिक़्क़त नहीं ह ुई लेकिन महल सेक ु छ दरी ू पर ही था कि किसी असाधारण बात का एहसास हो गया। अंदर भाग दौड़ हो रही थी, पहरेदार होशियार खड़ेह ु ए थे। म ुझेबाहर ही रोक दिया गया। ''कहाँजाना है?'' ’’अंदर भाई!' ’’नहींजा सकते।' ’’4रूरी काम है।' ’’कह तो दिया नहींजा सकते। महाराज चन्द्रभान नेमना करा दिया है।' ’’कहाँहैंमहाराज चन्द्रभान ’’अंदर हैं ,, और कहाँरहेंगे।'
’’मेरा मतलब हैकि वो तो कहींगए ह ु ए थे?' ’’वापस आ गए हैं।' ’’तु मनेख़ुद देखा हैउन्हें?' मने ैं बेताबी सेप ूछा ’’नहींतो क्या हम अंधेहैं?' ’’अच्छा भाई सुंदरी को तो ब ु ला सकतेहो? मैंउससेदो बातेंकरके चला जाऊं गा" ’’अजीब ढीट आदमी हो। इस समय क ु छ नहींहो सकता।' पहरेदार नेआँखेंबिगाडी तो मैंवहां सेहट आया और कोई मक़सद नहीं था। मैंउन पत्थर की म ूर्तियों के बारेमेंजानना चाहता था। महल सेक ु छ फ़ासलेपर रुक गया और वहां सेजाय4ा लेता रहा। अफ़रातफ़री न4र आ रही थी। फिर क ु छ लोगों को बाहर निकलतेदेखा। नौजवान थे, तबाह-हाल थे, बदहवासी सेबाहर निकलेथे। बड़ी म ु श्किल सेउनमेंसेएक को रोक सका। ''सु नो भाई!' मने ैं रोका और वो सहम कर रुक गया। ''क ु छ प ूछना चाहता ह ू ँतुमसे"
’’क्या?' उसनेख़ौफ़ भरेलहजेमेंकहा ’’तु म महल सेआ रहेहो?' ’’आएं...!' उसनेख़ौफ़-ज़दा लहजेमेंकहा। फिर बोला। ''हाँवहीं सेआ रहा ह ू ँ।' ’’क्या महाराजा चन्द्रभान महल मेंआ गए हैं?' ’’उस महान प ु रुष नेही तो हमेंछुटकारा दिलाया है।' नौजवान बे-अख़्तियार बोला ’’तु म पत्थर के बतु बनेह ु ए थेना?' मने ैं कहा ’’अरेसारी बातेंजानतेहो तो हमेंक्यों परेशान कर रहेहो?' उसनेकहा और ते4ी सेआगेबढ़ गया। अपना फ़र्ज़प ूरा करना चाहता था। येमेरी ज़िम्मेदारी थी जिसकी हिदायत की गई थी। इस के बाद भी वहां दो दिन रुका। महल के सामनेही बसेरा किया और जानकारी हासिल करता रहा। फिर दसरे ू दिन सुंदरी न4र आ गई। महल के पास पह ु ंच कर उसे आवा4 दी। वो अपना नाम सुनकर रुक गई। म ुझेदेखा और फ़ौरन पहचान लिया।
"महाराज! आप?' ’’सुंदरी तुमसेक ु छ प ूछना चाहता ह ू ँ।' ’’प ूछो!' ’’चन्द्रभान महल मेंआ गए?' ’’हाँउन्होंनेचड़ैलु महावती को मार दिया, उस का जादूतोड़ दिया, सारे पत्थर के म ूरत इन्सान बन कर अपनेघरों को चलेगए। अब प ुराना महल ख ुदवा कर फ ू ं कवा दिया जाएगा। बाग़ उजाड़ कर दसरा ू लगाया जाएगा ’’ख़ुदा का श ुक्र है।' मेरेमँ ुह सेनिकला ’’और कोई काम हैहमसेमहाराज?' ’’नहीं सुंदरी तुम्हारा श ुक्रिया!' मने ैं कहा और सुंदरी आगेबढ़ गई। पक्का हो गया था कि काम ख़त्म हो गया है। अब चन्द्रभान सेमिलना 4रूरी नहीं था तो मने ैं वहां सेबाहर जानेकी ठानी और भटिंडा सेबाहर जानेवालेरास्तेपर पैदल चल पड़ा। महावती की जादूनगरी मेरी आँखों मेंबसी ह ुई थी। जादू की भी एक दनि ु या है। सारी चीज़ों का संबंध शैतान सेहै। इस शैतान नेभी अपना एक नि4ाम बना
रखा है। इंसानो को भटका कर इन्सानियत को नक़्सान ु पह ु ँचाता हैऔर इस के लिए उसने अपनी 4रूरतों को शैतानी ताकतों से प ूरा किया है लेकिन 4ाहिर हैकलाम इलहा की बरकत और अल्लाह के बनाए ह ु ए कान ू न के सामनेशैतानियत फ़ना हैऔर आख़िर इन्सानियत को इस से छुटकारा मिल ही जाता है। शैतानी क़ुव्वतेंहासिल करनेवालेदनि ु यावी आराम हासिल करनेके लिए गंदगी की आख़िरी हद को छूलेतेहैंलेकिन ये भी कोई ज़ि4ंदगी है? इन्सान तो फ़ितरत सेबह ु त सफाई पसंद है। येदसरी ू बात हैकि ताक़त पानेकी कोशिशेंऔर ताक़त का नशा उसे फ़ितरत सेबह ु त दरू ला फेंकता हैऔर वो इसी मेंअपनेआपको प ूरा समझ लेता है। पता नहीं ऐसेलोगों की भीतरी सोच क्या हो, सोचों की हद फै लती गई और मैंग ुजरेवक्त मेंपह ु ंच गया। सिर्फ एक बेवक ू फी भरा सोच, सिर्फ एक ग़लती सारी ज़ि4ंदगी का ग़म बन जाती है। मैंअगर अपनेबाप और माम ू ं की तरह आम इन्सानों के जैसेही अपनेआनेवालेवक्त के बारेमें सोचता तो आज ज़ि4ंदगी सेइतना दरू ना हट गया होता।
क्या क्या तकलीफ़ें नहीं उठाई थीं?, क्या-क्या सदमेनहीं बर्दाश्त किए थे? सिर्फ एक मेरी ग़लती नेकिसेकिसेज़ि4ंदा दफन नहीं कर दिया था? बस बात इतनी ही थी कि क ुदरत के बनाए ह ु ए उसू लों सेहट जाऊं और मेहनत किए बिना दौलत हासिल कर ल ूं। यही सोच तो था जो म ुझेकाला जादू सीखनेपर मजब ूर कर रहा था उस वक़्त , और कमबख़्त भ ूरिया चरण मिल गया था। मेहनत के बिना जो क ु छ भी हासिल हो जाए, वो गंदेइल्म सेही हो सकता है। सोचों के भंवर नेएहसास ही ना होनेदिया कि कितना फ़ासला तैकर लिया हैऔर जब होश की दनि ु या मेंवापस आया तो चारों ओर अंधेरा हो चका ु था और म ुझेसफ़र करतेह ु ए कितनेही घंटेबीत चके ु थे।दरू दरू तक वीरानी, सन्नाटा, पेड़ पौधे, झाड़ियाँ, पत्थर, खाली 4मीन ही दिखाई देरहा था मैंआबादी सेबह ु त दरू निकल आया था लेकिन अब उस का कोई अफ़सोस भी नहीं होता था। सीसी बात हैकि एक बे-मंज़िल म ुसाफिर के लिए हर वह
जगह जहां पांव थक जाएं, मंज़िल ही होती है। एक साफ़ सुथरी जगह देखकर बैठ गया। इतनी देर मेंपहली बार थकन का एहसास ह ु आ था। खानेपीनेके लिए क ु छ था नही। अल्लाह का श ुक्र अदा किया। कम्बल अदब सेसिरहानेरखा और लेट गया। नींद आ गई थी और सोता रहा था।उस वक़्त रात के चार साढे़ चार बजेहोंगे जब आँख ख ु ल गई। जल्दी सो गया था इस लिए नींद प ूरी हो गई। व ुज़ू के लिए पानी मौज ूद नहीं था इस लिए तयम्मु म किया और पढ़नेमेंलग गया , और इस के बाद सूरज निकलनेतक इसी तरह पढ़ता रहा था। फिर आगेके सफ़र की ठानी और दबारा ु चल पड़ा। बह ु त दरू निकलनेके बाद झाड़ीयों मेंख़रबू4ेजैसी कोई ची4 न4र आई। येक ुदरती झाड़ियाँ थीं। उनमेंजो ख़ु शन ु मा फल लगेह ु ए थे, उन्हेंखाया जा सकता था। वो क्या थे, कै सेथे, येअल्लाह जानेलेकिन मेरा पेट भरनेके लिए काफ़ी साबित ह ु ए थे। बस दो फलों नेप्यास भी बझा ु दी थी और पेट की आग भी इसलिए इस सेज़्यादा क ु छ ना लिया। जिसनेइस वीरान सफ़र मेंइन झाड़ीयों में मेरेलिए फल उगाए थे, वो आगेचल कर भी कहीं सेभी मेरेखान पीनेका
इंतजाम कर सकता था। इसकी फ़िक्र करना बेमतलब था। इस के बाद शाम ढलेजब सूरज की नारंगी किरनें4मीन पर एक अजीब सी उदासी बिखेर रही थीं, म ुझेएक टूटा फ ूटा खन्डहर नजर आया। काला जाद ू 51 वाँभाग-- आबादी उस के आस पास मेंभी नहीं थी यहां तक कि दरू दरू तक नहीं थी लेकिन य ू ं ही क़दम उस खन्डहर की तरफ उठ गए। न जानेकौन सी जगह है। कभी यहां क ु छ होगा, अब क ु छ नहीं था। लाल रंग की ईंटों के ढेर इधर उधर बिखरेह ु ए थे। बह ु त सी जगहेंसाफ़ भी थीं। पास पह ु ंच कर अंदा4ा ह ु आ कि मस्जिद जैसी कोई जगह हैऔर इन्सानों के इस्तेमाल मेंरहती है। पेड़ उगेह ु ए थेऔर एक बड़ेचब ूतरेपर उनके अनगिनत सू खेपत्तेउड़तेफिर रहेथेऔर उनसेसरसराहटेंउभर रही थीं। सामनेही मिंबर बना ह ु आ था। इस सेयेएहसास होता था कि कोई प ुरानेज़मानेकी मस्जिद है। फिर दसरे ू इंतजामात भी न4र आ गए। एक तरफ गहरा कँ ु आं था। इस के किनारे
चर्ख़ी लगी ह ुई थी और चर्ख़ी पर रस्सी लटकी ह ुई दिखाई देरही थी। क़रीब ही चमड़ेका एक डोल रखा ह ु आ था। देखकर सु क ू न ह ु आ कि आस-पास कोई बस्ती मौज ूद है। रात के अंधेरेमें जब रोशनीयां होंगी तो बस्ती न4र आ जाएगी लेकिन म ुझेकिसी बस्ती से भी कोई मतलब नहींथा। दिल मेंक ु छ ख़याल जागे। कँ ु वेंके पास पह ु ंचा और झक ु कर कँ ु वेंमेंझाँकने लगा। अंधेरेके सिवा क ु छ न4र ना आया लेकिन रस्सी का ढेर बताता था कि कँ ु आंबह ु त गहरा है। मैनेडोल पानी मेंडाला और इस के बाद थोड़ा सा पानी निकाल लिया। सामनेही एक ऐसी जगह बनी ह ुई थी जहांनमाज़ि4यों को पानी की 4रूरत होती है। मिट्टी के लोटेलाइन सेरखेह ु ए थे।
बह ु त सा पानी निकाला और उस जगह को भर दिया। लोटेधो कर सही से रखेऔर इस के बाद मस्जिद की आंगन के तरफ ध्यान चला गया। झाड़ू मौज ूद नहीं थी। बड़ेबड़ेतिनके समेटेऔर उन्हेंअपनी क़मीज़ के दामन से एक धज्जी फाड़ कर बाँधा फिर मस्जिद के आंगन सेसू खेह ु ए पत्तेसाफ़ करनेमेंलग गया और इस काम को करनेमेंसूरज बिलक ु ल छिप गया। मस्जिद का फ़र्शसाफ़ हो चका ु था। पत्तेसमेट कर एक जगह जमा कर दिए थे। क ु छ ऐसा सु क ू न मिला इस काम मेंकि दिमाग भी बट गया और दिल भी ख ु श हो गया। फिर अचानक ही मस्जिद की छत की ऊं चाइयों पर सेअल्लाह ु-अकबर की सदा उभरी और पहली ही आवा4 पर मेरा मँ ुह हैरत सेख ु ल गया। मने ैं किसी को मस्जिद की तरफ आतेह ु ए नहीं देखा था। यहां वैसेभी कई घंटे ग ुज़र चके ु थे। अगर मोअज़्ज़िन(अज़ान देनेवाला मौलवी) मस्जिद ही के किसी हिस्सेमेंरहता होगा तो कम सेकम म ुझेउस की आहटेंतो सुनाई देनेथीं।
अ4ान कही गई लेकिन इस के बाद भी मैंदेर तक मोअज़्ज़िन के ऊपर से उतरनेका इंति4ार करता रहा लेकिन मोअज़्ज़िन के क़दमों की चाप ना सुनाई दी। व ुज़ू किया और अभी व ुज़ूकर के उठा भी नही था कि म ुझे इन्सानों के बोलनेकी आवा4ेंसुनाई देनेलगीं। फिर मने ैं नमाज़ि4यों को चब ूतरेपर चढ़ कर आतेह ु ए देखा और इतमीनान हो गया कि जो क ु छ मने ैं किया, वो मेरा फ़र्ज़था। सफ़ें दरुस्त होनेलगीं, लोग बैठ गए। वो आपस मेंमद्धम मद्धम बात कर रहेथे। मने ैं सोचा कि नमाज़ के बाद किसी सेपास की बस्ती के बारेमेंप ूछू ँगा और अगर बस्ती ज़्यादा दरू नहींह ुई तो वहींचला जाऊं गा। क ु छ देर के बाद नमाज़ श ु रू हो गई और इमाम साहब (नमाज पढ़नेवाला) मिंबर के सामनेखड़ेहो गए, सफ़ें बंध गईं और नमाज़ श ु रू हो गई। नमाज़ सेखतम ह ुई और नमा4ी वापस जानेलगे। मैंकिसी ऐसेशख़्स को तलाश करनेलगा जिससेबस्ती के बारेमेंमाल ू म करूँ। इसी वक़्त पीछेसेआवाज उभरी। ’’मसऊद मियां!'
मेरा दिल उछल कर हलक़ मेंआ गया। यहां कौन हैजो मेरा जान पहचान वाला है। सफ़ै द कपड़ेपहनेएक न ूरानी शख़्सियत म ुझेआवाज देरहेथे। उसनेइशारेसेम ुझेक़रीब ब ु लाया और मैंआगेबढ़कर उस के पास पह ु ंच गया। ''उन्हेंतकलीफ ना दो!' ब ुज़र्ग ु नेकहा ’’मैंकिसी से.....!' मने ैं कहना चाहा और उन्होंनेहाथ उठा कर म ुझेरोक दिया ’’हाँहाँ...जानते हैलेकिन आबादी बह ु त दरू है।' ’’जी!' मैंहैरान रह गया। मने ैं 4बान सेप ूरी बात भी नहींकी थी और वो समझ गए थे ’’नमाज़ि4यों को चला जानेदो फिर बात करेंगे। आओ इधर आ जाओ।' इस हस्ती नेइशारा किया और मेंउनके पीछेचलनेलगा। वो म ुझेमस्जिद के प ू र्वी कोनेमेंलेआए। यहांपत्थर की एक साफ़ सुथरी चौकी न4र आई।
उन्होंनेम ुझेबैठनेका इशारा किया और मैंपत्थर की सिल पर बैठ गया। ब ुज़र्ग ु मेरेसामनेबैठ गए। फिर बोले। ''हमारा नाम जलाल ह ु सैन है।' ’’आप म ुझेजानतेहैं?' मने ैं कहा ’’हाँजानतेहैं।' ’’मगर मेंपहलेआपसेनहींमिला।' ’’बह ु त सेलोग, बह ु त सेलोगों सेनहींमिलते।' ’’फिर आप म ुझेकै सेजानतेहैं?' ’’मियांयेबात हमारेसीनेमेंही रहनेदो।' ’’बेहतर है।' मने ैं अदब सेकहा। नमा4ी एक एक मस्जिद सेबाहर निकल गए। मैंउन्हें देखता रहा फिर अचानक म ुझेक ु छ ख़याल आया। मने ैं कहा। ''आपनेफ़रमाया था कि आबादी बह ु त दरू है?' ’’इन्सानों की आबादी यहांसेसाठ सत्तर कोस है।' ’’मगर येनमा4ी..?'
’’येदसरे ू बंदेहैंख ुदा के । चलो खाना ख़ालो, खाना आगया है।" जलाल ह ु सैन नेदो आदमीयों को देखकर कहा जो हाथों मेंक ु छ उठाए क़रीब आगए थे। एक नेकपड़ेका दस्तर-ख़्वान बिछाया, दसरे ू नेबर्तन इस पर रख दी। पानी का कटोरा और सुराही भी पास रख दी गई। बर्तन सेभाप उठ रही थी और इस भाप के साथ चावलों की ख़ु शब ू मिली ह ुई थी। मोती की तरह बिखरेचावलों का ख ू ब ख़ु शब ूदार प ु लाव था। जलाल ह ु सैन नेकहा। ''मियां!, बिसमिल्लाह करो पहलेखाना, बाद मेंबात!' क ु छ कहनेकी ग ुंजाइश नहीं थी। जलाल ह ु सैन भी मेरेसाथ इसी मेंसेले कर खानेलग गए। खानेकी लज़्ज़त लफ्जों मेंबयान नहीं की जा सकती लेकिन ज्यादा नहींखाया। हाथ रोका तो जलाल साहब और खानेको कहनेलगे। " पेट भर खाना बेशक सही नही है,लेकिन तु म बह ु त भ ू के हो, खाओ!' क ु छ देर के बाद खाना हो गया। जलाल ह ु सैन नेकहा। ''नमाज़ इशा हो जाएगी उस के बाद बातेंहोंगी" ’’आप यहींपर रहतेहैं?'
’’हाँ!' ’’अ4ान आपनेकही थी?' ’’नहीं,अमीर अहमद ने।' ’’वो भी यहीं रहतेहैं?' ’’हाँ!' ’’जब मेंआया था तब मने ैं आपको नहींदेखा था।' ’’हाँना देखा होगा।' ’’आपनेम ुझेदेख लिया था?' ’’क्यों नहीं!' जलाल ह ु सैन म ुस्क ु राए फिर बोले। ''तु म ख़ुदा के घर की ख़िदमत मेंलगेथे। हमनेदख़ल नहींदिया। थोड़ी देर इधर उधर घ ू म लो, हम क ु छ 4रूरी काम निमटा लें।' वो उठ गए ’’बेहतर है।' मने ैं कहा और जलाल ह ु सैन वहां सेचलेगए। क ु छ दरू तक न4र आतेरहे फिर ईंटों के एक ढेर के पीछे छु प गए। मैंमस्जिद सेदरू निकल आया।
अंधेरा कीड़े मकोड़ों की सरसराहाट, कभी कभी परिंदों के परों की फड़फड़ाहट बड़ा अजीब माहौल था। म ुझेक ु छ-क ु छ अंदा4ा होता जा रहा था। जलाल ह ु सैन की शख़्सियत और उनके अलफ़ा4 भी याद आरहेथे। येदसरे ू बंदा-ए-ख ुदा़ हैं। इन्सानों की आबादी यहांसेसाठ सत्तर कोस दरू है। येलोग इन्सान नहीं थे। जिन्नात थेयेसमझ मेंआ गया बदन मेंफ ुरैरियां उठने लगीं। एक ठंडक सी एहसास प ूरेवज ूद मेंदौड़ गया। क्या जलाल ह ु सैन भी जिन हैं? यही लगता था लेकिन मेहरबान थेऔर म ुहब्बत सेपेश आरहेथे। अभी टहल ही रहा था कि इशा की अ4ान सुनाई दी और वापसी के लिए क़दम उठा दिए। इशा की नमाज़ मेंनमाजी बह ु त ज़्यादा थेऔर प ूरा आंगन भर गया था। नमाज़ हो गई। मैंफिर सेउसी लाल सिल पर जा बैठा और क ु छ देर के बाद जलाल ह ु सैन वहांआ गए। ’’मियांकिसी चीज की जरूरत तो नहींहै?' ’’अल्हम्दलि ु ल्ला!'
’’सु नाओ कै सी ग ुज़र रही है?' ’’अल्लाह का करम है।' ’’क ु छ बातेंकहना चाहता ह ू ँ।' ’’जी!' ’’पहलेअपनी पहचान बनाना बंद करो।' ’’जी मैंक ु छ समझा नहीं।' ’’अब तुम्हें इस कम्बल की 4रूरत नहीं है, रास्ता बताने वाली हस्ती अल्लाह की है। अल्लाह का कलाम सीनेमेंहो तो सब क ु छ मिल जाता है। उस की रहनुमाई मांगो। येखेल ऐसेही चलेगा तो ख़ुदनुमाई के गिनती में आ जाओगे। इसेख़ुद सेदरू करो तो भरोसा पैदा होगा।' ’’जी!' मने ैं धीरेसेकहा ’’दिल मेंशक ना लाओ। भरोसेसेबड़ी चीज और कोई नहींहोती।' ’’जी ,सही कहा आपने"' ’’येचार रुपय रख लो, 4रूरत प ूरी करेंगे। तुम्हारा व4ीफ़ा बना दिया गया है।'
जलाल ह ु सैन नेचार रुपय मेरेहाथ पर रख दिए ’’येहलाल होगा?' ’’तोहफा है। उस वक़्त तक मिलेगा जब तक 4रूरत होगी।' ’’बिसमिल्लाह" ’’जमाल गढ़ी चलेजाओ, उधर सेब ु लावा है।' ’’रास्तेकी निशानदही कर दीजिए।' ’’हाँ,,बस सीधेचलेजाना मगर सुबह सफ़र श ु रू करना। अब आराम सेसो जाओ। अच्छा अब हम भी चलतेहैं। अल्लाह तुम्हारी हिफात करे!' जलाल ह ु सैन नेकहा और सलाम करके वहांसेचलेगए। मैंबह ु त देर तक पत्थर की सिल पर पालती मारेबैठा रहा। जलाल ह ु सैन की बातों पर ग़ौर कर रहा था। बह ु त सु क ू न देनेवाली हवा चल रही थी। वहीं लेट गया और तारों भरेआसमान को देखता रहा। दिल की वादीयों मेंबह ु त सेफ ू ल खिलनेलगे, यादेंसरसरानेलगीं। क ु छ लोग याद आए और सिसकी बांध गई।
इन यादों पर पाबंदी थी, वक़्त तक जब तक ख़ुद आवा4 ना दे। नींद मेहरबान हो गई। रात केआख़िरी हिस्सेमेंठंडक बढ़ गई थी। कई बार आँख ख ुली। आधी नींद की हालत मेंउन तहज्जुद पढ़नेवाली को देखा जो इबादत में लगेथेफिर सो गया। सुबह नमाज के वक़्त आँख ख ु ल गई। अ4ान के आख़िरी बोल सुनाई देरहेथेलेकिन इस वक़्त आंगन मेंबिलक ु ल सन्नाटा था। मने ैं व ुज़ू किया। इंति4ार करता रहा मगर कोई नहीं आया था। नमाज़ का वक़्त हो चका ु था, नीयत बांध कर खड़ा हो गया। नमाज़ पढ़नेके बाद रुख इस पत्थर की सिल की तरफ़ किया। वहां कहनेकी प्लेट रखी ह ुई थी। इस मेंदो पराठे, आल ू की तरकारी और चाय का पियाला रखा ह ु आ था जिससेभाप उठ रही थी और मेरा कम्बल नहींथा।
एक पल के लिए बदन पर कं पकं पी छा गया। पहलेयेकम्बल मेरी नादानी सेछिन गया था और अब वापस लेलिया गया था मगर उस के साथ बह ु त क ु छ समझा भी दिया गया था। मने ैं नाशतेपर ध्यान दिया। प ूरा नाशतादान साफ़ किया। इस के बाद यहां रुकना सही नहीं था। इसलिए वहांसेचल पड़ा। तीन दिन और रात के कई घंटेके सफ़र के बाद एक आबादी न4र आई। इस वक़्त सुबह के कोई पाँच बजेथे। मैंरात को ही इधर चल पड़ा था और जब रात का अंधेरा खतम ह ु आ तो म ुझे पेड़, खेत और उनसे हट के टिमटिमातेचराग़ नज़र आनेलगेथेजिनसेआबादी के पास आनेका एहसास ह ु आ था। आबादी के पहलेपेड़ के पास रुक गया। क ु छ दरी ू पर एक टुंड म ुंड सेपेड़ पर कई गिद्ध बैठेह ु ए थे।
म ुझेदेखकर उन्होंनेपर फड़फड़ायेऔर फिर उनमेंसेएक भयानक आवा4 के साथ पर फ़ड़फ़ड़ाता ह ु आ उड़ गया जैसेकिसी को मेरेआनेकी खबर देनेगया हो। नमाज़ का वक़्त निकला जा रहा था तो पेड़ के तनेकी आड़ मेंमने ैं एक साफ़ जगह देख करके फ़ज्र की नमाज़ पढ़ी और दरूदु का व4ीफ़ा करने लगा। जब इस सेफ ुरसत मिली तो अपनेदाएं बाएं बह ु त सेम ुर्दा ख़ोरों (गिद्धों) को इंतजार मेंबैठेदेखा। शायद मेरेबदन के बेहरकट रहनेसेवो ग़लतफ़हमी का शिकार हो गए थे। मैंउठकर खड़ा ह ु आ तो वो डर कर अपनेपतलेपतलेपैरों सेउछल उछल कर पीछेहटनेलगेऔर फिर माय ूस हो कर हवा मेंउड़ गए। येम ुर्दाखोर गिद्ध कभी कभी ज़ि4ंदा इन्सानों पर भी हमलेकर दिया करतेहैं। इसलिए यहां सेआगेबढ़ जाना 4रूरी था।सोचा 4रा बस्ती पह ु ंच कर येमाल ू म किया जायेकि यही बस्ती जमाल गढ़ी हैक्या।
बस यही सोच कर एक तरफ चल पड़ा। क ु छ आगेबढ़नेपर अचानक क ु छ दरी ू पर म ुझेएक इन्सानी जिस्म न4र आया। कोई पीठ किए एक झाड़ी के क़रीब बैठा ह ु आ था। उस ओर क़दम बढ़ा दिए और उसेदेखता ह ु आ आगेबढ़नेलगा। हो सकता हैयही म ुझेरास्ता बता दे। क ु छ दरी ू पर पड़ेह ु ए एक पत्थर सेठोकर लगी तो बैठी ह ुई इंसानी जिस्म उछल कर खड़ी हो गई। तब मने ैं उसेध्यान से देखा। एक भयानक सूरत औरत थी जिसकी उम्र पतालीस ैं साल के क़रीब होगी। लंबेलंबेबाल बिखरेह ु ए थे, रंग भी मटियाला था और जगह जगह ख़ू न के धब्बेन4र आरहेथे। जिस्म पर कपड़ेभी ना होनेके बराबर था। हाथ 4रूरत सेज़्यादा लंबेथे। जब उसनेमेरी ओर निगाहेंउठाई तो मेरे क़दम ठिठक गए। बह ु त ख़ौफ़नाक शक्ल थी साथ ही उसनेभयानक चीख़ मारी और एक लंबी छलांग लगा दी। मैंहैरान खड़ा रह गया। वो दौड़ती ह ुई क ु छ दरू पर बाजरेके खेतों मेंजा घ ुसी। मैंक ु छ देरअपनी जगह खड़ा रहा फिर ना चाहते ह ु ए भी उस तरफ निगाह उठ गई जहांवो बैठी ह ुई थी।
अगलेही पल ब ुरी तरह चौंक पड़ा। एक इन्सानी जिस्म वहां भी मौज ूद था और 4मीन पर बे-सु ध पड़ा ह ु आ था। दौड़ता ह ु आ वहांपह ु ंचा और ख़ौफ़ सेउछल पड़ा। नौ या दस साल के बच्चेका जिस्म था जिसका फटा ह ु आ कपड़ा उस से क ु छ क़दम की दरी ू पर पड़ा ह ु आ था। उसका सीना फटा ह ु आ था और जिस्म के अंदर का सब क ु छ आस पास मेंबिखरा ह ु आ था। जगह जगह 4मीन पर ख़ू न न4र आ रहा था। गर्दन म ुड़ कर दसरी ू ओर घ ू म चकी ु थी। इस के सीनेकी जो हालत न4र आई, उसेदेखकर सोचा भी नहींजा सकता था कि इस मेंज़ि4ंदगी हो सकती है। मैंबच्चेके क़रीब बैठ गया। इस की म ुड़ी ह ुई गर्दन सीधी की। मासू म शक्ल का बच्चा था जिसेउस वहशी औरत नेअपनी दरिंदगी का शिकार बनाया था लेकिन क्यों? एक इतनेमासू म बच्चेसेइस बद-बख़्त को क्या दश्मनी ु थी,
समझ मेंनहीं आया कि क्या करूँ लेकिन फ़र्ज़ था कि बस्ती वालों को फ़ौरन ही इस हादसेकी ख़बर दं।ू येडर भी था कि अभी क ु छ ही पल में म ुर्दाखोर गिद्ध आजाऐंगेऔर इस की लाश को नोचना श ु रू कर देंगे। क ु छ समझ मेंनहींआ रहा था। लाश के बिखरेह ु ए अंगों को इकट्ठा करना भी एक म ु श्किल काम था। इस के इलावा और कोई बात समझ मेंनही आई कि बस्ती की तरफ दौड़ ू ँ। बस मैंदौड़नेलगा। ज़्यादा दरू तक नहीं पह ु ंचा था कि परेशान इन्सान न4र आए। हाथ मेंलाठीयां थीं और चेहरों पर हवाईयां उड़ रही थीं। मने ैं 4ोर 4ोर सेउन्हेंप ुकारा। ''सु नो भाईयो इधर आओ, मेरी बात सु नो सु नो!' और वो जल्दी सेमेरेपास आ गए ’’वहां... उस तरफ़ झाड़ीयों मेंएक बच्चेकी लाश पड़ी ह ुई हैजिसका जिस्म उधेड़ दिया गया है।' ’’क्या.......?' उनमेंसेएक शख़्स नेफटी फटी आवा4 मेंकहा और शायद उसके होश उसका साथ छोड़ गए। उसनेलाठी 4मीन पर टिका कर अपना सर इस सेलगा दिया। दसरे ू नेइस का हाथ थाम कर म ुझसेप ूछा
" किधर?.... कहाँ...?' ’’आओ मैंतुम्हेंउधर लेचलता ह ू ं।' ’’जनक राम ख़ुद को सँभाल भाई, आ 4रा चलें, हिम्मत कर।' जिस आदमी को जनक राम के नाम सेप ुकारा गया था, उस की आँखों से आंसू ओं की बरसात हो रही थी। भराई ह ुई आवा4 मेंबोला "आह.....! वही ह ु आ, वही हो गया जिसका अंदेशा था। मेरा भाई तो बे-मौत मर जाएगा। उजड़ गया येघर, उजड़ गया। बर्बाद हो गया। हाय कै सेदेखू गा ँ मेंअपने भतीजेकी लाश!' ’’हिम्मत कर जनक राम आ ..चलेंतो सही।' दसरे ू आदमी नेकहा फिर मेरी तरफ़ देखकर बोला। ''चलो भैया ...बताओ हमेंवो जगह!' ’’यहां गिद्ध भी हैं। मैंदौड़ता ह ु आ जाता ह ू ँ , तु म मेरे पीछे पीछे आ जाओ,कहीं वह बच्चेकी लाश को ख़राब ना करें। वैसेभी लाश बह ु त ख़राब हो चकी ु है।'
मने ैं कहा और वापस दौड़ लगा दी। वो दोनों भी हाँपतेकाँपतेमेरेपीछेआ रहेथे। मेरा सोचना सही था। गिध वहांक ु छ ऊं चाई पर मंडरानेलगेथे। मने ैं एक सू खी डाली उठाई और लाश के पास जा खड़ा ह ु आ। मंडरातेह ु ए गिद्धों को मने ैं मँ ुह सेआवा4ेंनिकाल कर डराया और लकड़ी हवा में लहरानेलगा। थोड़ी ही देर के बाद वो दोनों भी मेरेपास पह ु ंच गए। जनक राम नेबच्चेका चेहरा देखा और दहाड़ेंमार मार कर रोनेलगा। दसरा ू उसे समझा रहा था। उसनेभराई ह ुई आवा4 मेंकहा। ''हिम्मत कर भाई! तूसोच रघुबीर भैया का क्या हाल होगा। भाभी कै से जिएगी। बड़ी म ुसीबत आ पड़ी हैयेतो!' ’’अरे ल ुट गए हम तो हीरा भैया अरेजीवन बर्बाद हो गया हमारा, मेरा प्रकाश, मेरा प्रकाश!' जनक राम रोता ह ु आ लाश सेलिपट गया ’’तुम्हारा नाम हीरा है?' मने ैं दसरे ू आदमी सेकहा ’’हाँभैया, हीरालाल"
’’हीरालाल ,लाश को यहां से उठानेका क ु छ इंतजाम करो। तु म बस्ती जाकर दसरे ू लोगों को भी ख़बर कर दो।' ’’जाता ह ू ँभैया जी,,.. बड़ी बिप्ता आ पड़ी हैजमाल गढ़ी पर, तु म यहां रुके रहो भैया जी, 4रा सँभालना जनक राम को।' हीरा नेकहा ’’तु म जाओ।' मने ैं कहा और हीरालाल जनक राम सेबोला। ''जनक सँभाल ख़ुद को, अभी तो तुझेभैया भाभी को भी सँभालना है। मैं बस्ती जा रहा ह ू ँ...सँभाल जनक राम ख़ुद को' ’’जा भैया,,जा!' जनक राम नेरोतेह ु ए कहा और हीरा उस का कं धा थपकता ह ु आ वहां से चला गया ’’जनक राम, ख़ुद को सँभालो, येबच्चा तुम्हारा कौन है?' ’’भतीजा हैहमारा इकलौता था अपनेमाता, पिता का, लाडला था हमारा। बड़ा अन्याय हो गया भैया,,,,, बड़ा अन्याय हो गया।' ’’येयहांकै सेआ गया?'
’’भगवान जाने, रात को खेलनेनिकल गया था बच्चों के साथ। रात गए तक वापस ना आया तो सब परेशान हो गए। सब के सब ढूंडतेफिरेहैंरातभर। सारी रात तलाश किया हैभैया... मिली तो इस की लाश!' ’’तु म क्या सोचतेहो, इसेकिस नेमारा?' ’’ना माल ू म भैया, कोई डायन लगेहै। हाय देखो इसका भी कलेजा निकाल कर खा गई है।' ’’डायन.....!' मेरी सांस रुकनेलगी ’’तु म ख़ुद देख लो भैया,, पहलेभी चार का यही हाल ह ु आ है।' ’’क्या..... । ?' मैंउछल पड़ा। मने ैं परेशान नज़रों सेउन खेतों की तरफ़ देखा जहां वो ख़ौफ़नाक औरत जा घ ुसी थी। क्या वो डायन थी, बच्चों का कलेजा निकाल कर खा जानेवाली। ’’तु म जमाल गढ़ी केना हो क्या भैया?' ’’नहीं,.. मैंतो म ुसाफ़िर ह ू ँ।'
’’तभी तो,.. जमाल गढ़ी मेंकोई डायन घ ुस आई हैभैया चार बच्चों को मार चकी ु हैजान से।' ’’ख़ुदा की पनाह तुम्हेंएक बात बताऊं जनक राम!' ’’बताओ भैया!' उसनेअंग ूठेसेआँखेंपोंछतेह ु ए कहा ’’मैंसुबह होनेसेक ु छ देर पहलेही यहांपह ु ंचा था।बस्ती के बारेमेंकिसी से माल ू म करना चाहता था!' मने ैं जनक राम को प ूरी कहानी सुनाई और वो उछल कर खड़ा हो गया ’’कौनसेखेतों में?' उसनेअपनी लाठी मज़ब ूती सेपकड़तेह ु ए कहा और मने ैं खेतों की तरफ़ इशारा कर दिया। जनक राम लाठी हिलाता जोश मेंचीख़ता खेतों की तरफ़ दौड़ा। मेरी नज़रेंउसी तरफ़ लगी ह ुई थीं। जनक राम खेतों मेंघ ुस गया था। फिर उस की दहाड़ सुनाई दी। ''रुक तो ससुरी भाग कहाँरही है? अरी रुक तेरा सत्यानास हो!' फिर मने ैं ख़ौफ़नाक औरत को लंबी लंबी छलांगेंलगातेह ु ए देखा। जनक राम लाठी पकड़ेउस के पीछेभाग रहा था फिर उसनेलाठी घ ु मा कर प ूरी
ताकत सेऔरत पर फेंकी। औरत बाल बाल बची थी। जनक राम जोश और ग ुस्सेसेपागल हो रहा था। औरत अगर उस के हाथ आ जाती तो वो पक्का उसके टु कड़ेटु कड़ेकर देता। जनक राम उस के पीछेभागता ह ु आ दरू निकल गया था। इतना दरू कि अब म ुझेन4र भी नहीं आ रहा था हां मगर बस्ती की तरफ़ सेबह ु त से लोग दौड़तेआ रहे थे। हीरालाल सबसेआगेआगेथा। क ु छ देर के बाद बस्ती वालेपास आ गए और कोहराम मच गया। म ुझेपीछेहटना पड़ा था। एक आदमी जिसकी हालत बह ु त ख़राब थी, आगेबढ़ा। लोग उसेपकड़ेह ु ए थे। उसनेबच्चेकी लाश देखी और होश खो कर गिर पड़ा ’’जनक राम कहाँगया?' हीरालाल नेम ुझसेप ूछा मगर जवाब देनेकी 4रूरत नहींपड़ी। जनक राम जोश सेलाठी घ ुमाता वापस आरहा था। वो दौड़ता ह ु आ क़रीब गया। ’’पता चल गया आज, सब क ु छ माल ू म हो गया भैया, आज सारी बातेंपता चल गईं। अरेकहाँहैवो सुसरा तु लसिया कहाँछिपा हैरेसामनेआ!'
"तु लसिया नेक्या कर दिया जनक राम?' किसी नेप ूछा ’’डायन पता चल गई रम्भा चाचा डायन पता चल गई।' ’’कौन है... कौन हैवो?' बह ु त सी आवा4ेंउभरी ’’भागभरी अरेवही ससुरी भागभरी, ख़ू न सेरंगी ह ुई थी कमीनी अरेआँखों सेदेख लिया अपनी!' ’’भागभरी बावली भागभरी?' ’’बनी ह ुई बावली हैभैया,,, आज देख लिया उसे! अरेजाएगी कहाँ, कई दिए बझाए ु हैंउसने, पतू कहाँछिपा ह ु आ हैइस का? अरेदेख लिए अपनी मय्या के करततू !' जनक राम का सांस फ ू ल रहा था। फिर उसनेलाश के पास बेहोश पड़ेह ु ए आदमी को देखा और एक-बार फिर दहाड़ेंमारनेलगा ’’अरेभैया हमारा चिराग़ भागभरी नेबझाया ु है। वही डायन हैबड़ेभैया हमनेअपनी आँखों सेदेख लिया।' ’’क ु छ बताओ तो सही जनक राम!'