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Published by krishna kumar lodhi, 2019-12-20 13:55:52

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*इरादा तो कर वादा तो कर *



तेरी सोच में मोच नहीीं ,


तेरा मजबूत इरादा होना चाहहए



कक तेरे हौसलों की इमार‍त हो सबसे आगे


पीछे सारा जमाना होना चाहहए


तो आगे बढ़ और सफर का इरादा कर



अपनी हर कोशिि से तू थोड़ा ज्‍यादा कर


हारीं गा ना हौसला मैं उम्र भर



यह दूसरों से नही तू खुद से वादा कर


इस आसमान की ऊचाईयों को तुझे छ ू ना आना चाहहए


इस रठी ककस्‍मत को तुझे मनाना आना चाहहए



क्‍योंकक जो पत्‍थर हथौडे की मार से डर जाए

वह कीं कर कही खो जाता है


ओर जो वह मार सह ले



वह कीं कर –िींकर हो जाता है


तो कर क े हदखा तू काम इस कदर



कक तेरे नाम की तो शमसालें होनी चाहहए


बींद आखों से सपने तो सब देखते हैं


तेरे सपने तो खुली आखों मे होने चाहहए।



श्रुतत िुक्‍ला

9 ‘अ’

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स्वच्छता
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पखवाड़ा K.V. I.T.B.P. SHIVPURI



















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बेटी बचाओ



कहती है बेटी हमें निहार ,

मुझे चानहए प् यार-दुलार।


बेनटयों को क ययूँ.....

म् यार िहीं क रता संसार।


सोनचए सभी क या बेटी नबि ,

बि सकता है घर पररवार।


बचपि से लेकर जवािी तक,




मुझ पर लटक रही तलवार।

मेरे दददऔर वेदिा का


कब हा स् थायी उपचार।।

बहत पािी में मैं बह गई

कौि करेगा िदी क े पार2


मैं बेटी माता भी मैं ह ूँ ,

मैं ही दुगाद , काली अवतार।


मेरे प् यार में सभी सुखी हैं

मेरे नबिा धरती अंनधयार ।


बेटी की ददद और वेदिा का

कब होगा स् थायी उपचार ।।


आरोही


4 ’अ’

क्या खूब थे वो बचपन क े दिन

वह धूप में घूमना वो पेड़ पर चढ़ना

वह हर रोज खाने में आनाकानी करना

वह हर काम में अपनी मनमानी करना

क्या खूब थे वो बचपन क े दिन.....

वह हर रोज सुबह माां का जगाना

वह हर रात माां का लोरी गाकर सुलाना

पापा क े साथ मेला जाना

िािा क े साथ पाकक जाना

व िािी से हर शाम कहानी सुनना


िीिी क े साथ खेलना

क्या खूब थे वो बचपन क े दिन

नही थी कोई दचांता न तनाव

न थी पढ़ाई की टेंशन

पूरा दिन दनकल जाता था यूां ही खेलने
में

वह पूरा दिन बस खेलना…….

हर बात पर गुस्सा हो जाना और माां का
मनाना

क्या खूब थे वो बचपन क े दिन.....

वह बचपन वह यािें रह गई बन क े कु छ
दकताबें

अब तो भाई बस चलनी है अपने भदवष्य को बनाने की तैयारी

भगवान से बस यही िुआ है रहती

एक बार दिर लौटा िे मेरे बचपन क े खजाने

क्या खूब थे वो बचपन क े दिन अभय भागकव

IX B

नन्‍हा सिपाही






मम्‍मी कहती हमसे, बेटा क्‍या बनोगे



पापा कहते हमसे , बेटा क्‍या बनोगे





ससपाही!



मैं नन्‍हा ससपाही हूँ ,



देश की खाततर लडता हूँ



आगे है बंद क मेरी



सीना तान क े चलता हूँ




दाऍ ं- बाऍ , दाऍ ं- बाऍ



ठ ं - ठ ं - ठ ।



















शौर्यजीत



1’ब’

क ू ड़ेदान



सुनो सुनो मै ह एक क ू ड़ेदान,


सब लोगों को हो म़ेरी पहचान ।

क ू डा तुम मुझमें डालो


इधर उधर न बबखराओं,


पर्ाावरण की साफ सफाई का रखो ध्‍र्ान


सुनो सुनो मै ह एक क ू ड़ेदान


सरकार का एक प्रशंसनीर् कदम
े़
गील़े कचऱे क ़े ललए हरा क ू ड़ेदानसूख़े कचऱे


क ़े ललए नीला क ू ड़ेदानघर-घर में है रखना,


सुनो सुनो मै ह एक क ू ड़ेदान।

अब तो सरकारी कचरा गाडी भी आती


घर-घर स़े क ू डा ल़े जाती,


उस क ू ड़े का प्रर्ोग करक़े


बबजली बना घर - घर उजलाती,


सुनो सुनो मै ह एक क ू ड़ेदान।




आओ सब लमलकर करो म़ेरा उपर्ोग


मुझ क ू ड़ेदान का र्ही है सन्‍द़ेश,


क ू डा इधर उधर न बबखराकर

क ू डा तुम मुझमें डालो ।


द़ेखो इसी में है अपनी शान


द़ेश बनाओ अपना महान।


वैभवी शमाा, प ं च ‘अ’

अनमोल चिड़िया





चारों ओर पहाडों से घिरा हआ एक वन था। उस वन में पीपल का

एक वक्ष भी था । उस वक्ष पर एक ववचचत्र चचडडया रहती थी जो


स्‍वर्णिम ववष्‍ठा (बीट) करती थी, अथाित ववष्‍ठा क े रूप में वह स्‍वणि


घनष्‍काससत करती थी । उसकी धरती पर चिरते ही स्‍वणि में बदल
े़
जाया करती थी। एक बूढे व्‍याध ने जब अपनी आंखो से इस आश्चयि

को देखा तो उसे अपनी आंखों पर ववश्वास ही नही हआ। वह सोचने


लिा कक यह कै से संभव हो सकता है कक एक जंिली चचडिया की


ववष्‍ठा धरती पर चिरते ही स्‍वणि में पररवघतित हो जाये। लेककन


उसके सामने तो प्रत्यक्ष और प्रमाण दोनों ही मौजूद थे, इससलए उसे


ववश्वास करना ही पडा। व्‍याध सोचने लिा कक अिर यह चचडडया मेरे


जाल मे फं स जाये तो मे माला माल हो जाऊं िा । इस चचडडया को

खूब र्खलाउंिा ताकक यह ज्‍यादा से ज्‍यादा स्‍वर्णिम ववष्‍ठा करे। यह


ववचार कर व्‍याध ने पीपलके उस वक्ष पर अपना जाल डाल ददया


और चचडडया क े फ ंसने की प्रतीक्षा करने लिा। चचडडया ने वक्ष पर


पडे जाल को नहीं देखा और उसमें फं स िई। व्‍याध चचडडया को

अपने अचधकार में लेकर खुशी-खुशी िर की ओर चल ददया । परंतु


अचानक ही उसके बढ़ते कदम रूक िए । वह सोचने लिा कक


चचडिया ववचचत्र है। उसे लिा कक चचडिया स्‍वणि ववष्‍ठा करने वाली


अवश्‍य है लेककन यह ककसी भूतप्रेत अथवा वपशाच का रूप हई तो


कं ही मैं धनवान होने क े बजाय ककसी संकट में न फं स जाउं । काफी


देर सोच-ववचार करने क े बाद व्‍याध ने यह घनष्‍कर्ि घनकाला कक इस

चचडडया को िर न ले जाकर राजा को दे दें और पुरस्‍कार प्राप्‍त कर


लूूँ। उसके ददमाि में यह ववचार आते ही वह राजमहल की ओर चल


ददया।राजमहल में पहंचकर वह राजा से बोला, “महाराज यह एक


ववचचत्र चचडडया है। इसकी ववष्‍ठा धरती पर चिरते ही सोने की हो


जाती है। इससलए मैंने सोचा कक इसे अपने अचधकार में लेकर

आपको दे दें,ताकक इसकी स्‍वर्णिम ववष्‍ठा से राजकोर् में बढ़ोत्तरी


हो।” राजा चचडडया को पाकर बहत खुश हआ और उसने व्‍याध को


बहत-सा धन पुरस्‍कार क े रूप में प्रदान ककया । राजा ने अपने


सेवकों को बुलाकर कहा, “यह चचडडया अनमोल है। इसकी देखभाल


में कोई कमी न रहने पाए।” सेवको ने राजा का आदेश मानकर उस


चचडया को एक सुदर से वपंजरे में कै द कर ददया और खाने–पीने का


सामान भी उसमें रख ददया। उस ववचचत्र चचडडया क े ववर्य में जब

मंत्री को पता चला तो उसने राजा क े पास जाकर घनवेदन ककया-


“महाराज यह व्‍याध इस जंिली चचडिया को अनमोल और सोने की


ववष्‍ठा काने वाली बताकर आपको मूखि बना िया । अिर यह सोने


की ववष्‍ठा करने वाली होती तो वह व्‍याध स्‍वयं इसे पालकर धनवान

न बन जाता । राजा को मंत्री की बातों में सच्‍चाई नजर आई और


असने अपने सेवकों को बुलवाकर अस चचडया को बंधनमुक्‍त करने


का आदेश दे ददया। बंधनमुक्‍त होकर उस चचडडया ने उपने घनवास

पर पहूँचकर सारी बात राजा को बोल दी और कफर वह चचडडया खुशी


से पीपल क े वक्ष पर एक डाल से दूसरी डाल पर फ ु दकती हई उडान


भरने लिी।

एकरूपता



ह िंदू मुस्लिम ने अपने स्वार्थ क े ह साब पर

बािंट हदया देश को अपने अपने मज ब क े नाम पर

देश क े समक्ष वर्तमान में है समस्या

हो रामलला का मंददर या अल्लाह की मस्जिद

एक ही राम और एक ही है रहीम

दिर भी न जाने क्ों प्रेम की है कमी

देश का प्रत्येक नागररक है दहंदुस्तानी


चाहे कोई माने या ना माने इदर्हास की कहानी


दहंदू मुस्जिम क े त्योहारों में भी है एकरूपता

दिर हर धमत को भारर् में क्ों मानर्े नहीं एक सा

हिर भी जाने क्ोिं लोग ईश्वर क े नाम पर लड़ते ैं

सबका माहलक एक ोने क े बावजूद भी बेवज अकडते ैं

छोड़ो भेदभाव और ो जाओ एक

बढ़ जाएगा देश आगे जब ो जाएिं गे म सब एक!


अभय


भार्गव


दसव ीं ‘ब’

मेरी कलम से ……….







पुराने दोस् तों की याद तब आती हैं


जब नए दोस् त भाते नहीं


भीड में भी अक े लेपन का अहसास तब होता है


जब साथ देने क े ललए कोई होता नहीं



अपने सपनों में तो सब शहंशाह होते है


लेलकन असल लजंदगी में


क ु छों को छोड़, हम लकसी को भाते नहीं


असललयत ख् यालों में खोजोगे तो झूठ लमलेगा



उस झूठ में लजंदगी लजओगे तो


समय आने पर लदल टूटेगा


सच भले ही कडवा हो मान लेना चालहए


झूठ भले ही मीठा हो उसे जाने देना चालहए


असललयत को अपनाक े , ख् वाबों तक पह ुचने का अलग ही मजा है


ये जो मजा है लकसी और में कह ां है ।



स् नेहा रावत

9’अ’

नया वर्ष



नया वर्ष है आया ,


संग खुशियााँ घरों में लाया।



नए साल पर सजता है घर,


अपने मन को, खुशियों की झोली से तू भर ।



नया साल है खुशियों का संगम,



इस साल दौड़कर भागेंगे तुम्‍हारे सारे गम।


खुशियों की बौछार यह लाया है अपने संग।



भूल जाओ ननरािाएाँ जो करती है तुम्‍हे तंग।



कभी हार न मानना,


यह मंत्र ववश्‍व में फै लाना।



करो तुम ऐसा काम,


हो जजससे देि का ऊाँ चा नाम ।



तू ककसी की भी मत सुन,


अपनी कला को तू बुन।



हर बार नया बर्ष आता है।



हर दुख को वह भगाता हैा


और दुख क े अंधेरे में,



खुशियों का प्रकाि फै लाता हैा

अनन्‍या गुप्ता


सात ‘ब’

प्रसन्नता सब गुणों की जननी है

























आज कल प्रसन्‍नता भी दुललभ होती जा रही हैं |सब ओर लोगो क े चेहरों पर तनाव, चचिंता, दुख उदासी



ही अचिकतर ददखाई देती है। प्रसन्‍न चेहरों का मानो अकाल ही पड गया है। यही कारण है आजकल


क े तनावपूणल जीवन में मनुष्‍य अनेक घातक बीमाररयों का शिकार होता जा रहा है। प्रसन्‍न रहना


स्‍वास्‍्‍य क े शलये उतना ही आवश्‍यक है जजतना कक भेाजन करना । प्रसन्‍नता वह औषचि है जो एक



रोगी व्‍यजतत में भी उमिंग एविं उत्‍साह का सिंचार कर देती है। प्रसन्‍न रहने से िरीर में रत‍त-सिंचार


भली पूवलक होता है। प्रसन्‍नता अनेक प्रकार क े रोगों एविं तनावों से लडने की क्षमता प्रदान करती है।



प्रसन्‍नता स्‍वत: ही कई अन्‍य सद्गुणों को जन्‍म देती है। प्रसन्‍न व्‍यजतत सकरात्‍मक उजाल से पररपूणल


होता है। वह स्‍वयिं भी प्रसन्‍न रहता है और जह िं जाता है , वहीिं प्रसन्‍नता बािंटता है। चाहे आप ककतने


भी तनाव में हों, दुखी हो; ववपवि में हो जीवन क े हर क्षण का प्रसन्‍नतापूवलक स्‍वागत करें। जीवन को



खुिहाल बनाने का नारा होना चादहये-




“प्रसन्‍न रहों, प्रसन्‍नता बढाओ,



जीवन को स्‍वस्‍थ एविं, खुिहाल बनाओिं |”




ददपाली सेन

9 ‘ अ’

तििली से भी प्‍यारी






पंख अगर मिलिे तििली क े,

दूर-दूर उड़ जािी िैं।


क ंठ अगर पािी कोयल का,

िीठे गीि सुनािी िैं।

पर िम्‍िी –पापा कहिे,

िैं तििली से भी प्‍यारी ह ।

राजक ु िारी से भी बढ़कर

उनकी राजदुलारी ह ।



रंग –बबरंगे फ् ाक पहनकर

















जब िैं गीि सुनािी हूँ ।

सब कहिे है िैं कोयल से भी,

बढ़कर िीठा गािी हूँ। सौम्‍या पाटिल

5 ‘अ’

बेटिय ाँ तो ज िंद रहनी च टहए






राखी ब ॉं धने क े लिए बहन

चाहहए।



कहानी सुनाने क े लिए दादी

चाहहए



जिद पूरी करने क े लिऐ

मौसी


चाहहए।


खीर खखिाने क े लिए मामी



चाहहए।



साथ ननभाने क े लिए पत्‍नी


चाहहए।



पर यह सभी ररश्‍ते ननभाने क े लिए



बेहिय ॉं तो जिॉंदा रहनी चाहहए।।





न म- ननश


वम ा


कक्ष - दसवी,




विद्यार्थी और शिक्षक





आज क े विद्यार्थी न करते

शिक्षक का कोई मान,

इसशिए हो रही है गुम,

शिक्षा की पहचान।

एक समय ऐसा भी र्था

जब दोनों में र्था िाड़,

सम्‍बन्‍ध ऐसा दोनो में,

मानो विष्‍णु प्रहिाद।

आज स्थर्थतत क्‍यों है उिट,

कोई समझ न पाए।

शिक्षक, विद्यार्थी न समझे,विद्यार्थी न शिक्षक

न जाने कौन बनेगा शिक्षा का अब रक्षक

क्‍यों न समझे विद्यार्थी ,

जब शिक्षक है समझाए,

क्‍यों आज का विद्यार्थी

अपने पाठों से घबराए

क्‍या करें ऐसा कक

ये समथ‍या हि हो जाए,

उपचार करने हेतु

क्‍यों न ढढे कोई उपाय
़ू
शिक्षक दे शिक्षा िो,जो विद्यार्थी मन भाये,,
े़
विद्यार्थी िह पाठ पढे,जो शिक्षक उसे पढाये

विद्यार्थी का ध्‍यान हो,जब शिक्षक ब ॉं टे ज्ञान,

तभी भविष्‍य में बना पाऐगे अपनी नई पहचान।

साजन होली आई



है।





साजन! होली आई है


सुख से हॅसना जी भर गाना

मस्‍ती से मन को बहलाना


पर्व हो गया आज-

साजन!होली आई है।


हॅसाने हमको आई है।


साजन होली आई है

इसी बहाने


क्षण भर गा ले दुखमय

जीर्न को बहला ले


ले मस्‍ती की आग-

साजन! होली आई है।


जलाने जग को आई है।


साजन! होली आई है।

रंग उड़ाती


मधु बरसाती

कण-कण में यौर्न


बबखराती,

ऋतु र्संत का राज-


लेकर होली आई है

जजलाने हमको आई है।


साजन! होली आई है।


खूनी और बबवर

लड़कर–मरकर

मथकर नर-शेणणत का


सगार


पा ना सका है आज –


सुधा र्ह हमने पाई है।

साजन! होली आई है।



साजन! होली आई है।


यौर्न की जय!

जीर्न की लय!


गॅूज रहा है मोहक मधुमय


उड़ते रंग-गुलाल

मस्‍ती जग में छाई है


साजन! होली आई है

शिवा खन्ना


दसवी ‘अ’

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अमर शहीद K.V. I.T.B.P. SHIVPURI



राम –कृ ष्‍ण की धरती पर , पापी ने प ाव पसारा


बढ़ो जवाऩोों आज ववदेशी ने हमक़ो ललकारा


इस धरती क़ो हवियाने का, उसने आज ववचार वकया


इस भारतक़ो धमकाने का, उसने बडा प्रचार वकया
K.V. I.T.B.P. SHIVPURI
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उत्‍तर में व़ो खड़ा वहमालय टक्‍कर लेनेवाला है
जह ा हजाऱोों वीर लडेंगे उसने हमें न जाना हैं
वीर वशवाजी क े गािाऍ, हमने घर-घर गाई हैं


महाराणा प्रताप क े मारू बाजे खूब बजाए हैं

रण-भूवम बज उठी कटठ् व़ोमन ने हमें पुकारा है K.V. I.T.B.P. SHIVPURI


हमलावर...... गद्दाऱोों का अब काम न बनने वाला है


हम न वकसी का मुल्‍क चाहते हमें वकसी से वैर न


काश्‍मीर क े अन्‍तरीप तक, यही हमारा नारा है


वहन्‍द महासागर की लहऱोों ने सुन ल़ो यही पुकार है

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सुन ल़ो यही पुकार है।
पारस गुप्‍ता
9 ‘अ’ K.V. I.T.B.P. SHIVPURI

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Children’s day Celebration K.V. I.T.B.P. SHIVPURI


























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नूतन वर्ष अभिनंदनम ्







नूतन वर्ष अभिनंदनम्


आगत का कर वंदनम्



िर कर िावना –सुमन अंजभि से


कर नवि वर्ष का स्‍वागतम्।






भमटाकर शोक-शूि ववगत क े


खििाकर हर्ष –क ु सुम जगत क े ।



स्‍वाखणषम स्‍वप्‍न संजोए संध्‍या



िाई प्रात: बेिा अतत सुंदरम्।















तनत नव संकल्पित िावों से



नव वर्ष का गा गौरवम् ।



नई उजाष नवोत्‍साह अतत मधुरम्


नूतन वर्ष अतत मंगिम्।


मधु गुप् ता
टी. जी. टी. हिन् दी






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