शखे र सजृ न – 38
युद्ध
प्राक्कथन
“शखे र सजृ न” शीर्कष ई-पसु ्तिका की श्खंृ ला का ननर्ाषण र्ेरे कु छ काव्य-
उद्गारो का सकृं लन है जो एक अल्प अवधध र्ें ककसी एक ववर्य पर
ललखे गए है| इन सभी कवविाओृं या छंृ दों या पद्यों या और जो भी नार्
पाठक गण देना चाहे, र्ें र्ौललकिा है िथा ये तवरधचि है| सभी रचनाएँ
तवांृि:सुखाय ललखी गई है|
ये अकृं यदु ्ध पर र्ेरे उदगारो पर तवरधचि कु छ पसृं ्क्ियो का सगृं ्रह है,
कु छ कवविायँे सकंृ ललि है| युद्ध पर वपछला सृंकलन शखे र सवंृ ाद 19
(http://online.anyflip.com/hpjqh/ibmx) के रूप र्ें 28.02.2022 को
प्रकालशि हुआ था|
ये र्रे ी कल्पना पर आधाररि है, िथा इनका ककसी भी व्यस्क्ि, तथान,
घटना, या वतिु से कोई सबंृ ृंध नही है| अगर ये पाठको के ददल को छू
जािी है, िो र्ेरा सौभाग्य होगा| कृ पया इन रचनाओृं पर अपनी राय
अवश्य दंे|
धन्यवाद|
डॉ दहर्ाृंशु शखे र
20.07.2022
शखे र सजृ न 1 © डॉ हिम शां ु शेखर
ववर्य सचू ी
प्राक्कथन ................................................................... 1
1. यदु ्ध के लाभ ....................................................... 3
2. युद्ध िो सर्ाधान नहींृ ........................................ 6
3. रूस यूक्रे न युद्ध ................................................. 10
4. रूस यकू ्रे न युद्ध ................................................. 12
5. यदु ्धक्षेत्र की होली .............................................. 14
शखे र सजृ न 2 © डॉ हिम ाशं ु शेखर
1. युद्ध के लाभ
युद्ध है सृंदेश देिा, र्ौि ये सब जानिे ,
िोड़ देिा है इर्ारि, कारखाने र्ानिे ।
हल नहीृं ये है सर्तया का यही सारे कहे ,
पर वही िो युद्ध को पूजा सर्झकर ठानिे ।
इसललए िो लाभ इसके , हर् कहेंगे ठान लें ,
युद्ध हल ककसका बना, यह बाि सारे र्ान लंे ।
हानन होिी युद्ध से ये, राज सब कहिे रहे ,
कीच र्ें खखलिा कर्ल, ऐसा हर्ेशा जान लें ।
युद्ध से होिी सुरक्षा, आज सत्यापन करें ,
आज ववतफोटक सदहि, बारूद खाली सब करें ।
शखे र सजृ न 3 © डॉ हिम ंशा ु शखे र
फोड़कर सारे पटाखे, शुद्ध होिी है धरा ,
आयधु ों हधथयार से भी, र्सु ्क्ि का दर् अब भरे ।
बाद र्ें जो फू टिा, औचक करें ववध्वंृस जो ,
फोड़िे हंै जान कर, उसको बने नशृ ृंस जो ।
स्जस िरह है गरल को, त्यागना ही नीनिगि ,
दसू रों पर छोड़ दे, सहिा रहेगा दृंश जो ।
आज जनसखंृ ्या ननयृंत्रण, का नया यह राज है ,
जन्र् पर प्रनिबृधं ना िो, र्ौि की ही गाज है ।
सिृं ुलन बबगड़ा सुधर, जािा र्रे ज्यादा सुनो ,
युद्ध का यह लाभ सर्झो, युद्ध पर भी नाज है ।
यदु ्ध र्ानव के बनाए, भव्यिा को िोड़िे ,
शखे र सजृ न 4 © डॉ हिम ाशं ु शेखर
और नव ननर्ाणष को, आधार देकर जोड़िे ।
ररक्ि करने के ललए, हर क्षेत्र र्ें बस यदु ्ध हो ,
और हर प्राचीर भी, सर्िल बने ना छोड़िे ।
रोजगारों र्ें सदा हर, यदु ्ध से ववतिार हो ,
बाद र्ें ननर्ाणष को हर, बार ले िैयार हो ।
हर नई पीढी, नया आधार, ही है र्ाृंगिी ,
अृंि ही आरृंभ है, ऐसे सदा संृतकार हो ।
हल नहींृ ननकले कभी, जो यदु ्ध ले आए अभी ,
युद्ध का कारण नहींृ है ज्ञाि, यह कहिे सभी ।
राज है सारे बबना, कारण रहंेगे यदु ्धरि ,
यदु ्ध र्ें हल खोजना, बेकार होिा है िभी ।
शखे र सजृ न 5 © डॉ हिम ांशु शखे र
2. युद्ध िो सर्ाधान नहींृ
चला ववध्वसृं र्ानव एक, दजू े को जहाँ र्ारे।
कहे ये यदु ्ध घािक है, यहाँ लड़िे ददखे प्यारे।।
ननकाले जा रहे हधथयार, करिब कर नहींृ हारे।
करूँ क्या लाश के अबंृ ार का ये कह रहे सारे।।
रहे छोटा कभी बच्चा, वही िोड़े सदा घर की।
सदा फंे के नई चीजें, ददलािा याद नाहर की।।
बने आफि, करे हर्ला, सभी बेचनै ददखिे हंै।
वही िो यदु ्ध करिे हैं, जहाँ बचपन नहीृं सरकी।।
लर्ले सृंतकार पढकर ये, नहींृ फें के , नहींृ िोड़।े
पढे हंै पाठ ऐसे ही कक, देशों को सदा जोड़।े ।
शखे र सजृ न 6 © डॉ हिम शंा ु शखे र
ककिाबी बाि कह डाली, ननकाला युद्ध का परचर्।
अरे! क्यों युद्ध करिे ला, प्रगनि की राह र्ंे रोड़।े
बहुि र्िभेद पाले हंै, जहर ददल र्ंे भरे सपना।
नहीृं जब बैठकर सुलझे, र्हाभारि चले अपना।।
यही जज्बाि ले सारे, ददलों र्ंे यदु ्ध चलिे हैं।
उिर आिी धरा पर िो, यही है युद्ध र्ंे िपना।।
सुना द्वापर हुआ था कृ ष्ण, ने गीिा सुनाया था।
स्जसे सुनकर खड़ा होकर, लड़े अजुनष बिाया था।
लड़े थे उस जर्ाने र्ंे, उसे कलयुग नकल करिा।
सभी अजनुष बने खुद साज, दयु ोधन बिाया है।
डराया रार् ने सागर, ननकाला बाण था जाने।
शखे र सजृ न 7 © डॉ हिम शां ु शखे र
नहीृं वो राह देिा था, सर्झिा था कक अनजाने।।
लसखाया युद्ध को ियै ार, रहना ही जरूरी है।
कहे कलयुग, बनंेगे रार्, सारे युद्ध ही ठाने।।
करे हालसल अलौकककिा, र्हारि आज पािे है।
नए हधथयार लेकर र्ान, सारे िाज लािे हैं।
बढे हधथयार, कौशल िो, भजु ाएृं भी फड़किी हंै।
यही शायद बना कारण, सदा जो युद्ध लािे हंै।।
हुए है युद्ध सैननक सगंृ , जनिा र्ार खािी है।
भवन, पुल, कारखानों को, सदा ये िोड़ जािी है।
प्रगनि का लोप, पीछे खीचने र्ंे ये बनी सक्षर्।
इर्ारि भव्य थी लेककन, अभी बरबाद पािी है।
शखे र सजृ न 8 © डॉ हिम शंा ु शखे र
यही है र्तृ ्यु की पोर्क, करे िाण्डव यही देखा।
पटी हो इस धरा पे, रक्ि के उन्र्ाद की लेखा।
हुई गलिी यह सर्ाधान, जो सर्झे कहो उनको।
सदा है युद्ध र्ंे वो बीज, पापों की बने रेखा।।
शखे र सजृ न 9 © डॉ हिम ंशा ु शखे र
रूस यकू ्रे न र्ंे छाया है ,
वो ववश्वयुद्ध ले आया है ,
ये नालभकीय ना हो जाए ,
बस सोच जगि थराषया है ।
3. रूस यूक्रे न युद्ध
(छृं द- नवसखु दा, 22 र्ात्रा, अंिृ वाधचक गा)
यदु ्ध बड़ा भीर्ण ददखला कर बैठे हैं।
रूस और यूक्रे न, चला कर बठै े हैं।।
युद्ध बुरा, नहींृ बरु े रूसी, यकू ्रे नी।
र्ुद्दों को भी अब धँधु ला कर बठै े हंै।।
शखे र सजृ न 10 © डॉ हिम शां ु शखे र
हधथयारों ने पास्श्वकिा ही फै लायी।
र्ानव र्ानव पर हर्ला कर बठै े हंै।।
वर्ों र्ंे ननर्ाषण कर रहे हंै स्जनका।
हालि लर्नटों र्ंे बदला कर बठै े है।।
ध्वति इर्ारि ले, ऐसा सृंकट आया।
बरबादी का आज भला कर बैठे हंै।।
रोक नहींृ पाई है दनु नया, ववभीवर्का।
यहाँ कई पररवार जला कर बैठे हैं।।
आज नहींृ खबरंे ववचललि करिी उसकी ।
खबरों को भी आज गला कर बठै े हैं।।
शखे र सजृ न 11 © डॉ हिम ंाशु शखे र
ववर्धर दोनों हैं, ववर् ववतर्िृ हो जािा।
नाग की उपर्ा नेवला कर बैठे हैं।।
4. रूस यकू ्रे न युद्ध
आधार छृं द - आनंृदवधकष (र्ापनी युक्ि र्ाबत्रक)
र्ापनी - गालगागा गालगागा गालगा
सर्ान्ि - आर, पदान्ि - से
रूस के यूक्रे न पर इस वार से ,
आज दवु वधा से भरे सृसं ार से ।
बोखझल पनु िन की चली हुंृकार से ,
त्रति सारा ववश्व इस अगृं ार से ।
शखे र सजृ न 12 © डॉ हिम ांशु शखे र
ये हवाई साध हर्ले द्वार से ,
दग्ध होिे र्ानवी उद्गार से ।
नष्ट होिी राजधानी हार से ,
कीव बनिा ढेर कू ड़ा र्ार से ।
इस र्हायुद्धक चले सृंहार से ,
ससृ ्ष्ट का है नाश अब हधथयार से ।
देश सारे र्ूक दशकष खार से ,
ना लर्ले हैं पषु ्प भी अधधकार से ।
कह रहा हूंृ रोकना व्यवहार से ,
शखे र सजृ न 13 © डॉ हिम शंा ु शखे र
खत्र् हो यह युद्ध कहिा प्यार से ।
5. यदु ्धक्षेत्र की होली
यदु ्ध हुआ भीर्ण िब कहिे, दीवाली के सगंृ होली,
बर् धर्ाके एक ओर, और रूधधर सनी सारी टोली।
हधथयारों का ललया जखीरा, कहिे हैं कक खेलें होली,
रंृग, गलु ाल, अबीर नहींृ बस, रक्ि, स्जृंदगी और गोली।
गबु ्बारे र्ें पानी भर ज्यों, फें क रहे हंै हर्जोली,
यदु ्ध क्षेत्र बर् फें क कहे, फू टेगा िब रस्क्िर् होली।
वपचकारी खा कर ज्यों भीृगं ंे, गोली खा भींृगे चोली।
शखे र सजृ न 14 © डॉ हिम ाशं ु शखे र
र्गर लाललर्ा िन की ननकले, अथी है कहिे डोली।
दीवाली सा ववतफोट कर रहे, र्गर ननकलिी है बोली,
हुई त्रासदी, र्चा है िाण्डव, आओ खेले सब होली।
जश्न नहीृं, ना खशु ी ददख रही, शिै ानों की ये खोली,
र्ार पीट कर, जबरन कहिे, यही होली है हर्जोली।
अनिक्रर्ण पास्श्वकिा का ये, पवष नहींृ दनु नया बोली,
सदभावों की बलल चढ रही, र्ना रहे लेककन होली।
शखे र सजृ न 15 © डॉ हिम ंशा ु शखे र