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Published by Hindifoundation, 2020-08-26 06:48:44

Singapore Navras

Navras E Book -Sample

सिंगापुर नवरस

(नौ कवि, नौ रस)

सिगं ापुर नवरस

चयन एवं संपादन
चित्रा गपु ्ता

ISBN : 978-93-87464-89-6

प्रकाशकः
हिदं युग्म ब्ूल
सी-31, सके ्टर-20, नोएडा (उ.प्र.)-201301
मोबाइल- 9873734046, 9968755908

मुद्रक ः विकास कम्प्यूटर ऐंड प्रिंटर्स, दिल्ली-100032
कला-निर्दशे न ः विजेन्द्र एस विज
भीतरी रेखांकन ः अनुप्रिया

पहला ससं ्करण ः 2020
मूल्य ः ₹150

© संबंधित कवि

Singapore Navras
A collection of representative poems of 9 poets

Published By
Hind Yugm Blue
C-31, Sector-20, Noida (UP)-201301
Mob : 9873734046, 9968755908
Email : [email protected]
Website : www.hindyugm.com

First Edition : 2020
Price : ₹150



सपं ादकीय

कविता साहित्य की वह विधा है जिसमें रचनाकार कम शब्दों मंे अपने
विचार और हृदय के उद्गार अभिव्यक्त करता है। जो पाठकों के कानों के
माध्यम से उसके दिल मंे उतर जाते ह।ंै सच ही तो है जब मन के धरातल
पर भावों के अकं रु फूटते हैं तो वे कविता का रूप लेते है।ं

2015 से ग्लोबल हिदं ी फ़ाउंडशे न के तले हम चौमासिक काव्य
गोष्ठियाँ करते हंै। इसमें सहयोग प्रदान करने वाले सभी कवि ग्लोबल हिदं ी
फ़ाउडं शे न के सक्रिय सदस्य हैं। इसके तहत कविताओं तथा प्रतियोगिताओं
के माध्यम से विदेश में रहकर हम अपनी भाषा और ससं ्तृक ि से जड़ु े हुए
है।ं इसलिए विचार आया कि क्यों न कछु कवियों को जोड़कर एक काव्य
पुस्तिका बनाई जाए। पिछले दो वर्षों से मेरे मन मंे इसे कार्यान्वित करने
का विचार आ रहा था। इसकी रूपरेखा दिमाग़ मंे घूम रही थी। जब मैंने
अपने साथियों के समक्ष यह प्रस्ताव रखा तो उन्होंने मरे े इस प्रस्ताव को
सहर्ष रूप से स्वीकार किया। इस पावन अनषु ्ठान में मझु े सबका सहयोग
प्राप्त हुआ। परिणाम स्वरूप नौ कवियों की कविताओं ने इस पसु ्तक
को ख़ूबसूरत आकार दिया ह।ै सब उत्साहित और उभरते कवि ह।ंै इन
कविताओं मंे वात्सल्य, शंगृ ार, करुणा, हास्य, शातं , वीर इत्यादि रसों को
पिरोने का प्रयास कवियों द्वारा किया गया ह।ै काव्य सौंदर्य अभिवदृ्धि के
लिए बिबं ों का सतं ुलित प्रयोग किया गया है। ‘नौ कवि, नौ रस’ 9 क‍वियों
की कविताओं का सकं लन ह-ै “सिगं ापरु नवरस”। सबने मौलिक विषयों
को नवीन दृष्टिकोण से कविता मंे बाँधने का प्रयास किया ह।ै इस प्रकार से
जीवन के विभिन्न रगं “सिंगापुर नवरस” मंे प्रतिबिंबित हैं।

कविता भावों की सघन अनुभूति होती है। कई बार पाठक अपनी

भावनाओं के अनसु ार उन्हें समझता है और कवि को चमत्तृक कर देता
है। मुझे विश्वास है कि पढ़ते समय पाठक उसी वातावरण का आनंद लगे ा
जिस वातावरण या भाव को मन में सँजोकर सुधी कवियों ने कविताएँ लिखी
ह।ंै कविताओं में यथार्थ और कल्पना का मिश्रण ह।ै भाषा विषयानसु ार,
भावानसु ार और सहजता के निकट है। ये कविताएँ हमारे सहृदय बंधुओं
के मनोतल पहचुँ ेगं ी और सराही जाएँगी तो हमारी पुस्तक की सार्थकता
कायम होगी। आपके सम्मुख पसु ्तक प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार हर्ष हो
रहा ह।ै माँ शारदा की अनकु पं ा बनी रहे और हमारी लखे नी चलती रहे,
यही मनोकामना है। यह प्रथम प्रयास है इसलिए कछु कमियाँ रह गई होंगी,
उनके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।

संपादिका,
चित्रा गपु ्ता
सलाहकार, ग्लोबल हिदं ी फ़ाउंडशे न

दो शब्द

यद्यपि हिंदी विश्व में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषाओं मंे तीसरे
स्थान पर है तथापि इसे वशै ्विक दर्जा नहीं मिल पाया है। मरे ी मातृभाषा
मथै िली का जो हाल पिछले दशकों में हुआ है वही हाल हिंदी का न हो,
इसलिए नए उभरते हुए लेखक और हिंदी वक्ताओं को एकजुट करते हुए
और प्रासगं िक रखते हुए “सिगं ापुर नवरस” काव्य पुस्तिका संकलन का
मन मंे विचार आया।

दो सौ वर्षों के ब्रिटिश उपनिवशे वाद के परिणामस्वरूप भारतीयों में
अंग्जेर ी भाषा का वर्चस्व रहा और वर्षों से इसका स्थानीयकरण हुआ,
जिससे हिगं ्लिश नामक एक मिश्रित भाषा का जन्म हुआ। निस्संदेह हिगं ्लिश
शदु ्ध हिंदी की सुदं रता को कम करती है और यह पिछले 50 वर्षों मंे अन्य
250 भारतीय भाषाओं की तरह हिंदी को जनमानस से दूर कर सकती ह।ै
किसी की पहचान से पहला जडु ़ाव उसकी सासं ्ृकतिक जड़ों से है और
इसका सबसे अच्छा तरीक़ा भाषा को जानना ह।ै यदि हिदं ी लपु ्त होती है
तो भविष्य की पीढ़ी धीरे-धीरे अपनी ससं ्कतृ ि और साहित्य को भूल सकती

है। हालाँकि, मेरा मानना है कि हिंदी के साथ अपना सपं रक् जोड़कर अपनी
मातभृ ूमि से जुड़े रहने के दौरान अंग्रजे ी सीखने वाले भारतीय वैश्विक
नागरिक है।ं यह निश्चित रूप से हिंदी को संरक्षित करने की दिशा में एक
ठोस कदम ह।ै मझु े एहसास हुआ, हिंग्लिश जो कि हिदं ी और अंग्जेर ी का
मिश्रण ह,ै भारत के शहरी क्षेत्रों में अधिक प्रचलित ह।ै हिंग्लिश भारत के
लिंगआु फ़्ैकरं ा मंे इतनी गहराई से बठै ी है कि फ़ि‍ल्मों, गीतों, विज्ञापनों और
सचं ार मंे अनौपचारिक रूप से प्रयोग की जा रही ह।ै दवे नागरी लिपि, जो कि
120 से अधिक भारतीय भाषाओं के लिए उपयोगी और अत्यंत महत्त्वपूर्ण
है, उसे सरं क्षित रखना अत्यंत आवश्यक है।

देखा जाए तो हिगं ्लिश विभिन्न पीढ़ियों के बीच की सते ु भी ह।ै हिगं ्लिश
दुनियाभर के भारतीयों को अपनी जड़ों और दनु िया को भारत से जोड़ती
रहेगी। वस्तुतः भाषा एक बहती नदी की तरह होनी चाहिए, जो हर पीढ़ी
की ज़रूरतों को परू ा करने के लिए अनुकलू हो और संचार के साधन के
रूप मंे अपने प्राथमिक उद्शेद ्य को पूरा कर।े इसके साथ ही यह भी ध्यान
रखने की आवश्यकता है कि अंग्ेजर ी के प्रभतु ्व से हिंदी और अन्य भारतीय
भाषाओं को कसै े बचाएँ? हमंे हर हाल मंे हिंदी भाषा और साहित्य का
सरं क्षण करना है।

हिंदी कविता प्रेम और सभी लखे क साथियों के साथ यह काव्य
पुस्तिका बनी है। आशा है कि सभी हिदं ी भाषा के प्रेमी इसे ज़रूर पढ़ंगे े और
हमारा मनोबल बढ़ाएँगे ताकि हम प्रवासी साहित्यकारों को और अवसर
प्रदान कर पाए।ँ ग्लोबल हिदं ी प्रेरणा अवॉर्डस् से “सिगं ापुर नवरस” तक
की यात्रा बहुत ही सुखद और प्रेरणादायक रही। एकजटु होकर किसी भी
प्रोजके ्ट में सहायक हो पाएँ तो हमसे अवश्य जडु ़ंे। सभी हिंदी प्रेमियों का
इस मचं पर आह्वान ह।ै

ममता मंडल
संस्थापक, ग्लोबल हिंदी फ़ाउंडेशन

www.globalhindi.org

अनशु ंसाएँ



इस सकं लन मंे सम्मिलित रचनाओं मंे कवियों ने प्रेम, करुणा,
आक्रोश, अभिलाषा और आकाकं ्षाओं को अपने मन की गहरी अनुभूतियों
से निकाल कर काग़ज़ के कनै वास पर काव्य चित्रों में उकेर दिया ह।ै अपने
प्राकृतिक परिवशे से दरू रहता हुआ मन संवेदना की आँधी मंे घिरकर पुन:
उसी ओर लौटता है जहाँ के अनुभव उसे वास्तविक्ता से सामजं स्य करना
सिखलाते ह।ैं आस-पास दखे ता हुआ मन महसूस करता है परिवर्तन की
आवश्यकता को और यह ललक उनकी रचना मंे मुखरित हुई है-ं इक गीत
लिखँू मंै ऐसा...

अनरु ाग की पराकाष्ठा और प्रेम समर्पण की भावना से रंगी हुई सहज
कविता- ‘प्रिय यह माला नहीं मेरे हृदय की वदे ना है’ और स्मृति के गलियारे
से निकली ‘पहली मुलाक़ात’ कवि की मदृ ुल अनभु ूतियों को उजागर करती
हंै तो दूसरी ओर है अपने आत्मविश्वास का उद्घोष करती हुई लखे नी
का प्रवाह दर्शाती कविता- ‘कभी रात की मंै कालिमा/ कभी सूर्य की मैं
लालिमा’।

विविध रगं ों से सजे हुए काव्य के कल्पना क्षितिज पर उड़ान लेते हुए
सभी कवियों के शब्द अंबर का विस्तार कई दिशाओं से नापते हंै। मेरी
शुभकामना है कि वे निरतं र अपने सजृ न का प्रवाह करते रहें और कविता
के नए आयाम अपनी लेखनी से छूते रहं।े

सद्भावना सहित!
राकेश खंडेलवाल

सिल्वर स्प्रगिं , मरै ीलडंे

***

शब्द सार्वभौमिक होते ह।ंै इसीलिए शब्दों की भाव धारा से साहित्यिक‍ ,
सामाजिक एवं सासं ्कतृ िक धारा की त्रिवेणी का जन्म होता है। प्रस्तुत
पुस्तिका ‘नौ कवि, नौ रस’ भारत भूमि से दूर बसे भारतीयों की अपनी भाषा
एवं ससं ्कृति के सजग प्रेम की काव्य माला है। सभी कविताओं का विषय
वस्तु अलग-अलग ह।ै पसु ्तिका में जीवन दर्शन, भाषा, संस्ृतक ि, साहित्य,
प्रेम, परिवार जैसे विषयों पर भावपूर्ण रचनाएँ है।ं

ये कविताएँ विविध रगं ों मंे सजी हुई रचनाएँ है।ं वह रचना उत्कृष्ट मानी
जाती है जो अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के प्रति व्यक्ति‍की क्या
भूमिका हो को रेखाकं ित करे। इस दृष्टि से पहली से लके र अंतिम तक सभी
रचनाएँ सफल अभिव्यक्ति मंे सक्षम सिद्ध हुई है।ं

रचना ‘गीत लिखँू मैं ऐसा’ आत्मबल को जगाती हुई प्रतीत होती ह।ै
‘आज भाव पिरो रही है’ मानवी संवेदना को जगाती ह।ै ‘पहली मलु ाक़ात’
प्रेम और सजृ न का भावबोध कराती है। कविता ‘चक्रव्यूह’ सर्वशक्तिमान
ईश्वर के माध्यम से मानव को अपने दरु ्गुणों, भूलों, मर्यादाओं को जानने का
अवसर दते ी है। ‘एक लड़की पागल’ एक संवेदनशील रचना है। ‘चमकीले
दिन’ जीवन के वास्तविक सच को रखे ाकं ित करती है। ‘मा-ँ पहला प्रेम’
कविता मातृ प्रेम की अमरगाथा के समान है। माँ-पिता ऐसे रिश्ते होते हैं जो
दुनिया के हर रिश्ते से हमारा साक्षात्कार कराते ह।ंै ‘मातभृ ाषा की घुट्टी’
कविता अपनी माटी, अपनी भाषा के महत्त्व को बताती है। साथ ही भाषा के
साथ किस प्रकार मानवीय संवेदना के तार जडु ़े होते ह,ंै इसे बख़ूबी चित्रित
करती है। कविता ‘प्रकृति तो मेरी माता ह’ै प्रकृति के साथ मानव के सफ़र
की गाथा ह।ै कविता मानव की स्वार्थपरकता से उपजी विनाश कथा को
भी चित्रित करती ह।ै यह संयोग है कि वर्तमान मंे हम सभी कहीं-न-कहीं
कोरोना महामारी से जझू रहे ह,ंै यह कविता प्रकृति के सरं क्षण के साथ ही
मानव को समय रहते सभँ ल जाने को कहती ह।ै

वास्तव मंे साहित्य भावनाओं को चित्रित करने का सबसे बड़ा माध्यम
ह।ै इसीलिए साहित्य, समाज एवं भाषा को प्राणवायु की भातँ ि समझा गया
ह।ै हमारे भाव, विचार और कार्य इन्हीं की सशक्त नींव पर निर्मित होते हैं।
प्रस्तुत काव्य पुस्तिका इन बातों को समझने में एक हद तक सहायक होगी।
कामना है कि काव्य पुस्तिका अपने उद्ेदश्यों की प्राप्ति में सफल हो।

शुभकामना सहित!
डॉ साकते सहाय

साहित्यकार, प्रशासक, सपं ादक, समीक्षक
भारत सरकार से सम्मानित हिदं ी सेवी

***

आजकल साहित्य-साधना शब्द का प्रयोग बहुत ही आम होने लगा ह।ै
इसके अर्थ को बिना गहराई से समझे और जान,े बस कुछ लिखकर कहीं
भी प्रकाशित करवा लिए जाने को ही साधना से जोड़ा जाने लगा ह।ै मेरी
समझ से साधना बिना किसी स्वार्थ के होनी चाहिए, फिर चाहे वह किसी
भी कार्य-क्षेत्र से जडु ़ी हो। ऐसा ही उदाहरण ‘ग्लोबल हिंदी फ़ाउंडेशन,
सिगं ापरु ’ से ममता जी ने दिया है, इस काव्य पुस्तिका के माध्यम से कुछ
कवि-कवयित्रियों को जोड़ा ह।ै ममता जी विदेश मंे रहकर भी अपनी भाषा
और ससं ्तृक ि से जडु ़ी हुई ह।ैं उनकी ज़िंदगी को कच्ची-सच्ची आँखों से
दखे ने जैसी यह सरलता बड़े कौशल और बड़ी ईमानदारी की परिचायक ह।ै

‘ग्लोबल हिदं ी ज्योति’ ससं ्था आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना
करती ह।ै

डॉ अनिता कपरू
ससं ्थापिका/ अध्यक्ष
ग्लोबल हिंदी ज्योति, कलै िफोर्ियन ा
Email : [email protected]
***

सीधी-सच्ची कविताओं का संग्रह। इनसे किसी विचाराधारा या क्रांति
के बिगलु की उम्मीद ना कर,ंे लेकिन अगर आपको ओस की बँूदं,े पहली
बारिश की मिट्टी और पखं डु ़ियों का विस्तार भाता ह,ै तो ये कविताएँ भी
ज़रूर पसदं आएँगी।

शिल्पी झा
ब्लॉगर, पत्रकार एवं
एसोसिएट प्रोफ़ेसर, बने टे यूनिवर्सिटी
***

सिगं ापुर से प्रकाशित नवरस काव्य पसु ्तिका मंे सभी कवियों के प्रयास
सराहनीय हं।ै ‘ओ मरे े रसीले कसलै े बचपन... तेरे साथ रहने को जी चाहता
ह’ै कविता ने उम्र के एक विशेष पड़ाव के बाद व्यक्ति की मासूमियत मंे
लौटने की अभिलाषा को अभिव्यक्त किया ह।ै ‘एक गीत लिखूँ मैं ऐसा’ मंे
लखे क ऐसा सृजन चाहते हैं, जो परहित से जुड़ा हो। ‘उस दिन अलविदा
कहने में सारी कायनात की ताकत लगी थी’ पकं ्ति में प्रेम के अपूर्व भाव
छिपे ह।ंै ‘चक्रव्यूह’ कविता मंे शंभू और शुम्भ के माध्यम से बहुत गहरी
बात कही ह।ै ‘एक लड़की पागल दीवानी’ स्त्री के समर्पण से जुड़ी एक
अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ह।ै ‘नकली मुस्कानों के आगे क़हक़हे कहीं पर रूठ
गए’ में करुणा झलकती ह।ै ‘मंै तमु ्हें हद से ज़्यादा प्यार करना चाहता हूँ’
में माँ के प्रति समर्पण का भाव उत्षृक ्ट ह।ै ‘मातृभाषा की घुट्टी’ भाषा के
प्रति स्वयं की प्रतिबद्धता से जुड़ा सजृ न ह।ै ‘प्रकृति तो तरे ी माता है’ कविता
के माध्यम से मनषु ्य को सचते किया गया है। नवरस के कवियों को मरे ी
ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ।

प्रगति गपु ्ता
वरिष्ठ साहित्यकार एवं काउंसलर
***

कविता सगं ्रह “सिगं ापरु नवरस- नौ कवि, नौ रस” की सभी कविताएँ
हर दृष्टि से स्तरीय हं।ै जैसा कि शीर्षक से विदित होता है इस पुस्तक मंे
काव्य के सभी रसों का समावेश ह।ै छंदमकु ्त व छदं बद्ध दोनों ही प्रकार
की कविताएँ ह।ंै कविताओं में निहित सदं ेश सहज ही पाठकों के हृदय में
गहरी पैठ बनाते हुए पूर्णतः सपं ्रेषित होते व पुस्तक को संग्रहणीय बनाते हं।ै

पुस्तक को काव्य-प्रेमियों का भरपरू स्नेह मिले और कवियों को
यथोचित सम्मान, इसी मगं लकामना के साथ!

रीता कौशल
लखे िका, ऑस्ट्रेलिया

***

कौन सी बात कहा,ँ कैसे कही जाती है
ये सलीक़ा हो तो हर बात सुनी जाती है - वसीम बरले वी
कविता, एक ऐसा सार्थक और सशक्त माध्यम है जो हमे जीवन के
अस्तित्व का बोध कराती है और रोज़मर्रा के जीवन में सादगी का रस ढढूँ ने
का इशारा देती ह।ै
प्रस्तुत कविता संग्रह प्रासंगिक होने के साथ-साथ मनुष्य को हर
परिस्थिति मंे सकारात्मक जीवन जीने के लिए प्रेरित करता ह।ै मंै हृदय
की गहराई से इस प्रयास की सराहना करती हूँ एवं इस कविता कोष के
नौ उदीयमान कवियों को उनकी नवीन कृतियों पर बधाई देते हुए स्वागत
करती हँ।ू

वंदना अग्रवाल
शिक्षिक‍ ा एवं लखे िका, सिगं ापुर
***

जैसे दिशाएँ साथ होकर भी भिन्न ह।ैं पसु ्तक की पहली जिल्द आख़िरी
जिल्द से जड़ु कर भी अलग ह।ै बिल्कुल वैसा ही इन नौ कवियों की
कविताएँ हं।ै एक ही किताब मंे जड़ु कर भी अलग-अलग भावनाओं को
समटे े हुए। जहाँ शृंगार रस मंे आप डबू जाते ह,ंै वहीं अगले ही पल
अभिमन्यु के चक्रव्यूह से उभरने का प्रयास करते हंै। एक कवि अपनी माँ
को अपना पहला प्रेम कहता है, वहीं दूसरा कवि प्रकृति को अपनी महबूबा
बना लते ा ह।ै इसमंे इतं ज़ार की तड़प है और मिलन का सकु नू भी।

अलग-अलग दिल को एक साथ पढ़ना समुद्र में सिमटी नदियों से एक
एक करके मिलने का सौभाग्य ह।ै

इस संग्रह की सबसे ख़ास बात यह है कि इसमें आपको लड़कपन के
नहे से लेकर प्रकृति के साथ संजीदा इश्क़ का एहसास एक साथ होगा। मन
की विवशता और वीर रस से ओत-प्रोत का नज़ारा एक साथ होगा। एक
साथ सबका अनुभव करना मानो थाल में अलग-अलग व्यंजन और सब
एक से बढ़कर एक। समस्त दनु िया एक घर में और सब में प्रेम।

मनीषा श्री
***

यह दखे ा गया है कि जब हम भारत से बाहर आते हैं तो थोड़ा सा भारत
अपने साथ ले आते हं।ै यही भारत हमें बार-बार कचोटता है, हमें अपने
पास खींचता है। हम जब भी स्वयं को अभिव्यक्त करने की कोशिश करते
हंै तो जान-े अनजाने उस अभिव्यक्ति में वह पीछे छूटा हुआ भारत झलकता
ह।ै ऐसा ही मुझे ‘सिगं ापुर के नवरस’ की लगभग हर कविता मंे लगा, चाहे
वो होली की हँसी ठिठोली हो या ‘तिरंग’े को सुरक्षित देखने की अतं िम
चाह। चाहे वह खेतों मंे ओस की चमकती बदूँ हो या फिर ऋतुराज बसतं
के उपहार की मीठी याद।

‘सिगं ापुर नवरस’ भारत से आए और सिगं ापुर में बसे यवु ा कवि और
कवयि‍त्रियों का ‘कविता संग्रह’ है जो अपनी मातृभूमि को छोड़ देने के बाद
भी उसकी याद को ताज़ा रखना चाहते हं।ै जब हम दशे को छोड़ आते हैं
तो वहाँ की भाषा और उससे जडु ़ी ससं ्ृतक ि को जीवित रखने के लिए सजग
प्रयासों का होना ज़रूरी है। यह सगं ्रह इसी दिशा में सार्थक प्रयास है।

नाम से ही स्पष्ट है इस संग्रह की हर कविता मंे एक नया रस ह,ै एक
नई ताज़गी है। कछु पकं ्तियाँ विशषे रूप से आकर्षित करती हैं:

जसै े “सुबह की धूप” में-
भोर तुम्हारे आगँ न मंे किरणंे बिखरे ती है
मणिकर्णिका की भाँति दमकती हूँ मंै यहाँ
इंद्रधनषु निकलता है तमु ्हारी छत पर
सतरंगी हुई जाती हँू मैं यहाँ
तुम्हारी मंुडरे पर जब होता सूर्यास्त...
मैं इस संग्रह की सफलता के लिए शुभकामनाएँ प्रेषित करता हँू और
आशा करता हूँ कि इसका प्रकाशन कई और अन्य कवि और कवयित्रियों
को लिखने की प्रेरणा देगा और सिंगापरु मंे हिंदी की जड़ों को और भी
मज़बतू करगे ा।

अनूप भार्गव
प्रिंसटन, न्यू जर्सी, अमेरिका
***

अनकु ्रमणिका

23 चित्रा गुप्ता
होली : हँसी-ठिठोली
मुझ मंे तरे ी छवि
रंग-बरे ंग ज़िंदगी
काश! यह व्हॉट्सएप न होता
पचपन में बचपन
खोल ले खिड़की हृदय की

39 सजं य कमु ार
टटू े सपने
सिगं ापरु उवाच
पॉलीथीन का असह्य बोझ
ठहर जा मौत
रंग प्यार के
मातभृ ाषा की घटु ्टी

52 शीतल जनै
नमक स्वादानुसार
साहित्य का दायित्त्व
कल रात मरे ा ‘कल’ आया
मुझे मीरा होना पसंद ह!ै
पहली मुलाक़ात
सोंधी-सी ख़ुशबू

67 आलोक मिश्रा
गीत लिखूँ मैं ऐसा
अच्छा लगता है
ऋतुराज आया
कसै े संुदर तस्वीर बनाऊँ
पानी
मज़दरू हूँ मंै

82 आराधना श्रीवास्तव
छईु -मईु नहीं तमु ककै ्टस बनना
ज्ञान मत बाटँ ो
कटे परों की उड़ान
हे मानसून के मेघ! सुनो मरे ा संदशे
प्रकृति तो तेरी माता है
शब्द और भावनाएँ

103 अमितषे
चक्रव्यूह
अभिलाषा
पौरुष
बरखा
सोच
अनुभव

114 श्रद्धा जैन
एक लड़की पागल दीवानी
मूक संवाद
वजह है प्रेम के ज़िंदा रहने की
कितना आसान लगता था
विरह के पल
प्रतीक्षा

123 गौरव उपाध्याय
मा-ँ पहला प्रेम
अंत कहाँ ह?ै
औरत कौन है
विरह का मलाल न रहे
आदत-ए-शहर
अब मुझे उल्टा चलना है

139 वंदना सिहं
कामकाजी महिला
चमकीले दिन
लम्हे
पड़े और सड़क
सावन
शब्द- मर रहे हैं

चित्रा गुप्ता

मरे ठ (उत्तर प्रदशे ) विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर चित्रा गपु ्ता ने
रघुनाथ गर्ल्स कॉलेज मेरठ में प्रवक्ता के पद पर काम किया। अध्यापन
और लखे न का गहन शौक़ किशोरावस्था से रहा। 1994 से सिंगापुर मंे
हिंदी सोसाइटी, डी.पी.एस. सिगं ापरु , तथा सिंगापुर स्कूल ऑफ़ द आर्ट्स
मंे अध्यापन कार्य किया। स्थानीय पाठ्यक्रम से सबं धं ित सामग्री बनाई।
अध्यापन में नतू न प्रयोग करने के लिए उत्सुक रहती हैं।

सम्प्रति- www.funhindi.me के द्वारा ऑनलाइन अध्यापन
करती ह।ंै ग्लोबल हिदं ी फ़ाउंडशे न सिंगापरु की एडवाइज़र ह।ंै उसके
तहत होने वाली काव्य-गोष्ठियों का सचं ालन और कविता-पाठ करती है।ं
सामयिक विषयों पर चर्चा और भाषण देती है।ं कत्थक नतृ ्यांगना हैं तथा
चित्रकला में भी अपनी तूलिका चलाती हैं। सिंगापुर में शॉरट् फ़िल‍ ्म और
सीरियल में काम किया है। सिगं ापरु की स्थायी निवासी हंै। सिंगापुर उनकी
कर्मभूमि ह।ै स्वयं को गहृ िणी कहलाना पसदं करती है।ं

साहित्यिक गतिविधियाँ और प्रकाशन-
प्रमुख भारतीय पत्रिकाओं- बालभारती, गर्भनाल, प्रतिलिपि, सेत,ु
रचनाकार में कहानियाँ और कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। फ़ेसबुक पर ‘रचना
पोएट्री ग्परु ’ एवं ‘काव्य स्पंदन पत्रिका’ में कविताएँ प्रकाशित। सिंगापरु की
‘पल्लवन’ तथा ‘भारत-भारती’ (पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया) पत्रिका मंे भी लखे ,
कविता और कहानी प्रकाशित।
समीक्षा– इडं ियापा उपन्यास की प्रूफ़ रीडिगं की और समीक्षा लिखी।
चंद्राकांक्षा (रीता कौशल) काव्य पुस्तिका पर मेरा प्रशसं ा-पत्र संलग्न है।

सिगं ापुर नवरस / 24

सिगं ापुर नवरस / 25

होली : हसँ ी-ठिठोली

बड़े-बड़े कलसों मंे मंनै े
रंग-बिरगं े रगं हैं घोले
ले-ले मज़ा आज होली का
बाहर भीतर तर-तर कर ले।
रहा झाकँ भीगे वस्त्रों से
सावँ ल चचं ल उठता यौवन
नयन मटक्का जी भर कर ले
दिल होलियाना तू भी कर ले।
फाग मंडली झूमती आई
रंग भरी पिचकारी लाई
लाज-शर्म की चूनर ओढ़े
नत नयनों को किए है गोरी
प्रियतम ने पीछे से घरे ा
हौल गया दिल थोड़ा-थोड़ा।
रंगों की बिसात पे चलकर
लिपट गया हंसों का जोड़ा।
कठं -श्रवण का मेल हुआ
दिल होलियाना हो गया।
बिना रंग के गाल गुलाबी
लोचन हुए तनिक शराबी।
खनक हँसी के दबे सुरों से
दिल होलियाना हो गया।
हर्ष भरा मन, हरी चुनरिया,
हरि सगं उसकी बाँसुरिया,
होली-होली की प्रतिध्वनि से
समा होलियाना हो गया।

सिगं ापरु नवरस / 26

बड़-े बड़े कलसों मंे मैंने
रगं -बिरंगे रगं है घोल।े
लले े मज़ा आज होली का
बाहर भीतर तर-तर कर ल।े

सिगं ापुर नवरस / 27

सजं य कमु ार

मूलत: बिहार के निवासी सजं य कमु ार ने रोज़ी-रोज़गार के सिलसिले
मंे दुनिया के कई हिस्सों में जीवन बिताया है। जहाँ एक ओर स्थानीय
सभ्यता-संस्कृति से कछु नया सीखने की होड़ उनमंे हमशे ा रही, वहीं उन्होंने
मन मंे दशे प्रेम और मातृभाषा की जोत निरंतर जलाए रखी। संजय विज्ञान
और कला के सगं म/सामजं स्य का अद्ुतभ नमूना हंै। पशे े से एक सफल
आईटी मैनजे र ह,ंै जो।IT से शिक्षा परू ी करने के बाद विगत 20 साल से
एक बहुराष्ट्रीय कपं नी में कार्यरत ह।ंै सजं य का हिदं ी साहित्य से अत्यंत
लगाव है। व्यंग्य, कविता, कहानी, वाद-विवाद, कई प्रसगं ों के आयोजन
की मजे ़बानी मंे भी माहिर हं।ै टाइम्स ऑफ़ इडं िया द्वारा आयोजित लघुकथा
प्रतियोगिता 2016 के विजेता रहे हं।ै उनकी हिंदी प्रतिभा और रचनात्मकता
के लिए उन्हें सिगं ापुर लगंै ्वेज ऑर्गेनाइज़ेशन द्वारा पहली एचईपी (हिंदी
समृद्ध व्यक्ति) सिंगापरु 2016, के रूप में सम्मानित किया गया था। वे एक
भावुक कहानीकार और कवि हंै जो आम आदमी के जीवन से प्रेरणा लके र
व्यंग्य, कविता और कहानी लिखते ह।ैं

ग्लोबल हिदं ी फ़ाउंडेशन की संस्थापना में इनका अहम योगदान रहा
है। ग्लोबल हिदं ी फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के लिए
पटकथा लखे न, मंच सचं ालन और परिचर्चा का नेतृत्व कर चुके है।ं ग्लोबल
हिंदी फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित प्रथम वर्ष की मौलिक कविता प्रतियोगिता
का प्रथम परु स्कार प्राप्त किया है। संजय ने एक वेब सीरीज़ की सकं ल्पना
कर पटकथा लिखी ह,ै जिसमंे भारत के वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक
घटनाओं के इर्द-गिर्द व्यंग का ताना-बाना बुना गया ह।ै

सिगं ापरु नवरस / 40

सिगं ापुर नवरस / 41

टूटे सपने

माँ ढरे सारे सपनों के साथ
पल रही हँू तरे े गर्भ में
क्या कहूँ, कितने हसीन सपने आते हैं
बाहरी दुनिया के संदर्भ मंे

कितनी सहु ानी होगी वो दनु िया
जिसको सजाने आते हैं रोज़, सूरज, चाँद, सितारे
यक़ीन है, मिलंगे ी ख़ुशियाँ
सपने सारे सच होंगे हमारे

मेरी नन्हीं उँगलियाँ चाहती हंै
पापा की मटु ्ठी का गर्म एहसास
पता है दादी चूम लगें ी
मेरे चाँद से दमकते माथे को लके र पास

भाई दगे ा अपने सारे खिलौने मुझे
जाऊँगी स्कूल, ज्ञान का ज्योत न बुझे
यक़ीं है उमड़गे ा स्नेह का बादल चहँु ओर
नाचगे ा मन मोर सम्मान की बारिश मंे सराबोर

घोड़ी पर सजीला राजकुमार आएगा
ब्याह के सुनहरी डोली मंे ले जाएगा
रास्ते पर बिछगे ी नए घरवालों की आखँ ें
पसार दगे ी एक और मा,ँ प्यार भरी बाहें

माँ, मैं हो गई हूँ थोड़ी और बड़ी
महसूस करने लगी हँू परिवेश के परिवर्तन को घड़ी-घड़ी

सिगं ापरु नवरस / 42

ये मेरा जन्म है या कोई व्यथा है?
सुना है, बटे ियों की ये ही दशा है!

माँ, दादी ने मुझे दखे तझु से क्या कहा?
उनका पहल-े सा प्यार क्यों नहीं रहा?
तुम्हारे और उनके सपने अब मेल नहीं खाते
दखे ती भी नहीं तमु ्हारी ओर आत-े जात।े

उनके चेहरे पे कटु िल मसु ्कान है
ख़तरे मंे शायद हमारी जान है
ये अँधेरा हो रहा पल-पल गहन है
बुझ रह,े हीरे-से चमकत,े मेरे नयन हंै

मेरी उगँ लियों को क्यों नहीं मिला
पापा की मुट्ठी का सहारा?
क्यों
अधूरा रह गया सपना हमारा?

है तेरी बेबसी का एहसास
तू कर नहीं पाई कोई सार्थक प्रयास
अलविदा मा!ँ अलविदा मा!ँ
टटू ने लगी है अब मेरी साँस

माँ, ढेर सारे सपनों के साथ
पल रही थी तेरे गर्भ में
क्या कहूँ, कितने हसीन सपने आते थे
बाहरी दुनिया के संदर्भ मं!े

सिगं ापरु नवरस / 43

शीतल जैन

राजस्थान मंे जन्मी, इदं ौर में पढ़ी-बढ़ी, ‘अहमक़ लड़की’ के तख़ल्लुस
से लिखने वाली इस लेखिका को नाम मिला ‘शीतल’। जनू की गर्मी में
जन्मी, शीतल के भीतर ‘शीतल’ कभी कछु नहीं रहा। हर पल कुछ नया
करने की ज़िद, ख़ुद को परिभाषित करने की ललक और मातभृ ाषा से प्रेम
ने लिखने के लिए प्रेरित किया। हिंदी में स्नातक, अगं ्रेज़ी और कपं ्यूटर मंे
स्नातकोत्तर और फिर अंग्रेज़ी साहित्य में एमफ़िल करने के बाद, शीतल
वर्ष 2006 से अनुवाद और एडवर्टाइज़िंग के क्षेत्र में अपनी सवे ाएँ दे रही हैं।

फ़िलहाल, भाषा प्रबंधक के रूप मंे एक बहुराष्ट्रीय कपं नी मंे कार्यरत,
शीतल जैन मंे लेखन के प्रति अभिरुचि हिंदी साहित्य में स्नातक करते
समय बढ़ी और लेखन की प्रेरणा इन्हंे अपनी माँ और जीवन के खट्ेट-
मीठे अनभु वों से मिली। प्रेम, प्रकृति और शृंगार इनके पसदं ीदा विषय रहे।
इनकी कविताएँ अक्सर इनकी वेबसाइट www.ahmakladki.com,
फेसबुक पेज ‘अहमक़ लड़की’, सिंगापुर सगं म, स्टोरीमिरर और अमर-
उजाला काव्य में प्रकाशित होती रहती है।ं

अपने काम और काव्य से इतर, कला में भी इनकी गहन रुचि है
और ArtboutiqueSG के अपने फ़ेसबकु ब्लॉग पर अपनी रचनात्मकता
बिखेरती रहती ह।ैं शीतल जैन, दो साल से ग्लोबल हिंदी फ़ाउंडेशन सिगं ापुर
से जडु ़ी हंै और हिदं ी दिवस व काव्य-गोष्ठी के संचालन में सक्रिय भूमिका
निभाती ह।ैं इसके साथ ही मालवा कल्चरल एसोसिएशन, सिगं ापुर में
व्यवस्थापन एवं सासं ्कृतिक कार्यक्रमों का दायित्त्व भी सभं ालती हंै।

सिंगापरु नवरस / 53

सिगं ापुर नवरस / 54

नमक स्वादानुसार

तमु ्हारी और मेरी बातें
प्यारी नहीं होतीं
लभु ावनी भी नहीं होतीं
हमारे बीच होती हंै
कछु कड़वी,
कछु मीठी बाते.ं ..

कड़वी बातों का
मनंै े अचार डाल दिया है
ठीक वैसे ही जैसे
माँ डाला करती थीं करले े का
और मीठी बातों का मरु ब्बा बना के
भर दिया है मर्तबान मंे
वैसे ही जैसे
नानी ने सिखाया था

अबकी बार मिलो
तो किसी बाग़ीचे मंे
फ़ुर्सत की चटाई डालकर
यादों के पराठों से
उस अचार और मुरब्बे का
स्वाद ज़रूर चखना
बता दने ा
नमक स्वादानुसार है या नहीं

सिंगापुर नवरस / 55

सनु ो तुम्हें हो या ना हो
तमु ्हारे लिए मेरा प्यार
ठीक वसै ा ही रहेगा
जसै े नमक स्वादानुसार

सिगं ापुर नवरस / 56

आलोक मिश्रा

आलोक मिश्रा का जन्म 1 दिसबं र, 1965 को कानपरु मंे हुआ। आपने
अपनी प्रारभं िक शिक्षा रायबरेली जि‍ले के एक छोटे से गाँव रंजीतपुर लोनारी
मंे प्राप्त की। छठीं कक्षा पास करने के बाद आप अपने पिता के पास
कानपुर आ गए और वहाँ के बीएनएसडी इटं र कॉलेज से बारहवीं तक की
पढ़ाई की। उसके उपरातं आपने डीएमईटी कलकत्ता से मरीन इजं ीनियरिगं
की पढ़ाई पूरी करके मालवाहक जहाज़ पर मरीन इंजीनियर के रूप मंे
अपनी नौकरी की शुरुआत की। इस दौरान विश्व के कई दशे ों मंे जाने के
अवसर प्राप्त हुए।

आप वर्ष 2003 मंे अपने परिवार सहित सिंगापुर आ गए और एक
बहुराष्ट्रीय शिपिंग कपं नी में नौकरी प्राप्त की। यहाँ पर आपने एम.बी.ए.
की डिग्री हासिल करने का सपना पूरा किया। आलोक मिश्रा सिगं ापरु के
स्थायी निवासी हैं और एक शिपिंग कंपनी मंे टके्निकल मनै ेजर की हैसियत
से कार्यरत हैं।

बहुआयामी प्रतिभा के धनी आलोक मिश्रा को हिंदी साहित्य पढ़ना और
नाटकों मंे काम करना बहे द पसदं है। आप सिगं ापरु स्थित ‘ग्लोबल हिदं ी
फ़ाउडं शे न’ नामक संस्था के सक्रिय सदस्य हंै और ससं ्था द्वारा आयोजित
कवि-गोष्ठियों में नियमित रूप से भाग लेते रहते ह।ैं इनकी कविताएँ विभिन्न
पत्रिकाओं मंे प्रकाशित हो चकु ी ह।ैं आपको फ़ि‍ल्मों में भी काम करने के
अवसर प्राप्त हुए ह।ंै

सिगं ापुर नवरस / 68

सिगं ापुर नवरस / 69

गीत लिखूँ मंै ऐसा

इक गीत लिखँू मंै ऐसा
कल-कल झरने के जैसा।

दिल मंे सोई आग जला दे
परिवर्तन का बिगलु बजा दे
निज हाथों क़ि‍स्मत लिखने का
मन में दृढ़ संकल्प जगा दे
पावन गीता के जसै ा
मीरा भक्ति के जैसा
इक गीत लिखँू मंै ऐसा।

पत्थर दिल को मोम बना दे
आखँ ों में पानी ठहरा दे
ऊँच-नीच को समतल कर के
मन से मन का योग करा दे
चदं न पानी के जैसा
अक्षत रोली के जसै ा
इक गीत लिखँू मंै ऐसा।

अधँ ियारे मंे दीप जला दे
भूखे को आहार दिला दे
नन्हें-मुन्नों के हाथों मंे
कॉपी, कलम, किताब दिला दे
मंदिर-मस्जिद के जसै ा
ईद-दिवाली के जसै ा
इक गीत लिखूँ मंै ऐसा।

सिगं ापरु नवरस / 70

काम, लोभ के रोगी के मन
मंे विरक्ति, वैराग जगा दे
पनघट पर गावँ ों की गोरी
की निश्छल फिर हँसी सुना दे
राधा-श्याम के जैसा
गंगा-जमुना के जैसा
इक गीत लिखँू मैं ऐसा।

सिंगापुर नवरस / 71

अच्छा लगता है

संग तमु ्हारे समय बिताना
अच्छा लगता है
घटं ों तक तुमसे बतियाना
अच्छा लगता है।

साझा करती हँू मंै तुमसे
अपने मन की बातें
बिना किसी प्रत्युत्तर के
सुनते हो मरे ी बातें
काँधे सर रख चलते जाना
अच्छा लगता है
सगं तुम्हारे समय बिताना
अच्छा लगता है।

बातों-ही-बातों में तुमसे
वक़्त गज़ु र जाता है
पता नहीं चलता कब कैसे
पहर बदल जाता है
लहरों के सगं बहते जाना
अच्छा लगता है
संग तुम्हारे समय बिताना
अच्छा लगता ह।ै

खोई-खोई रहती हँू जब
उलझी-उलझी रहती हँू जब
गरम-गरम तुम चाय पिलाते

सिगं ापरु नवरस / 72

आराधना श्रीवास्तव

आराधना श्रीवास्तव ने भारतीय जनसंचार ससं ्थान, नई दिल्ली से हिदं ी
पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और पाँच वर्ष तक राष्ट्रीय
समाचार चैनल ‘स्टार न्यूज़’ (संप्रति- एबीपी न्यूज़) से बतौर एसोसिएट
प्रोड्यूसर जडु ़ी रहीं। इन्होंने राजनीति, मनोरंजन, जीवन-शैली और दशे -
विदशे से जुड़ी ख़बरों पर आधारित कई कार्यक्रम बनाए और चनै ल को
अच्छी व्यूअरशिप रेटिंग भी दिलाई। मातृत्व की ज़िम्मेदारियों के निर्वहन के
लिए इन्होंने नौकरी का मोह त्याग दिया। सात सालों से सिगं ापुर मंे प्रवास
कर रही हंै और इसी दौरान आराधना ने सिंगापरु मैनजे मटें यूनिवर्सिटी से
कम्यूनिकशे न मनै ेजमेंट मंे स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। साथ ही,
लॉस एजं ले ्स स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया और स्विट्ज़रलडंै स्थित
लगु ानो यूनिवर्सिटी से प्रबधं न की कार्यकारी (एक्जीक्यूटिव) शिक्षा भी पूरी
की।

मैट्रिक बोर्ड की परीक्षा मंे सर्वोच्च अकं प्राप्त करने पर इन्हंे जिला
प्रशासन द्वारा सम्मानित किया गया। भारतीय जनसचं ार ससं ्थान में ‘रति
अग्रवाल’ और ‘श्री अशोक पुरस्कार’ के साथ-साथ हिदं ी पखवाड़े मंे

आयोजित मौलिक कविता-पाठ प्रतियोगिता में इन्हें प्रथम परु स्कार प्राप्त
हुआ। आराधना ने हिंदी में कविताएँ, भजन, गीत के साथ-साथ कई संवाद-
नाटिकाएँ भी लिखी हैं। सिंगापुर में हिंदी की सवे ा से जुड़े गुणीजनों ने
‘महादवे ी वर्मा’ और ‘हिदं ी दिवस’ पर इनकी लिखी और अभिनीत सवं ाद-
नाटिकाओं की ख़ूब सराहना की ह।ै सिंगापुर से निकलने वाली पत्रिका
‘सिगं ापुर संगम’ मंे इनकी रचनाएँ प्रकाशित हो चकु ी है।ं ‘ग्लोबल हिंदी
फ़ाउंडशे न’ के माध्यम से सिगं ापुर मंे हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपना सार्थक
योगदान देने का प्रयास कर रही हैं। साथ ही, अपने यटू ्बयू चैनल के माध्यम
से आराधना अपनी रचनाएँ दर्शकों के साथ साझा कर रही है।ं

सिगं ापुर नवरस / 83

सिगं ापुर नवरस / 84

छुई-मुई नहीं तुम कैक्टस बनना

ऐ मरे ी लाडो मरे ी बात सुनना
छईु -मईु नहीं तमु ककै ्टस बनना।

कोई छडे ़े तो शरमाकर मुरझाना नहीं
शूल पीड़ा की उसे चभु ो दने ा
जो तोड़ना चाहे हिम्मत तुम्हारी
उसे उसकी जगह दिखा दने ा
छईु -मुई नहीं तुम कैक्टस बनना।

अपने संकोच से दूसरों का हौसला न बढ़ाना
न ही उनके आनदं का साधन बनना
आँच न आने दने ा अपने सम्मान पर
चुप न रहना पलटकर वार करना
छईु -मईु नहीं तमु कैक्टस बनना।

मौसम की आस मत रखना
न रखना आस नर्म मिट्टी की
तपती धूप हो या हो बंजर रेत
तुम अपनी जगह बना लने ा
छुई-मईु नहीं तुम कैक्टस बनना।

सौंदर्य गुणों का धारण करना
बाहरी दिखावे में मत पड़ना
ज़मीन पर मत रेंगना
अपनी अलग पहचान बना लने ा
छुई-मुई नहीं तमु कैक्टस बनना।

सिंगापरु नवरस / 85

ज़मीन से गहरी जडु ़ीं हों जड़ें तमु ्हारी
और सिर आसमान में उठा लने ा
वक़्त की आँधी उड़ा न सके तुम्हंे
ऐसी अडिग शख़्सियत बना लने ा
छईु -मईु नहीं तुम कैक्टस बनना।

भीतर भावनाओं की नमी रखना
ऊपर सख़्त आवरण बना लेना
कोमलता तमु ्हारी कमज़ोरी न बने
अपनी दृढ़ता से शत्रुओं को झकु ा दने ा
छुई-मईु नहीं तुम कैक्टस बनना।

लज्जा ही एकमात्र भषू ण नहीं तुम्हारा
शौर्य और पराक्रम भी धारण कर लने ा
तुम केवल अन्नदायिनी अन्नपूर्णा नहीं
शक्ति स्वरूपों का भी स्मरण कर लेना
छुई-मुई नहीं तमु कैक्टस बनना।

न दे सकोगी किसी को छाया या फल
यह दखु रहगे ा तमु ्हंे आज और कल
यह सच है कि परमार्थ से बड़ा धर्म नहीं
पर स्वयं को पीड़ा दने े से बड़ा कोई अधर्म नहीं
सामाजिक-स्वीकृति की आस मत रखना
छुई-मुई नहीं तुम ककै ्टस बनना।

मंै माँ हूँ तमु ्हारे आसँ ू न देख पाऊँगी
कठिन पर सही राह दिखाऊगँ ी
जीवन-सकं ल्प को हर कसौटी पर परखना

सिगं ापरु नवरस / 86

विकल्प मात्र दो हों तो ऐसा करना
कि छुई-मईु नहीं तुम ककै ्टस बनना।

सिगं ापुर नवरस / 87

अमितेष

अमितषे मूलतः बिहार राज्य के बक्सर ज़िले से हंै। पशे े से सप्लाई
चने कसं ल्टटें हैं। परिवार का हिंदी भाषा से जडु ़ाव होने के कारण कविता
लखे न उनके नौकरी मंे आने के बाद स्वतः शुरू हो गया। उसके पहले तो
यूँ ही 2-4 लाइन लिखते रहते थे। साल 2012 से इन्होंने कविताओं को एक
नया रूप दके र उनका सगं ्रहण शरु ू किया। लिखने के किसी नियम में न
बँधे होने के कारण वे परिस्थितियों और जीवन के प्रति सोच, सवं ेदना और
संघर्ष व्यक्त करते शब्दों को गढ़ने का हल्का प्रयास करते हंै। अमितषे
अपनी भावनाओं को उकेरन,े लोगों को प्रेरित करने तथा स्वयं के अस्तित्व
को तलाशने के लिए कविताएँ लिखते हं।ै उनके स्वभाव की भावकु ता,
गंभीरता और हास्य उनकी कविताओं में दिखाई दते ी है। कविताओं के
अलावा अमितेष की रुचि नाटक लिखने तथा हल्की-फुलकी शे’रो-शायरी
मंे भी है। साल 2014 में सिगं ापुर आने के बाद ग्लोबल हिंदी फ़ाउडं ेशन की
संस्थापक ममता मडं ल जी से बिहार के एक कार्यक्रम में भटें हुई। उनके
प्रोत्साहन से ही सिगं ापुर से ग्लोबल हिंदी फ़ाउडं शे न से जुड़ाव हुआ। इसके

अंतर्गत होने वाली काव्य-गोष्ठियों मंे भाग लते े रहे ह।ंै
अमितषे के शब्दों म-ंे
मैं ख़ुद से ख़ुद ही परिचित नहीं हँू
मंै वर्तमान में एक अतीत हूँ
कई राह धरी, हर दिशा चला
कभी भीड़ म,ें कभी अकले ा
ढँू ढ़ता ख़ुद का अस्तित्व हँू!

सिगं ापुर नवरस / 104

सिगं ापरु नवरस / 105


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