’’सब ढूंढ रहेथेप्रकाश को, म ुसाफ़िर नेख़बर दी। हमनेलाश देखी, हीरा ख़बर करनेगया। म ुसाफ़िर दसरी ू बस्ती का है। उसनेबताया कि उसने डायन को कलेजा चबातेह ु ए देखा है। वो खेतों मेंछू पी ह ुई है। और हम दौड़े खेतों में , वहां छिपी मिली भागभरी हमेंदेखकर निकल भागी। ख़ू न मेंरंगी ह ुई थी ससुरी निकल गई मगर जाएगी कहाँ। अरेना जानेदेंगेससुरी को!' ’’सब सदमेसी हालत मेंसु न रहेथेऔर मेरा दिल अजीब सा हो रहा था। क्या हैयेसब क ु छ मगर क ु छ था ,4रूर क ु छ था। म ुझेयहां भेजा गया था। म ुझेयहांभेजनेका कोई मक़सद होगा। जरूर होगा! मने ैं इस औरत को देखा था, सूरत वाक़ई डरानेवाली थी। मने ैं ख़ुद उस के चेहरेपर ख़ू न के धब्बेदेखेथेमगर क्या वह सच मेंडायन थी, और पहले भी येभयानक काम कर चकी ु थी। बचपन मेंजो बातेंकहानीयों मेंसु नी थीं, सब ही तो सामनेआती जा रही थीं। ना जानेआनेवाला वक्त और क्या-क्या दिखाएगा। चड़ैलु देखी थी, पिछलपैरी सेभी टकराव हो चका ु था, काली शक्तियों का भी ख़ू ब जानकर हो गया था, हिंदओं ू के साथ रहन सहन की वजह सेहोली दीवाली साथ मेंह ुई थी। यहांतो सारेकिसेकहानियांयही
थीं, भ ूत, प्रेत, सरकटे, चड़ैलें ु , इनके इलावा और क्या था मगर येमज़ेदार कहानियांजिन्हेंसुनकर रातों को डर लगता था और माँसेचिमट कर सोने को जी चाहता था, आज आँखों के सामनेथीं। आज डायन सेभी म ुलाक़ात हो गई थी, ऐसी होती डायनें। जनक राम रो-रो कर सब को सारी राम कहानी सु ना रहा था और मेंये सोच रहा था। एक-बार फिर मने ैं इस बेग ुनाह बच्चेकी लाश को ग़ौर से देखा, अब सही अंदा4ा हो रहा था। लोगों का कहना सच था। इस का ऊपरी जिस्म नंगा था और सीना दिल की जगह पर ही सेख ु ला ह ु आ था, दसरे ू अंग बिखरेह ु ए थेलेकिन कलेजा नहीं था। लोग तरह तरह की बातेंकर रहे थे ’’पर वो गई कहाँजनक राम?' ’’अरेभैया क्या बताएंम ुसाफ़िर नेकहा खेतों मेंछपी हैससुरी। हम लठिया लेकर लपके तो हमें देखकर निकल भागी और भी्या ..क्या ते4 दौड़ी म ुसाफ़िर सेप ूछ लो, पैरों मेंपंख बंधेह ु ए थे। 4रा सोचो डायन ना होती तो इतनी ते4 भागती? हम तो पीछा ही ना कर पाए और वो येजा वो जा, कै सी
बहिढ़या बनी फिरती थी। हरेराम हरेराम हमारेभैया के पतू को खा गई, अरे अब क ु छ करो, भैया को उठा कर लेचलो। देखो तो सही कहीं दिल की धड़कन बंद तो नहीं हो गई। अरे भैया...., हमरे बड़ेभैया... अरे रघुबीर भैया।' ’’हाँहाँचलो रेचादर बिछाओ, प्रकाश को इस मेंडालो। अब तो वो इस संसार सेचला ही गया। सारी बातेंकर लो, परंतु जिसेजाना था वो तो जा चका। ु ' बह ु त सेलोग मिलकर लाश के बिखरेहिस्सेसमेटनेलगेऔर इस के बाद बच्चेके जिस्म को उठा कर चादर पर लिटा दिया गया। वो अपनेधर्मके पाक अश्लोक पढ़ रहेथे। क ु छ लोगों नेरघुबीर को सँभाल कर हाथों पर उठाया और फिर येसारा क़ाफ़िला बस्ती की तरफ चल पड़ा। मेंभी उनके पीछेपीछेचल रहा था और उनकी बातेंसु न रहा था लेकिन बह ु त ही कम बातें समझ में आ रही थीं। जमाल गढ़ी का नाम लिया जा चका ु था, इसलिए अब इस मेंभी शक नहींथा कि जिस बस्ती को मैंजा रहा ह ू ँ , वो जमाल गढ़ी ही हैजहांजानेके लिए म ुझेकहा गया था।
थोड़ा बह ु त अंदा4ा हो रहा था कि शायद यही काम मेरेजिम्मेकिया गया है। वो सभी बातेंदिमाग मेंही थींजो बताई गई थीं। म ुझसेख़ुद पर भरोसा करनेको कहा गया था और वो कं बल वापिस लेलिया गया था जो मेरेलिए बड़ी हिम्मत की वजह था लेकिन दिल को एक भरोसा था कि मेरी मदद में कोई कमी नहींकिया जाएगा। मैंकौन सा जानकर था कि हर मर्ज़की दवा मेरेपास होती, बस येएक इमतिहान की मंज़िल थी जिससेमैंहाथ पकड़ कर ग ु4ारा जा रहा था दिल मेंयही दआ ु थी कि अल्लाह म ुझेउस मंज़िल तक पह ु ंचा देजो मेरेलिए पक्की की गई है। बड़ी हिम्मत और बड़ेसब्र से अपनेफ़र्ज़को प ूरा कर रहा था और कहीं भी सरकशी 4हन मेंनहीं उभरी थी। अपनेयाद आतेतो 4बान को दाँतों मेंदबा लेता, अपनेजिस्म को नोचने लगता कि यादेंपीछा छोड़ दें। कहींऐसा ना हो कि बात नागवारी की मंज़िल मेंपह ु ंच जायेऔर एक-बार फिर तकलीफों का शिकार हो जाऊं । अपनेतौर पर जिस हद तक म ु म्किन हो रहा था उन हिदायत पर अमल कर रहा था बस्ती का सफ़र इन्ही ख़यालात मेंकट गया। मैंभी लोगों के साथ साथ ही
जनक राम के घर के दरवाज़ेपर पह ु ंचा था और इस के बाद वहां जो क ु छ होनेलगा था वहांरुकना मेरेलिए बेकार सी बात थी। लोग जनक राम के घर के दरवाज़ेके बाहर जमा हो गए थे, अंदर सेरोने पीटनेकी आवा4ेंउठ रही थीं, उन आवाज़ों मेंऔरतों का शोर भी था, मर्दों की आवा4ेंभी थीं। मैंवहांसेवापस पलटा, शायद सारी बस्ती वालों को इस की ख़बर हो गई थी। कोई अपनेकाम पर नहींगया था, सब के सब जनक राम के दरवाज़ेपर जमा हो गए थे। मने ैं एक आदमी को रोका तो वो फ़ौरन ही रुक कर म ुझेदेखनेलगा। ’’तु म म ुसाफ़िर हो ना भैया?' उसनेप ूछा ’’हाँभाई येबस्ती जमाल गढ़ी ही हैना?' ’’हाँभैया यही है।' ’’यहांकोई ऐसी जगह मिल सकती हैभैया जी जहांमेंक ु छ दिन रह सकं । ू ' ’’धर्मशाला मौज ूद हैपण्डित राम नारायण के पास चलेजाओ, अरेहाँयेतो बताओ हिंदूहो या म ुस्लमान?' ’’म ुस्लमान ह ू ँ।' मने ैं जवाब दिया
’’तो फिर मस्जिद मेंचलेजाओ, या सु नो वो सीधेहाथ जा कर जब उलटे हाथ को म ुड़ोगेतो तु लसिया का घर आएगा अल्लादीन भटयारेकी सराय इसी के सामनेहै, वहांतुम्हेंरहनेकी जगह मिल जाएगी। मस्जिद तो अभी अध ूरी हैदबारा ु बन रही है, सारा सामान बिखरा पड़ा ह ु आ हैवहां कहाँ ठहरोगे" ’’बह ु त बह ु त श ुक्रिया।' मने ैं जवाब दिया और उस के बताए ह ु ए पतेपर चल पड़ा, अल्लादीन भटयारेकी सराय शायद इस बस्ती की अके ली सराय थी। कच्चा अहाता बना ह ु आ था और इस मेंक ु छ कमरेन4र आ रहेथे। एक ओर तंदरू लगा ह ु आ था जिसके किनारेबनी ह ुई भट्टियों मेंआग सु लग रही थी मगर कोई मौज ूद नहीं था, लेकिन ज़्यादा देर ना ग ुज़री कि दस बारह साल के एक लड़के नेअंदर सेगर्दन निकाल कर झाँका और फिर वापस अंदर घ ुस गया। मने ैं 4ोर 4ोर सेआवा4ेंदी, तो एक अधेड़ उम्र की औरत बाहर निकल आई। मोटी ता4ी थी, शलवार क़मीज़ पहनेदपट्टा ु ओढ़े ह ु ए म ुसलमान
औरत माल ू म होती थी। मने ैं उसेसलाम किया तो वो अजीब सी नज़रों से म ुझेदेखनेलगी फिर बोली। ''क्या है?'' ’’अल्लादीन भटयारेकी सराय यही हैना?' ’’हाँयही हैमगर तू कौन हैभैया?' ’’अल्लादीन कहाँहै?' ’’अरेबस निकल खड़ा ह ु आ हैतमाशा देखनेके लिए, सारी हंडिया जला कर ख़ाक कर दी। प ूरा का प ूरा तीन सेर गोश्त था मगर तू कौन हैभैया?' ’’म ुसाफ़िर ह ू ँ , बहन इस सराय मेंठहरना चाहता ह ू ँ।' ’’अरेकल्ल ू ओ कल्ल ूतेरा सत्यानास कहाँमर गया अरेबाहर निकल।' ’’अम्मां तू नेही तो मना कर दिया था कि बाहर ना निकल ू ं डायन खा जाएगी " लड़केनेकहा ’’अरेडायन के बच्चेबाहर आ, देख म ुसाफ़िर आया है।" ' औरत नेकहा और वही लड़का जो म ुझेझांक कर अंदर घ ुस गया था, बाहर निकल आया
’’जा अब्बा को ब ु ला कर ला, कह देतमाशा ख़त्म हो गया। म ुसाफ़िर आया हैऔर वो बाहर मस्ता रहा है। अरेभैया म ुझसेबात करो मेंअल्लादीन की घरवाली ह ू ँ।' ’’म ुझेयहां रहनेके लिए जगह मिल सकती है?' ’’लो भैया प ूरेके प ूरेचार कमरेख़ाली पड़ेहैंजिसमेंजी चाहेठहर जाओ मगर डेढ़ रुपय रो4 होता हैकमरे मेंठहरनेका और खानेपीनेके पैसे अलग, सुबह की चाय दो आनेकी। जब भी चाय पियोगेदो आनेदेनेपड़ेंगे। दोपहर को खाना खाओगेतो दस आनेअलग होंगे। रात को खाओगेतो भी दस आनेहोंगे। सोच लो मं4ूर हो तो ठीक है।'' मेरी जेब मेंचार रुपए थेजो म ुझेव4ीफ़े के तौर पर दिए गए थे। मने ैं एकबार फिर येपैसेदेखेऔर तीन रुपय निकाल कर औरत को देदिए ’’येदो दिन का किराया रख लीजिए खाना खाऊं गा तो उस के पैसेअलग दँगा ू ’’आओ भैया कोठरी दिखा देंतुम्हें।'
औरत नेकहा। जो कोठरी म ुझेदिखाया गया वो भी कच्ची मिट्टी का ही बना ह ु आ था, ऊपर फ ूं स का छप्पड़ पड़ा ह ु आ था। मिट्टी की दीवार मेंतीन रोशन दान निकालेगए थेजिनसेकमरा ख़ू ब रोशन हो गया था। एक तरफ़ बाणों सेबनी ह ुई चारपाई पड़ी थी। दसरी ू ओर एक घड़ौंची जिस पर मटका, पानी निकालनेका डोंगा और गिलास रखा ह ु आ था। येथा क ु ल संसार इस कमरेका मेरेलिए, भला एतरा4 की क्या बात हो सकती थी, मने ैं फ़ौरन ही हांकर दिया। औरत कहनेलगी। ''हम दरी बिछाए देरहे हैंतकिया और ओढ़ना भी मिल जाएगा हमारेही पास से। येकमरेके किराए मेंहोगा। अब बताओ नाशता करोगे ’’नहींबहन हाँएक प्याली चाय अगर मिल जाये।' ’’चार प्याली पी लो लेकिन अठन्नी निकाल लेना।' औरत नेखरेकारोबारी अंदाज मेंकहा और मने ैं हंसतेह ु ए उसेऔर चार आनेदेदिए और बारह आनेवापिस लेलिए। इ मेंरात का खाना खाया जा सकता था। क ु ल मिला कर येकि म ुझेजमाल गढ़ी मेंएक अच्छी जगह मिल गई रहनेकी और क ु छ देर के बाद जब मैंचाय पी रहा था
एक दबले ु पतलेआदमी नेजो क ु र्ता पाजामा पहनेह ु ए था और सर पर कपड़ेकी टोपी लगाई ह ुई थी, अंदर झाँका। सलाम किया तो मने ैं उसे सलाम का जवाब दिया और वो म ुस्क ु राता ह ु आ आगया। ’’तु म वही म ुसाफ़िर हो ना भैया जी जिसनेडायन को बेचारे प्रकाश का कलेजा चबातेह ु ए देखा था।' ’’हाँमेंही वो ग ुनाहगार ह ू ँ।' मने ैं जवाब दिया ’’भैया तु म हमारी सराय मेंठहरेहो।' ’’तुम्हारा नाम अल्लादीन है??।' ’’हाँभैया अपनी ही सराय हैये। बड़ा अच्छा ह ु आ तु म यहांआ गए। हमारी घरवाली नेहमेंबताया तो हम समझ गए कि तु म ही हो सकतेहो येबड़ी अच्छी बात है। भैया 4रा हमेंप ूरा वाक़िया तो बताओ।' वो बड़ेइतमीनान से4मीन पर आलती पालती मार कर बैठ गया ’’बह ु त अफ़सोसनाक वाक़िया हैअल्लादीन अब क्या बताऊं मैंतुम्हें। जो क ु छ तु मनेबाहर सेसु ना, बस इतना ही है।'
’’अरी 4ुबेदा ओ 4ुबेदा अरी अंदर आ। मने ैं कहा था ना तुझसे वही म ुसाफ़िर भैया हैंजिन्हों नेडायन को देखा है।' अल्लादीन नेबेगम साहिबा को भी ब ु ला लिया और बेगम साहिबा दौड़ती ह ुई अंदर आ गईं ’’अरी अरी मेरेऊपर ना गिर पड़यो।' अल्लादीन एक तरफ़ खिसकता ह ु आ बोला। इस मेंकोई शक नहींकि बेगम के म ुक़ाबलेमेंवो बह ु त कम4ोर था। बेगम साहिबा हाँपतेह ु ए कहनेलगीं। ''वही हैंवही हैं?' ’’तो और क्या, मने ैं कहा था ना तुझसेकि बस्ती मेंएक ही म ुसाफ़िर आया ह ु आ है, हो सकता हैयेवही म ुसाफ़िर भैया हों,।"' म ुहतरमा भी पलथी मारकर बैठ गईं और बोलीं। " भैया तु मनेअपनी आँखों सेदेखा था यक़ीन ना आवेहैहमें।' ’’अरी छोड़ , यक़ीन ना आवेहैतुझे। बस्ती वालेमार मार कर भ ुरकस निकाल देंगेतेरा। सब ग़स्से ु मेंभरेह ु ए हैं। अब बेचारेतु लसिया की शामत आ गई।'
भटयारेनेकहा मैंइन दोनों को ग़ौर सेदेख रहा था मने ैं कहा ’’मगर येभागभरी हैकौन?' ’’अरेभैया, पहलेतो हमेंक़िस्सा तो सु नाओ बाद मेंबता देंगेभागभरी कौन है।' अल्लादीन नेकहा ’’क़िस्सा बस येथा भाई अल्लादीन कि मैंएक दसरी ू बस्ती सेआ रहा था। तुम्हारी जमाल गढ़ी मेंखेतों के क ु छ दरी ू पर एक पेड़ के नीचेमने ैं इस औरत को बैठेह ु ए देखा। इस की पीठ मेरी तरफ थी इसलिए मेंयेनहीं देख सका कि वो क्या कर रही है। मेरेक़दमों की चाप सुनकर वो उठ खड़ी ह ुई। म ुझेदेखकर 4ोर सेचीख़ी और भाग कर खेतों मेंजा घ ुसी। इस के बाद दसरे ू लोग आ गए। मने ैं बाक़ी सब भी उन लोगों को सु नाए और अल्लादीन दोनों कानों को हाथों की क़ैंची बना कर छू नेलगा और गालों पर उंगलीयां मारनेलगा जबकि बेगम का चेहरा ख़ौफ़-ज़दा हो था। ’’अल्लाह बचाए रखेमेरेकल्ल ू को अरेमैंतो पहलेही कहती थी कि डायन बस्ती ही मेंकोई है। भला बाहर सेकहाँसेआएगी।' उस नेकहा। मैंइन
दोनों की बेवक ू फों वाली हरकतें देखता रहा। दोनों ही सीधेसादे मासू म देहाती माल ू म होतेथे ’’अब आप लोग म ुझेइस डायन के बारेमेंबताएं।' ’’अरेभैया, अल्लाह जानेक्या हो गया वो पगली तो थी, जानेडायन कै से बन गई। हम तो सोच भी नहींसकतेथे। सारा जीवन हमारेसामनेग ुज़रा है भागभरी का, मेरेसामनेब्याह कर आई थी रतन लाल के यहाँ। सारेकाम यहींकेयहींहो गए, हाय रेतक़दीर।' काला जाद ू 52 वां भाग---- ’’तुम्हारेसामनेब्याह कर आई थी वो यहां?''मने ैं प ूछा ’’हाँम ुसाफ़िर भैया सामनेका घर ही तो हैरतन लाल का, भरा प ूरा घर था, हम तो जी छोटेही सेथे, रतन भैया सेबचपन ही सेअच्छी थी हमारी। भला आदमी था बेचारा काम सेकाम रखनेवाला, शादी ह ुई थी उस की गौनाप ुर में , भाग भरी बेचारी वहीं की थी। एक बह ु त ही ग़रीब आदमी की
बेटी जिसनेपता नहीं कै सेकै सेकर के अपनी बिटिया की शादी करी थी। भाग भरी रतन लाल के घर आ गई। रतन लाल बेचारा ख़ुद भी ग़रीब आदमी था, बस मेहनत म4दरी ू करता था और ज़ि4ंदगी ग ुज़ारता था ,पर ठीक ठाक ज़ि4ंदगी चल रही थी। उनके बेटेह ु ए थेएक एक कर के तीन और पतू बढ़ रहेथे, भाग भरी को सब ही अच्छा कहतेथे। हमारी अम्मांतो उसे बह ु त ही पसंद करती थीं। हमारी शादी मेंभी उसनेघर के सारेकाम काज करे थे, भैया बह ु त अच्छी थी वो। अल्लाह जानेकिस की न4र खा गई बेचारी को। बड़ा बेटा कोई आठ साल का होगा, छोटा कोई चार साल का और इस सेछोटा कोई तीन का, रतन लाल काम पर गया ह ु आ था, तीनों बच्चे निकल गए पोखर पर और भसैं की पीठ पर बैठ कर पोखर मेंघ ुस गए, बस भैया वहीं सेकाम ख़राब हो गया। भसैं पोखर मेंबैठ गई और बच्चेजो उस की पीठ पर बैठेह ु ए थे, पोखर ही मेंडू ब मरे। वो तो रमज़ान घसियारेनेदरू सेबच्चों को भसैं की पीठ पर बैठेदेख लिया था और उसेपता चल गया था मगर तैरना वो भी नहींजानता था, दौड़ा दौड़ा बस्ती आया। घर मेंख़बर दी फिर रतन लाल को बताया। प ूरी बस्ती ही पह ु ंच गई थी पोखर पर, रतन
लाल के तीनों पतू पोखर मेंडू ब गए थे। माम ू ली बात तो नहींथी, रतन लाल पागल हो गया। खट सेछलांग लगा दी पोखर मेंऔर भैया, पोखर मेंछः कँ ु वेंहैं , देखा तो किसी नेनहीँलेकिन प ुरखों सेयही सुनतेचलेआए हैंकि बारह साल के बाद भेंट लेतेहैंयेकँ ु वेंऔर कोई ना कोई डू ब ही जाता है। बारह साल प ूरेहो चके ु थे, भेंट लेली मगर इस बार तीन बच्चों की भेंट ली थी इन कं वो ु नेऔर चौथा रतन लाल नीचेगया तो वापस ऊपर ना आया। भला किस की मजाल थी कि पोखर मेंघ ुस कर रतन लाल और उस के बच्चों की लाशों को तलाश करता। वहींके वहीं दफ़न हो कर रह गए बेचारे, तीन बेटेऔर एक बाप। तु म ख़ुद सोच लो म ुसाफ़िर भैया, क्या बीती होगी माँपर? इस बीच बेचारा तुलसी भी आ चका ु था। तुलसी असल मेंभागभरी का छोटा भैया था। जब गौनाप ूर मेंउस के पिता जी मर गए तो रतन लाल ख़ुद जा कर तु लसिया को अपनेसाथ लेआया और अपनेबच्चों ही की तरह पालनेपोसनेलगा उसे, तु लसिया यहीं रहता था और भागभरी को बस उसी का सहारा मिल गया था। तीनों बच्चेऔर पति के मर जानेके बाद भला होश हवास कै सेबनाए रखती। सर फोड़ लिया अपना और उस के बाद
पागल हो गई। सर मेंचोट लग गई थी, भैया ग़रीबों की बस्ती है, कौन किस को सहारा देसके है। लोगों नेकहा उस का ईलाज हो सकता हैदिमाग़ ठीक हो जाएगा मगर ग़रीबों के लिए तो पेट भरना ही म ु श्किल हो जाता है, दवा दारू कहाँसेकरें। बेचारा तु लसिया मेहनत म4दरी ू करता है, बस्ती भर की चाकरी कर के जो चार रोटी कमा लेहैइस सेपागल बहन का और अपना पेट भरता था। संसार मेंइस का भी कोई नहीं है, अपनी इस पगली बहन के सिवा। भागभरी प ूरी बस्ती मेंभागती फिरती है। कभी बच्चेउस का पीछा करेंतो उन्हेंपत्थर मार देती थी। बस इस सेज़्यादा उसनेकिसी का क ु छ नहींबिगाड़ा, मगर भैया फिर येह ु आ कि सबसेपहला छोकरा राम लाल का था जो बेचारा डायन का शिकार ह ु आ। रात ही का वक़्त था। मग़रिब की अ4ान ह ुई होगी, तेल लेनेबाहर निकला था कि ग़ायब हो गया। बेचारा राम लाल एक एक सेप ूछता फिरा कि किसी नेउस के छोरा को तो नहीं देखा। किसी नेना बताया। सुबह को भैया हरिया के खेत की मेंढ़ पर राम लाल के छोरेकी लाश मिली, सारी छाती उधेड़ कर रख दी थी किसी ने। सब यही समझेकि बघेरा लग गया। कभी कभी बस्ती के आस-पास जंगलों से
बघेरा निकल आवेहैऔर अगर इन्सानी ख़ू न का लाग ूहो जावेतो फिर घरों सेबच्चेउठा लेजायेहै। चरवाहों की बकरीयों को मार डालेहै, बच्चों को ले जा कर खा पी कर बराबर कर देवेहै। पहरा देना पड़ेहैऐसेदिनों में , चार पाँच बघेरेमारेजा चके ु हैंइस तरह। सब लोग यही समझेकि बघेरा लग गया। राम लाल का घर तो ल ुट ही गया था, रातों को पहरेहोनेलगे। लोग लठिया लेकर रात-भर अपनेअपनेहिसाब सेबस्ती के चारों तरफ़ पहरा दिया करतेथेलेकिन कोई डेढ़ महीनेके बाद ही दसरा ू हादसा भी हो गया और इस बार म ु ंशी इमामदीन का बेटा बघेरेके हाथ लगा था। लोगों नेदेखा कि इस का भी कलेजा निकाल लिया गया था फिर धन्न ु ू नेयेबताया कि ये काम बघेरेका नहींहैक्योंकि बघेरा किसी घर मेंनहींघ ुसा चरवाहों के बकरियों को उसनेकोई नक़्सान ु नहीं पह ु ंचाया था, कहीं उस के पंजों के निशान नहीं मिलेथे। कहीं ना कहीं सेतो पता चलता। जहां लाशेंपड़ी ह ुई थींवहांपर भी बघेरेके पैरों के निशान ना मिलतेथेजबकि पहलेकभी ऐसा ह ु आ तो जगह जगह बघेरेके पैरों के निशान देखेगए फिर जब तीसरी लाश
मिली तो धन्न ु ू नेआख़िरी बात कह दी कि येकाम किसी डायन का हैजो बच्चों के कलेजेनिकाल कर चबा जाती है। भैया जमाल गढ़ी वालों को पहलेकभी किसी डायन का सामना नहीं करना पड़ा था। डर फै ल गया प ूरी बस्ती में ,लोग काम धंदेछोड़कर डायन की तलाश मेंलग गए। भागभरी की तरफ़ तो किसी का ख़याल भी नहींगया था। किसी को क्या पता था कि वो भागभरी नहीं, भाग जली हैऔर वो डायन बन गई है। बस्ती की पगली कहलाती थी, किसी नेरोटी देदी तो खा ली। किसी नेकपड़ेपहना दिए तो पहन लिए वर्ना उसेअपना होश किधर था। बेचारा तु लसिया ही था जो बहन को सँभालेसँभालेफिरता था। उधर चाकरी करता था इधर बहन की देख भाल। पर भैया येतो बड़ी ही ग़4ब हो गया चौथा बच्चा भी उस का शिकार हो गया और जमाल गढ़ी मेंइन दिनों भैया बस य ू ं समझ लो की शाम ढली और सन्नाटा हो गया। लोगों नेघरों के दरवाज़ेबंद किए, दिन में सोना श ु रू कर दिया गया और रातों मेंजागना मगर डायन न4र नहींआई। क्या पता था किसी को कि भागभरी डायन होगी। बेचारे रघुबीर राम का
बेटा प्रकाश भी रात ही को खोया था और चारों तरफ़ ढूंढ मची ह ुई थी। सब ढूंढ रहेथे। सारेबस्ती वालेलाठीयां सँभालेरात-भर इधर सेउधर फिरतेरहेऔर अब सुबह को इस की लाश मिल गई मगर तु मनेबता दिया बस्ती वालों को कि डायन कौन है। अरेभैया हाथ नहीं लगी वो जनक राम के जनक राम भी बड़ा बिक ु ट हैअगर मिल जाती कहीं भाग भरी तो लठिया मार मार कर जान निकाल लेता उस की। बड़ा प्रेम करता था अपनेभतीजेसेऔर रहता भी तो रघुबीर राम के साथ ही था। रघुबीर राम बेचारेका भी अके ला ही बेटा था प्रकाश, बड़ा ब ुरा ह ु आ मगर अब अब समझ मेंना आवेआगेक्या होगा। येतो पता चल गया कि भाग भरी डायन हो गई है। पता नहींक्यों हमनेतो पहलेक ु छ सु ना भी नहीं।' मैंचपचाप ु सेयेकहानी सुनता रहा। बड़ी दर्दनाक कहानी थी, एक पल के लिए येएहसास भी दिल सेग ुज़रा था कि कहीं मेरा येख ुलासा ग़लत तो नहीं हैऔर एक इन्सान बल्कि दो इन्सान मेरेइस ख ुलासेका शिकार हो जाऐंगे। ख़ुदा ना करे ऐसा हो। ख़ुदा करे जो क ु छ मने ैं देखा हैवही सच
निकले। यहां किसी ख़बीस रूह का मामला नहीं था बल्कि एक इन्सान ही का मामला था, पता नहींअब क्या होगा। जब भटयारेअल्लादीन नेयेकहानी सुनाई। तो म ुझेख़ास निगाहों से देखा जा रहा था। थोड़ी देर के बाद अल्लादीन वापस आया और एक रुपया मेरेदेकर गया। कहनेलगा। "भैया डेढ़ रुपए रो4 का कोठरी मिला हैतुम्हें , हमनेअठन्नी की रियाइत कर दी है। अब एक रुपय रो4 पर तु म यहां रह सकतेहो। देखो भैया हमारे साथ भी तो पेट लगा ह ु आ हैमजब ूरी है। वर्नातुमसेक ु छ ना लेते।' ’’नहींअल्लादीन तुम्हारा श ुक्रिया कि तु मनेरियाइत कर दी मेरेसाथ, अब खाना खिलवा दो।' दोपहर का खाना जो दाल रोटी था, खा कर पेट भर बैठा ही कि शोरशराबा सुनाई दिया। बाहर निकल आया देखा तो बह ु त सेलोग सामनेके घर पर जमा थे। येतो पता चल ही गया था कि येघर तुलसी या बस्ती वालेजिसे तु लसिया कहते थे उसका है। शायद भागभरी घर वापस आई थी और
पकड़ी गई थी, अल्लादीन और 4ुबेदा बेगम भी बाहर निकल आए, पता ये चला कि जनक राम अपनेआदमीयों के साथ आया था और तुलसी को पकड़ कर लेहै। ’’येतो नाइंसाफ़ी हैअल्लादीन, जनक राम, तुलसी को क्यों पकड़ कर ले गया?' ’’ भैया ख़ू न सवार हैजनक राम पर भी, भतीजा मर गया है। क्रिया करम कर के लौटेथेकि बेचारा तु लसिया घर पर मिल गया, लेगए उसेपकड़ के!' ’’अब वो क्या करेंगेउस का?' ’’अल्लाह जानेतु म बैठो मेंमाल ू म कर केआऊं ।' ’’मेंभी चल ू ं?' ’’मर्ज़ी हैतुम्हारी चलना चाहो तो चलो। लेकिन ना भैया म ुसाफ़िर तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी यहींपर टिक जाओ। मेरी तो जान निकली जावेहै, अरे कहीं भागभरी मेरेही घर मेंना घ ुस आए। अल्लाह मेरेकल्ल ू को अपनी हिफाजत मेंरखे।''
कल्ल ू, अल्लाह दीन और 4ुबेदा बेगम का इकलौता औलाद था वक़्त ग ुज़रता रहा। मैंसराय के कोठरी मेंआराम करतेह ु ए येसोचता रहा कि म ुझेजमाल गढ़ी आनेकी हिदायत क्या इसी सिलसिलेमेंकी गई है और अगर यही बात हैतो मेरा क्या अमल होना चाहिए। येतो बिलक ु ल ही अलग सा मामला हो गया है, एक ज़ि4ंदा औरत इन्सानी ख़ू न की लाग ूहो गई थी। मैंइस के ख़िलाफ़ क्या कर सकँ ू गा। कोई भ ूत प्रेत का मामला तो था नहीं, शाम के क ु छ साढे़ चार बजेहोंगेकि बाहर सेबातेंकरनेकी आवा4 सुनाई दी और फिर किसी नेमेरेइस कोठरी या कमरेकी कं डी ु बजाई। बाहर निकला तो बेगम अल्लादीन खड़ी ह ुई थीं, चेहरेपर ख़ौफ़ के निशान थे। कहनेलगें। ’’म ुसाफ़िर भैया ठाक ु र जी के आदमी आए हैं , तुम्हेंब ु लानेके लिए। बाहर खड़ेह ु ए हैं।' ’’कौन ठाक ु र जी?' ’’अरेअपनी बस्ती के म ु खिया हैंकोहली राम महाराज।'
4ुबेदा बेगम नेबताया। मने ैं जल्दी सेजते ू पहनेऔर बाहर निकल आया। दो आदमी खड़ेह ु ए थे। कहनेलगे। ''भाई साहब आपको ठाक ु र जी नेब ु लाया है। भागभरी के बारेमेंक ु छ बात करनेके लिए।' ’’अच्छा अच्छा चलो चल रहा ह ू ँ' " अल्लादिन अभी तक वापस नहींआया था। सही मेंमस्तमौला आदमी था। घर का कोई परवह नहीं था उसे, 4ुबेदा बेगम नेमेरेबाहर निकलतेही दरवाज़ा मज़ब ूती सेबंद कर लिया, मैंइन दोनों के साथ आगेबढ़ता रहा और जमाल गढ़ी के छोटेछोटेघरों के बीच सेग ुज़रता ह ु आ एक बड़ेसेघर के सामनेआ रुका जो लाल रंग की ईंटों सेबनाया गया था और मैंसमझ गया कि यही कोहली राम जी का घर था। बड़ेसेघर के सामनेजमाल गढ़ी के सैकड़ों लोग जमा थे, हर एक अपनी अपनी कह रहा था। दोनों आदमी मेरेलिए उनके बीच रास्ता बनानेलगेऔर मैंघर के सामने पह ु ंच गया, बड़ी सी पत्थर की चौकी बनी ह ुई थी जिस पर म ु खिया जी बैठे ह ु ए थे, सूरत ही सेघमंडी आदमी न4र आतेथे। दसरे ू तख़त सेनीचेही खड़े
ह ु ए थे। बाएं तरफ़ एक फटेहाल नौजवान न4र आया जिसेरस्सी सेकस दिया गया था। उसका चेहरा नीला पड़ा ह ु आ था, एक आँख भी नीली हो रही थी। होंट सू जेह ु ए थे, माथेपर ख़ू न जमा ह ु आ था। कपड़ेफटेह ु ए थे। साफ़ लगता था कि उसेबह ु त मारा गया है। मने ैं फ़ौरन अंदा4ा लगा लिया कि ये तुलसी या उन लोगों की भाषा मेंतु लसिया था, काबिल-ए-रहम और शरीफ़ माल ू म था। ’’सलाम करो ठाक ु र जी को।' म ुझेलानेवालों नेकहा। मने ैं ठंडी नज़रों से इन दोनों को देखा फिर ठाक ु र को, जो म ुझेदेखतेह ु ए बाएं म ूंछ पर हाथ फे रनेलगा था ’’ठाक ु र जी येम ुसाफ़िर हैं।' म ुझेलानेवालेदसरे ू आदमी नेकहा ’’कहाँसेआए हो?' ठाक ु र नेप ूछा ’’बह ु त दरू से।' ’’जगह का नाम तो होगा।' ’’हाँहैमगर बताना 4रूरी नहींहै।'
’’अरेअरेठाक ु र जी प ूछ रहेहैंबताओ।' इन्ही दोनों मेंसेएक मेरेकान में फ ुसफुसाया ’’तु म बकवास बंद नहीं रख सकते।' मने ैं ग ुर्राकर कहा और वो आदमी इधर उधर देखनेलगा ’’दारोगा लगेहो कहींके, कोई नाम तो होगा तुम्हारा' ठाक ु र नेकहा ’’तु मनेम ुझेमेरेबारेमेंप ूछनेके लिए ब ु लाया था, ठाक ु र?' ’’प ूछ लिया तो क्या ब ुराई है।' ’’बस म ुसाफ़िर ह ू ँइतना काफ़ी है, असल बात करो।' ’’कहाँठहरा हैये?' ठाक ु र नेदसरे ू लोगों सेप ूछा ’’अल्लादीन की सराय में।' ’’ह ू ँ , म ुसलमान है।' ठाक ु र नेदसरी ू म ूंछ पर उंगली फे रतेह ु ए म ुझसेप ूछा ''क्या देखा भई तू ने?' ’’इन लोगों नेतुम्हेंबता दिया होगा।' म ुझेइस आदमी पर ग ुस्सा ़ आ गया था ’’ तूबता।'
’’बस इतना देखा था कि वो औरत लाश के पास बैठी थी। म ुझेदेखकर खड़ी हो गई और चीख़ मार कर भागी फिर खेतों मेंजा घ ुसी बाद मेंजनक राम ने उसेवहींदेखा था।' ’’वो लड़के का कलेजा चबा रही थी?' ठाक ु र नेप ूछा ’’येमने ैं नहींदेखा। उस की पीठ मेरी तरफ़ थी।' ’’ठाक ु र जी उस के हाथ ख़ू न सेरंगेह ु ए थे। मँ ुह पर भी ख़ू न लगा ह ु आ था।' जनक राम नेकहा तब मने ैं उसेदेखा। वो भी भीड़ मेंसबके बीच सबके साथ खड़ा था ’’चलो मान लिया मने ैं , भागभरी डायन बन गई हैमगर तुलसी का इस में क्या दोष है?' ’’येउस का भाई है।' हीरा बोला ’’अरेतो येतो नहीं कहता उस सेक ु छ, इस बेचारेको तु मनेक्यों मारा।' ठाक ु र बोला ’’इस सेकहो ठाक ु र कि तलाश कर के लाए अपनी बहन को, उसेपकड़ कर लाए बस्ती वालों के सामने।'
जनक राम बोला ’’और तु म सब चड़िू यां पहन कर घरों मेंजा घिसो।' ठाक ु र आँखेंनिकाल कर बोला ’’हमारेदिल मेंजो चिता सु लग रही हैठाक ु र तु म उसेनहींदेख रहे।' जनक राम बोला ’’सब क ु छ देख रहा ह ू ँ , बह ु त क ु छ ख़बर हैम ुझे। दिल का हाल भी जानता ह ू ँ मगर येउस की ज़िम्मेदारी नहीं है। तु म सब मिलकर ढूंढ़ो उसेये भी ढू ँढेगा। तुम्हारेबीच क ु छ नहीं बोलेगा, खोलो उसेऔर ख़बरदार आज के बाद किसी नेउसेहाथ लगाया, अरेमाधव खोल देउसे।' एक दबला ु पतला आदमी तु लसिया के बदन सेरस्सी खोलनेलगा। ''और तु म जाओ दारोगा जी बस प ूछ लिया हमनेतुमसे।' इस बार ठाक ु र ने म ुझेदेखतेह ु ए कहा फिर अपनेनौकर माधव सेबोला। ''उसेअंदर लेजा हल्दी च ू ना लगा दे, मार मार कर ह ु लिया बिगाड़ दिया ससुरेका अबेशकल क्या देख रहा हैमेरी, लेजा अंदर।'
आख़िर मेंठाक ु र जी नेकड़क कर माधव सेकहा और माधव तुलसी का हाथ पकड़ कर अंदर जानेके लिए म ुड़ गया। ठाक ु र साहब दसरों ू सेबोले ’’जाओ भाईयो घरों को जाओ। पहलेभी ब ुरा ह ु आ था, अब भी ब ुरा ह ु आ है मगर बात ऐसेकै सेबनेगी। गधेपर बस नहींचला गधैया के कान ऐंठे । अब तो डायन का पता भी चल गया, भाग भरी को पकड़ लो मगर सु नो जो में कह रहा ह ू ँ , मैंम ु खिया ह ू ँजमाल गढ़ी का, ख़ुद फ़ै सला मत कर बैठना प ु लिस ब ु लवा लँ ू गा, भागभरी मिल जायेतो बांध कर मेरे पास लेआना ससुरी को।' लोग बिखरनेलगे, मैंभी पलट कर चल पड़ा। थोड़ी दरू चला था कि अल्लादीन मेरेक़रीब आ गया। ''ख़ू ब आए भैया म ुसाफ़िर तु म ,हमारी जमाल गढ़ी में , खेल ही न्यारेहो गए।' ’’अरेतु म,,अल्लादीन.. कहाँग़ायब हो गए थे।'
’’अरेबस म ुसाफ़िर भैया बह ु तेरेकाम थेरघुबीर राम के बेटेके क्रिया करम मेंशमशान गए थेफिर बेचारेतु लसिया की हालत देखतेरहे, ठाक ु र के आदमी ना पह ु ंच जातेतो जनक राम उस का भी क्रिया करम करा देता। बड़ा लठैत हैवो।' ’’तुलसी को मारना तो ग़लत था।' मने ैं उस के साथ आगेबढ़तेह ु ए कहा ’’वो तो हैपर जनक राम पर तो ख़ू न सवार है।' ’’मेरे ख़याल मेंब ुरी बात थी। तुम्हारा येम ु खिया अजीब नहीं है। मैंतो समझ रहा था कि इसी नेतुलसी को पिटवाया होगा।' ’’अरे म ुसाफ़िर भैया, तु मने तो उसे दो कौड़ी का कर के रख दिया।' अल्लादीन नेठहाका लगाया। ''मँ ुह देखता रह गया तुम्हारा।' ’’ बड़ा घमंडी आदमी लगता है, अजीब सेअंदा4 मेंकह रहा था कि मैं म ुसलमान ह ू ँ।' ’’ना म ुसाफ़िर भैया ना ,,आदमी ब ुरा नहींहै। असल बात बताऊं ?'
’’क्या।' ’’4ात का ठाक ु र नहींहै, बना ह ु आ है।' ’’क्या मतलब?' ’’अहीर हैहरनामपूर का, ठक ुराइन गीतानंदी का मन भाया था। उन्होंनेमाँ बाप की मर्ज़ी के बिना शादी करली उनसेहरनामपूर के ठाक ु र सुधानंदी ने दौलत जायदाद देकर दरू जमाल गढ़ी में फेंकवा दिया। यहां ठाक ु र कहलाया, अपनेआप म ु खिया बन गया। दौलत के आगेकौन बोले, सबने म ु खिया मान लिया। सोचेहैसब सलाम करें , सर झकाएँ ु और कोई बात नहींहै।' ’’और कोई सर नहींझकाए ु तो?' ’’ख़ुद झक ु जायेहै। सबको पता चल गया हैकि कै सा आदमी है, इसलिए लोग उस का मान रख लेंहैं।' ’’दिलचस्प बात है। अब होगा क्या?'
’’येतो ऊपर वाला ही जानेहै, मगर समझ मेंक ु छ नहीं आया। भागभरी पागल तो हैमगर ना जानेऐसी क्यों हो गई। छोड़ेंगेना येलोग उसे। ससुरी बस्ती सेभाग ही जायेतो अच्छा है।' अल्लादीन नेदखी ु आवाज मेंकहा। सराय आ गई थी ’’4ुबेदा बहन खाना पकाया हैक्या?' ’’हाँम ू ंग की दाल मेंपालक डाला है। मगर पैसेनहींदिए थेतु मने ’’अरी ख़ुदा की बंदी। अरी ख़ुदा की बंदी। क ु छ तो आँख की शरम रखा कर!' ’’ लो.. घोड़ा घास सेदोस्ती करेतो खाए क्या?।' ’’बहन ठीक कह रही हैंअल्लादीन भाई। आपनेवैसेही मेरेसाथ रियाइत करा दी है। येलो पैसेबहन!' मने ैं मतलब भर के पैसेदेदिए और बाक़ी बचे पैसेभी देदिए और कहा कि कल और पैसेदँगा। ू नही तो यहां सेचला जाऊं गा रात हो गई। चारों तरफ़ सन्नाटा छा गया। बाहर मिट्टी के तेल का रोड लैम्प रोशन था जिसकी रोशनी एक खिड़की के शीशेसेछन कर आ रही थी। मैंबिस्तर पर लेटा सोच रहा था कि अब म ुझेक्या करना चाहीए। ह ु क्म
मिला था जमाल गढ़ी जाऊं वहां सेब ु लावा है। आ गया था। हादसा भी मेरे साथ ही था। इस सिलसिलेमेंम ुझेक्या करना चाहिए। ना जानेकितना वक़्त इन्ही सोचों मेंग ुज़र गया फिर दिल नेक ु छ फ़ै सला किया और उठ गया। मटके मेंपानी था ही, लोटा भी था। व ुज़ूकर के उठा ही था कि ब ुरी तरह उछल पड़ा, ''लेना पकड़ना। जानेना पाए, पकड़ो।' की भयानक आवा4ेंसुनाई देरही थीं जल्दी मेंबाहर लपका और दरवाज़ा खोल कर निकल आया। दस पंद्रह लोग पथराव कर रहेथे, कोई 4मीन पर पड़ा ह ु आ था। ध्यान सेदेखा तो एक दिल हिला देनेवाला नजारा न4र आया। वही औरत भागभरी, तुलसी के नीचेदबी ह ुई थी। तुलसी शायद उसेबचानेके लिए उस के ऊपर गिर पड़ा था और पत्थर खा रहा था। उसनेअपना सर दोनों हाथों मेंछिपा रखा था और पत्थर उस के बदन पर पड़ रहे थे। प ूरा जिस्म थर्रा कर रह गया। बेबसी सेदेखता रहा, क्या करता। अचानक तुलसी उछल कर दरू जा गिरा। भागभरी नेउसेउछाल दिया था।
फिर उसनेभयानक चीख़ मारी, उस का चेहरा और सर के बाल ख़ू न से रंगीन हो रहेथेऔर इतनी भयानक लग रही थी कि बयान सेबाहर है। उसनेएक दसरी ू मिनमिनाती ह ुई चीख़ मारी और पथराव करनेवालों की तरफ़ लपकी। सारेके सारे सूरमा इस तरह पलट कर भागेकि हंसी आ जाये। दस बारह थे,और बढ़तेजा रहेथे, मगर सब जी छोड़ भागे। भागभरी नेदो तीन लंबी लंबी छलांगेंमारी और फिर एक तरफ़ म ुड़ गई। क ु छ देर के लिए सन्नाटा छा गया। मेरेपीछेअल्लादीन आकर खड़ा था। ’’क्या हो गया, किया ह ु आ म ुसाफ़िर भैया?' ’’शायद भागभरी आई थी।' ’’फिर' ’’लोगों नेउसेपत्थर मारे, जब वो उन पर दौड़ी तो वो सब भी भाग गए और भागभरी भी ग़ायब हो गई।' ’’अरे, वो तुलसी हैउसेक्या हो गया....... तुलसी अरेओ तु लसिया?'
’’ मार दिए भैया, जान निकाल दी हाय राम।' तुलसी रोनेऔर कराहने लगा और अल्लादीन उस के पास पह ु ंच गया ’’अरेअरेयेपत्थर, क्या उन्होंनेपत्थर मारेहैंतुझेभी?' अभी अल्लादीन नेइतना ही कहा था कि मारनेवालेशोर मचातेह ु ए दबारा ु आ गए। वो सब ग ुस्सेसेफ ुन्कार रहेथे ’’कहाँगई भागभरी,? कहाँछिपा दिया है?।' ’’घर मेंघ ुसी है। निकाल लाओ, जाओ। हाँनहींतो, मार मार कर हमारी जान निकाल दई।' तुलसी नेरोतेह ु ए कहा ’’ तू नेउसेभगाया है, तू नेउसेपत्थरों सेबचाया है। नहींतो आज वो मारी जाती।' किसी नेकहा ’’तो रुक काहैगए, मार मार पत्थर हमरी च ू र्ण बनाए देव, कौन रोके है तुमका।' तुलसी बोला
’’ तू ने म ु खिया जी के सामने वादा किया था कि तूभागभरी को पकड़वाएगा। बस्ती के दसरे ू लोगों की तरह मगर तू नेउसकी रक्षा की।' एक और शख़्स नेइल्ज़ाम लगाया ’’अरेतोहार रक्षा। चलो जरा तु म लोग म ु खिया के पास, हम उसेबताएं कि हम भागभरी को दबोच लियों कि वो लंबी ना हो जायेपर ई सबनेहमका पत्थर मार मार कर हटा दीन और ऊ का निकलवा दीन।' तुलसी नेवैसेरोते ह ु ए कहा इस बात पर सबको साँप सू ंघ गया। फिर उनमेंसेएक नेआगेबढ़कर तुलसी सेहमदर्दी सेकहा ’’ तू नेइसलिए पकड़ा था तुलसी?' ’’अरेजाओ बस जाओ तु म लोग बड़ेसूरमा हो, मरेको मॉरो हो।' लोग एक एक कर के खिसकनेलगे। फिर सन्नाटा हो गया। तुलसी अब भी रो रहा था, बच्चों की तरह ' हैंहैं' कर के और ना जानेक्यों मेरा दिल कट रहा था। अल्लादीन आगेबढ़कर उस के पास पह ु ंच गया
’’उठ तु लसिया।' उसनेतुलसी का हाथ पकड़ कर उठातेह ु ए कहा और वो उठ गया ’’बड़ा मारा हैहमका सबनेदीनो भैया, सुबह सेमार रहेहैं!' वो लगातार रोता ह ु आ बोला ’’आ मेरेसाथ अंदर आ जा।' अल्लादीन उसेसराय मेंलेआया। अंदर ला कर बिठाया और फिर आवा4 दी। " 4ुबेदा... अरी क्या घोड़ेबेच कर सोई है, एक पियाला दध ू लेआ" ’’हम ना पी हैदीनो भैया, जी ना चाह रहा भैया सही में।' तुलसी अब भी उसी तरह रो रहा था ’’चप ु तो हो जा तुलसी, क्या ज़्यादा चोट लगी है?' अल्लादीन नेहमदर्दी से कहा ’’अरेहम चोट पर ना रो रहे। हमार मन तो बहिनिं या के लिए रोवेहै, माता की सौगन्ध दीनो भैया हमार बहिनिं या डायन ना है। हम उसेजानेंहैं। ओ ससुरी तो ख ुद ही करमजली है। औलाद के दख ु की मारी। तु म ख ुद देखत रहेहो बच्चेउसेपत्थर मारेंहैं। वो उनसेक ु छ कहेहैकभी।'
’’मगर तुलसी सुबह को उसेम ुसाफ़िर भैया नेदेखा था।' अल्लादीन बोला ’’अरे पगलिया तो हैही, डोलत डोलत फिरे है। शरीर पड़ा देखा होगा रघुबीरा के छोरा का। बैठ गई होगी। टटोलनेलगी होगी। ख ू न लग गया हाथ मँ ुह पर, किसी नेउसेकलेजा खातेह ु ए देखा?" मेरा दिल धक सेहो गया। ऐसा हो सकता था, येम ु मकिन था। येख ुलासा मने ैं किया था। बस्ती वालों को म ुझसेही येसब क ु छ माल ू म ह ु आ था, मैं पथरा गया। तुलसी कह रहा था। ''अब अल्लादीन भैया ,सब लाग ूहो गए हैं , मार डालेंगेहमार बहिनिं या को सब मिल कर" ’’नहींतुलसी। ऐसा नहींहोगा।' मेरेमँ ुह सेनिकला ’’ऐसा ही होगा हमका पता है।' ’’अगर भागभरी नेपागलपन में , इन बच्चों को मार कर उनका कलेजा नहीं खा लिया हैतुलसी ,तो मैंवादा करता ह ू ँजमाल गढ़ी वालों की ये ग़लतफ़हमी दरू कर दँगा। ू अगर उसनेऐसा किया हैतो फिर मजब ूरी है।' ’’ तूयहींसो जा तुलसी अपनेघर मत जा।'
’’ना दीनो भैया, घर जानेदो अगर वो फिर आ गई तो। दीनो भैया सच कहें , हम कोई उसेपकड़ थोड़ी रहेथे। हम तो उसेबचा रहेथे। उसपर पड़नेवाले पत्थर खा रहेथे। बहिनिया हैहमार ऊ। अरेहम उसेना मरनेदेंगे। चले भैया तुम्हरी मेहरबानी।' वो वहांसेचला गया बह ु त देर ख़ामोशी रही। फिर मने ैं कहा। ''अल्लादीन भाई तुम्हारा क्या सोचना है। क्या वो डायन है।' ’’रब ही जाने।' अल्लादीन गहरी सांस लेकर बोला ’’एक बात बताओ अल्लादीन।' ’’ह ू ँ।' ’’बस्ती वालेम ु खिया की बात मानतेहैं?' ’’बह ु त, किसी बात पर टेढ़ा हो जायेतो सब सीधेहो जातेहैं।' ’’मैंम ु खिया सेमिलँ ूगा। उससेकह ू ँगा कि वो बस्ती वालों का ज ु न ू न ख़तम करे। उनसेकहेकि वो ख़ुद खोज कर रहा है। पता चल गया कि भागभरी ही
डायन हैतो वो ख़ुद उसेस4ा देगा। उसनेबस्ती वालों सेयेबात कही भी थी।' मने ैं इतना कहा ही था कि अंदर से4ुबेदा की आवा4 सुनाई दी ’’अरेअब अंदर आओगेया बाहर ही रहोगे?। मैंकब सेबैठी ह ू ँ।' ’’जाग रही है? अच्छा म ुसाफ़िर भैया आराम करो।' अल्लादीन अन्दर चला गया। मैंअपनेकमरेमेंआ गया।वु4ू किया ह ु आ था और इस हंगामेसेपहलेएक इरादा कर के उठा था तो इस पर अमल का फ़ै सला कर लिया। एक साफ़ सुथरी जगह का च ु नाव किया और वहां बैठ कर आँखेंबंद करलीं। म ुझेदरूदु शरीफ़ बताया गया था। य ू ं तो कलाम इलाही का हर 4ेर 4बर पेश मद और जज़्म (मात्राएं) अपनी जगह आसमान हैमगर म ुझेरास्ता बतानेके लिए दरूदु पाक बता दिया गया था, आँखेंबंद कर के मने ैं पढ़ना श ु रू कर दिया। पढ़ता रहा दिमाग सो सा गया था मगर होंटों सेदरूदु पाक पढ़ना जारी रहा। तब मेरेदिमाग मेंक ु छ साए सेउभरनेलगे।
एक जानवर सी शक्ल उभरी जो ताज पहनेह ु ए था फिर एक इमारत का ढांचा उभरनेलगा। उस जानवर की शक्ल के क़दमों मेंकोई काली सी चीज फड़क रही थी, समझ मेंना आ सका कि वह क्या है। इमारत के बड़ेसे दरवाज़े पर फिर एक चेहरा दिखा। पहलेआँखेंफिर नाक और होंट फिर प ूरा चेहरा। एक प ूरा चेहरा जो किसी औरत का था। इस के बाद दिमाग़ को झटका सा लगा और मैंजैसेजाग गया। मेरेमाथेपर बल पड़ गए। क ु छ समझ नहीं पा रहा था। वो चेहरा याद था, इमारत का बनावट याद था और बस। देर तक उस के बारेमेंसोचता रहा उस के बाद दबारा ु दरूदु शरीफ़ पढ़ना श ु रू किया। और क ु छ जानना चाहता था लेकिन शायद इस सेज़्यादा क ु छ नहीं बताया जाना था इसलिए नींद आ गई और वहीं ल ुढ़क कर सो गया। ना जानेकितना वक़्त ग ुज़रा था सोतेह ु ए कि अचानक एक भयानक चीख़ सुनाई दी और फिर लगातार चीख़ेंउभरनेलगीं। एक पल तो दिमाग़ सन्नाटे मेंरहा फिर एहसास ह ु आ कि चीख़ों की आवा4ें 4ुबेदा और अल्लादिन की हैं।
उठा और दौड़ता ह ु आ कमरेसेबाहर निकल आया। 4ुबेदा ही थी और उसके मँ ुह सेआवा4ेंनिकल थीं। ’’हो, हो, हो।' इस का ह ु लिया बिगड़ा ह ु आ था। चेहरा डर के मारेलाल हो रहा था। आँखें फटी ह ुई थीं। उसका एक हाथ कमरेके दरवाज़ेकी तरफ़ उठा ह ु आ था और वो क ु छ कहना चाह रही थी मगर डर ने4बान लड़खड़ा दी थी। चीख़ों की आवा4 के सिवा क ु छ मँ ुह सेनहीं निकल पा रहा था। अल्लादीन भैया की हालत भी उससेक ु छ अलग नहीं थी। इन दोनों को सँभालना तो म ु श्किल था मगर येअंदा4ा हो गया था कि जो क ु छ भी हैइस कमरेमेंहैजिसमेंये सोतेहैं , मैंअल्लाह का नाम लेकर कमरेके ख ु लेदरवाज़ेसेअंदर चला गया। अंदर लालटैन टिमटिमा रही थी और इस की मद्धम मलगजी रोशनी कमरेके माहौल को और डरावना बना रही थी। बिस्तर पर कल्ल ूबेसु ध पड़ा ह ु आ था। अचानक मेरेरौंगटेखड़ेहो गए। दिल उछल कर म ुंह मेंआ गया कल्ल ू... कल्ल ू मेंहरकत नही हैइतनेचीख ओ प ुकार के बाद भी उस के
बदन मेंहरकत नहीं है। तो क्या वो? मगर येसोच प ूरी भी नहीं ह ुई थी कि अचानक चौड़ेपलंग के नीचेसेदो हाथ बाहर निकलेऔर उन्होंनेतेजी से मेरेदोनों पांव पकड़ कर खींचे। मैंख ुद को ना सँभाल सका और धड़ाम से नीचेआ रहा। मेरेगिरतेही एक भयानक वज ूद पलंग के नीचेसेनिकल आया। वो वहशियाना अंदा4 मेंमेरेसीनेपर आ चढ़ा था और मेरेअंगों को बिलक ु ल जैसेलकवा हो गया था। ख़ौफ़नाक वज ूद एक पल मेरेसीनेपर सवार रहा फिर उसनेएक और चीख़ मारी और मेरेसीनेसेउतर कर दरवाज़ेकी तरफ़ लपका और झपाक सेबाहर निकल गया। अल्लादीन दबारा ु चीख़ा। 4ुबेदा धड़ाम से4मीन पर गिर पड़ी। वो शायद बेहोश हो गई थी। मैंसँभल कर खड़ा हो गया। अल्लादीन डरी ह ुई आवाज मेंबोला। ''निकल गई, निकल गई।' मने ैं कोई जवाब नहीं दिया और पहलेअल्लादीन के बेटेकल्ल ू को देखा। ग़ौर सेदेखनेसेअंदा4ा हो गया कि बच्चा गहरी नींद सो रहा हैऔर कोई बात नहीं है। अंदा4ेसेमने ैं एक ख़ौफ़नाक वज ूद को भी पहचान लिया था।
वो भागभरी ही हो सकती थी। अल्लादीन एक तरफ़ बीवी को सँभाल रहा था और दसरी ू तरफ़ बेटेके लिए फ़िक्र कर रहा था ’’तुम्हारा बेटा सो रहा हैऔर बिलक ु ल ठीक है।' मने ैं उसेबताया ’’अरे4ुबेदा, होश मेंआ, कल्ल ूठीक है, उसेक ु छ नहीं ह ु आ।' अल्लादीन ने उसेउठा कर चारपाई पर लिटाया और मेरेपास आकर कल्ल ू को देखने लगा। फिर हाथ जोड़ कर बोला। '' मालिक तेरा श ुक्र है।' ’’वो भागभरी थी?' मने ैं प ूछा ’’अरेहाँइस ससुरी नेतो नाक मेंदम ही कर दिया। आज यहांभी आ घ ुसी। अब क्या होगा? मालिक ना करेअगर हम जाग ना जातेतो!' ’’क्या ह ु आ था?' ’बस म ुसाफ़िर भैया येधमाचौकड़ी ह ुई तो दरवाज़ा ख ु ला रह गया। हम सो गए थे, किसी खटके सेआँख ख ु ली तो इस भेड़नी को देखा, कल्ल ूपर झकी ु ह ुई थी। हम समझेकि मालिक ना करे.. .. मौला तेरा लाख लाख श ुक्र है।' अल्लादीन सज्देकरनेलगा
क ु छ देर के बाद 4ुबेदा बेगम होश मेंआगईं। चीख़ेंमार कर रोनेलगीं। बड़ी म ु श्किल सेउन्हेंयक़ीन आया कि बेटा ज़ि4ंदा है। ना जानेक्या-क्या उल्टा सीधा बकनेलगीं। मैंवापस अपनेकमरेमेंआ गया था। रात लगभग प ूरी बीत चकी ु थी। इस के बाद नींद नहीं आई। नमाज़ पढ़ कर बाहर निकल आया। बड़ी ख़ुशगवार सुबह थी। नन्हे म ु न्ने परिंदे चहलें ु कर रहे थे। अल्लादीन भी मेरेपास आ गया। मने ैं म ुस्क ु रा कर उसेदेखा तो वो फ़िक्र से बोला। ''बड़ी म ु श्किल आगई भैया, अब होगा क्या?' ’’सब ठीक हो जाएगा, फ़िक्र मत करो।' ’’घरवाली तो ब ुरी तरह डर गई है। ब ुख़ार आ गया हैबेचारी को, वैसेअब तो क ु छ गड़बड़ लगेही हैम ुसाफ़िर भैया!' ’’क्या?' ’’भागभरी डायन बन ही गई। बाल बाल बच गया हमारा कल्ल ू !'
अल्लादीन नेकहा। मेरेपास कहनेके लिए क ु छ नहींथा, क्या कहता। अभी तक कोई फ़ै सलेवाली बात कहना म ु श्किल ही था ’’चाय बना लें, नाशतेमेंक्या खाओगे?" ’’जो भी मिल जाये।' मने ैं कहा और अल्लादीन चला गया। मैंख़यालों में खो गया। वो चेहरा और वो इमारत याद थी जिसेम ुराकिबा(ध्यान/समाधि) के हालत मेंदेखा था। बता दिया गया था कि अब ख़ुद पर भरोसा करूँ। कम्बल वापस लेलिया गया था। इमतिहान था मगर दिल को यक़ीन था कि इमतिहान मेंप ूरा उतारने वाली भी वही हस्ती हैजिसनेइस इमतिहान को श ु रू किया है। खयालों में जेब मेंहाथ चला गया। कोई जानी पहचानी सी चीज हाथ आई, निकाल कर देखा तो चार रुपय थे।येग़ैबी मदद थी। म ुझेइस भरोसेपर यक़ीन दिलाया गया था जो मेरेदिल मेंथा। मेरा व4ीफ़ा म ुझेपह ु ंचा दिया गया था। बड़ी हिम्मत मिली। दिल को और सु क ू न हो गया कि जो क ु छ होगा, बेहतर होगा। चाय पीतेह ु ए तीन रुपय अल्लादीन को देदिए। वो बोला। ''शर्मिंदा कर रहेहो भैया! मगर इतनेकाहैको?'
’’बस हिसाब रखना, कल फिर दँगा ू अल्लादीन नेशर्मिंदगी सेसर झका ु लिया था। कोई नौ बजेहोंगेकि तुलसी कराहता ह ु आ आ गया ’’ब ुख़ार चढ़ गया हैसुसरा भैया दीनो, एक उठनी उधार देदोगे ’’हाँहाँक्यों नहीं, येलो।' अल्लादीन नेजेब सेउठनी निकाल ली ’’येरुपया भी लेलो तुलसी, फ़ालतू पड़ा हैमेरी जेब में।' मने ैं जेब सेरुपया निकाल कर तुलसी को दिया जो उसनेबड़ी म ु श्किल सेलिया था। ग्यारह बजेके आस पास मेंबस्ती घ ू मनेनिकल गया। आबादी बह ु त छोटी थी। एक मस्जिद भी बनी ह ुई थी मगर अच्छी हालत मेंनही थी, कोई देख-भाल करनेवाला भी नहींन4र आया। अंदर दाख़िल हो गया, सफ़ाई सुथराई की। अ4ान भी नहीं ह ुई, मने ैं ख़ुद अ4ान दी लेकिन एक भी नमा4ी ना आया। नमाज़ पढ़ कर घ ू मनेनिकल गया। खेतों और जंगलों के सिवा क ु छ नहींथा वहाँ! काफ़ी दरू निकल आनेके बाद एक मठ न4र आया। इस के पीछेएक काली रंग की इमारत भी न4र आई थी। क़दम इसी तरफ उठ गए। इमारत के चारो तरफ़ मेंइन्सानी क़द सेऊं ची झाड़ियाँदिखाई देरही थीं। उनके
बीच एक पतली सी पगडंडी भी फै ली ह ुई थी जो इसी इमारत तक जाती थी। मैंइसी पगडंडी पर आगे बढ़ता रहा। रास्ते में कई जगह साँपों की सरसराहाट भी सुनाई दी थी। येपता चल गया था कि उन झाड़ीयों मेंसाँप भी थे। वीरानेमेंबनी ह ुई येइमारत बड़ी अजीब न4र आ रही थी लेकिन मेरेलिए बह ु त दिलचस्पी की वजह थी। इसलिए मैंआगेबढ़ता ह ु आ उस के दरवाज़ेपर पह ु ंच गया और फिर अचानक ही मेरेदिमाग़ को एक झटका सा लगा। म ुराकिबा मेंजो इमारत मने ैं देखी थी, इस वक्त वही इमारत मेरी निगाहों के सामनेथी। कम सेकम इस सिलसिलेमेंम ुझेअपनी याददाश्त पर भरोसा था। मेरा दिल ते4ी सेधड़कनेलगा। इस का मतलब हैकि जो निशानदही की गई थी, वो बिलक ु ल प ूरी और सही थी और पक्के तौर पर म ुझेयहांसेकोई रास्ता जरूर मिलेगा। वही मेहराबें , वही अंदा4 आगेबढ़ता ह ु आ इस बड़ेसेठंडेहाल मेंपह ु ंच गया जहैंहल्का अंधेरा था, रोशन दानों सेझलकनेवालेक ु छ उजालेने माहौल को थोड़ा सा देखनेलायक कर दिया था वर्ना शायद न4र भी ना आता। बीच मेंएक म ूर्तिलगा ह ु आ था। हाथ मेंहथियार लिए, येम ूर्तिबह ु त
ख़ौफ़नाक दिख रहा था और इस सुनसान माहौल मेंय ू ं लग रहा था जैसे अभी येम ूरत अपनी जगह सेआगेबढ़ेगा और म ुझ पर हमला कर देगा। मने ैं उस की आँखों मेंएक अजीब चमक देखा , वैसेवह पत्थर का तराशा ह ु आ म ूरत था लेकिन आँखेंजानदार लग रही थीं। मैंइन आँखों मेंआँखें डाल कर देखता रहा लेकिन उस मेंकोई हलचल नहीं ह ुई थी। येसिर्फ़ तन्हाई और माहौल का दिया ह ु आ एक खयाल भर था लेकिन येबात मैं अच्छी तरह जानता था कि म ुझेयहांतक बे-मक़्सद नही पह ु ंचाया गया है। आगेबढ़कर म ूरत के बिलक ु ल क़रीब पह ु ंच गया। हल्की हल्की सरसराहाटों सेय ू ंमहसूस ह ु आ था जैसेआस-पास कहींकोई मौज ूद हैलेकिन न4र कोई भी नहीं आ रहा था। मने ैं म ूरत के क़दमों मेंदेखा और घ ुटनों पर बैठ कर देखनेलगा। काला जाद ू काला जादू 53---
म ुराकिबा (ध्यान/समाधि) मेंम ुझेउन पैरों के न4दीक कोई काली सी चीज फड़कती ह ुई न4र आई थी लेकिन अभी न4र कोई भी नहींआ रहा था। हाँ, ख़ू न के क ु छ धब्बेसाफ तौर पर देखेजा सकतेथेहालाँकि उनका अंदा4ा लगाना भी म ु श्किल था। मने ैं उल्टेहाथ सेख़ू न को थोड़ा सा रगड़ कर देखा तो वो अपनी जगह सेछूट गया और उसके के छोटेछोटेजर्रे मेरी उंगली में लगेरह गए उस के बाद मने ैं इस हाल के एक एक कोनेका जाय4ा लिया। अंदर की ओर एक दरवाज़ा बना ह ु आथा, हिम्मत करके मेंइस दरवाज़ेसे अंदर दाख़िल हो गया। छोटा सा एक कमरा था लेकिन ख़ाली! क ु छ भी वहां मौज ूद नहींथी। वहांसेबाहर निकल आया और य ू ंलगा जैसेकोई भाग कर दरवाज़ेसेबाहर निकल गया हो। ते4ी सेदौड़ता ह ु आ बाहर आया और दरू दरू तक निगाहें दौड़ायं लेकिन अगर कोई था भी तो उसेतलाश करना म ु मकिन नहींथा क्योंकि आस-पास बिखरी ह ुई झाड़ीयों मेंतो अगर सैकड़ों इन्सान भी छिप जातेतो उनका सुराग़ लगाना म ु श्किल होता। येजगह पक्के तौर पर बह ु त रहसयमयी थी। भागतेह ु ए क़दमों का पीछा करता ह ु आ मैंबाहर निकला था लेकिन अभी वहां बह ु त सी चीज़ेंदेखनेके लिए मौज ूद
थीं येसोच कर एक बार फिर अंदर चला गया और एक-बार फिर हाल में इधर उधर दीवारों, कोनों, खोपचो को तलाश करनेलगा। साफ़ दिख रहा था कि येजगह इन्सानी पह ु ंच सेदरू नहीं है। दीवार मेंदो मशालेंगड़ी ह ुई थीं जिनमेंन जानेक्या ची4 जलाई जाती थी। रूई सेबनी ह ुई बत्तियां उन मशालों मेंतराशेह ु ए दियों मेंपड़ी ह ुई थीं और एक अजीब सेरंग का मोम जैसा भी क ु छ उसमेमौज ूद था। येबत्तियांयक़ीन हैकि रोशन कर दी जाती होंगी। हो सकता हैयहांप ू जा होती हो। साफ हैहर म4हब के मतवालेअपनेअपनेधरम के हिसाब सेयेकाम करतेही हैंलेकिन जगह बेहद भयानक और रहसमयी थी। मने ैं उस का प ूरा प ूरा जाय4ा लिया और इस के बाद वहांसेभी बाहर निकल आया। झाड़ीयों के बीच सेग ुज़रता ह ु आ एक-बार फिर खेतों के क़रीब पह ु ंचा। चार पाँच लोगों का एक गिरोह न4र आया जो हाथों मेंलाठीयां लिए चौकन्नेअंदा4 मेंआगेबढ़ रहा था। येसब अनजानेचेहरेथेलेकिन वो शायद म ुझेजानते थे। तीखी निगाहों सेम ुझेदेखनेलगेऔर मेरी तरफ़ इशारा करके बातें