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Published by Narakas - Mumbai, 2020-10-18 23:05:12

Rajbhasha Pravah 2020 E-Book

Rajbhasha Pravah 2020 E-Book

तं को साफ कर सकते ह, अपनी उजा बढ़ा सकते ह और आइस म का सवे न िब कु ल ना कर. ठंडे पदाथ आपक
कोरोना वायरस को दूर रख सकते ह. कु छ योगासन का पाचन अि न, पाचन मता को दबा दगे और ठंड के सपं क म
अ यास कर भी अपनी सेहत को बेहतर रख सकते ह जैसे आने से आपक ाकृ ितक ितरोधक मता कम हो जाएगी.
ऊं ट मु ा, कोबरा मु ा, गौ मु ा, नाव, धनुष और कु ल मु ा, पूरे िदन थोड़ा अदरक डाला पानी ल और अदरक क गम
िटड्ड, कमल और शेर मु ा. अगर आपको लगता है िक यह चाय ल.
आसन थोड़े मुि कल ह तो बस सूय नम कार कर.
चरक सिं हता के उ “जनपद वसं यािध” अ याय म
सूय नम कार कम से कम सात (7) और अिधकतम एक अ ुत सदं शे है. इसका मतलब यह है िक महामारी के
बारह (बारह ) बार कर. 7 बार करने का कारण यह है िक दौरान जोर-जोर से ढोल या नगाड़े बजाने चािहए. आप समझ
हमारे शरीर म सात उ क बताए गए ह. सूय नम कार म 12 गए ह गे िक लॉकडाउन के दौरान भारत के धानमं ी ने
मह वपूण मु ाएं होती ह. सूय नम कार के बाद ाणायाम कर लोग से यह आ ह य िकया होगा. बड़े साथक ढंग से
और िफर कु छ समय यान के िलए बैठ. यान के िलए आप उ ह ने इसे कोरोना वायरस से लड़ने वाले यो ाओं को
सोहम यान कर सकते ह. इसके िलए चुपचाप कमल मु ा स मािनत करने से जोड़ा. हम अपने घर म भी पूजा, अनु ान
म, िस ासन मु ा या सहजासन मु ा म बैठ और अपने कर सकते ह. थोड़ा कपूर जला सकते ह, आरती कर सकते
िदमाग म “सो” विन के साथ ांस ल और “हम” विन से ह और तेल या घी का िदया जला सकते ह. घर के अ य
वांस छोड़. जब आप ऐसा सोहम यान करते ह तो आप लोग पूजा के दौरान ताली बजा सकते ह. तािलया ढोल-
आतं रक खुशी, आतं रक सुदं रता महसूस करगे. िफर नगाड़े बजाने का अपना मह व ह.ै यह दय को, फे फड़ को,
चुपचाप बैठ और अपनी उपि थित महसूस कर. आपक यह िकडनी को सि य करता है और आतं रक ऊजा का सचं ार
सहजता ही सजगता है और यही सजगता आनदं ह.ै करता ह.ै हम ओम या ह र ओम का जाप कर सकते ह. राम
-राम या जय गणशे कह सकते ह. यह सभी बहत रचना मक
सत् (यानी स य ), िचत् (यानी सजगता, चैत यता ) ह, उ च चेतना के सकारा मक कं पन ह, इससे प रवार क
और आनंद ये के वल तीन श द नह ह बि क एक ही एकजुटता बढ़ती ह.ै
प रणाम दते े ह और वह है सजगता. इसिलए हम यह दखे ना
होगा िक इस बाहरी दुिनया म या चल रहा ह.ै जो भी चल उि (उठो )...., जा त (जागो).... ा य वराि नबोधत
रहा है, वह आएगा और जाएगा, इस दुिनया म कु छ भी थाई (सव च ान ा करो )...
नह है. यहां तक िक यह कोरोना वायरस भी नह . यह आया
है तो इसका जाना भी तय ह.ै लेिकन हम अपनी अखडं ता, हम एक साथ चलना, एक साथ साझा करना, एक
स ाव, खुशी और शरीर के मन और चेतना के बीच सतं ुलन साथ खड़े होना है लेिकन थोड़ी दूरी के साथ. हमारी सं कृ ित
रखना होगा. यह घर पर रहने और घर का बना खाना खाने म हाथ िमलाने क नह बि क दोन हाथ जोड़कर नम कार
का मौका है. करने क परपं रा रही ह.ै नम ते एक बहत ही सुदं र और
सौ य इशारा है. यिद आप अपने िम या जान- पहचान वाले
भोजन म बासमती चावल और मूंग दाल क िखचड़ी यि को दखे ते ह और हाथ जोड़कर नम ते करते ह तो
के साथ मनचाही स जी का आनंद ल. गम खाना अ छा है. दखे ने वाल को भी यह भाता है. कोरोना वायरस के सं मण
ठंडी चीज जैसे को ड ि ंक, ि ज का पानी, दही, पनीर या ने इस बात को याद िदलाया िक यह ऐसा अिभवादन है

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िजसम 2 लोग के हाथ का सीधा सपं क नह होता है. साथ िगलोय तुलसी के काढ़े का सेवन करने से ितरोधक
कोरोना वायरस के दौरान ि टेन, इटली आिद जसै े िवकिसत मता बढ़ती है और इससे सभी कार के वायरस ख म हो
दशे क गणमा य लोग को भी आपने टीवी पर नम ते करते जाते ह.
दखे ा होगा. एक साथ खड़े होने पर, िमलकर कोई काम करने
पर आप ऊजा और आनंद का सचं ार महसूस करगे. िव वा य सगं ठन के अनुसार, कोरोना वायरस के
िखलाफ खुद को बचाने का सबसे भावी तरीका यह है िक
आयुवद िवशेष ने जोर दके र कहा है िक आवं ला, अ कोहल- आधा रत सैिनटाइजर से या साबुन और पानी से
िगलोय, िशलाजीत और नीम जैसी औषधीय जड़ी -बूिटयां अपने हाथ को िदन म कई बार धोना चािहए. मा क से नाक
हमारी ितर ा णाली को मजबूत करने म सहायक होती ह और मुंह को ढकना चािहए. लोग को के वल अ छी तरह से
और हम घातक वायरस से बचाती ह. आयुवद िवशेष के पका हआ भोजन खाना चािहए, सावजिनक जगह म थूकं ने
अनुसार यवन ाश का एक च मच ितिदन सेवन करने से से बचना चािहए और िनकट सपं क से बचना चािहए. बीमार
रोग ितरोधक मता बढ़ती है और यह वायरस के सार को होने पर तुरतं िचिक सा दखे भाल लेना बहत ज री है.
रोकने म मदद कर सकता है. हम सभी जानते ह िक िकसी
भी कार क बाहरी बीमारी से लड़ने के िलए मजबूत हमारे दशे म कोरोना वायरस के बढ़ते मामल और मृ यु क
ितर ा आव यक है. कोरोना वायरस मु य प से फे फड़े दर के कम होने और सं मण से मु होने क दर ( वतमान
और सन णाली को भािवत करता है. यवन ाश का एक म लगभग 40% है), के पीछे भारतीय वातावरण और
बड़ा चमचा रोजाना खाने से ितरोधक मता बढ़ती है, खानपान क महती भूिमका मानी जा रही है. िपछले तीन-चार
िवशेष प से फे फड़ और सन णाली क . महीन म भारत का मौसम गम रहा ह.ै हमारे खान पान म
ह दी, धिनया, लहसुन, अजवाइन, याज, लॉ ग, इलायची,
आवं ला, िगलोय, नीम, कु टक और तुलसी कु छ ऐसे दालचीनी, ना रयल जसै ी चीज का बहतायत से इ तेमाल
आयुविदक जड़ी बूिटयां ह जो ितरोधक मता के िनमाण िकया जाता है. खाना पकाने से पहले, खाना खाने से पहले
और सं मण को रोकने म सहायक ह. यह सुझाव भी िदया और शौचालय का उपयोग करने के बाद नान करना हमारी
जा रहा है िक येक नथुने म ितल के तेल क दो-तीन बूदं सं कृ ित का अिभ न अगं रहा ह.ै हालांिक भारत िवकिसत
डालने और इसे सूघं ने से ना के वल नाक के माग और गले दशे क सूची म शुमार नह ह,ै लेिकन हमारी सं कृ ित,
को िचकनाई िमलेगी, बि क बाहरी िवषाणुओं को दूर रखने के स यता, और िवरासत इतने समृ ह िक महाशि अमे रका
िलए आतं रक बलगम िझ ली को भी मजबूत करगे ा. सिहत दुिनया के अनेक िवकिसत दशे ने कोिवड-19 जैसे
विै क सकं ट के समय हमारा लोहा माना है. हम अपनी
घातक वायरस ारा सं मण को रोकने के िलए योग पुरातन परपं राओं और पा रवा रक- सामािजक आदत को
गु रामदवे ने एक वीिडयो म कु छ आयुविदक िट स भी अपनी अगली पीढ़ी तक ले जाना होगा, िजदं ा रखना होगा.
बताए ह. वे कहते ह िक कोिवड-19 से लड़ने के िलए, िगलोय
और तुलसी मददगार हो सकते ह. यिद िकसी म कोरोना बड़े दौर गजु रे ह िजदं गी के , यह दौर भी गजु र जाएगा,
वायरस के ल ण ह, तो काली िमच, ह दी और अदरक के
थाम लो अपने पावं को घर म, कोरोना भी थम जाएगा.

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राजभाषा के चार- सार एवं िवकास म िहदं ी
सािह यकार का योगदान

िकसी भी रा म उस भाषा का स मान होता है जो दशे के अ यिधक लोग ारा यु क जाती ह.ै ाचीन
काल से राजभाषा िहदं ी भारत म सवं ाद क ि से एक मुख भाषा के प म रही है. भारत सरकार क सभी
क याणकारी योजनाओं एवं काय म क जानका रय को आम जनता तक सुगमता से पहचँ ाने के िलए इसे सिं वधान म
राजभाषा के प म वीकार िकया गया. िहदं ी, भारतीय समाज क िवरासत, ान, सं कृ ित और सं कार को भावी
पीिढय तक पहचँ ाने म पूणतया स म ह.ै िहदं ी एक उदार और सव-समावेशी भाषा ह.ै

राजभाषा िहदं ी ने कई वष तक कई चुनौितय और सघं ष का सामना िकया है पर तु येक सघं ष और चुनौती ने
इसे नई शि दान क ह.ै व तुत: िहदं ी पूरे दशे को जोड़ने वाली और पूरे दशे को एकता और अखंडता के सू म
बांधने वाली एक भावी सपं क भाषा ह.ै

आज िहदं ी हमारे समाज के जाग क सािह यकार , पयटन, यापार , सतं ो, योग गु ओं और समाज सुधारक के
मा यम से अ तररा ीय प म िवकिसत हो रही ह.ै आज िहदं ी के िवकास और उ थान क िदशा म अनेक यास हो
रहे ह. राजभाषा िहदं ी के चार- सार एवं िवकास म िन निलिखत कितपय िहदं ी सािह यकार का भी मह वपूण योगदान
रहा ह-ै

1) तुलसीदास
2) मुशं ी मे चदं
3) महादवे ी वमा
4) भारते दु ह र ं
5) रामधारी िसहं िदनकर
6) सूयकांत ि पाठी िनराला
7) मैिथलीशरण गु
8) महावीर सार ि वेदी

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(1) तुलसीदास

(सन 1479 से 1423)

राम बोल कर ज म िलया, िफर जग ने िकया उपहास,
रामच रतमानस को िलखकर, बना िदया इितहास,
जब प नी ने एहसास कराया, मावन पी जीवन का,

तब ी चरण म यान लगाकर, वो बन गए तुलसीदास।
तुलसीदास को ज म से ही िनधनता का अिभशाप सहन करना पड़ा िजसे उ ह ने किवतावली के उ रकाडं म वयं
अिभ य िकया ह।ै

“जायो कु ल मंगन वधावनो बजायो सुिन
भयो प रताप पाप जनक जनक को।
बार त ललात िबललात ारा ार दीन,
जानत है चा रफल जा र ही जनक को। ”

िनधनता म चार चन के िलए ार- ार भटकने वाले बालक तुलसी को बालपन से ही अपनी अकु लीनता एवं अ ान
जाित-पािं त को लेकर वणा म धम के ठेके दार के उपहास और अपमानजनक यवहार का सामना करना पड़ा।

अपने जीवनकाल म उ ह ने 12 थं िलखे। सं कृ त भाषा के िव ान होने के साथ-साथ इनको िहदं ी भाषा का िस
और सव े किव माना जाता ह।ै इ ह ने वण एवं जाित को चुनौती दीः

धूत कहो, अवधूत कह , जुलाह कहो कोउ,
काह क बेटी स , बेटो ने याहाब, काह क जाित िबगार न सोऊ।
तुलसी सरनाम गुलाम है राम को, जाकौ चौ सो कहे कु छ औऊ।
मांिग के सैबो मसीत को सोइब , लेबे को एक न दबे े को दोऊ।

इस छंद म तुलसीदास के समूचे जीवन का सघं ष िचि त हो गया ह।ै

तुलसीदास को तरह-तरह के नाम से पुकारा जाता था, तब तुलसीदास को कहना पड़ा िक तुम अपनी जाित को
लेकर खुश रहो, हम तुम से लेना एक न दने ा दो।

तुलसीदास क भि सभी जाितय एवं वण को िमलाने वाली थी। तुलसीदास इ लाम िवरोधी नह थ, किवतावली म
उ ह ने मांग कर खाने एवं मि जद म सोने क बात कही है।

पुरोिहत ल गो के ारा तुलसी के िवरोध का कारण भी यही था िक तुलसी क भि वण, जाित, धम, आिद के कारण
िकसी का भी बिह कार नही करती। तुलसीदास के वल भ ही नह थे वे ेम एवं स दय के किव भी थे उनक भि पूरी
तरह मानववाद म डू बी हई है।

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(2) मशंु ी मे चदं

(31 जुलाई, 1880 से 8 अ टुबर, 1936)

इनका ज म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के िनकट लमही गावँ म हआ था। उनक िश ा का आरभं
उदू और फारसी से हआ। इसिलए वे ारभं म उदू म िलखा करते थे। 7 वष क अव था म माता का एवं 14
वष क अव था म िपता का दहे ा त हो गया। इसिलए उनका ारिं भक जीवन काफ सघं षमय रहा। उनका
िववाह 15 वष क उ म हो गया जो सफल नह रहा। उनक रचना “सोजे वतन” ज त कर ली गई तथा
उनपर जनता को भड़काने का आरोप लगा।

ेमचदं ने अपने सािह य म जहाँ समाज का यथाथवादी िच तुत िकया है, वही दुसरी ओर एक
आदश से भी सबं िं धत कर िदया है। इसिलए उनके उप यास उ चकोिट के समझे जाते ह, जहाँ यथाथ और
आदश दोन का समावेश हो गया है। इसे आप आदश मुख यथाथवाद कह सकते ह।

आधुिनक िहदं ी क सवािधक िव ा कहानी और उप यास को िति त करने म अपने योगदान के कारण
ेमचदं उप यास स ाट कहलाए।

गितशील मानवतावादी ि से पूण उनक कहािनय और उप यास ने भारतीय जन चेतना को
सवािधक भािवत िकया। ारभं म वे अपने मूल नाम धनपतराय और नवाबराय से उदू म िलखा करते थे िकं तु
बाद म वे िहदं ी क ओर उ मुख हो गए और मे चदं के नाम से िलखने लगे। कथा सािह य म वे िव तर के
लेखक ह । “कफन” और “पूस क रात” उनक सवािधक चिचत कहािनयां ह ।

उनक मुख रचनाएं – गोदान, गबन, सेवासदन, ेमा म , रगं भूिम, मे िपयुश आिद।
सवे ा सदन, मा म, िनमला, रगं भूिम, कमभूिम और कायाक प ेमचदं के िस उप यास ह ।

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(3) महादेवी वमा

प रचचा िदनाकं 13/09/2016

महादवे ी वमा िहदं ी क सवािधक ितभावान कवियि य म से एक ह। वे िहदं ी सािह य म छायावादी युग के मुख
तभं म से एक मह वपूण तंभ मानी जाती ह । महादवे ी वमा का ज म 26 माच, 1907 को उ र दशे के एक सपं न
प रवार म हआ। महादवे ी वमा के दय म शैशवाकाल से ही जीव मा के ित क णा और जीव दया थी। महादवे ी वमा दुख
म भी सुख खोजने का यास करती थी। उ ह आधुिनक मीराबाई के नाम से भी जाना जाता है।

महादवे ी वमा के यि व म सवं दे ना ढता का अ ुत सतं ुलन िमलता ह।ै वे अ यापक, किव, ग कार, कलाकार,
समाजसेवी और िवदुषी के बहिमले रगं का जीता जागता उदाहरण थी। उनक अिभ यि का येक प िनता त मौिलक
और द ाही थी।

वे याग मिहला िव ापीठ क ाचाय और उपकु लािधपित भी रह चुक है जो अहमदाबाद म मिहलाओं का िनवासी
महािव ालय है। उ ह भारत का सव च सािह य पुर कार िदया गया। प भूषण से भी उ ह स मिनत िकया गया जो भारत
का तीसरा और नागरीत व का दूसरा सबसे बड़ा स मान है।
महादवे ी जी क किवताएं – नीहार, रि म, िनरजा, सं यागीत, दीपिशखा और अि नरखे ा आिद.
1934 म उनके ारा रिचत नीरजा के िलए िहदं ी सािह य स मेलन ने उ ह सके स रया पुर कार से स मािनत िकया गया।
उनक किवताओं का सं ह यामा को ानपीठ पुर कार िमला जो सािह य के े म भारत का सव च स मान ह।ै
किवताओं का एक नमूनाः-

जो तुम आ जाते एक बार,
िकतनी क णा िकतने सदं शे ।
पथ म िबछजाते बन पराग,
गाता ाण का तार तार
अनुराग भरा उ माद राग
आसँ ू लने थे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार

हस उठते पल म आ नयन
घुल जाता होठ से िवषाद
छा जाता जीवन से बसतं
लुटजाता िचर सिं चत िवराग
आखं े दते ी सव व बार
जो तुम आ जाते एक बार

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(4) भारतदु ह र ं

भारतदु ह र ं का ज म 9 िसतंबर, 1850 ई. को उ र दशे वाराणसी के एक िति त वै य प रवार म हआ था।
इनका मूल नाम ह र ं था, भारतदु तो इनको उपाधी दी गई थी। इनके िपता गोपालचं एक उ कृ किव थे । जब भारतदु
5 वष के थे तब उनक माता और जब दस वष के हए तब उनके िपता का दहे ा त हो गया था िजससे ये माता-िपता के सुख
से विं चत हो गए। भारतद ह र ं ने सं कृ त, मराठी, बगं ला, गुजराती, उदू और पजं ाबी भाषाएँ सीखी। उ ह का य ितभा
अपने िपता से िवरासत के प म िमली थी। जब ये 5 वष के थे तब इ ह ने एक दोहे क रचना क और अपने िपता को
सुनाया तब उनके िपता ने उ ह एक सु िस किव होने का आशीवाद िदया।

िहदं ी सािह य म आधुिनक काल का ारभं भारतदु ह र ं से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अ दूत के प
म िस भारतदु जी ने दशे क गरीबी, पराधीनता, शासक के अमानवीय शोषण को ही उ ह ने अपने सािह य का ल य
बनाया। िहदं ी को रा भाषा के प म िति त करने क िदशा म उ ह ने अपनी ितभा का इ तेमाल िकया।

भारतदु बहमुखी ितभा के धनी थे, िहदं ी प का रता, नाटक और का य के े म उनका बहमू य योगदान रहा है।
िहदं ी म नाटक का ारभं भारतदु ह रशचं से ही माना जाता है। भारतदु के नाटक िलखने क शु आत बगं ला के
िव ासुदं र नाटक के अनुवाद से होती है। य िप नाटक उनके पहले भी िलखे जाते रहे है िकं तु िनयिमत प से खड़ी बोली
म अनेक नाटक िलखकर भारतदु ने ही नाटक क न व डाली उ ह ने ह रशचं पि का, किववचन सुधा और बाल िवबोिधरी
पि काओं का सपं ादन भी िकया। वे एक उ कृ किव, सश यं यकार, सफल नाटककार, जाग क प कार तथा ओज वी
ग कार थे। इसके अलावा वे लेखक, किव, सपं ादक, िनबधं कार एवं कु शल व ा भी थे।

इनक मुख कृ ितयाँ हःै -
स य ह र ं , भारत दुदशा, अधं ेर नगरी, ेम जोगनी, ेम माधुरी, ेम तरगं , राग सं ह, फू ल का गु छा, मे

फु लवारी बदं र सभा, दानलीला आिद।
भारतदु ने सभी रस म किवताएं िलखी है।
उ ह ने के वल 35 वष क अव था म अनेक रचनाएं क परतं ु अ यिधक धन खच करने से इनके ऊपर ऋण हो गया और
िचतं ाओं से िसत हो गए। सन 1885 ई. न 35 वष क अ पायु म ही इनक मृ यु हो गई।

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(5) रामधारी िसहं िदनकर

(23 िसत बर, 1908 से 24 अ ैल, 1974)

रामधारी िसहं िदनकर िहदं ी के एक मुख लेखक, किव व िनबधं कार थे। वे आधुिनक युग के वीर रस के े किव माने
जाते ह। िबहार रा य के बेगुसराय िजले म उनका ज म हआ। उ ह ने इितहास, दशनशा और राजनीित िव ान क पढ़ाई
पटना िव िव ालय म क । उ ह ने सं कृ त, बां ला, अं ेजी और उदू का भी गहन अ ययन िकया।

िदनकर वतं ता पूव एक िव ोही किव के प म थािपत हए और वतं ता के बाद वे रा किव के नाम से जाने
गय।े वे छायावाद किवय क पहली पीढ़ी के किव थे। एक ओर उनक किवताओं म ओज, िव ोह, आ ोश और ाि त क
पुकार है तो दूसरी ओर कोमल, गृं ा रक भावनाओं क अिभ यि भी है उ ही दो विृ य का चरम उ कष हम उनक
कु े और उवशी नामक कृ ितय म िमलता है। उवशी को भारतीय ानपीठ पुर कार ा है जबिक कु े को िव के
100 सव े का य म 74 वाँ थान ा ह।

उ ह ने सामािजक और आिथक समानता और शोषण के िखलाफ किवताओं क रचना क । वे एक गितवादी ,
मानवतावादी व छायावादी किव थे। उनक महान रचनाओं म रि मरथी और परशुराम क ती ा शािमल ह।ै उवशी को
छोड़कर िदनकर क अिधकतर रचनाएं वीर रस से ओत ोत ह । किव भूषण के बाद उ ह वीर रस का सव े किव माना
जाता है। सं कृ ित के चार अ याय म िदनकरजी ने कहा िक सां कृ ितक, भाषाई और े ीय िविवधताओं के बावजूद भारत
एक दशे ह।ै
किवताओं के कु छ अशं ः –

रे रोक युिधि र को न यहाँ, जाने दे उन को वग धीर,
पर िफरा हम गा डीव-गदा, लौटा दे अजुन-भीम वीर ! (िहमालय)

मा शोभती उस भुजगं को िजसके पास गरल है
उसका या जो दतं हीन िवषरिहत िवनीत सरल है (कु े )

'प थर-सी ह मांस-पेिशया,ँ लोहे-से भुज-द ड अभय,
नस-नस म हो लहर आग क , तभी जवानी पाती जय। (रि मरथी)

जब नाश मनुज पर छाता ह,ै
पहले िववेक मर जाता ह।ै (रि मरथी)

मखु ग रचनाए-ं
िम ी क ओर, अधनारी र, रती के फू ल, वेणूवन, सािह यमुखी का य क भूिमका,

प रचनाए-ं
रणे ुका, हकं ार, कु े , रि मरथी, परशुराम क ती ा, उवशी और हारे को ह रनाम ।

50

(6) सूयकातं ि पाठी िनराला

(फरवरी 11,1896- अकटूबर 15, 1961)

महाकिव सूयकांत ि पाठी 'िनराला' का ज म 11, फरवरी 1896 को उ नाव िजले के गढकोला म हआ था। इनका जीवन
अनेक अभाव एवं िवपि य से पीिड़त रहा, िकं तु इ ह ने िकसी भी िवपि के सामने झुकना नह सीखा । इ ह ने आरभं म
बगं ला, सं कृ त तथा अं ेजी का गहन अ ययन िकया बाद म उ होने िहदं ी सािह य का अ ययन िकया। उनक सगं ीत म भी
िवशेष िच थी।
जीवन और का य दोन तर पर उनका घोर िवरोध हआ य िक दोन तर पर परपं राभजं क थे। िनराला अपनी धुन के
प के थे। उनके का य म आरभं से ही िविवधता के दशन होते ह । ये िविवधता भाषागत, िवचारगत और िश पगत भी ह
जसै े प रमल म गीत भी है और मु छ द भी िनराला क रचनाओं म दशन का य और गभं ीर भाव ह।ै
िनराला जी िहदं ी किवता के छयावादी युग के चार मुख तभं ो म से एक माने जात ह। अपने समकालीन किवय से अलग
उ होन अपनी किवता म क पना का बहत ही कम सहारा िलया और याथाथ को मुखता से िचि त िकया ह।ै वे िहदं ी के
मु छंद के वतक भी माने जाते ह। सन् 1930 म कािशत अपने का य सं ह 'प रमल' क भूिमका म वे िलखते ह िक
मनु य क मुि क तरह किवता क भी मुि होती ह।ै
'राम क शि पूजा' सपं ूण छायावादी का य क एक उ कृ उपलि ध ह।ै इस किवता के माधयम से किव न ऐितहािसक
सगं के ारा धम ता अधम के शा त सघं ष को िचि त िकया ह।ै
उनक मुख कृ ितयाँ ह - अनािमका, प रमल, गीितका, तुलसीदास, कु कु रमु ा, अिणमा, बेला, नए प े , अचना, अराधना
आिद ।

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(7) मैिथलीशरण गु

(3 अग त, 1886 से 12 िदसबं र, 1964 ई.)
प रचचा िदनाकं ः 06/09/2013

मैिथलीशरण गु का ज म 3 अग त, 1886 को िचरगांव जनपथ झांसी म हआ था। इनक ारिं भक रचनाएं
कलकता से िनकलने वाले “वै योपकारक” प म कािशत होती थी। काला तर म इनका प रचय महावीर साद
ि वेदी से हआ और इनक किवताएं “सर वती” म कािशत होने लगी । इनक पु तक का य सं ह “रगं म भगं ”
का काशन 1909 म हआ। उ ह ने बगं ाली के का य थं “भारत-भारती” का काशन भी िकया िजस कारण से
उनक लोकि यता सव फै ल गई। इस पु तक म भारत के अतीत का गौरवगान तथा त कालीन वतमान का
िच ण िकया गया ह।ै इस कृ ित के काशन के बाद उ ह रा किव के प म याित िमली। इसके अलावा सं कृ त
के िस थं “ व नवासवद ा” का अनुवाद कािशत कराया। सन 1916-17 ई.स.ं म उ ह ने महाका य
“साके त” का लेखन ारभं िकया। उिमला के ित उपे ा भाव इस थं म प रलि त होता है। “यशोधरा” 1932 म
िलखी गई तब गांधीजी ने इ ह रा किव क सं ा दी।

मैिथलीशरण गु ने 5 मौिलक नाटक भी िलख है– अनध, चं हास, ितलो मा, िनि य ितरोध एवं
िवसजन। उनके मुख थं है – जय थवध, भारत-भारती, पचं वटी, झकं ार, साके त, यशोधरा ापर, जय भारत,
िव णु ि या आिद.

कला और सािह य के े म िवशेष योगदान दने े पर सन् 1952 म उनको रा यसभा क सद यता दान
क गई और 1959 म उ ह प भूषण से नवाजा गया। इसके अित र उ हे सािह य क कई उपािधय से अलकं ृ त
िकया गया।

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(8) महावीर साद ि वेदी

महावीर साद ि वेदी का ज म उ र दशे के रायबरले ी िजले के दौलतपूर गावं म सन 1864 म हआ था।
इनके िपता का नाम रामसहाय दुबे था। धनाभाव के कारण इनक िश ा का म अिधक समय तक नही चल
सका। इ हे जी.आई.पी रले वे म नौकरी िमल गई थी। 18 वष क आयु म रले िवभाग अजमेर म एक वष तक
रहे िफर नौकरी छोड़ कर मुंबई थान कर गए और वहाँ टेली ाम का काय सीख कर इंिडयन िमडलड
रले वे म तार बाबू बन गए। अपने उ च अिधका रय से न पटने के कारण और वाभीमानी वभाव के कारण
1904 म रले वे िवभाग क 200/- मािसक क नौकरी से यागप दे िदया।

नौकरी के साथ-साथ ि वदे ी जी अ ययन म भी जुटे रहे और िहदं ी के अित र मराठी, गुजराती,
सं कृ त आिद का अ छा ान ा कर िलया। महावीर साद ि वेदी ने अनेक िवधाओं क रचना क यथा
किवता, कहानी, आलोचना, पु तक समी ा, अनुवाद, जीवनी आिद िवधाओं के साथ उ ह ने अथशा ,
िव ान तथा इितहास आिद का भी अ ययन िकया। उ ह ने सं कृ त के कु छ महाका य का िहदं ी पातं रण
भी िकया िजसम कालीदास कृ त रघुवशं , कु मारस भवम्, मेघदूत आिद मुख ह।

उनक मु य रचनाएं हैः- दवे ी तुित-शतक, का य मजं ूषा, सुमन, किवता कलाप, नाट्यशा , िहदं ी
भाषा क उ पि , कािलदास क िनरकुं शता, अ ुत अलाप, सािह य स दभ आिद मुख रचनाए।ं इनक
भाषा सरल एवं सुबोध थी।

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अटल िबहारी वाजपेयी

बाधाएं आती ह आए,ं
िघर लय क घोर घटाए,ं

पाव के नीचे अंगारे,
िसर पर बरस यिद वालाए,ं
िनज हाथ म हसँ ते-हसँ ते,
आग लगाकर चलना होगा।
कदम िमलाकर चलना होगा ।।
हा य- दन म, तूफान म,
अगर असं यक बिलदान म,

उ ान म, वीरान म,
अपमान म, स मान म
उ नत म तक, उभरा सीना
पीड़ाओं म पलना होगा।
कदम िमलाकर चलना होगा।।


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