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Published by krishna kumar lodhi, 2021-09-20 13:01:01

KV Datia Magazine

Email – [email protected]


Web site -https://datia.kvs.ac.in/

“प्राचार्य संदश”


















मेर लिए यह प्रसन्नता का विषय ह कक हमारा विद्यािय इस िषष िावषषक पत्रिका प्रकालित कर रहा




ह। कोरोना महामारी क चिते भी हमार लिक्षकों ने सभी िावषषक कायषक्रमो को ऑनिाइन माध्यम
से समय पर संचालित कर एक सराहनीय कायष ककया ह| पत्रिका विद्यािय की विलभन्न गततविधियों का

ें

दपषण होती ह। विद्यािय म लिक्षण कायष क साथ छाि- छािाओं क सिागीण विकास हतु अनेक


ां


गततविधियां िषष पयांत चिती रहती ह । पत्रिका विद्याधथषयों की रचनात्मक, िखन कौिि ि मौलिक
ैं

विचारों को विकलसत करने का सिक्त माध्यम ह |





मुझे विश्िास ह कक हमार विद्याथी आग चिकर प्रबुद्ि,दिभक्त एि विविि कौििों स पररपूणष सभ्य


ें

नागररक बनग एिं समाज और दि क विकास म अपना यथासंभि सकक्रय योगदान दकर अपने मानि
ें



जीिन को सफि बनाएँग। जब विद्याथी अपनी रचनाओ को अपने नाम क साथ दखता ह तो उसका




ैं
हषष अकल्पनीय होता ह | हम अपनी रचनाओ मे लसफ अपनी भािनाएं ही नहीं व्यक्त करते ह अवपतु





हमार अंदर क एक नए मानि, एक कवि,एक िखक से भी हमारा साक्षात्कार होता ह |




मुझे आिा ही नही िरन विश्िास ह कक पत्रिका अपने मानकों को ग्रहण करती हई लिक्षा एि उनक उद्दश्यों






ें
को साकार करगी | इस पत्रिका क प्रकािन म सहयोग करने िाि सभी विद्याथी गण एिं अध्यापकों को





मैं हार्दक बिाई दती ह और उनक उज्जिि भविष्य की कामना करती ह|



कन्रीय विद्यािय दततया द्िारा िावषषक पत्रिका क सफि प्रकािन क लिए मेरी हार्दक िुभकामनाए I








(Mrs. Geeta)
Principal





हमार नन्ह कप्रव




गुरु का महत्त्व




हे गुरु जन! मर प्रिय गुरु जन!


मैं क ु छ बोल , मैं क ु छ कह ल ,सुन लना मरी नादानी।


ूं
ूं



ूं
बात करें बबना कस सीख , ज्ञान आपस मैं अज्ञानी।।

पीछ की पूंक्तत में बैठा, फिर भी सहमा सहमा सा ह।
ूं

ूं

ूं
सहपाठी हस बोल रह पर ,मैं अूंदर से गुमसुम सा ह।।


अपन बस्त की ओट ललए मैं, झुक कर , झुक ही जाता ह।

ूं

कहीूं नजर ना आपकी पड़ जाए,बस इसी बात से डर जाता ह।।
ूं

गलततयाूं हो ही जाती है,मुझ दडडत करना, क्षमा भी करना।

ूं

मर इस गुमसुम जीवन में, ज्ञान और खुलियाूं भी भरना।।


बबना आपक मरा जीवन, बबन मल्लाह की नैया ह।


सीख सक ूं पतवार चलाना, बन्ना मुझ खवैया ह।।


चूंचल ह,अज्ञानी ह मैं,सातनध्य में रखना गुरुजनों।
ूं
ूं


इस पतूंग की डोर को ,कस क े पकड़ना गुरुजनों।।



प्रिय हैं आप सदा ही मुझको, प्रिय सदा ही मुझ रहेंग।


हेगुरु जन!हम आपक सम्मुख, सदा है बच्चे सदा रहेंग।।


हे गुरुजन! हम आपक सम्मुख,सदा है बच्चे सदा रहेंग।।


अलमतेि गुप्ता (कक्षा 3A)



'पड़ बचाओ' 'मरा भैया है अनमोल'



बचाया होता पड़ को, मीठ मीठ उसक बोल



न रोना होता पट को। मरा भैया है अनमोल।।



भोजन ककए नीींव है,। माीं का राज दुलारा है






जीन की सीख ह।। हम सबका वो प्यारा ह।
पयाावरण को करोग नष्ट, मुख चींदा सा उसकागोल





तो जीवन में होगा कष्ट। मरा भैया है अनमोल।।


पशु पक्षियों की करो तुम रिा, मींद मींद जब मुस्काए



जीवन को बनाओ सच्चा।। फ ू ल कमल का खल जाए।।



प्रकतत की यह ददन है, गुड्डे जैसा गोल मटोल




इनहहीं से ददन और रन ह। मरा भैया है अनमोल।।


आओ ममलकर पड़ बचाएीं, चॉकलट से करता प्यार





सुख जीवन में वापस लाएीं।। टॉफी खाता छ छ बार।

-अरनव गुप्ता (किा 2) पर मैं क्यों बोलू उसक बोल
ीं


मरा भैया है अनमोल।।



-सृष्ष्ट यादव (किा 4)

‘ म ाँ ’






ुं

दिखन में य अक्षर कितन स िर ह ै

जिसमें च ाँि ि भी स्तर ह।


ईश्वर िी यह रचन है



जिसमें ईश्वर ि ही बसन ह।।



म ाँ ने म झे ससख य है



ि ननय में िस रहन ह।





छोटी बडी ब तों िो म ाँ पहल त मस ही तो िहन ह





म ाँ त झ स ही मरी पहच न ह तू ही मरी श न ह।।






बट हो य बटी म ाँ सब ि सलए वरि न ह।
िभी िो होती मैं उि स म ाँ तू ही आती म झे य ि,




म सीबतों में डट िर रहन अपन धमम स िभी न हटन ।

घट िोई भी घटन तून ही तो ससखल य ह।।





बूढ हो य बच्च , समल म ाँ ि प्रम सच्च ।


ि ननय रूपी घड है िच्च ,म ाँ ि प्रम ही सबस पक्ि ।।


म ाँ िह ाँ ति िरू ाँ तेर ग णग न। बस िरती ह त झिो सल म।।

ुं

TH
अर्चमत ग प्त ( िक्ष 4 ‘A’)


हर भर पड़









हर भर होंग पड़ तभी तो भरग हमार पट।







कभी जो काटो इनको तुम, खुद ही पर करोग जुल्म।।
तुलसी हो या नीम की पत्ती,इनहीीं स सारी बीमारी भगती।


गुलाब गेंदा और चमली, इनहीीं से सुदर लगती हवली।।


ीं
अपन घर को स्वगग बनाओ चारों और हररयाली लाओ।



जनम, वववाह या हो मत्यु, हर समय जरूरत पड़ती।।



वदों में यह लख पुरानी, वनस्पतत है जीवन दानी।



तुमन पढी हमने पढी,रामायण को सबन पढी।।




तुमन जाना हमने जाना,लक्ष्मण जी की कस जान बची।।




बारबार तनवदन सबस,हाथ जोड़ बबनय है सबस।
ीं


पयागवरण को सब बढाएीं जीवन को सफल बनाएीं।।



चारों ओर हररयाली छाय जीवन में खुशहाली लाए।।
ीं


TH
अर्चगता गुप्ता (कक्षा 4 ‘A’)

पापा




सबक घर की आन ह पापा,


सबक घर की शान ह पापा।



पापा स होती घर की पहचान ,



क्योंकक इसमें छ ु पा ह अक्षर महान।।


प स प्यार बना, प स ही पररवार बना,



उगली पकड़कर चलना ससखाया,कदमों को लडखडान स बचाया।



कध पर बबठाया आपन,दुननया को ददखलाया आपन,




हानन लाभ क मूल्य को,बचपन में ही ससखलाया आपन।।



बच्चे होते जब बडे,


ददमाग म होते य फामूूल खडे ।



छतरी बनकर ससर पर मँडराते,



सार खतर खुद सह जाते।।


हर पापा की एक ही आशा,



बच्चों की छ ू ट न कोई असभलाषा।



पापा करते ऐस काम ,जजस दखकर बच्च भी करते हैं नाम ।




पापा में बसते रहीम और राम ,सबक पापा होते महान।।

अनूव गुप्ता (कक्षा 2 ‘B’)

झूठा तोता



एक बार की बात है एक जंगल में बकबक नाम का तोता रहता था। वह बहत ही झूठा था। वह


जंगल क े दूसरी पक्षियों और जानवरों क े सामन झूठ बोलकर अपनी बडाई करता था। एक


ददन एक पड पर एक चिडडया बैठी थी।






वह चिडडया क पास गया और बोला की वह गांव क जमींदार क पास गया था I वहां



पर उसन बहत सारी अच्छी अच्छी ममठाई और पकवान खाए I वह कभी जंगल क


जानवरों क पास जाकर कहता कक मैं िील से भी ऊिा उड सकता हँ और मैन



बहत स दशों क यात्रा की हI








उसकी इन सभी हरकतों क कारण सार जगल को पता लग िुका था कक वह बहत





झूठ बोलता ह। एक ददन जगल में एक बहत ही सुदर कबूतर आया। सभी पिी उस





दखन क मलए आय। बकबक तोता भी उसस ममलन आया। तोते को दखकर कबूतर



बोला तुम बकबक हो ना।


यह सुनकर तोता बोला हा म ही बकबक तोता हँ। इसक बाद वह अपनी तारीफ




करन लगा की दखा बाहर क लोग भी मुझे जानते ह। म बहत अमीर हँ। म बहत







अच्छा खाना खाता हँ। मर पास बहत स हीर जवाहरात ह। यह सुनकर कबूतर






बोला म शाही नौकर हँ।





म तो तुम्ह राजा क दरबार में अच्छ दावत क मलए आमत्रत्रत करन आया था।










लककन तुम तो पहल स ही अच्छ स रह रह हो और अच्छा खाते हो तो म िलता




हँ। तोते न जब यह सुना तो कहन लगा की म तो बस अपनी बडाई कर रहा था।




इसक बाद कबूतर न तोते की एक न सुनी और िला गया। यह दखकर जगल क


th


सभी पिी और जानवर हॅसन लग। ख़ुशी जोशी किा 6

शिक्षक






ज्ञान का दीपक वो जलाते हैं,




माता पपता क बाद वो आते हैं।


माता दती हैं हमको जीवन पपता करते हैं हमारी सुरक्षा,


लककन जो जीवन को सजाते हैं, वही हमार शिक्षक कहलाते ह।I



शिक्षक बबना न ज्ञान ह,



शिक्षक बबना न मान हI


हमारा जीवन सफल बनाते हैं,



ज्ञान का दीपक वो जलाते हैंII



जीवन सघर्षो स लड़ना शिक्षक हम बताते हैं।






सत्य न्याय क पथ प चलना शिक्षक हम बताते हैंII
ज्ञान का दीपक वो जलाते हैंI


माता पपता क बाद वह आते हैं II





ऋर्षभ शमर्ाा

th
कक्षा 6



‘कबीर दास क दोह’








1) यह तन विष की बलरी, गुरु अमत की खान ।



शीश दियो जो गुरु ममल, तो भी सस्ता जान ।।








2) सब धरती काजग कऱू, लखनी सब िनराज ।



सात समुद्र की ममस कऱू ूँ , गुरु गुण मलखा न जाए ।।








ऐसी िाणी बोमलए मन का आप खोय ।
3) े




औरन को शीतल कर, आपह शीतल होए ।।

ुं



मानिेंद्र मसुंह धाकड़

th
कक्षा 7

कविता




भारत की पहचान है हहिंदी
,


भाषाओं का ज्ञान है हहिंदी।


आप जरा पढ़ कर तो देखो
,

पढ़ने में आसान है हहिंदी
,


तुलसी, सूर, कबीर की भाषा
,

देखो तो रसखान है हहिंदी।




जो है इसक चाहने िाल
,
उनक वलए िरदान है हहिंदी।


हहिंदुस्तानी सब है हहिंदी
,

फलों का गुलदान है हहिंदी।



रामचररतमानस की भाषा
,

सब ने कहा जी शान है हहिंदी।


तुम भी पढ़ो बच्चों खुशी से
,


पुरखों का सम्मान है हहिंदी।






नाम- वहमािंशी सक्सेना



कक्षा - निमी

देश प्रेम





हमें देश से प्रेम हैं कितना, िसे हम बतलायें ।




आओ िछ ऐसा िरि, सबिो हम कदखलायें।।





ें
नहीं झुिा है नहीं झुिगे, दुश्मन ि आगे हम।

देश िो मजबूत बनािर, न होने देंगे मजबूर हम ।।







प्रण लेते हैं , नहीं खरीदें चीन िा माल हम।


ें
देश िा धन देश िो दें, ऐसा िाम िरगे हम ।।






सब िो समझाना है, त्याग और तप िा श्रम।



जग में िभी विफल ना हो देश प्रेम, यह प्रण लेते हैं हम।।







हमें देश से प्रेम है कितना, िसे हम बतलायें।




आओ िछ ऐसा िरि, सबिो हम कदखलायें।।




आयुष सक्सेना



th
िक्षा 10


चुटकले








1)रमन की पत्नी बादाम खा रही थी...।



रमन- मुझे भी टस्ट कराओ।


पत्नी ने एक बादाम रमन क हाथ में रख दी, बाकक खुद खाने लगी।


रमन बोला- बस एक ही...!



पत्नी ने झल्लाकर कहा- हाां, बाकी सबका टस्ट भी ऐसा ही है...





2) टीचर (बच्चों से): कौन दूसरी जन्नत जाना चाहता है? हाथ कदखाओ I


सबने हाथ कदखाया लेककन सुनीता ने हाथ नहीं कदखाया I





टीचर: क्यों सुनीता? तुम जन्नत में जाना क्यों नहीं चाहती?






सुनीता: “नहीं टीचर, मैं तो जाना चाहती हां पर मेरी माां ने कहा था कक स्कल से
ां
सीधी घर आना वरना टाांगें तोड़कर रख दूगी I”





मानवेंद्र ससांह धाकड

TH
कक्षा 7

3. पिता और िुत्र तालाब किनार सैर िर रह थ।




िुत्र-िािा, घर ि े नल में िानी िहाां से आता है?




पिता-बटा, इसी तालाब स।





यह सुनत ही िुत्र ने पिता िो तालाब में धक्िा द े ददया और दौड़ ि े


घर आ गया और चिल्लान लगा-



"मा जल्दी से नल खोलो िािा घर में आन वाल हैं।"

ां

अमृता शमाा (िक्षा 1A )

कविता








बहुत क ु छ खोया है तूने, पर आगे बहुत क ु छ पाएगा।


बस खुद पर विस्िास रख, ये समय भी बीत जाएगा।

एक जोत सी लेकर, कोई मसीहा आएगा।


िक़्त ही तो है ,गुज़र जाएगा।





वकसी ने राम का नाम वलया ,वकसी ने अल्लाह को याद वकया।


वकसी ने खुद को समझा, वकसी ने मन पाक वकया ।

इस महामारी क े रािण को कौन जलाएगा ,


एक जोत सी लेकर कोई मसीहा आएगा।


िक़्त ही तो है ,गुज़र जाएगा ।




कोई पास नहीं तेरे ,पर सब साथ है।


तू विक्र मत कर ,जो हम वनराश हैं।


घबराना मत, बस भरोसा रख


वकसी मौसम की तरह,ये भी चला जाएगा।


एक जोत सी लेकर ,कोई मसीहा आएगा।


िक़्त ही तो है, गुज़र जाएगा।





अंशुमन गौतम

12 th

तीन चीजे हमेशा याद रखो !!!







1 )तीन चीजें किसी िा इन्तजार नहीं िरती ।



उत्तर -समय, मौत, ग्राहि।







2)तीन चीजें जीवन में एि बार ममलती है I



उत्तर -माां, बाांप, और जवानी ।








3)तीन चीजों से सदा सावधान रमहए I



उत्तर- बुरी सांगत, परस्त्ी और मनन्दा।







4) तीन चीजों में मन लगाने से उन्नमत होती है ।



उत्तर -ईश्वर, पररश्रम और मवद्या।








5) इन तीनों िा सम्मान िरो I



उतर -माता, मपता और गुरू ।



6) तीनों पर सदा दया िरो I



उतर - बालि, भूखे और पागल।

7) तीनों िो बस में रखेंI



उतर - मन, िाम और लोभ मद।








8) तीन चीजें मनिलने पर वामपस नहीं आती I



उतर -तीर िमान से, बात जुबान से और प्राण शरीर से।







9) तीन चीजें दूसरा नहीं चुरा सिता I




उतर - अिल, चररत्र, हुनर I





मशवानी धािड़



िक्षा :- नवमी

'मुझे है प्रिय हहिंदी भाषा'







िातः काल जब मैं उठती।




उठकर राम राम ही कहती।।



गुड मॉर्निंग गुड नाइट को बाय बाय।



दुर्नया क े यह शब्द हाय हाय।।



हमको जमीन से है जोड़ती।




अमीर गरीब क फक को है तोड़ती।।


बच्च बूढ सभी समझते।




आपस में यह िम है रखते।।


इसललए मैं सब से कहती।



हाथ जोड़कर विंदन करती।।



हहिंदी भाषा सबस प्यारी।




यह दुर्नया में सबस न्यारी।।





अर्चकता गुप्ता (कक्षा 4 ‘A’)

१. ऐसी कौन सी चीज है जजसकी ना तो परछाई होती है ना





वह खत्म होती है?






२. मनुष्य क े पास कौन सी ऐसी चीज है जो हमशा बढ़ती रहती है?






३. तीन अक्षर का नाम है, चाह आग से पढ़ो चाह पीछ से पढ़ो,


मतलब एक समान है, बुझो क्या?





४. कटोर में कटोरा बटा बाप से भी गोरा, बुझो क्या?





५. एक राजा की गजब है रानी दुम क े रास्ते।पीती पानी, बुझो क्या?








उत्तर-१. सड़क २. उम्र ३. जहाज ४. नाररयल ५. दीपक





मान्या श्रीवास्तव (कक्षा 2A)



'When you cross the street'




Stop ! Look ! Listen ! Think !



Stop ! Look ! Listen ! Think !




When you cross the street.



Look to your right ! look to your left!




Now look to the right again.



Keep on looking left and right



Thinking all the way,




Is it safe to go? No!




Find the place where you can see,



Up and down the road.



Stop ! Look ! Listen ! Think !




Stop ! Look ! Listen ! Think !



When you cross the street.




-Shubha Udenia ( Class 3 B)

The Nightmare



I was walking through the desert


With having a sort of breathe



Dust and sand following me


The sun sucking my energy


Seeing myself in colour pale



Greedy for an Adam's ale


Lot of people with carafe



But no one is looking at me






The sight changed


Now I am in north pole


With having a sort of breathe



Not because of the sop sol


But a savage bear coming for me



slipped from a snowcapped mountain


Hearing my mother's scream


Wake up Abhi! It’s your mom



You have had an awful dream


Anshuman Goutam

Class 12
TH

IT'S MOTHERHOOD



A selfless one, who sacrifices a lot

but always has a smile, who works a lot


Who hides her illness


But when her child sneeze

She is the most tensed one


Who feeds her children first,


Pretending she is full

Who sacrifices her desires


To make family's wishes true,


But, what really a mother is?


The one, behind whose feel

Almighty has allotted paradise


The one who is full of love,


Because of whom the house is a home

To describe mother, words will never be enough...


Sangam Dohre
th
Class 9

"An Old Man Lived in the Village


An old man lived in the village. He was one of the most unfortunate

people in the world. The whole village was tired of him; he was always


gloomy, he constantly complained and was always in a bad mood.


The longer he lived, the more bile he was becoming and the more

poisonous were his words. People avoided him, because his misfortune

became contagious. It was even unnatural and insulting to be happy next


to him.


The longer he lived, the more bile he was becoming and the more

poisonous were his words. People avoided him, because his misfortune

became contagious. It was even unnatural and insulting to be happy next


to him. He created the feeling of unhappiness in others.


But one day, when he turned eighty years old, an incredible thing

happened. Instantly everyone started hearing the rumour. An Old Man is

happy today, he doesn’t complain about anything, smiles, and even his

face is freshened up. The whole village gathered together. The old man

was asked:



Villager: What happened to you?


“Nothing special. Eighty years I’ve been chasing happiness, and it was

useless. And then I decided to live without happiness and just enjoy life.


That’s why I’m happy now.” – An Old Man


Moral of the story:


Don’t chase happiness. Enjoy your life.


ARPIT MISHRA


CLASS-9

1. Riddle: What has to be broken before you can use it?


Answer: An egg

2. Riddle: I’m tall when I’m young, and I’m short when I’m old. What am I?


Answer: A candle


3. Riddle: What month of the year has 28 days?


Answer: All of them


4. Riddle: What is full of holes but still holds water?


Answer: A sponge


5. Riddle: What question can you never answer yes to?

Answer: Are you asleep yet?


6. Riddle: What is always in front of you but can’t be seen?


Answer: The future


7. Riddle: There’s a one-story house in which everything is yellow. Yellow

walls, yellow doors, yellow furniture. What color are the stairs?

Answer: There aren’t any—it’s a one-story house.


8. Riddle. What can you break, even if you never pick it up or touch it?


Answer: A promise


9. Riddle: What goes up but never comes down?


Answer: Your age

10. Riddle: A man who was outside in the rain without an umbrella or hat

didn’t get a single hair on his head wet. Why?


Answer: He was bald




ARPIT MISHRA
th
CLASS-9

TRUE FRIENDSHIP



Long, long ago I sailed in a ship,

A ship of friendship.


Everyone was happy in here


Joy, cheerfulness and happiness was there.

We together sailed through the storm


Of doubts and disbelief


But we together held hand in hand


And withstood the storm

But when years passed,


I was isolated from the ship of friendship


So I sailed alone

Suddenly I remembered my past,


Soon I realized the consequences


I have to face


A wild wind blew and storm came

I fell to the edge of my ship.


Another sailor who passed nearby


Held my hand and rescued me,

Again from the storm of wry and distress


But I realized that friendship is


Far more superior than loneliness.


Trapti Sen
th
Class 8

Trust changes people.





It was also a pleasant day as before. Mike, A boy who always like to live as a simple man.
Mike as having a good friendship with his friend jack. One day they both were going to

get some work, job. Mike was kind hearted and intelligent guy. He always like to do the
favor of others. But his friend who also had these characteristics from his outer body. He

was selfish. He did not care about others as well as his friend. So, when they were searching
for a job and that time Mike was really depressed. But Jack had some e ideas. He said we

should to rob a bank. Mike promptly replied “no”. Jack again spoke we should to steal that
rare diamond. Mike again refused and suggested we should not to think about wrong

works. After some time, they got something helpful in the newspaper. It was as a job of
watchman in ancient biggest palace. They both joined that job. Now, one day they both

were doing their duty and Mike was taking the rounds of the whole palace. Suddenly
mike’s feet stuck in something. Later he discovered that he had found a pot of gold with
gold coins in it. Mike decided to share it with his friend Jack. Jack was greedy. When he

told all this to Jack, he felt greedy about those coins and pot. Jack had decided to steal all
of them. It was decided that at 12:30 pm we will distribute them between both of us. At

10:00 pm Jack stole that pot and fled away. Jack was very happy and was preparing to leave
the city. When he reached to the airport, he got a thought that my friend trusted me. Jack

was thinking that mike got this pot but despite of this he agreed to share it with me. Jack
did not climb up the stairs of airplane. He was very embarrassed, and he was just thinking

that if I cheated with my friend then I would not be able to win that trust and love again.
He sat on a bench and started thinking. Jack decided that he would send this whole stuff
to mike. At 12:00am of the night he got inside of mike’s house with the pot and kept it on

his tv table. When mike awoke in the morning he found that pot with all the gold coins.
Mike was very kind. he went to jack’s house and said “do not worry brush, now no need

to feel any kind of regret once you realized your mistake then there is no place of regret. I
am your friend you are still having a right to take half of it. Jack was completely changed

and happy. He said that never break the trust of those people who love you a lot, who
always willing and ready to do anything for you”. Now Jack realized that how lucky he was

as he was having a friend that is more than the pot. Mike too was happy because he got
his friend with complete trust.


Abhay Rathore

th
Class 10



सस्कत














विभाग

संस्कत में कहानी – चतुरः शगालः




एकस्स्मन वने एक: ससंह:प्रततवसतत स् म तत्र एकः ससंहः तनवसतत। स् म सः अतीव क्र ू रः। सः

प्रततदिनम ् एकम मृग खाितत स् म ।


एकिा तत्र एकः शृगालः आगच्छतत। सः अतीव चतुरः। सः ससंह पश्यतत भीतः च भवतत।
ससंहः शृगालस्य समीपम ् आगच्छतत। त खादितु तत्परः भवतत। तिा शृगालः रोिन करोतत।



ससंहः शृगाल पृच्छतत


भवान् ककमर्थं रोिन करोतत।

शृगालः वितत



श्रीमन्। वन एकः अन्यः ससंहः अस्स्त। सः मम पुत्रान् खादितवान्। अतः अह रोिन करोसम।



ससंहः पृच्छतत



सः अन्यः ससंहः क ु त्र अस्स्त।
शृगालः वितत




समीपे एकः क ू पः अस्स्त। सः तत्र तनवास करोतत।

ससंहः वितत



अह तत्र गत्वा पश्यासम। तं ससंह मारयासम।


शृगालः वितत



श्रीमन्। आगच्छतु। अह तं िशशयासम।





शृगालः ससंह क ू पस्य समीप नयतत। क ू पजल िशशयतत ससंहः तत्र स्वप्रततबिम्ि पश्यतत। सः


कोपन गजशन करोतत। क ू पात् प्रततध्वतनः भवतत। तम ् अन्यः ससंहः इतत सः चचन्तयतत।

क ु पपतः ससंहः क ू प क ू िन करोतत। सः तत्र एव मृतः भवतत।एव शृगालः स्वचातुयेण आत्मरक्षण





करोतत।
NAME – NIHARIKA BAIS
CLASS – 8

आलस्यं हि मनुष्याणा शरीरस्थो मिान् ररपुुः |

नास््युद्यमसमो बन्ुुः क ृ ्वा यं नावसीदति ||





अथााथा:- मनुष्य का सबस बड़ा दुश्मन उसका आलस्य ि | पररश्रम जैसा दूसरा (िमारा ) कोई अनय ममत्र

निी िोिा क्योंकक पररश्रम करन वाला कभी दुखी निी िोिा |



अनादरो ववलम्बश्च वै मुख्यम ् तनष्ठ ु र वचनम ्


पश्चिपश्च पञ्चावप दानस्य दूषणातन च।।






अथााथा:- अपमान करक दान दना, ववलंब (दर) से दना, मुख फर क दना, कठोर वचन बोलना और दने क बाद पश्चािाप









ैं
करना| य पाच कियाए दान को दूवषि कर दिी ि।




यस्िु सञ्चरिे दशान् सविे यस्िु पण्डििान् !
िस्य ववस्िाररिा बुद्ध्स्िैलबबनदुररवाम्भमस !!



अथााथा:- वि व्यण्क्ि जो अलग अलग जगिों या दशो म घूमकर (पंडििों) ववद्वानों की सवा करिा ि, उसकी बुद्ध् का

ें
ववस्िार (ववकास) उसी प्रकार िोिा ि, जैस िेल की बूद पानी म धगरन क बाद फ़ल जािी ि |





ें



श्रोत्रं श्रुिेनैव न क ुं िलन, दानेन पाणणना िु ककणन ।




ववभाति कायुः करुणापराणां, परोपकारना िु चनदनन ||









अथााथा:- क ुं िल पिन लन स कानों की शोभा निी बढ़िी, अवपिु ज्ञान की बाि सुनन स िोिी ि | िाथ, कगन ्ारण करने

ें
स सुनदर निी िोिे, उनकी शोभा दान करने से बढ़िी िैं | सज्जनों का शरीर भी चनदन स निी अवपिु परहिि म ककय

ें




गये कायों से शोभायमान िोिा िैं।

अनुश्री श्रोबत्रय
8वीं

अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दशवर्ािणि


ततष्ठतत प्राप् ते चैकादशे वर्े समुल च ववनश्यतत।



अर्ि


अन्याय स उपजर्जित ककया हआ धन दश वर्ि तक रहता ह, ग्यारहवााँ वर्ि होने पर समूल नष्ट हो जाता ह।




काक चेष्टा बको ध्यानम स्वान तनद्रा तर्ैव च अल्पाहारग ह ह यायाहव ववयायार्ी पच लक्षिम ्

अर्ि






कौवा जसव इच्छा बहुला जसा ध्यान क ु त्त जसव नवद कम भोजन करने वाला और घर स मोह


ना रखने वाला ववयायार्र्ियों म यह पांच लक्षि होना हग चाहहए
ें
अहो एर्ां वर जन्म सवि प्राण्युपजववनम ् । धन्या महगरूहा यभ्यो तनराशा यार्न्त नार्र्िन: ॥



अर्ि

ैं
“सब प्राणियों पर उपकार करने वाल व क्षों का जन्म श्रष्ठ ह.य व क्ष धन्य ह कक र्जनक पास स याचक






कभव तनराश नहगीँ लौटते.

Utsav Kashyap


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