PAGE 3JAN2022 ISSUE 01
CJ DARCL MAGAZINE
CJ DARCL CRICKET यातना भरी दास्तान BACK HOME
LEAUGE 2021
A story by Payal Prashar A Poem by Sanjib Kalita
2 day Cricket Tournament @ Hisar
TABLE OF
CONTENTS
02 Back Home
03 Toilet Ek Hasya Katha
05 Yatna Bhari Dastan
16
22
PAGE 2 PUBLISHED IN
THE BOOK
BACK HOME
“KAAFIYANA”
BY SANJIB KALITA
The father’s words,
The looming clouds So very sincere—
Hover over the wary sky,
And the timid sun, Says there’s a rainbow,
Hides behind the black curtains. After it rains.
The scary storm
Flings the strayed kite, A long-lost friend
As it helplessly Greets with open arms,
Flies towards the high mountains. And brings back those
Sweet golden-old days.
The pouring drops
Drowns the paper-boats,
And inundate A childhood crush
The poor tiny lanes. Meets with a blushing smile,
The fading light That excites you
Scares a little boy, In the same old ways.
As in the pastures,
He tends the herd of cattle.
You’ve wandered so long,
When you’re afraid,
And you’ve nowhere to go, And gone so far;
You must know, How long will you roam?
There’s a place called home. It’s time you head back home.
A mother’s kiss—
So soft and tenderly, It’s time to come back home—
Nurses all the scars, Where you’re safe and not alone.
And heals all the pains.
It’s your home;
Come back home.
PPAAGGEE 38
टॉयलेट - एक हास्य
कथा
टॉयलेट - एक हास्य कथा
BY AKIB आर्मी का म्यूजियम होता है जहां पुराने पुराने
नायब हथियार रखे होते हैं। पर टॉयलेट का
"सुलभ इंटरनेशनल" बहुत ही प्रचलित नाम है म्यूजियम पहली बार देखने को मिला। मन में
जिसके बारे में शायद कोई दूसरे ग्रह का प्राणी ही जिज्ञासा हुई क्या होगा इसके अंदर
होगा जो नहीं जानता होगा। बस स्टैंड, रेलवे
स्टेशन, मेट्रो, व्यस्त बाजारों में आपको सुलभ शाम का वक्त था तो म्यूजियम तो बंद था पर वहां
इंटरनेशनल का सार्वजनिक शौचालय देखने को के बाहर एक बूढ़े सिक्योरिटी गार्ड बैठे हुए थे।
मिल जाएगा। कई जगहों पर आपको दयनीय
हालत में मिलेगा तो कई जगह पर 3 स्टार होटल बात करने पर पता चला कि वह बहुत ही
के रूम के जैसा। मजाकिया किस्म के इंसान हैं। मैंने पूछा चाचा
क्या माजरा है किस चीज का म्यूजियम है। वह
आज शाम को पश्चिमी दिल्ली के डाबडी की तरफ बोले बेटा इसका मत पूछो तो अच्छा है और फिर
से जाते समय एक बिल्डिंग पर नजर पड़ी तो नाम हंसने लगे। बताइए तो सही तब वह हंसते हुए
देखकर मैं अचानक से रुक गया ऊपर बोर्ड पर बोले यह संग्रहालय है टॉयलेट का। यहां अंग्रेजों
बिल्डिंग के मुख्य द्वार पर लिखा था "सुलभ के जमाने के , राजा महाराजाओं के जमाने के
इंटरनेशनल म्यूजियम आफ टॉयलेट्स" नाम थोड़ा टॉयलेट रखे हुए हैं यहाँ बड़े-बड़े टॉयलेट हैं कोई
अटपटा सा लगा। साइंस म्यूजियम होता है जहां 10 फीट का, कोई 20 फीट का, कोई कोई तो
साइंस के जो नए-नए आविष्कार हुए हैं उनके 40-40 फिट के टॉयलेट भी हैं यहाँ।
बारे में लिखा होता है। आर्ट म्यूजियम होता है
जहां लोगों की पुरानी पुरानी कृ तियाँ होती है।
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मुझे भी सुनकर हंसी आने लगी। तो वो बोले और तो और हमारे यहां अंग्रेजों के जमाने की
मजाक समझ रहे हो इतने बड़े-बड़े टॉयलेट है कि टॉयलेट भी हैं अब अंग्रेज पानी का इस्तेमाल तो
तुम टॉयलेट सीट के छेद में से आरपार हो करते थे नहीं। तो हमारे यहां बड़े-बड़े हाल हैं
जाओगे। कई बार तो हम टॉयलेट शीट के होल जिसमें अंग्रेजों का पेपर संग्रहित किये गए है।
को बंद करके उसमें पानी भर के स्विमिंग पूल अंग्रेज होते थे रंगीन मिज़ाज के तो उनके टॉयलेट
बना लेते हैं और सब तैर तैर कर उसमें नहाते हैं में पेपर भी रंगीन ही चाहिए होते थे। जिसके लिए
अरे भाई राजा साहब के टॉयलेट हैं तो बड़े तो उन्होंने बड़ी-बड़ी प्रिंटिंग की मशीनें लगवाईं। कई
होंगे ही। मशीने हैं हमारे यहाँ अभी भी. वह भी तुम्हें देखने
को मिलेंगी।
100 100 फीट लंबे पाइपों से पानी डाला जाता
था हमारे यहां पर कु छ बड़े-बड़े डंडे रखे हुए हैं हंसते-हंसते मैंने उन्हें उत्तम जानकारी देने के लिए
जिन पर कपड़े बंधे हैं अब पता नहीं उनसे का धन्यवाद दिया और मुस्कु राता हुआ वहां से चल
क्या साफ किया जाता था सुना है जब राजा दिया पर मैं चलता चलता सोचने लगा कि बाबा
साहब सुबह में टॉयलेट जाते थे तो 20-20 की मजाक की बातों को अलग रखकर सोचा
नौकर लगाए जाते थे जो उन डंडों को लेकसर जाए कि कितनी बड़ी सामाजिक सोच वाले
खड़े होते थे। तुमने जितना बड़ा शादियों में घी इंसान थे बिंदेश्वर पाठक जी जिन्होंने सुलभ
का डब्बा देखा होगा उतनी बड़ी-बड़ी राजा साहब इंटरनेशनल की नींव रखी। उन्होंने वह काम कर
की खुशबू की शीशियां है जो राजा साहब के दिया जो बहुत सी सरकारें और सरकारी संस्थान
टॉयलेट के निवटने के बाद आसपास बिखेर दी न कर सके । सुलभ इंटरनेशनल, पाठक जी की ही
जाती थी जिससे पास की हवा में राजा साहब की स्वच्छता को लेकर उच्च सोच का परिणाम है
जो खुशबू घु गई है उसे कम किया जा सके । उन्होंने स्वच्छता के क्षेत्र में देश ही नहीं, दुनिया में
सुलभ इंटरनेशनल को पहुंचा दिया ऐसे शख्स
और एक टॉयलेट तो हमारे यहां राजा साहब के हमारे देश के लिए अमूल्य धरोहर हैं। बस इन्हीं
सिहांसन का भी है। भरे मंच में जब राजा साहब विचारों में मगन मैं कब घर पहुंच गया पता ही
फै सला करते थे दरबार भरा होता था फै सले पर नहीं चला।
फै सले चल रहे होते थे और अगर राजा साहब
को टॉयलेट जाने की जरूरत पड़ी तो दरबार को आप भी कभी जाइएगा जरूर टॉयलेट के
भांग करना तो संभव नहीं होता था क्यूंकि वह संग्रहालय को देखने और गार्ड बाबा की मज़ेदार
फिर से दरबाद शुरू करना मुश्किल होगा इसलिए बातों का आनंद लीजियेगा।
उनकी सीट में ही टॉयलेट बना था राजा साहब
वही कर देते थे मैंने कहा छी ये भी कोई तरीक़ा
हुआ। बोले बड़े बड़े राजा बड़ी-बड़ी बातें और
उससे भी बड़े बड़े उनके टॉयलेट। मैं उनकी बात
सुनकर हंसते हंसते लोटपोट हो गया वह बोले अरे
साहब आप तो हंस रहे हैं आइए कभी दिन में
हमारे टॉयलेट के शहर में तब दिखाएंगे आपको।
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यातना भरी
दास्तान
BY PAYAL PRASHAR
हुआ कोरोना लगा लॉकडाउन, आई है विपदा उठी तो देखा माहौल गरम था, और था घर कु छ
भारी बदला बदला
क्या-क्या करें, कै से करें, संकट में फस गई जान पापा किचन में धो रहे बर्तन और था मम्मी ने
हमारी बिस्तर बदला
जो ना कभी था सपने में सोचा, ना कभी किया
जिसका ABCD याद देखा था मैंने मम्मी का तांडव, जब पापा ने गिराया
क्या पता था करना पड़ेगा, उन सब चीजो से था उबलता दूध,
साक्षात्कार। और देखी पापा की ओलिंपिक जम्प जब गरम
तो मेरे प्यारे दोस्तो, चलो सुनाती हूं तुम सबको तेल के साथ बने वो संजीव कपूर
येदुख भारी दास्तान मेरी... सीखा दर्द भरा सबक मैंने भी की पानी गिरते ही
रिक्वेस्ट है तुमसे की प्लीज हसना मत, मेरे दुख में लगा देना चाहिए पोछा,
शारिक हो के बस एक आंसु ही बहा देना... और ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए, गरम समोसा,
पिज़्ज़ा, इडली डोसा
तो ऐसा हुआ दोस्तो
की जब लगा था लॉकडाउन, और हुई थी परीक्षाएं अब तो हाथ जोड़ के करती हूँ मैं प्रभु यही
रद्द गुज़ारिश,
मेरा मन हुआ था प्रसन्न, की परीक्षाएं लेने वाले के की ख़तम करो ये कोरोना और विपदा से बचाओ
हो गए इरादे पस्त। जान हमारी.
पर क्या मालूम था मुझे की ये अंगूर होंगे इतने खुलें स्कू ल और मिले आज़ादी हमे झाड़ू बर्तन
ज्यादा खट्टे, मसाले से
जिन्हे खाते-खाते, छू टने वाले वेघर में हम सब मिल गया ये ज़िन्दगीका सबक की परीक्षाएंभली
लोगो के छक्के । है , जी के इन जंजालो से…!
सुबह उठ के मम्मी बोली जल्दी उठ जाओ मेरी
लाडो
झाड़ू पकड़ो, पोछा डालो, अलसाओ ना, छत
निहारो,