खडं 1, अकं 1 (प्रवशे कं : वषष 2020)
₹ 100
अतं रराष्ट्रीय सरहित्य एवं कऱर मिोत्सव
@ सेवॉय
विषय-सचू ी
खंड-1, अकं -1 (प्रिेश ंक: िषष 2020) हहदं ी फ़िक्शन अग्ननलीक (लेखक: हृषीके श सलु भ) 01
अंजुम शमाा कीलें (लेखक: एस. आि. हिनोि) 03
सहयोग और सौजन्य : ममता ककिण जस का फू ल (लेखक: भालचन्द्द्र जोशी) 06
द बुक रिव्यू (The Book Review) अजं ुम शमाा ग्जन्द्हें जमु -ा ए-इश्क़ पे नाज़ था 08
लक्ष्मी शंकि वाजपेयी (लेखक: पंकज सबु ीि)
संरक्षक पानी को सब याद था 10
सशु ्री चंद्रा चािी मीना बुद्धधिाजा (लेखक: अनासमका)
श्री लक्ष्मी शंकि वाजपेयी
डॉ. सजं ीव चोपड़ा हहदं ी नॉन-फ़िक्शन अथश्री प्रयाग कथा 15
सिफिाज हुसैन ख़ान (लेखक: लसलत मोहन ियाल)
म गदष शषक कु ली लाइन्द्स (लेखक: प्रवीण कु माि झा) 16
पद्मश्री लीलाधि जगड़ू ी सुभाष चन्द्द्र कु शवाहा तमु ्हािी जय (लेखक: आशुतोष शुक्ल) 19
डॉ. सुशील उपाध्याय डॉ. िाजशे कपूि बहुत दिू , ककतना दिू होता है 21
डॉ. कु मदु दनी नौदियाल (लेखक: मानव कौल)
संप दक मडं ल ज्ञान का ज्ञान 22
डॉ. कु मदु दनी नौदियाल डॉ. कु मुददनी नौदियाल (लेखक: हृदयनािायण दीक्षित)
डॉ. िाजेश कपिू
श्री अंजमु शमाा
श्री सिफिाज हुसैन खान
किर डडज़ इन सहयोग
श्री अमिजीत ससहं दत्त
मूल्य क्षते ्रीय भ ष ओं से हहदं ी में अनिु द 24
एक अकं : 100/- रुपए लक्ष्मी शंकि वाजपेयी खाली कु ओं की कथा (लेखक: अवताि 26
28
आजीवन सदस्यता : 10,000/- रुपए ससहं बबसलगं , अनुवादक: सभु ाष नीिव) -
पंजाबी से दहदं ी अनुवाद
पत डॉ. भावना पोिवाल घासीिाम कोतवाल (लेखक: ववजय
वलै ी ऑफ वर्डसा फाउं डशे न ट्रस्ि तंेदलु कि, अनुवादक: डॉ. दामोदि खडसे) –
मिाठी से दहदं ी अनवु ाद
43, उषा कालोनी, डॉ. सुशील उपाध्याय बशीि: तीन लघु उपन्द्यास (लेखक:
सहस्रधािा िोड, देहिादनू -248003 वी.एम. बशीि, अनुवादक: डॉ. संतोष
एलेक्स) – मलयालम से दहदं ी अनुवाद
िेबस इट
https://valleyofwords.org
संपकष : +91-9410147494
पबिका मंे प्रकासशत समीिकों के ववचाि उनके ननजी हंै औि वैली ऑफ वर्डास का इससे सहमत होना अननवाया नहीं
है। इसमें प्रकासशत समीिाओं या उनके ककसी अशं का पुन: प्रकाशन संपादक मंडल की पूवा अनुमनत के बबना नहीं
ककया जा सकता। दहन्द्दी पुस्तकों की समीिाओं का कॉपीिाइि वलै ी ऑफ वर्डास के पास है।
अगं ्रेजी पुस्तकों की समीक्ष एं द बुक ररव्यू (The Book Review) से स भ र ली गई हंै और इनक कॉपीर इट द बुक
ररव्यू के प स है।
डॉ. सशु ील उपाध्याय बेशिम (लेखखका: तसलीमा नसिीन, अनुवादक: उत्पल बैनजी) – बानं ला से दहदं ी 29
32
अनवु ाद
34
डॉ. सशु ील उपाध्याय भ-ू देवता (लेखक: के शव िेर्डडी, अनुवादक: जे.एल. िेर्डडी) - तले ुगु से दहदं ी अनवु ाद 35
36
अंग्रेज़ी फ़िक्शन 37
39
सीमीन अली ए पीपुल्स दहस्ििी ऑफ हैवेन: ए नॉवले (लेखखका: मातंगी सबु ्रमखणयन)
40
वसंुधिा ससिनिे ड्रने न आई हैव बबकम द िाइड (लेखखका: गीता हरिहिन) 41
42
मधसु मता चक्रवती साइनपे ्स: ितन ओक स्िोिीज़ (लेखक: कल्पीश ित्ना)
44
िवव मेनन द िेडडएन्द्स ऑफ ए थाऊजेंड ससं (लेखखका: मनिीत सोढी सोमेश्वि) 45
मालती मखु जी दीज़, आवि बाडीज़, पज़ेज्ड बाई लाइि (लेखखका: धरिणी भास्कि) 46
अंग्रेज़ी नॉन-फ़िक्शन 47
आसमा िशीद कसमगं आउि एज़ दसलत: ए मेमॉयि (लेखखका: यसशका दत्त) 49
मीना भागवा तवायफनामा (लेखखका: सबा दीवान) 50
अमि फ़ारूकी द एनाकी: द ईस्ि इंडडया कं पनी, कॉपोिेि वायलेन्द्स, एंड द वपलेज ऑफ एन अपं ायि 52
(लेखक: ववसलयम डले रिपं ल) 54
56
िज़ा काज़मी द वाइल्ड हािा ऑफ इंडडया (लेखक: िी.आि. शंकि िामन)
58
िाकफ़या काग्ज़म वसे ्िेड: द मेस्सी स्िोिी ऑफ सैननिेशन इन इग्डडया, ए मैननफे स्िो फॉि चंेज 59
(लेखक: अकं ु ि बबसेन) 60
क्षते ्रीय भ ष ओं से अगं ्रेज़ी में अनिु द 61
ििादं ा जलील खूनी बसै ाखी (लेखक: नानक ससहं , अनुवादक: नवदीप सिू ी) – पजं ाबी से अगं ्रेज़ी
अनवु ाद
एम. असाददु ्दीन सशप ऑफ सॉिोज़: ए नॉवेल (लेखखका: कु िातलु ऐन हैदि, अनुवादक: सलीम ककदवई) –
उदाू से अगं ्रेज़ी अनुवाद
एन. कमला द बेल्स आि रिधं गगं इन हरिद्वाि: थ्री नॉवेलाज (लेखक: एम. मुकंु दन, अनवु ादक: प्रेमा
जयकु माि) – मलयालम से अगं ्रेज़ी अनवु ाद
माया पडं डत नािकि द स्िोिी ऑफ बींग यज़ू लेस + थ्री कािं ेक्स््स ऑफ ए िाइिि
(लेखक: अवधतू डोंगिे, अनुवादक: नदीम ख़ान) – मिाठी से अगं ्रेज़ी अनुवाद
नबननपा भ्िाचाजी िाइगि वुमन (लेखक: ससिशो बंदोपाध्याय, अनवु ादक: अरुणव ससन्द्हा) –
बांनला से अंग्रेज़ी अनवु ाद
फ़कशोरों के ललए हहदं ी मंे ललखी गयी पुस्तकंे
डॉ. सुशील उपाध्याय खखड़ककयों से झाकाँ ती आखँा ें (लेखखका: सधु ा ओम ढीगं िा)
डॉ. िाजेश कपूि गसलयों के शहज़ादे (लेखखका: नाससिा शमाा)
फ़कशोरों के ललए अंग्रेज़ी में ललखी गयी पुस्तकंे
गौिी शमाा ए क्लाउड कॉल्ड भूिा: क्लाइमिे चगै ्म्पयन्द्स िू द िेस्क्यू (लेखखका: बबजल वछािजनी)
अदं लीब वाग्जद ए िाइग्रेस कॉल्ड मछली एंड अदि ट्रू एननमल स्िोिीज़ फ़्रॉम इंडडया
(लेखखका: सुवप्रया सहगल)
सुचरिता सेन गुप्ता फ़ीयसा फ़े म्मेस एंड नोिोरिअस लायस:ा ए डंेजिस ट्रासं गल्सा कॉन्द्फ़ै बलु स मेमाएि
(लेखखका: काई चंेग थाम)
पद्मा बासलगा द डॉिि फ़्रॉम ए ववसशगं ट्री: अनयजू ुअल िेल्स अबाउि ववमन इन माइथोलॉजी
(लेखखका: सुधा मनू त)ा
अपनी कलम से...
‘वैली ऑफ वर्डसा ’ वपछले चाि साल से ननिंति इस अंतिाषा ्टट्रीय सादहत्य एवं कला
महोत्सव का आयोजन किती आ िही है। इस दौिान ववववध प्रकाि के श्रेष्टठ सादहत्य
को जन-जन तक पहुंचाया गया, देश औि समाज दहत के अनेक महत्वपूणा ववषयों पि
बहस-मबु ादहसों का दौि चलाया गया, ककताबों का ववमोचन ककया गया, चचाा-परिचचाएा ं
िखी गईं, ज्वलतं मदु ्दों पि गफु ्तगू की गईं, काव्य गोग्ष्टठयों औि मुशायिों का आयोजन ककया गया
औि इसके अलावा कई तिह की कला प्रदशना नयाँा लगाई गईं औि सांस्कृ नतक कायका ्रमों को संजोया
गया। इतना ही नहीं यवु ा पीढी को जागरूक बनाए िखने के मकसद से आगे कदम बढाते हुए हमने
वाद-वववाद प्रनतयोधगताएं भी किाईं ग्जनके जरिए एक ववचाि-श्रंखृ ला बनी है, औि इसमें कडड़यों को
जोड़ते िहने का ससलससला बदस्तिू जािी िहेगा।
हि बाि कु छ नया किने की पिंपिा को जािी िखते हुए इस वषा के महोत्सव मंे ‘वाह कलम’ एक नई
पहल है। ववचाि-गोग्ष्टठयों के दौिान औि चचाा-परिचचाओा ं के दिसमयान यह महसूस ककया गया है कक
पाठकों को इस महोत्सव में िखी गई दहन्द्दी की नई औि अच्छे स्ति की पुस्तकों की जानकािी
उपलब्ध नहीं हो पाती। पसु ्तक-प्रेसमयों को ककताबों की जानकािी देने के साथ-साथ उन पुस्तकों की
संक्षिप्त समीिा महु ैया किाने के ववचाि ने ही ‘वाह कलम’ को जन्द्म ददया है। इसके अलावा, एक
मकसद औि भी है। असल में, पाठक एक ही भाषा तक सीसमत न िहंे, यह कोसशश भी की गई है।
‘वाह कलम’ मंे अगं ्रेजी की चयननत पुस्तकों की समीिा को दहन्द्दी मंे प्रकासशत ककया गया है, ताकक
दहन्द्दी के पाठकों का दायिा भी व्यापक बनाया जा सके । िेिीय भाषाओं से अनूददत पुस्तकों के सलए
अलग श्रेणी बनाकि पुिस्कृ त ककया जा िहा है ताकक सादहत्य ककसी भाषायी सीमाओं का मोहताज न
होकि सभी तिह के पाठकों के सलए उपलब्ध हो।
सादहत्य चाहे ककताब के रूप मंे हो या कफि ई-बुक की शक्ल मंे हो, उसके सलए पाठकों में रुधच पैदा
किना ‘वैली ऑफ वर्डास’ अतं िााष्टट्रीय सादहत्य एवं कला महोत्सव का मुख्य उद्देश्य है। मन-मग्स्तष्टक
मंे बेचैनी पैदा किने वाले ददशाहीन िीवी प्रोग्राम्स औि न्द्यूज़ के बजाए समाज अपने फु सता के िणों
को अच्छी ककताबों को पढने में लगाए, इस मदु हम में अगि हमें थोड़ी-सी भी कामयाबी हाससल हो
जाती है, तो मंै समझता हूं कक हम समाज में अपना योगदान दे पाएंगे। ‘वाह कलम’ के जरिए
हमािी इस कोसशश की शुरुआत हुई है। सधु ाि औि बेहतिी की गुंजाइश हमशे ा िहती है, इससलए
पाठकों से सुझावों का सदैव स्वागत है।
सधु ी पाठकों को आगामी नववषा 2021 की हाददाक शभु कामनाएं।
(सजं ीव चोपड़ा)
हहदं ी फ़िक्शन
सभीऺक: अजं ुभ शभ ष कक स्वततॊ ्रता ऩूवत से रेकय स्वाततॊ ्र्मोत्तय बायत भें
अग्ननरीक आज तक का रम्फा सभम इस उऩन्मास की कथा
रेखक: हृषषके श सुरब भें हदखराई ऩड़ता है।
य जकभर प्रक शन, 2019 मह उऩन्मास ऩढ़ते हुए, न चाहते हुए बी फाय-फाय
पणीश्वयनाथ येणु के भरै ा आचॉ र का स्भयण हो
'अग्ननरीक' रृषीके श सुरब का आता है। ग्राभीण अॊचर की कथा तो कायण है ही
रेककन जहाॊ येणु ने कोसी तट के आसऩास फसे
ऩहरा उऩन्मास है। उनकी ख्मातत
एक कहानीकाय औय नाटककाय के गावॉ ों को अऩना कथा-ववषम चनु ा था, वहीॊ रृवषके श
रूऩ भें ऩहरे से है। यॊगभॊच सॊफॊधी
उनके रेख हभ सफ रगाताय सरु ब घाघया नदी के ककनाये फसे गाॉवों की कथा
कथादेश भें ऩढ़ते यहे हैं। अभरी, फटोही, धयती को आधाय फनाते हैं। भनंै े वरै ी ऑप वर्डतस के सरए
आफा उनके प्रससद्ध नाटक हंै तो तूती की आवाज़, जफ उनका इॊटयव्मू ककमा था तो मह सवार उनसे
वसॊत के हत्माये, हरतॊ जसै े कहानी सॊग्रह सरख कय ऩूछा था कक भन भंे कबी सशॊ म नहीॊ हुआ कक
उन्होंने कहानी ववधा को सभदृ ्ध ककमा है। रेककन अग्ननरीक को भरै ा आॉचर के आरोक भें देखा
उनके बीतय एक उऩन्मासकाय बी कहीॊ हहरोये रे
यहा था, मह अग्ननरीक आने के फाद ऩहरी फाय जाएगा? उनका जवाफ था नहीॊ, येणु हभाये ऩवू जत हैं
ऩाठकों ने जाना। मह उऩन्मास घाघया नदी के
औय ग्जनसे आऩ प्रेभ कयते हैं उनसे आऩको बम
आसऩास के गावॉ ों के इततहास की, वतभत ान की कथा नहीॊ होता। उनसे तनबमत ता भनंै े सीखी औय उस
गाॉव की कथा कही जहाॊ भंै ऩरा-फढ़ा।
है ग्जसभें फदरती हुई जातीम-याजनीततक सॊयचना
की कथा कही गमी है। ज़ाहहय है जफ ऩरयवतनत वसै े, मह सच है कक आज के सभम भें जफ गावॉ
फाहयी होगा तो सभाज की आॊतरयक सॊयचना ऩय साहहत्म, ससनभे ा से नदायद हो चकु े हैं तफ रृवषके श
उसका असय आना स्वाबाववक है, ऩरयवाय भें
ऩरयवतनत आना स्वाबाववक है, व्मग्तत ववशषे भें सुरब का उऩन्मास आना मह बयोसा हदराता है कक
ऩरयवतनत आना स्वाबाववक है। इससरए आऩ देखेंगे कु छ बी आउटडटे ेड नहीॊ होता फग्कक व्मग्तत की
प्राथसभकताएॊ फदर जाती हंै।
अग्ननरीक उऩन्मास के के न्र भंे बफहाय के सीवान
की ग्राभ ऩॊचामत है। उऩन्मास दो हत्माओॊ के फीच
फहुत से प्रेभ औय हत्माओॊ को सभेटे है। उऩन्मास
की शुरुआत भें शभशेय साॉई की हत्मा होती है औय
अॊत भें भनोहय यजक की हत्मा। इन दोनों हत्माओॊ
के फीच भें प्रेभ, याजनीतत, साभतॊ वाद, वऩतसृ त्ता जैसे
तभाभ भदु ्दे रृवषके श सुरब उठाते हंै। एक ऩयु बफमा
सभाज है, ग्जसने ऽदु को ऩरयवतनत की रॊफी कतायों
भें खड़ा ककमा है वह जफ फदरता है तो तमा
फदरता है औय तमा नहीॊ, इसे फहुत सूक्ष्भ रूऩ से
दशामत ा गमा है। महाॉ ऩरयवतनत की गतत उतनी तजे ़
नहीॊ है ग्जतनी दतु नमा की धुयी घभू यही है। जातत,
वणत, सपॊ ्रदाम औय भज़हफ आज बी तनमाभक औय
तनणातमक बूसभका भंे है। गावॊ का ऩूया ढाॉचा जसै े
रृवषके श सुरब उठाकय कााज़ ऩय उताय देते हंै।
प्रकृ तत फोरती है, ऩात्र फात कयते हैं औय ऩाठक
खंड-1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वषष 2020) 1
कहानी भंे डू फा ऩन्ने उरटता यह जाता है। भंे कहने का हुनय बी। बाषा का अथत के वर फोरने
रृवषके श सुरब ने इस उऩन्मास भें ज़रूयत के के सरए फोरना मा सरखने के सरए सरखना नहीॊ है
फग्कक जफ खते ऩय सरख यहे हैं तो आऩकी बाषा
हहसाफ से अऩने नाटककाय, कहानीकाय को ऩमातप्त
भें खेत की पसर रहरहाती हुई हदखनी चाहहए,
जगह दी है। उऩन्मास भंे जहाॊ कहीॊ गीत आते हंै
तो वे कपरय के तौय ऩय नहीॊ आते फग्कक कथानक जफ आऩ घय ऩय सरख यहे हंै तो उस घय की यसोई
को आगे फढ़ाने का काभ कयते हैं। हय तफके का
सभाज इसभंे आऩको जानने को सभरेगा। औय ऽास से उठ यही भहक आऩकी बाषा भंे ऩहुॊचनी चाहहए,
फात मह है कक ऐसा कयते वतत रेखक उसकी जफ आऩ नदी ऩय, नारों ऩय सरख यहे हैं तो ऩानी
ऩषृ ्ठबसू भ, उसकी फोरी, उसके ऩरयवेश को गढ़ते हुए की फहने की आवाज आऩकी बाषा भंे सनु ाई देनी
उन तभाभ फायी़ चीजों का ऽमार यखता है चाहहए औय जफ आऩ गावॊ ऩय, शहय ऩय, याजनीतत
ग्जससे ततनक बी फनावटीऩन की भहक न आए। ऩय, सभाज ऩय मा धभत ऩय सरख यहे हंै तो आऩकी
ऩरयवेश इतना सजीव है कक जो बी ऩयू फ का यहने
वारा होगा मा उससे ताकरु़ यखता होगा उसे बाषा भंे मथाथत साधने का फोध होना चाहहए। मह
रगेगा कक मह कहानी उसके भोहकरे की है औय
ग्जस आदभी के फाये भें वह ऩढ़ यहा है उससे वह सफ अग्ननरीक भें हदखाई, सुनाई देता है।
ऩहरे सभर चुका है।
भंै महाॉ ऩय शुरुआत भंे कही गई अऩनी उस फात
उऩन्मास ऩढ़ते हुए रगाताय हभ सोचते हंै कक हभाये को दोहयाऊॉ गा कक इसे ऩढ़कय पणीश्वयनाथ येणु की
घयों की ग्स्त्रमाॉ कै सी होती हंै औय कै सी होनी माद आना स्वाबाववक है रेककन महाॉ मह माद
यखना ज़रूयी है कक येणु के सभम औय ऋवषके श
चाहहए? मह उऩन्मास एक ऐसे स्त्रीरोक की मात्रा सरु ब के सभम भें काफी ऩरयवतनत आ चकु ा है।
इॊसान के बीतय इॊसान ढूॉढना येणु के सभम भें
ऩय आऩको रे जाता है ग्जसकी ज़भीन इतनी उतना भगु ्श्कर नहीॊ था ग्जतना अग्ननरीक के सभम
भज़फूत औय इतनी तयर है कक वह ऩहाड़ बी हो भंे है। इससरए उऩन्मास भंे जफ फाय-फाय हत्माएॊ
होती हैं तो सरु ब कहते हंै कक हत्माएॊ हभाये सभम
जाए औय नदी बी। गरु फानो, भुन्नी फी, येशभा, का तनभभत मथाथत है। चाय ऩीहढ़मों के दयम्मान पै रे
जसोदा, येवती को जफ आऩ ऩढ़ते हैं तो स्त्रीत्व के इस उऩन्मास भें फहुतये े ककयदाय आते हैं, कथा के
बीतय फहुतये ी कहातनमाॊ आती हंै, फहुतये े ऩात्र हंै
साथ ग्स्त्रमों के बीतय ऩुरुषत्व को ग्ज़दॊ ा यखने की (ग्जन्हें माद यखना भगु ्श्कर हो जाता है), चनु ावी
साॉस आऩके बीतय बयती चरी जाती है। तफ इस याजनीतत के गठजोड़ आते हंै, जाततमों की ऩहचान
सॊसाय का हहस्सा होने ऩय नाज़ बी होता है औय आती है, अग्स्भता का ववभशत आता है, दफगॊ मी
आती है, डकै ती आती है, अऩभान आता है,
गुस्सा बी आता है कक हभ तमा थे, तमा हो गए हैं प्रततशोध आता है औय वह प्रेभ बी आता है ग्जसे
हभ जीवन भें खोजते यहते हंै।
औय तमा होंगे अबी। फीच फीच भें कहानी के छू टने की सशकामत को
अगय भैं छोड़ दॉ,ू जो हो सकता है के वर भेये साथ
उऩन्मास की सफसे खास फात है इसकी बाषा। हुआ हो, तो मह उऩन्मास रृवषके श सरु ब की
इतनी सभदृ ्ध औय बफफॊ ात्भक बाषा हभाये सभम की रेखनी को ववववधतता देता है। इस उऩन्मास को भैं
धयोहय है। तत्सभ से रेकय ठे ठ बोजऩयु ी के सौंदमत अऩनी बाषा का उऩन्मास कहूॉगा। बाषा का ऋण
से ऩगी हुई मह बाषा इतनी सुगधॊ धत है कक आऩ हभेशा हभाये ऊऩय होता है, उससे हभ उऋण नहीॊ
शहय भंे फठै कय बी सभट्टी की सौंध को भहसूस हो सकते रेककन उसे सभदृ ्ध कयके ऩयम्ऩया को
फनाए यखने का काभ अगय हभ साहहत्म के
कय सकते हंै। मह बाषा अजनत से आती है, अनबु व भाध्मभ से कय दंे तो सकु ू न सभरता है। मह
उऩन्मास उसी बावषक ऩयॊऩया भें ऩका हुआ
से आती है। जफ रृवषके श सुरब फाय-फाय अऩने उऩन्मास है। जफ कबी आधॉ चरक उऩन्मासों की
ऩूवजत औय अग्रज रेखकों के सम्भान की फात कयते
हंै तो सभझ जाना चाहहए कक मह रेखक उसी
ऩयऩॊया का हहस्सा है ग्जसे हभ ससय उठाकय देखते
हैं। इस ऩम्ऩया भंे बाषा का आरोचनात्भक
दृग्ष्टकोण बी है औय अऩनी फात को सटीक शब्द
2 खंड-1, अकं -1 (प्रवेश कं : वषष 2020)
चचात होगी उस सूची भंे तनश्चम ही रृवषके श सरु ब सभीऺक: भभत फ़कयण
के अग्ननरीक का नाभ यहेगा। कीरंे
अजं ुभ शभ :ष ऩत्र-ऩबत्रकाओॊ भें कववताएॉ, रेख, व णी प्रक शन, 2019
सभीऺा प्रकासशत। ऩत्रकारयता से बी सम्फद्ध।
आकाशवाणी से प्रततग्ष्ठत साहहत्मकायों सॊग कीरें प्रख्मात कथाकाय एस.आय.
साऺात्काय सीयीज़ प्रसारयत। आज तक येडडमो, हयनोट का नवीनतभ कहानी सॊग्रह
नवबायत गोकड जसै े प्रेटपॉम्सत से साहहत्म-सॊगीत है। इस सॊग्रह भंे श्ी हयनोट की
की ऩॉडकास्ट श्खॊृ रा प्रसारयत। सात कहातनमाॊ सग्म्भसरत की गई
हैं। स्वाबाववक है कक रगबग सबी कहातनमाॊ
हृषषके श सुरब: कहानीकाय औय ववस्ततृ आकाय सरए हंै।
नाटककाय। तूती की आवाज़, हरन्त,
वसतॊ के हत्माये अभरी, फटोही, इन सबी कहातनमों की ववषमवस्तु ऩाठक को एक
धयती आफा, भाटीगाड़ी, दासरमा अरग ही दतु नमा भें रे जाती है। ऩाठक के साभने
(यवीन्रनाथ टैगोय की कहानी ऩय एक अदृश्म दतु नमा खुरती जाती है जो वास्तववक
आधारयत नाटक) आहद यचनाएॊ प्रकासशत। होकय बी यहस्म रोक जसै ी ही रगती है। ग्जस
दतु नमा से ऩाठक ऩरयधचत बी हो सकता है वह बी
वरै ी ऑप वर्डसत अतॊ यातष्रीम साहहत्म एवॊ कहानी ऩढ़ने ऩय अऩरयधचत-सी रगने रगती है।
करा भहोत्सव - 2017 भें हहदॊ ी कफतशन उदाहयण के सरए ‘पू रों वारी रड़की’ कहानी को
श्ेणी भें ऩुयस्कृ त रेते हंै। महाॉ कहानी के कंे र भंे एक सबखायी है जो
जरतयॊग अचानक सभर गई एक अनाथ भासभू फच्ची को
रेखक: सतॊ ोष चौफे ऩारता है। हभ सफ ककसी सबखायी को एक ससतका
प्रकाशक: बायतीम ऻानऩीठ ऩकड़ा देने अथवा ‘जाओ-जाओ’ कहने के अरावा
ककतना जानते हंै। एक सबखायी के बीतय फठै े इॊसान
को, अनाथ फच्ची को एक सम्भानजनक जीवन देने
की उस की छटऩटाहट औय उससे उऩजी वववशता
को औय कपय उस फच्ची के भाध्मभ से रेखक ने
कयोड़ों फच्चों के गयीफी-राचायी वारे जीवन की ओय
खंड-1, अकं -1 (प्रवशे कं : वषष 2020) 3
बी ऩाठकों का ध्मान आकवषतत कयके अऩने औय भ्रष्ट नेताओॊ की ततजोरयमाॊ बयते हैं, कै से
साभाग्जक भानवीम सयोकायों को सजॊ ोमा है। अऩनी भेहनतकश भजदयू , ककसान अथवा सभाज को सचते
देह से फेखफय फड़ी होती फच्ची की भासूसभमत को कयते फुद्धधजीवी रेखक उनके तनहहत स्वाथों की
तनशाना फनाते तथाकधथत सभ्म सभाज के मुवा याह भें योड़ा अटकाने के कायण शत्रवु त हो जाते हैं,
औय कपय एक तथाकधथत सभाज सेवक नते ा द्वाया मह कहानी भें बरी-बाॊतत उद्घाहटत ककमा गमा है।
शोषण का क्रू य प्रमास...कहानी ककतने ही चहे यों को नामक की सॊवदे नशीरता, ऩयोऩकाय मा दसू यों की
फेनकाफ कयती है। कथाकाय के ऩात्र हहम्भत का भदद कयने की बावना ही उसे भुसीफत भें डार देती
साथ नहीॊ छोड़ते, वे अऩनी अग्स्भता औय सम्भान है।
के प्रतत हभेशा सजग यहते हंै, जूझते हैं। गयीफ-
राचाय सबखायी बी उस अत्मतॊ शग्ततशारी नते ा के आभ तौय ऩय आभ नागरयक, सयकायों की गरत
ववरुद्ध उठ खड़े होते हंै। मही तो सच्चे साहहत्मकाय नीततमों, गरत काम-त ऩद्धततमों मा राऩयवाहहमों मा
औय साहहत्म का मोगदान है। भ्रष्टाचाय की ओय ध्मान बी नहीॊ दे ऩाते, प्रततयोध
तो तमा ही कय सकें गे, रेखक उन्हें फायीकी से
हयनोट की कहानी भें ककतने ही ऩुयाने यीतत-रयवाज साभने राता है औय स्वस्थ सभाज के तनभाणत भंे
हों, ऩयॊऩयाएॊ हों, वे उनभंे आधुतनक सॊदबत जोड़ने से साहहत्म के हस्तऺऩे को येखाकॊ कत कयता है।
नहीॊ चकू त।े ‘ऩत्थय का खरे ’ कहानी भें ऐसी ही ‘आग’ कहानी भें उस साॊप्रदातमकता के ज़हय की
ऩुयानी प्रथा का सॊदबत है। साकॊ े ततक रूऩ से दो दरों दास्तान है जो धीये-धीये मवु ा ऩीढ़ी के हदर-हदभाग
भंे ऩत्थय का खरे सभाज को जोड़ने औय भेर- भंे उतायी जा यही है औय इसभें सत्ता का प्रश्म बी
सभराऩ का खेर था, फेशक उसके ऩीछे कु छ प्राप्त हो यहा है। साॊप्रदातमकता के ज़हय ने ही देश
अधॊ ववश्वास यहे हों, रेककन कु छ तनहहत स्वाथत उस का फटॊ वाया ककमा था तथा राखों फेगनु ाह जीवन
खरे भंे घणृ ा का जहय सभराने का तघनौना प्रमास नष्ट हुए, राखों घय उजड़।े कहानी के नामक
कयते हंै तथा दॊगा कयाने का ऩूया षर्डमतॊ ्र यच रेते ‘धभतत नष्ठ’ शास्त्री जी उस बाईचाये, प्रेभ, सौहादत की
हैं। महाॊ बी रेखक षर्डमतॊ ्रकायी के फेटे का ही सहाया यऺा भंे प्राणऩण से जुटे हैं जो बायत की सभट्टी भंे
रेकय उनकी ववषैरी मोजना को ववपर कयता है। घरु ी-सभरी है। कहानी भें शास्त्री जी अऩने ही
ऩायॊऩरयक जीवन भें उदायता, सतॊ ोष, प्रेभ, बाईचाया, ऩरयवाय वारों को दॊड देने भंे नहीॊ हहचककचाते तथा
सादगी घुरी-सभरी यहती थी, आधतु नकता की आॊधी ऩयू े गावॊ के सभऺ एक ऐसी सभसार यखते हंै कक
भंे हय ऺेत्र भंे फाजाय, भनु ापा, स्वाथ,त सवॊ ेदनहीता कोई बी गावॊ भें सापॊ ्रदातमकता तथा घणृ ा का ववष
प्रबतु ्व जभाती जा यही है। अभीय फनने, सखु न फो सके ।
सवु वधाएॊ जटु ाने की हवस साये रयश्ते-नातों, जीवन
भूकमों को तनगर जाने को उतारू है। ‘रोहे का फैर’ कहानी वतभत ान सभम भें गाॊवों की
औय ककसानों की ददु तशा का अत्मॊत सटीक धचत्रण
‘फ्राई ककरय’ कहानी भें पॊ तासी का अद्बुत प्रमोग कयती है। गावों भंे बी फाजाय का प्रवशे हो गमा है,
ककमा गमा है। मह कहानी सशकऩ की दृग्ष्ट से साथ ही याजनीतत का ववकृ त रूऩ बी ऩसया है,
अनठू ी कहानी है औय महाॊ रेखक ऩूया मुगफोध जाततवाद तो वहाॊ ऩहरे से है ही। गावॊ के मवु ाओॊ
रेकय उऩग्स्थत होता है। सयकायों की मोजनाओॊ, के शहयों भें चरे जाने से नई-नई सभस्माएॊ उबयी
कामकत ्रभों, घोषणाओॊ को तनहहत स्वाथत ककस प्रकाय हैं। कहानी का नामक शहय की सखु -सवु वधाओॊ के
अऩने हहसाफ से तोड़ते-भयोड़ते हंै, तनदोष नागरयकों फीच अऩने कतवत ्म बरु ा फैठा है। फजाम भाता-वऩता
को अधधकायीगण, ऩुसरसकभी तयह-तयह से सताते के सरए कु छ कयने के , उसकी नज़य खते फेचने के
हैं उसका जीवतॊ धचत्रण इस कहानी भें ककमा गमा सरए हटकी है तथा इसके सरए अऩने वऩता से
है। कहानी का नामक ‘जीवन कु भाय’ सच ऩछू ो तो छु ऩाकय गावॊ के दफगॊ ों से सभरकय खते फेचने की
जीवन का ही प्रतीक है। सत्ताएॉ ऩूजॊ ीऩततमों से मा मोजना फनाता है। इस कहानी भें बी रेखक,
ऩजॊू ीऩतत सत्ताओॊ से कै से साॊठ-गाॊठ कयके अऩनी ककसान को अनेकानके तनयाशाओॊ, भसु ीफतों के
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फावजूद टू टने नहीॊ देता तथा ऩूयी हहम्भत से एक यहे भासभू फच्चे भाये गए थ।े कहानी के धासभकत
नई ग्जॊदगी का यास्ता हदखाता है औय भये फरै की ऺेत्र के ववसबन्न धचत्र, कड़वी सच्चाइमाॉ बी हभाये
जगह रोहे का सभनी रैतटय खयीद कय नामक गाॊव सम्भुख आती हंै औय आतकॊ वाद के प्रतत हभाया
वारों को बी एक नमा यास्ता हदखाता है। भौन प्रततयोध बी रेखक जगाता है।
‘बागादेवी का चामघय’ कहानी ऩहाड़ की भहहरा की एस.आय. हयनोट की कहानी रेखन की अऩनी एक
कभठत ता, ऩरयश्भ, जझु ारूऩन, साहस, हहम्भत, अऩने ववसशष्ट शैरी है। रोकजीवन, रोकबाषा से उनकी
आत्भसम्भान की यऺा के प्रतत सजगता की अत्मॊत कहातनमों का जडु ़ाव उन्हंे एक अरग आमाभ देता है
प्रेयक कहानी है। कायऩोयेट जगत की फढ़ती आऩसी तो आधुतनक सॊदबों से उन्हंे जोड़ देना एक औय
प्रततद्वदॊ ्ववता, ज़भीन हधथमाने, बोरे-बारे नागरयकों भहत्वऩूणत आमाभ दे देता है। उनकी कहातनमों भंे
को तयह-तयह से फयगराने, भ्रसभत कयने, शयाफ, ग्जस तयह की फायीक ‘डडटेकस’ होती हंै, जो
नशा तथा रारच से भ्रष्ट फनाने औय कपय शोषण शब्दधचत्र होते हंै, दृश्माॊकन होते हंै, वे बी ऩाठक
कयने की साग्जश ही इस कहानी के कंे र भंे है। को फाधॊ कय यखते हैं। कहानी रेखन भें रुधच यखने
बागादेवी का ऩतत बी इसी कु चक्र का सशकाय होता वारों को ‘कीरंे’ अवश्म ऩढ़नी चाहहए। वतभत ान
है रेककन बागादेवी का साहस उसे काभमाफ नहीॊ सभम की धड़कनों को अऩने बीतय वऩयोने के सरए
होने देता। इस कहानी भंे ऩहाड़ की वतभत ान ददु तशा औय सभाज भंे आ यहे नकायात्भक ऩरयवतनत ों के
ऩूयी तयह उबय कय आती है। ऩहाड़ों के गाॊवों के प्रतत सजग कयने के सरए तो मह कहानी सगॊ ्रह
गावॊ मवु ाओॊ के ऩरामन औय फेयोजगायी के कायण अत्मॊत भहत्वऩूणत एवॊ प्रासॊधगक है ही।
उजड़ यहे हंै, वहाॊ बी तनहहत स्वाथत औय कु हटर
याजनीतत, फाजाय औय भनु ापा अऩने यॊग हदखा यहा भभत फ़कयण: प्रख्मात कवतमत्री। कववताओॊ का
है। बागादेवी की चारयबत्रक दृढ़ता औय रोब के आगे ऩॊजाफी, अॊग्रेजी व उदतू भंे अनुवाद। प्रतततनधध
सभऩणत की फजाम ऩतत से बी टकयाने की हहम्भत बायतीम कवव के रूऩ भंे कई देशों भें कववता ऩाठ।
कहानी का अत्मॊत उज्जज्जवर ऩऺ है। सॊसद के कंे रीम कऺ भें याष्र बाषा गौयव सम्भान
सहहत अनेक सम्भान व दयू दशतन के सरए सरखी
सगॊ ्रह का नाभ ग्जस कहानी के शीषकत ऩय यखा एक डातमूभंेरी को अतॊ ययाष्रीम सम्भान।
गमा है ‘कीरें’ वह तो सकै ड़ों कहातनमों भें अऩनी
अरग चटक बफखेयने वारी कहानी है। महद आऩ एस.आय. हयनोट: हहभाचर प्रदेश के
कहातनमों के तनमसभत ऩाठक हंै तो आऩ बी कहानी जाने-भाने रेखक। रेखन ऩमटत न
ऩढ़कय ववग्स्भत होंगे। एक ऐसे देवता की कहानी औय पोटोग्रापी भें सभान रूऩ से
ग्जसे ऩूजने के फजाम सीने भंे कीरंे ठोंकी जाती हैं, सकक्रम। नौ कहानी-सगॊ ्रह औय एक
ग्जसे जूतों से ऩीटा जाता है, गासरमाॊ सनु ाई जाती उऩन्मास प्रकासशत। अलखर बायतीम बायतने ्दु
हैं, ग्जसे फदरा रेने, ककसी का नकु सान कयने, हरयश्चन्र सम्भान सहहत अनेक ऩयु स्कायों से
अशुब कयने के सरए माद ककमा जाता है, रोग दयू - सम्भातनत।
दयू से चरकय दगु भत चढ़ाई चढ़कय उस तक ऩहुॊचते
हैं। रेखक ने इस अनठू े देवता के भाध्मभ से बी
भानवीम सयोकायों का सदॊ ेश देने का अऩना दातमत्व
तनबाना नहीॊ छोड़ा। एक फारक की सोच के
भाध्मभ से तयह-तयह के प्रश्न, तयह-तयह के ववचाय
ऩाठक के सम्भुख आते हंै। रेखक रोक भान्मता
ऩय आधारयत इस ऩुयाने अनठू े देवता का सॊफॊध
आधतु नक सभम की बमानक आतॊकवादी घटना से
जोड़ता है ग्जसभंे एक ऩड़ोसी देश भें कऺा भें ऩढ़
खडं -1, अकं -1 (प्रवेश कं : वषष 2020) 5
सभीऺक: अंजभु शभ ष कक महद भगु ्स्रभ ऩात्र हैं तो उन्हें सापॊ ्रदातमक दॊगों
जस क पू र औय उसके सद्बावना दृश्मों से गुज़यना ही होगा।
रेखक: ब रचन्द्र जोशी
य जकभर प्रक शन, 2019 उऩन्मास ऩढ़ने ऩय आऩ देखंेगे कक बारचरॊ जोशी
ने इस उऩन्मास भें सापॊ ्रदातमक दॊगों को उठामा तो
बायत भें हहदॊ ू रड़के औय भगु ्स्रभ है रेककन वे उनका वणनत कयने की फजाम
रड़की के प्माय की इतनी कहातनमाॊ सापॊ ्रदातमकता के उस ददत को फमान कयते हैं
कही गमी हैं, इतनी कपकभंे फनाई ग्जसकी उऩग्स्थतत बायतीम सभाज भंे रगाताय
गमीॊ हंै कक आऩ ऩहरे से अॊदाज़ा फनती जा यही है। उऩन्मास के कवय ऩय उऩन्मास
रगा सकते हैं कक कहानी का को 'फेयोजगायी से भठु बेड़ के दौय भंे हहदॊ ू रड़के
अगरा भोड़ तमा होगा। बारचरॊ जोशी का उऩन्मास औय भगु ्स्रभ रड़की के अफोध प्रेभ की मात्रा' के
'जस का पू र' बी हहन्दू रड़के औय भुग्स्रभ रड़की रूऩ भें ऩरयबावषत ककमा गमा है।
की प्रेभकथा ऩय आधारयत है रेककन मह उऩन्मास
भहज़ प्रेभ कहानी नहीॊ है फग्कक सभाज की छु ऩी- उऩन्मास भें कथा का नामक शाहरुख, एक हहदॊ ू है
अनछु ऩी मथाथत की ऩयतों को खोरने वारा ज़रूयी ग्जसका असरी नाभ जगदीश शभात है रेकीन दोस्त
दस्तावेज़ है। बारचरॊ जोशी उऩन्मास की बूसभका उसे शाहरुख कहते हैं। इसी तयह काजोर एक
भें सरखते हैं: भगु ्स्रभ रड़की है ग्जसका असरी नाभ नयधगस है।
शाहरुख फेयोज़गाय है औय उस टोरे का हहस्सा है
भेयी सभझ से भेये सरए मह जरूयी हो गमा था कक ग्जसभंे हुनय सफके ऩास है रेककन काभ नहीॊ है।
एक हहदॊ ू रड़के औय भगु ्स्रभ रड़की की प्रेभ कहानी मह टोरा जीवन के अबाव बी जानता है औय उसभंे
यचने के फावजूद उस प्रचसरत औय ररचाने वारे जीना बी इससरए वह उन तभाभ भग्स्तमों भें
वणनत ों भंे भैं ना जाऊॊ जहाॊ सापॊ ्रदातमकता के बीषण भशगूर यहता है जो आभ तौय ऩय मुवा अऩने
औय बमावह दृश्मों की गॊजु ाइश ऩदै ा की जा सकती सभम ऩय कयते हैं। हाॉ, रड़ककमों को छे ड़ना औय
है। भुझे रगता था कक इससे भगु ्स्रभ ऩात्रों के उनके बाइमों से वऩटना सफके हहस्से नहीॊ आता
यचाव की सहजता खॊडडत होगी। साथ ही इस रेककन उऩन्मास भंे फेयोज़गाय मुवाओॊ के ऩास सभम
प्रचसरत धायणा का बी कोई औधचत्म नहीॊ रगता काटने का कोई ज़रयमा नहीॊ है। तो एक फाय ऐसे ही
नयधगस का बाई ारतफहभी भंे शाहरुख की धनु ाई
6 खंड-1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वषष 2020) कय देता है। दोस्त उसे अस्ऩतार रे जाते हैं।
काजोर को जफ ऩता चरता है तो वह भापी भाॊगने
अस्ऩतार ऩहुॊचती है, दोनो के फीच हास ऩरयहास
होता है औय महीॊ से होता है इग्ब्तदा-ए-इश़्।
इसके फाद के प्रसगॊ इतने सहज औय अऩने रगते
हैं कक ऩाठक ऩढ़ते हुए भुस्कु याता बी है औय अऩने
मा अऩने सभत्र मा अऩने ककसी जानकाय के अतीत
को माद बी कयता है। नामक-नातमका के फीच के
सवॊ ाद बारचॊर जोशी ने फेहद सयसता से सरखे हंै,
हास्म-ववनोद भें बी अथऩत णू त हैं। दोनों आगे फढ़ना
चाहते हंै रेककन महाॊ बारचॊर जोशी उस बम को
फमान कयते हैं ग्जसका ग्ज़क्र उन्होंने शुरुआती ऩषृ ्ठ
ऩय ककमा था औय इस बम की ऩषृ ्ठबूसभ भंे आती
है फाफयी भग्स्जद की घटना। काजोर बफदॊ ी रगाना
चाहती है, छु ऩ कय रगाती बी है रेककन
साम्प्रदातमकता का बम उसे योकता है। शाहरुख को ससॊ ्कृ ततनष्ठ हहदॊ ी से रेकय उदत,ू अगॊ ्रेजी औय आज
कपक्र है कक उसका ऩरयवाय काजोर को अऩना की हहगॊ ्नरश आऩको ऩात्र जरूयत के अनसु ाय फोरते
ऩाएगा मा नहीॊ तमोंकक शाहरुख की फहन फाफयी हुए इस उऩन्मास भें हदखराई देंगे। सफसे खास
ढहाने के फाद गभु शुदा हो गई, कॉरेज से कबी घय फात मह है कक ग्जस प्रेभ को दशातने के सरए
नहीॊ रौटी। मह बम दोनों को एक दसू ये का बफछोह बारचरॊ जोशी ने इस कथानक को गढ़ा है, वह उस
देता है रेककन मही बफछोह जीवन-बय की स्भतृ त उद्देश्म से बटकते नहीॊ हैं। शाहरुख औय काजोर
फनकय जीवन को नमा भोड़ बी देता है। के फीच के दृश्मों भंे वह रगाताय इस फात का
ऽमार यखते हंै कक बाषा की ज़या-सी कपसरन प्रेभ
इसके फाद कथानक आगे फढ़ता है, सभम बी की गरयभा को धगया सकती है, ऩववत्रता को ऽत्भ
ऩरयवतततत होता है। वैश्वीकयण हावी होने रगता है। कय सकती है। इस फात के सरए बारचरॊ जोशी
शाहरुख न के वर अॊग्रेजी सीखता है, एभए कयता है ववशेष फधाई के ऩात्र हैं। फा़ी हास-ऩरयहास भंे जो
फग्कक ऩीएचडी बी कयता है रेककन उसके बीतय जैसी जरूयत होती है, वहाॊ उऩन्मासकाय को छू ट दी
अबी बी उन्हीॊ स्भतृ तमों की गजॊू कभ नहीॊ होती। जानी चाहहए।
इसका ऩता तफ चरता है जफ एक हदन अथशत ास्त्र
की प्रोपे सय के साथ उसकी नज़दीकी फढ़ती है कु र सभराकय देखंे तो बारचरॊ जोशी का मह
रेककन वह तत्कार ऩीछे हटते हुए काॊऩती आवाज़ उऩन्मास अऩने बीतय प्रेभ का समॊ ोग औय ववमोग
भंे कहता है कक 'भैं ककसी को धोखा दे यहा था'। दोनों सभेटे है। इस उऩन्मास भें ऩीछे छू ट चुके
उऩन्मास के अतॊ तभ ऩषृ ्ठ शीषकत को तफ साथकत जीवन को थाभे यखने की इच्छा बी है औय तजे ़
फनाते हैं जफ पस्टत ईमय की रड़की शाहरुख के दौड़ती ग्ज़ॊदगी भें कु छ हाससर कयने का आकषणत
ऩास आकय अऩने पस्टत डडवीजन भें आने की फात बी, फजु ुगों के अके रेऩन की धचतॊ ा बी है औय
कहती है। रड़की के भाथे ऩय बफदॊ ी होती है। वतभत ान ऩीढ़ी की अऩनी बाषा से छू टने की व्मग्रता
शाहरुख उसे देख कय चौंकता है कक भुसरभान बी, फेयोजगायों के ददत की ऩीड़ा बी है औय कफक्र को
होकय नीरोफय ने बफदॊ ी रगाई है। अगरी कु छ धुएॊ भें उड़ाने का जज़्फा बी, साम्प्रदातमकता की
ऩगॊ ्ततमों भंे नीरोफय की भाॊ शाहरुख के साभने चादय भंे तछऩे सभाज के कई चहे ये बी हंै औय उन्हें
आकय खड़ी हो जाती है। शाहरुख गदतन उठाता है, प्रेभ से उघाड़ने वारा अनकहा हौसरा बी। दयअसर,
स्तब्ध यह जाता है तमोंकक ऐसे सॊमोग ससपत कपकभों मह उऩन्मास हभाये योज़ के छोटे छोटे काभों, हभायी
भें होते हैं। साभने काजोर खड़ी होती है। ज़रूयतों, हभाये सऩनों, हभाये मथाथत का ऐसा जीवतॊ
आख्मान है ग्जसभें हभ योज़ एक सच को जीते हैं
दोनों के फीच फात होती है औय अतॊ भंे काजोर औय योज़ एक सच धुॊधरा-सा हदखाई देता है।
शाहरुख का शुकक्रमा अदा कयती है कक उसने
नीरोफय को ऩढ़ामा, साथ ही कहती है, तभु ने भेये अंजुभ शभ :ष ऩत्र-ऩबत्रकाओॊ भें कववताएॉ, रेख,
सरए फहुत कु छ ककमा है। भेयी फेटी को ऩढ़ामा, सभीऺा प्रकासशत। ऩत्रकारयता से बी सम्फद्ध।
उसका फस्टत डडववज़न तमु ्हाये कायण फना। भुझे बी आकाशवाणी से प्रततग्ष्ठत साहहत्मकायों सगॊ
जीवन के अॊधये े कोनों से तनकार कय योशनी भें साऺात्काय सीयीज़ प्रसारयत। आज तक येडडमो,
खड़ा ककमा। दखु भंे हॉसने का तयी़ा तुभसे सीखा। नवबायत गोकड जसै े प्रेटपॉम्सत से साहहत्म-सगॊ ीत
बफदॊ ास होकय जीवन जीना तुभने ससखामा। इनोससें की ऩॉडकास्ट श्ॊखृ रा प्रसारयत।
ऽुदा की नेभत है, मह तभु से सभरकय भारभू हुआ।
मह रो…. औय एक पू र शाहरुख के हाथ भें थभा ब रचन्द्र जोशी: प्रख्मात साहहत्मकाय
देती है। शाहरुख ऩूछता है, मह तमा है? वह कहती औय व्मवसाम से इॊजीतनमय। नीॊद से
है जस का पू र। मही शीषकत की साथतकता है। फाहय, ऩहाड़ों ऩे यात, जर भंे धूऩ
आहद कहानी-सॊग्रह प्रकासशत।
बारचॊर जोशी ग्जस तयह से इस उऩन्मास की
बाषा के साथ खरे ते हंै वह आऩको चौंकाता है। खडं -1, अकं -1 (प्रवेश कं : वषष 2020) 7
सभीऺक: रक्ष्भीशंकय फ जऩेमी जो भानवता भंे ववश्वास यखते हंै। ककसी बी प्रकाय
ग्जन्द्हंे जुभ-ष ए-इश्क़ ऩे न ज़ थ के धासभकत एवॊ जातीम बदे बाव से ऩये याभेश्वय जी
रेखक: ऩकं ज सुफीय ने सबी धभों का गबॊ ीयता से, गहयाई से अध्ममन
शशवन प्रक शन, 2019 ककमा है। याभेश्वय जी के फचऩन के एक भुग्स्रभ
सभत्र अऩने फेटे शाहनवाज़ को उनकी तनगयानी भें
ग्जन्हें जभु -त ए-इश्क ऩे नाज़ था सौंऩ देते हैं ताकक उसे एक अच्छा इॊसान फनामा जा
ऩॊकज सुफीय का उऩन्मास है। ऩॊकज सके । याभेश्वय शाहनवाज़ को अऩने फेटे की ही तयह
सुफीय हहदॊ ी कथा साहहत्म भंे अऩनी ऩारते हैं तथा उसे नके इॊसान फनाने के सरए सही
सम्भानजनक जगह फना चुके हैं। सशऺा देते यहते हंै। उसके भन भें उठने वारी तयह-
आधा दजनत कहानी सॊग्रह, मात्रावतृ ातॊ , गजर सगॊ ्रह तयह की शॊकाओॊ का तनवायण कयते यहते हैं।
औय अकार भें उत्सव जसै े उऩन्मास ने उन्हें बयऩयू शाहनवाज़ तथा अन्म ववद्माधथमत ों द्वाया उठाए गए
प्रततष्ठा दी है। इस उऩन्मास का प्रकाशन ऐसे प्रश्नों तथा याभेश्वय जी द्वाया हदए गए उनके
सभम ऩय हुआ है जफ कु छ तनहहत स्वाथत ववस्ततृ उत्तय से ऩाठक के भन भें बी सही तथ्मों
मोजनाफद्ध ढॊग से घणृ ा औय सापॊ ्रदातमकता पै राने औय एक सॊतुसरत दृग्ष्टकोण का ववकास होता है।
भें जुटे हैं। सॊचाय क्रातॊ त के सफसे फड़े वयदानों भें से
एक व्हाट्सएऩ को तयह-तयह के नकरी वीडडमो, मह एक कड़वी सच्चाई है कक धभत के नाभ ऩय
झूठे सॊदेश, अपवाहंे आहद पै राकय असबशाऩ भंे दतु नमा भंे ग्जतने मदु ्ध हुए हंै, रड़ाइमाॊ हुई हैं, दॊगे-
फदर हदमा गमा है। सोशर भीडडमा के अन्म पसाद हुए हंै औय उनभें ग्जतने रोग भाये गए हैं,
साधनों को बी इसी अऩववत्र कामत भंे रगा हदमा उतने प्राकृ ततक आऩदाओॊ अथवा भहाभारयमों के
गमा है। जाने कहाॊ-कहाॊ से क्रू यता, अत्माचाय के कायण नहीॊ भये। धभत से उऩजी कट्टयता के कायण
हदर दहराने वारे प्रसगॊ ों के गढ़े भुदे उखाड़े जा यहे ही आज आतॊकवाद का अत्मतॊ बमानक रूऩ ऩयू ी
हंै। सभाज को फाटॊ ने का बयसक प्रमास ककमा जा दतु नमा को डया यहा है। धासभकत त्मौहाय फजाए
यहा है। ऐसे ऩरयदृश्म भें इस उऩन्मास का अवतयण खसु शमाॊ राने के , डय का वातावयण ऩैदा कय देते हंै।
येधगस्तान की तऩती रू भें एक ठॊ डी हवा के याहत
बये झोंके जैसा है। मही साहहत्म का प्रमोजन एवॊ शाहनवाज़ याभेश्वय जी से ‘सवार’ कयता है...के वर
रक्ष्म बी है। उऩन्मास के भखु ्म ऩात्र याभेश्वय जी हैं इस्राभ ही कट्टय है? याभेश्वय फताते हैं- ‘असर भंे
तो धभत शब्द ही कट्टयता ऩदै ा कयता है। महद आऩ
8 खडं -1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वषष 2020) धासभकत हैं तो मह तम है कक आऩ कट्टय बी होंगे
ही। धभत आऩके जीवन की स्वततॊ ्रता को छीनकय
आऩको के वर एक हदशा भंे दौड़ने को फाध्म कयता
है, मही तो कट्टयता है। आऩ दसू यी सायी हदशाओॊ
को खारयज कय देते हैं। जो रोग दसू यी हदशाओॊ भंे
दौड़ यहे होते हैं, वे आऩको भूखत बी रगते हैं औय
अऩने दशु ्भन बी। इस्राभ की कट्टयता की फात
भनंै े इससरए की तमोंकक वह सफसे नमा धभत है।
जो काभ आगे इस्राभ कय यहा है, वही काभ ककसी
सभम महूहदमों ने बी ककमा औय ईसाइमों ने बी
ककमा, अऩने से ऩहरे के धभत को सभाप्त कय
अऩने आऩ को स्थावऩत कयने की कोसशश।’
इसी तयह के प्रश्न ववद्माथी उठाते यहते हैं औय
याभेश्वय जी उनका जवाफ देते यहते हंै। याभेश्वय जी
एक कोधचगॊ ससॊ ्थान चराते हैं, जहाॊ उद्देश्म ऩसै ा
कभाना नहीॊ है वयन ् उस छोटे शहय के ववद्माधथमत ों कभठत औय सऺभ अपसय है। शाहनवाज़ की ऩत्नी
को प्रततमोगी ऩयीऺाओॊ के सरए तैमाय कयना औय को अस्ऩतार ऩहुॊचाने के सरए, दॊगाइमों की नजयों
उनके जीवन को फेहतय फनाना है। गयीफ फच्चों से से फचाकय, ककसी दसू ये यास्ते से एॊफुरेंस से रे जाने
वे ऩसै े बी नहीॊ रेत।े याभेश्वय जी का चरयत्र एक की मोजना फनाई जाती है। दॊगों की आग फस्ती के
सभवऩतत सभाज सेवी तथा उदायता बये नेक इॊसान फच्चों, फुजुगों, भहहराओॊ को आतॊककत ककए हुए है।
के रूऩ भंे उबयता है। शहय भंे उनका भान-सम्भान याभेश्वय जी स्वमॊ जाने का प्रमास फाय-फाय कयते हंै
है। रेककन धभाधंा ता का सशकाय होकय उनका ही ककॊ तु शाहनवाज ही कफ्मूत के कायण उन्हें भना
एक ववद्माथी जो फयसों से ऩावॊ छू ता आ यहा है, कयता यहता है। इॊसानी ग्जॊदधगमों को फचाने की
उनको ही धभकाने रगता है औय ग्जस शाहनवाज़ कशभकश घटॊ ों चरती यहती है। डीएभ, एसएसऩी
को वह फेटे के सभान ऩार यहे हंै, उसी से दयू ी तथा अन्म अधधकायी घामर होते हंै ककॊ तु शाहनवाज़
फनाने को कहता है। धभाांधता कै से हदभागों भंे जहय की फस्ती की यऺा की जाती है, उसकी ऩत्नी को
घोरती है, मह इसका सटीक उदाहयण है। अस्ऩतार ऩहुॊचामा जाता है औय एक नमा जीवन
धयती ऩय आता है। ऩयू ा उऩन्मास धभत के नाभ ऩय
उऩन्मास भें ऐसे प्रसॊग आते हैं जफ अऩने तनजी पै राए गए अॊधववश्वासों, गरत धायणाओॊ, कु यीततमों
स्वाथों के सरए हुए तनजी झगड़ों को दॊगों का रूऩ दे का सकू ्ष्भता से ववश्रेषण कयता है। पॊ तासी का
हदमा जाता है औय फेगुनाह रोग ग्जनका ककसी अद्बतु प्रमोग ऩकॊ ज सफु ीय ने ककमा है औय जफ
वववाद से कोई रेना देना नहीॊ होता, जो अऩनी याभेश्वय जी डीएभ तथा एसएसऩी को पोन रगाते
योजी-योटी की रड़ाई भंे ही भयते-खऩते यहते हंै, इन हंै तो फीच-फीच भंे कबी गाधॊ ीजी उठाते हंै, कबी
दॊगों की चऩेट भें आ जाते हैं, उनके घय-दकु ान ग्जन्ना, कबी कोई अन्म ऐततहाससक ऩात्र, तो कबी
जरा हदए जाते हंै, उनके भासभू फच्चे भाये जाते हैं। ककसी सॊस्था का प्रतततनधध। इन टेरीपोन सॊवादों के
भाध्मभ से रेखक इन ऩात्रों के सॊफधॊ भंे गढ़ी गई
उऩन्मास का भुख्म भोड़ तफ आता है जफ एक भ्रातॊ तमों से बी ऩरयधचत होते हंै तथा तत्कारीन
भाभूरी आऩसी झगड़े को अपवाहों औय झूठ के ऐततहाससक ऩरयदृश्म औय उससे उऩजी वववशताओॊ,
जरयए दॊगे बड़काने के सरए प्रमोग ककमा जाता है। जहटरताओॊ से बी ऩरयधचत होते हंै। स्वाबाववक है
दॊगाई बीड़ फाहय से आ जाती है औय शाहनवाज़ की कक इस पॊ तासी औय टेरीपोन सॊवादों से उऩन्मास
फस्ती भें हभरा कयने को तैमाय है। शहय के डीएभ बी योचक फनता है। महाॊ ग्जन्ना से हुई टेरीपोन
औय एसएसऩी याभेश्वय जी के ववद्माथी यहे हंै, वातात का एक अशॊ देलखए- ‘आऩको शामद भारभू
उनका फहुत सम्भान कयते हैं, इससरए याभेश्वय जी नहीॊ होगा कक भंै सात अगस्त सतंै ारीस को जफ
उन दोनों को फायी-फायी से पोन कयके शाहनवाज़ कयाची ऩहुॊचा तो भनैं े येडडमो राहौय के अपसयों को
की फस्ती के फेगनु ाह रोगों की यऺा के सरए गहु ाय नए फनने वारे ऩाककस्तान के कौभी तयाने मा
कयते यहते हैं। शाहनवाज की ऩत्नी गबातवस्था के याष्रगान के सरए ककसी हहन्दू को तराश कय उससे
अॊततभ छोय ऩय है, प्रसव ऩीड़ा से कयाह यही है, सरखवाने की फात कही थी औय ऩाककस्तान का
ककॊ तु दॊगे के भाहौर भें उसे अस्ऩतार रे जा ऩाना ‘कौभी तयाना ‘ऐ सयज़भीने ऩाक’ ककसी भसु रभान
बी सबॊ व नहीॊ हो ऩा यहा है। याभेश्वय जी के ने नहीॊ फग्कक जगन्नाथ आज़ाद ने सरखा था।’
ववद्माथी यात-बय जागकय शाहनवाज़ की फस्ती को
फचाने के सरए तथा हय तयह की भदद के सरए जुटे ऩकॊ ज सफु ीय का मह उऩन्मास वतभत ान सभम के
हंै। दॊगाई फस्ती के फाहय सड़क की दकु ानों को एक- सरए अत्मतॊ प्रासॊधगक एवॊ ववचायोत्तेजक है तथा
एक कय जरा यहे हंै। ऩुसरस वारे अऩनी र्डमूटी कय अनेक गरत धायणाओॊ का खडॊ न कयता है। ऩॊकज
यहे हंै रेककन फहुत अवप्रम ग्स्थतत न फने, जान- ने ऩूयी तयह तनष्ऩऺता फयतने का प्रमास ककमा है
भार का नुकसान कभ से कभ हो, इसी प्रमास भें औय धभत के नाभ ऩय अऩन-े अऩने स्वाथों के सरए
रगे हैं। फाहय से पोसत भॊगाई गई है। पोसत का घणृ ा का जहय पै राने वारों को फेनकाफ ककमा है।
कभाॊडय बी याभेश्वय जी का छात्र है औय फेहद साये धभों का, सभस्त साहहत्म का, कराओॊ का
खडं -1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वषष 2020) 9
उद्देश्म तो मही है कक भनुष्म फेहतय भनुष्म फने,
सभाज भें सुख-शातॊ त, सभदृ ्धध हो ककन्तु होता
अतसय इसके ववऩयीत है तमोंकक हभ सफ सबन्न-
सबन्न प्रकाय के अऻान, अधॊ ववश्वासों से तघये यहते
हंै औय ऩॊकज सुफीय इस उऩन्मास के भाध्मभ से
अऻान के ऩदे हटाने का एक प्रमास कयते हंै।
रक्ष्भी शंकय व जऩेमी: प्रतततनधध बायतीम कवव के
रूऩ भंे एक दजनत से अधधक देशों भंे कववता ऩाठ।
वने जे ुएरा भे ववश्व कववता भहोत्सव भंे बायत से
एकभात्र कवव। रदॊ न भे अॊतययाष्रीम वातामन
कववता सम्भान सहहत दजनत ों सम्भान।
ऩंकज सुफीय: उऩन्मासकाय,
कहानीकाय औय कवव, ‘मे वो शहय
तो नहीॊ’ के सरए 2010 भें बायतीम सभीऺक: भीन फदु ्धधय ज
ऩ नी को सफ म द थ
ऻानऩीठ द्वाया नवरेखन ऩुयस्काय रेखखक : अन शभक
य जकभर प्रक शन, 2019
से सम्भातनत।
हहदॊ ी कववता के भानधचत्र भंे
वरै ी ऑप वर्डतस अॊतयातष्रीम साहहत्म एवॊ अनासभका जी का अऩना ववशषे
करा भहोत्सव - 2019 भंे हहदॊ ी कफतशन प्रततग्ष्ठत भुकाभ है ग्जसभें उन्होनें
श्ेणी भंे ऩुयस्कृ त कववता को स्त्रीत्व के सबी आमाभों
ऩागरखाना को तनजी औय साभाग्जक मातनाओॊ
रेखक: ऻान चतुवदे ी से जोड़ते हुए अॊतवसत ्तु, बाषा औय सशकऩ का नमा
प्रकाशक: याजकभर प्रकाशन धयातर तनसभतत ककमा है। कववता के सरमे अनेक
प्रभखु ऩयु स्कायों से सम्भातनत होने के साथ कथा
10 खडं -1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वषष 2020) साहहत्म, आरोचना, ससॊ ्भयण, अनुवाद औय एक
स्त्री-धचतॊ क के रूऩ भंे ऩग्ब्रक इॊटरेतचअु र के रूऩ
भंे, नायीवादी ववभशत के ऺेत्र भें सकक्रम यहने औय
अगॊ ्रेजी साहहत्म के अध्माऩन से रेकय अनासभका
जी का कामत परक फहुत व्माऩक है, ऩयॊतु सफसे
ऩहरे औय सफसे फाद भें वे एक कवव ही हंै। उनके
कववता-सगॊ ्रह – गरत ऩते की
धचट्ठी, फीजाऺय, सभम के शहय
भें, अनषु ्टु ऩ, कववता भंे औयत, खयु दयी
हथेसरमाॉ, दफू -धान, टोकयी भें हदगॊत जसै ी प्रभखु
यचनाएॉ कोभर सॊवदे नाओॊ के साथ वववके शीर दृग्ष्ट
के करात्भक समॊ ोजन के कायण हहदॊ ी कववता भें
अरग से ऩहचानी जाती हैं। स्त्री ववभशत के
सभकारीन दौय के सघॊ षत का धचत्रण तो अरग-
अरग रूऩ से आज कववता भंे हो ही यहा है रेककन अऩनी हो सके । स्त्री अनबु वों की मातनाओॊ, दॊश
हहसॊ क औय क्रू य मथाथत भें अनासभका जी की कववता औय सॊघषत को वह अऩनी कववता भंे ऩूयी सच्चाई
सभाज औय सगृ ्ष्ट भें प्रेभ औय करुणा को फचाए औय तीव्रता के साथ व्मतत कयती हंै।
यखने की अनवयत मात्रा है। इस प्रमास भंे वे
बायतीम सभाज भंे ऩरु ुष सत्ता औय ‘ऩानी को सफ माद था ‘सॊग्रह की कववताएॉ स्त्री की
वचसत ्ववादी, साभतॊ ी सॊयचना से जूझ यही असखॊ ्म साझी दतु नमा की, सगेऩन की घनी फातचीत जैसी
ग्स्त्रमों के दखु औय ऩीड़ा का सयरीकयण कबी नहीॊ कववताएॉ हंै ग्जनभंे अद्बुत आत्भीमता औय जीवतॊ
कयती जो उनकी कववता की ऩहचान है। प्रख्मात सॊवाद है जो सीधे ऩाठकों तक सॊप्रेवषत होता है।
आरोचक डॉ. भैनेजय ऩाॊडमे के अनुसाय- ‘बायतीम ग्स्त्रमों का अऩना सभम इनभें भद्धभ रेककन ग्स्थय
सभाज औय जनजीवन भंे जो घहटत हो यहा है औय स्वय भंे अऩने द:ु ख-ददत, कटु अनबु व औय उम्भीदंे
इस घहटत होने की प्रकक्रमा भंे जो कु छ गभु हो यहा फोरता है ऩयॊतु इनभें ककसी बी तयह का काव्म
है, अनासभका की कववता भें उसकी प्रबावी ऩहचान चभत्काय ऩैदा कयने का न कोई आग्रह है न इन
औय असबव्मग्तत देखने को सभरती है।’ इसी कववताओॊ का उद्देश्म। अऩने सहज सवॊ दे नात्भक
यचनात्भक ऩथ ऩय तनयॊतय सजृ न मात्रा भें असबप्राम भंे कवतमत्री की दृग्ष्ट उन सभवते ऩीड़ाओॊ
अनासभका जी का नवीनतभ कववता-सगॊ ्रह ‘ऩानी को को सॊफोधधत कयती है जो स्त्री के साथ-साथ
सफ माद था’ इसी वषत याजकभर प्रकाशन से उऩेक्षऺत, गभु नाभ, वधॊ चत हासशमे के रोगों की उन
प्रकासशत हो कय आना सभकारीन कववता भें औय बीतयी-फाहयी मत्रॊणाओॊ से बी गजु यती है जो उनके
ऩाठकों के सरमे एक नमी साथकत उऩरग्ब्ध है। जीवन भें इस ऩाय से उस ऩाय तक पै री हैं। मह
एक स्त्री यचनाकाय होकय सभाज के एक ग्जम्भेदाय
अनासभका एक अग्स्तत्व के रूऩ भंे स्त्री होने को नागरयक के रूऩ भें अऩने ऩरयवशे को वास्तववकता
कबी नकायाती नहीॊ फग्कक गरयभा के साथ स्त्री होने भें गढ़ने का सॊवदे नशीर साथकत प्रमास है। स्त्री को
को स्वीकायती हैं तमोंकक एक यचनाकाय के रूऩ भें भात्र देह ववभशत तक सीसभत न कयके सभाज भें
स्त्री का व्मग्ततत्व अऩनी अग्स्भता के होने को उसकी अग्स्भता को ऩहचानने का फोध इन
सबी बेद-प्रबेदों के फीच से तनकरकय गुजयकय कववताओॊ की सवॊ दे ना को तयरता, सयोकायों को
अऩनी ऩहचान ऩाता है औय कपय एक ववसशष्ट गहनता, सजनत ा को उवयत ता औय सॊघषत को स्वप्नों
भनोववऻान को यचता है ग्जसे सभग्रता से अनुबव का सौंदमत प्रदान कयता है। महाॉ स्त्री क्षऺततज का
ककए बफना न तो कोई अहसास होता है न जो ववस्ताय है वह उनके दातमत्व औय धचतॊ ाओॊ का
ववचाय, न ककऩना न अतॊदृगत ्ष्ट। इससरए एक व्माऩक स्वरूऩ है औय वणत, जातत, धभत, वगत से ऩये
कववता भंे अनासभका जी ने कहा था- एक साझा अनुबव है, अटू ट सॊफधॊ है जहाॉ जीवन
ठोस सच है औय जीवन से स्ऩॊहदत है।
रोग दयू जा यहे हंै
औय फढ़ यहा है बायतीम ग्स्त्रमों के जीवन सघॊ ष,त हास-ऩरयहास औय
भेये आसऩास का स्ऩेस! गीत-अनषु ्ठान, यीतत-रयवाज, साभूहहक कक्रमा-कराऩों
इस स्ऩेस का अनवु ाद के जरयमे ऩीड़ा को सह ऩाने की उनकी ऩयॊऩयागत
ववस्ताय नहीॊ अतॊ रयऺ करूॊ गी भंै मुग्ततहीन मगु ्तत के व्माऩक ऩरयप्रेक्ष्म भंे देखने ऩय
तमोंकक इसभें भनंै े उड़नतश्तयी छोड़ यखी है। अनासभका की कववताओॊ के नमे अथत खुरते हैं।
ग्जन तक कववता को देखने-ऩयखने के रूढ़ ढाचॊ े को
अनासभका स्त्री के जीवन को, घय को नकायती नहीॊ तोड़कय ही ऩहुॉचा जा सकता है –
हैं फग्कक अऩनी बाषा से उसे नमी ऩहचान देना
चाहती हैं। वचसत ्व की साभाग्जक व्मवस्था से दफी, अफ कयधतनमाॉ नहीॊ हंै
भुतत होने की सहज आकाऺॊ ा के सरए इस अनुवाद कभय अफ कसी है इयादों से
की बाषा जफ वे ईजाद कय रेती हैं तो उन्हंे स्त्री औय औयतों ने आवाज़ उठा री है
की वास्तववक जभीन सभर जाती है जो उसकी दाहदमों की फात भानते हुए
खडं -1, अकं -1 (प्रवशे कं : वषष 2020) 11
कक ऐसा बी धीये तमा फोरना कयती हंै तमोंकक उनके अनुसाय अनबु व फाटॊ ने की
आऩ फोरें कभयधनी सनु े! चीज़ ही है। दतु नमा भें सफ कु छ बी फाटॊ ने के सरमे
फोरें, भुहॉ खोरें जया डटकय ही होता है अदॊ य फचा कय यखने के सरमे नहीॊ। जो
इतनी फड़ी तो नहीॊ है न दतु नमा की कोई बी जरे भानवीम अनबु व, सुख-दखु , तकरीप, ववडफॊ नाएॉ
कक आदभी की आफादी सभा जाए हभने आत्भसात की वे साझा कयने के सरए ही हैं।
औय जो सभा बी गई तो इससरए उनकी कववता एक वैमग्ततक यचना न
वहीॊ जेर के बीतय झन-झन-झन होकय सभचू े सभाज की तयप से एक साभहू हक
फोरंेगी हथकडड़माॉ प्रमास फन जाती है। अनासभका जी अऩनी
ऐसे जसै े फोरती थीॊ कभयधतनमाॉ कववताओॊ भें उन तभाभ बेद-बावों की सॊयचनाओॊ
सभर-जुरकय भूसर चराते हुए। को तोड़ती हंै जो वचसत ्व ऩूणत सभाज भंे स्त्री के
सरए तनसभतत की गई हंै। सभ्मातगत इततहास भंे वे
ऩयॊऩया औय ससॊ ्कृ तत भंे अतॊ तनहत हत फड़ी-फजुगत स्त्री औय ऩरु ुष के आऩसी ववऩममत ऩय अऩना ध्मान
ग्स्त्रमों, दाहदमों-नातनमों, भाॊ की कथाओॊ औय उनके यखती हंै औय स्त्री-प्रश्नों को उठाने के सरए प्रदत्त
भहु ावयों-कहावतों भंे तछऩे कार-ससद्ध सत्म का औय तनधारत यत शब्द सॊयचना को फदरती हैं। उनकी
अन्वेषण अनासभका जी अऩने भौसरक तयीके औय असबव्मग्तत भें जीवन से जुड़े अनके शब्द अऩने
शैरी भें हभेशा कयती आई हंै। मे कववताएॉ बी रोक नमे सॊदबों के साथ आते हंै औय प्रतीकात्भक बफफॊ ों
औय जन-श्तु तमों की अनुबव-सऩॊ न्न थाती भंे से सजी आत्भीम बाषा भें व्मजॊ ना के नमे अथत
जीवन-सत्म की औय आत्भ-सत्म की अनके धायाओॊ प्रस्पु हटत होते हंै। उनकी सॊवेदना का पै राव उन
से अऩने सयोकायों के भतॊ व्म को सीचॊ ती औय ऩुष्ट वॊधचत जनों तक बी है ग्जसभंे एक स्त्री की करुणा
कयती चरती हंै। स्त्री तमोंकक अनासभका जी के सहज रूऩ से जुड़ जाती है इससरमे रोक-बाषा के
सरए कोई जातत ववशेष नहीॊ है, फग्कक एक कंे रीम शब्द सामास नहीॊ फग्कक उनके अनबु व का
तत्व है जो प्रालण भात्र के अग्स्तत्व भें भौजूद यहता अतनवामत हहस्सा फन कय आते हैं। ‘क्षऺतत
है। वह भनषु ्म के रूऩ भें ऩरु ुष भें बी है, ऩेड़ भंे जरऩावक’ कववता भंे मह गहन सॊवदे ना इसी तयह
है, ऩानी भें बी है जो सतत गततशीर है। मह स्त्री सॊप्रेवषत होती है-
तत्व ही जीव को जन्भ देता है जीवन बी औय उसे
साथकत कयता है। इस सॊग्रह की अनूठी कववताएॉ कहते हैं वैद्मयाज
कवतमत्री के सरए उसी तत्व को कंे र भंे राने का वैसे तो ऩाचॉ तत्वों की फनी है मे कामा
अप्रततभ दातमत्व है तभाभ चनु ौततमों औय रेककन हय भन ऩय होती है अरग छामा
प्रततकू रताओॊ के फीच- ककसी एक भहातत्व की।
जो फातंे भझु को चबु जाती हंै साधायण जीवन की असाधायण ग्स्थततमाॉ, त्रासद
भैं उनकी सुई फना रेती हूॉ ववडफॊ नाएॉ इन कववताओॊ भंे बफम्फों, चरयत्रों, दृश्मों
चुबी हुई फातों की ही सुई से भनंै े औय सॊवादों का एक सजीव सॊसाय उऩग्स्थत कय
टाकॉ ें हंै पू र सबी धयती ऩय। देती हैं कक ऩाठक इन स्भतृ तमों को उसी अतॊ यॊग
भन:ग्स्थतत के साथ ही सवॊ दे ना भंे दज़त कय रेता
इन कववताओॊ भंे स्त्री के ववववधात्भक ससॊ ाय को है। शहय की भध्मवगीम स्त्री की ऩीड़ा हो मा गाॉव-
एक नमे ससये से गढ़ने की उम्भीद है औय इसके कस्फे की तनधनत स्त्री की अतॊ व्मथत ा, उसे सहज औय
सरए अनासभका जी के ऩास एक सऩॊ न्न ऩयतदाय आत्भीम रूऩ से उके यने का कौशर अनासभका जी
बाषा है ग्जसभंे जातीम स्भतृ तमाॉ हंै, जो तनजी बी हैं की काव्मात्भक ववसशष्टता है। भानवीम सॊफधों भंे
औय सावबत ौभ बी, उस बाषा भंे जीवन औय सभाज आते फदराव औय ऩरयवशे की चनु ौततमों से, ऩरयवाय
को देखने का एक फड़ा ववज़न बी है। एक स्त्री औय सभाज की भमादत ाओॊ से जूझती फेटी, फहन के
यचनाकाय के रूऩ भंे उनभें जो प्रेभ औय उम्भीद है रूऩ भें स्त्री के अग्स्तत्व का सॊघषत अफ ज्जमादा
उसे वे अऩनी कववताओॊ भंे जीवनानुबवों भंे व्मतत
12 खंड-1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वषष 2020)
जहटर औय फहुआमाभी है। ऩयॊऩया औय आधुतनकता कु भायी चौहान, भीयाफाई, घनानॊद की सुजान से
के इस ववयोधाबास भें अनासभका की कववताएॉ
सभथक औय रोकश्तु तमों को बी नमे ससये से स्त्री फेगभ अख्तय तक औय गावॉ -कस्फे, शहय से रेकय
ऩऺ भें ऩुनभकूत माॊककत कयती हंै ग्जनभंे आज का
मथाथत सशद्दत से उबय कय आता है। ऑनय झनु गी-झोऩडड़मों, गरी-
ककसरगॊ औय तथाकधथत सम्भान के नाभ ऩय
उबयती जातीम खाऩ-ससॊ ्कृ तत ऩय उनकी फायीक भोहकरों, पु टऩाथों, अनाथारमों, सशववयों, ववस्थावऩत
नज़य स्त्री-अग्स्भता ऩय हुए शोषण के नमे आघातों
को देखती है जैसे ‘प्रेभ के सरए पासॉ ी’ कववता भें- फग्स्तमों तक से खते -खसरहान, भजदयू ी, घयेरू औय
भीया यानी, तुभ तो कपय बी खशु ककस्भत थीॊ अन्म फेगाय के कामों से जडु ़ी श्सभक सवसत ाधायण
खाऩ ऩॊचामत के पै सरे
तुम्हाये सगों ने तो नहीॊ ककमे। ग्स्त्रमाॉ, इन कववताओॊ भंे जीवतॊ हो उठती हैं।
‘याणाजी ने बेजा ववष का प्मारा’-
कह ऩाना कपय बी आसान था ऩयम्ऩया से रूहढ़ को अरग कयती हुई नमी दृग्ष्ट से
‘बमै ा ने बेजा’- मे कहते हुए जीब कटती।
फचऩन की स्भतृ तमाॉ कशभकश भचातीॊ सचते न ग्स्त्रमाॊ ग्जनके जीवन का सॊघषत अॊतहीन है
औय खड़े यहते ठगे हुए याह योककय
हॉसकय तभु मही सोचती- औय भगु ्तत का यास्ता इतना आसान नहीॊ। भेये
बैमा को इस फाय भेया ही
आखटे कयने की सूझी! भहु करे की याबफमा पकीय, स्त्री सुफोधधनी: उत्तय
अनासभका जी के सरए स्त्री-भगु ्तत का ववयाट सॊदबत कथा, अभयपर, रूसी औयतंे, तनगभफोध ऩय
भूरत: सभानता, आत्भसम्भान न्माम औय भानवीम
गरयभा के साथ अधधक सहज प्रेभऩूणत सफॊ ॊधों के भाभी, टैगोय को भेया प्रेभऩत्र, कस्फे भंे शेतसवऩमय
सरए सभाज भें उसके स्वतॊत्र अग्स्तत्व की स्थाऩना
के सरमे है। स्त्री भुग्तत के मथाथत का मूटोवऩमा सशऺक, चैन की सासॉ , हनजू हदकरी दयू
सभचू ी भानवता के सभ्माताभूरक ववकास के सरमे
वॊधचतों, शोवषतों औय ऩीडड़त जनों के व्माऩक सॊघषत अस्त, प्रेटपॉभत ऩय ग्राभवधुएॉ, ववस्थाऩन फस्ती की
भें हहस्सेदायी तनबाने से ही सबॊ व है। इससरमे
उनकी कववता-बाषा फहुकंे हरत औय सॊवादधभी है कु छ ऩुयभज़ाक ऩद्सभनी नातमकाएॉ, गामत्रीकौर:
औय उसका आधाय रोकताबॊ त्रक है। मह साझा स्त्री-
ववभशत स्त्री को दैहहक-भानससक-आधथकत -सासॊ ्कृ ततक खोरी नम्फय 55, कफाडड़न: खोरी नम्फय
प्रताड़नाओॊ से भतु त कयने का तनयतयॊ प्रमास है
ग्जसभंे अन्माम औय क्रू यता के सभानानॊतय करुणा 261, ब्मटू ी ककचय: खोरी नफॊ य 65, याबफमा
औय न्माम दृग्ष्ट है। इस सॊग्रह की कववताओॊ भें
साधायण स्त्री-छववमों का ववववध ससॊ ाय है जो अनवय : खोरी नॊफय 73, डॉरी सयापत : खोरी नफॊ य
फहुयॊगी-फहुआमाभी है। साधायण जीवन की
असाधायणता ग्जसभंे ग्ज़न्दगी तयह-तयह के 88, ऩासवड:त तनबमत ा की अम्भा: खोरी नॊफय
प्रबावों, यॊग-रूऩ, सुख-दखु , ववडफॊ नाओॊ औय फाधाओॊ
को झरे ते हुए ततर-ततर काटी जाती है। 105, नसीहत जसै ी सशतत कववताएॉ ग्जनभें जातत
इततहास की नातमकाओॊ से भहादेवी वभा,त सबु रा
औय भजहफ से ऩये प्रत्मेक स्त्री का दखु साझा है।
स्त्रीवाद की कठोय ज़भीन ऩय खड़े होकय अनासभका
जी आज के ऩरयवेश भें स्त्री के उत्ऩीड़न औय स्त्री-
सभाज के त्रासद मथाथत के प्रतत बी ऩयू ी तयह
सजग औय सचते हैं। फाज़ायवादी सभ्मता व
उऩबोगवादी ससॊ ्कृ तत भंे स्त्री का सघॊ षत अफ अधधक
कहठन औय चनु ौतीऩूणत हुआ है ग्जसभंे
अत्माचाय, मौन-हहसॊ ा, अन्माम औय शोषण के नमे-
नमे तयीकों से टकयाना बी तनमतत है। इन
कववताओॊ भंे सभसाभतमक ऩरयवशे की तभाभ
अभानवीम औय तनभभत ववसगॊ ततमों के प्रतत धचतॊ ाएॉ
बी शासभर हैं. आधुतनक औय ववकससत कहे जाने
वारे सभाज भें बी स्त्री के दखु , सॊत्रास औय मातना
की ऩयतें ऩौरुषवादी व्मवस्था की भानससकता भें
सभाहहत हैं। इस सॊग्रह की ववसशष्ट रफॊ ी कववता-
‘एक ठो शहय था - औय एक थी तनबमत ा’ इस ऩूयी
व्मवस्था के ववरुद्ध स्त्री के सशतत औय प्रखय
प्रततयोध को दज़त कयती है। कु छ सार ऩहरे हदकरी
भंे हदसॊफय की एक यात भें घहटत तनबमत ा के
जघन्म काडॊ औय मौन हहसॊ ा के अभानवीम फफयत
खडं -1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वषष 2020) 13
सदॊ बों भें रेलखका स्त्री-अग्स्तत्व के अनेक ऩहरओु ॊ वऩतसृ त्तात्भक व्मवस्था के ववरुद्ध है ग्जसभें सफकी
को भासभकत ता से उबायती हंै। कई उऩ-खॊडो भंे व्माऩक बागीदायी होनी चाहहए।
ववबाग्जत मह कववता ववस्थाऩन फग्स्तमों भें यहने
वारी कई ग्स्त्रमों के जीवन औय अॊतभनत से गुजयती अनासभका जी की कववता स्त्री-ऩऺ भंे फोरने वारी
हुई तनबमत ा तक ऩहुॉचती है औय अऩने तयीके से कववता है जो आधी आफादी के फुतनमादी अधधकायों
अनके सफॊधों औय सदॊ बों के साथ इस घटना के औय अग्स्तत्व का बी फड़ा प्रश्न है ग्जससे उनकी
तनहहताथों की व्माख्मा कयती है। हदकरी जो ककतनी सवॊ ेदना औय भानवीम चते ना कबी अछू ती नहीॊ यह
फाय फसी औय ककतनी फाय उजड़ी भानों इसकी ऩाती। सभम के तनयॊतय फदराव की साभाग्जक
गवाह फन जाती है। तनबमत ा की भाॉ की उससे जुड़ी प्रकक्रमा भंे स्त्री-मथाथत की सभसाभतमक चुनौततमाॉ-
अनके स्भतृ तमाॉ, एक वषत के अॊतयार भंे कई भौसभों जहटरताएॉ इन कववताओॊ के कें र भे हंै जो स्त्री की
से गुजयते हुए स्त्री होने की त्रासदी को अऩनी फेटी आत्भुनुबतू त का बोगा हुआ मथाथत है। मे कववताएॉ
भंे औय तनयॊतय अऩनी ऩीड़ा भंे झरे ते हुए, न्माम स्त्री को सदैव सभाज द्वाया ऩरयधध ऩय यखने की
की अतॊ हीन प्रतीऺा भें सकॊ कऩ के साथ इस रड़ाई ऩयॊऩयागत सोच के प्रततयोध भें अनथक प्रमास हंै
को रड़ते हुए उम्भीद को वह स्थधगत नहीॊ कयती ग्जसके सरए एक नई स्त्री-बाषा का साथकत जीवतॊ
जो एक स्त्री के साथ भानवता का साभूहहक सघॊ षत सशकऩ बी इनकी ववसशष्टता है। मह स्त्री के साझे
फन जाती है- स्वप्नों औय आकाॊऺाओॊ से औय अऩने सासॊ ्कृ ततक
भकू मों से जुड़ा होकय बी आधतु नक ववभशत है जो
दतु नमा के साझा अराव भें स्त्री की वमै ग्ततक भगु ्तत को भानव-भगु ्तत के
धचगॊ ारयमों की बफसात ही बरा तमा ववयाट सदॊ बों से जोड़ता है –
आलखय तो जीवन है
एक भशार मात्रा! “घय के ऩचास काभ तनफटाकय
भातबृ ाषा भें अखफाय फाॉचती हैं जो-
‘ऩानी को सफ माद था’ सगॊ ्रह की कववताओॊ भंे उन भासभमों, भौससमों, चाधचमों औय फआु ओॊ की
अनासभका जी की काव्म-सॊवदे ना औय स्त्री- याष्रीम चते ना
आकाऺाओॊ का ववस्ताय स्त्री-जीवन से जडु ़े अनेक गाॉधी औय टैगोय की
ऩऺों तक जाता है। स्त्री-भगु ्तत के सदॊ बत भंे मे ऩासरता है
कववताएॉ फने-फनाए ववभशत के ढाचॊ े को तोड़ती हैं तगॊ दामयों भंे वह नहीॊ सोचती
औय स्त्रीवाद का नमा ऩाठ तैमाय कयती हंै। उनके औय उड़ी जाती है ऩॊच प्राणों-सी
सयोकाय सॊवेदनात्भक हदशा भंे अग्रसय होकय बी जात औय भज़हफ के
मथाथत के प्रतत सजग वैचारयक वववेक ऩय आधारयत फाड़ों के ऩाय!”
हंै। स्त्री के आत्भसम्भान का प्रश्न औय उसकी
स्वततॊ ्र वैचारयक जभीन की तराश इस सभम की भीन फुद्धधय ज : ऐसोससएट प्रोपे सय, हहदॊ ी ववबाग,
कववता की कें रीम धचतॊ ा है जो साभाग्जक व्मवस्था अहदतत कॉरेज, हदकरी ववश्वववद्मारम। सबी प्रभखु
भें अऩनी ऩहचान औय गरयभा के सरए सघॊ षशत ीर ऩत्र-ऩबत्रकाओॊ भें कववताएॊ, आरोचनात्भक रेख,
है। जहाॉ स्त्री को अऩने अधधकायों के सरए जागरूक सभीऺाएॊ प्रकासशत।
होने के साथ ऩयऩयॊ ागत मतॊ ्रणाओॊ के दामये से फाहय
आने की फेचैनी औय उसके सरए तम की गई अन शभक : हदकरी ववश्वववद्मारम,
त्रासहदमों का ववयोध-स्वय उबय कय आता है औय हदकरी भंे अॊग्रेजी ववबाग भें एसोससएट
सहदमों से चरे आ यहे सबी तयह के उत्ऩीड़न के प्रोपे सय। कवतमत्री, उऩन्मासकाय एवॊ
लखराप उनका सजॊ ़ीदगी से प्रततयोध बी व्मतत अनवु ादक। उनकी यचनाओॊ का अनेक
होता है। स्त्री-अग्स्भता के ऩऺ भें वस्तुत: मह स्वय बाषाओॊ भंे अनुवाद हो चुका है। अनेक
ऩूये सभाज की साभतॊ ी भानससकता औय याष्रीम ऩुयस्कायों से सम्भातनत।
14 खंड-1, अकं -1 (प्रवेश कं : वषष 2020)
ह दं ी नॉन-फ़िक्शन
समीक्षक: सरफर ज ुसनै ख़ न फे ल होने के ललए, ‘अलिशाप’ के अलावा, अन्यान्य
अथश्री प्रय ग कथ कारर् िी उत्तरदाई ठहराए गए-पिाण ‘बहुतै टाइट’
लेखक: लललत मो न रय ल आया था। ‘इब्राहहम लोदी की अम्मा ने ककसे िहर
ज्ञ न गंग , 2019 हदया था।’ “हमको का मालूम िैया! बाबर हुमायूँ के
पलंग के तीन िक्कर खाके , बीमारी से तनकरे थे।
लललत मोहन रयाल द्वारा रचित कु छ िी कहो, एतना घलु सके ‘फ़ै क्टवा’ नहीं पूछना
‘अथश्री प्रयाग कथा’ पसु ्तक का िाहहए। ‘कांसेप्टवा’ तक बात रहे, तो ठीकै रहता
प्रकाशन 2019 मंे हुआ। यह एक है।“
उपन्यास है जिसमें रयाल िी ने
वास्तववक प्रयाग (इलाहाबाद) के इसके साथ-साथ कु छ परीक्षाचथयण ों द्वारा प्रश्न पत्र
एक अशं का बख़ूबी वर्नण ककया है िो 90 (नब्बे) के नाम पर ही हटप्पर्ी शुरू कर दी िाती है। िसै े-
के दशक से लेकर आि के काल तक वसै े ही उधर रर्वविय खफा थे। ‘सामान्य अध्ययन’ को
प्रदलशणत ककया है िैसा कक ये वास्तव में है। प्रयाग लेकर। कह रहे थे, “इस परिे का नाम तो
हहन्दी माध्यम के छात्रों के ललए लोक सेवा आयोग असामान्य अध्ययन होना िाहहए। ई िनरल है तो
द्वारा कराई िाने वाली परीक्षाओं के ललए एक कफर स्पेलसकफक क्या होता है िी। पछू े हंै कक
उपयकु ्त िगह मानी िाती है जिसमें संघ लोक चगरचगटान, एक ही समय मंे दो हदशाओं मंे देख
सेवा आयोग एवं राज्य लोक सेवा आयोग दोनों सकता है। ई हमका िानी।ं ई तो चगरचगटवा ही
शालमल हंै। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद ऐसा बता सकता है। मानव नते ्र का कै मरा, ककतने
प्रतीत होता है िैसे स्वयं रयाल िी ने इस िीवन मेगावपक्सल का होता है। सामान्य अध्ययन मंे
को जिया हो क्योंकक परीक्षा की तैयारी करने वाले अइसा सवाल पछू ा िाता है का?”
परीक्षाचथयण ों द्वारा प्रत्येक िरर् पर ककए िाने वाले
कायण का बखबू ी वर्नण है कक परीक्षाथी की प्रततकिया इसके साथ-साथ परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद के
प्रारंलिक परीक्षा के पवू ण अथवा उपरातं कै सी होती संवेग एवं मजस्तष्क में ववषय को लेकर िल रही
है। रयाल िी ने इस अनुच्छे द में अपनी उत्कृ ष्ट िद्दो-िहेद को ऐसे प्रदलशतण ककया गया है िसै े कक
प्रततिा को दशायण ा है- वो घटना स्वयं या तो पाठक के साथ हो रही है या
कफर पाठक के सामने हो रही है। तदपु रांत
व्यजक्तत्व परीक्षर् से सबं जन्धत मजस्तष्क में िल
रही उथल-पुथल एवं उत्तीर्ण अथवा अनुत्तीर्ण होने के
बाद की मनोदशा को प्रकट ककया गया है।
सरफर ज ुसनै ख़ न: साहहत्य लेखन में अलिरुचि।
वतमण ान में लाल बहादरु शास्त्री राष्रीय प्रशासन
अकादमी में हहन्दी अनदु ेशक के पद पर आसीन।
स्काउट्स में राष्रपतत पदक से सम्मातनत।
लललत मो न रय ल: खड़कमाफी की
स्मतृ तयों से (2018), अथश्री प्रयाग
कथा (2019) प्रकालशत और िाकरी
ितरु ंग (आगामी), वतमण ान मंे गन्ना
आयकु ्त, उत्तराखंड के पद पर आसीन।
15
खंड-1, अकं -1 (प्रवेश कं : वर्ष 2020)
समीक्षक: सुभ र् चन्द्र कु शव उपतनवेश से अलशक्षक्षत मिदरू ों को ठे का मिदरू ों के
कु ली ल इन्द्स रूप मंे ले िाने की योिना बनाई। दलाल (अरकाटी)
लेखक: प्रवीण कु म र झ और ठे के दारों ने अपना िाल ब्रबछाया। गांवों के
व णी प्रक शन, 2019 गरीब और िखू े लोगों को िरमा कर रेनों मंे बैठाया
और कफर कलकत्ता या मद्रास िसै े दसू रे डडपो पर
दतु नया में दास प्रथा के अवशषे िब पहुंिा हदया। अलशक्षक्षत लोगों को कतई पता नहीं
जिंदा थे तिी हहन्द महासागर के था कक िहां उन्हंे ले िाया िा रहा है, वह दसू रा
ररयूतनयन द्वीप की ओर 1826 में मुपक है। दरू है और वहां से लौट आना आसान
िारतीय मिदरू ों को ललए एक नहीं है।
िहाि बढ़ िला था। िखू ने
अपनी धरती, गांव, घर, बाग-बगीिों, हाट-बािारों, मिदरू ों के िीवन मंे एक बेबसी थी। स्वप्नहीन
ररश्त-े नातों, सब को अनिाने में, सदा-सदा के ललए समाि से वे थे, और उन्हंे सनु हरा स्वप्न ररझा रहा
त्यागते हुए ववस्थापन को स्वीकार ककया था। था। बस क्या था, िूख लमटाने के वास्ते डडपो मंे
औपतनवले शक सत्ता ने अपने गुलाम राष्र के अज्ञानी िमा होते रहे। वहां बाहर िाने की औपिाररकताएं
मिदरू ों को उनकी िड़ों से उखाड़, बेबसी की आधं ी एक-डढ़े माह में परू ा होतीं और कफर उन्हंे िहाि
में, महीनों की िानलेवा यात्रा के बाद, सुदरू पर बैठा हदया िाता। महीनों की कष्टसाध्य समदु ्री
उपतनवशे ों पर ले िा पटका था। िो रास्ते में मर- यात्रा की िानकारी न थी। होती िी कै से? जिस
खप गये, मार हदये गये या समदु ्र में कू दे या फंे क समाि को छोड़ वे आगे तनकल रहे थे वहां समदु ्री
हदये गये, उनके आंसू आि िी खारे समदु ्र मंे यात्रा ही तनवषद्ध थी। कफर िी िारतीय समाि की
घुललमल, दतु नया के तटों से टकरा रहे हंै। उसमंे ववषमता, िूख, गरीबी, िाततवाद, छु आछू त िैसी
गआु ना को िाते िहाि से कू दी िगवान दी के बरु ाइयों ने उन्हंे िोखखम उठाने को मिबूर ककया।
अजस्थपंिर की गंध िी है। पररर्ाम यह हुआ कक िारतीय मिदरू ों का फै लाव
साउथ अफ्रीका, के न्या, तंिातनया, मोिाबं ्रबक,
दासप्रथा की समाजप्त के बाद, गोरों के ललए मेडागास्कर, िांब्रबया, िंिीबार, यगु ांडा, मलावी,
वैकजपपक दास प्रथा का नया ससं ्करर् था, ठे का सेशपस, मारीशस, हरतनडाड, टोबगै ो, गुयाना और
मिदरू ी व्यवस्था। ब्रब्रहटश िारत सरकार ने अपने सूरीनाम तक हुआ।
उपतनवेशों के फल और िाय के बगानों, गन्ने के
खेतों में काम करने के ललए, िारत िैसे गरीब मिदरू ों से एक कागि पर अगं ठू ा लगवा ललया
िाता जिसे एग्रीमेंट कहा िाता। इस प्रकार कारं ैक्ट
16 खडं -1, अकं -1 (प्रवशे कं : वर्ष 2020) या एग्रीमेंट का अनपढ़ मिदरू ों ने अपने उच्िारर्
से खदु को कन्त्राकी या चगरलमट बना ललया। गाधं ी
िी ने उस समदु ाय को पहिान हदलाने के ललए
चगरलमहटया शब्द को स्वीकार ककया और खुद को
पहला चगरलमहटया कहा। समदु ्री िहाि से िाने के
कारर् उन्होंने खदु को ‘िहािी’ िी कहा। इस
प्रकार कन्त्राकी, िहािी या चगरलमहटया उत्तर प्रदेश,
ब्रबहार, पजश्िम बगं ाल, झारखडं , मध्य प्रदेश,
तलमलनाडु और पांडडिरे ी से िाने वाले मिदरू थ।े
उन मिदरू ों की गाथा का पनु पाणठ बहुत कम हुआ
है। उनके हाड़-मांस से ररसते रक्तों से सने इततहास
के पषृ ्ठों का पाठ या हवस की लशकार हुईं
महहलाओं की तस्वीरंे हमारे मजस्तष्क के पटल पर बहुत कु छ दफ्न हो िकु ा है मगर प्रवीर् कु मार झा
कम हदखाईं दी हंै। की ककताब उस इततहास की एक बानगी प्रस्ततु
करती है।
उपरोक्त कारुखर्क कथा का बयान करती, हाल ही
में प्रवीर् कु मार झा की एक महत्वपूर्ण ककताब िो गये थे, वे बेबस, मिबूर और सताये हुए लोग
आयी है- ‘कु ली लाइन्स’। इस ककताब में लेखक ने थे। िखू , उपेक्षा, िलू महीनता, िाततवाद, हहसं ा आहद
दो सौ वषण पवू ण से लेकर बीसवीं सदी के प्रारम्ि वे बहुत से कारर् थे जिन्होंने उन्हंे अपनी धरती
तक, तमाम अनिान द्वीपों पर ढके ल हदये गये को त्यागने को मिबरू ककया। ज्यादातर तनम्न
िारतीय गरीबों की कथा-व्यथा को हमारे सामने िातत के थे और उन्हें जिन सपनों को हदखाकर
रखते हुए कई मालमकण प्रसगं ों को उठाया है। उन्होंने ववस्थावपत ककया गया था, वे हकीकत मंे थे नहीं।
अरकाहटयों के बनु े िाल, िहािी सरदारों की एक धोखा, ठगी और शोषर् का तानाबाना बुनने
हैवातनयत और महहलाओं के शोषर् दर शोषर् की वालों ने बेबसों को बेबसी मंे मारा। देश की दासता
वेदना को हहन्दी के पाठकों के सामने रखते हुए का फायदा उठाते हुए िम कर सताया और
एक ववस्मतृ इततहास से साक्षात्कार कराया है अमानवीयता का पररिय हदया। पता नहीं ककतने
जिसमंे गुयाना गयी िानकी की प्रेम कथा है तो मारे गये, ककतनों के आंसू समदु ्र में और ककतनों के
महारानी की अपूर्ण यात्रा का ददण तछपा है। अनिान धरती में िा लमले, कहा नहीं िा सकता।
ररयूतनयन द्वीप, मारीशस, सशे पे स द्वीप, गुयाना, बलात्कार दर बलात्कार की गाथाओं से िरी पड़ी
हरतनडाड और टोबैगो, िमकै ा, सेण्ट कीट्स और यह ककताब, हमारे उस यथाथण का िी अक्स खींिती
नवे वस, सटें िोइक्स, ग्वाडले ूप, नीदरलडंै , यगु ाण्डा, है िहां सोने की चिडड़या िैसा लमथ धराशायी हो
ििं ीबार, दक्षक्षर् अफ्रीका, कनाडा म्यामारं , िाता है और वास्तववक हहदं सु ्तान का अक्स बदरंग
मलेलशया, लसगं ापरु आहद देशों मंे ले िाये गये निर आता है।
िारतीय मिदरू ों की कथा-व्यथा का इस ककताब में
उपलेख है। इस पसु ्तक मंे ववस्थापन के व्यापक चगरलमहटया गाथा का एक ियावह पषृ ्ठ बताता है
फलक को सामने रखा गया है जिसमें माररशस गये कक 1884 में प्रवालसयों की पािं वी खपे लेकर
झुनमुन गोसाईं , शीवुधारी, फीिी गये तोता राम, सीररया नामक िहाि फीिी के ललए िला था िो
गुयाना गये मायावी लछमन, मोहम्मद शरीफ नालसलाई िट्टानों के पास 11 मई को नष्ट हो
फौिी, रामावतार, सरू ीनाम गये मशुं ी रहमान, िानी गया और उसमंे सवार 56 प्रवासी और 3 िारतीय
तते री िैसी ववद्रोही महहला, सखु देवी िनु ी, परसादी नाववक मारे गये। कु ली लाइन्स उस यथाथण से
राम सहाय, हरतनडाड गये रामलखन बाबू, शीबा की पररचित कराती है कक हरतनडाड में िारतीय कु ललयों
रानी, सुखखया आहद की कथा-व्यथा तो कु छ दृष्टातं से बुरा व्यवहार ककया िाता था। बगान माललक,
मात्र हैं। इसमंे उन देशों में गये िारतीयों का िी गवनमण ंेट के एिेंटों द्वारा कलकत्ता मंे हदये गये इस
वर्नण है िो चगरलमहटया मिदरू ों की तरह सशतण विन का कक, 5 साल तक पयापण ्त िोिन, कपड़ा
अनुबधं पर नहीं गये थ।े उन्हें हम चगरलमहटया नहीं और आवास हदया िायेगा, का पालन नहीं ककया
िी कह सकते हैं कफर िी उनकी कहानी चगरलमहटया िाता। कु ललयों को िब िाहे तब काम से हटा हदया
से बहुत लिन्न नहीं है। िाता है। समय पर मिदरू ी नहीं दी िाती। िारतीय
ठे का मिदरू ों को एक ही हाते में रहने को बाध्य
प्रवीर् कु मार की इस ककताब से गिु रते हुए हमें ककया िाता था। उन्हें कु छ खास बागानों मंे ही
महसूस होता है कक िारतीय कु ललयों का यह काम करना पड़ता था। जिन बागानों मंे उन्हें
ववस्थापन अमानवीय और दासता का प्रततब्रबम्ब लगाया िाता, उसे वे ब्रबना अनमु तत के छोड़ नहीं
था। ववदेशी ि-ू िाग पर बसे कु ली लाइन्स की सकते थे। अनुपजस्थत पाये िाने पर पांि या सात
अंधेरी रातों का ददण कफलहाल परू ी तरह समझना हदन की मिदरू ी काट ली िाती थी। िाइनीि
संिव नहीं है क्योंकक इततहास के अंधरे े कोने मंे कु ललयों की तुलना मंे िारतीय कु ललयों को खराब
17
खंड-1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वर्ष 2020)
सुववधाएं दी िाती थीं। उनसे सात घंटे के बिाय श्रमशीलता, िाईिारे और साझी ववरासत का
दस घटं े काम ललया िाता था। यही कारर् है कक तनमाणर् करती है।
िारतीय कु ललयों को नटल िेिे िाने का गोखले ने
ववरोध करते हुए वायसराय की कौंलसल में मनुष्य का ववस्थापन िहां होता है वहां मूल और
प्रत्यावदे न हदया। उन्होंने कहा था कक गरीब मिदरू ों नयी, दोनों ससं ्कृ ततयों का टकराव होता है।
को बाहर खराब दशाओं मंे रखा िा रहा है। अनुबधं ववस्थावपत सदा अपनी मलू संस्कृ तत को ढोना
का उपलंघन ककया िा रहा है। िाहता है मगर समय के साथ उसमंे बदलाव
स्वािाववक है। इस ककताब को पढ़ते हुए यह ज्ञात
फीिी मंे िो कामगार बस गये उन्होंने अपनी कायण- होता है कक ववलिन्न देशों या द्वीपों में गये
अवचध बढ़ाने के बिाय वहां स्थानीय फीजियों से िारतीयों में समय के साथ वह बदलाव आया है
िमीन का कु छ हहस्सा लीि पर लेकर अपना गन्ने कफर िी वे िारत की माटी से िुड़े महसूस करते
का खते तैयार ककया या कफर पशुपालन का धधं ा हंै। एक महत्वपूर्ण बात िो हम िारतीयों को सीखने
करने लगे। कु छ ने कस्बे के बािार में िाकर की िरूरत है वह यह कक उन्होंने एक हद तक
व्यवसाय शुरू ककया और अपनी मेहनत से सफल िारतीय िातत-व्यवस्था से छु टकारा पाकर िो
िी हुए। इन मिदरू ों की विह से िीनी उद्योग तरक्की की है, वह इस तथ्य का प्रमार् है कक
और कॉटन उद्योग वहां का मुख्य व्यवसाय हो िारतीय िातत-व्यवस्था, समाि के प्रगतत मागण में
गया और खबू फला-फू ला। कु छ दकु ानदार, कु छ सबसे बड़ी बाधा है। अब देखना यह है कक सनातन
फे रीवाले, लसलाई, सराणफा, धोबी, मोिी और कु छ धमण या वैश्य संघ िैसी िारतीय ससं ्थाएं, िो
यातायात की सवु वधा उपलब्ध करवाने लगे। उनकी मारीशस एवं अन्य देशों में सकिय हंै, वे वहां
इस व्यावसातयक ऊिाण ने फीिी की अथणव्यवस्था में िारतीय ससं ्कृ तत का प्रसार करती हैं या िारतीय
बड़ा योगदान ककया। िातत-व्यवस्था की पनु रुत्पवत्त की नींव रखती हैं।
इस प्रकार अपने सपनों की गठरी लसर पर उठाये, यह सही है कक अपार दखु ों की गठरी दबाये, िहाि
अपनी सभ्यता, संस्कृ तत को साथ ललए, अपने से प्रस्थान करने वाले अनपढ़ों के सामने अथाह
ककस्से, कहातनयों का थैला सिं ाले एक अनिान समुद्र ‘देव’ थ।े ववस्थापन और नई दतु नया से िझू ने
सफर पर तनकले ये लोग, हर तरह की मजु श्कलों की ताकत, वे िगवान िरोसे िटु ाने में लगे थ।े िो
का सामना करते हुए िहां गये, वहीं की ससं ्कृ तत थोड़-े बहुत पढ़े-ललखे ब्राहमर्, अपने साथ धालमकण
को स्वीकार कर ललया। कु छ लोगों ने तो अपनी दृढ़ ककताबों को ले गये थे, उन्होंने हहन्दू धालमकण
इच्छा शजक्त और दृढ़ संकपप से लशक्षक्षत होकर परंपराओं, पिू ापाठ और रीतत-नीतत को शुरू ककया।
बाद की पीढ़ी को लशक्षक्षत बनाया। वहां की लशक्षा, अलिवादन का ‘राम-राम’ और ‘सीताराम’ हर कहीं
संस्कृ तत, अथ-ण व्यवस्था और सरकार मंे िगह गया िो आि िी हेलो-हाय के बाविूद जिदं ा है।
बनाई। यथा- मारीशस मंे लशवसागर रामगुलाम, चगरलमहटया देशों मंे धालमकण ता के अलावा
छे दी िरत िगन, िगरनाथ लछमन, रािके श्वर प्रगततशीलता के तत्व कम पहुंि।े यही कारर् है,
परु याग, कमला प्रसाद ब्रबसेसर, अतनरुद्ध िगरनाथ, िाततववहीन हो िकु ी चगरलमहटया की ज्यादातर
नवीनिदं ्र रामगुलाम और िी कई अन्य लोगों ने पीहढ़यां धुर पाखडं ी और ककरततनयां बनी हुई हंै।
िारत के शूद्र समाि से मकु ्त होकर वहां अपने को उनके पास न तो चगरलमहटया िीवन सघं षण को
प्रततजष्ठत ककया। कु ली लाइन्स को पढ़ते हुए हम व्यक्त करने की कथाएं हैं और न लोकगीत। वे
वैजश्वक दतु नया में िारतीय नस्लों के फै लाव की अपने इततहास के सघं षमण य पक्ष को जिन तौर
िानकारी प्राप्त करते हंै। हम इस तथ्य से िी तरीकों से व्यक्त करते हैं, मझु े सदं ेह है कक वे उन
रूबरू होते हंै कक हहन्द-ु मुजस्लम या ईसाई िसै े खांिे दककयानूसी मनोववृ त्तयों से िपद मकु ्त हो पायगंे े
अमानवीयता का सरं क्षर् करते हैं िबकक क्योंकक वतमण ान मंे अपनी नस्ल या पहिान को, वे
उन्हीं के सहारे स्थावपत करने मंे लगे हंै। सरनामी
18 खडं -1, अकं -1 (प्रवशे कं : वर्ष 2020)
लोक गायक रािमोहन इसके अपवाद कहे िा समीक्षक: डॉ. र जेश कपरू
सकते हंै। तमु ् री जय
पुस्तक के अंत में हदया गया पररलशष्ट, कु छ लेखक: आशुतोर् शुक्ल
महत्वपूर्ण दस्ताविे ों से साक्षात्कार कराता है। प्रभ त प्रक शन, 2019
लेखक ने अनेक देशों के चगरलमहटयों से साक्षात्कार
ककया है। कई महत्वपूर्ण घटनािि का पनु रवलोकन िारतीय ससं ्कृ तत का वववेिन-
कर पाठकों को उपलब्ध कराया है और यही वह ववश्लेषर् करते हुए पूरी पसु ्तक
िीि है िो पुस्तक की रोिकता मंे वदृ ्चध करती है। संवाद शैली मंे ललखी गई है।
ऐततहालसक तथ्यों को पढ़ते हुए कथा रस की पसु ्तक के पन्ने पलटने से ऐसा
अनिु तु त होती है और कु छ लोकगीतों से समय प्रतीत होता है कक यह कोई नाटक
और समाि के ररश्ते को समझने में मदद िी अथवा एकाकं ी सगं ्रह है, ककं तु वास्तव मंे यह
लमलती है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए कई बार वविार-मंथन करती हुई पुस्तक है जिसे वविार-
पाठक िावकु हो सकते हैं। हदल में एक कसक, एक िमानसु ार कु ल 18 अध्यायों में वविाजित ककया
हूक उठ सकती है और यह िी कक क्या पता कोई गया है। पुस्तक को रोिक बनाए रखने के ललए
अपना खून ही आि ककसी अनिान द्वीप पर िी सवं ाद शैली अपनाई गई है। लेखक ने िारतीय
रहा हो या मरखप गया हो। संस्कृ तत की धरोहर को पनु ःस्थावपत करने का
अपने गावं , पररवार, हहत-लमत्र, बारी-बगीिा आहद प्रयास ककया है। पसु ्तक में िारतवषण की संस्कृ तत
से हमेशा के ललए अलग हो कर िीना, बाप-बेटे को को उदारवादी, सहहष्र्,ु और कपयार्मूलक लसद्ध
और पतत-पत्नी का हमेशा-हमेशा के ललए अलग हो करने के ललए जिस प्रकार की ताककण कता को
िाना, या ऐसे तमाम ब्रबलगाव को सीने मंे दबाये अपनाया गया है, वह लेखक के गहन अध्ययन
जिदं गी का ततल-ततल कराहने का ददण ही ‘कु ली और गिं ीर चिन्तन को रेखांककत करती है।
लाइन्स’ का ददण है। यह ऐसी दतु नया की महागाथा
है िहां जिस्म के हर अंग का शोषर् हुआ है। एक प्रािीनकाल से पीढ़ी-दर-पीढ़ी िलती ज्ञान-श्रंखृ ला को
अंधेरी खोह में हमेशा के ललए कै द कर ली गयी सुदीघ,ण सवु विाररत और ववस्ताररत परंपरा का
जिदं गी की काल कोठरी का ददण है ‘कु ली लाइन्स’ पररर्ाम मानते हुए लेखक ने समदृ ्ध संस्कृ तत के
िहां ब्रब्रहटश सत्ता द्वारा आि तक ब्रबना शतण माफी लगिग सिी पहलओु ं को समेटने का प्रयास ककया
मागं ने की औपिाररकता परू ा न करने का ददण िी है। वैहदक साहहत्य से लेकर िजक्तकालीन साहहत्य
तछपा हुआ है। लेखक से हम अपेक्षा करते हैं कक तक, प्रािीनकाल में महहलाओं की जस्थतत से लेकर
कु ली लाइन्स के नाम से बसाई गई बजस्तयों पर
थोपे गये तमाम प्रततबधं ों, वहां के िीवन और 19
लोक-व्यवहार को तथा ब्रब्रहटश संसद मंे कु ललयों की खडं -1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वर्ष 2020)
समस्याओं पर िली तत्कालीन बहसों को अगले
संस्करर् में ववस्तार देंगे।
सभु र् चरं कु शव : हहदं ी कहानीकार, कवव,
सपं ादक। लोक संस्कृ तत को बिाए रखने के ललए
प्रततबद्ध। सिृ न सम्मान, प्रेमिदं स्मतृ त कथा
सम्मान, पररवशे सम्मान।
प्रवीण कु म र झ : लेखक तथा
व्यवसाय से डॉक्टर हैं, नॉरवे मंे
स्थावपत। पांि कथते र पुस्तकंे
प्रकालशत।
लोकगीतों तक, पव-ण त्योहारों से लेकर सामाजिक ‘राष्रवादी समािवादी’ कहलाना पसदं करता है।
अनषु ्ठानों तक, रहन-सहन से लेकर वशे िषू ा और लेखक ने धालमकण आडबं रों और कु रीततयों का ववरोध
खान-पान तक कोई ऐसा ववषय नहीं है जिसे करने के साथ-साथ आधतु नक समाि मंे व्याप्त
पसु ्तक मंे तकण -आधाररत वववेिना का हहस्सा न बुराइयों की िी िरसक आलोिना की है। वह
बनाया गया हो। पुस्तक की मखु ्य ववशषे ता यह है ‘वैलंेटाइन ड’े पर लड़के -लड़ककयों के साथ मारपीट
कक प्रािीन काल से लेकर वतमण ान समय तक धमण करने वाली ‘मॉरल पलु ललसगं ’ तथा लड़ककयों पर
और समाि मंे व्याप्त बुराइयों और कलमयों को तिे ाब फें कने वालों पर िी िमकर बरसता है। वह
निरअंदाि नहीं ककया गया बजपक उनकी िमकर रािनीतत में व्याप्त बुराइयों पर िी कटाक्ष करता
आलोिना िी की गई है। आलोिना करने की इस हुआ िलता है और आरक्षर् नीतत में बदलाव की
क्षमता और साहस को िी लेखक ने बड़े िी ििाण करता है।
सकारात्मक ढंग से लेते हुए सासं ्कृ ततक ववरासत
बताया है। गलत को गलत कहने की हहम्मत रखना कु ल लमलाकर पसु ्तक समदृ ्ध िारत की ससं ्कृ तत
और उस आलोिना को सनु ना, गनु ना और कफर एवं परंपरा की पुनःस्थापना का पुरिोर समथनण
उसे आत्मसात करना िी िारतीय संस्कृ तत मंे करते हुए आधुतनक समाि का एक आदशण रूप
सहहष्र्ुता के गरु ् के रूप मंे स्थावपत करना लेखक स्थावपत करने की हदशा में महत्वपरू ्ण िूलमका
की अध्ययनशीलता का पररिायक है। तनिाने की योग्यता रखती है।
जिस प्रकार लेखक प्रािीन ससं ्कृ तत और परंपरा से डॉ. र जेश कपरू : ववलिन्न पत्र-पब्रत्रकाओं मंे लेख,
िलते हुए आधुतनक िारत के चित्रर् तक की कहातनयां और कववताएं प्रकालशत। शोध पब्रत्रका और
कडड़यां िोड़ता हुआ िलता है, वह उसकी अनेक पत्र-पब्रत्रकाओं का सपं ादन। अखखल िारतीय
ववश्लेषर्ात्मक तनपुर्ता का पररिायक है। यही स्वततं ्र लेखक मिं द्वारा कहानी लेखन के ललए
कारर् है कक लेखक बार-बार यह वाक्य दोहराता सरस्वती रत्न सम्मान।
हुआ िलता है – ‘यही था िारत, यही है िारत’।
लेखक को यह लशकायत है कक वतमण ान पीढ़ी को आशुतोर् शुक्ल: वपछले तीस वषों से
तनष्पक्षता के साथ सही और पूरा इततहास नहीं पत्रकाररता में हैं। बनारस,
बताया िा रहा है। नई पीढ़ी को दक्षक्षर्, पूवण और पत्रकाररता और यवु ाओं पर तीन
पवू ोत्तर िारत की सांस्कृ ततक एवं ऐततहालसक धरोहर पुस्तकें प्रकालशत, वतमण ान में
के बारे में पररचित नहीं कराया िा रहा है। लखनऊ में आवास।
मगु लकाल से पूवण के इततहास को या तो नकार
हदया िाता है या कफर उसका उपहास ककया िाता
है। इसके ललए लेखक कम्यतु नस्ट इततहासकारों को
जिम्मेदार मानता है। उसका कहना है कक देश को
सवाचण धक नुकसान कम्युतनस्ट इततहासकारों ने ही
पहुंिाया है। उन्हीं के कारर् िारतीय ससं ्कारों और
आिार-वविार की बात करना वपछड़पे न का प्रमार्
माना गया। इसे सधु ारने के ललए लेखक ने लशक्षा व
संस्कृ तत नीतत मंे व्यापक पररवतनण लाने का सुझाव
हदया है।
लेखक का कहना है कक वह वपछले 800 वषों का
सम्मान करता है, ककं तु वह इससे पहले के हिारों
वषण का िी सम्मान िाहता है। लेखक स्वयं को
20 खडं -1, अकं -1 (प्रवशे कं : वर्ष 2020)
समीक्षक: डॉ कु मुहदनी नौहिय ल में मनैं े हमेशा उन सवालों के पहले का या बाद का
ब ुत दरू , फ़कतन दरू ोत ै ललखा था, आि तक ठीक उन सवं ादों को दिण
लेखक: म नव कौल करना हमेशा रह िाता था। इस बार िब यरू ोप की
ह दं ी यगु ्म प्रक शन, 2019 लबं ी यात्रा पर था तो सोिा वह सारा कु छ दिण
करूं गा िो असल में एक यात्री अपनी यात्रा में
मानव कौल के पास चथएटर के िीता है, िानकारी िैसा कु छ िी नहीं कु छ अनुिव
ववशाल क्षते ्र में काम करने का िसै ा, पथृ ्वी का अनिु व िी नहीं अपनी यात्रा पर
रिनात्मक अनुिव है। वह कहातनयाूँ बने रहने का अनिु व। एक कापपतनक दतु नया मानो
और कववताएँू ललखते हैं। “बहुत दरू , आप पानी पर अपने-अपने प्रततब्रबबं को देखकर खदु
ककतना दरू होता है” उनकी िौथी पसु ्तक है। यह के बारे मंे ललख रहे हों। वह ठीक मैं नहीं हूं। उस
एक कहानी से शुरू होते हुए यात्रा वतृ ांत के रूप मंे प्रततब्रबबं में पानी का बदलना उसका खारा मीठा
ववकलसत होती है। होना, रंग, हवा, सघन, तरल खालीपन सब कु छ
शालमल है। इस यात्रा वतृ ्तांत को ललखने के बाद
यह एक बहुत ही रोिक यात्रा वतृ ्तांत है। ककताब पता िला कक असल में मंै इस पूरी यात्रा में एक
को पढ़ते हुए पाठक उसमें इस तरह से रम िाता पहेली की तलाश में था जिसका िवाब यह ककताब
है, िैसे वह स्वयं यूरोप की यात्रा पर तनकला हो। है।’’
फ्रांस, स्पेन लंदन, िने वे ा की खूबसरू त वाहदयों मंे
घमू ते हुए आनंद की अनिु तू त करते हुए पता ही ककताब को पढ़ना शुरू करते ही उत्सुकता बढ़ती
नहीं िलता वह कब ककताब के आखखरी पन्ने पर िाती है। दो दोस्त हवाई िहाि को देखकर आपस
पहुंि गया। ऐसा बहुत कम होता है कक कोई मंे बात कर रहे थे।
आपको अपने सफ़र का हमसफ़र बना लेl ककसी की ‘‘मैं बहुत दरू िाना िाहता हूं।’’
यात्रा का हहस्सा बनना उस व्यजक्त को समझने ‘‘ककतनी दरू ?’’
और उसके िीवन से िडु ़ने का एक तरीका हैl ये ‘‘बहुत दरू ।’’
यात्रा वतृ ्तातं से ज्यादा एक लखे क के मन के िीतर ‘‘नदी के उस पार तक ........।’’
की यात्रा है। लेखक ने खुलकर अपने वविार रखे हैं ‘‘नहीं .. और दरू ........ िहां ये हवाई िाता है।’’
कक कब उनका लेखक मजस्तष्क क्या सोि रहा है। ‘‘कहां िाता है हवाई िहाि?’’
लेखक के शब्दों में ........... ‘‘बहुत ही दरू ।’’
‘‘एक सवं ाद लगातार बना रहता है अके ली यात्राओं ‘‘तरे े को पता है बहुत दरू ककतना दरू होता है?’’
कहानी कु छ यंू है कक मानव दो महीने के ललए
यरू ोप के दौरे पर तनकलते हैं, बेकफि होकर घूमने
और खदु के साथ वक्त ब्रबतान।े अपनी इस यात्रा
मंे वो लदं न तथा फ्रांस और जस्वट्िरलडंै के कु छ
शहरों में दो - िार हदनों के ललए रुकते हंै। वे कै फे
मंे बैठकर िोइस्सटं (यूरोपीयन नाश्ता) और कॉफी
के साथ अपनी कहानी ललखते हंै। वे हमंे बहुत दरू
की यात्रा पर ले िाते हुए ककसी िी जस्थतत मंे
हमसे अलग नहीं होत।े वे हमंे ववस्तार से बताते हंै
कक कौन सी कहानी ललख रहे हैं, उनके क्या
ककरदार हैं, कहानी ककतनी ख़तम हुई और उन्होंने
अब ललखकर अपने अमकु पजब्लशर को िेि दी है।
21
खडं -1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वर्ष 2020)
सवं ादात्मक शैली में ललखा गया यह उपन्यास बहुत समीक्षक: डॉ कु महु दनी नौहिय ल
ही खबू सूरत यात्रा वतृ ्तातं है। के वल पात्र ही नहीं, ज्ञ न क ज्ञ न
मानव कौल ऐततहालसक महत्व के स्थानों, लेखक: हृदयन र यण दीक्षक्षत
सगं ्रहालयों, कला दीघाणओं आहद का भ्रमर् करते हैं। व णी प्रक शन, 2019
अंत में वह कहते हंै, “ ऐसा लगता है कक मेरे पास
एक सपना था, जिसे मनंै े अपने हदमाग से गायब परंपरा के ज्ञाता और वररष्ठ रािनेता
होने से पहले डाल हदया था।” हृदयनारायर् दीक्षक्षत िारतीय
अध्यात्म और प्राच्य-ववद्या का
मानव अपने शब्दों में जितने सरल हंै उनकी अध्ययन, अनशु ीलन करते रहे हंै।
सरलता से कही गई बातंे उतनी ही गहरी हंै। मानव उनकी पुस्तक ‘ज्ञान का ज्ञान’ ऐसे
की ककताबंे हमेशा ही आपको अपने आसपास की अथाह ज्ञान के सागर का कोष है, जिसमंे उतरना
िीिों को महससू करने और उन्हें िीने का एक परंपरा के गहरे पानी में उतरने िैसा है। दीक्षक्षत िी
नया निररया देती हैं। अपनी िूलमका में ववनम्रतापवू कण स्वीकारते िी हंै
कक इस पुस्तक में ककसी ज्ञान का दावा नहीं है,
उन्होंने अपने पूरे यरू ोप यात्रा वतृ ातं को इतने बजपक यहां ज्ञान के अंतस मंे प्रवेश की अनुमतत
साधारर् लेककन रोिक तरीके से ललखा है, जिसको िाही गई है। इसी सूत्र के हवाले से वे वैहदक दशणन
पढ़कर ऐसा लगता है िसै े आप वहीं उनके साथ हंै की आत्मीय और सरस व्याख्या करते हंै। पसु ्तक
और उन सारी ललखी कहातनयों को िी रहे हंै। कु छ ‘ईशावास्योपतनषद्’, ‘कठोपतनषद’, ‘प्रश्नोपतनषद’
यात्राएूँ आपको मंत्रमुग्ध कर देती हंै। ऐसी ही यात्रा और ‘माण्डू क्योपतनषद’ की व्याख्याओं पर आाधाररत
पर मानव िी हमें लेकर गए, बहुत दरू । मानव के है। ववविे ना के अंततम खडं ‘अलिमत’ मंे प्रो. ओम
लेखन में कु छ ऐसा िादू है कक वह अपने पाठक प्रकाश पाण्डये , डॉ. राममूततण पाठक, प्रो. बिृ शे
को अपने संग ले िाते हंै। यही बात मानव के कु मार शुक्ल और डॉ. वववपन पाण्डये के इन िार
लेखन को आपका अपना बना देती है। इस यात्रा उपतनषदों के बारे मंे वविार सकं ललत हंै।
वतृ ्तान्त को पढ़ते हुए ऐसा लगता है िसै े आप
सिमिु यूरोप की यात्रा कर रहे हंै। िब कोई लेखक हृदयनारायर् दीक्षक्षत द्वारा ललखखत ककताब ‘ज्ञान
अपनी रिनाओं के साथ अपने पाठकों को िोड़ का ज्ञान’ िार प्रमुख उपतनषदों मंे समाहहत उपदेशों
लेता है तो उस लेखक की लेखनी साथकण हो िाती का सार है। उपतनषद ऐततहालसक दृजष्ट से बहुत
है। वस्ततु ः मझु े ऐसा लगता है पाठक मानव कौल महत्वपूर्ण हंै। ककताब में ईशावास्वास्पोयतनषद,
के साथ ककतनी दरू तक िा पता है पता नहीं पर
अपने करीब िरूर आ िाता है।
डॉ. कु महु दनी नौहिय ल: कवतयत्री एवं लेखखका।
अनेक पत्र-पब्रत्रकाओं का सपं ादन। महाराष्र राज्य
हहन्दी साहहत्य अकादमी द्वारा हहन्दी कथा-लेखन
के ललए मुशं ी प्रेमिन्द पुरस्कार। महाराष्र लशक्षा
बोडण की नौवीं कक्षा के हहन्दी पाठ्यिम में कहानी
सजम्मललत।
म नव कौल का िन्म बारामुला,
कश्मीर मंे हुआ। कफपम तनदेशक,
लेखक और अलिनेता। ठीक तमु ्हारे
पीछे , प्रेम कबतू र, तुम्हारे बारे मंे
और िलता कफरता प्रेत प्रकालशत।
22 खडं -1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वर्ष 2020)
कठोपतनषद, प्रश्नोपतनशद और मांडू क्योपतनषद मंे प्रश्नोपतनषद और मांडू क्योपतनषद मंे वखर्तण
वखर्तण आध्याजत्मक ज्ञान और दशणन के गढ़ू रहस्यों आध्याजत्मक ज्ञान और दशणन पर उनके गूढ़ रहस्यों
पर प्रकाश डाला गया है। िारतीय दशनण का के साथ प्रकाश डाला गया है। पसु ्तक में अध्याय
तानाबाना ववराट है। हमारे परु ातन शास्त्रों में तनहहत िम की गर्ना नहीं करते हुए िी उसे प्राय: छह
ज्ञान लंबे समय से ववद्वानों के वववेिन का ववषय िागों में रखा गया है। लेखक ने िूलमका को ‘प्रेरर्ा
रहा है। वहै दक युग के बाद िारत में उपतनषद काल और प्रयोिन’ कहा है।
प्रारंि हुआ।
इसमंे ‘ज्ञान का ज्ञान’ को प्रथम और ‘ब्राहमर्,
ववशषे यह है कक अथशण ास्त्र के ववद्याथी और उपतनषद् और ब्रह्मसूत्र’ को द्ववतीय अध्याय कहा
रािनीतत शास्त्र के अनगु ामी हृदयनारायर् दीक्षक्षत गया है। इसी आधार पर ईशावस्योपतनषद,
प्राय: िारतीय दशणन के ववराट तानेबाने के इदण-चगदण कठोपतनषद, प्रश्नोपतनषद, माडं ू क्योपतनषद को
ही ललखते रहे हंै। उनकी रिना ‘ज्ञान का ज्ञान’ िार अगले िार अध्याय के रूप में देख सकते हैं। बाद
उपतनषदों का वववेिन है। लेखक इसे बड़ी ववनम्रता मंे पररलशष्ट के रूप मंे िारों पर अलग-अलग
से पुन: पाठ कहते हैं और पाठकों से अपेक्षा करते ववद्वानों के अलिमत िी शालमल ककए गए हैं।
हैं कक वे इस प्रकिया मंे उनके साथ िलंे। सवपण ्रथम पसु ्तक मंे इन उपतनषदों में सचं ित ज्ञान- रालश–
प्रस्ततु पसु ्तक का शीषकण ही जिज्ञासा उत्पन्न पिंु को सहि और लेखनीय ववनम्रता के साथ
करता है। प्रश्न स्वािाववक है कक ‘ज्ञान का ज्ञान पाठकों के समक्ष रखा गया है। िाषा तनजश्ित ही
क्या है? लेखक ने पुस्तक के प्रथम अध्याय मंे इस ज्ञान-परंपरा के रलसकों के अनरु ूप है, पर प्रवाह
स्वयं कहा है- ‘ऋग्वेद मंे ज्ञान’ ववषयक एक िी गिब का है। सामान्य पाठक िी ‘ओम’ और
मिेदार सूक्त (ऋ॰10-71) है। इसके द्रष्टा कवव शातं तपाठ िैसे प्रिललत मतं ्रों का पनु : साक्षात्कार
ऋवष बहृ स्पतत आचं गरस हंै। ‘ज्ञान’ यहां एक देवता कर सकते हैं, तो उपतनषद-अनुराचगयों के ललए
हंै।’’ लेखक इस देवता को ववस्तार देते हंै। 10वें पुस्तक में बहुत कु छ है।
मडं ल में पशु पक्षी िी देवता हैं। कृ वष िी देवता है।
साहस (मन्य)ु श्रद्धा और हाथ िी देवता है। िहां- ककताब के अतं मंे ‘अलिमत खंड’ में इन वदे ों पर
िहां हदव्यता वहां-वहां देवता।’’ लेखन में हदव्यता हटप्पखर्यां अलग से रखांककत ककए िाने योग्य हंै।
का अहसास हृदयनारायर् दीक्षक्षत की रिनाएं िी सकं ्षक्षप्त हटप्पखर्यों मंे इन ग्रथं ों की इतनी अपूवण
कराती हैं। इस हदव्यता को पचं थक सीमाओं से परे व्याख्या आि कहां ललखी िा रही है? सत्य की
रहकर ही ग्रहर् ककया िाना िाहहए। आखखर ऋग्वेद खोि, परम-तत्व की जिज्ञासा व ववमशण के संदिण मंे
मंे ‘नमस्कार’ िी तो देवता है। पुस्तक ‘ज्ञान का ‘ज्ञान का ज्ञान’ एक अतलु नीय कृ तत है, जिसे पढ़ना
ज्ञान’ िार प्रमुख उपतनषदों मंे समाहहत उपदेशों का िारतीय मनीषा की गगं ा में डु बकी लगाने िैसा है।
372 पषृ ्ठों में प्रस्ततु सार है।
डॉ. कु महु दनी नौहिय ल: कवतयत्री एवं लेखखका।
उपतनषद ऐततहालसक दृजष्ट से बहुत महत्वपरू ्ण हंै। अनके पत्र-पब्रत्रकाओं का सपं ादन। महाराष्र राज्य
इसमें काल-िम तनधाणरर् में ग्रंथों के रिना के हहन्दी साहहत्य अकादमी द्वारा हहन्दी कथा-लेखन
समय का िी सहारा ललया गया है। लेखक का के ललए मशुं ी प्रेमिन्द परु स्कार। महाराष्र लशक्षा
मानना है कक उत्तर वहै दक काल प्रशनाकु लता की बोडण की नौवीं कक्षा के हहन्दी पाठ्यिम में कहानी
दृजष्ट से तीव्रता ग्रहर् ककए हुए था। इसी सजम्मललत।
प्रशनाकु लता और जिज्ञासा ने उपतनषदों को िन्म
हदया। इनके िाष्य की परंपरा िी बहुत समदृ ्ध है। हृदयन र यण दीक्षक्षत का िन्म
स्वयं आहद शंकर ने 11 प्रमुख उपतनषदों का 1946 में उन्नाव (उत्तर प्रदेश) मंे।
संस्कृ त िाष्य ककया। यह परंपरा अनवरत िारी है। लेखक, रािनेता और उत्तर प्रदेशक
प्रस्ततु पुस्तक मंे ईशावास्योपतनषद, कठोपतनषद, ववधान सिा के अध्यक्ष।
23
खडं -1, अकं -1 (प्रवशे कं : वर्ष 2020)
क्षेत्रीय भ र् ओं से ह दं ी में अनुव द
समीक्षक: लक्ष्मी शंकर व जपये ी बलबूते किि े अपनी धिती पि पिै जमाये औि
ख ली कु ओं की कथ अपना परिवाि खड़ा ककया। श्रम द्वािा अजजतण ककए
लेखक: अवत र ससं बिसलगं गए पवका मंे कु आाँ एक खशु हाली के प्रतीक के
पजं िी से ह दं ी अनवु द तौि पि उभिकि ामने आता है। ऐ ी खशु हाली
अनवु दक: सुभ र् नीरव जज में पिु खों की मान्यता, धमण-कमण की मान्यता,
अमन प्रक शन, 2019 लोक पवश्वा ों औि वहमों-भिमों का समश्रर् आढ़द
‘खाली कु ओं की कथा’ पजं ाबी के ब शासमल है। उपन्या के प्रािंभ में ही नाना
वरिष्ठ लेखक अवताि स हं बबसलगं माया े लबालब कु ओं की बात किता है जो नई
का एक महत्वपूर्ण औि दस्तावजे ी पीिी के लोभ, लालच, स्वाथण के चलते बबल्कु ल
उपन्या है जज मंे पंजाब की चाि खाली हो जाने का असभशाप भोगते हंै।
पीढ़ियों की दारुर् दास्तान स मटी हुई है।
प्लेग की माि े हँा ता-ब ता घि खंडहि हो जाता
उपन्या की कथा के दो मखु ्य पात्र दो गे भाई है। इ माि में स र्फण चिना औि बचना दोनों भाई
हैं- चिन स हं औि बचन स हं । ये बचपन मंे ही ही जीपवत िह पाते हंै। वे ब कु छ गवां देने का
अनाथ हो गए थे। पपता जबि स हं प्लेग महामािी दंश झले ते हंै औि नननहाल के आ िे जीवन को
की भेंट चि गया था जब कक मााँ प्रेम कौि कक ी किि नए स िे े जीने की कोसशश किते हैं। चिना
अन्य व्यजतत के ाथ भाग गई थी। इन हालातों मंे औि बचना इ उजाड़े की नघनौनी औि भयावह
बे हािा हो गए भान्जों को उनका मामा अपने गावँा जस्थनत मंे े श्रम औि भाईचािे की भावना के
कटार्ी ले गया था जहााँ उनकी नानी बबशनी ने इन बलबूते उभि कि किि े अपना परिवाि खड़ा किते
मा ूमों को पाला-पो ा। जवान होने पि दोनों हैं औि ऊँा चा रुतबा प्राप्त किते हैं। दोनों भाइयों में
भाइयों ने नननहाल े अपने गावाँ लौटकि अपनी आगे बिने की लाल ा है। चिन स हं तो अगले
पशु ्तैनी बजं ि ज़मीन को खते ी योग्य बनाया औि जन्म में भी जमना नदी के ककनािे मथुिा में खुली
किि एक ही परिवाि की दो गी बहनों प्रीतम कौि ज़मीन का मासलक बनकि जन्म लेने का इच्छु क
औि अमि के ाथ ब्याहे गए। अपने श्रम के है। उ े कक ी धम,ण जानत, पहिावे, भाषा की पिवाह
नहीं। वह स र्फण आर्थकण पक्ष े ाधन- ंपन्नता का
इच्छु क है।
इ वतृ ्तातं में चिन स हं का पजं ाब की श्रमशील
कक ानी का स्वरूप उभिकि ामने आता है जो
बंजि धिती को उपजाऊ बनाने का हौ ला िखता है,
पिन्तु वतमण ान पीिी में यह श्रमशील कक ानी
स्वरूप नदािद है। चिन स हं अ ल मंे बिु ापे में भी
भिा हुआ कु आाँ है। उ के अदं ि मेहनत के बल पि
आगे बिने की लाल ा है। मेहनत किने का जज़्बा
है।
उपन्या के खशु नमु ा वतृ ्तांत में आगे चलकि
रिश्तों की अनबन, टकिाव, मुठभेड़ का जो
वाताविर् ननसमतण होता है, उ े ककिदािों के बीच
का पािस्परिक मोह-प्याि िीका औि धूसमल होने
24 खडं -1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वर्ष 2020)
लगता है। पिस्पि ईष्याण औि वमै नस्य बिने लगता बाल ाढ़हत्य प्रकासशत। खाली कु ओं की कथा के
है औि ज़मीन-जायदाद के सलए झगड़-े ि ाद होने
लगते हैं। खुशनमु ा भाईचािे मंे दिाि पड़ने लगती सलए म्माननत।
है। बेटी के खाते-पीते ुिाल वालों में दू िे की
ज़मीन हड़पने की भूख उपजने लगती है। दिअ ल के इदण-र्गदण उपन्या का मूचा कथानक बनु ा है।
यह भूख मानवी लाल ाओं की भूख है जज को इ उपन्या में कु ओं का प्रतीक कई अथों मंे
पंजू ीवादी दौि में औि अर्धक पवस्ताि समलता है। रूपमान होता है। पंजाबी या भाितीय ंस्कृ नत मंे
उत्पादन में वपृ ि की लाल ा के ाथ अर्धक माया कु एाँ हरियाली, खशु हाली औि उज्जज्जवल भपवष्य का
इकट्ठी किने के मक द के अधीन अपने उत्पादन प्रतीक िहे हंै। पवशषे कि पजं ाब के कक ानी जीवन
मंे कु ओं की महत्ता, उत्पादन की वपृ ि े बं ंध
ाधनों में वधै -अवैध ढंग े इजार्फा किने की िखती है। कु आाँ बेशक ठहिाव की अवस्था मंे होता
कोसशश की जाती है जो ज़मीनी रिश्तों मंे खटा है, पिंतु इ के पानी के अथण जज़न्दगी की
का कािर् बनती है। गनतशीलता को प्रकट किते हैं। कह कते हैं कक
लेखक ने कु ओं को श्रम की उविण औि उपजाऊ
उपन्या की कथा के जरिये लेखक यह स्पष्ट शजतत े जोड़कि खशु हाली औि जजन्दगी की
किने की कोसशश किता है कक वतमण ान पवका गनतशीलता के प्रतीक के रूप मंे प्रयोग ककया है।
मावनीय रिश्तों, कद्रों-कीमतों के पवनाश का कािर्
बना है। उपन्या मंे वैश्वीकिर् के प्रबधं को बहुत पजं ाब के एक पवशषे क्षते ्र लुर्धयाना औि िोपड़ के
खबू िू त प्रतीकों के माध्यम े प्रस्ततु ककया गया मध्य पड़ते पुआध औि ढाहे के ग्रामीर् माज,
है। इ वैश्वीकिर् ने पंजाब के ाझे भाईचािे को उ के भ्याचाि तथा मय के ाथ बदलती उ की
तोड़कि कि मनषु ्य की मानस कता को खंडडत प्रकिया को लेखक ने उपन्या में कलात्मक ढंग के
ककया है। इ ने पजं ाब के कक ानों े खेती-योग्य गंूदने का यत्न ककया है। चाि पीढ़ियों में बँाटे
भसू म छीन ली है। नई पीिी को िमाये का लालच ग्रामीर्-कस्बाई पंजाबी माज के िीनत-रिवाजों,
ढ़दखाकि नशों मंे बुिी तिह उलझा ढ़दया है, उन्हें
श्रम े पवलग किके ननट्ठले िहने औि ऐश किने ंस्कािों, पवश्वा ों, रिश्तों, िहन- हन औि बोल-
का मंत्र ढ़दया है। वैश्वीकिर् के इ प्रबंध को व्यवहाि को जज खूबी के ाथ पवसभन्न कथा
उपन्या काि ने आ मान े उतिी र्गिों, हड्डा-िोड़ी प्र गं ों औि उ क्षते ्र की भाषा-बोली मंे िचा-ब ा
के जीभ लटकाए बौखलाए कु त्तों, ढ़टड्डी दलों तथा कि पकड़ने औि असभव्यतत किने की कोसशश इ
कौओं आढ़द प्रतीकों के ाथ जोड़कि बहुत ही उपन्या मंे हुई है, वह अद्भतु औि पवलक्षर् है।
खबू िू त ढंग े कथा को पवस्ताि ढ़दया है।
इ उपन्या की कथाभूसम चकंू क चाि पीढ़ियों तक
अ ल में, तालाबों के पानी में ठहिाव होता है औि िै ली है इ सलए इ मंे पात्रों की भिमाि का होना
ये ठहिाव वाला पानी खू जाता है जबकक कु एँा
ननिंति भिे-पूिे होने का प्रतीक हंै। जब जजन्दगी की हज औि स्वाभापवक माना जा कता है, पिंतु ये
िवानी रुक जाती है तो र्चतं ा उपजना हज है। यह तमाम पात्र अपने-अपने चरित्रों के गुर् दोषों के
र्चतं ा स र्फण उपन्या की पात्र अमि कौि की नहीं
बजल्क आज के पजं ाब के हि एक बुपिजीवी की भी ाथ अनके कथा प्र ंगों े होते हुए इ बहृ द
र्चतं ा बन चुकी है। उपन्या काि ने इ ी र्चतं ा औपन्यास क कथा को गनत प्रदान किते हैं औि इ े
िोचक बनाते हंै। परु ुषों की तिह इ उपन्या के
अवत र ससं बिसलगं : पंजाबी बहुतायत मंे आए स्त्री पात्र भी इ कथा की मखु ्य
धुिी बनकि अपने गरु ्-दोषों के ाथ प्रस्तुत होते
ाढ़हत्यकाि। अनेक उपन्या हंै।
तथा कहानी- गं ्रह के ाथ- ाथ लब्बोलुआब यह कक प्लेग मंे अपना ब कु छ गवां
कि दो बालक चिन स हं औि बचना स हं जज
‘जीिो’ े जीवन की यात्रा प्रािंभ किते हैं औि श्रम व
भाईचािे के चलते किि े अपने ंघषमण यी जीवन
खंड-1, अकं -1 (प्रवशे कं : वर्ष 2020) 25
को पटिी पि पि लाकि स ि ऊँा चा उठाकि ‘हीिो' समीक्षक: डॉ. भ वन पोरव ल
बनते हैं, उ ी पीिी की बाद की पीढ़ियााँ श्रम े घ सीर म कोतव ल
पवमुख होकि पवका की नकली खशु ी में डू ब, न लेखक: ववजय तेंदलु कर
के वल अपने परिवाि को नछन्न-सभन्न कि देती हंै मर ठी से ह दं ी अनुव द
बजल्क बनी बनाई म्पजत्त औि खशु हाली को गवां अनुव दक: डॉ. द मोदर खडसे
कि ‘हीिो' े ‘जीिो' पि आ जाते हंै। व णी प्रक शन, 2019
उपन्या में पंजाब के एक पवशेष अंचल के ग्रामीर् “घा ीिाम कोतवाल” पवजय तेंदलु कि
जीवन का व्यापक, पवशद औि जीवंत र्चत्रर् हुआ द्वािा सलखखत मिाठी नाटक है तथा
है औि इ के यथाथवण ादी पात्र- जृ न औि भाषा के दामोदाि खड े द्वािा इ का ढ़हदं ी
कलात्मक प्रयोग ने इ की कथा को च्ची औि अनवु ाद ककया गया है। घा ीिाम
जीवंत बना ढ़दया है। कोतवाल नाटक की मलू मिाठी मंे तथा अनवु ाद के
रूप में अब तक छह हजाि े ज्जयादा प्रस्तनु तयां हो
इ पंजाबी उपन्या का ढ़हन्दी अनवु ाद ढ़हन्दी के चकु ी हैं।
वरिष्ठ कथाकाि औि अनवु ादक ुभाष नीिव ने
ककया है जजनका अनुवाद में चाली ाल का लबं ा घा ीिाम कोतवाल नाटक एक दंतकथा है। यह
अनुभव िहा है। छह ौ े ऊपि पजं ाबी कहाननयों नाटक एक पवसशष्ट माज की जस्थनत की ओि
औि पचा े अर्धक पुस्तकों का पंजाबी े ढ़हन्दी
अनुवाद किने वाले इ अनुवादक का नाम अनुवाद कं े त किता है, यह ामाजजक जस्थनत ामतं वादी
के क्षेत्र में म्मान के ाथ सलया जाता है। वह ोच की है। हमािे अतीत में कक प्रकाि की
अपने अनुवाद मंे मलू िचना की खशु बू औि समठा व्यवस्था थी, उ े कक प्रकाि की पव गं नतयां पदै ा
को बिकिाि िखने में क्षम हैं। इनके अनुवाद हुईं। पव ंगनत, शा क तथा भ्रष्टाचाि के कािर्
पिकि ऐ ा लगता है जै े पाठक मूल ढ़हन्दी मंे ही कक प्रकाि ननिपिाध लोगों की बसल चिाई जाती
सलखी कृ नत पि िहा हो। भाषा व बोली के स्ति पि िही है। इन भी परिजस्थनतयों का मासमकण र्चत्रर्
इ कढ़ठन आाँचसलक कृ नत ‘खाली कु ओं की कथा’का नाटक की मूल कथा मंे ककया गया है। ंपरू ्ण
जज दक्षता, ननपुर्ता औि कु शलता के ाथ नीिव नाटक नाना िड़नवी औि घा ीिाम के व्यजतत
ने जनण ात्मक अनुवाद ढ़हन्दी पाठकों को उपलब्ध घं षण को र्चबत्रत किता है। घा ीिाम जै े पात्र
किाया है, वह उन्हें ननिः दं ेह एक बड़ा औि श्रेष्ठ प्रत्येक काल मंे होते हंै। उ काल औि माज मंे
अनुवादक स ि किता है। उन्हें वै ा बनाने वाले औि अपने स्वाथण की पूनतण
लक्ष्मी शंकर व जपेयी :प्रनतननर्ध भाितीय कपव के
रूप में एक दजनण े अर्धक देशों में कपवता पाठ।
वने ेजुएला मे पवश्व कपवता महोत् व में भाित े
एकमात्र कपव। लदं न मे अंतििाष्रीय वातायन
कपवता म्मान ढ़हत दजनण ों म्मान।
सभु र् नीरव: कहानीकाि औि
कपव। वषण 1979 े अनेक
उपन्या औि काव्य- गं ्रह
प्रकासशत।
26 खंड-1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वर्ष 2020)
हेतु उनका उपयोग कि उन्हंे मोहिा बनाकि मौका लोक नाट्य की शैली मंे िर्चत तथा ढ़हदं ी में
ताक उनकी हत्या किने वाले नाना िड़नवी भी अनूढ़दत यह नाटक लोक गं ीत जै े नमन, मिाठी
होते हैं। यह बात तंेदलु कि जी ने नाटक मंे अपने लावर्ी, पोवाड़ा भारूड़ आढ़द नतृ ्य गं ीत द्वािा एक
ढंग े प्रस्ततु की है।
जीव एवं ज्जवलंत परिृशश्य को बहुत ही
कहानी का नायक घा ीिाम िोजगाि की तलाश मंे िचनात्मकता े प्रस्तुत किता है। घा ीिाम
बाह्मर्ों के गि पूना जाता है। पूना में िोजगाि के कोतवाल (ढ़हदं ी अनवु ाद) पिते मय ऐ ा लगता है
बदले उ े वहां ब्राह्मर् माज कदम-कदम पि कक मानो आप प्रत्यक्ष रूप े नाटक का मंचन होते
अपमाननत किता है। ब्राहमर्ों े अपमाननत होकि देख िहे हैं। अत: यह दावे के ाथ कहा जा कता
बदला लेने के उद्देश्य े घा ीिाम मिाठा पेशवा है कक घा ीिाम कोतवाल अनूढ़दत होते हुए भी एक
नाना िड़नवी े अपनी बेटी गौिी के ाथ पववाह
का ौदा किता है औि बदले मंे पूना की कोतवाली िल िचना है।
हास ल कि लेता है। वह पेशवा नाना जो पहले े
ही छह पववाह कि चुका है किि भी अपनी ऐय्याशी डॉ. भ वन पोरव ल: अनेक पत्र-पबत्रकाओं में लेख
की पूनतण हेतु घा ीिाम की नाबासलग पतु ्री गौिी े प्रकासशत। मिाठी े ढ़हन्दी मंे अनवु ाद काय।ण
पववाह कि लेता है। घा ीिाम, कोतवाल बनकि वतमण ान मंे लाल बहादिु शास्त्री िाष्रीय प्रशा न
ब्राह्मर्ों े अपना बदला लेता है। उ की इन अकादमी मंे अस स्टंेट प्रोिे ि के पद पि आ ीन।
हिकतों े तगं आकि ंपरू ्ण ब्राह्मर् माज उ के
खखलाि हो जाता है औि पेशवा के ाथ समलकि द मोदर खडसे: मिाठी एवं ढ़हन्दी के
घा ीिाम के खखलाि हत्या की ाजजश िचता है। प्रख्यात लेखक। मिाठी एवं ढ़हन्दी में
नाना बड़ी चालाकी े मन भि जाने पि गौिी की अनेक पुस्तकों का अनवु ाद।
हत्या किवा देता है। घा ीिाम चाहकि भी कु छ नहीं
कि पाता, उल्टे पेशवा नाना उ की भी हत्या किवा
देता है। घा ीिाम की हत्या एक अप्रत्यक्ष अपिाध
के िलस्वरूप होती है। ननयनत का ऐ ा प्रनतशोध
अनके ऐनतहास क नाटकों के खलनायकों के प्र गं
मंे समलता है। घा ीिाम की हत्या किवाने के बाद
नाना बड़ी चतुिाई औि कू टनीनत े पूिे ब्राह्मर्
माज पि अपना प्रभतु ्व स्थापपत कि लेता है।
ववजय तंेडु लकर: मिाठी के वलै ी ऑि वड्ण अतं िाणष्रीय ाढ़हत्य एवं े
ाढ़हत्यकाि। लगभग ती नाटकों कला महोत् व - 2019 में क्षते ्रीय भाषाओं
तथा दो दजनण एकांककयों की िचना। ढ़हदं ी मंे अनुवाद श्रेर्ी मंे पुिस्कृ त
शांतता! कोटण चालू आहे (1967), बालगंधवण
खािाम बाइंडि (1972), कमला अनवु ादक: असभिाम भडकमकि
(1981), कन्यादान (1983) प्रस ि नाटक। श्री प्रकाशक: िाजकमल प्रकाशन
तेंडु लकि के नाटक घा ीिाम कोतवाल (1972) की
मलू मिाठी मंे औि अनढ़ू दत रूप में देश औि पवदेश
में छह हज़ाि े ज़्यादा प्रस्तुनतयााँ हो चुकी हंै। पद्म
भूषर्, कर्फल्मिे यि आढ़द जै े अनेक पुिस्कािों े
म्माननत।
खडं -1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वर्ष 2020) 27
कभी नहीं देख पाते औि समल पाने का वादा अधिू ा
िह जाता है। उपन्या जहां खत्म होता है, वहां
पाठक को लगता है, काश! यह बात उ के हाथ मंे
हो कक वह बशीि तथा उ की प्रेसमका नािायर्ी की
मलु ाकात किा के । यही इ उपन्या की
खूब िू ती है। इ े पिते हुए कहीं भी ऐ ा नहीं
लगता कक इ की पषृ ्ठभसू म कक ी ढ़हदं ी भाषी क्षते ्र
की पषृ ्ठभूसम े अलग है। बशीि औि नािायर्ी के
ंवाद मनषु ्य जीवन की अनन्त उम्मीदों के
प्रनतननर्ध भी हैं। उनके ामान्य लगने वाले
म्वादों में गहिा दशनण भी गथुं ा है।
समीक्षक: डॉ. सशु ील उप ध्य य दू िे लघु उपन्या 'जजदं गी की पिछाइयां' मंे एक
िशीर: तीन लघु उपन्य स ंपन्न परिवाि के युवक की कहानी है, जो शहि मंे
लेखक: वी.एम. िशीर
मलय लम से ह दं ी अनुव द नौकिी खोजने आया है। तमाम कोसशश के बावजूद
अनुव दक: डॉ. सतं ोर् एलेक्स उ े नौकिी नहीं समल पाती। अंततिः वह गिीब लोगों
ऑथसपष ्रेस, 2019 की बस्ती मंे िहने चला जाता है, वहां व तं कु मािी
नाम की एक लड़की, जो वेश्या है, उ े प्रेम किने
मलयालम के प्रनतजष्ठत लेखक लगती है। लेककन, वह उ े ठु किा देता है। उपन्या
बशीि के तीन लघु उपन्या ों का के नायक को उ वतत आश्चयण होता है, जब उ े
पता लगता है कक जब वह िोजमिाण की जजदं गी
कं लन कई मायनों में अनठू ा, चलाने के सलए छोटी-छोटी चीजों के सलए पिेशान
कलात्मक औि तत्कालीन था, उ के कमिे का ककिाया वही वशे ्या दे िही थी।
ामाजजक-आर्थकण परिजस्थनतयों का पवश्व नीय इ उपन्या मंे मानवीय बं ंधों की गहिाई का
दस्तावजे है। अनवु ादक डॉतटि ंतोष अलेत ने पता लगता है लेककन उपन्या एक खा तिह के
इन तीनों लघु उपन्या ों को बशीि टाइटल के ाथ
मलयालम े ढ़हदं ी पाठकों के सलए प्रस्ततु ककया है। िलीकिर् का सशकाि है।
इन तीनों ामान्य कहाननयों को अ ाधािर्
कहाननयां कहा जा कता है। बशीि ने 30 छोटे ती िा उपन्या 'हाथी बटोि औि स्वर्ण िू ' में भी
उपन्या सलखे हैं, जजनमें एक जै ा परिवेश बाि- मनुष्यता सभन्न रूप मंे ामने आती है। इ मंे
बाि उभिता नजि आता है। अ ल मंे, यह परिवेश मनुष्य औि हार्थयों के बं ंधों का बहुत जीव
काल्पननक नहीं, बजल्क लेखक का स्वयं का भोगा र्चत्रर् है। उ े भी जीव र्चत्रर् माज के
हुआ औि जजया हुआ परिवशे है।
ननचले पायदान पि मौजदू लोगों के बीच के रिश्तों,
इन तीन लघु उपन्या ों में पहला उपन्या 'दीवािें' उनकी भावनाओं उनके मस्याओं, चनु ौनतयां औि
शीषकण े है, जज में उपन्या काि को जले के िोजमिाण की जजदं गी को लके ि है। बबगड़लै हाथी
भीति एक जायाफ्ता लड़की े प्रेम हो जाता है।
उनका प्रेम जेल की दीवाि की मौजदू गी मंे पवस्ताि नीलादं न औि हर्थनी पारुकु ट्टी के माध्यम े के िल
पाता है, लेककन इ का मापन एक पविाट के ग्रामीर् जीवन का अद्भतु र्चत्र इ कृ नत मंे
एकाकीपन के ाथ होता है। दोनों एक-दू िे को ढ़दखता है। इ उपन्या की ताजगी इ रूप में भी
28 खंड-1, अकं -1 (प्रवशे कं : वर्ष 2020) वी.एम. िशीर: स्वतंत्रता ेनानी
औि मलयालम ाढ़हत्यकाि।
ाढ़हत्य अकादमी तथा के िल
ाढ़हत्य अकादमी े िे लोसशप
प्राप्त। श्रेष्ठ कहानी के सलए के िल किल्म पुिस्काि।
है कक यह पाठक को लगाताि गदु गदु ाता चलता है। समीक्षक: डॉ सशु ील उप ध्य य
मा मू ढ़दखने वाले चोिों का र्गिोह जब गोबि का िेशरम
ढेि चुिाने के सलए ननकलता है तो िात मंे वह यह लेखखक : तसलीम नसरीन
नहीं देख पाता कक यह ढेि गोबि का है अथवा यहां ि ंग्ल से ह दं ी अनवु द
पि बबगड़लै हाथी नीलादं न ोया हुआ है। अनवु दक: उत्पल िैनजी
दाशनण नकता का पटु इ उपन्या मंे भी है, जब र जकमल प्रक शन, 2019
तोमा नाम का चोि, इंस्पेतटि चीता मातन े
कहता है,"हुजिू , आप चाहे तो मेिी जीभ पि कील चर्चणत लेखखका त लीमा न िीन
ठोक दें। पि, प्रभु ई ा म ीह को लकड़ी के िू का अपना एक अलग पाठक वगण है,
पि लटकाया गया था, किि र्गिजाघि को ोने के जो उनकी ककताबों, कहाननयों,
िू की तया जरूित है?" उपन्या ों की तत प्रतीक्षा किता
है। उनका नया उपन्या 'बेशिम' कई स्तिों पि
इन लघु उपन्या ों की भाषा में स्पष्ट काव्यात्मक उनके पाठकों को जोड़ता है। इ उपन्या को
भी ढ़दखती है। उपन्या ों का कथा तत्व कहीं 'लज्जजा' उपन्या की अगली कड़ी कह कते हैं,
प्रभापवत नहीं होता औि ृशश्य-र्चत्रात्मकता का लेककन यह एक स्वतंत्र िचना है। लज्जजा उपन्या
ननमाणर् किते हुए आगे बिता जाता है। की पषृ ्ठभसू म में िाजनीनत मखु ्य रूप े आती थी।
उपन्या काि की िाजनीनतक मझ, माज के प्रनत जबकक, इ उपन्या में िाजनीनतक न्दभों का
उ की ृशजष्ट, ामान्य मनुष्यों के द्वंद, उनकी इस्तमे ाल तो हुआ है, लेककन इ के कंे द्र मंे अपना
छोटी-छोटी अपेक्षाओं को हि जगह स्पष्ट रूप मंे वतन छोड़कि नई दनु नया मंे आने वाले लोगों के
देख कते हैं। न्त्रा का अनभु वस तत वर्नण मौजूद है।
जहां तक अनवु ाद की गरु ्वत्ता का प्रश्न है, उ यह उपन्या लज्जजा उपन्या की पषृ ्ठभूसम का
पि थोड़ा औि ध्यान ढ़दया जा कता था। प्रिू की इस्तमे ाल किते हुए आगे बिता है। उपन्या की
गलनतयां कक ी भी जागरूक पाठक को पिेशान शुरुआत लेखखका द्वािा कोलकाता मंे अचानक
किेंगी ही। कई प्रनतजष्ठत अनुवादक शब्दानवु ाद के लज्जजा के एक पात्र ुिंजन के ाथ मलु ाकात े
स्थान पि रां किएशन को महत्व देते हंै। इ के होती है। यह वही िु ंजन है, जज को के न्द्र मंे
जरिए पात्रों औि स्थानों के नाम को स्रोत भाषा के िखकि लज्जजा उपन्या सलखा गया था। लेखखका
पाठको की अपेक्षा के अनुरूप बदल सलया जाता है।
इ ककताब के अनुवाद में ऐ ा नहीं ककया गया है। खडं -1, अकं -1 (प्रवेश कं : वर्ष 2020) 29
किया औि पद-प्रयोग म्बन्धी गलनतयां भी
अखिती हैं। किि भी, इन तीनों लघु उपन्या ों का
यह ंकलन न के वल पठनीय है, बजल्क बशीि के
िचनाकमण के कािर् याद िखने योग्य भी है।
डॉ. सशु ील उप ध्य य: पत्रकाि, लेखक एवं सशक्षक।
चमनलाल महापवद्यालय, हरिद्वाि में प्रधानाचाय।ण
मीडडया, भाषा औि ाढ़हत्य पवषयक चौदह पुस्तकंे
प्रकासशत।
संतोर् एलेक्स: कपव, लेखक औि
बहुभाषी अनुवादक। मलयालम में
काव्य- गं ्रह प्रकासशत। अनके
पसु ्तकों का अनवु ाद।
इ बात े बेख़बि है कक ुिंजन औि उ के तसलीम नसरीन: पु ्रस ि
परिवाि के लोग बांग्लादेश मंे 1993 के ांप्रदानयक
दंगों मंे बच गए थे औि वहां े पलायन कि भाित लेखखका औि पवचािक। उपन्या ों
आ गए। तब लेखखका को पता चलता है कक िु ंजन
के पपता धु ामय का देहातं हो चकु ा है तथा उ की के कािर् वजै श्वक ख्यानत प्राप्त।
बहन माया औि मां ककिर्मयी जजन्दा हैं। उपन्या
के आखखि में लेखखका की मलु ाकात जुलेखा े होती अनके देशों द्वािा कई पुिस्कािों े
है औि उ के ाथ बातचीत किते हुए कहानी ख़त्म
हो जाती है। लेखखका इ बात की भं ावना के ाथ म्माननत। उनके लेखन का लगभग ती भाषाओं
उपन्या को खत्म किती हंै कक एक सभन्न
पषृ ्ठभसू म औि अलग तिह की चनु ौती को कें द्र मंे मंे अनुवाद ककया गया है।
िखकि उनका नया उपन्या भी ामने आएगा,
जज े लज्जजा औि बशे िम की अगली कड़ी माना जा आता है। यह उपन्या उन लोगों को गहिे तक
बाधं ता है जो अपनी जड़ों े अलग हो गए हैं। ऐ े
कता है। लोगों का ननवाण न चाहे अपनी मजी े हुआ हो या
परिजस्थनतयों ने उन्हें बाध्य ककया हो, दोनों ही
जब हम त लीमा न िीन की िचनाओं का जस्थनतयों में वे कक ी न कक ी स्ति पि एक ही
मूल्यांकन किते हंै तो अचानक िचनाकाि का भी
मूल्यांकन किने लगते हंै। इ सलए लेखखका को भी ोच े ंचासलत होने लगते हैं। इ उपन्या की
उपन्या के भीति तलाशते जाते हंै। त लीमा भसू मका में त लीमा न िीन सलखती हैं, "इ े मनैं े
न िीन के वल दक्षक्षर् एसशया मंे नहीं, बजल्क यिू ोप बहुत तजे ी े सलखा है। मानो मझु े वे ािे लोग
औि दनु नया के कई अन्य ढ़हस् ों में भी जानी- ढ़दखाई दे िहे थ!े मानो उनके ंग मेिी बातचीत हो
पहचानी लेखखका हैं। वे िाजनीनतक मदु ्दों पि बहुत िही थी! मनंै े भी तो अपना देश छोड़ ढ़दया है।
मुखि हैं। उनकी िाजनीनतक मखु िता औि लेखकीय
तीखापन उन्हंे एक अलग धिातल पि स्थापपत भं व है हमािी तकलीि एक जै ी ही थी।"
किता है। वह जज प्रकाि े धासमकण मान्यताओं,
झूठी आस्थाओं औि धमण के नाम पि होने वाले यह उपन्या ननवाण न के ंदभों के गहन उल्लेख
पाखंड पि चोट किती हैं, उ े पि- नु कि एक बड़ा के ाथ- ाथ मढ़हलाओं की चुनौनतयों, उनके दैढ़हक
वगण उनके खखलाि एकजुट होने लगता है। इ ी का शोषर् औि उनके अजस्तत्व के प्रश्नों को भी बहुत
परिर्ाम है कक वह किीब ढाई दशक े अपनी गहिाई े उठाता है। उन्होंने एक जगह सलखा, "मनैं े
मातभृ ूसम बागं ्लादेश े बाहि िह िही हैं। बेशिम जब माया के बािे मंे पछू ा तो ककिर्मयी िो पड़ी।ं
उपन्या मंे लेखखका की वह पीड़ा बाि-बाि उभि वे िोती-िोती बोलीं कक उ की बात मत पूछो, उ का
कि आती है, जज े पता चलता है कक भले ही ढ़दमाग ठीक नहीं है। अब उ े तया समलोगी? उ े
बांग्लादेश औि भाित दोनों की ांस्कृ नतक पविा त देखकि तमु ्हें अच्छा नहीं लगेगा। मनैं े लम्बी ां
एक मान है, लेककन कट्टिता औि कठमलु ्लापन छोड़ते हुए कहा- आप लोगों की यह दशा देखकि
यहां भी उनका पीछा नहीं छोड़ता। वह अपना वतन तया मुझे अच्छा लग िहा है? मेिा मन कह िहा है
छोड़कि जज धिती पि आई है, वह धिती उन्हें कक माया ठीक नहीं है, मंै तभी तो माया को देखना
आश्रय तो देती है, लेककन वतन का एह ा नहीं चाहती हूं। ककिर्मयी बोलती िहीं- मंै उ े
देती। बेशिम उपन्या इ ी क क को बाि-बाि
उठाता है कक पिाए माहौल औि पिाए लोगों के बीच मझाऊं गी, कहूंगी कक वह तमु े एक बाि ज़रूि
जीवन बबताना ककतना मुजश्कल होता है। लेखखका समल ले। उ की कोई हेली वगैिह भी नहीं है।
का अपना अनभु व अनके बाि पात्रों के पवचािों, वह कोई स्वाभापवक जीवन नहीं जी िही है।
उनकी ोच औि उनके व्यजततत्व मंे उभि कि बांग्लादेश के लड़कों ने उ पि जज तिह े
अत्याचाि ककए थे, उ के तो जजन्दा िहने की
30 खंड-1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वर्ष 2020) उम्मीद ही नहीं थी। पता नहीं, ये ािी चीज़ें उ के
ढ़दमाग े कै े ननकल पाएंगी! आज भी वे ािी
बातें उ के सलए द:ु स्वप्न की तिह हंै। उ ने कामना
की थी कक वह एक नॉमलण लाइि जजएगी। कामना
किने े ही हि चीज़ समल पाती है तया! हां,
लेककन, बिु े में अच्छा यह है कक वह अब भी
नौकिी कि पा िही है। मुझे डि लगता है, कभी उपन्या मंे आखखि तक कथा का प्रवाह बना िहता
यह नौकिी छू ट गई तो? नु ा है कक वह दफ्ति में है।
भी चीखती-र्चल्लाती है। बांग्लादेश का प्र गं आते
ही वह ऐ ा किती है। उ देश का कोई ढ़दख जाए त लीमा न िीन की यह ककताब कोई िाजनीनतक
तो वह उ व्यजतत पि पवश्वा नहीं किती। वह कथा नहीं है, बजल्क एक ामाजजक कहानी है, जो
उ मूचे देश े नािाज़ है।' लोगों की जजंदगी, परिवाि औि उनके बीच पनपे
िाजकमल पेपिबतै द्वािा प्रकासशत ककए गए इ बं ंधों के बािे में है। िु ंजन, ककिर्मयी, माया
उपन्या का ढ़हदं ी अनवु ाद मलू बागं ्ला े उत्पल औि जलु ेखा तथा लेखखका का उन पात्रों े ननिंति
बैनजी ने ककया है। चकंू क अनुवादक ढ़हदं ी के सशक्षक
हैं औि वह खुद बांग्लाभाषी हंै इ सलए ढ़हदं ी वं ाद किना इ उपन्या को गनतमान बनाए
अनुवाद पिते हुए मूल जै ा ही आस्वाद प्राप्त होता िखता है। त लीमा न िीन के लेखन की खास यत
है। हालांकक, इ अनुवाद मंे अंग्रेजी के शब्दों को यह भी है कक उनका कथानक कक ी किल्मी ृशश्य
अनावश्यक रूप े ज्जयों का त्यों िखा गया है। की तिह आगे बिता औि पाठक उनके सलखे े
बागं ्ला के भी कािी शब्दों का इस्तमे ाल हुआ है, प्राय: ननिाश नहीं होता। वस्तुतिः यह एक पठनीय
लेककन उन े अनुवाद के प्रभाव मंे कक ी प्रकाि की उपन्या है, जो मकालीन दनु नया के एक
ढ़दतकत पदै ा नहीं होती, बजल्क बांग्ला माज की महत्वपूर्ण पहलू को पूर्तण ा में प्रस्ततु किता है।
उपन्या मंे उपलब्ध पवविर् औि वं ादात्मकता
ांस्कृ नतक पषृ ्ठभूसम औि ज्जयादा उभिकि ामने इ े औि प्रभावपरू ्ण बनाते हंै। यह भी ंभव है कक
आती है। उपन्या के अनं तम ढ़हस् े मंे अनवु ादक कु छ लोग इ उपन्या में त लीमा न िीन की
ने अपनी ढ़टप्पर्ी में सलखा, "यह उपन्या परु ुष अ ली जजदं गी को तलाश किेंगे, तब भी इ े एक
प्रधान माज की दककयानू ी मानस कता की अच्छी औपन्यास क िचना ही माना जाएगा।
सशकाि जस्त्रयों के आत्म ंघषण का जीवतं आख्यान
तो है ही इ में ांप्रदानयक वमै नस्य की भयावह डॉ. सुशील उप ध्य य: पत्रकाि, लेखक एवं सशक्षक।
परिर्नतयों का ननदशणन भी है। उन्होंने सलखा, चमनलाल महापवद्यालय, हरिद्वाि में प्रधानाचाय।ण
"गिीबी, भूख औि वंचना की आग मंे झलु ता यह मीडडया, भाषा औि ाढ़हत्य पवषयक चौदह पसु ्तकंे
स्वासभमानी परिवाि एक ढ़दन मझौतों के दलदल प्रकासशत।
में बिु ी तिह िं जाता है। लेखखका ने कथा के
महीन ताने-बाने मंे जीवन के महान आदशों का के िोसलना के उत्पल िैनजी: प्रख्यात अनुवादक।
बांग्ला े ढ़हन्दी मंे अनके पुस्तकों
पना देखने वाली युवा पीिी के , व्यवस्था की का अनवु ाद। अमरे िकन
ननममण चपेट मंे आकि, छीजने बबखिने को, बायोग्राकिकल इंस्टीट्यटू ऑि नॉथण
बेिोजगािी के डिावने बबयाबान मंे जजस्मििोशी के लाहकाि बोडण के मानद दस्य।
दलदल मंे धाँ ती लड़ककयों के कष्टों को बड़ी ही
मासमकण ता े पपिोया है।"
त लीमा न िीन की अन्य िचनाओं की तिह इ
उपन्या मंे भी उन्होंने स्त्री-परु ुष के रिश्तों को
उनकी परू ्ण स्पष्टता के ाथ प्रस्ततु ककया है। इ
प्रस्तनु त में ऐ ी कोई खझझक नहीं ढ़दखती जो कक
ढ़हदं ी की ज्जयादाति लेखखकाओं की िचनाओं में
ढ़दखाई पड़ती है। कु छ जगहों पि उपन्या
पाटबयानी का सशकाि हुआ है, लेककन किि भी
खडं -1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वर्ष 2020) 31
समीक्षक: डॉ सुशील उप ध्य य पहचान तथा नया आकाि देने मंे जुटा था। अनके
भू-देवत प्रकाि की पवषम परिजस्थनतयां पवकिाल रूप मंे
लेखक: के शव रेड्डी
तले ुगु से ह दं ी अनवु द ामने थी। देश के अनके ढ़हस् ों में खू ा, बाि
अनुव दक: जे.एल. रेड्डी औि प्राकृ नतक आपदाएं हि ाल की ामान्य
र जकमल प्रक शन, 2019 घटनाओं की तिह दस्तक दे िही थी। इन ब का
कोई माधान ामने नहीं था, इन घटनाओं के
कक ी एक लेखक के िचनाकमण की
कक ी दू िे लेखक के ाथ हज ब े पहले ाक्षी औि पीडड़त उन इलाकों के
तुलना नहीं की जा कती, लेककन कक ान ही थे।
के शव िेड्डी के उपन्या भू-देवता
को पिते हुए अनाया ही प्रेमचंद की याद आती लेखक के शव िेड्डी के शब्दों में कहें तो इ
है। इ तले ुगु उपन्या का जेएल िेड्डी ने ढ़हदं ी उपन्या का नायक के वल कक ानों का ही नहीं,
अनुवाद ककया है। प्रस ि कथाकाि अमिकातं ने भ-ू बजल्क िाष्र-जीवन की अजस्मता का भी च्चा
देवता को भी भाषाओं के जागरूक औि प्रनतननर्ध है। अपनी धिती को लेकि उपन्या काि
वं ेदनशील पाठकों के सलए एक महत्वपूर्ण कृ नत के मन मंे जो भाव मौजूद है, वह देश के हि एक
बताया है। कक ान का प्रनतननर्ध भाव है। उपन्या इ
के शव िेड्डी ने अपने लेखन मंे बहुत शुरुआती दौि स्थापना को मजबूत किता है कक कक ान औि
े ही कक ान-मजदिू ों की मस्याओं औि माज जमीन का बं धं शिीि औि आत्मा के ंबधं जै ा
के वरं ्चत लोगों की जजंदगी का प्रभावपरू ्ण औि है। जमीन कक ान की आत्मा है। यढ़द आत्मा नहीं
मासमकण र्चत्रर् ककया है। भू-देवता उपन्या भी एक िहेगी तो कक ान भी नहीं िहेगा। के शव िेड्डी ने
कक ान की जीवन-भि की पीड़ा की ंर्चत गाथा है। इ उपन्या में कक ान के ाथ जुड़े पूिे
इ मंे उ की अ िलता, उ का अ ुिक्षा बोध औि
मतृ ्यु तक की यात्रा को अद्भतु ंवदे ना के ाथ ामाजजक, आर्थकण तंत्र को भी नए स िे े
प्रस्ततु ककया गया है। परिभापषत ककया तयोंकक जब कक ान पिेशानी मंे
िं ता है तो यह पिेशानी उ की पिू ी बस्ती औि
भू-देवता का कथा मय आजादी के वतत का है। गांव को भी अपने घेिे मंे ले लेती है। तब यह
देश आजाद हो गया था औि अपने आप को नई व्यथा कक ी एक कक ान अथवा कक ान मूह की
नहीं होती, बजल्क इ की कीमत पिू े ग्रामीर् माज
32 खंड-1, अकं -1 (प्रवशे कं : वर्ष 2020) को चकु ानी होती है।
िाजकमल पेपि बैत े प्रकासशत इ उपन्या मंे
अनुवादक ने उपन्या की मलू कथा के ाथ- ाथ
उ े जुड़े दं भों को भी पवस्ताि े प्रस्तुत ककया
है। उपन्या की कहानी बहुत ही ीधे ढंग े शुरू
होती है। शुरुआती पवविर् ामान्य लगते हंै,
लेककन जै े-जै े कथा आगे बिती है पाठक उ के
ाथ बधं ता जाता है। जजन लोगों का रिश्ता गावं
औि खेती े है, वे बहुत हज रूप में इ
उपन्या के ाथ ाधािर्ीकृ त हो जाते हंै। ंभव
के शव रेड्डी: म्माननत
उपन्या काि। ऑत िोडण लघु
उपन्या श्रखंृ ला ढ़हत अनेक
िचनाएं प्रकासशत।
है यह उपन्या नगिीय पाठकों को अपने ाथ औि उ का जीवन-यिु के शव िेड्डी की िचनाओं मंे
अपेक्षक्षत गहिाई े ना जोड़ पाए, लेककन यह तथ्य बाि-बाि ध्वननत होता है।
बेहद महत्वपूर्ण है कक उपन्या काि के शव िेड्डी
आंध्र प्रदेश के प्रनतजष्ठत चमण िोग पवशेषञ र िहे हैं। इ उपन्या की शैली आत्मकथात्मक है। इ शैली
वे माज के भीति मौजदू अंतपविण ोधों, पवडबं नाओं के कािर् भी उपन्या का कथा तत्व प्रभावी होकि
औि पाखडं ों का बहुत प्रभावी ढंग े न के वल उभिता है। जहां तक उपन्या के अनुवाद की
आकलन किते हैं, बजल्क इन े पाि जाने का िास्ता गुर्वत्ता की बात है तो कु छ छोटी कसमयों को
भी ढ़दखाते हैं। कक ी माज मंे शोषर् के ककतने छोड़कि भाषा का प्रवाह हि जगह बना िहता है।
रूप हो कते हंै, के शव िेड्डी के उपन्या ों को स्रोत भाषा औि लक्ष्य भाषा, दोनों एक-दू िे के
पिने े इ बात को बहुत अच्छे ढंग े मझा ननकट ढ़दखाई देती हैं। यह उपन्या इ भिो े के
जा कता है। उपन्या की भसू मका मंे अनवु ादक ने
के शव िेड्डी को उितृ किते हुए कहा, 'तमु ्हािे चािों ाथ खत्म होता है, "गावं के लोग पवश्वा किते हैं
तिि जो दषु ्ट शजततयां हंै, उनके ाथ जो अनवित कक कई शताजब्दयों पहले इ प्रांत के नायक ने इ
गांव में एक तालाब खुदवाया था।..... इ गावं के
घं षण किते िहते हो, वह घं षण ही जीवन है। लोग पवश्वा किते हंै कक कई दशक पहले हमािे
मनुष्य के जीवन में यह आवश्यक ही नहीं, गावं में वतकी िेड्डी नाम का एक कक ान था औि
अननवायण भी है, पिंतु दभु ाणग्य की बात है कक यह इ गांव के लोग पवश्वा किते हैं, उ कक ान का
इ गांव मंे एक शाश्वत स्थान है। इ सलए पजश्चम
घं षण धमबण ि िीनत े होता नहीं ढ़दखता।" ढ़दशा े गावं में प्रवशे किने वाला हि व्यजतत गांव
भू-देवता उपन्या की एक खबू ी यह भी है कक के ननकट पहुंचते ही अपना स ि झकु ा लेता है।"
इ के पात्रों की उच्चता, ननम्नता, अच्छाइयां, उपन्या जज भिो े के ाथ खत्म होता है, उ
बुिाइयां, उनकी मथतण ा, छोटे-छोटे लालच, जजदं गी भिो े को पनु िः स्थापपत किना िाष्र िाज्जय, िाष्र के
को जीने का घं षण पित-दि-पित खुलता जाता है। व्यवस्था-तंत्र औि उ के नीनत ननयंताओं के हाथ मंे
वह च में एक माजशास्त्री औि भपवष्य को है। भू-देवता हि ृशजष्ट े पठनीय उपन्या है। यह
देखने वाले लेखक के रूप में भाित के ग्रामीर् अपने ासं ्कृ नतक परिवशे को भी ुंदि ढंग े
जीवन का च्चा र्चत्रर् किते हंै। प्रस्तुत किता है।
के शव िेड्डी को इ बात का श्रेय भी जाता है कक
जब ढ़हदं ी मंे दसलत पवमशण बहुत प्रािंसभक स्ति पि डॉ. सुशील उप ध्य य: पत्रकाि, लेखक एवं सशक्षक।
था, तब वह इ मदु ्दे को अपने उपन्या ों में प्रभावी चमनलाल महापवद्यालय, हरिद्वाि मंे प्रधानाचाय।ण
ढंग े उठा िहे थ।े उपन्या के नायक का कथन मीडडया, भाषा औि ाढ़हत्य पवषयक चौदह पसु ्तकंे
इ उपन्या औि कक ान मस्या का कें द्रीय तत्व प्रकासशत।
है, जब वह अपनी जमीन लटु ने पि कहता है, "अब
तो मुझे कक ी े कोई काम नहीं है। अब मैं कक ी ज.े एल. रेड्डी: तले गु ू े ढ़हन्दी मंे
को अपना मुंह नहीं ढ़दखा कता। अब मेिा इ अनके उपन्या ों औि कहाननयों का
दनु नया मंे कोई नाता रिश्ता नहीं है। कोठे पि जीने अनुवाद। ाढ़हत्य अकादमी द्वािा
वाले चमगादड़ की तिह, पेड़ के कोटि मंे िहने वाले अनवु ाद कायण के सलए म्माननत।
उल्लू की तिह अब मझु े अरं ्धयािे की ही जजदं गी
बबतानी होगी। गावं मंे मुझे एक अशुभ शकु न की
तिह बचा िहना होगा। शुभ काम के सलए ननकले
हुए लोगों के ामने मैं पड़ जाऊं तो लोग अपनी
यात्रा का पवचाि छोड़ दंेगे।"
अपनी जमीन खो चकु े कक ान की यह पीड़ा बहुत
गहिे तक झकझोि देती है। कक ान की यह ददु णशा
खंड-1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वर्ष 2020) 33
अगं ्रेज़ी फ़िक्शन
समीऺक: सीमीन अऱी आवश्मकता थी। A PEOPLE’S HISTORY OF
A PEOPLE’S HISTORY OF HEAVEN: A HEAVEN: A NOVEL भंे ऐसा कु छ बी नह़ीॊ है।
NOVEL मह अऩने ऩाठकों को एक तीस वषष ऩयु ाने तरभ के
ऱेखखक : Mathangi Subramanian ननवाससमों से सभरने के सरए आभॊत्रित कयता है,
Hamish Hamilton/Penguin, Random जजसभंे सबी सशक्त भदहराएॊ हैं तथा कहानी का
House India, 2019 ननयॊतय प्रवाह इस उऩन्मास को औय अधधक
ददरचतऩ फनाता है। मे भदहराएॊ औय ऱिककमाॊ
जफ भनैं े इस उऩन्मास को ऩढ़ना कभजोय, दब्फू मा शोवषत ऩाि नह़ीॊ हैं, ऩयॊतु भजफतू
आयॊब ककमा, तो भझु े ऐसा रगा कक इच्छाशजक्त एवॊ ककसी बी ऩरयजतथनत का साभना
इस उऩन्मास ने अऩने ऩाठकों को कयने वाऱी दृढ़ भदहराएॊ हंै। ‘शीघ्र ह़ी, हभ ऱिककमाॊ
फगंै रोय की झुग्गी-झोऩड़िमों भंे यहने सीख जाती हैं कक जीवन हभंे कु छ नह़ीॊ देता,
वारे रोगों तक ऩहुॊचा ददमा। दो भदहरा होने का अथष ह़ी है उऩद्रवों, भुसीफतों औय
ककताफंे जो भनैं े सारों ऩहरे ऩढ़़ी थीॊ, भेये ददभाग भें िासददमों से जूझना।‘
आईं: वषष 2003 भें ग्रेगोय़ी डवे वड यॉफर्टसष का
उऩन्मास शातॊ ायाभ, जजसभंे फॉम्फे औय ससट़ी ऑप ....जो फातें इस ऩुततक को कापी योचक फनाती हैं
जॉम की भसरन फजततमों को दशाषमा गमा था औय वे सॊवेदनशीर जेंडय तथा मौन सफॊ धॊ है जजसकी
वषष 1985 भंे डोसभननक रवै ऩएये का उऩन्मास चचाष दो ऩािों, रुखसाना औय जॉम के प्रश्नों के
जजसभंे करकत्ता की भसरन फजततमों का वणनष था। भाध्मभ से की गई है। सवॊ दे नशीर जंेडय तथा मौन
ऩयॊतु दोनों भंे, झगु ्गी के अदॊ य सयसय़ी तौय ऩय सफॊ धॊ ों के फाये भंे रुखसाना औय ऱीरा की एक दसू ये
ध्मान ददमा गमा। वहाॊ फाहय से आकय फसे रोगों के प्रनत बावनाओॊ को कबी बी एक आउटरेट नह़ीॊ
औय ऩहरे से ह़ी वहाॊ यह यहे रोगों का आऩस भंे सभरता है, ऩयॊतु ददर की हरचर को उनकी दोतती
सॊऩकष था। ववश्व के इस बाग की ओय ऩाठकों का भंे खफू सयू ती से व्मक्त ककमा गमा है जो वे ऱीरा
ध्मान आकवषतष कयने के सरए वाततववकता की औय उसकी भाॊ के जाने से ऩहरे साझा कयती हंै।
रुखसाना तवमॊ के सरए एक आवाज की तराश
34 खडं -1, अकं -1 (प्रवेश कं : वषष 2020) कयती है तथा खुद को ऩरु ुष द्वाया घूयने से फचाने
के सरए तवमॊ को ढकने ऩय सवार उठाती है। वह
आगे फढ़ती है तथा अऩने रॊफे फारों को काटती है,
जो भदहराओॊ के सरए न के वर सदुॊ यता का एक
भानक भाना जाता है, फजकक शाद़ी के सरए बी
उऩमकु ्त सभझा जाता है। जफ उसकी भाॊ अऩने घय
की नई चीजें खय़ीदने के सरए उसके कटे हुए फारों
को फेचने के सरए इकर्टठा कयती है तफ वह दृश्म
एक अनूठा अहसास कयता है।
....जफ ऩाठक इस ऩतु तक के अतॊ भें ऩहुॊचता है, तो
उसे उस ऩ़िाव का एहसास होता है जजसभंे वह
यहता है औय अऩने फाये भें उन ऩहरओु ॊ को
नजयअदॊ ाज कयता यहता है जो रफॊ े सभम से चरते
आ यहे हंै। ऩुततक सभकाऱीन सभम के भहत्वऩूणष
अध्ममनों भंे से एक है क्मोंकक मह तट़ीरयमोटाइप्स समीऺक: वसधुं र ससरनेट ड्रने न
(we can say- रूदढ़वाद़ी ववचाय धया or just let I HAVE BECOME THE TIDE
it be) के साथ आगे नह़ीॊ फढ़ती, फजकक ऩािों को ऱेखखक : Githa Hariharan
ऩाठकों के कय़ीफ राती है तथा उन्हंे कटघये भंे ख़िा Simon and Schuster, India, 2019
नह़ीॊ कयती है।
…‘ववश्व भंे सबी कु छ अधधकतय है।अधधकतय जजॊदा, गीता हरयहयन का भासभकष उऩन्मास
अधधकतय भदु ाष। अधधकतय ऩनत, अधधकतय I Have Become The Tied उन
ऩजत्नमा।ॊ अधधकतय एक साथ, अधधकतय अरग- रोगों की भदद कयने का फेहतय
अरग। अधधकतय जो आऩको खोखरा कयते हैं। प्रमास है जजन्हंे फरऩवू कष बायत की
जीवन के सरए सघॊ ष।ष ” क्रू य साभाजजक व्मवतथा भंे यखा गमा था, वे अऩनी
सीमीन अऱी वतभष ान भंे ददकऱी ववश्वववद्मारम, गरयभा, आवाज तथा सम्भान से वॊधचत थे। मह
ददकऱी से अगॊ ्रेजी सादहत्म भें ऩीएचडी कय यह़ीॊ हंै। ऩतु तक दसरतों के इनतहास का प्रनतननधधत्व कयती
है तथा उस इनतहास को बायत की वतभष ान नघनौनी
म तंगी सबु ्रमखणयन: ऩयु तकृ त सभकाऱीन याजनीनत भें शासभर फताती है।
रेखखका औय सशऺक बायत भंे
मूनते को भहात्भा गाॊधी इॊतट़ीर्टमूट .........धचजक्कमा को गीत भें मह प्रश्न सुनाई ऩ़िता
ऑप एजकु े शन पॉय ऩीस की है कक वह जभीन कहाॊ है जहाॊ जर ननफाधष रूऩ से
सॊतथाऩक सदतम। फच्चों के सरए फहता हो? ननफाषध जर फहाव की मह खोज,
तीन ऩुततकों का रेखन। असीभता एवॊ अनॊतता का प्रतीक है, जो धचजक्कमा
की तवतन्िता की तराश का प्रनतननधधत्व कयता है।
वरै ़ी ऑप वर्डसष अतॊ याषष्ऱीम सादहत्म एवॊ ‘अछू त’ व्मजक्त के रूऩ भें जन्भ रेने वारा
करा भहोत्सव - 2017 भें अगॊ ्रेज़ी किक्शन धचजक्कमा, बायत भंे एक अननददषष्ट मुग के दौयान
श्रेणी भें ऩयु तकृ त आनदॊ ग्राभ नाभक एक जानतह़ीन कम्मनू भंे शासभर
धथगॊ ्स टू ऱीव त्रफहाइॊड हो जाता है। धचजक्कमा उत्ऩी़िन से भजु क्त चाहता है
रेखक: नसभता गोखरे तथा सम्भान, गरयभा औय साथकष जीवन की तराश
प्रकाशक: ऩंेगुइन यैनडभ हाउस इॊडडमा कयता है। वह इस कम्मनू भंे खशु ी के उऩाम ढूॊढता
है। वह औय उसकी ऩत्नी भहादेवी ऩढ़ने मा सरखने
भंे असभथष हंै ककन्तु वे एक-दसू ये के गीतों को ऩूया
खंड-1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वषष 2020) 35
कयते हैं, कम्मून भंे कामष कयते हुए वे अऩने फच्चे समीऺक: मधसु मत चक्रवती
कन्नप्ऩा की ऩयवरयश कयते हंै। वे अऩने इकरौते SYNAPSE: RATAN OAK STORIES
फेटे को ऩढ़ने के सरए भठ भें बेजने की व्मवतथा ऱेखक: Kalpish Ratna
कयते हैं, जफकक उन्हें मह ऻात नह़ीॊ होता कक मह Speaking Tiger Publications, New Delhi,
ननणषम उनके तथा उनके फेटे के जीवन भें क्मा 2019
फदराव राएगा, औय इनतहास भें उसका तथान
ककस तयह ननधाषरयत होता है, तथा उसके जीवनी SYNAPSE: RATAN OAK
का अध्ममन कयने वारे सादहत्म के एक प्रोपे सय के STORIES ककऩीश यत्न की
बाग्म ऩय अॊतत् क्मा ववडम्फना घट़ी है। काकऩननक दनु नमा से भेया ऩहऱी
.......हरयहयन भें तीन अरग-अरग कहाननमाॉ फताने फाय साभना हुआ है, इसके फाये भंे
तथा उन्हें सभादहत कयने की ववशषे ऺभता है। भुझे इस ककताफ को ऩढ़ने से ऩहरे वाततव भंे कु छ
कहानी भें प्रत्मेक व्मजक्त— धचजक्कमा, कन्नऩा- बी ऻात नह़ीॊ था। ऩुततक के वऩछरे ऩषृ ्ठ ऩय सरखे
कन्नादेव, प्रोपे सय कृ ष्णा, यवव, सत्मा, आशा, ऩरयचम से उनकी ऩहचान इशयत समै द औय
प्रोपे सय संधे थर—अऩने-अऩने तय़ीके से जानतवाद को ककऩना तवाभीनाथन के रूऩ भंे होती है, जो
सभाप्त कयने मा इसे चुनौती देने का प्रमास कयते ककऩीश यत्न के नाभ से सॊमुक्त रूऩ से रेखन
हंै। ऩयॊतु अॊत भंे, वे हाय जाते हंै। जानत भंे वह कामष कयते हंै। उनकी यचनाएॉ ववऻान तथा
ताकत होती है कक मदद उसे कोई चुनौती देता है तो भानववकी के फीच इॊटयपे स का ऩता रगाती हंै।
वह उसे दॊड देती है। यतन ओक तथा उनके दादा, याभयतन ओक से
वसुंधर ससरनेट ड्रने न द ऩोसरस प्रोजेक्ट इॊक उऩन्मास की शुरुआत The Quarantine Papers
अनुसधॊ ान ननदेशक एवॊ सह-सॊतथाऩक हंै। से होती है। दोनों रेखक सजनष हंै, औय उनकी
कहाननमाॊ इस ऻान को प्रनतत्रफतॊ्रफत कयती हैं।
गीत हररहरन: वऩछरे तीन दशकों ककऩना तवाभीनाथन द्वाया शीषकष SYNAPSE को
से उऩन्मास, कहाननमाॊ औय ननफधॊ इस प्रकाय तवमॊ ऩरयबावषत ककमा गमा है: आऩके
रेखन। हार ह़ी भंे Almost Home: भजततष्क के अदॊ य सौ दरसरमन SYNAPSE
Cities and Other Places प्रकासशत। आऩकी ततॊ ्रिका कोसशकाओॊ के फीच की खाऱी जगह
होती है। ऩयॊतु आऩके भजततष्क के फाहय, हभाये
वैऱी ऑप वर्डषस अतॊ याषष्ऱीम सादहत्म एवॊ
करा भहोत्सव - 2018 भंे अगॊ ्रेज़ी किक्शन
श्रेणी भें ऩुयतकृ त
भडयष इन भादहभ
रेखक: जये ़ी वऩटॊ ो
प्रकाशक: तऩीककॊ ग टाइगय ऩजब्रसशगॊ
36 खडं -1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वषष 2020)
चायों ओय, हभ एक SYNAPSE भें भौजदू हैं. जो समीऺक: रवव मेनन
आऩके , आऩके ववचायों, औय कु छ ऐसा जो घदटत THE RADIANCE OF A THOUSAND
होने वारा है, के फीच का तथान है। अत् SUNS
SYNAPSE वाततव भें वह जगह है जहाॊ से सबी ऱेखखक : Manreet Sodhi Someshwar
ववचाय आते हंै। (ओडडशा सरटयेय़ी पे जतटवर 2019, HarperCollins, 2019
'Synapse To Murder, Transforming Fact
into Fiction 'कजकऩश यत्न द्वाया यधचत) कहाननमाॉ मह तकष ददमा जा सकता है कक
इसको दशातष ी हंै। मह ऩरयवतनष उसी प्रकाय का है जफ ववबाजन प्रकक्रमा की ववतततृ
जैसे ववऻान औय भानववकी, अतीत एवॊ वतभष ान रूऩ से जाचॊ की गई, तो वषष 1946
तथा यतन औय उनके दादा के फीच ऩीढ़़ीगत तथा 1947 भंे बायत औय
ऩरयवतनष है। ऩाककततान (ववशषे रूऩ से ऩजॊ ाफ) के साभान्म ह़ी
मह कहानी सॊग्रह धचककत्सा इनतहास औय रोगों के द्वाया द़ी गमी बमानक अभनषु ्मता के
काकऩननक उऩन्मास सादहत्म की शैसरमों का सभश्रण ऩरयचम को कबी तवीकाय नह़ीॊ ककमा गमा है।
है। रेखकों की ऩेशवे य ऩषृ ्ठबूसभ रेखन भें तऩष्ट भनय़ीत सोढ़ी सोभेश्वय की THE RADIANCE
झरकती है, क्मोंकक वे ववसबन्न प्रकाय की धचककत्सा OF A THOUSAND SUNS ऩाठक को कपय से
जतथनतमों ऩय ध्मान कें दद्रत कयते हंै, जो कक भेंढकों सोचने वववश कयती है। ऩुततक भंे कई आॊतरयक
भें न्मूयो भतकु रय भोशन से रेकय भनोभ्रॊश, ववषम- एक-दसू ये के खखराप होते सभुदाम, दसू ये के
आत्भहत्मा, भानव तथा कई अन्म जतथनतमों की प्रनत घणृ ा, भदहराओॊ के शोषण तथा याष्रवाद की
खोज है। एक औय ऩहरू जजसभें रेखक ने अच्छे अवधायणा हंै। रेखक इन ववषमों को साथकष फनाने
रेखन का ऩरयचम ददमा है, वह है शोध जजसे के सरए ववबाजन की ऩषृ ्ठबसू भ, वषष 1984 के दॊगों
उन्होंने अऩने रेखन भंे शासभर ककमा है, जजसने तथा तीन भदहराओॊ की कहाननमों का प्रमोग कयता
उनके कथानक औय यचना को ह़ी नह़ीॊ, फजकक दोनों है। एक बाई दसू ये बाई के खखराप है, इस सॊदबष
के सभश्रण को सहज फना ददमा है। वाततववक तथ्मों को भहाबायत से जो़िा गमा है। भहाकाव्म के
को ध्मान भें यखते हुए तथा ववसबन्न ऩरयदृश्मों भंे एवऩसोड के सॊक्षऺप्त वववयण से ऩुततक सभाप्त
उन्हें रागू कयने के सरए कहाननमाॊ सत्म को होती है।
कपक्शन का रूऩ देने का प्रमास कयती हंै। साइॊस
कपक्शन मा काकऩननक उऩन्मास की शैसरमों भंे
रूधच यखने कयने वारों के सरए, मह सगॊ ्रह अऩने
आऩ भें अद्ववतीम है, ऩयॊतु वैददक वैऻाननकों औऱ
ब्राह्भणवाददमों को रूधचकय नह़ीॊ बी रग सकता।
मधसु मत चक्रवती अगॊ ्रेजी ववबाग, जाककय हुसनै
ददकऱी कॉरेज (साॊध्म) ददकऱी ववश्वववद्मारम,
ददकऱी भंे सहामक प्रोपे सय हंै।
कल्ऩीश रत्न : इशयत सयै ्मद औय
ककऩना तवाभीनाथन द्वाया ककऩीश
यत्ना नाभ से समॊ ुक्त रेखन।
उऩन्मास The Quarantine
Papers को क्रॉसवडष अवाडष के सरए
शॉटषसरतट ककमा गमा औय हार भंे प्रकासशत ऩुततक
Room 000 वषष 1896 भंे भुम्फई भंे पै रे
ब्मूफॉननक प्रेग ऩय आधारयत है।
खडं -1, अकं -1 (प्रवशे ंक: वषष 2020) 37
मह एक उच्च भध्मभ वगीम ‘नरवा’ ससख ऩरयवाय, उन्होंने सफ-सहाया अफ्रीका भें फकैं सदहत कॉऩोयेट
की कहानी है। वऩता वकीर हंै, जो नागरयक प्रसशऺण सतॊ थानों तथा फकैं ों के सरए नेततृ ्व
अधधकायों के भाभरे भें ववशषे जानकाय़ी यखते हंै। प्रसशऺण कामकष ्रभ सॊचासरत ककए हैं। उनके रेख द
ववबाजन तथा 84 के दॊगों, दोनों घटनाओॊ के दहदॊ ,ू न्मू इॊडडमन एक्सप्रेस औय द वामय भंे
ऩीड़ितों द्वाया वखणतष इनतहास को सावजष ननक फहस प्रकासशत हुए हैं।
के ववषम के रूऩ भंे ऩुततक का सॊकरन ककमा गमा
है। जफ उसकी भतृ ्मु होती है, तो उसकी ऩतु तक मनरीत सोढी सोमेश्वर: ऩयु तकृ त
अधयू ़ी यह जाती है, उसकी फटे ़ी उसे ऩूया कयने का औय सवाषधधक त्रफकने वाऱी ऩाॊच
प्रण रेती है। ऩुततकों की रेखखका। भेहरुजन्नसा
श्रॊखृ रा औय The Long Walk
...... ऩतु तक की रूऩयेखा मह है कक ववबाजन की Home से ववशषे ख्मानत प्राप्त।
बमावहता को बावी ऩीढ़़ी द्वाया बरु ा ददमा गमा है,
अतॊ ननदष हत ववषम भंे भदहराओॊ की जतथनत तथा वैऱी ऑप वर्डषस अतॊ याषष ्ऱीम सादहत्म एवॊ
हभाये सभाज भें उनकी बसू भका है। मह ऩुततक करा भहोत्सव - 2019 भें अॊग्रेज़ी किक्शन
भदहराओॊ की बूसभका को उजागय कयने वारे ऩािों श्रेणी भंे ऩयु तकृ त
के सरए कबी-कबी अऩनी कहानी को ववयाभ देती ए डे इन द राइप
है। कन्मा भ्रणू हत्मा मा ववतभतृ कय ददए गए रेखक: अॊजुभ हसन
रोगों के भदु ्दे को शजक्तशाऱी त्रफदॊ ु के रूऩ भें प्रकाशक: ऩंेगुइन यैनडभ हाउस इॊडडमा
शासभर ककमा गमा है ...
.....मह ऩतु तक एक ववजम गाथा के साथ सभाप्त
होती है क्मोंकक ननकी की फेट़ी नूयन द्वाया कढ़ाई
ककए गए कऩ़िे भें एक सयू ज फनाती है। एक
वातारष ाऩ भें ननकी अऩनी फेट़ी को ओऩेनहाइभय के
ववचाय से ऩरयधचत कयाती है, येधगततान भंे ऩयभाणु
फभ ववतपोट देखने के फाद बगवद गीता की एक
ऩजॊ क्त का तभयण कयाती है जजसभें ‘सौ सूमों के
तजे ’ का उकरेख है। प्रकाश का वणनष ननकी के
जीवन भें उऩमकु ्त सात्रफत होता है।
इस ऩुततक से हभंे मह फताती है कक हभ अऩने
सॊकट भंे ववबाजन की घटनाओॊ को बरू जाते हंै।
मदद सतॊ कृ नत द्वाया एक जुट ककए गए सभुदामों
को ऺण बय भंे धभष द्वाया ववबाजजत ककमा जा
सकता है, तो एक याष्र के रूऩ भंे बायत फहुत फ़िे
खतये भंे है। इसका एकभाि तय़ीका मह है कक
शाश्वत सत्म ‘हभ एक हैं’ को आत्भसात ककमा
जाए औय इसे अभर भें रामा जाए। भुॊडक
उऩननषद की शाश्वत ऩॊजक्त.... धधकती आग से
ननकरने वाऱी एक हजाय धचगॊ ारयमाॊ हंै हभ… .. ’को
माद यखना है।
रवव मेनन वषष 2011 भें मूननमन फकैं ऑप इॊडडमा
के भहाप्रफॊधक (प्रसशऺण) ऩद से सेवाननवतृ ्त हुए।
38 खडं -1, अकं -1 (प्रवशे कं : वषष 2020)
समीऺक: म ऱती मुखर्जी ऩहचानती हंै। कपय बी, जफ उस तवतॊिता का
THESE, OUR BODIES, POSSESSED BY प्रमोग कयने का सभम आता है, तो वे तवमॊ को
LIGHT अतीत की भदहराओॊ-भाताओॊ औय दाददमों की
ऱेखखक : Dharini Bhaskar ऩयॊऩया भें फॊधी हुई ऩाती हंै।
Hachette, India, 2019
ऩरु ुष ऩाि ऩयॊऩया से फॊधे नह़ीॊ हंै। वे अऩनी
‘………खख़िकी से प्रकाश को देखो। तवतिॊ ता को व्मक्त कयते हैं, बरे ह़ी कबी-कबी
इसका तात्ऩमष है कक मह दोऩहय है, फाद भें-उन्हंे ऩछतावा होता हो। ऩुरुषों को दोष ददमा
इसका तात्ऩमष है कक हभ शोकाकु र जाता है क्मोंकक वे फात नह़ीॊ कय सकते, मा क्मोंकक
हंै। भुझे वो सफ फताओ कक प्माय वे अऩने वादों ऩय कामभ नह़ीॊ यहते तथा अऩने
हभें कै से फफादष कयेगा। हभाय़ी देह योशनी से नघय़ी प्माय को व्मक्त नह़ीॊ कय सकते मा वे अऩने जीवन
हुई है। भझु े फताओ कक हभ कबी इसके आद़ी तो भंे भदहराओॊ के प्रनत असवॊ दे नशीर हंै, के वर अऩनी
नह़ीॊ होंगे।' भदानष गी ददखाना आवश्मक सभझते हैं।
रयचडष साइक की सदुॊ य कववता ‘शहयज़ादे’ न के वर
रुबावनी ऩॊजक्तमाॊ हंै, फजकक धारयणी बातकय के ऩाि आऩको ऩारयवारयक दृश्मों की ओय आकवषतष
शुरुआती उऩन्मास भंे पै ऱी हुई हंै। मह़ी नह़ीॊ, फजकक कयते हैं तथा आऩ उनके कय़ीफ आ जाते हंै; रक़िी
इसकी ववसशष्ट शैऱी आधे तथ्म, आधे रूऩक, आधी के दयवाजे के फीच की खझय़ी से झाकॊ ती ऩाचॉ सार
इच्छाएॊ तथा आधी ककऩनाएॊ–ऩाठकों को भॊिभगु ्ध की द़ीमा के साथ मह उम्भीद है कक अऩरयहामष
कयती हैं। जतथनतमाॊ फदर जाएॊगी। ऩाॉच सार की फच्ची की
अयेत्रफमन नाइर्टस के शहयज़ादे की तयह, जजनकी मादें फचऩन की उम्भीद को धचत्रित कयती हंै। अॊत
कहाननमाॊ बोय की धचतॊ ा से बय़ी हुई थीॊ, बातकय भंे, द़ीमा की कहाननमाॉ हैं जजन्हें ऩाठक ऩढ़ते हंै
की कहानी उदासी, रारसा की बावना, ववषाद से अऩनी तभनृ त औय ककऩना से घटनाओॊ का वणनष
मकु ्त हैं ताकक सफ से खशु ी के ऺणों भें बी आऩको कयती हुई वह हभें सचते कयती है – वे सॊबावनाएॉ
मकीन न हो कक मह अहसास ककतनी देय तक फना जजन्हंे वह अऩने फीस वषष के जीवनकार की
यहेगा। घटनाओॊ से जो़िती है। हभ मह जानते हैं हभ अऩने
नानमका द़ीमा भदहराओॊ की तीन ऩीदढ़मों को रुबाने फचऩन से उबयकय वमतक जीवन जीने के सरए
वाऱी एक कहानी फुनती है; सबी भजफतू भदहराएॊ असबशप्त हंै।
हंै- जो अऩने शय़ीय तथा भजततष्क की तवतिॊ ता को
धारयणी बातकय की बाषा ननबीक होने के साथ-साथ
प्रवाहमकु ्त है। प्रमकु ्त वाक्माॊश भौसरक हंै। रेखखका
की कहानी, उसके ऩाठकों के साथ फातचीत है- जो
दो अरग-अरग सभम की घटनाओॊ औय चरयिों के
फाये भें है, महाॊ तक कक सॊबावनाओॊ को बी साझा
कयती है।
म ऱती मुखर्जी एक रेखखका, अनुवादक औय
कवनमिी हैं।
धररणी भ स्कर: Simon औय
Schuster India की ऩूवष सऩॊ ादकीम
ननदेशक। Caravan’s Writers of
India Festival, Paris के सरए
ऩाॊच मवु ा बायतीम रेखकों भंे
सजम्भसरत। यचनाएॊ Day’s End Stories, Hindu
Blink औय Arre भें प्रकासशत।
खडं -1, अकं -1 (प्रवेश कं : वषष 2020) 39
अगं ्रेज़ी नॉन-फ़िक्शन
समीक्षक: आसम रशीद दाखखरा शभरा तफ उन्होंने अऩनी भाॊ के सुझाव ऩय
COMING OUT AS DALIT: A MEMOIR अऩने िौक्षऺक जीवन भें ऩहरी फाय अनुसूचचत
ऱेखखक : Yashica Dutt जातत/अनुसूचचत जनजातत की उम्भीदवाय के कॉरभ
Aleph Book Company, New Delhi, 2019 के आगे तनिान रगामा। दत्त के ऩास कोई ववकल्ऩ
नहीॊ था, ववत्तीम भदद औय छात्रववृ त्त रेने का मही एक
मशिका दत्त के कटु अनुबव की यास्ता था (ऩषृ ्ठ.60)। वे अऩनी बोरी चचतॊ न को माद
कहानी तीसयी मा चौथी ऩीढी के कयती हैं, कक सेटं स्टीपें स भें ऩहुॉच गईं तो सहज ही
दशरतों औय अन्म वचॊ चत तथा वे अऩने आऩको एक प्रोस्ट के ववचायों को दहु याने
अल्ऩसॊख्मक सभदु ाम के व्मक्ततमों की वारी, अऩने ऩय बयोसा कयनवे ारी, स्टाईशरि आर्टसा
ऩहचान को रेकय शरखी गई है। की छात्र भंे तफदीर हो जाएॊगी। वास्तव भें, वो
उनका वतृ ान्त व्मक्ततमों औय सभदु ामों के जीवन औय शरखती हंै, कोई अचधक फदराव नहीॊ आमा, उनके
उनके साथ घटटत होने वारी फातों के स्भयण के स्थानान्तय के शसवाम (ऩषृ ्ठ.62)। वह शरखती हंै,
साथ-साथ उनके अऩने जीवन की मादगाय एक छात्रा इससे बी कोई फदराव नहीॊ आमा। उनका आचथका
के तौय ऩय, एक ऩत्रकाय के रूऩ भें औय दशरत के सॊघर्ा जायी यहा। वह र्टमूिन ऩढाने रगी औय कॉर
तौय ऩय बी फमान हुआ है। सेंटय भें काभ कयने रगीॊ औय उन्होंने ऊॊ ची जाततमों
के छात्रों के साभने अऩने को कभ आकॊ ने की बावना
दत्त उन ऺणों को माद कय व्मचथत होती हैं जफ ऩय काफू ऩामा।
उनकी भाॊ स्कू र के प्रधानाचामों के कामारा मों भंे दत्त ने अऩने औय अऩने ऩरयवाय के सॊघर्ा को
ववनती कयती औय गुहाय रगाती हुई तनावग्रस्त थी शरवऩफद्ध ककमा है। उन्होंने अऩने भाता-वऩता औय
औय उनभें हीन बावना आ गई थी, क्जससे वह उबयी फुजुगों की भेहनत औय दृढता को येखाकॊ कत ककमा है
रेककन इसके ऩरयणाभस्वरूऩ उनके अॊदय ‘फहुत क्जसके क्रभ भंे दसू यी/तीसयी/चौथी ऩीढी के दशरत
अचधक कड़वाहट’ बय गई (ऩषृ ्ठ.36)। सपरता के भकु ाभ ऩय ऩहुॊचे हंै। वह ऐसी भीडडमा
रयऩोटों की आरोचना कयती हंै जो दशरत टहत की
दत्त को जफ टदल्री के सटें स्टीपन कॉरेज भंे नीततमों के राब की आढ भें उनकी उऩरक्धधमों को
फीएससी भें साभान्म श्रेणी की छात्रा के तौय ऩय कभ आकॊ ती हैं। मह ऩसु ्तक वॊचचत सभदु ामों औय
उनके साटहत्म को उचचत स्थान टदराने की टदिा भंे
उल्रेखनीम है।
आसम रशीद ईएपएर ववश्वववद्मारम, हैदयाफाद भंे
अध्माऩक हैं।
यशशक दत्त: न्मू मॉका भंे स्थावऩत
ऩत्रकाय। रेखन के भुख्म ववर्म जेंडय,
सभानता औय सॊस्कृ तत। ऩूवा भें
Brunch औय Hindustan Times
की भखु ्म सॊवाददाता। Documents of Dalit
Discrimination की सॊस्थाऩक।
40
खंड-1, अकं -1 (प्रवशे कं : वषष 2020)
समीक्षक: मीन भ गवष भें हाशिए ऩय रा देता है। इसी हाशिए को सफा
TAWAIFNAMA दीवान ने येखाककत ककमा है। रेखखका ने उन्नीसवीॊ
ऱेखखक : Saba Dewan िताधदी के उत्तयाद्ाध भंे तवामपों की क्स्थतत भंे होने
Context, an imprint of Westland, Chennai, वारे ऩरयवतना ों औय बायतीम याष्रवादी प्रततकक्रमा को
2019 बी खोज की है। रेखखका के अनसु ाय, तवामपें स्वमॊ
को ‘सावजा तनक’ औय ‘व्मक्ततगत’ कानूनों के फीच
TAWAIFNAMA ‘करकॊ कत’ भटहराओॊ झूरते हुए भहससू कयती हंै। सावजा तनक काननू उनके
ऩय सफा दीवान की, कपल्भंे फाय मौन सॊफधॊ ों को अऩयाध कयाय देते हैं जफकक ऩरु ूर्
फाराओॊ ऩय ‘टदल्री-भुम्फई-टदल्री सत्तात्भक व्मक्ततगत कानून अऩने ही टहत भें है।
(2006), ग्राभीण भेरों भंे नाचने वारी ऐसे कानून उन तवामपों को सऩॊ वत्त के अचधकाय से
भटहराओॊ ऩय ‘नाच’ (2009) औय तवामपों की करा औय ववयासत से फटहष्कृ त कयते हैं। औऩतनवशे िक
औय उनके जीवन ऩय The Other Song की ववचाय- काननू ों से तवामपों से उनका प्रततक्ष्ठत दजाा बी
श्रखॊृ रा है। इस ऩसु ्तक भंे फनायस औय बफआु के सभाप्त होता जा यहा है। तवामपों से साऺात्काय के
जाने-भाने तवामप ऩरयवायों की ववशबन्न ऩीटढमों का जरयए रेखखका ने मह सभझाने का प्रमास ककमा है
इततहास है। ऩरयवाय की कहातनमों के जरयए रेखक ने कक वशे ्माएॊ ककस प्रकाय उऩतनविे औय याष्रवाद से
यहस्मों का उद्घाटन ककमा है जो रूटढवादी प्रबाववत हुईं औय उन्होंने अऩनी करा औय जीवन
इततहासकायों द्वाया जानफूझकय फताए नहीॊ गए। मह िैरी के साथ सभझौता ककमा। जीने के शरए औय
ऩुस्तक एक फहुभलू ्म सकू ्ष्भ इततहास है जो दक्षऺण चनु ौततमों का साभना कयने के शरए उन्होंने तमा
एशिमा भें रचंै गक औय सासॊ ्कृ ततक अध्ममन भंे अऩना तयीके अऩनाए।
वविरे ् स्थान यखती है।
तवामपों ऩय िोध औय उनके जीवन की तहकीकात
जानी-भानी तवामपों के ऩास प्रततष्ठा औय सऩॊ न्नता के दौयान रेखखका को जो अनुबव हुए हैं, उन्हंे साझा
तो थी ककन्तु अवववाटहत जीवन, मौन सॊफधॊ औय ककमा गमा है। ऩुरूर् प्रधान सभाज भें तवामपें हाशिए
वेश्मा के रूऩ उनका जीवन उन्हंे ‘सम्भतनत’ सभाज ऩय ही यही हंै। ककसी जभाने भें तवामप यही
भटहराओॊ के प्रतत रोगों का यवमै ा बी येखाकॊ कत ककमा
गमा है। रेखखका ने फनायस का औय खास तौय ऩय
ऩुयाने फनायस के चौक, दार भडॊ ी औय याजा दयवाजा
इराकों का हार फमान ककमा है जहाॊ तवामप ऩरयवाय
यहते हंै। रेखखका ने सगॊ ीतऻ ऩुरूर्ों से बी वातााराऩ
ककमा जो उनके साथ तफरा औय सायॊगी फजामा कयते
थे। उन्होंने मही जाटहय ककमा कक उन तवामपों के
साथ उनका कोई सऩॊ का नहीॊ यहा। हाराॊकक कु छ तफरा
वादकों औय सायॊगी वादकों ने मह स्वीकाय ककमा कक
उन्होंने शसद्धेश्वयी देवी औय यसूरन फाई जसै ी भहान
गातमकाओॊ औय गाने वाशरमों के शरए सगॊ ीत फजामा
है। इन सगॊ ीतऻों ने गातमेकाओॊ के सॊघर्ा की सयाहना
की औय फतामा कक अफ उन्होंने उस ऩषृ ्ठबशू भ से
अऩने को अरग कय शरमा है।
खडं -1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वषष 2020) 41
मह ऩसु ्तक धभभा , सदाफहाय, तीभा, बफन्द,ु असघयी, समीक्षक: अमर फ रूकी
पू रभखण, प्मायी जसै ी अनेक जानी-भानी तवामपों THE ANARCHY: THE EAST INDIA
की, उनके फचऩन की, उनकी ककिोयावस्था की औय COMPANY, CORPORATE VIOLENCE,
िामद कहीॊ उनकी भामसू ी की कहानी है। मह ऩुस्तक AND THE PILLAGE OF AN EMPIRE
बायतीम इततहास को सभझने भें वविरे ् बूशभका ऱेखक : William Dalrymple
तनबती है। Bloomsbury, London, 2019
मीन भ गवष इततहास ववबाग, इॊद्रप्रस्थ भटहरा कॉरेज,
टदल्री ववश्वववद्मारम, टदल्रा भंे कामया त हैं। ववशरमभ डरे रयऩॊ र की ऩसु ्तक THE
ANARCHY अठायहवीॊ सदी के
सब दीव न: डॉतमूभंेरी कपल्भ तनभााता। उत्तयाद्ाध भंे ईस्ट इॊडडमा कॊ ऩनी के
भुख्म रूऩ से जंेडय, शरगॊ -बदे औय उत्थान की कहानी है।
सॊस्कृ तत ववर्मों ऩय काम।ा तवामपनाभा
ऩहरी ऩसु ्तक जो टदल्री-भमु ्फई-टदल्री मह ऩुस्तक 1757 औय 1805 के फीच बायत भें
(2006) फाय-फाराओॊ ऩय, नाच (2008) बिटेन के साभाज्म के िुरूआती इततहास के ऺणों को
ग्राभीण भरे ों भंे नाचने वारी भटहराओॊ ऩय औय The फमान कयती है। प्रासी की रड़ाई (1757) औय
Other Song (2009) तवामपों अथवा वेश्माओॊ की करा फतसय की रड़ाई (1764), टीऩू सुल्तान के ववरुद्ध
औय उनकी जीवन-िरै ी ऩय आधारयत हंै। कॉनवा ाशरस औय वेरस् री का अशबमान औय अॊतत:
1799 भंे टीऩू सलु ्तान की ऩयाजम औय द्ववतीम
वरै ी ऑप वर्डास अॊतयााष्रीम साटहत्म एवॊ एॊग्रो-भयाठा मदु ्ध (1802-1805) सबी का उल्रेख
करा भहोत्सव - 2017 भंे अॊग्रेज़ी नॉन- इस ऩसु ्तक भें है। बायत भंे बिटटि उऩतनवेि के
कितिन श्रेणी भंे ऩुयस्कृ त ववस्ताय का वणान शभरता है। इततहासकायों ने
फाना टू फ़्राइ शसयाजदु ्दौरा की टदतकतों को उसके चरयत्र की
रेखक: तनततन साथे खाशभमों के तौय ऩय चचबत्रत ककमा है। शसयाजदु ्दौरा
प्रकािक: ववतास्ता ऩक्धरशिगॊ औय ईस्ट इॊडडमा कॊ ऩनी के फीच सॊघर्ा ऩय हार ही भें
शरखी गई ऩुस्तकों भें, खासतौय ऩय सिु ीर चौधयी की
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खंड-1, अकं -1 (प्रवेश ंक: वषष 2020)