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Published by anuj.midha, 2017-07-30 03:11:47

beetak-1

beetak-1

श्री ब्रीतक ट्रीकीका श्री ी रीकाजन न सजीका्वाम्री

भवजष्य पुपी रीकाण ्वामम, ी रीकाजीका कहे जगपु चीकाी र।
जचन जो है व्यीकास के, तीकाको की रो वजचीकाी र।।१।।
भवजष्य पपुी रीकाण ्वामम चीकाी रारों ्यगुप ारों के ी रीकाजीकाजाओजांओ कीका जणव र्नणा
वक्यीका ग्यीका ह।ै हे सीकाथ ज्री! व्यीकास ज्री के दीकाी रीका कहे हुपए
उन जचनारों कीका वजचीकाी र ककीजजए।
द्रष्टव्य- १. अठीकाी रह पीुप रीकाण जजनके अनतगर्ा णवत भवजष्य
पपुी रीकाण आतीका ह,ै उस्वामम चीकाी रारों ्यगपु ारों के ी रीकाजीकाजाओजांओ कीका
उलखे ह।ै ्यहीकाजंओ ी रीकाजीका शबशब्द से तीकाातप्यवर्णा केजल ी रीकाज
्वामहलारों ्वामम ी रहने जीकाले ी रीकाजीका से नहह, बल्क ऐसे व्यवयक्तिातज
से ह,ै जो अपने जीकान, तप, प्रशीकासवनक क्ष्वामतीका एजओंाज
ज्रीी रतीका आवशब्द के क्षेत्र ्वामम अपन्री उी उजजल आभीका से
प्रकीकाश्वामीकान हो ी रहीका हो। ी रीकाजीका कीका अथण्राव ह्री प्रकीकाश्वामीकान
होतीका ह।ै इस प्रकी रण ्वामम अनेक व्यवयक्ति ऐसे है जो ी रीकाजीका

प्रकीकाशकशकः श्री प्रीकाणनीकाथ जीकानप्रीठ, सी रसीकाजीका 1 / 42











श्री ब्रीतक ट्रीकीका श्री ी रीकाजन न सजीका्वाम्री

ी रीकाजसीकाशकः िटम् न स्वामभृतीका ज्रीी र क्वामणक ्ारव ीकांंजओ षड्वाम्यीका भुपवज।
्वामीकाका णअवर्ग्रगणं षडे्यओांज च जीकाी रीकाहओजां ्वामीकाकंक्ारं षडे्यने वनर्वामत्वाम्।म ।
आगे्य्वामवाओंज गी रीकाश्चजै जन्यीका्वामीकास चोत्वाम्वाम।म्
ललगब्रहीकाअग्रगणं षडके चीकावप तलअग्रगणं षडनीका ी रचिचते शपुभे।।
्वामहीकाशब्देजने लोकीकाथ्कंरा भवजष्यांओज ी रचिचतओाजं शभुप ।े ।
अथीका्णतर व म् जजसके शब्दजे तीका वजषणपु ह,ै उस वजषणपु पुपी रीकाण ककी
ी रचनीका पी रीकाशी र ्वामवुप न ने ककी ह।ै भशज ज्री ने न सकनशब्द पपीु रीकाण
ककी ी रचनीका ककी है औी र पद पपुी रीकाण ब्रहीका ज्री के ्वामपुख से
कहीका ग्यीका ह।ै श्री्वामद्भीकागजत्म ्वामहीकापीपु रीकाण के कतीका वरण् शपकु शब्देज
ज्री ह।ै ब्रह पीुप रीकाण ककी ी रचनीका ब्रहीका ज्री के दीकाी रीका हुपई ह।ै
गरुड़ पीपु रीकाण श्री हरी र के दीकाी रीका कहीका ग्यीका ह।ै ्ये छशकः
सीकालातजक पीपु रीकाण ह।ै ्वामातन स्य, कू ्वाम,रा्व ण नभृनृससह, जीका्वामन, भशज
औी र जीका्यपु पपुी रीकाण श्री व्यीकास ज्री के दीकाी रीका ी रचे हपुए कहे ग्ये

प्रकीकाशकशकः श्री प्रीकाणनीकाथ जीकानप्रीठ, सी रसीकाजीका 7 / 42











श्री ब्रीतक ट्रीकीका श्री ी रीकाजन न सजीका्वाम्री

५. इन नीका्वामीकाजलल्यारों ्वामम ब्रीच के हजीकाी रारों नीका्वाम छू ट ग्ये
ह।ै इसकीका उातकभृ ष्ट प्र्वामीकाण सू्यणजा वर् ाओंजश औी र चनद्रजजांओश के
व्वामलीकान से व्वामलतीका ह।ै

सभ्री जीकानते है वक ्वामनुप से स्ू यवर्णज ा जाओंश चलीका औी र उनह्री
्वामनपु ककी इलीका नीका्वामक पगौत्र्री से चनद्रजशओाजं चलीका। ्वामनपु से
इकजीकाकुप हुपए औी र इकजीकाकुप ककी पपुत्र्री से चनद्र जाजओशं कीका
्वामूल परुप ुि पुपरूी रजीका हुपआ अथीकाणतवर ् ्म शब्दोनारों जाजओशं एक सीकाथ ह्री
आी रमभ हपुए, वकनतुप आगे चलकी र शब्दोनारों ह्री प्रीवृढ़्यारों ्वामम
जो घट-बृढ़ हुपई, जह बहपुत ह्री सनशब्दहे ीकाात्वामक ह-ै

क) ्यचुप िधविष्ठिी र चनद्रजओांशज ककी ५०जह प्रीृढ़्री ्वामम हुपए, वकनतुप
इनके स्वामकीकाल्रीन सू्यणाज वर् जओांश्री ी रीकाजीका बभृहदल को सू्याजण्रव जंओाश
ककी ९२जह प्रीृढ़्री ्वामम शब्दखे ीका जीकातीका ह।ै

ख) पी रशीपु रीका्वाम ज्री ने सहसीकाजाुपवर्णन को ्वामीकाी रीका थीका, जो

प्रकीकाशकशकः श्री प्रीकाणनीकाथ जीकानप्रीठ, सी रसीकाजीका 13 / 42











श्री ब्रीतक ट्रीकीका श्री ी रीकाजन न सजीका्वाम्री

्वामैत्रीका्यअग्रगण्यपपु वनिद् प्रपीकाठक १ खअग्रगणं षड ४ ्वामम ललखीका है-
"अथ वक्वामते जै ीका ण्वपर ी रेऽन्य।े ्वामहीकाधनपुध्ाणवीर रीकाश्चक्रजचक्रवतनशकः
कचे िचत्म
सुपदमुप नभपरु ी रदुपमनेनद्रदुमप नकुप जल्यीकाश्व्यगौजनीकाश्वजद्ध्यश्वीकाश्वप
चितशकः शशवजनशब्दुप हरी रश्चनद्र
अमबी र्रीिननयक्तपुिस्यीकाणच ्रव ित्य्यीकाचित्यनी रअग्रगण्यीकाक्षसेनीकाशब्द्यशकः अथ
्वामरुतभी रत प्रभतृभ ्यो ी रीकाजीकानशकः।"
्यह एक नीका्वामीकाजलल ह,ै जजस्वामम सू्य्णरवा औी र चनद्र शब्दोनारों
जशाजंओ ारों के ी रीकाजीकाजाओंाजओ के नीका्वाम आ्ये ह।ै ्ये सभ्री ी रीकाजीका
चक्रजतवर्ती कहे ग्ये ह,ै इसलल्ये इनकीका नीका्वाम एक जगह
संाजगओ ्रवहत की र वशब्द्यीका ग्यीका ह।ै इस्री प्रकीकाी र ककी शब्दसू ी र्री
नीका्वामीकाजलल ऐती रे्य ब्रीकाहण ७/३४ ्वामम ललख्री हुपई ह।ै
उस्वामम ललखीका ह-ै

प्रकीकाशकशकः श्री प्रीकाणनीकाथ जीकानप्रीठ, सी रसीकाजीका 19 / 42











श्री ब्रीतक ट्रीकीका श्री ी रीकाजन न सजीका्वाम्री

तातपश्चीकात्म धू्वाम ऋवि कीका नीका्वाम आतीका ह।ै सात्यगुप के ्ये
सत्रह व्यवयक्ति अचित प्रजसद्ध ी रहे है, इसलल्ये उनहम ी रीकाजीका
कहकी र समबोचिधत वक्यीका ग्यीका ह।ै अब ्वामै त्रते ीका्यगुप ्वामम
प्रकट होने जीकाले २९ प्र्वामुखप व्यवयक्ति्यारों के नीका्वाम बतीकातीका
हूा।

त्रेतीका्यगपु के ी रीकाजीका
प्रथ्वाम तो ब्रहीका भ्यो, तीकापी र ्वामीकाी र्रीच नीका्वाम।
तीकापी र कश्यप भ्यो, फेी र सीू रज इस ठीका्वाम।।८।।
सबसे पहले ब्रहीका ज्री हपुए। उनके दीकाी रीका ्वामीकानस्री पपतु ्र के
रूप ्वामम ्वामी र्रीचिच ऋवि हपुए। तातपश्चीकातम् कश्यप ऋवि कीका
नीका्वाम आतीका ह।ै इनके सीकाथ ह्री सू्य्र वणा कीका नीका्वाम आतीका है,
जजनसे सृवभ ष्ट कीका वजन सतीकाी र हुपआ।

प्रकीकाशकशकः श्री प्रीकाणनीकाथ जीकानप्रीठ, सी रसीकाजीका 25 / 42











श्री ब्रीतक ट्रीकीका श्री ी रीकाजन न सजीका्वाम्री

दीकापी र ्यगपु ्वामम ्वामुखप ्यतशकः १९ ी रीकाजीका (प्र्वामखुप व्यवयक्ति) हुपए।
सबसे प्रथ्वाम शब्देजी रीकाज इनद्र हुपए। तातपश्चीकात्म चनद्र्वामीका हपुए।
उनके पश्चीकातम् पुरप ूी रजीका ी रीकाजीका कीका नीका्वाम आतीका ह।ै

भीकाजीकाथ-र्ा वण शब्देज सृभवष्ट ्वामम इनद्र शब्देजारों के ी रीकाजीका ्वामीकाने जीकाते
थे। उनके ह्री स्वामकीकाल्रीन चनद्र्वामीका भ्री थे। ्यहीका चनद्र्वामीका
शबशब्द से आश्य आकीकाश ्वामम भ्वामण की रने जीकालीका चनद्र्वामीका
नहह, बल्क एक ी रीकाजीका कीका नीका्वाम ह,ै जो शब्दजे स्वामीकाज ्वामम
उातपन हुपआ। चनद्र्वामीका के पुपत्र बधपु औी र बुधप के पतुप ्र
परुप ूी रजीका ह,ै जजनककी पातन्री उजशण्रा व ्री हुपई।

अ्य ी रीकाजीका तीकापी र भ्यो, वनी र्वामोक्ष तीकापी र हो्य।
तीकापी र सीकानतनपु भ्यो, चिचत्र ी रीकाजीका कहो सो्य।।१७।।
इसके पश्चीकात्म अ्य नीका्वामक ी रीकाजीका हुपए। तातपश्चीकात्म वन्वामूर्मोक्ष

प्रकीकाशकशकः श्री प्रीकाणनीकाथ जीकानप्रीठ, सी रसीकाजीका 31 / 42











श्री ब्रीतक ट्रीकीका श्री ी रीकाजन न सजीका्वाम्री

तीकापी र बड़ीका ्वामह्वामूशब्द, तीकापी र सीू रखीकाजओं हो्य।
तै्वामीू रललग तीकापी र भ्यो, बीकाजी र कहो सो्य।।२५।।
्वामुलप न सल्वाम कीकाल ्वामम ्वामह्वामशू ब्द गजनज्री हपुआ। इस्री ्यगपु ्वामम
शीे र खीकांओज हपुआ। गीकाज्री कहलीकाने जीकालीका क्रू ी र त्ै वामूी रलगांजओ भ्री
इस्री स्वाम्य ्वामम थीका। तातपश्चीकातम् बीकाबी र कीका नीका्वाम आतीका ह।ै
भीकाजीकाथ- रवा्ण इस चगौपीकाई ्वामम प्रीका्यशकः आक्र्वामणकीकारी र्यारों कीका
नीका्वाम लल्यीका ग्यीका ह।ै ्वामह्वामूशब्द गजनज्री को बड़ीका ्वामह्वामूशब्द
कहकी र जवरणत वक्यीका ग्यीका ह।ै ्यदवप इसकीका स्वाम्य
्वामहुप म्वामशब्द गगौी र्री से पहले लगभग शब्दसजह शतीकाबशब्द्री ्वामम थीका।
्यवशब्द ्यह कहीका जीका्य वक ्वामह्वामूशब्द गजनज्री ने भीकाी रत पी र
कजे ल ह्वामलीका वक्यीका थीका, ी रीकााज्य नहह, इसलल्ये उसककी
भीकाी रत के बीकाशब्दशीकाहारों ्वामम गणनीका नहह ककी जीका सकत्री, तो
इसके उती र ्वामम ्यह्री कहीका जीका सकतीका है वक त्ै वामीू रलओजांग ने

प्रकीकाशकशकः श्री प्रीकाणनीकाथ जीकानप्रीठ, सी रसीकाजीका 37 / 42










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