लोकिहतं मम करणीयं
मनसा सततं स्मरणीयम्
वचसा सततं वदनीयम्
लोकिहतं मम करणीयं ||
न भोग भवन रमणीयं
न च सखु शयन शायनीयम्
अह र्पनरां जागरणीयं
लोकिहतं मम करणीयं ||
न जातुेः देु ःखं गणनीयं
न च िनज सौख्यं मननीयं
कायिथ ैत्ै त्वरणीयं
लोकिहतं मम करणीयं ||
गहनारण्य घनान्धकार
बन्धुजना यिस्तथागहर
तव गया सञ्चरणीयं
लोकिहतं मम करणीयं ||
अमरिीत कौर
7 'अ'
Pollution
Twinkle Twinkle Little Star,
I can't see where you are.
All the smoke in the sky,
makes you sad and makes me cry.
There is the darkness all around,
as you are pollution bound.
When you are visible at night,
then it is a lovely site!
The pollution is causing me fear,
but you still very dear.
Why man is causing pollution?
Has he forgotten Green
Revolution?
One day man will die of it.
The earth will be a silent bee.
ADITYA KUMAR
VA
WATER IS LIFE
Water is a boon
Water is life
Without any water nothing will survive
We need water and
Earth need too
Don't waste it
HARMAN SINGH
CLASS III B
Save tree
Trees provide shelter to many birds
Trees give us sweet fruits
Trees product pure oxygen
Trees take CO2 and store as energy
Trees help in cooling of environment
Many parts of trees are used in medicines
Trees give us wood and paper
Please stop erosion
Don't cut the trees
GINNI NANDAK
3 'B'
\
भाषा प्रदषू ण
भाषा एक सामाजजक सपं जि है |इसी से जिजित समाज
का जिकास और नि जनमााण संभि है | भोगौजिक,
सासं ्कृ जतक और व्यिहारपरक जिजभन्न्त्िा के कारण
इसका प्रयोग भी जिजिष्ट हो जाता है |भाषा का सीधा
सबं धं संस्कार एिं सभ्यता से है | जिश्व मंे जजतने भी देि
अग्रणी है अपनी भाषा की िजह से ही है | यदद हमंे भारत को
जिश्व में जसरमौर बनाना है तो अपनी भाषा खासकर राज भाषा को मजबतू करना होगा| बच्चे
भाषा का संस्कार पहिे घर मंे सीखते है दिर जिद्यािय में कहने को जिश्व प्रगजत की राह पर है
„सोिि जमजडया‟ ददनचयाा का जहस्सा बन गयी हैI सोिि मीजडया एक बहुत बड़ा कारण है
जजससे हमारी भाषा में बदिाि आ रहा है |इसका सीधा प्रभाि हमारे ससं ्कारों पर पड़ रहा है |
िे सबुक ,व्हाट्सएप्प ,आदद सोिि मीजडया एप पर िोग कम िब्दों और साकं े जतक भाषा
का प्रयोग करते हंै |पहिे ये आदत बातचीत का जहस्सा बनती है दिर धीरे धीरे हमारे स्िाभाि ि
ससं ्कार का जहस्सा बन जाती है |एक भाषा जििक होने के नाते मरे ी सोच ये है की माता जपता
और जििकों का दाजयत्ि बन जाता है की भाषा को ऐसी अिजु ियों से बचाए |
मैनं े दकतने ही ऐसे बच्चे देखे हंै जजनकी रचनात्मकता बहुत अच्छी है अजभव्यजि की िमता
भी उिम है िदे कन सोिि एप के प्रभाि से िो हहदी को भी रोमन तरीके में जिखते है जैसे”“मैं
जिखने मंे रूजच रखता हूँ” को “MAIN LIKHNE ME RUCHI RAKHTA HU”
यहाँू हचतन का जिषय ये है की इस प्रकार के भाषा संस्करों से न हम अगं ्रेजी िायक रहे और
हहदी तो दजू षत कर रहे हंै |
इस मसिे को अगर गंभीरता से देखे तो कु छ हबदु जनकि कर आते है जजनपर ध्यान दने ा अजत
आिश्यक है ,क्योंदक भाषा एक सामाजजक सम्पजि है और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तानांतररत होती है –
आधजु नकता की आंधी में हम अपनी भाषा को ददन पे ददन छोटा करते जा रहें हंै |इस
कारण हमारे संस्कार भी जसमट रहें है भाषा के पररमाजान ,पररष्कार पर जििषे ध्यान दने ा
चाजहए | इससे हमारा ज्ञान भी बढगे ा और ससं ्कार भी
भाषा प्रभािी अजभव्यजि के जिए आिश्यक है | जजतनी अच्छी भाषा होगी उतनी
प्रभािी अजभव्यजि होगी | मेरा मानना है दक भाषा को उसके मिू स्िाभाि मंे ही जिखना
बोिना चाजहए िॉटा कट अपनाना न जीिन में अच्छा है न ही भाषा के प्रयोग मंे |
पररिार का दाजयत्ि है की अपने बच्चो को पढने के जिए प्रेररत करे ,पढना दकताबो को और
अख़बारों को ,सोिि मीजडया पे जिखी भाषा को नहीं क्योंदक आजकि की पीढ़ी मंे पढने
की आदत का कम होना भी भाषा के कमजोर होने का कारण बन रहा है “ सफ़दर हाश्मी
जी” की पजं ियाँू आ रही हैं है मरे े मजस्तष्क मंे -
“दकताबे कु छ कहना चाहती हैं तमु ्हारे पास रहना चाहती हंै “