करनेलगे। मैंख़ुद ही उनके क़रीब पह ु ंच गया था। मने ैं कहा। ''क्या कर रहे भाई?'' ’’ उसी चड़ैलु को तलाश कर रहेहैं। डायन बच कर कहाँजाएगी हमारेहाथों सेअरेबस्ती मेंआग लगा दी हैउसने, हर घर मेंरोना पीटना मचा ह ु आ है, उस की वजह से, भगवान की सौगंध न4र आ जाए, जीता नहींछोड़ ू ँगा।' मने ैं एक ठंडी सांस ली और वहांसेआगेबढ़ गया। फिर मकानों के बीच सेनिकला था कि सामनेम ु खिया का घर न4र आ गया। शायद येपिछला रास्ता था। य ूंही टहलता ह ु आ आगेबढ़ा और इस घर के क़रीब पह ु ंच गया लेकिन आज भी वहां तमाशा हो रहा था। बेचारेतुलसी को देखा जिसेदो आदमी पकड़ेह ु ए ला रहेथेऔर चार पाँच उस के पीछेचल रहेथे। चौपाल की जगह ठाक ु र साहब पहलेकी तरह ही बैठे ह ु ए थेहालाँकि दोपहर का वक़्त था लेकिन ठाक ु र साहब क़िस्सा निपटानेआ गए थे। में भी ते4 क़दमों सेआगेबढ़ता ह ु आ उनके क़रीब पह ु ंच गया। ठाक ु र साहब थोड़े नापसंदी के अंदा4 मेंइन लोगों को देख रहेथे। वो बोले।
''अरेतु म इस बेचारेके पीछेकाहैपड़ गए हो आख़िर, मार दो ससुरेको, दो लठियायाँमॉरो भेजा निकाल बाहर करो, जान छूटेबेचारेकी" ’’ठाक ु र जी झूट नहीं कह रहेहम लोग, सौगंध लेलो हमसेभी और इस से भी इस सेप ूछो रात को भागभरी इस के पास आई थी या नहीं?' ’’क्यों रेबता भाई बता क्या करेंतेरा हम, अरेबस्ती छोड़कर ही चला जा पापी कहीं, मारा जाएगा इन लोगों के हाथों। धत तेरेकी। अरेआई थी वो क्या तेरेपास?' ’’आई थी ठाक ु र!' ’’तो फिर तू नेपकड़ा उसे?' ’’पकड़ा था मगर इन लोगों नेपत्थर मार मार कर हमारा सत्यानास कर दिया। वो हमेंधक्का देकर निकल भागी।' ’’येझूट बोलता हैठाक ु र इसनेउसेपत्थरों सेबचानेके लिए अपनेबदन के नीचेछिपा लिया था।' ’’तो पापियो, भाई तो हैना , क्या करता। अरेतु म लोगों को भगवान का डर हैकि नहीं। सारी बस्ती पर तबाही लाओगे। तु म म ुझेबताओ, ठंडेमन से
बताओ, सोच कर बताओ। तुम्हारी बहन पागल हो जाती। कोई इस पर इल्ज़ाम लगा देकि वो डायन हैऔर तु मनेअपनी आँखों सेना देखा हो तो क्या मरवा दोगेउसेबस्ती वालों के हाथों, पत्थर मार मार कर सर ख ु लवा दोगेउस का , अरे उसनेअगर ऐसा किया भी हैतो कौन सा ब ुरा काम किया-किया। तु म येबात कहना चाहतेहो कि येभी अपनी बहन के साथ बच्चों को मारता है। बोलो जवाब दो? अगर ऐसा नहीं हैतो इस बेचारेके पीछे क्यों पड़ गए हो। जाओ पकड़ लाओ कहीं सेभागभरी को, लेआओ ससुरी को मेरेपास मैंख़ुद तुमसेकह ू ँगा कि जान निकाल लो उस की। अरे किसी नेठीक सेदेखा तो हैनहींऔर पड़ गए पीछे । देखो मने ैं तुमसेपहले भी कहा था और अब भी जो कह रहा ह ू ं उसेसमझ लो अच्छेसे, तुलसी को इस के बाद अगर किसी नेहाथ लगाया तो म ुझसेब ुरा और कोई नहीं होगा और भागभरी के बारेमेंभी मैंतुमसेयही कहता ह ू ँ। देख लो समझ लो, पकड़ लो तो जान सेमत मारना। पहलेमेरेसामनेलेआना। वो तु म मेंसे किसी को नहीं खा जाएगी। समझेसुरमाओ इस बेचारेको बार-बार पकड़ कर लेआतेहो।'
’’येइन्साफ़ नहींहैठाक ु र साहब!' येआवा4 जनक राम की थी ’’अरेजनक राम भैया हम जानेंहैंतेरेमन मेंआग लगी हैपर ऐसा तो ना कर जैसा तूकर रहा है। भागभरी को एक-बार भी पकड़ कर लेआएगा तो हम तुझसेक ु छ नहीं कहेंगे। इस बेचारेकी जान के पीछेक्यों लग गए हो तु म लोग, देख तु लसिया भागभरी अगर तेरेपास आ जाए तो भैया मत बनेव उस का पकड़ कर हमरेपास लेआना। अरेहम भी तो देखें4रा डायन को ख ु ली आंखों से!पता तो चल ही जाएगा ,ससुरी कब तक छुपेगी। तु म लोगों नेतो भैया मग़ज़ ख़राब करके रख दिया है।' ठाक ु र कोहली राम दोनों हाथों सेसर पीटनेलगा ’’इसेक ु छ नहींकहोगेठाक ु र?' जनक राम बोला ’’क्या कहेंऔर क्या ना कहेंबताओ, और क्या कहें? उधर ओ रेतु लसिया इधर आ हमरेपास।' तुलसी आगेबढ़कर उस के पास आ गया। ठाक ु र नेउस का हाथ पकड़ा और चौंक पड़ा।
''अरेतुझेतो ताप चढ़ा ह ु आ है।' ’’कल सेपीटा जा रहा ह ू ँठाक ु र दिन-भर मारा, रात को मारा, ताप ना चढ़ेगा तो क्या होगा।' तुलसी लाचारी और बेबसी सेबोला और ठाक ु र का चेहरा ग़स्से ु सेलाल हो गया ’’पापियो, जान लिए बिना ना छोड़ोगेइसे, अरेक ु छ तो शरम करो, क ु छ शरम करो। सु नो रे सब कान खोल कर सु न लो सब के सब, जनक राम तू भी सु न लेभैया। तेरा दख ु अपनी जगह मगर तु म सबनेमिलकर हमें म ु खिया बनाया हैतो म ु खिया का मान भी देदो। इस के बाद तुलसी को कोई हाथ ना लगाए वर्नाहम प ु लिस को ब ु लाएँगेऔर फिर देख लेंगेएक एक को।' ’’इस का पाट लेरहेहो ठाक ु र!' किसी नेकहा ’’चौरसिया ओ चौरसिया!' ठाक ु र नेकिसी को आवा4 दी और एक हट्टा कट्टा आदमी आगेबढ़ आया।
''देख तो कौन सूरमा बोला। पकड़ लेउसेऔर बीस जते ू लगा देउस की खोपड़ी पर कौन बोला था पाट वाली बात?' ठाक ु र नेआँखेंनिकाल कर भीड़ को घ ूरतेह ु ए कहा लेकिन दबारा ु कोई ना बोला। ठाक ु र नेइस वक़्त शायद म ुझेदेखा था। फिर उसनेकहा। ''बात समझ मेंआ गई हो तो जाओ, अपनेघरों को जाओ। जो कहा है, उसे याद रखना वर्नाज़िम्मेदार ख़ुद होगे। 4बान चलाओ हो हरामख़ोर हमसे जाओ सब जाओ।' लोग गर्दनेंझकाए ु चल पड़े। मेंभी वापसी के लिए म ुड़ा तो ठाक ु र ने जल्दी सेकहा। ''अरेओ दारोगा जी तु म कहाँचले, 4रा इधर आओ हमारेपास।' मैंजानता था दारोगा किसेकहा गया है, रुक गया। म ुड़ कर ठाक ु र कोहली राम के पास पह ु ंच गया। ''जी ठाक ु र साहब?' ’’मेहरबानी तुम्हारी भाई कि इज़्4त सेनाम लेलिया। हम तो समझ रहेथे कि भंगी चमार कहोगेहमें!'
’’आप येक्यों समझ रहेथेठाक ु र साहब!' मने ैं म ुस्क ु रातेह ु ए कहा ’’ऐसा ही लगेहैहमें ,बैठो, जमाल गढ़ी मेंमेहमान आए हो, हम भी यहींके रहनेवालेहैं।' ’’आप ह ु क्म देकर ब ु लवा लेतेठाक ु र साहिब अल्लादीन की सराय मेंठहरा ह ू ँ।' ’’तु म हमारा ह ु क्म काहैमानतेभैया, दबैल मेंबसेहो हमरी क्या। दरू से सलाम तक तो क्या ना तु मने" ’’सलाम अपनी मर्ज़ी से किया जाता है ठाक ु र आपकी बस्ती में भी म ुसलमान रहतेहैं। आप 4रूर जानतेहोंगेकि म ुसलमान किसी के ह ु क्म पर नहींझकते। ु ' ’’अरेबैठो तो, दो-चार घड़ी क ु छ जलपान करो?' ’’श ुक्रिया मैंबैठ जाता ह ू ँ।' ’’तु म ख़ू ब फं सेइस फे र में , बस्ती मेंकिसी सेमिलनेआए थेया ऐसेही ग ुज़र रहेथे?'
’’बस ग ुज़र रहा था ठाक ु र पता नहींमेरी बदक़िस्मती थी या किसी और की कि मने ैं वो सब देख लिया।' ’’भगवान जाने क्या सच हैक्या झूट फ़ै सला तो भगवान ही करेगा। भागभरी बावली हो गई है। बच्चेमर गए थेउस के, पति भी मर गया बेचारा मगर ऐसा कै सेहो गया। ऐसी औरत डायन कै सेबन गई। वो बावली तो है। हो सकता हैबच्चेकी लाश पड़ी हो और वो पागलपन मेंइस के पास बैठ कर उसेटटोलनेलगी हो। तु मनेध्यान सेअच्छे सेउसेदेखा था वो बच्चेको मार रही थी?' ’’पहलेभी बता चका ु ह ू ँ , उस की पीठ थी मेरी तरफ़!' ’’भगवान जो करे, अच्छा करे। बस्ती वालेउसेछोड़ेंगेनहीं। हम तो क ु छ और सोच रहेहैं। प ु लिस ला कर भागभरी को पकड़वा दें। प ु लिस जानेऔर इस का काम।' अभी ठाक ु र नेइतना ही कहा था कि अंदर सेएक लंबी तड़ंगी औरत निकल आई और कड़कतेलहजेमेंबोली
’’तुम्हेंपंचायत लगानेके इलावा और कोई काम भी है? जब देखो पंचायत लगाए बैठेहो। काका ब ु ला रहेहैंइत्ती देर से।' मने ैं औरत पर निगाह डाली ..और...और फिर दिल धक सेहो गया। ये चेहरा अजनबी नहीं था। येवही चेहरा था जिसेमने ैं म ुराक़बा(ध्यान) करते ह ु ए देखा था। अच्छेबनावट का मगर सख्ती लिए ह ु ए चेहरा, ठाक ु र बौखला गया। जल्दी सेउठता ह ु आ बोला ’’हाँहाँ, बस आ ही रहेथे। अच्छा भैया फिर कभी आओ, आदमी भेजेंगे तुम्हारेपास, कभी जलपान करो हमारेसाथ अच्छा!' वो उठकर अन्दर चला गया लेकिन मेरा दिमाग चकराया ह ु आ था। वही चेहरा था, सौ प्रतिशत वही चेहरा, मंदिर की इमारत भी न4र आ गई थी और वो औरत भी। अब क्या करूँ , कै सेकरूँ , क ु छ समझ मेंनहीं आया। सराय वापस आकर भी मैंसोचता रहा और कई दिन सोचता रहा। क ु छ समझ मेंआया।
जमाल गढ़ी मेंठहरनेकी पांचवीं रात थी। मैंपरेशान था। बात किसी भी तरह आगेनहीं बढ़ रही थी। तीन दिन सेसन्नाटा था। भागभरी भी शायद दरू निकल गई थी। तीन दिन सेउसेबस्ती मेंनहीं देखा गया था। तुलसी जरूर मिलता रहता था। उदास और परेशान था। बात बात मेंसिसकने लगता था। म ुझेउसपर बह ु त तरस आता था लेकिन मेंक्या कर सकता था बेचारेके लिए। ठाक ु र कोहली राम के पास भी बह ु त सेचक्कर लगाए थे। वो अच्छा आदमी था। देखनेसेबिल्क ु ल उल्टा, तुलसी के लिए ख़ुद भी परेशान था। एक दिन कहनेलगा ’’हम उसेकिसी दसरी ू बस्ती भेज देंगे। इंति4ाम कर रहेहैं। यहां रहा तो मारा जाएगा। भगवान ना करे, और कोई ऐसा हादसा हो गया तो फिर मैं भी शायद बस्ती वालों को ना रोक सकं । ू ' रात के कोई दस ही बजेहोंगेलेकिन य ू ंलगता था जैसेआधी रात बीत चकी ु हो। जमाल गढ़ी मेंशाम सात बजेही रात हो जाती थी। पाँच छः बजेतक सारेकारोबार बंद होजातेथेऔर लोग अपनेघरों मेंजा घ ुसतेथे। बस भ ू ले- भटके म ुसाफ़िर आठ नौ बजेतक न4र आ जातेथे,और ख़ामोशी! शाम से
ही बादल घिर आए थे और इस वक़्त भी आसमान पर अंधेरा था। अल्लादीन रात के खानेके बाद म ुझेख़ुदाहाफ़ि4 कह कर अपनेकमरेमें जा घ ुसा था। वो मज़ब ूती सेसारेदरवाज़ेबंद करके सोता था और उसने म ुझसेभी कह दिया था कि क ु छ भी हो जाए, रात को उस का दरवाज़ा ना खटखटाऊ। वो दरवाज़ा नहींखोलेगा। येह ु क ु म 4ुबेदा बेगम की थी। म ुझ पर उकताहट का दौरा पड़ा था। इस वक़्त अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी। चारपाई काटनेको दौड़ रही थी। चपचाप ु उठा और सराय सेबाहर निकल आया। दरवाज़ा बाहर सेबंद कर दिया। तुलसी का घर मेंभी अंधेरा पड़ा था। यहां सेचल पड़ा। सोचा कहाँजाऊं और उस वीरान मंदिर का ख़याल आया। कोई कितना ही बहादरु हो, इस वक़्त उस मंदिर की तरफ़ म ुंह करनेके सोच ही सेख़ौफ़-ज़दा होजाता लेकिन दिल इस तरफ जानेको चाह रहा था। मैंचल पड़ा। प ूरी बस्ती कब्रस्तान बनी ह ुई थी, क ु त्तेतक नहीं भोंक रहे थे। फ़ासला कम नहीं था। बस चलता रहा। रास्ते में किसी जानदार का निशान भी नहीं न4र आया था। घनी और डरावनी झाड़ियाँ ख़ामोश खड़ी ह ुई थीं। उनके बीच सेबह ु त संभल कर ग ुज़रा था क्योंकि वहां
साँप मौज ूद थे। रात मेंतो वो न4र भी ना आतेलेकिन इस डर सेअपना इरादा नहींछोड़ सका। कोई अंजानी ताकत म ुझेवहांलेजा रही थी। अंधेरा मंदिर, अंधेरेमेंऔर भयानक न4र आ रहा था लेकिन उस के दरवाज़ेसे अंदर क़दम रखतेही ब ुरी तरह चौंक पड़ा। किसी बच्चेके सिसक सिसक कर रोनेकी आवा4 सुनाई देरही थी। वो रोतेह ु ए कह था। ’’माँ.. माँखोल दो, भगवान की सौगंध अब बाहर नहीं जाऊं गा। माँबह ु त डर लग रहा है। माँ दिया जला दो। तुम्हारी बात मानँ ू गा, बाहर नहीं जाऊं गा। माँरस्सी मेरेपैर काट रही है। माँपीठ मेंख ु जली हो रही है, खोल दो माँ!' दिल धाड़ धाड़ करनेलगा। अपनी जगह जाम सा हो गया। ख़ू न की रवानी तू फ़ानी हो गई, कनपटियां आग उगलनेलगीं। रुकना बेहतर ह ु आ, अंदर चला जाता तो पक्का था कि वो ना होता जो दसरे ू पल ह ु आ। अंदर अचानक ही उजाला हो गया था। वही दोनों मशालेंजल गई थींजो उस दिन देखी थीं। मैंफ़ौरन एक कं ग ुरे के खम्ब की आड़ में हो गया। उजालेनेअंदर का
माहौल उजागर कर दिया था और मैंइस माहौल को देख सकता था। वह म ूर्तिउसी तरह था जैसा पहलेभी देखा था। इस के पैरों के पास एक आठ नौ साला बच्चा रस्सी सेबंधा ह ु आ पड़ा था। उजाला होतेही वो सहम कर शांत हो गया था। म ूर्तिसेकोई पाँच क़दम के दरी ू पर कालेऔर ढीलेढाले कपड़ेपहनेकोई इंसान सा सर झकाए ु बैठा ह ु आ था। क ु छ दरी ू पर एक मर्द न4र आ रहा था जिसनेचेहरेपर कपड़ा बाँधा ह ु आ था। कालेकपड़ेपहने ह ु ए इंसान का चेहरा भी ढका ह ु आ था। बेहद रहस्मय और डरानेवाला माहौल था। दम रोक देनेवाला सन्नाटा छाया था। बच्चेकी सहमी आँखें घ ू म रही थीं। वो रोना भ ू ल गया था तब एक आवा4 उभरी ! "नंदा..." ’’जय देवी!' दसरी ू आवा4 उभरी। पहली आवा4 औरत की थी और मने ैं उसे फ़ौरन पहचाना ह ु आ महसूस किया था। दसरी ू भारी मर्दाना और अजनबी थी। ’’हाथ पांव खोल देउस के!'
’’ जी देवी!' मर्दाना आवा4 नेकहा। उजालेमेंएक धारदार ख़ंजर की चमक उभरी और म ुंह पर कपड़ा बाँधेह ु आ आदमी आगेबढ़कर बच्चेके पास पह ु ंच गया। उसनेएक ही पल मेंबच्चेके हाथों और पैरों मेंबंधी रस्सियाँकाट दी। बच्चा तड़प कर उठा तो मर्दनेडरावनी आवा4 मेंकहा। ’’लेटा रह, अपनी जगह लेटा रह। हिला तो गर्दन काट कर फेंक दँगा ू " डरा ह ु आ बच्चा जैसेबेजान हो गया था। वो अपनी जगह ल ुढ़क गया। काले कपड़ेवाली औरत उठ खड़ी ह ुई। वो लंबेडील डौल की मालिक थी। उसने हाथ बढ़ा कर ख़ंजर मर्द के हाथ सेलेलिया और धीरेधीरेआगेबढ़कर बच्चेऔर म ूर्ति के क़रीब पह ु ंच गई। फिर उस की भयानक आवाज में जयकारा लगाया। ’’जय, देवा...सातवींबली देरही ह ू ँ , इसेस्वीकार कर देवा, मेरी भेंट स्वीकार कर, मेरी मनोकामना प ूरी कर दे, तेरा वचन हैआख़री बली के बाद मेरी गोद हरी कर दे। म ुझेबच्चा देदेदेवा ,म ुझेबेटा देदेदेवा!'
सब क ु छ मेरी समझ मेंआ गया था। पता चल गया कि इस के बाद क्या होनेवाला हैऔर तो क ु छ समझ मेंनहीं आया। जितना भयानक आवा4 बना सकता था, बना कर चीख़ा। ''भाग भरी वो मंदिर मेंघ ुसी है, नहीं, बस पकड़ना, वो रही, वो रही।' एक छोटा पत्थर का म ूरत रखा था जो मेरी टक्कर से4ोर सेअपनी जगह सेगिरा और नीचेआकर च ूर च ूर हो गया। इस के टुकड़ों के गिर कर बिखरनेका छनाका मंदिर मेंग ू ंज उठा। म ुझेख़ुद ऐसा लगा जैसेमेरेसाथ अनगिनत लोग चीख़ रहेहैंऔर नतीजा निकल आया। औरत सेपहलेमर्द, बाहर भागा और इस के पीछेऔरत क़ु लांचेंलगाती ह ुई बाहर निकल गई। वो मशालेंजली छोड़ गए थे, अपनेअमल को और जोरदार करनेके लिए मने ैं और 4ोर 4ोर सेचीख़ना श ु रू कर दिया, रात के हौलनाक सन्नाटेमें मेरी चीख़ेंदरू दरू तक फै ल गईं। बच्चेनेदहशत सेदबारा ु रोना श ु रू कर दिया। मैंजल्दी सेउस के पास पह ु ंच गया। मने ैं उस का हाथ पकड़ा तो वो चिल्ला पड़ा। ’’मत मारो, म ुझेमत मारो,मत मारो म ुझे!'
’’उठ बेटेमैंतुझेनहींमारूं गा। उठ मैंतो तुझेबचानेआया ह ू ँ।' कोई बड़ा होता तो शायद ज़ि4ंदा ही ना रह पाता डर के मारेलेकिन बचा था, उठ खड़ा ह ु आ ’’अब बाहर नहींखेल ूंगा। म ुझेमत मारो चाचा!' ’’बिलक ु ल नहींमारूं गा। आ मेरेसाथ चल!' मने ैं उस का हाथ मज़ब ूती सेपकड़ कर दरवाज़ेकी तरफ़ बढ़तेह ु ए कहा। जानता था कि बाहर ख़तरा हैक ु छ भी हो सकता है। हो सकता हैदोनों झाड़ीयों मेंछु पेहों और अके ला पा कर हमला करें। मंदिर मेंरुकनेसेऔर ख़तरा था। आसानी सेघेर लिया जाऊं गा। किसी नेअगर ख़बर कर दी और म ुझेइस बच्चेके साथ देख लिया गया तो हालात बिगड़ सकतेथे। निकल जाना हर तरह सेबेहतर है। अल्लाह का नाम लेकर बाहर निकल आया। रात के दरू तक फै ले सन्नाटे में कोई आवा4 नहीं थी। उस वक़्त तक ख़ामोश रहा जब तक झाड़ीयों सेबाहर ना निकल आया फिर मने ैं बच्चेसे प ूछा। ''क्या नाम हैतेरा बेटे?' ’’लल्ल ू !'
’’पिता जी का नाम क्या है?' ’’गंगो!' ’’तेरा घर कहाँहै?' ’’पछाई पले!' ’’रास्ता जानता हैअपनेघर का?' ’’हाँ!' ’’यहां तुझेकौन लाया था?' मने ैं प ूछा। बच्चेनेकोई जवाब नहीं दिया तो मने ैं दबारा ु वही सवाल किया ’’माल ू म ना है।' उसनेजवाब दिया ’’तू खेल रहा था कहीं?' ’’सो रहा था।' ’’कहाँ?' ’’अपनेघर में। माता जी नेकहा था कि डायन फिर रही हैबाहर, कलेजा निकाल कर खा जाएगी। बाहर मत खेलेव। हम तो सो रहेथेचाचा!' ’’फिर तूयहांकै सेआ गया?'
’’भगवान की सौगंध हमेंना माल ू म हम तो समझेमाता जी नेपांव बांध दिए हैं। उसनेयही कहा था कि खेलनेबाहर गए तो वो हाथ, पांव बांध कर डाल देगी" मने ैं गहरी सांस ली। समझ गया था कि बच्चेको बेहोश करके लाया गया था और फिर सेवही खेल होनेवाला था जो पहलेपाँच बच्चों के साथ ह ु आ फिर छटेबच्चेके साथ और अब येसातवाँबच्चा। बस्ती मेंपह ु ंच कर बच्चेसेउसके घर का पता प ूछा और वो बतानेलगा। घर वालों को अभी तक उस की गायब होनेका पता नहीं चला था क्योंकि घर ख़ामोशी और सन्नाटेमेंडू बा ह ु आ था। दरवाज़ा ख ु ला ह ु आ था। येजरूर उन लोगों नेखोला होगा जिन्होंनेबच्चेको अग़वा किया था। मने ैं लल्ल ूसे कहा ’’तेरेघर वालों को अभी क ु छ नहीं माल ू म, जा दरवाज़ा अंदर सेबंद कर लेना। जा अंदर जा!' बच्चा अन्दर चला गया और मैंफ़ौरन वहां सेवापस चल पड़ा। मेरी आज की बेचैनी नेबह ु त अहम राज खोल दिया था। एक बच्चेकी जान बच गई
थी। मैंबह ु त ख़ु श था। यहां सराय मेंभी वही सन्नाटेकी हालत थी। किसी को ना मेरेजानेकी ख़बर ह ुई थी, ना वापस आनेकी! अपनेकमरेमेंआ गया फिर बिस्तर पर लेट कर इस बारेमेंसोचनेलगा। डायन की पहेली हल हो गईथी। भागभरी बेक़सूर थी। इस पर झूटा इल्ज़ाम लग गया था। बस्ती वालेउस के दश्मन ु हो गए थे। जो आवा4 मने ैं सु नी थी, उसेपहचान लिया था। मेरेकानो नेम ुझेधोका नहींदिया था। वह आवाज पक्का कोहली राम की बीवी की आवा4 थी। दसरा ू नाम नंदा का था जो उसका साथी था। उसके कहेह ु ए लफ्ज़ याद आरहेथे। सातवीं बली देरही ह ू ँ , मेरी गोद हरी कर दे। म ुझेबच्चा देदे। म ुझेबेटा देदे। ''तो ये क़िस्सा है। वही काला जाद, ूवही सब! कम्बख़्त औरत नेएक औलाद के लिए छः चिराग़ बझा ु दिए थे। अब सब क ु छ जान गया था। म ुझेरास्ता दिखाया गया था।
पहलेम ुझेजमालगढ़ी भेजा गया और फिर मंदिर और इस औरत की शक्ल दिखाई गई और अब सारेराज ख ु ल गए थेऔर अब इस ब ुराई का ख़ातमा करना था मगर उस के लिए क ु छ करना था। बाक़ी रात सोचों मेंबीत गई थी सुबह को अल्लादीन के साथ चाय पीतेह ु ए मने ैं कहा। ''तु मनेठाक ु र कोहली राम के बारेमेंख़ू ब कहानी सुनाई थी अल्लादीन!' ’’कौन सी कहानी भैया?' ’’यही कि वो खरा ठाक ु र नहींहै।' ’’हाँवो मगर किसी सेकहना नहीं म ुसाफ़िर भैया दश्मनी ु हो जाएगी ठाक ु र से।' ’’नहींम ुझेक्या 4रूरत है। वैसेकोई बच्चा नहींहैइस का?' ’’नहींबच्चा नहींहै।' ’’उसेचाहत तो होगी?' ’’हाँ होगी तो, प ू जा पाठ कराता रहता है। ऋषि म ु नि आते रहते हैं। ठक ुराइन गीता नंदी टोनेटोटके करती रहती हैं।'
’’ह ू ँ!' मने ैं कहा और चप ु हो गया। इस सेज़्यादा क्या कहता। अचानक मने ैं क ु छ याद करके कहा। ''येनंदा कौन है?' ’’नंदा!' ’’किसी नंदा को जानतेहो?' ’’नंदा, हाँतीन नंदा हैंजमाल गढ़ी में।' ’’कोहली राम केयहाँकोई नंदा है?' ’’जगत नंदा, हाँनंदा चमार नौकरी करता हैवहां। कोई काम हैउस से?' ’’नहींबस ऐसेही प ूछ लिया था। पता नहींबेचारेतुलसी का क्या हाल है।' ’’ब ुख़ार मेंपड़ा ह ु आ है। मैंसुबह मँ ुह-अँधेरेचाय, रोटी देआया था बेचारे को।' ’’अरेइतनी सुबह म ुझेतो पता ही ना चला जबकि मैंजाग गया था।' अल्लादीन म ुस्क ु रानेलगा। फिर बोला। ''क्या करें म ुसाफ़िर भैया औरत छोटेदिल की होवेहै। बीवी के डर के मारेऐसेकाम छु प कर कर लेतेहैं।'
’’ओह अच्छा तु म डरतेहो अपनी बीवी से?' ’’अरेक ु छ तो डरना ही पड़ेहै।' अल्लादीन नेहंसतेह ु ए कहा। मैंभी हँसनेलगा था यहां पड़ेरहनेका कोई फ़ायदा नहीं था। ऐसेही घ ू मनेनिकल गया। फिर क ु छ सोचतेह ु ए कोहली राम के घर की तरफ चल दिया। सामनेसेग ुज़र रहा था कि कोहली राम नेकहीं सेदेख लिया। एक आदमी अंदर सेदौड़ा था। ’’ठाक ु र जी ब ु ला रहेहैं।' मैंउसके साथ चल पड़ा। कोहली राम दरवाज़ेके बाद बग़ल मेंबनी डेयुढ़ी में ही था ’’आओ दारोगा जी कहाँडोलत घ ूमत हो?' ’’बस आपकी जागीर मेंघ ू म रहेहैंठाक ु र!' ’’बैठो, तु म भी हमेंमनमौजी ही लगो हो कहाँके रहनेवालेहो?' मेरेमँ ुह से ना चाहतेह ु ए भी अपनेशहर का नाम निकल गया। बड़ेदिनों के बाद ये
नाम ना जानेक्यों मेरी 4बान पर आ गया था। कह तो दिया था मगर दिल मेंऐंठन सी ह ुई थी मगर ठाक ु र मेरेहर एहसास सेबेखबर था। कहनेलगा। ''यहांबस्ती मेंकोई जान पहचान हैक्या? कै सेआना ह ु आ?' ’’बस ठाक ु र साहब ऐसेही सैर सपाटेके लिए निकल आया था। हो सकता है जमाल गढ़ी सेआगेबढ़ जाता मगर यहां जो क ु छ देखे, दिलचस्प लगेसो यहां रुक गया। मने ैं कभी कोई डायन नहीं देखी थी। बड़ा अजीब सा लगा म ुझेऔर मैंयेदेखनेके लिए रुक गया कि देखेंउस का अंजाम क्या होता है।' ठाक ु र के चेहरेपर सोच के निशान फै ल गए। उसनेकहा ’’बस दारोगा जी क्या बताएं। बस्ती पर आफ़त ही आगई है। हमारी तो कोई औलाद ही नहीं है। दिल दखता ु हैउन सब के लिए जिनके बच्चेमारे गए। समझ में नहीं आता कि भागभरी को क्या हो गया। अरे इन्सान पागल तो हो ही जाता है। उसके साथ तो ब ुरी बीती थी मगर उस के बाद जो क ु छ वो कर रही है, वो समझ मेंनहीं आता। हम तो कहतेहैंभगवान उसे
अपनी तरफ़ सेमौत देदे। बस्ती वालों के हाथ लग गई तो क ु चल क ु चल कर मार देंगे। बस्ती की औरत है। उसका पति भी ब ुरा आदमी नहींथा पर बेचारी का घर बिगड़ा तो ऐसेकि लोगों की आँखों मेंआँसू निकल आतेहैं , सोच कर!'' ’’जी ठाक ु र साहब, क्या कहा जा सकता है। वैसेठाक ु र साहब येबात तो आपको पता ही हैकि भागभरी को किसी नेयेसारेकाम करतेह ु ए नहीं देखा। मैंभी बता चका ु ह ू ँकि उस दिन वो पीठ किए बैठी थी मेरी ओर, पागल है। येभी हो सकता हैकि लाश देखकर बैठ गई हो, दिमाग़ मेंक ु छ ना आया हो।' ठाक ु र ख़ामोशी सेसुनता रहा। फिर वही ह ु आ जिसकी म ुझेउम्मीद थी और जिसका शायद इंति4ार भी था। ठक ुराइन अंदर आ गई। म ुझे देखकर ठीठकी। देखती रही और मने ैं येमहसूस किया कि उसके चेहरेपर सोच के निशान आ गए हैंलेकिन ठाक ु र साहब किसी काफी हद तक बौखला गए। जल्दी सेबोले।
''आओ ,आओ ,इनसेमिलो, बस्ती के मेहमान हैं। यहां आए ह ु ए हैंसैर सपाटेके लिए और दारोगा जी येहमारी धरम पत्नी हैं। बड़ी महान हैंये!' मने ैं गर्दन झका ु दिया। ठक ुराइन के चेहरेपर कठोरता के निशान बिखरेह ु ए थे। म ुस्क ु राना तो जैसेजानती ही नहीं थी। मने ैं ख़ुद ही कहा। ''अभी अभी ठाक ु र जी सेबातेंहो रही थीं। आपका कोई बच्चा नहींहै।' वो फिर चौंकी और म ुझेदेखनेलगी। मेरी बात का उसनेकोई जवाब नहीं दिया और ठाक ु र सेबोली ’’आज लक्ष्मी प ू जा है। क ु छ व्यवस्था क ु छ प्रबंध भी किया तु मने?' ’’अरेहमेंक्या करना हमारी ठक ुराइन जीती रहें। भला घर के काम काज में हम कभी कोई दख़ल देतेहैं।' ’’हाँबस बैठ कर बातेंबनानेलगतेहो इसके सिवाय और कोई काम करना आता हैतुम्हें!'
ठाक ु र अजीब सेअंदा4 मेंहँसनेलगा। वो पांव पटकती ह ुई वापस चली गई। ठाक ु र मेरी तरफ़ देखकर बोला ’’ दोष उस का नहींहै। पहलेऐसी नहींथी मगर औरत जब तक माँना बने, अपनेआपको प ूरा नहींसमझती। येभी अध ूरी हैऔर अपनेआपको अध ूरा ही समझती है।' ’’हाँ!हो सकता है। मैंअब चल ूं।' ’’ब ुरा तो मान गए होगे। येकहना तो बेकार हैकि ब ुरा ही ना मानेहोगे मगर माफ़ कर देना उसे, बस जो भगवान की मर्ज़ी।" अच्छा चलतेहैं।' ठाक ु र ख़ुद ही उठ गया। ठक ुराइन के अंदा4 सेयेपता चल गया था कि उसके दिमाग मेंमेरेलिए कोई ख़ास बात 4रूर गँ ू जी है। मैंख़ुद भी यहां बेवजह ही आया था लेकिन अब दिन के उजालेमेंएक-बार फिर उसेग़ौर से देखा था, उस की आवा4 सु नी थी और हर तरह का शक मिट गया था। मंदिर मेंइस के इलावा और कोई हो ही नहीं सकता था। मैंवहां सेबाहर निकल आया। समझ मेंनहींआ रहा था कि अब क्या करना चाहीए। घ ूमता
फिरता खेतों की तरफ निकल आया। बाजरा पक रहा था और खेतों के मालिक " हा हौ'' की आवा4ेंनिकाल रहेथे। मैंएक जगह सेजा रहा था कि खेतों की मेंढ़ के पीछेसेएक लंबा चौड़ा आदमी बाहर निकल आया और इस तरह मेरेसामनेखड़ा हो गया जैसेमेरा रास्ता रोकना चाहता हो। वो कड़ी नज़रों सेम ुझेघ ूर रहा था। मैंदो क़दम आगेबढ़कर उस के सामनेगया। ’’कोई बात हैभाई?' मने ैं उससेसवाल किया ’’तु म अल्लादीन की सराय मेंठहरेह ु ए हो ना ?" उसनेसवाल किया ’’हाँ!' ’’तुलसी का घर तुम्हारेसामनेहै?' ’’हाँ,अल्लादीन नेयेबताया था।' ’’भागभरी तो नहींआई वहां?' उसनेप ूछा ’’नहीं, क्यों?' ’’बस इस लिए प ूछ रहा ह ू ँकि तुम्हें इस बात की जानकारी होगी, सारी बस्ती भागभरी की तलाश मेंलगी ह ुई है। वो पापी औरत डायन बन गई है।
मैंभी उसी की तलाश करता फिर रहा ह ू ँ , सभी के बाल बच्चेहैंम ुसाफ़िर तुम्हारा बस्ती मेंरहना अच्छा नहीं है। कहीं कोई नक़्सान ु ना पह ु ंच जाये तुम्हें!' मैंहँसनेलगा। मने ैं कहा। ''क्या भागभरी मेरा भी कलेजा निकाल कर खा जाएगी" ’’नहींऔर कोई बात हो सकती है। पिछली रात तु म प ुरानेमंदिर की तरफ़ क्यों गए थे?' एक पल के लिए मेरेदिमाग मेंसनसनाहट पैदा हो गई। मने ैं उसेग़ौर से देखा और बोला। ''मैंऔर मंदिर में...नहीं भाई, मैंम ुसलमान ह ू ँ। तुम्हेंइसी सेअंदा4ा हो गया कि मैंअल्लादीन की सराय मेंठहरा ह ू ँ। मेरा भला मंदिर मेंक्या काम और येप ुराना मंदिर हैकहाँ?' ’’उधर सीधेहाथ पर खेतों के बीच बीच चलेजाओ, काफ़ी दरू जाकर प ुराना मंदिर न4र आता है। बह ु त प ुराना मंदिर है। भ ूत प्रेत का बसेरा है। कोई नहींजाता उस तरफ़ मगर मने ैं तो रात को तुम्हेंउधर देखा था।'
’’भ ू ल ह ुई होगी तुमसेमैंतो आज तक उस तरफ़ नहीं गया लेकिन कभी देखू गा ँ 4रूर जाकर येप ुराना मंदिर हैकै सी जगह!' ’’भ ू ल कर भी ना जाना। भ ूत बह ु त सेलोगों को मार चके ु हैं।' ’’तुम्हारा श ुक्रिया मगर तुम्हें ,मेरा मतलब है, येख़्याल कै सेआया कि मैं तुम्हेंभागभरी के बारेमेंबताऊं गा?' ’’बस ऐसेही म ुझेशक ह ु आ था कि रात को मने ैं तुम्हेंहनू मान मंदिर की तरफ़ जातेह ु ए देखा है।' वो चला गया। मेरे होंटों पर म ुस्क ुराहट फै ल गई। मतलब उन लोगों को म ुझ पर शक हो गया है, लेकिन अब म ुझेप ूरा प ूरा यक़ीन हो गया था कि इन वारदातों के पीछे ठक ुराइन ही है। सराय पह ु ंचा तो अल्लादीन कहने लगा ’’गंगो और जनक राम दो दफ़ा आ चके ु हैंतुम्हेंप ूछतेह ु ए, ना जानेक्या बात है। कह गए हैंकि जैसेही तु म आओ, मैंतुम्हेंगंगो के घर लेआऊं । म ुझेयाद आ गया कि बच्चेनेअपनेबाप का नाम गंगो ही बताया था। मने ैं एक पल मेंही फ़ै सला कर लिया कि अब म ुझेयेबात खोल देना चाहीए।
इस के इलावा चारा नहीं था। गंगो और जनक राम नेहमारा बेहतरीन स्वागत किया था। गंगो नेसीधेसीधेबच्चेको मेरेसामनेला खड़ा किया और बच्चेनेगर्दन हिलातेकहा। ’’यही थेबाप ू !' ’’तु मनेमेरेबच्चेको बचाया हैम ुसाफ़िर भैया येएहसान तो मर कर भी ना भ ू लेंगेहम , मगर तुम्हेंयेतो पता चल गया होगा कि भेद किया है?' गंगो ने कहा। अल्लादीन हैरत सेसब क ु छ देख रहा था। बोला। ''अरेहमेंतो क ु छ नहींपता, क ु छ हमेंभी तो बताओ।' जवाब मेंगंगो नेउसेप ूरी श ु रू सेबताई और बोला। ''येकाम तो देवता ही करेंहैं। म ुसाफ़िर भैया हमारेलिए तो देवता ही हैं। नहीं तो हम भी गए थेकाम से,छोरा नेइन्हेपहलेभी देखा था, पहचान लिया। उसनेहमेंसारी कथा सुनाई। इन्होंनेतो देवताओंही जैसा काम करा था ख़ामोशी से, एहसान तक ना जताया हम पर!'
’’दोस्तो...तु मनेम ुझ पर भरोसा कर ही लिया हैतो म ुझे4बान खोलनी पड़ रही है। बे-चारी पागल भागभरी को बिना वजह ही डायन समझ लिया गया है। असल डायन कोहली राम की बीवी गीता नंदी है। म ुझेउस के डायन बननेकी वजह भी माल ू म हो गई है। पिछली रात मेंबेचैन हो रहा था इस लिए टहलता ह ु आ प ुरानेमंदिर जा निकला और वहां मने ैं येखेल देखा। क़िस्सा येहैकि गीता नंदी के यहाँऔलाद नहींहोती जिस के लिए वो जाद,ू टोनों का सहारा लेरही है। अपनी चाहत प ूरी करनेके लिए उसनेछः बच्चों की क़ु र्बानी देदी हैऔर सातवेंक़ु र्बानी आख़िरी होगी। मैंअके ला था वर्ना उसेउसी जगह पकड़ लेता, इस लिए मने ैं बच्चेकी जान बचानेके लिए शोर मचा दिया और वो भाग गई फिर मेरेलिए येसाबित करना भी म ु श्किल हो जाता , तु म लोग एक बात 4रूर दिमाग़ मेंरखो, वो सातवेंक़ु र्बानी के लिए दबारा ु कोशिश करेगी।' मेरेइस बात सेसनसनी फै ल गई थी। वो फटी फटी आँखों सेम ुझेदेख रहे थेफिर जनक राम नेकहा
’’म ुसाफ़िर भैया ठीक कहतेहैं। बात समझ मेंआ गई, बिलक ु ल समझ में आ गई। ठक ुराइन बड़ी टोटकन है, येतो हमेंपहलेही माल ू म था मगर वो डायन ऐसा करेगी, येनहींसोचा था। अरेहोगी ठक ुराइन अपनेघर की, हम उस का दिया खावेंहैंक्या? चलो गंगो!ओ जमा करो सबको, लठियाँलेकर चलो, मार मार भेजा निकाल देंगेउस का, देखा जाएगा जो होगा। कोई दबै ह ु ए नहींहैंहम। उट्ठो सारों को बता देंजिनके कलेजेछिन गए हैं। देख लेंगे सबको" ’’अगर तु म मेरी बात सु न लो तो अच्छा है।' मने ैं कहा ’’बोलो म ुसाफ़िर भैया!' ’’देखो येबात मने ैं तुम्हेंबताई है। ठाक ु र कह देगा म ुसाफ़िर झूट बोल रहा है, फिर क्या करोगे?" ’’अरेहमारा छोरा बता देगा। हम उसेलेचलेंगे" गंगो नेकहा ’’मेरी क ु छ और राय है। तु म उसेप ुरानेमंदिर मेंपकड़ो उस वक़्त जब वो ये काम कर रही हो। नंदा चमार उस के लिए बच्चों को उठाता है। तुम्हेंकिसी ऐसेबच्चेको छोड़ना पड़ेगा जिसेनंदा उठा ले। हम सब होशयार होंगे, नंदा
पर न4र रखेंगे। जैसेही नंदा इस बच्चेको उठाएगा, हम उस का पीछा करेंगेऔर ऐन उस वक़्त दोनों को पकड़ेंगेजब वो अपना काम कर रहेहोंगे ’’और अगर चक ू हो गई तो?' जनक राम बोला ’’चक ू होगी कै से? बड़ा अच्छा राय दिया हैये,फिर कोई क्या बोलेगा" अल्लादीन नेकहा ’’येसब तो ठीक हैमगर बच्चा कौन सा होगा ?' ’’मेरा बच्चा होगा, मेरा कल्ल ूहोगा।' अल्लादीन सीना ठोंक कर बोला और मैंचौंक कर उसेदेखनेलगा। अल्लादीन नेकहा। ''अरेहम म ुसलमान हैं , अल्लाह पर भरोसा हैहमें , जो क ु छ होता है, उस की मर्ज़ी सेहोता है। पीछा तो छूटेइस डायन सेसारी बस्ती म ुसीबत में फं सी है। मैंतैयार ह ू ँम ुसाफ़िर भैया!' ’’हम सब जान लड़ा देंगेकल्ल ू के लिए फ़िक्र मत कर अल्लादीन भैया!' जनक राम नेकहा। इस तैयारी के बाद इस प्लान की नोक पलक सँवारी जानेलगी। आख़िर मेंतमाम बातेंतैहो गईं। इस सनसनीखे4 काम का श ुरुवात आज ही रात होनेवाला था।
काला जाद ू 54--- गंगो और जनक राम के अंदा 4 से यूं लगता था जैसे वो सारे काम आज ही निपटा लेना चाहते हों ले किन म ुझे भरोसा नहीं था कि गीता नंदी आज ही दबारा ये को ु शिश करेगी। अगर हमारे अंदा4ेबिलक ुल सही थे और वही इन वारदातों के पीछे थी तो उसने इस काम म ेंजल्दबा4ी नहीं की थी। देवता के चरणों म ेंउसने छः बच्चों की बलि दी थी। इन लोगों से बात चीत में इन वारदातों के बीच के दिनों माल ूम कर चुका था। उनमेंदिनों की कोई गिनती नहीं थी। उसे जब भी मौक़ा मिला था उसने ये काम कर डाला था लेकिन अब की बार शायद पहली बार उसे नाकामी का सामना करना प ड़ा था। इस के इलावा वो चालाक भी थी। ना जाने उसे म ुझ पर शक कै से हु आ था या फिर हो सकता हैकि उस आदमी ने अंधेरे मेंतीर फेंका हो। वो नंदा ही था। ख़ुद जितना चालाक था, इस का अंदा 4ा उस की बात से हो गया था। उसने कहा था कि उसने मुझे पुराने मंदिर के पास देखा था। उस से ये प ूछा जा सकता था कि वो ख़ुद वहां क्या कर रहा था। अब ये तो मुझे ही माल ू म था कि वो वहां क्या कर रहा था। गंगो के घर से वापसी पर अल्लादीन ने कहा। ’’वाह म ुसाफ़िर भैया। इतना बड़ा काम कर लिया और हमेंख़बर भी ना दी?।' ’’कोई इतना बड़ा काम भी नहीं था अल्लादीन। '
’’बेचारे गंगो के बेटे को डायन के म ँ ुह सेनिकाल लिया और कहते हो बड़ा काम ही नहीं किया।' ’’अल्लाह को उस की ज़ि4ंदगी बचानी थी, वो बच गई। म ैंक्या और मेरी औक़ात क्या' ’’मगर इत्ती रात गए त ुम उधर निकल कै से गए थे?।' ’’बस दिल बेचैन हो रहा था। सोचा 4रा घूम आऊं ।' ’’इत्ती दरू!?, प ुराना मं दिर कोई यहां धरा है। भैया बड़े दल गुर्दे का काम है। हिम्मत वाले हो और फिर हमेंतो क ुछ और ही लगे है।' ’’पीर फ़क़ीर लगो हो हम ें तो। रातों को नमाज़ पढ़ते देखा है तुम्हें।' अल्लादीन भोलेपन से बोला ’’तौबा करो अल्लादीन , तौबा करो। म ैंउनके क़दमों की धूल भी नहीं ह ू ँ!' ’’अरे त ुमने हमसे नंदा का नाम पूछा था?' ’’हाँ, प ुराने मं दिर का सब बात तुम्हेंमाल ूम हो चुका है। मने ैं बिना वजह उन दोनों का नाम नहीं ले दिया है।' मने कहा और अल्लादीन सोच म ैं ेंडूब गया। फिर बोला। ''सो तो है। एक काम त ुमने गंगो के बेटे को बचा कर करा, दसरा बड़ा काम ू और कर रहे हो भैया। बह ु त बड़ा।' ’’वो क्या?' ’’अरे त ुमने भागभरी का जीवन बचा लिया, तुलसी बेचारे को बचा लिया।' ’’ये लोग भी अजीब ह ैं। अपनी अक़ल से क ुछ नहीं सोचते।कल तक भागभरी और त ुलसी की जान के दश्मन हो रहे थे। एक पल म ु ेंही पलट
गए। अगर म ैंना रोकता तो शायद सोचे समझेबिना लाठीयां लेकर चढ़ दौड़ते म ु खिया के घर पर।' ’’ब ुरे नहीं ह ैंम ुसाफ़िर भैया। दिन रात परेशान हो रहे हैं। बच्चों को छु पाए छु पाए फिर रहे हैं। क्या करेंआख़िर औलाद से बढ़कर कौन होवे है। इसके लिए पागल हो रहे ह ैं।' ’’म ुझे एक डर है। ' ’’क्या?' ’’वक़्त से पहले 4बान ना खोल दें? वो होशयार ना हो जाये ?अगर ऐसा ह ु आ तो फिर उसे पकड़ना मु श्किल होगा" ’’समझा तो दिया है। इतने बावले नहीं हैं। सारी बात समझा दी है उन्हें।' ’’इस के इलावा अल्लादीन , 4ुबेदा बहन तो कल्ल ूको सीने मेंछुपाए छु पाए फिरती हैं , तुम उसे इस ख़तरे मेंडाल दोगे?" ’’अल्लाह पर भरोसा कर ेंगे भैया। कौन तैयार होता?। बस्ती के बच्चे मर रहे हैं , सब ही अपने ह ैं , वो भी जो मारे गए अपने ही थे। ' ’’4ुबेदा बहन तैयार हो जाएँगी ?" ’’वो औरत है , माँ है। उस से चार -सौ बीसी करनी होगी कोई। हम यही सोच रहे थे।' अल्लादीन के ज 4बे को मने सराहा था। ैं ख़ुद भी चौकन्ना रहने का वादा किया था। इस के इलावा और क ुछ समझ मेंनहीं आ रहा था, मामला ही ऐसा था। शाम होते ही अल्लादीन कल्ल ूको लेकर बाहर निकल आया। ना जाने उसने बीवी से क्या कहा था। बाहर निकलते ह ु ए उसने मुझे आँख से
इशारा कर दिया था, में भी होशियारी से चुपचाप बाहर निकल आया और सीधे रास्ते पर चल प ड़ा। काफ़ी दर जाने पर अल्लादीन म ू ुझेमिल गया, । ’’क्या कहा 4बेदा बहन से ु ?' मने सवाल ैं किया ’’अरे भैया देहाती औरत ेंदेहाती ही होवे हैं , बस मियां ने जो क ुछ कहा, मान लिया, हमने भी बड़ी चार -सौ बीसी करी। कल्ल ूको चलते ह ु ए देखा तो हमने आँखें फाड़ दी और ऐसा मँ ुह बना लिया जैसे हमरी जान निकल गई हो। वो सामने ही बैठी थी , हमसे प ूछने लगी क्या ह ु आ, तो हमने उसे कान म ें बताया कि कल्ल ूके पैर लड़खड़ा रहे हैंऔर लगता है लक़वा मार जाएगा, भैया डर गई। आँखों म ेंआँसूभर आए। हमने उस से कहा कि कोई ऐसी बात नहीं है , बच्चे अगर खेलें क ूदेंनहीं तो ऐसा ही हो जाता है। एक डाक्टर साहब आए थे एक द फ़ा हमरी बस्ती में , पता नहीं क्या कह रहे थे , वो पोलो पोलो का मरज , कोई मरज होवे है का ?'' ’’पोलीयो का?' ’’हाँ... हाँ बिलक ुल वही, वही तो डाक्टर साहब कह रहे थे कि बच्चों को ये करना चाहीए, वो करना चाहीए , हमने उसे वही याद दिला दिया, डर गई। कहने लगी कि अब क्या करें। बाहर खेलने देने का मतलब ये हैकि ज़ि4ंदगी को ख़तरा हो जाये। हमने कहा हम क्या मर गए हैं , हम ख़ुद साथ ले जाऐंगे, खेलने क ूदने के लिए छोड़ देंगे रो-रो कर कहने लगी। 4रा ख़याल रखियो हमने कहा बावली वो तेरा ही बेटा है क्या। हमारा क ुछ नहीं लगता?। यू ं बहला फ ुसला कर निकाल लाए।'
म ैंहँसने लगा। फिर मने कहा ैं ’’वैसे त ुम बह ुत हमदरद इन्सान हो अल्लादीन, बह ु त बड़ा ख़तरा मोल ले रहे हो।' ’’भैया सच्ची बात बताएं त ुम्हेंबस्ती के रहने वालेहिंदूहो या मुस्लमान सारे के सारे एक द सरे का द ू ख अपना ही द ु ख समझे ह ु ैं। हम भी कोई उनसे अलग थोड़ी ह ैं , अरे सत्यानास हो इस ठक ुराइन का, अपने यहाँ औलाद नहीं ह ुई, एक बेटा हो गया मान भी लिया जाए टोनों टोटकों से तो सात माओं की गोदें उजाड़ेगी वो, अरे वो इन्सान ही है ना। जी तो हमारा भी यही चाहवे है भया कि कच्चा चबा जावेंइस ससुरी को दाँतों से, नरकिनी कहीं की , ऐसी ना होती तो माता पिता घर से बाहर निकाल कर यू ं जमाल गढ़ी मेंक्यों फेंकवा देते, पता नहीं कहाँ से आ गई डायन हमारी बस्ती म ें , हमारा तो जी चाहे है कि ठाक ु र को सारी बातेंबता देंऔर उससे कहेंकि अब बोल, क्या कहवे है, मगर वही त ुम्हारी बात सच्ची हैकि वो म ुकर जाएगी। बिलक ु ल ठीक कहा है त ुमने सबकी समझ मेंबात आ गई। रंगे हाथों पकड़ेंतो फिर देखें कि कै से मुकरती है अरे भेजा बाहर निकाल देंगे उस का, वहीं तोड़- मरोड़ कर फेंक देंगे हरामख़ोर को।' अल्लादीन चलता जा रहा था। म ने उससे कहा। ैं ''बाक़ी लोगों से म ुलाक़ात तो नहीं ह ुई होगी?' ’’सब के सब लगे होंगे भैया। माल ूम है हमें , प ूरी बस्ती की म ुसीबत है, किसी एक आदमी की तो नहीं है "
और अल्लादीन का कहना सच ही निकला था। जनक राम और गंगो साथ ही थे। दो आदमी और भी उनके साथ थे। जनक राम ने इधर उधर देखा और फिर पास से गुज़रते कहा। ’’अल्लादीन भैया त ुम्हारी ये बात बस्ती वालों को जीवन भर याद रहेगी, ले आए कल्ल ू को?' ’’हाँ भैया, कोई ऐसी बात नहीं है , जो छः बिछड़ गए हैंहमसे, हमारी क्या मजाल थी कि उन्हेंबचा लेते, अल्लाह की म र्ज़ी थी मगर अब किसी और को ना बिछड़ने देंगे, अल्लाह करे हमरा कल्ल ूसही सलामत से रहे मगर काम तो करना ही था ना किसी को, हाँ बस त ुम एक बात बता दो?' ’’प ूछो अल्लादीनभैया।' गंगो बोला ’’समझा ब ुझा दिया है सबको, अरे कहीं कोई 4बान ना खोल दे, ठक ुराइन होशयार हो जाएगी और इस के बाद उल्टी गले पड़ जाएगी , कौन मानेगा?" ’’इस की तो त ु म चिंता ही मत करो भैया। देखो असल बात बस उन लोगों तक पह ुंचाई हैजिनके सीनों मेंआग लगी ह ुई है। मतलब समझ गए होगे और उनसे कह दिया हैकि जब पहरे पर निकलें तो सबसे यही कहेंकि भागभरी की तलाश हो रही है और कोई बात नहीं है। सबको अच्छी तरह बता दिया है और ये भी समझा दिया है उन्हेंकि कहीं से बेचारी भागभरी मिल भी जाये तो उसे कोई न क़्सान ना पह ु ु ंचाएं। अरे वैसे ही बड़े पाप हो चके ह ु ैंहमसे, एक बे 4बान को सताया है हमने। बावली तो थी ही बेचारी क्या करती, बोल भी तो नहीं सकती अपने बारे म ें। हरे राम हरे राम। वैसे अब किधर का इरादा है?'
’’मेरा ख़याल है नज्जो की बगिया ठीक रहेगी। पुराने मंदिर का रास्ता भी उधर ही से पड़ता है। ' फिर अल्लादीन ने आँख दबाई , कल्ल ू को क ुछ नहीं बताना चाहता था। फिर उसने कान मेंकहा। ''और नंदा का क्या -किया है त ु म लोगों ने?' ’’इस की त ु म बिलक ु ल चिंता ना करो। लछमन और शंकर उस पर न4र रख रहे ह ैं। लछमन के बारे मेंतो तुम्हेंपता हैकि नंदा का यार है मगर इस मसले म ेंउसने सारी यारी ख़तम कर दी। लछमन, शंकर को इशारे देगा। साफ बात है कि नंदा जब इस तरफ़ आएगा तो लछमन को पता चल जाएगा। सारे काम पक्के ह ैंभैया जो क ु छ तुम कर रहे हो। 4ाहिर है हम इस में कसर थोड़ी छोड़ेंगे।' खैर ये लोग अपनी अपनी जगह हो शियार थे, में और अल्लादीन आगे बढ़ गए। जनक राम वग़ैरा द सरी तरफ म ू ुड़ गए थे। जिस जगह को नज्जो की बगिया कहा गया था , वो एक छोटा सा बाग़ था , आमों के पे ड़ लगे ह ु ए थे। कल्ल ूतो आमों के को देखकर ही मचलने लगा। ’’अब्बा कै री खाल ू ं?' ’’अरे हाँ हाँ जा म ज़े कर। घू म फिर, कोई बात नहीं है। ' बच्चा था। ख़ु शी ख़ुशी आगे बढ़ गया और इस के आगे बढ़ते ही अल्लादीन के चेहरे पर फिकर न4र आने लगी। उसने कपकपाती आवा4 मेंकहा। "भैया 4रा ध्यान रखियो, अल्लाह के हवाले कर दिया है पर क्या करेंबाप का दिल है, डरता तो है ही। '
’’जगहें बदल लो अल्लादीन। तुम एक तरफ़ हो जाओ। मेंएक तरफ़ ह ु आ जाता ह ू ँ।' मने कहा। और ैं फिर सच मेंहम लोगों ने बड़ी महारत से कल्लू को न4र में रखा था शाम के झ ुटपुटे अंधेरे मेंबदल गए। कल्लू मज़े से कैरियां तोड़ तोड़ कर खा रहा था। बह ु त दिन के बाद बाहर निकलने का मौक़ा मिला था, खेलने से जी ही नहीं भरता था। फिर जब अच्छी ख़ासी रात हो गई और कुछ भी नहीं ह ुआ तो अल्लादीन ने सीटी बजाई। म ैंजवाब मेंउस के पास पह ु ंच गया। अल्लादीन बोला। ''क्या ख़याल है भैया,और इं ति4ार करें?' ’’मेरा ख़याल है, अब बेकार है मगर अब ये काम कल शाम से ही श ुरू हो जाना चाहीए। रात को करते ह ैंतो उन लोगो को शक हो सकता हैकि आख़िर इतनी देर तक इन हालात म ेंकल्ल ूबाहर कै से मौजूद है।' ’’ठीक कहते हो म ुसाफ़िर भैया। तुम्हारा दिमाग़ बह ु त ते4 है।' आखिर म ेंह ु आ येकि हम वापस चल पड़े। सराय मेंएक एक कर के कई आदमी आए। सलाह मशवरे ह ु ए और येसिलसिला जारी रखने का फ़ै सला कर लिया गया। फिर दसरे ू दिन शाम के चार बजे ही कल्लूको बाहर ले आया गया। शाम तक इंत 4ार किया गया। आज और भी ज्यादा होशियारी बरती गई थी। मेरे दिल मेंमाय ूसी पैदा होती जा रही थी, कहीं ऐसा ना हो कि वो होशयार हो गई हो और अब अपना तरीका बदल दे। वैसे जनक राम, गंगो और द सरे क ू ु छ लोगों की 4बानी म ुझे ये भी मालूम ह ु आ था कि क ु छ
लोगों ने प ुराने मंदिर के आस पास ही डेरे डाल रखे हैंऔर ऐसी जगहों पर छुप गए ह ैंजहां से आने जाने वाले पर न4र रखेंऔर उनके बारे मेंकिसी को पता ना लगे। ये खबर भी तसल्ली देने वाली थी और तीसरे दिन वो हो गया जिसके लिए पिछले दो दिनों से इतना सब कु छ किया जा रहा था उस व क़्त कल्लू कैरियां तोड़ तोड़ कर खा रहा था। ये जगह उसे बह ु त पसंद थी। आते ह ुए उसने कई दसरे बच्चों को भी दावत दी थी मगर बच्चे उसे ू हैरान निगाहों से देखते ह ु ए अपने अपने घरों मेंजा घ ुसे थे। किसी ने कल्लू का साथ देने का इरादा दिखाया तक नहीं था इसलिए वो ख़ुद ही यहां आ गया था। म ैंऔर अल्लादीन एक पेड़ पर चढ़े ह ु ए थे। कल्लूको पता नहीं था कि हम पेड़ पर हैं। वो इस पेड़ सेसिर्फ दो तीन गज़ के दरी पर कै ू रियां इकट्ठी कर रहा था कि तभी अचानक ही अल्लादीन ने मेरे कान मेंकहा। ’’म ुसाफ़िर भैया...।' अल्लादीन की आवा 4 काँप रही थी। मने उस तरफ़ ैं देखा जिधर उसने इशारा किया था। एक न4र मेंपहचान लिया, नंदा ही था, वो इसी ओर चला आ रहा था। कम्बल ओढ़े ह ु ए था लेकिन सिर्फ काँधों तक जब कि मौसम कम्बल का नहीं था। मेरे चेहरे पर ख़ू न सिमट आया। नंदा धीरे धीरे चलता ह ु आ कल्ल ूके पास पह ुंच गया।इधर उधर नज़रेंदौड़ाई थीं और कल्ल ूके पास जा खड़ा ह ु आ ’’अरे त ूअल्लादीन का छोरा है ना?' ’’हाँ नंदा चाचा म ुझे नहीं पहचानते?' ’’क्यों नहीं, मगर यहां अके ला क्या कर रहा है ?' ’’कैरियां च ुन रहा ह ू ँ।'
’’अच्छा अच्छा त ुझे अके ला छोड़ दिया अल्लादीन ने तुझे पता हैकि बस्ती में डायन घूमती है।' ’’डायन क्या होती है नंदा चाचा ?' ’’कितनी कै रियां जमा कर लिया तू ने?' ’’बस ये ह ैं।' ’’और जमा करेगा ?" ’’बस थोड़ी सी और जमा करू ँगा फिर तो रात होने ही वाली है।' ’’हाँ ये तो है। चल ठीक है और जमा कर ले। वो देख वो पे ड़ के नीचे पड़ी ह ुई हैं।' ’’किधर?' कल्ल ू ने मासू मियत से पूछा और उस ओर देखने लगा और इसी वक़्त नंदा ने कं धे पर प ड़ा कम्बल कल्ल ूपर डाल दिया और उसे दबोच लिया। अल्लादीन के म ुंह से आवा4 निकलने ही वाली थी कि मने उस का ैं मँ ुह दबा लिया। अल्लादीन का बदन ठंडा पड़ गया था। नंदा,कल्ल ू को दबोचे ह ु ए था और कल्लू कम्बल मेंहाथ पांव मार रहा था। अल्लादीन ने कान म ेंकहा। ''बब ्..भ...भैया..। कक कहीं दम ही ना निकल जाये मेरे बच्चे का।' ’’नहीं। वो लोग बच्चों को ज़ि4ंदा रखते हैं।' अल्लादीन की आवा 4 ब ुरी तरह कपकपा रही थी। म ने उस के बदन म ैं ेंथरथरी महसूस की और मेरा दिल दखने लगा। ु फिर भी सारी बातों को भूल कर मैंभी होशियार हो गया था। नंदा, कल्ल ू को कं धे पर डाल कर ते4ी से पुराने मंदिर के रास्ते की तरफ
चल प ड़ा। मैंऔर अल्लादीन नीचे उतरे ही थेकि लछमन और शंकर पह ु ंच गए। उन्होंने धीमी आवाज म ेंकहा। ’’सारी ख़बर थी हम ें , काम हो गया ना , मगर चिंता ना करना अल्लादीन भैया, बीस आदमी ह ैंमंदिर के आस-पास। सारे के सारे लंबे लंबे चक्कर काट कर वहां पह ु ंच चके ह ु ैं। एक एक जगह पर न4र रखी जा रही है, और तो और दो तीन तो मं दिर के अंदर भी छिप कर बैठे हैंऔर क ु छ खंभों के बीच छिपे ह ु ए हैं। जैसे ही नंदा उस तरफ़ चला, लछमन ने म ुझे ख़बर कर दी और इस का पीछा करने लगा। म ने उन सारे आदमीयों को बता ैं दिया है जो ताक म ेंलगे ह ु ए हैं , तो परवाह मत क रियो अल्लादीन भैया। बाल बांका नहीं होगा हमारे कल्ल ूका। पहले हमारी जान जाएगी।' ’’अरे भैया ख़ुदा करे, इस डायन से हमारा पीछा छ ूट जाये बस। चलें?' ’’एक एक कर के इधर उधर घ ूम कर। नंदा बड़ा चालाक है और सुनो बात अभी यहीं ख़तम थोड़ी ह ुई है। चलो चलो हम भी चल रहे हैं।' जनक राम ने साथ चलते ह ु ए कहा। हम लोग बड़ी होशियारी से नंदा पर नजर रखे ह ु ए चल रहे थे, वो भी फ ू ं क फ ूं क कर क़दम उठाता ह ु आ मंदिर की तरफ़ जा रहा था। जनक राम ने कहा ’’म ु खिया जी की हवेली पर भी पहरा लगा ह ु आ है और सारे लोग निगरानी कर रहे ह ैं। जैसे ही गीता नंदी बाहर निकलेगी उस की भी ख़बर हमेंमिल जाएगी "
हम इस तरह बात ेंकरते ह ु ए आगे बढ़ते रहे। शाम ते4ी से रात मेंबदल गया था। नंदा मं दिर मेंदाख़िल हो गया था। हमारेदिल धक धक कर रहे थे। अल्लादीन बेचारा तो अभी तक थर -थर काँप रहा था। उसका चेहरा पीला पड़ गया था। य ूं लग रहा था जैसे उस के बदन का सारा ख़ू न निचोड़ लिया गया हो। आवा 4 भी इतनी मद्धम हो गई थी उस की कि म ुझे हैरत हो रही थी। नंदा तो मं दिर मेंदाख़िल हो गया। मैंऔर अल्लादीन मंदिर के बिलक ु ल क़रीब दीवारों के साथ चिपके ह ु ए आगे बढ़ गए। अचानक अल्लादीन ने एक तरफ इशारा करते कहा। ’’इधर इधर देखो। ' मने अल्लादीन का इशारा समझ ैं लिया। मंदिर का इस तरफ का हिस्सा टूटा ह ुआ था। ईंटेंएक दसरे पर ढेर की शकल म ू ेंपड़ी ह ुई थीं और एक बड़ा सा स ुरंग के मुहाने जैसा छेद था। मैंख़ुशी से उछल पड़ा। ये तो मंदिर में अंदर जाने का रास्ता भी हो सकता था। म ैंबिलक ु ल सधेक़दमों से आगे बढ़ा। अल्लादीन से फ ुसफुसा कर के मने उसे भी हो ैं शियार रहने के लिए कहा और अल्लादीन ने ग र्दन हिला दी। हम लोग एक एक इंच सरक रहे थे कि कहीं कोई ईंट अपनी जगह से सरक ना जाये और नंदा होशयार ना हो जाये ले किन एक बात और भी थी कि अगर नंदा होशयार हो गया तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा , वो भागने की को शिश करेगा लेकिन जितने लोगो की खबर मिली थी कि वो मंदिर के पास और मंदिर मेंछिपे ह ु ए हैं , वो
उसे भागने कहाँ द ेंगे। कोई और तरीक़ा ऐसा हो नहीं सकता कि गीता नंदी को यहां के बारे म ेंपता चल जाये। टूटे ह ु ए हिस्से से हो कर हम मंदिर के एक पतले सेहिस्से मेंपह ु ंच गए और इस पतली सी राहदारी म ेंजहां कूड़ा करकट के अंबार लगे ह ु ए थे और चहे इधर उधर दौड़ रहे थे। आगे ब ू ढ़ते ह ु ए हम सामने के हिस्से मेंपह ु ंच गए जहां से थो ड़ी सी दरी तै कर के उस इलाक़े म ू ेंपह ु ंचा जा सकता था जहां वह म ूर्ति लगा ह ु आ था। मने अल्लादीन के कान से म ैं ँ ुह जोड़ कर धीरे से कहा। ''देखो अल्लादीन भैया , 4रा सी भी कम 4ोरी दिखाई तो सारी क़ु र्बानी बेकार जाएगी, सँभल कर रहना। ' ’’ठीक है, ठीक है।' अल्लादीन ने कहा और हम खंबों की आड़ लेते ह ु ए एक ऐसी जगह पह ु ंच गए जहां से सामने न4र डाली जा सकती थी लेकिन हमारे पीछे के खंबे म ेंभी क ु छ लोग छुपे थे। थोड़े दरी पर क ू ुछ सरसराहटें सुनाई दी थीं। इस का मतलब है कि वो लोग प ूरी तरह होशयार हैं। नंदा मज़े से बैठा बी ड़ी पी रहा था और मूर्तिके क़दमों मेंकल्ल ू पड़ा ह ु आ न4र आ रहा था। इस के हाथ पांव बंधे ह ु ए थे। आँखेंख ुली ह ुई थीं और इस की मद्धम मद्धम आवा 4 सुनाई दे रही थी। हमने इस आवा4 पर कान लगा दिए। कह रहा था ’’नंदा चाचा। नंदा चाचा छो ड़ दो मुझे,क्यों ले आए हो यहां। नंदा चाचा ये मेरे हाथ पांव , ये मेरे हाथ पांव क्यों बांध दिए हैंतु मने?' ‘‘आवा4 बंद कर। नहीं तो छुरी फे र दँगा तेरी ग ू र्दन पर जैसेकि रमज़ान, बकरे की ग र्दन पर छुरी फे रता है, बात समझ म ेंआई।'
’’नहीं नहीं नंदा चाचा छो ड़ दो मुझे, छोड़ दो मुझे चाचा।' ’’अरे च ुप होता है या नहीं" नंदा ने सच -म ु च अपने कप ड़े मेंसे वो ख़ंजर निकाल लिया जिसका मेंपहले भी दीदार कर च का था। अल्लादीन ने दोनों हाथ आँखों पर रख ु लिए थे। मने उस के कं धे पर धीमे धीमे थप ैं कियाँ दी और वो ऐसी निगाहों से मुझे देखने लगा जिनमेंतड़प और बेबसी के इलावा कुछ नहीं था। ये आँखेंकह रही थीं कि वो अपने बच्चे को इस हाल मेंनहीं देख सकता। कल्ल ू चीख़ता रहा। चीख़ते चीख़ते उस का गला बैठ गया और नंदा मज़े से बीड़ी पर बी ड़ी सुलगाता रहा। बड़ा सब्र करने वाला वक़्त था। ऐसे पल ग ुज़ारना ज़ि4ंदगी का सबसे मु श्किल काम होता है लेकिन ये भी सच्चाई ही थी कि जिन लोगों ने इस बात का बीड़ा उठाया था कि डायन को उजाले में ला कर रह ेंगे, वो भी बड़े सब्र ही से व क़्त गु4ार रहे थे। क्या मजाल कि किसी को छींक भी आ जाये फिर अचानक ही सरसराहट ेंउठने लगी। ऐसा लगा जैसे महस ूस न होने वाले तरीक़े से एक ने दसरे को और द ू सरे ने ू तीसरे को ख़बर दी हो। एक एक पल सनसनीखे 4 था और मेरा ये अंदा4ा सही निकला। ये सरसराहट ेंहक़ीक़त मेंएक पैग़ाम ही थीं और ये बात तब पक्की हो गई जब गीता नंदी मं दिर के अहाते मेंदाख़िल ह ुई। काले रंग की साड़ी बाँधी ह ु ए थी। ऊपर से शाल ओढ़ी ह ुए थी। अके ली थी और बड़े नई तु लेक़दमों से अंदर आ रही थी। निंदा चौंक कर सीधा हो गया।
’’जय देवी।' गीता नंदी ने कोई जवाब नहीं दिया। वह धीरे धीरे आगे बढ़ी और क़रीब पह ुंच गई। उसने भारी आवा 4 मेंकहा। "नंदा अगर आज हम ेंकामयाबी ना ह ुई तो यूं समझ लेकि मेरी सारी तपस्या बेकार चली जाएगी ’’म ैंजानता ह ू ँदेवी।' नंदा ने कहा ’’स्वामी अधेरणाचन्द ूसातवेंदिन दर्शन देंगे और बस फिर मेरा काम बन जाएगा" ’’हाँ देवी सात दिन रह गए हैं।' ’’बस्ती वाले अलग होशयार ह ैं। ख़तरा बढ़ता जा रहा है।' ’’म ैंजानता ह ू ँ , देवी।' नंदा ने कहा ’’चल हाथ पांव खोल दे उस के । ' गीता नंदी ने कहा और नंदा ने ख़ंजर निकाल लिया। उसने कल्लूके हाथ पांव की रस्सियाँ काट दी। कल्ल ू ने भी उसी तरह तड़प कर उठने की कोशिश की मगर नंदा ने उसे बालों से पकड़ कर नीचे गिरा दिया। गीता नंदी ने ख़ंजर हाथ मेंलेलिया था। ’’अल्लादीन सच म ेंबह ुत साबर वाला इंसान था। उस की जो हालत हो रही थी म ुझे अंदा4ा था मगर वो सबर किए ह ु ए था। गीता नंदी की आवा4 उभरी ’’जय शैतान देव। सातवीं बली दे रही ह ू ँ। उसे स्वीकार कर। मेरे गोद हरी कर दे।'
’’ठक ुराइन, कमीनी, क ु तिया, में तेरी बली दे दँगा। डायन शैतान। ू ' अल्लादीन की भयानक आवा 4 से मंदिर गूंज उठा और उसने दीवानों की तरह लंबी छलांग लगाई। गीता नंदी उछल पड़ी। उसने ख़ ू नी नज़रों से अल्लादीन को और फिर कल्लूको देखा। फिर वो भयानक आवा4 बोली। ’’ तू भी मारा जाएगा भटयारे। पीछे हट जा। मारा जाएगा मेरे हाथों। नंदा इसे सँभाल।' लेकिन सब्र करने वालों से अब कहाँ सब्र होता , वो सब एक साथ निकल पड़े। नंदा को उन्होंने दबोच लिया। ठक ुराइन ने अल्लादीन पर वार किया मगर अल्लादीन की तक़दीर अच्छी थी , उस के सीने पर बस हल्की सी ख़रोंच लगी। ग ुस्साए लोगों ने ठक ुराइन के लंबे बाल पकड़ कर उसे पीछे से घसीट लिया था वर्नाअल्लादीन 4रूर मारा जाता। गीता नंदी ने कई लोगों को ज़ख़मी कर दिया मगर क्योंकि अनगिनत लोग थे इस लिए वो ज़्यादा देर ख़ंजर ना घ ुमा सकी। किसी ने इस के हाथ पर लाठी मार कर ख़ंजर गिरा दिया और जैसे ही ख़ंजर उस के हाथ सेनिकला लोग इस पर टूट पड़े। वो भ ू ल गए थेकि वो ठक ुराइन है। इस के बाल नोच डाले गए। कपड़े तारतार कर दिए गए। नंदा की तो शकल ही नहीं पहचानी जा रही थी। बाहर से बह ु त सी आवा 4ेंउभरी ’’ठाक ुर जी आ गए। कोहली राम जी आ गए। ' ठाक ुर बह ु त से लोगों के साथ अंदर आ गया था ’’क्या है, क्या हो रहा है। अरे ये क्या हो रहा है ... अरे ये.... गीता नंदी, छोड़ो उसे, छोड़ो व र्नामेंगोली चलवा दँगा ू "
ठाक ुर के दो आदमीयों के पास बंद क़ू ें थीं ’’इन्साफ़ से काम लो ठाक ु र। कितनी गोलीयां चलाओगे। आख़िर में तुम्हारे पास गोलीयां ख़तम हो जाएँगी। फिर क्या होगा। जानते हो?' पीछे से किसी ने कहा ’’हम त ुम्हेंगोलीयां चलाने के लिए नहीं लाए ठाकु र, इस लिए ब ुला कर लाए ह ैंकि सब क ुछ अपनी आँखों से देख लो।' किसी द सरे आदमी ने कहा ू ’’सब क ु छ तो कर डाला तुमने। अब मैंक्या देखूं।' कोहली राम बोला ’’इस भ ू ल मेंना रहना ठाकु र,ये सब क ुछ नहीं है। ज़ि4ंदा जलाएँगे हम इस डायन को और इस चमार को। भगवान की सौगंध इसे ज़ि4ंदा ना जलाया तो माँ का द ध हराम है हम पर। ू ' रघुबीर ने कहा ’’देखो कितनों के घाव लगाए हैंउसने। अपनी आँखों से देख लो। अरे तु म धन वाले समझते क्या हो अपने आपको। चलवाओ गोली। चलवाओ ठाक ु र!' राम पाल ने कहा। इसका बेटा भी मारा गया था ’’गीता नंदी क्या है ये सब क ु छ? ये सब क्या है गीता !' ’’झूटे ह ैंपापी सारे के सारे। सब क ुछ इस मुसाफ़िर का क्या धरा है। ये सब इस की सा ज़िश है।' ठक ुराइन ने मेरी तरफ़ इशारा कर के कहा ’’नाम मत लेना इस देवता का ठक ुराइन। भगवान की सौगंध 4बान काट लेंगे तुम्हारी।' गंगो दहाड़ा