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Singapore Sangam October to December 2019

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Published by sangam.singapore, 2019-12-31 01:47:36

Singapore Sangam October to December 2019

Singapore Sangam October to December 2019

ISSN: 25917773

त्रैमासिक ह ंिदी पत्रत्रका

अक्तू बर-हदिंिबर २०१९ • अकंि ८

सिगिं ापरु ििगं म

▪ अिंक ८ ▪ अक्तू बर - हदििंबर २०१९

िम्पादक :
डॉ िधंि ्या सििं
उप िम्पादक :
िाधना पाठक
आवरण सित्र :
मघे ा शमाा सिंि
तकनीकी ि योग:
अनमोल सिंि

ििंपका :
ईमले : [email protected]
सिगंि ापरु

प्रकासशत रिनाओिं के त्रविार लेखकों के अपने ैं| आवश्यक न ींि हक पत्रत्रका के ििपं ादक या प्रबिधं न िदस्य इििे ि मत ों।

िवासा धकार िुरक्षित

© Singaporesangam

अक्तू बर-हदििंबर २०१९ ◦ सििगं ापुर िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 1

सििंगापुर िगंि म की ओर िे नए वर्ा की शुभकामनाएँ

परु ाने वर्ा का मंिथन करंे और नई बसु नयाद उिी पर बनाएँ ताहक आने वाला िाल असधक
िनु ्दर और िदु ृढ़ ो| नए वर्ा में ररविशं राय ‘बच्िन’ जी की ये पितं ्रक्तयाँ जीवन में नवीन रि

भरें|

नव वर्ा

वर्ा नव,
र्ा नव,

जीवन उत्कर्ा नव।

नव उमगिं ,
नव तरंिग,
जीवन का नव प्रिगंि ।

नवल िा ,
नवल रा ,
जीवन का नव प्रवा ।

गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीसत नवल,
जीवन की नीसत नवल,
जीवन की जीत नवल!

ररविशं राय बच्िन

अक्तू बर-हदिंबि र २०१९ ◦ सििंगापुर िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 2

इि अिंक में

ररपोर्ा ह ंिदी के वा क ह ंिदी के वा क झलहकयाँ

मोह नी मे ता िािी प्रद्यमु ्न

5 7 9 11

ग़ज़ल काव्य-रि काव्य-रि क ानी

डॉ भावना त्रवनोद दबु े 13 15गौरव उपाध्याय वन्दना देव शुक्ल
कुँ वर
17

काव्य-रि आलखे 25

प्रो. िदानदंि शा ी डॉ ज्योसत सिंि

12 23

त्रवदेशी भार्ी के मखु िे लघु कथा यात्रा-िंिस्मरण

छाए ईश्वान, वर्ाा शीतल जैन िाधना पाठक

29 31 32
47
िवंि ाद-नाहर्का त्रवत्रवधा व्याकरण 52

आराधना श्रीवास्तव र्ा गोयल िाधना पाठक

36 43

ह िंदी की बोसलयों िे व्यजंि न त्यो ार

त्रबनोद समश्र अनरु ाधा सिघंि ल

48 49

अक्तू बर-हदिंिबर २०१९ ◦ सिंिगापरु ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 3

िम्पादकीय

‘नया वर्ा िबके जीवन मंे उल्लाि, खसु शयाँ और नई रोशनी
लाए’ इन् ींि शुभकामनाओंि के िाथ अगला अकिं प्रस्ततु
करते ुए अपार ख़शु ी ो र ी ै क्योंहक दो ज़ार बीि में
कदम रखते ुए सिंिगापुर िगिं म के दो वर्ा पूरे ो गए ैं| आप
िबके प्यार और िाथ के कारण ी य ििंभव ो पाया ै और
परू ा सिगंि ापरु िगिं म पररवार हृदय िे िभी का आभार प्रकर्
करता ै|

इि अकिं में एक ख़ाि ररपोर्ा ‘त्रवश्वरंिग’ की ै जो अपनआे प में
इतना अनोखा म ोत्िव र ा हक क्षजतनी बात की जाए कम ै| मारे कत्रव की प ली पसु ्तक ििाा के िाथ ी अन्य
रिनाएँ आपको सिंगि ापरु के रिना-िंिि ार की झाकँ ी हदखाएँगी| क ींि पत्नी के त्याग को पसत याद करता ै तो क ीिं
कत्रवता सलखने के सलए आक्षखर कौन िे कौशल िाह ए, िमझने की कोसशश ोती ै| ज ाँ ह ंिदी के वा क अपनी
रिनाओंि के िाथ हिर उपक्षस्थत ैं व ीँी त्रवदेशी भार्ी ने लीक िे र्कर इि बार हिल्मी-िमीिा भजे ी ै| भारत िे
रोिक क ानी तो हदलिस्प कत्रवता के िाथ ी ासमद को याद कीक्षजए इि अकिं में और त्रवश्व िे ग़ज़ल की बानगी आई
ै| तुकी का ििर करते िमय प ेसलयों को िुलझाते िसलएगा ताहक िौन्दया में डू बा मक्षस्तष्क किरत भी करता िले|
िगिं म पररवार ने ििंगम वाली हदवाली के कु छ सित्र िाझा हकये ैं क्योंहक तस्वीरंे बोलती ंै|लघु कथा जल्दी में पढ़
जाइएगा तो िविं ाद-नाहर्का िु रित मंे पढ़ते ुए देखना न भसू लयेगा और िु रित ै तो पकवान का आनदंि तो सलया ी
जाएगा| क ने को ब ुत कु छ र ता ै पर क ने िे असधक पढ़ने में मज़ा आता ै और पढ़कर दिू रों िे बाँर्ने में|

इि अकिं का आवरण सित्र मेघा शमाा सििं की कला ै| वे सित्रकारी के िेत्र मंे सििंगापुर मंे ब ुत नाम कमा र ी ैं|
उनकी कृ सतयाँ कई प्रदशसा नयों का ह स्िा बन िकु ी ंै| आवरण के सलए उन् ोंने ‘जेंर्ंेगल’ कला द्वारा स्पशरा ेखा का
िनु ्दर सित्र तैयार हकया ै| लाल और नीला रिंग सििंगापरु और भारत को क ींि न क ींि दशाता ा ै जो इि भार्ाई पत्रत्रका के
माध्यम िे ििंगम स्थात्रपत कर र ा ै|

आगे आने वाले अकिं ों के सलए भी रिनाए,ँ सित्र, पेंहर्ग आहद आमितं ्रत्रत ैं| आपकी प्रसतहियाएँ मारे सलए ब ुत ख़ाि ंै
अत: आपकी प्रसतहकयाओिं का इिंतज़ार र ेगा!

धन्यवाद िह त
डॉ िधिं ्या सििं

अक्तू बर-हदिंिबर २०१९ ◦ सििगं ापरु िंिगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 4

ररपोर्ा

त्रवश्वरिंग-भोपाल २०१९

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तीन अलग-अलग स्थानों पर (समन्र्ो

ॉल, भारत-भवन, रत्रवन्र भवन) ४ िे १० नवम्बर तक आयोक्षजत त्रवश्व

रंिग म ोत्िव में क्या कु छ न ींि था| रत्रवन्रनाथ र्ैगोर त्रवश्वत्रवद्यालय द्वारा

आयोक्षजत इि िाह त्य और कला के मिंि ने जैिे भारत मंे एक नया िमा

बाधँ हदया था| रत्रवन्र िंगि ीत, िडंि ासलका नामक नतृ ्य नाहर्का का मंिि न,

सित्र-मुखौर्ा प्रदशना ी, कई वाद्य यतिं ्रों का वादन-प्रदशना , ह ंिदी व अन्य कई

भार्ाओिं में काव्यपाठ, लेखक-कत्रव िे बातिीत, लोकनतृ ्य, आहदवािी नतृ ्य,

नार्क, ध्रपु द गायन, थडा जेंडर कत्रवयों की रिनाओंि का पाठ, प्रवािी

िाह त्य पर ििा,ा ह िंदी एक त्रवदेशी भार्ा के रूप मंे त्रवर्य पर िंिगोष्ठी, श्री िंितोर् िौबे
प्रवािी कत्रवयों का कत्रवता-पाठ,

मशु ायरा, आहद इतना कु छ था हक िूिी ख़त्म ी न ींि ोगी|

अथाता िाह त्य और कला की शायद ी कोई त्रवधा इि त्रवश्व रंिग

िे अछू ती र गई ो| भारत ी न ीिं बक्षल्क एसशया में भी

िभंि वत: प ली बार इतना बड़ा आयोजन एक ी स्थान पर ुआ

था| और िबिे ख़ाि बात तो य ै हक इि आयोजन की

अक्तू बर-हदिबिं र २०१९ ◦ सिगंि ापुर िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 5

ररपोर्ा

शरु ुआत म ीनों प ले ी ो गई थी| ‘हकताबंे बातंे ििखं ्या मंे इि म ोत्िव िे जोड़ा जो ह ंिदी को
करती ंै’ तथा अन्य कई कायिा म श्री िंितोर् िौबे त्रवश्वमंिि की ओर ले जाने की एक कड़ी ै|
जी (रत्रवन्र नाथ र्ैगोर त्रवश्वत्रवद्यालय के
ििसं ्थापाक और त्रवश्व रंिग के जनक) ने म ीनों य आयोजन इतना बड़ा और त्रवत्रवधताओिं िे भरा
प ले आरम्भ करवा हदए थे| नवम्बर के ७ हदनों था हक इि पर परू ा एक अकंि भी कम पड़
मंे भी ७० िे असधक अलग-अलग ित्र आयोक्षजत जाएगा| इि म ोत्िव मंे आगे के सलए भी ब ुत
ुए जो अभूतपूवा था| योजनाएँ बनी ंै और आशा ै जल्द ी ह ंिदी और
अन्य भार्ाओंि को आगे बढ़ाने में उनकी िहियता
इि आयोजन के िाथ ी भोपाल के ‘पक्षललक हदखगे ी|
ररलेशन िोिाइर्ी’ द्वारा प्रवािी िाह त्य िम्मान
और िाह त्य िम्मान का आयोजन भी ९ नवम्बर
को ुआ| क्षजिमंे प्रवािी िाह त्यकारों को तथा
भारत िे परु ोधाओिं को िम्मासनत हकया गया|
गभना ाल पत्रत्रका के वीहडयो ििंस्करण का भी
उद्घार्न इि अविर पर ुआ जो भत्रवष्य में ह िंदी
को बढ़ाने में म त्वपूणा भूसमका सनभाएगा|
गभना ाल पत्रत्रका के िंिस्थापक श्री आत्माराम शमाा
जी की भी इिमें म त्वपूणा भूसमका र ी| उन् ोंने
ह ंिदी के त्रवदेशी भार्ी सशिकों को इतनी बड़ी

अक्तू बर-हदििबं र २०१९ ◦ सिगिं ापरु ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 6

ह ंिदी के वा क

स्वाद

मीठा मखमली िर्खारेदार
मँु मंे घुल जाने वाला, मज़ेदार
आ ा! हकतना आनिदं दायी ोता ै ििलता का स्वाद
ज़ुबान के िाथ ज़े न में भी एक शरबती समठाि छोड़ जाता ै
पर कमबख्त बानगी तो देक्षखये,
क्षजतना भी िखो
लालि बढ़ता ी जाता ै.

अििोि की ऐिे स्वाद बाजारों मंे न ीिं त्रबक पाते ंै
पर इिकी तलाश मंे म भी िर्ोरे बन
बलु ाये त्रबन बुलाये

र दावत में प ुँि जाते ैं.
पर बीते कु छ हदनों िे,
दावतों का रिंग िीका ो िला ै
अरिा ो गया, पर पकवान में स्वाद का िर्खारा क ाँ समला ै?
कु छ रोज़ तो मने मँु की भी खायी ै,
पर कड़वा घरूँ ् पीकर, उम्मीद की प्याि बझु ाई ै.

अब कड़वी सनबौरी िख रोजाना, ज़ुबान किैली ो र ी

अक्तू बर-हदिबंि र २०१९ ◦ सििंगापुर ििंगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 7

ह िंदी के वा क

अििलताओिं की बेस्वाद परत िे, स्वाद
की याद भी मैली ो र ी
क्या पता व अनोखा स्वाद, म हिर
कब िख पाएँ
नाकासमयों का ला ल पीते-पीते,
क ींि उिकी उम्मीद ी न मर जाए.

मोह नी मे ता

छात्रा —नेशनल यूसनवसिरा ्ी
ऑि सििंगापुर

अक्तू बर-हदिंबि र २०१९ ◦ सििंगापुर िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 8

ह ंिदी के वा क

डर

अपने आप िे जब पूछा हक डर मुझे क्यों लगता ै, तका -त्रविार, लसंै गक िमानता को डिते ैं जो नाग,
ि िा कौंध गई बातंे कु छ-जब समत्र में ी ठगता ै। प्रगसतशील देश के मुखररत पररवेश में बिते त्रवकृ त
दाग़।
'मँु में राम बगल मंे छु री' िोिा था मात्र ै बोली,
अनदेखा कर ज़रूरत के वक़्त, उिने मेरी आँखंे खोली। बिता ढोंगी पैगम्बरों िे जो पढ़ाते घणृ ा का पाठ,
धूतता ा िे सशकार िँ िाते िकिं ीणा िोि के िम्रार्।
डर लगता ै तब मुझको जब शीश झुकाए वो खड़े,
देख र े थे िीर रण न जाने हकतने वीर बड़े। छल, बल, आश्वािन िे िै लाते ि ुँओर भ्ांिसत,
जोड़तोड़, खोखली मानसिकता िे भगिं करते वे शांिसत।
िाम्राज्य-धन ो, िा े मान ो, भावावेश मंे ै िब
अपणा , नवीन उद्गार के तजा पर क्यों िगे ी पीछे छू र्े,
िबल ी न कु कृ त्य को रोके तब िम्मखु रखो एक पररवार इकाई भले ो छोर्ी हकन्तु बिंधन यूँ न र्ू र्े।
दपणा ।
आज़ादी की िा मंे जब दतु ्कारते बड़ों की निी त,
उद्वेसलत ो मन मेरा उठता, जब जनता र ती ै मकू , भाई-ब न मंे दरार की वज तब बनती विीयत।
लगता हक जन-गणतिंत्र िमझने मंे, देश ने कर दी
िूक। तरक़्क़ी का थोड़ा तो ह स्िा माँ-बाप का श्रम ै,
जर के नाज़कु वक़्त में उनकी सनयसत क्यों वदृ ्धाश्रम
भीड़तितं ्र की सिंिगारी को गर वा देते जो लोग, ै?
उन् ींि अिामाक्षजक तत्त्वों के कारण जनता ै र ी दुु ःख
भोग। दण्ड-भेद िे तषृ ्णा बुझाकर, कर र े यूँ असभमान,
स्वयंि की खोज में समली कब ईष्याा न ींि ुआ य
मथंि न करने पर मजबूर ूँ अिरु िा की खबरें िुनके , भान।
कलकंि के कारण िपने र्ू र्े जो नारी ने देखे िुनके ।

अक्तू बर-हदििंबर २०१९ ◦ सििगं ापरु िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 9

ह िंदी के वा क

पररक्षस्थसत िे भयभीत ोने िे क्या ोगा भला,
िुप्पी िाध, आखँ मदंूि लेने िे न र्लेगी यूँ बला।

जब तक पशुत्व के क्षखलाि उठे गी न कठोर आवाज़,
ैवासनयत िे न ींि आएँगे िमाज के जानवर बाज़।

असधकारों के नन के त्रवरुद्ध ै करना आवश्यक प्रदशना ,
हकन्तु अथा न ीिं हक ह ंिस्र दिंगा ििाद बन जाए य घर्णा ।

प्रकृ सत, मानवता के दुु ःख को बाँर् िके गर म ििंद िण, िािी प्रद्युम्न
नैिसगका एकता, अन्योन्याश्रय को सनभाने का लें म प्रण।
छात्र- नशे नल यसू नवसिरा ्ी ऑि
ऐिे कल को िँवारें जो पषृ ्ठ िे आगे ो प्रसतपल, सिगंि ापरु
क्षज़न्दगी के रिंग-रण-मंिि पर, िाथ ी दें सनुःस्वाथा िबंि ल।

िमत्रपता प्रयत्न र े प्रगसत की ओर, न प ुँिे हकिी को िय,
मिु ीबतों िे जझू कर उदय ो ियू ा मारा सनभया ।

अक्तू बर-हदिंबि र २०१९ ◦ सििगं ापरु िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 10

झलहकयाँ

ििंगम वाली हदवाली २०१९

सििंगापुर िंिगम एक बड़ा पररवार बन र ा ै इिसलए िसंि ्था ने य सनश्चय हकया हक इि वर्ा िे ‘िगिं म वाली
हदवाली’ मनाई जाए| ३ नवम्बर को मनाए गए इि आयोजन की तस्वीरों िे आप इि कायिा म के मज़ेदार ोने
का कु छ अदंि ाज़ा लगा िकते ंै| इि आयोजन को िाह क्षत्यक न बनाकर थोड़ा खले , थोड़ी ँिी-हठठोली वाला
बनाया गया| िभी ने बड़े उत्िा िे इिमें भाग सलया| बड़े तो बड़े बच्िों ने भी ख़बू उत्िा हदखाया|

अक्तू बर-हदिंबि र २०१९ ◦ सिगिं ापुर िगिं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 11

त्रवश्व िे – ग़ज़ल

जीवन के इि उलझेपन को मैं िलु झाने आई ूँ

बीता मेरे िाथ जो अब तक, वो बतलाने आई ूँ धलू की िादर के नीिे जो,मीठी यादें िोईं थींि
जीवन के इि उलझेपन को मंै िलु झाने आई ूँ बना एलबम उन यादों की,आज जगाने आई ूँ

पाया क्षजििे जिै ा भी था मैनं े अपने जीवन मंे पा िकते ो िारी ख़सु शयाँ, अगर इरादे पक्के ों
प्यार का बनकर मैं िौदागर वो लौर्ाने आई ूँ लेकर अपने कलम की ताकत, ये िमझाने आई ूँ

िागर मझु िे पूछ र ा ै, नाव मेरी क्यूँ डोल र ी
मैं तो ल रों की िरगम पर, ताल लगाने आई ूँ

जख्मीिं ोकर तूिानों िे, य ाँ व ाँ मैं सगरती ूँ
िपनों के नभ पर पखिं ों को, मैं िै लाने आई ूँ

िीढ़ी मंनै े िढ़नी िा ी, लोग सगराते न ींि थके
खदु िे खदु की बन बिै ाखी पावँ जमाने आई ूँ

जीवन की इि भागदौड़ मंे जो जो िपने र्ू र् र े डॉ भावना कँु वर,
जादू की िी छड़ी घमु ाकर, िि करवाने आई ूँ
प्रसिद्ध प्रवािी िाह त्यकार,
सिडनी, ऑस्रेसलया

अक्तू बर-हदििंबर २०१९ ◦ सििगं ापरु िंिगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 12

काव्य-रि

म दोनों के ररश्ते में,

म दोनों के ररश्ते में, नौकरी जब अरेंज्ड मैररज जैिी ो और सलखना लव
त्याग तुम् ारा मुझिे ज़्यादा, मरै रज, इंििान सििा तभी नौकरी की क्षजम्मेदारी सशद्दत
तमु िली आयी िार-पािँ क़दम, िे सनभाते ुए सलख पाता ै। य.ू पी. के एक छोर्े िे
मंै िल पाया बि एक आधा... गावँ में पैदा ोना, त्रवनोद को, मशंिु ी जी की छड़ी के डर
और लालर्ेन की रोशनी मंे पढ़ा-सलखा गया। गदह या
मेरे जिै ा तेरा बिपन, गोल (आज कल का KG) िे क्लाि 12 तक की पढ़ाई
मेरे जिै े तेरे िपने, ह िंदी समहडयम स्कू ल िे करने के बाद मिरें ् नेवी के
जैिे मेरे गली मु ल्ले, पिै ों की खशु बू इन् ें िमुन्दर मंे कु दा गयी। कै डेर् िे
तेरे भी तो थे कई अपने, कै प्र्ेन बनने तक के खानाबदोश ज ाजी ििर ने
अपनी दसु नया िे रंिग िरु ाके , इनकी िोि के दायरे को त्रवदेशों तक बढ़ा हदया।
मेरी दसु नया रिंगीन बनाके , हिल ाल, इन् ोंने अपना घरौंदा सिंिगापुर मंे बना रखा
कै िे ख़शु र लेती ो तमु , ै।
अपने ररश्तों को करके िादा.....
त्रवनोद दबु े
म दोनों के ररश्ते में,
त्याग तमु ् ारा मुझिे ज़्यादा, (सििंगापरु
तुम िली आयी िार-पाँि क़दम,
मंै िल पाया बि एक आधा...

अक्तू बर-हदिंिबर २०१९ ◦ सिंिगापुर ििंगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 13

काव्य-रि

जिै े मेरी पिंिद नापििदं , गरसमयों की शाम छत पर,
तेरी भी तो थी कई बातें, तेरी अगिं लु ी पकड़ मुझे तारे सगनना ै,
मझु े िलना थे जेठ की दपु री, बाररश की िबु लॉन में,
तझु े पिंिद थी िावन की रातें, तेरे ाथँ थामे बँदू ों की आवाज़ िनु ना ै ,
त्रबना िोिे िमझे, िहदायों की दोप र आगँ न मंे ,
मेरे क़दम िे क़दम समला लेती ो, तुझे अगँ ड़ायी लेते देखना ै,
अपनी रातें छोड़ मेरी दपु री अपना लेती ो,
तुम् ारी मज़़ी पँछू ू तो मसु ्कराके ब ला देती ो, र मौिम की गनु गनु ी आिँ पर,
क्या सिंदि रू में सलपर्े ररश्तों का , सििा तेरी याद मझु े िेंकना ै ...
ऐिा ोता ै अर्ल इरादा....
मैं अगले जनम कृ ष्ण भी बन जाऊँ ,
म दोनों के ररश्ते में, तो तुम् ीिं बनना मेरी मीरा,
त्याग तमु ् ारा मझु िे ज़्यादा, और तुम् ीिं बनना मेरी राधा.....
तुम िली आयी िार-पािँ क़दम,
मैं िल पाया बि एक आधा... म दोनों के ररश्ते मंे,
त्याग तुम् ारा मझु िे ज़्यादा,
तेरे ििगं ींि बूढ़ा ोऊँ , तमु िली आयी िार-पािँ क़दम,
मंै िपने देखा करता ूँ, मंै िल पाया बि एक आधा...
तू क ती ै मझु पे मरती ै,
मैं ििमिु तझु पे मरता ूँ,

अक्तू बर-हदििबं र २०१९ ◦ सििंगापरु िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 14

काव्य-िंगि ्र

"१/२ हिल्र्र कॉिी"

"१/२ हिल्र्र कॉिी" एक काव्य-ििकं लन ै गौरव
उपाध्याय की २८ मौसलक कत्रवताओंि का| गौरव
जी लगभग १५ िालों िे ह िंदी कत्रवतायंे सलखते
और पढ़ते र े ंै| "नई वाली िलु भ ह िंदी" में
सलखी ये कत्रवताएँ मूलतुः रोजमराा के त्रवर्यों िे
लेकर कु छ गंभि ीर िामक्षजक मदु ्दों पर परावतना ै,
गौरव जी के अनुभवों का| पेशे िे एक िीसनयर
र्ेक्नोलॉजी प्रोिे शनल , गौरव २० िे ज्यादा देशों
में घूम िकु े ंै और मेशा अपनी भार्ा और
समट्र्ी की क ासनयों िे जुड़े र े ैं| ह ंिदसु ्तान के
एक छोर्े श र िे लेकर सिंिगापरु तक के ििर का
सित्रांिकन और आधुसनक जीवन शलै ी का
िंदि भ़ीकरण त्रवशेर्ता ै इि काव्य- िंगि ्र की| बाल
मजदरू ी और मानसिक अविाद जिै े गिभं ीर त्रवर्यों
िे लेकर "हदल तो बच्िा ै जी " जैिी लकी
रिनाओंि िे पाठकों के हदल में उतरने की िहृदय
कोसशश ै य हकताब| य गौरव जी की प ली
प्रकासशत पसु ्तक ै|

अगले पन्ने पर इिी ििंग्र िे एक कत्रवता प्रस्ततु ै | कत्रवता का आनंदि लंे
और जल्द ी अपनी प्रसत िरु क्षित करवाएँ|

गौरव उपाध्याय
सिगंि ापरु

अक्तू बर-हदििबं र २०१९ ◦ सिगंि ापरु ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 15

काव्य-रि

लोग बि प्यार ढूँढ र े ंै

कु छ दोस्त, कु छ मनवाज़, कु छ ररश्तेदार ढूँढ र े ैं
लोग तन् ा िे ंै कु छ, बि प्यार ढूँढ र े ंै

श रों की िड़कों पर गाहड़यों के मेले देखता ूँ
भीड़ मंे रगड़ते इन कंि धों को अके ले देखता ूँ
थके िे ये कदम, कु छ रफ़्तार ढूँढ र े ंै
लोग तन् ा िे ंै कु छ, बि प्यार ढूँढ र े ंै

कोई उम्र के पड़ावों पर , झुररयों िे लड़ने बठै ा ै
कोई उम्मीदों की नावों पर, दरू रयों िे लड़ने बैठा ै
िपु िाप िे ताकते आईने मंे, ये सनखार ढूँढ र े ैं
लोग तन् ा िे ंै कु छ, बि प्यार ढूँढ र े ंै

हकिी का कोई अपना, खो गया , तो रिंग क ाँ िे लाए
जो ोना था िो ो गया, पर िंिग क ाँ िे लाए
बदंि कमरों में बठै कर , कोरी दीवार ढूँढ र े ंै
लोग तन् ा िे ंै कु छ, बि प्यार ढूँढ र े ैं

िखू ी धरती पर भी िू ल उगाने का ौिला समले
रूँ धें गले वालो, तुम् ंे गाने का ौिला समले
िमय िे ार कर , कौन जीतता ै क्षज़न्दगी िे भला
उठो, भागो पूरब की ओर, तुम् ंे कु छ कर हदखाने का ौिला समले
हदल खदु का, दवा ै र मजा की, मिी ा बेकार ढूँढ र े ंै
लोग तन् ा िे ंै कु छ, बि प्यार ढूँढ र े ंै

"१/२ हिल्र्र कॉिी" काव्य-िगिं ्र िे
अक्तू बर-हदििंबर २०१९ ◦ सिंिगापुर िगिं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 16

भारत िे - क ानी

इंितज़ार

क्षजन आवाजों/घर्नाओिं िे म बेतर खौि खाते ैं वो एक वन्दना देव शकु ्ल
क्षजद्द की तर उतनी ी सशद्दत िे मारे हदलो जांि पर
कात्रबज ो जाती ैं और हिर एक अथक इंितज़ार बनकर प्रसिद्ध कथाकार, भारत

में डराने लगती ंै| त्रबखर गए, प िान में न ीिं आ र े थ|े
जो आवाज़ उिे द ला देती ,सि रा और िौंका देती एन इि अब घड़ी-घड़ी की ये सि रन िन्दा के
वक्त वो उिी डरावनी आवाज़ की सगरफ्त मंे थी| रोर्ी बेलते हदल की धड़कनों मंे शासमल ो िकु ी ै|
ुए उिके ाथ आवाज़ िुनकर रुक गए| शरीर झनझना उिने एक बार हिर क्षखड़की में िे र्ी वी
गया| न जाने क्यूँ उिे ऐिा लगा हक ाथ बाद में रुके में देखा| सतरिंगा झंडि ा लगे बड़े िे वा न के
इििे प ले उिका हदल थम गया और हिर अिानक तेज़ भीतर खामोश पड़े ट्र्े कट्र्े जवानों के
रफ़्तार िे धड़कने लगा| आवाज़ को िीखता छोड़, उिने शरीरों के लोथड़े क्षजनकी िच्िाई को
हिर रोर्ी के िाथ अपनी सितिं ाएँ बेलनी शुरू कर दीं|ि अब ताबूतों में ढँक हदया गया था| इन् ीिं में िे
वो ये अच्छी तर जान गयी ै हक आवाज़ अके ली न ींि एक मंे िुरेश यादव भी ...| ि िा उिे
उठती बक्षल्क दौड़ी ुई दिू री आवाज़ों तक जाती और उन् ंे याद आया , जब रोह ताश और िरु ेश
भी अपने िंिग सलवा लाती ै जिै े ये खदु िे भी डर जाती िौज मंे जाने की तैयारी कर र े थे रोज़
िुब मँु अधँ रे े, किं पकिं पाती ठण्ड में एक
ो| एक के ऊपर एक सगरती िी ये व ी आवाज़ंे ैं क्षजन् ोंने पतली-िी र्ी शर्ा और पंेर् प ने दौड़
उिकी क्षज़िंदगी में इन हदनों को राम मिा रखा ै| आज भी लगाने जाते थ|े क ते दौड़ने िे खनू मंे
त्रबलकु ल ऐिा ी ो र ा था| मोबाइल िीख-िीख कर हकिी गम़ी आ जाती ै| िन्दा अपने जुनूनी
खबर के आने का एलान कर र ा था| मु ल्ले मंे तीन हदन और क्षजद्दी बेर्े रोह ताश के सलए गोंद मेवे
प ले वो रोने कलपने की आवाज़ंे र र कर अब भी उठ
र ी थीिं| र्ी वी में िालीि जनाजों के िामने प्रधानमिंत्री जी
की मौन भीष्म प्रसतज्ञा और िभी के ताबूतों की पररिमा
करते मंति ्री जी| य ी तो ंै जो कु छ ी हदन प ले ये दावा
कर र े थे हक अब काश्मीर िे मने आतिंकवाद का लगभग
खात्मा कर हदया ै| उिने तो इनकी बातों पर अिरशुः
यकीन कर सलया था|
र्ी वी के दृश्य उिे द ला र े थे| कई हकलो ‘आर डी एक्ि’
िे भरी एक गाड़ी ने िौजी वा न को आत्मघाती मले में
उड़ा हदया| जवानों के शरीर ित-त्रवित ोकर इधर-उधर

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क ानी

के लड्डू बनाती ये क कर हक इििे शत्रक्त भी आवाज़ मोबाईल की थी जो अब बिंद ो िकु ी थी|
आयेगी और खनू भी बढ़ेगा| दौड़ के बाद अक्िर वो हिर बतना माजँ ने लगी| ि िा उिे लगा हक
िुरेश यादव भी रोह ताश के िाथ ी घर आ जाता कोई िीख िी उभरी ै| वो दौड़कर बैठक मंे गयी|
और हिर िन्दा दोनों को लड्डू खाने को देती| झाकँ कर देखा, ब ू अब भी र्ी वी देख र ी थी|
लम्बे िौड़े तो दोनों थे ी अब तो हृष्ट-पुष्ट भी ो ििुर भी पीछे कु ि़ी पर आकर बठै र्ी वी देखने
गए थ|े लगे थे| एक ल्की िी नज़र िन्दा की ‘ख़बरों’ पर
व ी जािबं ाज़ जवान जो कल तक कप्तान िुरेश पड़ी थी| र्ी. वी मंे प्रधान मतंि ्री ाथ जोड़कर अब
यादव बन दशु ्मन िे लो ा ले र ा था, अब एक भी श ीदों के जनाजों की पररिमा कर र े थ|े र
पासथवा शरीर मंे तलदील ो िकु ा था| िौजी ताबतू के ऊपर जवान की तस्वीर लगी थी| र्ीवी
िासथयों की सनगरानी में आई िुरेश यादव की मतृ स्िीन पर तस्वीरों िह त श ीदों के नाम और
दे और उि छोर्े िे गाँव मंे िोध मंे उमड़ता जन उनका हठकाना भी आ र े थे पूरे देश में आिोश
िलै ाब ,‘इन्कलाब क्षजंिदाबाद’, और ‘जब तक िूरज का मा ौल| प्रधान मंति ्री जी का जोशीला भार्ण
िाँद र ेगा’ जिै े नारों का हदल किं पाऊ शोर उिे हदखाया जा र ा था क्षजिमंे वो भारत की जनता
पागल कर र ा था| को यकीन हदला र े थे हक अब कु छ भी ो जाए
ये प ली घर्ना न ीिं ै जब ये पररवार अदंि ेशों िे दशु ्मन को छोड़ा न ीिं जाएगा| मारे जवान िोध
काँप न गया ो| जब भी िीमा पर गोली बारी की और जोश मंे ैं| स्वयंि को बसलदान करने के सलए
ख़बरंे आतींि पररवार गमु िा ो जाता| हिर ये तैयार ....’’ िन्दा हिर रिोई मंे आ गयी| उिे
आवाज़ें थम िी जातीिं लेहकन अबकी बार जब िे लगा उिकी िाँिें जोर-जोर िे िलने लगी ैं| कु छ
देश में ये भयानक िामूह क नर िंि ार ुआ ै िदिं ा देर वो ज़मीन पर बठै मेथी िाि करने लगी| दो
के पररवार में मातम ै| ब ू ने ा जिै े अपने कमरे हदनों िे उिने ललड प्रेशर की दवा भी न ीिं ली|
में ी जम िी गयी ै| सनकलती ी न ीं|ि बि र्ी बढ़ता ै तो बढ़ा करे, उिका मन न ीं|ि पड़ोि का
वी के िामने बठै ी र ती ै| वदृ ्ध त्रपता अपने कमरे लड़का िरु ेश यादव इि ‘ललास्र्’ में मारा गया|
मंे रखे िौजी बेर्े का सित्र देखते र ते ैं, उिे िाि रोह ताश और िरु ेश यादव दोनों ने एक िाथ ी
करते ंै, या हिर अखबार लेकर शुरू िे आखीर आम़ी ज्वाइन की थी| दोनों म ीनों प ले िे मँु
तक उिे पढ़ते र ते ंै| तीन वऱ्ीय पोता अहिं कत अधँ रे े मीलों दौड़ लगाते थ|े जाड़े और एक पतली
खले ता ुआ दादी के पाि आता ै और पूछता ै िी र्ी शर्ा में| क ते दौड़ते-दौड़ते पिीना आ जाता
“पापा कब आयंेगे ोली पर त्रपिकारी लाने को क ै| िन्दा का जी मँु को आता| जुननू ी और क्षज़द्दी
गए थ|े “ िाि िदंि ा “आयेंगे’’ क कर िपु ो जाती बेर्े को वो और तो कु छ न ींि क पाई लेहकन बेर्े
ै और आशंकि ा की ‘आवाज़ें’ हिर उिके ज़े न मंे रोह ताश के सलए गोंद- मेवा के शदु ्ध घी के लड्डू ,
एक नए सिरे िे शोर और धकमपेल मिाने लगती ग्लाि भर दधू , खाने के िाथ छाछ बे नागा हदया
ंै| ताहक शरीर मंे गम़ी र े| कभी-कभी जब िुरेश और

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क ानी

रोह ताश दौड़कर िाथ ी उिके घर आ जाते तो िदिं ा दोनों के सलए शदु ्ध घी का लवा बनाती|
हकतना आना जाना था उि पररवार मंे िन्दा का लेहकन जब िे िुरेश के श ीद ोने की खबर आई ै
उिने घर के हकवाड़ बंिद कर रखे थे| पसत ने क ा भी हक परू ा गावँ उमड़ पड़ा ै| अतंि ्येत्रष्ट में बड़े नेता
भी आये| तमु ् ंे जाना िाह ए था| दुु ःख ददा मंे पड़ोिी ी तो पड़ोिी के काम आता ै| िरु ेश अपने बेर्े
का दोस्त था| लग तो िन्दा को भी य ी र ा ै लेहकन ....िन्दा ने पसत की बात र्ाल दी थी| वो कै िे
बताये हक उि हदल किं पाऊ रुदन का िामना वो न ीिं कर िकती|
छुः वर्ा पूवा
बार वींि की परीिा के बाद रोह ताश ने पछू ा न ीिं बताया था हक उिके दो दोस्तों के िाथ उिने भी िौज
में सिपा ी बनने का सनणया सलया ै और िॉमा भी भर हदया ै| माँ िदंि ा को बेर्े के सनणया ने थोड़ा डरा
हदया था लेहकन त्रपता ने क ा था अरे अपने मु ल्ले का लड़का िुरेश भी तो िेना में ै| वो तो तीन
ब नों मंे एक ी भाई ै|
लेहकन दसु नया में और नौकररयाँ भी तो ंै? िदिं ा ने ि मते ुए क ा था|

देखो, िौक्षजयों की क्षज़िंदगी ब ुत इज्ज़तदार और बनाती थी| क्या ट्र्ा कट्र्ा सनकल आया था| छुः
ितु ्रवधाजनक ोती ै| जो आम़ी में भत़ी ोते ैं िीर् ाईर् और हदखनौर्| अब व ाँ उिकी पिंिद
िरकार की तरि िे उन् ंे ब ुत िुत्रवधाएँ दी जाती का खाना थोड़े ी बनता ोगा| मैि मंे जो समल
ैं| जीवन भर उनके पररवार की र िभिं व ि ायता जाता ो खाना पड़ता ोगा“ कलेजा मुँ को आता
की जाती ै| िमाज मंे इज्ज़त बढ़ती ै| बरु ा िोिो िदिं ा का|
िौज मंे जाते ी रोह ताश के सलए ररश्ते आने शरु ू
ी क्यँू? हकतने िौजी ररर्ायरमेंर् के बाद पररवार
के िाथ आराम की क्षज़ंदि गी त्रबताते ंै| और जीवन ो गए थ|े और हिर पाि के ी गाँव िे एक
का क्या, कभी भी क ींि भी ख़त्म ो िकता ै| लड़की िदंि ा और उिके पसत ने पििदं कर ली थी|
क्यूँ न अपने देश के सलए ी ‘’ आक्षख़री पतंि ्रक्त िंिदा रेसनंगि ख़त्म करने के बाद जब रोह ताश घर आया
को सि रा गयी थी| वो अपने िौके िूल् े के काम तो उिे भी ने ा को हदखा हदया गया था| ने ा
मंे लग गयी थी| हकिी िीज़ िे ध्यान र्ाने का खबू िरू त और िुशील लड़की थी िो अगले ी मा
ये उिका अपना तरीका ै| रोह ताश और ने ा का त्रववा कर हदया गया|
क्षजि हदन रोह ताश िौज की पररिा में उत्तीणा ुआ जब-जब देश के प्रधान मतंि ्री ख़बरों में कश्मीर की
बे द खशु था| उिने त्रपताजी और माँ के िरण शाक्षन्त का दावा करते हदखाई देते िदिं ा के मन मंे
स्पशा हकये थे और रेसनंिग पर िला गया था| “क्या भी शािंसत आ जाती| प्रधान मिंत्री का भार्ण और
खाता पीता ोगा व ाँ| वो तो रोज़ उिे गरम इरादे िनु कर उिे ये भरोिा ो जाता हक अब इि
रोहर्याँ िंेक कर देती थी| उिके पिंिद की िलज़ी देश का कोई भी बाल बािंका न ीिं कर िकता|

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क ानी

उिका मन ोता वो प्रधान मितं ्री जी के िरण स्पशा ज ाँ खसु शयों की प्रतीिा की जा र ी थी व ी अब
कर ले| बीि बीि में रोह ताश एकाध मा की दुु ःख मंे डू ब गया था| दो पायलेट्ि और िार
‘पीि’ पर घर आता| उतना िमय िन्दा का जवानों के श ीद ोने की खबर थी| िनै ल पर
पररवार पूणा ो जाता| उिे लगता वो इि एक मा त्रवरोधी दल के नेता सिल्ला र े थे हक मारे जवानों
मंे बेर्े के सलए क्या कर दे? एक िे एक खाना, की जान क्या इतनी िस्ती ै हक उन् ंे ऐिे परु ाने
उिकी पिदंि के अिार, समठाइयाँ रोज़ बनाती|
रोह ताश िौज मंे जाकर और भी ‘स्मार्ा’ ो गया सथयारों और त्रवमानों के भरोिे छोड़ हदया जाए?
था| ने ा और उिकी जोड़ी जिै े िीता राम की ये िुनकर िन्दा को ब ुत गसु ्िा आया था| ये
जोड़ी| और हिर खशु ी ने एक कदम और आगे रखा नेता जो घहड़याली आँिू ब ा र े ंै , िीख-िीख
जब ने ा गभवा ती ुई| सितंि ाओिं को कु छ ठंि डक कर गुस्िा हदखा र े ैं इन् ोंने कभी ये म िूि
समली| नई खसु शयों की उम्मीद ने पुराने प्रायक्षश्चतों हकया ै जो श ीदों के पररवार करते ंै? क्या ये
को ढँक हदया| रोह ताश के वापि ड्यूर्ी पर जाते लोग जो इन जवानों की बदौलत िनै की नीदंि िोते
ुए िदिं ा ने उिके सलए ताबीज़ बनवाकर उिे ैं जानते ंै उनके और घरवालों के बसलदान? ये
प नाया था ये क ते ुए हक ये तमु ् ारी रिा िनै लों वाले मातम में भी क्यूँ आ जाते ैं तमाशा
करेगा| तो रोह ताश ने ँिते ुए क ा था ‘ठीक ै बनाने? न आराम िे मरने देते और न घरवालों को
अब रिा जकै े र् प नना छोड़ देता ूँ’’| खलु कर रोने देते| िन्दा आिोश िे भर गयी| ऐिे
जब पोता अनन्य ुआ तो घर पूरा ो गया| घर में तमाम िवाल गा े बगा े उिके अतंि र में उलर् पुलर्
िम्पन्नता आ गयी| ब ू ने ा लक्ष्मी स्वरूपा थी|
वर्ा में एक दो मा के सलए रोह ताश को छु ट्र्ी ोते| प्रायक्षश्चत का एक उबाल िा उठता िीने मंे|
समलती| पररवार वर्ा भर उि एक मा की प्रतीिा िदिं ा ने रात को क्षखड़की मंे िे र्ी वी ‘न देखते ुए
करता| खशु , िुरक्षित, सनक्षष्िि| िन्दा को लगता िा देखा’ था जब उिके पड़ोि के श ीद िरु ेश
हक ये एक मा ी ै जब वो क्षज़िंदा म ििू करती यादव की रो रोकर अधमरी ो िकु ी माँ एिकं र को
ै| कु छ वक्त के सलए ी ि ी एक स्थाई हिि िे बता र ी थी हक कै िे उिके बेर्े का िार हदन बाद
मतु ्रक्त, क्षज़ंिदा र ने का अ िाि ी तो ै|
ी जन्महदन था और उिका कल ी िोन आया था
(2) हक तुम लोग घर में के क कार् लेना| उिके िार
रोह ताश अगले मा आने वाला था| एक एक हदन िाल के बेर्े को के क कार्ना और खाना ब ुत
सगनकर सनकल र ा था तभी उिका िोन आया था अच्छा लगता ै| मंै त्रबलकु ल ठीक ूँ| िदंि ा ने ये
हक छु क्षट्र्यािं सनरस्त कर दी गयी ैं| िीमा पर भी देखा था जब िरु ेश यादव के त्रपता अपने श ीद
तनाव ै| व ाँ ड्यूर्ी लगा दी गयी ै| उि घर मंे बेर्े के नन् ंे िे पुत्र को भी िौज में भेजने की बात
कर र े थे| इि दृश्य ने िन्दा की रात की नीदिं
उड़ाकर रख दी थी| उिका भी तो पोता ै| क्या
उिका दादा भी अपने पोते को ...िोिकर सि र

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क ानी

गयी थी िन्दा| कभी कभी हदमाग भावनाओिं िे क ा| रामेश्वर ने र्ीवी ऑि कर हदया|
इतना आगे दौड़ जाता ै हक त्रविार िारी दें तोड़ कु छ देर कमरे में खामोशी र ी सिवाय िाय की
देते ैं| जो भत्रवष्य िवासा धक डराता ै व ी स्मसृ त
की शक्ल में िबिे ज्यादा ज़े न पर कलजा ल्की ल्की िुक्षस्कयों के |
जमाता ै| िुनो ..िदिं ा ने मौन तोड़ा
िालीि श ीदों मंे ‘रोह ताश वमा’ा नाम का कोई बोलो
िौजी न ीिं था अब तक ये िाि ो िकु ा था| ये जो खबर आती ै वो प ले र्ीवी पे आती ै या
क्षज़ंिदगी, उम्मीद की एक और िीढ़ी पार कर गयी िोन िे?
थी जैिे| ताज़ा घर्ना में एिकं र बता र े थे हक कौन-िी खबर? रामेश्वर ने पछू ा
“कु छ आतंकि वादी पलु वामा के एक घर मंे सछपकर कु छ देर जिै े िवाल मँु के भीतर उलझ िा
िायररंिग कर र े ैं| और जब जवानों ने उन् ें गया| िन्दा ने कु छ देर बाद पूछा ‘य ी हकिी
सनकालने के सलए िायररिंग की तो पत्थर बाजों ने जवान के श ीद ो जाने की खबर’
जवानों पर पत्थर बरिाए|“ अिानक िदिं ा घबरा ‘न ीिं पता’ ..रामेश्वर का डरा ुआ स्वर िपु ो
गयी| गोया कई पत्थर उिकी आत्मा पर दना गया|
दन बरि र े ों| ‘िुनो, िार बज र े ैं, जाग ‘मझु े लगता ै र्ी वी पे िबिे प ले आ जाती ै|
गए क्या ? िदंि ा ने पसत को करवर् लेते ुए देखा न ींि िब श ीदों के नाम और िोर्ो आ र े
देखकर क ा’ थे ?’ िन्दा की आवाज़ गीली थी|
‘जागंेगे तो तब जब िोयगंे े’’ पसत ने क ा श ीदों के पररवार के एक िदस्य को िरकार ने
िलो उठ जाओ| िाय बनाती ूँ| थोड़ी बैिेनी कम नौकरी देने की बात क ी ै और पाँि लाख, ऐिा
िुना ै मने ..रामेश्वर ने क ा
ोगी| िन्दा ने िौंककर पसत की ओर देखा
बना लो ...क कर पसत रामेश्वर उठ गए| उन् ोंने
मारा मतलब श ीदों के पररवार को|
ाथ मुँ धोया| फ्रे श ुए और र्ीवी खोलकर बठै ‘लेहकन उन की कमी थोड़े ी पूरी ो िकती
गए| ै ?’ िन्दा ने शून्य मंे देखते ुए क ा
िदंि ा िाय लेकर कमरे मंे आई| ‘िुनो, ये िबु िे ‘िुनो, आज ो आना िरु ेश के य ा|ँ अच्छा न ींि
र्ी वी क्यूँ खोल सलया| िब रात की बािी ख़बरें लगता| ऐिे वक्त तो जाना ी िाह ए| पूरा मु ल्ला

ी तो आ र ी ोंगी?’ ो आया| क्या क ंेगे लोग हक दसु नया शासमल
ि ी ै, लेहकन आतंिहकयों िे मुठभेड रात में ी ुई| िरु ेश तो रोह ताश का पक्का दोस्त था और
तो ोती ै| ब्रेहकंि ग न्यूज़ में िुब आ जाती ंै| पड़ोिी भी, तो भी न ींि आये| म हकिी के गम
र्ीवी कु छ देर के सलए बंिद कर दो ना ...मुझे मंे न ींि जायंेगे तो मारे य ाँ कौन ..’
घबरा र् िी ोती ै| शोर लगता ै िन्दा ने शायद अहंि कत उठ गया ै| उिका दधू तैयार

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क ानी

करना ै| क कर िन्दा उठी और रिोई मंे आ गयी| पसत की क ी आक्षख़री पतिं ्रक्त दु रा दु रा कर उिे
डरपाने लगी|

(3)
रात रोज की तर थी ..िुनिान और अकू त िन्नार्ों िे भरी| बि कभी कभार िुरेश के घर िे कोई

ल्की िी िीख उभर आती जो िन्दा के हदल को िीरती शून्य मंे क ींि त्रवलीन ो जाती| बेिनै ी सघरती
जा र ी थी| िन्दा ने सनकर् की खार् पर िोये पसत को देखा| वो खराार्े भर र े थ|े
‘िलो आज तो ग री नीिंद आई इन् ें’ उिने िोिा|... आवाज़ें हिर मन के अधंि ेरों िे उठने- डू बने
लगीिं ...वो ड़बड़ा कर उठ गयी| पसत रामेश्वर ने क ा था हक जवानों की आतहंि कयों िे मठु भेड़ें रात मंे

ोती ैं| वो बेिनै ी िे सघर गयी| मर्के िे भरकर पानी पीया| बठै क मंे गयी| र्ीवी खोल सलया और
म्यरू ् करके देखने लगी|
एक नया ताज़ा मला ुआ था अभी अभी| आतंहि कयों की गोली िे िार जवान और एक मेजर के मारे
जाने की खबर थी| मुठभेड़ अधंि रे ों मंे िल र ी थी| र र कर गोली की आवाज़ िुनिान मंे गँजू जाती|
ख़बरों में दो घंिर्े पवू ा ुई मठु भेड़ के दृश्य और िमािार आ र े थे| जवानों के नाम में उिे एक नाम
कु छ जाना प िाना िा लगा| उिने खर् िे र्ीवी बदंि हकया और कमरे मंे जाकर िादर मुँ तक डालकर
लेर् गयी|
ये र इंितज़ार के ख़त्म ोने की शरु ुवात थी |

अक्तू बर-हदििबं र २०१९ ◦ सिगंि ापरु िगिं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 22

भारत िे- काव्य-रि

मंै कत्रवता की दसु नया का स्थायी नागररक न ीिं ूँ

मंै कत्रवता की दसु नया का स्थायी नागररक न ीिं ूँ प्रो. िदानिंद शा ी
मेरे पाि न ींि ै इिका कोई ग्रीन काडा (काशी ह न्दू त्रवश्वत्रवद्यालय,

कत्रवता की दसु नया के बा र वाराणिी, भारत )
इतने िारे मोिे ंै
क्षजनिे जझू ने मंे खप जाता ै जीवन
इनिे न िु रित समलती ै, न सनजात
हक कत्रवता की दसु नया की नागररकता ले िकूँ
इिसलए जब तब
आता जाता र ता ूँ

कत्रवता की दसु नया
बि पयरा ्न ै मेरे सलए
न कोई िनु ौती
न कोई मोिाा
न ी कोई हकला
क्षजिे जीतने की बेिनै ी ो

छु क्षट्र्यों मंे आता ूँ
बेपरवा घमू ता ूँ
थोडी िी वा
थोडा िा प्यार
थोडी िी भावुकता
बर्ोर कर रख लेता ूँ
जिै े ऊँ र् भर लेता ै अपने गपु ्त थलै े मंे
ढेर िारा पानी

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काव्य-रि

हिर लौर् जाता ूँ
उिी दसु नया में वापि
ज ाँ छोर्े-मोर्े मोिे
इन्तजार करते र ते ैं
जिै े बछड़े
गायों के लौर्ने का।

नोर्: य कत्रवता प्रो िदानंिद
शा ी के नए काव्य-िंिग्र
‘मार्ी पानी’ िे ली गई ै|

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भारत िे- शोध आलेख

प्रेमिदंि का त्रप्रय पात्रुः ‘ ासमद’

ईदगा बाल मनोत्रवज्ञान पर आधाररत क ानी ै। अलबाजान और अम्मी जान खबू पैिा
पररक्षस्थसतयाँ उम्र न ींि देखती।िं अनाथ बच्िा दादी माँ की कमाकर लाएँगे। व आश्वस्त ै क्योंहक
गोद में पलकर िमय िे पवू ा पररपक्व ो जाता ै। बड़े- ‘आशा तो बड़ी िीज़ ै और हिर बच्िों
बढू े़ तो बच्िों की िमस्याओिं को िमझते एवंि िलु झाते की आशा। उनकी कल्पना तो राई का
पवता बना लेती ै।‘ ासमद के पाँव में
ी ैं परन्तु प्रस्ततु क ानी का नायक ासमद अपनी जूते न ींि ै, सिर पर एक पुरानी-धरु ानी
दादी की वास्तत्रवक कहठनाई को िमझता ै तथा उिका र्ोपी ै क्षजिका गोर्ा काला पड़ गया ै
सनराकरण करने का प्रयत्न करता ै। प्रेमिदंि के िम्पूणा हिर भी व प्रिन्न ै। बच्िे मेले मंे
िाह त्य में के वल एक ी बालक पात्र ै – ासमद।
क्षजिको उन् ोंने बड़े मनोयोग िे गढ़ा ै। ‘ईदगा ’ डॉ. ज्योसत सिंि
क ानी का प्रमखु पात्र ै ासमद , उिकी उम्र िार-पािँ असिस्र्ेंर् प्रोिे िर
िाल ै। इतनी छोर्ी उम्र मंे भी उिने हकतनी बड़ी-बड़ी (कंे रीय उच्ि सतलबती सशिा िसिं ्थान,
बातों िे पररिय कर सलया ै - भूख , गरीबी , अभाव। िारनाथ, उत्तर प्रदेश, भारत )
व िमझ की उम्र िे ब ुत छोर्ा था परन्तु बढ़ू ी दादी
के आँिुओिं को व अच्छी तर पढ़ िकता ै।

अन्य क ासनयों की भासंि त इिका कथानक भी िकंि ्षिप्त ै।
रमज़ान के तीि रोजों के बाद ईद आई ै। िारों तरि
उत्िव छाया ै। बच्िे अपने माँ-बाप िे पिै े लेकर मेले
मंे जाते ैं। ासमद के मांि-बाप न ींि ंै, अके ली दादी
ै,क्षजिके पाि धन का अभाव ै। हिर भी व ासमद
को तीन पिै े देती ै, ताहक व अपने समत्रों के िाथ
मेले में जाकर कु छ खा-पी िके । ासमद की उम्र िार-
पाँि वर्ा ै। म मूद, मो सिन, नूरे और िम्मी आहद
दिू रे िाथी ैं जो अपने धन-वभै व की धौंि हदखाते ैं
परन्तु ासमद इि बात िे प्रिन्न ै हक उिके

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आलेख

जा र े ंै। कभी क्षजन्नों की बात करते ैं कभी पाि तीन पैिे ी तो थ।े िब बच्िे अपने-अपने
समठाइयों की। कल्पना ी कल्पना में क्षजन्न क्षखलौने की प्रशंििा करते ंै परन्तु ासमद अपने
आकार लेने लगते ंै। ासमद की क्षजज्ञािा का उत्तर आप को तिल्ली देने के सलए क्षखलौनों की सनंिदा
देता ुआ मो सिन क ता ैुः “एक आिमान के करता ै। क्षखलौनों के बाद समठाइयाँ आईं| हकिी
बराबर ोता ै क्षजन्न । ज़मीन पर खड़ा ो जाए ने गुलाब जामनु , हकिी ने िो न लवा और हकिी
तो उिका सिर आिमान में जा लगे मगर िा े तो ने रेवहड़यािं लीं।ि ासमद ने कु छ न ींि सलया। वे उिे
लौर्े मंे घुि जाए।“ हिर वे सिपाह यों की बातंे हदखा-हदखाकर स्वयिं खाते र े, उिे सिढ़ाते र े ।
करने लगते ंै। उनके कतवा ्य के अपने अपने मो सिन , अ मद, नरू े आहद ने उि पर कर्ाि भी
अनुमान लगाने लगते ंै। वे पुसलि की ररश्वत एविं हकये परन्तु व शान्त र ा।
िोरी की बात भी करते ंै। ासमद को त्रवश्वाि न ीिं
आता हक िोरों को पकड़ने वाले ी िोरी भी करते हिर लो े की िीज़ों की दकु ानें आईं। ासमद मन
ंै। मो सिन उिकी नादानी पर दया हदखाकर की मन िोिने लगा यहद व सिमर्ा खरीद ले, तो
बोला - “अरे पागल इन् ें कौन पकड़ेगा, पकड़ने घर में काम आएगा। समठाइयों का क्या ै ? जरा
वाले तो ये लोग खुद ंै। लेहकन अल्ला इनको मँु का ी तो स्वाद ै, और क्षखलौने हकतनी देर
िजा भी खबू देता ै। राम का माल राम मंे हर्कें गे। समठाइयाँ खाने िे तो िोड़े-ििंु सियाँ
जाता ै। थोड़े ी हदन ुए, मामू के घर आग लग सनकलते ैं। व आत्मत्रवश्लरे ्ण करता ै। उिके
गई। िारी लेई-पूजिं ी जल गई । एक बरतन तक न अलबाजान आएगँ े, अम्मी जी आयंेगी , तो व िब
बिा । कई हदन पेड़ के नीिे िोए, अल्ला किम कु छ खरीदेगा। उन दोनों को भी खेलने देगा जो
पेड़ के नीिे“। अभी उिे ाथ तक न ीिं लगाने देते। उिने डरते-
डरते दकु ानदार िे सिमर्े का भाव पछू ी सलया।
नमाज के बाद िब खेल-क्षखलौनों एवंि खाने-पीने मंे सिमर्े की कीमत छुः पैिे थी। ासमद य क कर
लग गए। अ मद सिपा ी लेता ै, खाकी वदी और आगे बढ़ गया हक यहद तीन पैिे लेने ों , तो ले
लाल पगड़ीवाला , कन्धे पर बन्दकू रखे ुए मालूम लो। दकु ानदार ने उिे बुलाकर तीन पिै े मंे ी
सिमर्ा दे हदया।
ोता ै। अभी कवायद हकये िला आ र ा ै।
मो सिन ने सभश्ती खरीद सलया। नरू े को वकील उिके िाथी उि पर ँिने लगे हक पागल सिमर्ा
अच्छा लगा। ासमद ने कु छ न ींि खरीदा। उिके क्यों खरीद लाए क्योंहक य तो क्षखलौना न ीिं था।

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आलेख

ासमद ने गवा िे उतर हदया-क्षखलौना क्यों न ीिं ै। हकया ै हक क्षखलौने, समठाई आहद की सनंिदा करे
अभी कन्धे पर रखा बन्दकू ो गई। ाथ मंे ले तथा सिमर्ा खरीदे। ासमद अपनी दादी के पाि
सलया, िकीरों का सिमर्ा ो गया। िा ूँ तो इििे सिमर्ा लेकर प ुँिता ै। उिे दखु ोता ैहक बच्िे
मजीरे का काम ले िकता ूँ। एक सिमर्ा जमा दँू ने तीन पिै े अपने सलए न खिा करके उिके सलए
तो तुम लोगों के िारे क्षखलौनों की जान सनकल
जाए। तमु ् ारे क्षखलौने हकतना ी जोर लगावंे, मेरे ी सिमर्ा खरीद लाया। अमीना उिे घड़ु कती ै, तो
सिमर्े का बाल भी बाँका न ींि कर िकते। मरे ा व मािूसमयत िे क ता ै- “ तुम् ारी उगसिं लयाँ
ब ादरु शेर ै-‘‘सिमर्ा।‘’ तवे िे जल जाती थीिं, इिसलए मैंने इिे सलया“।

सिमर्े ने िभी को मोह त कर सलया। अब िभी बच्िे ासमद ने बूढ़े ासमद का पार्ा खेला था और
दोस्त उिे अपने क्षखलोने हदखाने लगे। उन् ंे ासमद बहु ढ़या अमीना बासलका अमीना बन गई थी। ासमद
िे ईष्याा ोने लगी। मो सिन ने क ा- तुम् ारे अमीना के र्प-र्प सगरते आिुओिं का र स्य न
सिमर्े का मुँ रोज आग मंे जलेगा। ासमद ने िमझ िका। हकन्तु बूढ़ी दादी जानती ै हक गरीबी
तुरन्त जवाब हदया- आग मे ब ादरु ी कू दते ैं के कारण ी ासमद सिमर्ा लाया ै। दादी की
जनाब, तुम् ारे ये वकील, सिपा ी और सभश्ती दआु एँ पाकर ासमद बड़ा अवश्य ोगा। क्या उिके
लेहड़यों की तर घर मंे घुि जाएगँ े। आग में कू दना िद्भाव तथा त्याग जीत्रवत र ेंगे ?
व काम ै, जो रुस्तमे ह न्द ी कर िकता ै।
प्रेमिदंि ने ासमद में एक ऐिे पात्र की अवतारणा
िार वर्ा के बालक ासमद के सलए अपनी िम्पूणा की ै,जो सनममा पररक्षस्थसतयों के थपेड़े खाकर ब ुत
पजँू ी को खिा करके , क्षखलौने, समठाई आहद के पररपक्व ो गया ै, िमय िे ब ुत प ले। कु छ
आकर्णा तथा आनन्द को ििवं रण करके , सिमर्ा िार पाँि वर्ा का बालक। मा-ँ बाप अल्ला को
खरीदना , एक बड़ा त्याग ै। िद्भाव तथा अपनी प्यारे ो गए। दादी उिका लालन-पालन करती ै।
दादी के खयाल ी ने सिमर्े को आकर्णा शत्रक्त दे व दादी की िीमाओिं को िमझता ै। व रोर्ी
दी। य उिके िररत्र की म ानता ोने के िाथ- पकाती ै, तो उिका ाथ जलता ै। घर में सिमर्ा
िाथ िामाक्षजक व्यवस्था की ीनता भी ै। इिी ै न ी।ंि
व्यवस्था के कारण उिकी दादी को बुढ़ापे में कड़ी
मे नत करने के बाद भी उनके घर मंे अभाव ी दोस्तों के िाथ ईद के मेले में जाता ै। कु ल तीन
अभाव र ता ै । इन् ींि अभावों ने उनको मजबरू पिै े ंै। व खाने-पीने के सलए कु छ न ींि खरीदता।
उिका मन ललिाता ै समठाइयाँ खाने के सलए
लेहकन व कोई न कोई तका देकर उिे सनयंित्रत्रत

अक्तू बर-हदिंिबर २०१९ ◦ सिंगि ापुर िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 27

आलेख

करता ै। क्षखलौने भी न ीिं खरीदता। दोस्तों िे
शास्त्राथा करता ै। अपने बतु ्रद्ध कौशल का पररिय
देता ै अन्त मंे दादी माँ के सलए सिमर्ा खरीद
कर िब को िकंै ाता ै।

क ानीकार ने परू ी ि ानुभसू त के िाथ ासमद का

िररत्र तराशा ै, जो बड़ा रोिक एवंि प्रािसिं गक ै।

सिमर्ा खरीदाना तो ि ी ो िकता ै परन्तु

शास्त्राथा में गम्भीर तका देने में उिकी कु शलता िे

लगता ै हक मशिुं ी प्रेमिदंि ासमद के माध्यम िे

बोले र े ैं। यथा -अगर कोई शेर आ जाए ,

तो समयािं सभश्ती के छक्के छू र् जाएँ , समयाँ

सिपा ी समट्र्ी की बन्दकू छोड़कर भागें ,

वकील िा ब की नानी मर जाए। िोगे में मँु

सित्र िाभार- गगू ल सछपाकर ज़मीन पर लेर् जाए , मगर य

सिमर्ा , य ब ादरु रुस्तमे ह न्द लपककर शेर की गदान पर िवार ो जायगा और उिकी आखँ ंे सनकल

लेगा।

मीद सनधना अनाथ के पि को िाथका रूप िे प्रस्ततु करना लेखक का ध्येय र ा ै। य ी कारण ै हक
र क्षस्थसत में उिे त्रबजली जिै ा दशाया ा गया ै। बाकी िारे िाथी उिके िामने बौने हदखाई पड़ते ैं।
‘ईदगा ’ बाल मनोत्रवज्ञान की अहद्वतीय क ानी ै। िाथ ी, इिमंे मकु ्षस्लम िामाक्षजक जीवन की
वास्तत्रवक्ताएिं भी अहंि कत ुई ैं। य क ानी अिरु क्षित जीवन की क ानी भी ै क्षजिमंे बच्िे अिमय ी
वयस्क ो जाते ैं। ‘ईदगा ’ के छोर्े िे कथानक में प्रेमिदंि ने मानवीय स्वर मुखररत हकया ै।

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त्रवदेशी भार्ी के मुख िे
हिल्में देक्षखए पर अपने आि-पाि को अनदेखा न कीक्षजए

छाए ईश्वान, वर्ाा
छात्रा — नेशनल यसू नवसिरा ्ी ऑि

सिंगि ापुर

क्या आप िोि पाते ैं हक एक परु ुर् क्षस्त्रयों की तर ब ुत मीठी आवाज़ बोल िकता ै और अन्य परु ुर्
उिके िाथ शादी तक करना िा ते ैं। ‘ड्रीम गल’ा नामक हिल्म मंे कमवा ीर एक ऐिा ी परु ुर् ै।
एक हदन, जब कमवा ीर इंिर्रव्यू करके घर वापि जा र ा था तब उिने एक त्रवज्ञापन देखा क्षजिपर मासिक
वेतन ित्तर ज़ार रुपये सलखा था। इतने पिै े देखते ी कमवा ीर त्रवज्ञापन पर सलखे ुए पते पर प ुँिा
लेहकन व ाँ तो अलग ी दसु नया थी| वास्तव मंे य एक कॉल-के न्र ै ज ाँ सििा मह लाएँ िाह ये और
ये मह लाएँ र हदन िोन पर अन्य लोगों िे बात करती ंै।
इतेिाक िे कमवा ीर ने एक िोन कॉल पर अपनी आवाज़ का जादू हदखाया और उिको तरु िंत य काम
समल गया और उि हदन िे व पजू ा बन गया। कमवा ीर ने सििा अपने दोस्त ‘स्माइली’ िे िि बताया
लेहकन अपने त्रपता जी िे और अपनी मगिं ेतर िे क ा हक व एक बड़ी किं पनी मंे काम करता ै। पजू ा
बनने का काम करते-करते कमवा ीर को पाँि ऐिे प्रशिंि क समले जो पूजा के सलए िभी कु छ करने को
तयै ार ैं। धीरे-धीरे कमवा ीर को ए िाि ुआ हक ऐिा काम करना ी एक ग़लती ै और व छोड़ देना
िा ता था लेहकन उिके मासलक ने न ींि माना और धमकी दी। अतंि में लोगों ने जाना हक जो पजू ा इन् ें
ब ुत अच्छी लगी और शादी करना िा ते ंै, व एक स्त्री न ींि ै, व कमवा ीर ै।
ररलीज़ ोने के बाद, इि हिल्म को आलोिना और प्रशंििा दोनों समली। लेहकन मुझे य हिल्म अच्छी
लगी क्योंहक मेरी दृत्रष्ट िे म इि हिल्म िे कु छ िीख िकते ंै।
िबिे म त्त्वपणू ा बात य ै हक में अपने पाि के लोगों पर यानी अपने पररवार या दोस्तों पर ध्यान

अक्तू बर-हदिबिं र २०१९ ◦ सिगंि ापुर ििंगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 29

त्रवदेशी भार्ी के मुख िे

देना िाह ये। कभी-

कभी में सििा उनके

िाथ बठै कर उनकी

क ानी िनु नी िाह ये।

हिल्म िे म जान

िकते ंै हक क्षजिे

पजू ा िे बातिीत

करना पिंिद ै उनमंे

िे असधकािंश अपने

पररवार व दोस्तों िे

सशकायत कम करते

ंै। वे िमझते ैं हक

सििा पजू ा धीरज़ िे

उनकी बात िनु ने को

ड्रीम गला देखने के बाद तैयार ै इिसलए र
हदन पूजा िे िोन पर

बात करना िा ते ैं| य ाँ तक हक कमवा ीर के त्रपता जी पजू ा के सलए अपने घर को इस्लाम के रिंग में

ढालने को तयै ार ो जाते ंै| एक ह न्दू जो पजू ा-पाठ की िीज़ंे बेिता ै व मुिलमान बन्ने को तयै ार ै

पजू ा के सलए, हकतनी व्यिंग्यात्मक ै य घर्ना।

आजकल ज़्यादा िे ज़्यादा लोग ऑनलाइन दोस्त ढूंिढना शरु ू करते ैं क्योंहक इनकी दृत्रष्ट िे अनजान
व्यत्रक्त िे सशकायत करना ज्ञात व्यत्रक्त िे असधक आिान ै। मुझे लगता ै हक य िोि थोड़ी िी

ास्यास्पद ै क्योंहक म लोग अिली दसु नया मंे र ते ैं लेहकन क्यों आभािी दसु नया के दोस्तों का
असधक भरोिा करते ैं। मुझे याद ै हक त्रपछले कु छ िालों मंे इंिर्रनेर् पर एक सित्र ब ुत लोकत्रप्रय था
जो हदखाता ै हक घर में नानी कु ि़ी पर बैठी ंै लेहकन इनके पाि जो पररवार के अन्य िदस्य ंै वे
त्रबना बोले अपने िोन पर लगे र ते ैं। मारे जीवन मंे भी ऐिा ी ोता ै| मंे इिके बारे मंे कु छ

िोिना िाह ये।

मेरे ख़्याल िे मंे कु छ िमय सनकलकर अपने पररवार या दोस्तों के िाथ र ना िाह ये और धीरज़ िे
इनकी बातें िनु नी िाह ये। दसु नया के र व्यत्रक्त का हकिी न हकिी िे ग रा िंबि िंध ोता ै इिसलए मंे
प्यार िे आिपाि के लोगों के िाथ व्यव ार करना िाह ये। हिल्मंे जो िन्देश दे जाती ंै, उन पर गौर करना
ज़रूरी ै|

अक्तू बर-हदििंबर २०१९ ◦ सिंिगापरु ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 30

लघु कथा

उफ़्ि... क्षज़म्मेदाररयाँ और मजबरू रयाँ!

हदन के तीन बजने को थ,े इििे प ले हक ‘यू के ’ ऑहिि काम करना शुरू करे, उिे ब ुत कु छ
सनपर्ाना था और वक़्त पर घर भी जाना था, इिसलए वो ब ुत िु त़ी िे काम सनपर्ा र ी थी| अिानक
ज़ोरों की बाररश शरु ू ुई, त्रबजसलयाँ कड़कने लगी,ंि मौिम त्रबगड़ने लगा था| सििगं ापरु विै े भी वर्ा-ा वन
(रैन िोरेस्र्) क लाता ै, त्रबन मौिम कभी भी बाररश ोना य ाँ आम बात थी|
उिने तरु ंित घड़ी पर नज़र डाली| काम, ऑहिि िब नेपथ्य में िला गया था| ढाई िाल का बेर्ा घर
पर िो र ा ोगा, मौिम भी ठिं डा ो गया, ना जाने हकतने ख्याल उिके हदमाग मंे तरै ने लगे| त्रबजली
की गजना ाएँ अब थमने का नाम न ींि ले र ी थींि| त्रबजली कड़कने िे बेर्ा ब ुत डरता ै, अकिर नीदंि िे
उठ जाता ै और उिके िीने िे तब तक सिपका र ता ै जब तक हक त्रबजली कड़कना बिंद ना ो
जाए....
उिे अपने िीने पर एक जाना-प िाना भार म िूि ोने लगा, उिने आखँ ंे बिंद की, उिके ोंठों पर ना
जाने हकतनी दआु एँ और आखँ ों मंे ल्की िी नमी थी|

उफ़्ि... क्षज़म्मेदाररयाँ और मजबरू रयाँ!

शीतल जैन
अ मक लड़की

सिंगि ापुर

अक्तू बर-हदिंिबर २०१९ ◦ सििगं ापुर ििंगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 31

यात्रा-ििसं ्मरण

तकु ी का ििर

िाधना पाठक
सिंगि ापुर

कु छ लोगों के सलए ििर के वल ‘र्ाइम पाि’ ोता ै या status symbol. पर हकिी भी ििर को जब
learning journey के रूप मंे देखा जाता ै तो उि जग को देखने का, जीने का अदिं ाज़ ी बदल जाता

ै|
ऐसत ासिक, िािंस्कृ सतक, कलात्मक और भौगोसलक त्रवत्रवधता िे भरपरू तकु ी जाने की कई वर्ों िे इच्छा
थी लेहकन हकिी न हकिी कारणवश य र्लता ी जा र ा था| इि बार िोिा, जो भी ो तुकी जाने का
िपना िाकार करना ी ोगा| हिर क्या था! ििर की तयै ारी शुरू कर दी| मेरे पसत ने हर्कर्, ‘र्ू र’ िब
‘बुक’ कर सलया| रवाना ोने िे दो हदन प ले तकु ी में कु छ राजनैसतक उथल-पुथल ो गई| मेरी बेहर्या,ँ

दोस्त िभी िावधानी बरतने की िला देने लगे, conflict zone िे दरू र ने की ह दायत देने लग|े मारा

मन भी आशकंि ो उठा हिर भी पूरे जोश िे म अपने गन्तव्य की ओर िल पड़े|

अक्तू बर-हदिबिं र २०१९ ◦ सिगंि ापुर िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 32

यात्रा-िंिस्मरण

मारा प ला पड़ाव था इस्तंिबलू | िबिे प ले तो रोमांिसित ो उठी| स्कू ल में इसत ाि की हकताबों
य ाँ के त्रवशाल और आधसु नक वाईअड्डे िे म में य नाम पढ़ा था| प्रािीन िमय मंे य व्यापार
कािी प्रभात्रवत ुए| मारे ोर्ल िे इस्तंबि ूल के का ब ुत म त्वपूणा कें र था| 1453 में िुलतान
िभी दशना ीय स्थान पदै ल जाने की दरू ी पर ी थे| मे मत के नेततृ ्व में ‘ओर्ोमन’ तकु ी िेना ने
विै े कु छ जग ों पर ‘रैम’ िे भी जा िकते ैं| ‘कोनस्तसतनोपोल’ पर आिमण कर इिे जीत

मने पैदल घूमने का सनणया सलया था| इस्तिबं ूल सलया और इिका नाम बदलकर ‘इस्लम्बोल’ (city
of Islam) रख हदया| प ले त्रवश्व युद्ध तक तकु ी
की topography ब ुत हदलिस्प ै| य दसु नया पर ‘ओर्ोमन’ िाम्राज्य का शािन र ा| Allied
forces िे लम्बे िघिं र्ा के बाद 1923 मंे कमाल
का एकमात्र ऐिा श र ै क्षजिका कु छ भाग यूरोप
में ै और कु छ भाग एसशया मंे| इिकी एक और अतातकु ा तकु ी को स्वततंि ्र करने मंे कामयाब ुए
ख़ासियत ै – य ै ‘िात प ाहड़यों का श र’| और इस्लम्बोल नाम बदलकर इस्तंबि ुल कर हदया
य ाँ िमतल ज़मीन कम ी नज़र आती ै| िढ़ाई गया| अब य तकु ी की राजधानी न ीिं ै परन्तु
और ढलान के रास्तों िे एक जग िे दिू री जग आसथका और िािंस्कृ सतक कें र के रूप में आज भी
जाते ुए थकान तो म िूि ो र ी थी लेहकन जो उतना ी म त्वपूणा श र ै|
मज़ा पदै ल घमू ने में आया वो शायद बि मंे न ीिं
आता| इि ऐसत ासिक पषृ ्ठभूसम पर मने इस्तिंबूल देखना
शुरू हकया| िबिे प ले म प ुँिे र्ोपकोपी पलै ेि|
इस्तबिं ूल का इसत ाि ब ुत लम्बा ै| ईिा पूवा ७ 1453 में बनाया गया य पैलेि 1923 तक
वीिं िदी में ‘बायझेनताइन’ के राजा बायझ ने इि ओर्ोमन िाम्राज्य के िुल्तानों का मुख्य सनवाि
श र को बिाया था| तब इिे ‘बायझेनसतयम’ क ा स्थान था| पैलेि मंे जग -जग पर ओर्ोमन
जाता था| य िमय इस्तिंबुल का स्वणा युग था| िाम्राज्य की मु र हदखाई देती ै|
इिके बाद कु छ िमय य ाँ ‘परसशयन’ लोगों का
और ईिा पूवा िौथी िदी मंे ‘एलेक्जंेडर’ का शािन
र ा| इिके बाद य रोमन िाम्राज्य का ह स्िा
बना| पवू ़ी रोमन िाम्राज्य को ‘बायझेनताइन’

िाम्राज्य क ा जाने लगा और िम्रार् Constan-
tine ने इिकी राजधानी का नाम बदलकर

कोनस्तसतनोपोल रख हदया| य िुनते ी मैं ब ुत

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यात्रा-ििसं ्मरण

इि भव्य पैलेि मंे कई कि ैं| र कि की िजावर् अलग-अलग ै| इनकी छतों पर, दीवारों पर लगी
रंिगीन ‘र्ाईल्ि’ इनकी िनु ्दरता मंे िार िादँ लगा देती ैं| इि पलै ेि मंे िार बड़े-बड़े आगँ न ैं क्षजिके

कारण य पलै ेि ब ुत वादार ै| य ाँ िे Bosphorus strait का िनु ्दर दृश्य हदखाई पड़ता ै| इि पलै ेि

को अब िगंि ्र ालय मंे पररवसतता हकया गया ै| य ाँ ओर्ोमन िम्रार्ों के ग ने, कपडे, बतना , शस्त्र और
अन्य राजाओंि िे उप ार स्वरूप समली िीजों को िंभि ालकर रखा गया ै|
य ाँ िे म ‘ ाया/ ाक्षजया िोहिया’ गए| छठी शतालदी में िगंि मरमर और पत्थरों िे बना य ििा वास्तु-
कला का अद्भतु नमनू ा ै| य दसु नया का िबिे बड़ा ििा ै| आज भी य इमारत शान िे खड़ी ै| इिकी
छत ५६ मीर्र ऊँ िी ै| य दसु नया का शायद एकमात्र ििा था क्षजिका गोलाकार गमु ्बद ै| एक बात िे
मझु े ैरानी ुई हक इिके अन्दर क्षजतने भी स्तिभं ंै, िभी अलग-अलग ंै| पछू ने पर पता िला हक ििा के
सनमाणा में ‘पागान’ मक्षन्दरों को तोड़कर उनके स्तिभं ों का प्रयोग हकया गया ै| मतलब एक इसत ाि रिने के
सलए प ले की िीज़ों का ध्वंिि ! शायद य ी दसु नया की रीत ै! ओर्ोमन िम्रार् ने इि ििा को मक्षस्जद में
बदल डाला पर अब य भी एक िंगि ्र ालय के रूप में ी प्रसिद्ध ै|

ाया िोहिया के पाि ी
ै िुलतान अ मत
मक्षस्जद क्षजिे िब ‘ललू
मक्षस्जद’ के नाम िे
जानते ंै| इिके अन्दर
दीवारों पर, छत पर नीले
रंिग की र्ाईल्ि लगी ोने
के कारण इिे य नाम
समला ै| 1609 में बनी
6 मीनारों वाली य भव्य
शा ी मक्षस्जद ओर्ोमन

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यात्रा-िंिस्मरण

वास्तु-कला का अनोखा उदा रण ै| र े थ|े कॉिी के घँरू ् पीते-पीते, िुब की ठंि डी वा
का आनन्द लेते ुए इस्तंिबुल की खबू िूरती देखने
इि पररिर मंे और भी कई ऐसत ासिक ढािँ े ंै का य ब ुत ी अच्छा तरीका ै|

जिै े हक Egyptian Obelisk, कासिं ्य के बने एक- िू ि सशप िे उतरकर म प ुँिे स्पाइि माके र्|
Bosphorus strait के हकनारे बिा ुआ य
दिू रे िे जड़ु े ुए तीन िाँप आहद|
बाज़ार 1664 िे आज तक िल र ा ै| प ले य
इिके बाद म प ुँिे ‘ ग्रैंड बाज़ार’| दसु नया में व्यापार का बड़ा कें र था| अब य ाँ करीब 90
शायद य एक ी जग ै ज ाँ एक छत के नीिे दकु ानंे ैं ज ाँ आप तर -तर के मिाले, िूखे
करीब छै ज़ार छोर्ी-बड़ी दकु ानंे ैं| य ाँ आप मेवे, अलग-अलग तर की िाय और तुकी की
गलीि,े कपड़े, थलै े, िेरासमक्ि, स्तकला की ख़ाि समठाइयाँ ख़रीद िकते ंै| ग्रंैड बाज़ार की
वस्तएु ँ, ग ने, िमड़े की िीज़ें ख़रीद िकते ंै| ाँ, तुलना मंे य बाज़ार ब ुत ी छोर्ा ै हिर भी
पर एक बात का ध्यान र े – इन दकु ानों में मोल य ाँ भी कािी भीड़ ोती ै| य ाँ के अजिं ीर,
-भाव ब ुत ोता ै| य ाँ की ि ल-प ल देखते ी अखरोर्, के िर मश ूर ै| ऐसत ासिक श र ोने
बनती ै|
के िाथ-िाथ ब ुत ी vibrant और रंिगीन श र
िबु नौ बजे िे शाम को िात बजे तक घमू ते-
घूमते अब म ब ुत थक िकु े थे| रात के खाने ै इस्तबंि ुल| अब इि श र को अलत्रवदा क ने का
के बाद ोर्ल प ुँिकर हदनभर समली जानकारी को िमय ो गया था| म वाई अड्डे प ुँिकर
मन ी मन दो राते ुए कब आखँ लग गई पता इझमीर के सलए रवाना ुए|

ी न ीिं िला|

अगले हदन िबु म Bosphorus cruise के सलए

गए| मरमारा िमुर और मतृ िागर को

जोड़नेवाला Bosphorus strait एसशयाई तकु ी और

यरू ोपीय तुकी को अलग करता ै| पुराने ज़माने मंे
इिे के वल नौकाओिं िे ी पार हकया जा िकता था
लेहकन अब तो इि पर तीन पलु बने ैं क्षजििे
आवागमन कािी आिान ो गया ै| हकनारे पर
बने कु छ म ल, वेसलयाँ, एक ब ुत परु ाना हकला,
मक्षस्जदंे देखते ुए म नौका का ििर तय कर

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िविं ाद-नाहर्का

“पंिथ ोने दो अपररसित, प्राण र ने दो अके ला”

म में िे ब ुत िारे लोगों ने अपने स्कू ल के हदनों मंे “सगल्लू सगल री“ और “िोना ह रनी“ की क ानी पढ़ी ोगी।
म ादेवी वमाा ने अपनी लखे नी िे इन हकरदारों को जीवतिं बना हदया था। दरू दशना , लोकिभा र्ीवी और एबीपी न्यज़ू
का आभार क्षजनपर प्रिाररत कायिा मों के माध्यम िे म ादेवी जी की रिनाओंि और उनके जीवन के बारे मंे ब ुत िारी
म त्वपणू ा जानकारी समली। पद्य में दखु का असभनदिं न करने वाली म ादेवी जी, मह ला िशत्रक्तकरण की मशाल जलाने
वाली आधसु नक यगु की िबिे लोकत्रप्रय रिनाकार थीं।ि “पथंि ोने दो अपररसित, प्राण र ने दो अके ला“ नार्क के
माध्यम िे मनंै े म ादेवी वमाा के जीवन के कु छ अनछु ए प लओु िं और उनकी काव्य-यात्रा को प्रस्ततु करने की एक
छोर्ी िी कोसशश की ै। ‘सिगंि ापरु िगंि म’ का आभार हक, उन् ोंने अपने कायिा म “िाह त्य के ख़ज़ाने िे“ मंे इि
नार्क को मिंि प्रदान हकया। इि नार्क की पर्कथा और िविं ाद सलखने के िाथ-िाथ इिमें असभनय करने का अविर
भी समला। इि नार्क मंे मनंै े ‘अज्ञात मह ला’ का हकरदार सनभाया और ‘सिगंि ापरु िगिं म’ की िदस्या त्रवनीता शमाा जी
ने ‘शासलनी’ का हकरदार सनभाया।

बिपन मंे पढ़ी ुई एक क ानी ‘सगल्लू सगल री’ शासलनी को
अब भी याद ै। शासलनी बिपन िे ी म ादेवी जी की लेखन-
शलै ी िे अत्यतिं प्रभात्रवत थी। इला ाबाद के अशोक नगर में
क्षस्थत म ादेवी वमाा जी के आवाि के र कोने मंे उनकी यादंे
त्रबखरी ुई ंै। उिने िोि रखा था हक, यहद कभी अविर समला
तो व ाँ अवश्य जाएगी। आक्षख़रकार आज वो हदन आ ी गया।
प्रािंगण मंे क़दम रखते वक़्त शासलनी के मन के कई तर के
ख़्याल आ र े थे। उिे ब ुत कु छ देखना था लहे कन, िबिे
प ले उिे वो जग देखनी थी ज ाँ ‘सगल्ल’ू की असिं तम त्रवदाई
ुई थी।

(स्र्ेज पर शासलनी का आगमन, वो इधर-उधर देखती ुई, कु छ आराधना श्रीवास्तव
ढूँढ़ती ुई। अिानक एक जग आकर ठ र जाती ै।) लेक्षखका, कलाकार

शासलनी: “िोनजु ी..शायद इिी िोनजु ी की जड़ में समट्र्ी ोकर सिगिं ापरु

समल गया ोगा सगल्ल।ू ”

(पीछे िे एक मह ला की आवाज़ आती ै) आप य प्रस्तसु त इि सलकंि पर देख िकते ैं

https://www.youtube.com/watch?
v=SeiwtGF6zhI

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िविं ाद-नाहर्का

अज्ञात मह ला:

“कौन आया था न जाना
स्वप्न में मुझको जगाने;
याद मंे उन अँगुसलयों के
ै मुझे पर यगु त्रबताने;
रात के उर में हदवि की िा का शर ूँ!”
(कत्रवता की इन पतंि्रक्तयों को क ते ुए स्र्ेज पर एक अनजान मह ला आती ै और वो शासलनी के पाि आकर खड़ी

ो जाती ै और हिर क ती ै...)

“न ींि, य ाँ न ींि, पवू ा के कोने में जो दिू री िोनजु ी की लता ै उिके नीिे िमासध दी गई थी त्रप्रय सगल्लू को।”

(शासलनी ने पलर्कर उि अज्ञात मह ला की तरि देखा। उिने ििे द वस्त्र धारण हकए थे। िादगी की मरू त, िौम्य
व्यत्रक्तत्व और शािंत िे रे पर तरै र ी एक र स्यमयी मसु ्कान)

शासलनी : “आप इतने त्रवश्वाि के िाथ कै िे क िकती ैं?”
अज्ञात मह ला : “…क्योंहक मंै उि घर्ना की िािी र ी ूँ।”
शासलनी : “ये कै िे िभंि व ै? आपकी उम्र देखकर तो ऐिा न ींि लगता। ये तो बरिों प ले की घर्ना ै।”
अज्ञात मह ला :

“शून्य मरे ा जन्म था
अविान ै मुझको िबेरा;
प्राण आकु ल के सलए
ििंगी समला के वल अँधेरा;
समलन का मत नाम ले मंै त्रवर मंे सिर ूँ!”

शासलनी : “ब ुत ख़बू , लगता ै आप भी म ादेवी वमाा जी की प्रशिंिक ैं। वे शलदों को िंवि दे ना मंे त्रपरो कर सलखती थी।

सगल्लू सगल री, िोना ह रनी, गौरा गाय िभी उनके पररवार का ह स्िा र े ंै। दिू रों के दखु का उनके मन और लेखनी पर
ग रा अिर हदखता ै। ”

अज्ञात मह ला : “जो व्यत्रक्त अपना िुख -दखु क े वो तो कत्रव ै ी न ींि। अपने िुख

-दखु की बात में रात-हदन लगा र ेगा, वो हिर बड़ी बात न ींि क ता।”

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िविं ाद-नाहर्का

शासलनी : “त्रबल्कु ल, म ादेवी वमाा जी ने ऐिा ी क ा था। उनके दखु का दशना क्या था ? आक्षख़र व दखु का असभनंिदन

क्यों करती थीिं ? ”

अज्ञात मह ला : “दखु आपको परू े िंििार िे बाँधकर रखता ै जबहक िुख आपको स्वाथपा रता के िकंि ीणा घरे े में क़ै द कर

लेता ै। दखु आपके सित्त का पररष्कार करता ै। दिू रों के दखु को िमझने की प्रेरणा और िंवि ेदना देता ै।”

“खोज ी सिर प्रासप्त का वर,
िाधना ी सित्रद्ध िुन्दर,
रूदन में कु ख की कथा ै,
त्रवर समलने की प्रथा ै,
शलभ जलकर दीप बन जाता सनशा के शेर् में!
आँिुओंि के देश में!”

शासलनी : “अरे वा ! आपको तो उनकी कई रिनाएँ याद ैं। म ादेवी जी, िात िाल की उम्र िे ी कत्रवताएँ सलखती थींि।

उनके त्रपता श्री गोत्रवदंि प्रिाद वमाा भागलपुर के एक कॉलजे में प्राध्यापक थे और माँ ेमरानी देवी धासमका मह ला थीिं। ”

अज्ञात मह ला : “घर में पूजा-पाठ और धासमका अनषु ्ठानों का मा ौल िदा बना र ता।”

“माँ के ठाकु र जी भोले ैं।
ठिं डे पानी िे न लातींि,
ठंि डा िंदि न इन् ंे लगातीिं,
इनका भोग मंे दे जातीिं,
हिर भी कभी न ीिं बोले ंै।
माँ के ठाकु र जी भोले ैं।”

“त्रपताजी ने कत्रवता िुनी तो शाबाशी देते ुए क ा हक, कु छ और सलखा ै तो वो भी िनु ाओ।”

शासलनी : “अच्छा..., लेहकन म ादेवी जी शम़ीले स्वभाव की थीिं और अपनी कत्रवता सलखने वाली बात को िबिे सछपाकर

रखना िा ती थीिं। तभी तो, जब उनकी ि ेली िुभरा कु मारी िौ ान को प ली बार पता िला हक, म ादेवी जी कत्रवताएँ सलखती
ैं तो..”

अक्तू बर-हदििंबर २०१९ ◦ सिंगि ापुर िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 38

िवंि ाद-नाहर्का

अज्ञात मह ला : “तो िभु रा ने कॉपी छीनी और क ा - तमु कत्रवताएँ सलखती ो...”
शासलनी : म ादेवी जी की आँखों मंे आँिू छलक उठे ।
अज्ञात मह ला : सशकायत के ल ज़े में पछू ा हक “तमु ने िबको क्यों बताया...तो िखी िभु रा ने क ा, में भी तो

िनु ना पड़ता ै...अब एक िे दो भले।”

(शासलनी और अज्ञात मह ला दोनों क्षखलक्षखलाकर ँि पड़े।)

शासलनी : “हकतना अितं र था दोनों के व्यत्रक्तत्व म।ंे एक तरि, “ ख़ूब लड़ी मदाानी वाली वो तो झांििी वाली रानी थी ” जिै ी

ओजस्वी रिना की रिसयता िुभरा कु मारी िौ ान, जो एक भरे-पूरे पररवार िे थी। दिू री तरि, आधसु नक मीरा क ी जाने वाली
म ादेवी वमाा क्षजन् ोंने अपने बालत्रववा को मानने िे इिंकार कर हदया।”

अज्ञात मह ला : “मन के त्रवरूद्ध कै िे िला जा िकता ै ? क्षजि बात को मानने के सलए मन राजी न ो उिके सलए

ामी कै िे भरी जा िकती ै ? माता-त्रपता के न िा ते ुए भी दादाजी की इच्छा का मान रखने के सलए नौ वर्ा की आयु में
बालत्रववा ुआ। नींिद की आग़ोश मंे थींि तभी पररवार में िे हकिी ने अपनी गोदी में त्रबठाकर िे रे लगवा हदए। अगले हदन जब
नीिंद खलु ी तो कपड़ों मंे गाँठ पड़ी देखी। गाँठ ब ुत बुरी लगती थी, गाँठ खोली और खेलने के सलए बा र िली गई।”

“नींिद थी मेरी अिल सनस्पन्द कण कण में,
प्रथम जागसृ त थी जगत के प्रथम स्पन्दन में,
प्रलय में मेरा पता पदसिह्न जीवन म,ंे
शाप ूँ जो बन गया वरदान बन्धन मं,े
कू ल भी ूँ कू ल ीन प्रवाह नी भी ूँ !

नयन में क्षजिके जलद व तुत्रर्त िातक ूँ,
शलभ क्षजिके प्राण में व हठठु र दीपक ूँ,
िू ल को उर मंे सछपाये त्रवकल बुलबुल ूँ,
एक ो कर दरू तन िे छाँ व िल ूँ ;
दरू तमु िे ूँ अखण्ड िु ासगनी भी ूँ!”

शासलनी :

म ादेवी जी की सलखी ुई िार पतंि ्रक्तयाँ मुझे भी याद आ र ी ैं,

अक्तू बर-हदिबिं र २०१९ ◦ सििंगापरु िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 39

“इन बदिूं ों के दपणा मंे ििंवाद-नाहर्का

करूणा क्या झाँक र ी ै? “िा ा था तझु मंे समर्ना भर
दे डाला बनना समर्-समर्कर
क्या िागर की धड़कन में य असभशाप हदया ै या वर;
प ली समलन कथा ूँ या मंै
ल रंे बढ़ आँक र ी ंै?” सिर-त्रवर क ानी!
बताता जा रे असभमानी!”
“ ैरानी की बात ै हक, म ादेवी जी की कत्रवताओंि मंे
दपणा का क्षज़ि कई बार आता ै लहे कन, सनजी जीवन मंे शासलनी : “समलन में एकाकी ोना और त्रवर में दकु े ला
उन् ोंने कभी दपणा न ीिं देखा। उनके आवाि मंे एक भी
दपणा न ींि ?” ोना....सनजी जीवन में एकाकी ोते ुए भी अपने
िमकालीन रिनाकारों में म ादेवी जी िबिे ज्यादा
अज्ञात मह ला : “ दपणा , श्रगंिृ ार....िौन्दया की इि िामाक्षजक थींि। एकाकी और िामाक्षजक ोने के द्विंद्व को व
िाथ लेकर िलती थीिं।”
ार् ने स्त्री पर िुंिदर हदखने का हकतना अवािंसछत और
अनावश्यक दवाब बनाया ुआ ै। इि ििंदु र हदखने की अज्ञात मह ला :
िा में स्त्री आहद िे लेकर अतिं तक न जाने हकतने यत्न
करती ै... इि कोसशश मंे वो क्या खोती ै और क्या “आग भरा पानी का मन ै
पाती ै.. इिका ह िाब वो न ींि रखती ै। परु ुर् स्त्री के कौन करे ि िा त्रवश्वाि
िौंदया की प्रशिंिा करता ै, उिकी िार्ु काररता करता ै। कै िे िमझाऊंि दसु नया में
लेहकन, अंति में जब स्त्री का िौंदया िला जाता ै तो, हकतना म ंिगा ै उल्लाि...”
उिके पाि कु छ न ीिं बिता ै...न त्रप्रयतम और न उिका
प्रमे ।” शासलनी : ‘जीवन दखु का मूल ै’, बौद्ध धमा का ये

“क्यों व त्रप्रय आता पार न ींि! सिद्धांित म ादेवी जी की रिनाओंि में प्रसतत्रबिंत्रबत ोता ै।
एक बार उन् ोंने िंिन्याि लने े की िोिी और एक ितंि के
शसश के दपणा देख देख आश्रम गईं, लहे कन व ाँ जाकर उन् ें कु छ ऐिा अनभु व ुआ
हक, उन् ोंने अपना सभिणु ी बनने का त्रविार ी त्याग
मंैने िुलझाये सतसमर-के श; हदया।”

गँूथे िुन तारक-पाररजात, अज्ञात मह ला : िंित िे िवंि ाद के प ले उनके सशष्य

अवगुण्ठन कर हकरणंे अशेर्; ने बीि में एक पदाा लाते ुए क ा हक, “िंति म ाराज हकिी
स्त्री िे पदे के द्वारा ी िंिवाद करते ैं।”
क्यों आज ररझा पाया उिको
शासलनी : और म ादेवी जी ने इि सनयम का त्रवरोध
मरे ा असभनव श्रगंिृ ार न ींि?”
करते ुए क ा...
शासलनी : “एक और त्रवरोधाभाि...म ादेवी जी श्रगंिृ ार
अज्ञात मह ला : “ये कै िा सनयम ? क्या योगी ोकर
की बात करती ै। सित्रकला और लखे नी मंे कई रंिगों को
िमाती ंै। ोली के हदन पदै ा ोने और ोली के रंिगों िे भी आप स्त्री और परु ुर् के भदे िे मकु ्त न ींि? यहद आप
त्रवशेर् लगाव ोने के बावजदू ताउम्र उन् ोंने सििा ििे द स्वयंि मकु ्त न ींि तो हिर दिू रों की मतु ्रक्त का मागा कै िे
रंिग के कपड़े ी प नंे।”

अज्ञात मह ला : “श्वते रिंग, िमस्त रिंगों की आहदम

पषृ ्ठभसू म और उनका एकाकार रूप ोते ुए भी हकतना
रिंग ीन ै। िबिे जुड़ा ोकर भी िबिे अके ला।”

अक्तू बर-हदििबं र २०१९ ◦ सिगिं ापुर िंिगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 40

िंिवाद-नाहर्का इिे परू ी न ींि करना िा ती.....।”

प्रशस्त करंेग?े शासलनी : वाकई, म ादेवी जी के जीवन और

शासलनी : “ आश्रम में क्षस्त्रयों के िाथ ो र े भेदभाव उनकी रिनाओंि के बारे मंे आपको ब ुत कु छ पता
ै। इतनी देर िे म बातंे कर र े ंै लेहकन अभी
िे म ादेवी जी को इतना िोभ ुआ हक, इिके बाद तक अपना पररिय भी न ीिं हदया।
उन् ोंने हकिी भी आश्रम िे दीिा न ीिं ली। बौद्ध धमा के
सिद्धािंत के िाथ-िाथ रत्रवन्र नाथ र्ैगोर और म ात्मा (इििे प ले हक शासलनी कु छ और क ती
गाधँ ी का प्रभाव उनकी कत्रवताओिं पर लगातार बना िे रे पर र स्यमयी मुस्कान सलए उि अज्ञात
र ा।” मह ला ने शासलनी की तरि देखा और
क ा...)
अज्ञात मह ला :
अज्ञात मह ला :
“धूम मंे अब बोलना क्या,
“त्रवस्ततृ नभ का कोई कोना,
िार मंे अब तोलना क्या!
मेरा न कभी अपना ोना,
प्रात ंिि रोकर सगनेगा,
पररिय इतना इसत ाि य ी
स्वणा हकतने ो िुके पल!
उमड़ी कल थी समर् आज िली!”
दीप रे तू गल अकक्षम्पत, “आपने ब ुत िी परु ानी यादंे ताज़ा कर दी शासलनी
जी...”
िल अििं ल!”
शासलनी : “शासलनी जी??? मनैं े तो अपना
शासलनी : म ादेवी वमाा को दीपक अत्यतंि त्रप्रय था।
पररिय हदया भी न ींि, हिर आपको मरे ा नाम कै िे
उनका मानना था हक, िरू ज अधंि ेरे िे न ीिं लड़ता पता िला ?”
लहे कन, दीपक रात-भर अधिं रे े िे लड़ता र ता ै। उनके (शासलनी का िवाल िुनकर उि अज्ञात
जीवन का दीपक भी तमाम त्रवर्म पररक्षस्थसतयों िे मह ला के िे रे पर हिर एक बार र स्यमयी
लड़ता ुआ ११ सितबंि र १९८७ की रात को बझु गया। मुस्कान तरै गई। िवाल के जवाब मंे बि
भत्रक्तन की क ानी में उन् ोंने आक्षख़री त्रवदाई को लके र इतना ी क ा...)
हकतना मासमका सलखा था.....”
अज्ञात मह ला :
(याद करने की कोसशश करते ुए....)
“दिू री ोगी क ानी
अज्ञात मह ला : शनू ्य मंे क्षजिके समर्े स्वर,

“मैं प्राय: िोिती ूँ हक, जब ऐिा बलु ावा आ प ुँिेगा धसू ल मंे खोई सनशानी
क्षजिमें न धोती िाि करने का अवकाश र ेगा, न
िामान बािंधने का , न भत्रक्तन को रूकने का असधकार आज क्षजि पर प्रलय त्रवक्षस्मत

ोगा, न मझु े रोकने का, जब सिर त्रवदा के असिं तम िणों
में ये दे ासतन वदृ ्धा क्या करेगी और मैं क्या
करूँ गी..भत्रक्तन की क ानी अधरू ी ै और उिे खोकर मैं

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ििंवाद-नाहर्का

मैं लगाती िल र ी सनत
मोसतयों की ार् औ
सिनगाररयों का एक मले ा
पथंि ोने दो अपररसित,
प्राण र ने दो अके ला। ”

(म ादेवी जी का काव्य-घोर् मानी जाने वाली रिना की इन पतंि्रक्तयों को क त-े क ते वो अज्ञात मह ला शासलनी की
नज़रों िे ओझल ो गई। शासलनी ैरान ोकर उि अज्ञात मह ला को जाते ुए देखती र ी और बरबि उिके मँु िे
भी सनकल पड़ा - पथिं ोने दो अपररसित, प्राण र ने दो अके ला।)

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त्रवत्रवधा

प ेली

र्ा वधना गोयल
ह ंिदी पररवार सिंगि ापरु

‘प ेली’ एक ऐिा शलद ै क्षजिे िनु ने मात्र िे मन रोमांिसित ो जाता ै। प ेली का नाम िामने आते ी
मारी बिपन की यादंे और शरारतंे ताजा ो जाती ंै। आप मंे िे असधकाशंि लोगों िे दादी, नानी और बड़े

बजु गु ों ने प ेसलयाँ अवश्य पूछी ोंगी |

प ेसलयाँ ह न्दी जगत में अपना एक त्रवशेर् स्थान प ेली बझू ता ै तो व प ेली के शलद-जाल के द्वारा
रखती ंै। प ेसलयों का इसत ाि ज़ारों वर्ा पुराना प्रस्ततु करता ै और यहद उत्तर देने वाला ितरु
ै। मारा िंसि ्कृ त िाह त्य प ेसलयों िे ओतप्रोत ै। िजु ान ोता ै तो व प ेली बझू ने वाले के शलद-
प्रािीन िमय में जब मनोरिंजन के िीसमत िाधन जाल िे ी उिका उत्तर सनकालकर िबको िहकत
थे तब प ेसलयाँ, क ासनयाँ और िरु ्कले ी कर देता ै। इि प्रकार इि खेल मंे न के वल प ेली
मनोरिंजन के िाधन ोते थे। प्रािीन एविं बझू ने वाले का ी बक्षल्क उत्तर देने वाले को भी
मध्यकालीन यगु में प ेसलयों का स्थान घर-पररवार, भरपरू आनिदं प्राप्त ोता ै। इिके िाथ-िाथ उन
िासथयों िे लेकर राज दरबार तक त्रवस्ततृ था। दोनों के ज्ञान की भी परीिा ो जाती ै।

मने तेनालीरामा के प ेसलयाँ बूझने के कौशल के य तो में ज्ञात ी ै हक प ेसलयों िे स्वस्थ
हक़स्िे बिपन िे ी पढ़े ंै। मनोरंिजन ोता ै एवंि प ेसलयाँ मानव मक्षस्तष्क के
त्रवकाि मंे ब ुत अ म ् भूसमका सनभाती ंै। भार्ा
प ेसलयों में एक त्रवशेर् प्रकार का र स्य, रोमांिि िे त्रवकाि में प ेसलयाँ का त्रवशेर् योगदान ै।
भरा मनोरंिजन और ज्ञान का भंडि ार िमाह त र ता
ै। प्रत्येक प ेली के र स्यमय शलद-जाल में ी वस्तुतुः प ेसलयों के द्वारा मारा सनम्नसलक्षखत िेत्रों
उिका उत्तर सछपा र ता ै। जब कोई हकिी िे मंे त्रवकाि ोता ै:

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त्रवत्रवधा

1. मनोरिंजन 3. भार्ा प्रवा
2. ज्ञानवद्धान 4. श्रवण शत्रक्त
3. शलदावली 5. त्रविारशीलता
4. भार्ाज्ञान 6. त्वररत िबंि ोधन
अच्छी प ेसलयाँ वे ंै, जो न सििा आपके मक्षस्तष्क बिपन की यादंे ताजा करते ुए आज म आपके
को िनु ौती देती ैं बक्षल्क शलदों िे परे देखने की सलए कु छ मजेदार प ेसलयाँ लाए ैं जो आपका इि
आपकी िमता में वतृ्रद्ध करती ंै। कई अध्ययनों िे भागदौड़ भरी क्षजिदं गी मे कु छ मनोरिंजन करंेगी।
सिद्ध ुआ ै हक प ेसलयाँ िमस्या सनवारण कौशल
और त्रवशेर् रूप िे छोर्े बच्िों में भार्ा की िमझ आशा ै हक आप इन प ेसलयों का उत्तर ज़रूर देने
के त्रवकाि मंे ि ायता कर िकती ैं। हक कोसशश करंेगे! आप प्रयाि अवश्य करंे … अपने
पररवार के िाथ प्रयत्न करंे...आपके हदमाग की
प ेसलयाँ, बच्िों मंे कु छ ििजं ्ञानात्मक कौशल भी किरत ोगी
त्रवकसित कर िकती ंै, उदा रणाथा :
म िब त्रवलपु ्त ोती इि त्रवधा को पनु ुः जीत्रवत
1. ध्यान के क्षन्रत करना करें|
2. स्मरण शत्रक्त का त्रवकाि

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त्रवत्रवधा

1.एक थाल मोसतयों िे भरा, िबके सिर पर उल्र्ा 9. मंै भी क ता मामा इिको ,
धरा। िारों ओर हिरे वो थाल; मोती उििे एक तुम भी क ते मामा इिको ,
ना सगरे, बताओ मोसतया क्या ? ॥ (2) माँ भी क ती मामा इिको ,
तो बताओ कौन िे मामा ? (4)
2. तीन अिर का मेरा नाम, खाने के आता ूँ काम
। मध्य कर्े वा ो जाता, अतंि कर्े तो ल 10. री थी मन भरी थी,
क लाता, बताओ क्या ? ॥ (3) लाख मोती जड़ी थी।,
लाला जी के बाग में
3. कर्ोरे में कर्ोरा, बेर्ा-बाप िे भी गोरा। बताओ दशु ाला ओढ़े खड़ी थी। बताओ क्या ? ॥ (2)
क्या ? ॥ (4)
11 िबु आता शाम को जाता,
4. हदन में िोये, रात में रोये, क्षजतना रोये उतना हदनभर अपनी िमक बरिाता । बताओ
खोये, बताओ क्या ? (4)
क्या ? ॥ (3)
5. एक जानवर ऐिा, क्षजिकी दमु पर पिै ा, बताओ
क्या ? (2) 12 मध्य कर्े तो बनता कम,
अतंि कर्े तो कल ,
6. तीन अिर का मेरा नाम । उल्र्ा िीधा एक लेखन में मंै आती काम, िोिो तो क्या
िमान ॥ (3)
मेरा नाम ॥ (3)
7. पिी देखा एक अलबेला, पंिख त्रबना उड़ र ा
अके ला, 13. म ेश के त्रपता के 5 बेर्े ंै| ४ के नाम
बािंध गले में लम्बी डोर, नाप र ा अम्बर का छोर। ै
बताओ क्या ? ॥ (3) 1) गणेश 2) िरु ेश 3) रमेश 4) अल्पेश
बताओ 5वें बेर्े का नाम क्या ोगा? (3)
8. ऐिी कौन िी िीज ै, क्षजिे बे द ी नकु िानदे
माना जाता ै लेहकन हिर भी लोग उिे पीने की
िला देते ै, बताओ क्या ? ॥ (2)

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त्रवत्रवधा

14. तीतर के दो आगे तीतर,

तीतर के दो पीछे तीतर। 19. तीन अिर का मेरा नाम, उलर्ा-िीधा एक
िमान।
आगे तीतर पीछे तीतर, आता ूँ खाने के काम, बझू ो तो भाई मेरा नाम?

बोलो हकतने तीतर? (2) (3)

15. आहद कर्े तो गीत िनु ाऊँ , मध्य कर्े तो ितिं 20. खलु ी रात में पदै ा ोती,
री घाि पर िोती ूँ,
बन जाऊँ । अतिं कर्े िाथ बन जाता, िंपि णू ा िबके
मोती जैिी मरू त मेरी,
मन भाता ॥ (3) बादल की मैं पोती ूँ, बताओ क्या ?(2)

16. िुब -िुब ी आता ूँ, दसु नया भर की खबर
िनु ाता ूँ, (6)

17. एक ______ िौ बीमार ॥(3)

18 पंछिू कर्े तो िीता, सिर कर्े तो समत्र, मध्य कर्े
तो खोपड़ी, प ेली बड़ी त्रवसित्र| बताओ क्या ? (3)

उत्तर

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व्याकरण

मु ावरे/लोकोत्रक्तयाँ

ह न्दी में ऐिे अनके मु ावरे ंै क्षजनमंे शरीर के अगंि ों का प्रयोग तो ोता ै लहे कन उि अगंि के काया का कोई
िबंि धिं न ीिं ोता| िसलए, देखते ंै कु छ ऐिे ी मु ावरों का प्रयोग| इन वाक्यों मंे आप ि ी अगिं का नाम
सलखकर मु ावरों को परू ा करंे| देक्षखये हकतने ि ी ैं आप!

1. यहद मंे पूरा त्रवश्वाि ै हक म िच्िाई की रा पर िल र े ैं तो कोई भी मारा -------------
--------- भी बाकँ ा न ींि कर िकता|

2. ज़रा-ज़रा िी बात पर आिमान ------------------------- पर उठा लेने में क्या तकु ै?
3. ----------------- झपकते ी िोर ने मेरा पिा छीना और रिू िक्कर ो गया|
4. गंिुडों िे ब ि करने का मतलब ै ख़दु के ------------------ पर कु ल् ाड़ी मारना|
5. बाढ़ के कारण नकु िान ोने के बावजूद हकिान ने अपना --------------------- कार्कर बेर्े की

पढ़ाई का प्रबधंि हकया|
6. आधी रात को कु छ आ र् पाकर मेरे -------------------- खड़े ो गए|
7. जवानों की वीरता के हकस्िे िनु कर र देशवािी का ----------------------- िौड़ा ो जाता ै|
8. मझु े याद न ीिं हक बिपन मंे कभी माँ िे डाँर् पड़ी ो या माँ को कभी --------------------

उत्तर-व्याकरण

िाधना पाठक बाल 1 5 ेपर्
सिर 2 6 रोंगर े्/कान
ह ंिदी अध्यात्रपका पलक 3 7 िीना
सिगंि ापरु पैर 4 8 ँआख

अक्तू बर-हदििंबर २०१९ ◦ सििगं ापुर ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 47

ह िंदी की बोसलयों िे

परछाई के मनमीत बनावल जाता

उ भाग में नइखे तब ूँ त भरमावल जाता। अब क वाँ उ मेल जोल अपनापन बार्े,
उ े िपना क़ा ें मरा के देखावल जाता। समले खासतर झूठो बेमार बतावल जाता।

िुन लीिं उनकर आवाज त अघिं ी ना आवेला, रा उरेब िले त प ुँि ना पावे कत ूँ,
रोजे अि ीिं के धड़कन के धड़कावल जाता। रा गीर के अइिन रा धरावल जाता।

हदल के दरद सछपइला िे सछपल ना कब ूँ, नेताजी मिंहदर के िाथे मक्षस्जद बोलेलन,
मसु ्का-मसु ्का के लोगन के जनावल जाता। वोर् खासतर के तना पैंतरा अपनावल जाता।

शायद ई हदनवा िबका क्षजनगी में आवेला, पइिा ला रोज लड़त बा बाबूजी िे बेर्ा,
अपने परछाई के मनमीत बनावल जाता। पइिावा जवन बुढ़ापा बदे जरु ्ावल जाता।

त्रबनोद समश्र

सिंगि ापरु

आइये भोजपरु ी िीखंे- ह िंदी = भोजपरु ी
बरु ा = बाउर
िाभार : श्री नीरज ितुवदे ी जी के ‘िे िबुक’ वॉल िे बहढ़या = नीमन
असधक/ब ुत = ढेर
थोड़ा = तनी या तसनिकु
थोड़ा-ब ुत = तनी-मनी
प्रतीिा = अगोरना
तरु ंित = असभनै

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एप्पल िम्बल वनीला आइििीम के िाथ

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