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Singapore Sangam October to December 2018

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Published by sangam.singapore, 2018-12-31 21:43:15

Singapore Sangam October to December 2018

Singapore Sangam October to December 2018

ISSN: 25917773

त्रमै ासिक ह दंि ी पत्रत्रका

अक्तूबर-हदििंबर २०१८ • अंकि ४

सिगिं ापुर ििगं म

▪ अंिक ४ ▪ अक्तबू र-हदिंबि र २०१८

सम्पादक:
डॉ िधिं ्या सिंि

उप सम्पादक:
शादुला नोगजा
तकनीकी सहयोग:
अनमोल सििं
आवरण चित्र:
िथे रु मन श्रीननवािन सिगंि ापरु

सपं कक :
ईमले : [email protected]
नेशनल यनू नवसिटु ी ऑफ़ सिगिं ापरु ,
िटंे र फॉर लगंै ्वेज़ स्टडीज़
फ़ै कल्टी ऑफ़ आर्टुि एिंड िोशल िाइिंिेज़
ब्लॉक AS4,#03-18
9 आर्टिु सलकंि , सिगिं ापुर 117570

प्रकासशत रचनाओिं के ववचार लेखकों के अपने ंै| आवश्यक न ीिं कक पत्रत्रका के ििपं ादक या प्रबंधि न िदस्य इििे ि मत ों।

िवाधु धकार िुरक्षित

© Singaporesangam

अक्तबू र-हदििंबर २०१८ ◦ सिगिं ापरु िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 1

िम्पादकीय

देखते-देखते २०१८ बीत गया और िाथ ी एक वर्ु
की ककतनी यादों की पोटली को हदल के क ींि कोने
मंे स्थान दे गया तो कु छ को बा र भी कर गया| र्ु
तो इि बात का ै कक ििगं म के इि िफ़र को भी
एक वर्ु पूरा ो गया| इतना आिान तो न ीिं था इि
िफ़र को आगे बढ़ाना, अगर आप िबका ि योग ना
समला ोता| एक वर्ु परू ा करने पर िंगि म आप
िबका शकु िया अदा करता ै|
य अकंि भी आपके सलए र बार की तर कु छ नया लेकर आया ै| कु छ ने अपनी क ानी िनु ाई ै तो
कु छ भववष्य के िपने हदखा गए ंै| अकंि की शुरुआत नए वर्ु की शुभकामनाओिं िे ोती ै जो आगे बढ़ते
ुए सशिा िे लेकर िंिस्कृ नत तक की झाकँा ी हदखाती चलती ै| सिगंि ापुर के कववयों, लेखकों के िाथ ी
भारत व दनु नया के अन्य भागों के रचनाकारों ने अपनी कलम आपके सलए उपस्स्थत की ै|
य अकंि ज ााँ कववता कृ ष््मूनतु जी के िािात्कार में मंे उनके ननजी जीवन िे भी अवगत करवाता ै
व ीिं आम के पेड़ के माध्यम िे मारा ध्यान कु छ छोटी-छोटी चीज़ों की ओर खींचि ता ै| रोह गिं ्या के जीवन
के कु छ प लुओिं िे एक ववदेशी अगर मारा पररचय करवाता ै तो सिगिं ापुर मंे दि लघु नाटकों के िमू
को ‘दस्तक’ के माध्यम िे आप तक प ुाँचाने की कोसशश हदखती ै| करेले की कड़वा ट को चा े मिंगू दाल
के लवे िे मीठा करना ो या लवे की समठाि को करेले िे कम , सिगिं ापुरी रचनाकारों ने दोनों ववकल्प
एक ी अकिं में दे हदए ैं; चनु ाव आपका ै| छात्रों की लेखनी ने य भी बता हदया ै कक ह दंि ी का भववष्य
उज्जज्जवल ी ै, म ह दंि ी के वा क ंै न!
बातें तो ब ुत िी ैं पर िब य ींि ो जाएगाँ ी तो पढ़ने का चाव क ीिं कम न ो जाए इिसलए अब आपके
पढ़ने की बारी ै| पाठकों िे आगे आने वाले अकिं ों के सलए भी धचत्र, पंेहटग आहद आमंति ्रत्रत ैं| आपकी
प्रनतकियाएाँ मारे सलए ब ुत ख़ाि ंै अत: आपकी प्रनतककयाओंि का इंितज़ार र ेगा!
धन्यवाद िह त-
िंधि ्या सििं

अक्तूबर-हदिबंि र २०१८ ◦ सिगंि ापरु िगिं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 2

इि अकिं मंे

काव्य-रस शिक्षा काव्य-रस

शादुला नोगजा 4 वदंि ना सिंि

5 7

बातिीत ववदेिी भाषी के मखु से — काव्य-रस

शादुला समररयम ज ीन डॉ. राजेश कु मार
नोगजा
15 ‘मााँझी’ 17
9
काव्य-रस साहहत्य से संस्कृ तत तक

राजंेद्र नतवारी मणृ ाल मोड़क

18 19

देिवंदना हहदं ी के वाहक व्यंजन कहानी

ननशा ि गल वेदा पाडिं ्या पारुल अग्रवाल ननतेश पाटीदार

23 26

काव्य-रस हहदं ी के वाहक 38 29 31

राके श खडंि ले वाल वेदान्त भारद्वाज

व्रत व त्योहार सेहत 40

37 पनू म चघु

39

अक्तूबर-हदििंबर २०१८ ◦ सिगंि ापुर िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 3

नव हदवि असभनन्दन

ओ उर्ा! अब यूँा न िकु चा

ओ उर्ा! अब यँाू न िकु चा "मंै लख!ूंि " ठ कर पड़ा ै ओ उर्ा! अब यूँा न िकु चा
आ, उतर के आाँगना आ रंिग मखु ड़े का उड़ा ै आ, उतर के आाँगना आ
ित्य ोने की ललक मंे गाँवा की पगडडंि डयों िे ित्य ोने की ललक मंे
स्वप्न कोई जागता ै चादाँ तुझको ताकता ै स्वप्न कोई जागता ै
स्पशु तरे ा मागाँ ता ै रूप तरे ा आकंि ता ै

रातरानी की लटों िे ले प्रभा िे पद गुलाबी
नील नभ के पनघटों िे खग-मगृ ों िे आपाधापी
झर र ी िुर्मा अनूठी तोल पर, मन का पखरे ू
रत्न हदनकर बाटँा ता ै दृस्ष्ट िीमा लााँघता ै
कृ पण तम को डांटि ता ै िंगि पी का माागँ ता ै

शादुला नोगजा, ननदेशक, तेल व गिै कंि पनी, सिगंि ापुर

अक्तबू र-हदिबंि र २०१८ ◦ सिगिं ापरु ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 4

सशिा

क्लाशसक २०१८ – आठवााँ अंतराषक ्ट्रीय सम्मलेन

ववदेशी भार्ा सशिण में प्रेरणा, प चान और स्वायत्तता

सिगिं ापुर ६-८ हदिबिं र २०१८

नशे नल यनू नवसिटु ी ऑफ़ सिगंि ापुर का िंेटर फॉर
लगैं ्वेज़ स्टडीज़ ववभाग वपछले िोल वर्ों िे र
दिू रे िाल काफी वृ द स्तर पर ववदेशी भार्ा
सशिण िे िम्बंधि धत िम्मलेन करवाता आ र ा

ै| इि िम्मले न का उद्देश्य ै ववश्व में ववदेशी
भार्ा सशिण िे िम्बंधि धत नए शोधों के बारे में
अधधक िे अधधक सशिा ववदों तक जानकारी
प ुाँच|े इि बार आठवााँ िम्मलेन ििंपन्न ुआ|
इि िम्मलेन का मुख्य ववर्य “ववदेशी भार्ा
सशिण मंे प्ररे णा, प चान और स्वायत्तता” था|

तीन हदविीय िम्मलेन मंे दनु नया के जाने-माने भार्ा
ववदों द्वारा लगभग १५० शोध पत्र और पोस्टर पढ़े
गए| ककिी भी भार्ा को ववदेशी भार्ा के रूप में
सिखाना ब ुत ी चनु ौतीपूणु ोता ै| इि तर के
शोध पत्रों की प्रस्तुनत िे नई तकनीकों और नए
तरीकों की जानकारी आिानी िे प ुँाचती ै और
शोधाधथयु ों, अध्यापकों द्वारा अपनी शंकि ाएँा भी प्रस्ततु
की जाती ंै|

य परू ा िम्मेलन अगिं ्रेज़ी भार्ा मंे ोता ै ताकक
ज़्यादा िे ज़्यादा लोग इि लाभ उठा िके |

िम्मेलन के कु छ प्रनतभागी

अक्तबू र-हदिबंि र २०१८ ◦ सिगंि ापुर िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 5

सशिा

इिमंे िस्म्मसलत शोध सशिा ववद अमेररका, यरू ोप, भार्ा िे िम्बधिं धत शोध पत्र यनू नवसिटु ी ऑफ़
ऑस्रेसलया, जापान, कोररया, थाईलडंै , इिंडोनेसशया त्रिहटश कोलतिं ्रबया के डॉ भर्टट ने प्रस्ततु ककया|
लगभग ववश्व के र कोने िे थे| ववदेशी भार्ा के उन् ोंने उन सशिाधथयु ों पर अपना शोध के स्न्द्रत
रूप में अगिं ्रेज़ी िे लेकर, जमनु , स्पेननश, फ़्ािंि ीिी, ककया था स्जनके सलए ह दंि ी ववराित के रूप मंे
जापानी, चीनी, थाई, कोररयाई, ब ािा, मलय समली भार्ा ै| जब एक ी किा मंे गैर भारतीय
आहद के िाथ ी दो शोध पत्र ह दिं ी भार्ा सशिण और भारतीय दोनों तर के सशिाथी ों तो ककि
िे िम्बंिधधत थ|े एक ैरानी य थी कक भारत िे प्रकार भार्ा सशिण को अधधक उपयोगी बनाया
ककिी सशिा ववद की प्रनतभाधगता न ीिं हदखाई दी| जाए, य अवश्य ी ह दिं ी पढ़ाने वाले सशिकों के
सलए लाभदायी जानकारी थी| इि िम्मलेन में
ह दंि ी को ववदेशी भार्ा के रूप मंे पढ़ाने में ककि ज ााँ फ़्ांििीिी, स्पेनी, चीनी, जापानी या ब ािा
प्रकार कॉसमक्ि का प्रयोग ककया जा िकता ै जैिी अनेक भार्ाओिं के बीिों शोध पत्र थे व ींि
और इिके फायदे ककि-ककि रूप में समल िकते ह दिं ी िे िम्बंिधधत सिफ़ु दो| आखखर ऐिा क्यों!
य िवाल िोचने लायक ै! बि य ी क ना
ंै, इिके बारे में ऑस्रेसलया नशे नल यनू नवसिटु ी उधचत ोगा कक आनेवाला िमय ब ुभावर्ता का ै|
के प्रो. किडलडंै र ने अपना शोध प्रस्ततु ककया| य ऐिे में नई-नई भार्ाएाँ िीखना या सिखाना ब ुत
ववर्य इतना रोचक था कक अन्य भार्ा सशिकों के लाभदाई ोगा|
भी काम अवश्य आएगा| इिी प्रकार दिू रा ह दिं ी ———————————————————————————————

बाएाँ -डॉ भर्टट , दाएँा- प्रो. किडलडैं र
अक्तबू र-हदििबं र २०१८ ◦ सिगिं ापुर ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 6

काव्य-रि

कामकाजी महहला

वदंि ना सििं
सिगिं ापुर

अक्तूबर-हदििंबर २०१८ ◦ सिगंि ापुर िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 7

काव्य-रि

कामकाजी मह लायंे त्रबयावान िा घर पाया ै ै।
बिों मंे, टैम्पों मंे ठ्डा भात, बसे ्वाद दाल
भागती ुयी कु छ खाकर, कु छ फें क आया
घड़ी की दो िईु यों िे
दरवाजे पर टकटकी िी लगी ै,
ोड़ करती ुयी बताने को उमड़ र ी ै,
रोज ार जाती ैं ककतनी ी बातें,
देरी का कारण त्रबना कु िरू ी
न ींि िमझा पाती ंै। टीचर िे आज कफर
डाटाँ पड़ी ै
ोती ै पीर तब पर अभी तो माँा के
चभु ता ै तीर जब
अपने ी क ते ैं आने मंे देर बड़ी ै
आपके मजे ंै
दोनों कमाते ंै ककतनी ी सशकायतें
बकंै बैलेन्ि बढ़ाते ैं ककतने मनु ार
अनक े ी र गये ैं।
उन् ंे क्या बतायें उिकी व तोतली बातें
कक स्जदंि गी के बकंै में प ला कदम चलना
िमय का खाता ै ककतने ी अनमोल पल
ज ााँ जमा कु छ भी न ीिं
के वल खचु ो र े पलों का छु ये त्रबन ी गुजर गये ंै
ह िाब रखा जाता ै
िमय कब ककिी
काम करते-करते की प्रतीिा में रुका ै
अचानक ाथ रुक िा गया ै मााँ की ऑखंि ों का िनू ापन पढ़
कागज़ों पर बार-बार बचपन अचानक
एक नन् ा चे रा उभर आया ै बड़ा ो चकु ा ै, पर
भरी दोप री थके पाँवा कामकाजी मह ला की
स्कू ल िे घर आया ै इि मनोव्यथा को
ममता की छाँवा त्रबन कौन िमझ िका ै!

अक्तूबर-हदिंिबर २०१८ ◦ सिगंि ापुर ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 8

बातचीत शादुला नोगजा, ननदेशक तले
व गिै कंि पनी, सिगिं ापरु
सपु ्रशसद्ध गातयका कववता कृ ष्ट्णमूततक
िे बातचीत

टैंपल ऑफ फाईन आटुि सिगिं ापरु मंे

वा वाई का जादू पैदा करने वाली नायाब गानयका कववता कृ ष्णमनू तु इि िाल जब टैंपल ऑफ फाईन आटुि
सिगंि ापुर में और समत्र उमा श्री ने उनिे बातचीत करने की व्यवस्था की तो सिगिं ापुर ििंगम ने उनिे
हदलखोल लम्बी बातचीत की और िाथ मंे घन्टों बठै कर उनका प्यार भरा ििंगीत सिखाना भी देखा। युवनतयाँा
क्लाि के बाद उन् ें घेर लेती ंै। व मीठी िी आवाज़ में बोलती ंै कक “ म ह दिं ी िुगम िगंि ीत गाने वालों
को ब ुत ररयाज़ करना चाह ए। स्जि तर क्लासिकल गाना गाने वाले आज 50 िाल गायकी के बाद भी
बठै कर पलटा प्रसै ्क्टि करते ैं। में भी िंिपणू ु कला शास्त्रीय ििंगीत िीख कर ी आएगी।”

अक्तबू र-हदििंबर २०१८ ◦ सिगिं ापुर िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 9

बातचीत

मंै मुग्ध ो कर उनको िुनती ूँा। वपताजी िरकारी नौकरी मंे थे और कफ़ल्म म्यसू ्ज़क
इतने में कववता कृ ष्णामतू ी जी मेरी तरफ़ िे मारा वास्ता न ीिं था।
मखु ानतब ो कर क ती ैं- आईए। और कफ़र जो
िवाल-जवाब का सिलसिला चला उिे जि का ति िादकलु ा - तो कफर आप कफ़ल्म म्यसू ्ज़क में कै िे
सलख र ी ूाँ। आईं?
िादकलु ा - आपने कब िे गाना शुरू ककया? कववता जी - मेरी बगिं ाल वाली माँा को कफ़ल्म
कववता कृ ष्ट्णमतू तक जी - मेरे घर में िब को िंिगीत म्यसू ्ज़क का ब ुत शौक़ था। मेरी अपनी माँा जो
का ब ुत शौक़ था, ख़ािकर मम्मी को। िाउथ एक बे तरीन कनाटु क शलै ी की गानयका थींि व
इंिडडयन में ोता ी ै, और बिंगासलयों में भी ोता भी चौ द िाल में ब्या ोने के चलते गा न
िकीिं। जब उन् ें मेरे इरादे का पता चला तो
ै, और मराहठयों मंे भी। गीत िंगि ीत का बड़ा उन् ोंने मरे ा पूरा िाथ हदया। मरे ी बागिं ला मााँ मझु े
शौक़ ोता ै। तो शौकक़या तरीक़े िे मैं िात-िाढ़े मुिंबई ले के आ गईं। म व ााँ के वल ेमा मासलनी
िात िाल की थी तब िे रवीदिं ्र िगंि ीत िीखती थी। जी को जानते थे। ेमा मासलनीजी की मााँ श्रीमती
जया चिवती मरे ी आंिटी की समत्र थीं।ि मनैं े िेटं
िादकलु ा - क्या आप बगंि ाल मंे थी उि िमय? ज़वे वयिु कॉलेज मंे दाखख़ला सलया। गरु ुदत्तजी के
कववता जी - न ीि,ं मेरी परवररश दो पररवारों के िबिे छोटे भाई ने मझु े कॉलेज में दाखख़ला लेने
प्रेम िे पगी थी। एक मछली का शौक़ीन बंिगाली में मदद की। वे ववज्ञापनों के सिलसिले मंे हदल्ली
पररवार और दिू रा ननपट शाका ारी िाउथ इिंडडयन आया-जाया करते थे और मारे पररवार को जानते
पररवार। वो भर्टटाचाय,ु म कृ ष्णमनू त,ु त्रबलकु ल थ।े उन् ींि की मदद िे मैंने ववज्ञापनों में स्जिंगल
एक ी घर मंे जिै े दो ककचन ों। मझु े दो मााँओिं गाना चालू ककया। मरे ा प ला स्जगंि ल गीता दत्त जी
और दो वपताओंि का प्यार समला ै। हदल्ली मंे के िाथ था। गीता जी ने ह न्दी और बागिं ्ला व़जनु
स्जि घर मंे म र ते थे उिके नज़दीक एक गाया और मनंै े तसमल वाला। ये 70 के दशक के
काली माँा का मिंहदर था। उिमें एक ब ुत अच्छे शरु ु की बात ै। इि तर मरे ी स्जंगि ल गाने की
रवीदंि ्र िगंि ीत के अध्यापक आया करते थे। मंै यात्रा शुरू ुई। इिी बीच मनंै े कॉलेज में गाना
उनिे रवीन्द्र िगिं ीत िीखने लगी। कफर जब में गाना शरु ू ककया। िेंट ज़ेववयिु में ब ुत िे सिनमे ा
िाढ़े आठ िाल की ुई तो नाथु इिंडडयन शास्त्रीय िे जड़ु े लोगों के बच्चे पढ़ते थे। ऐिे ी एक चीफ़
िंिगीत के एक सशिक िे म,ैं मरे ी ब न और मेरे गेस्ट थे ेमतिं कु मार, स्जनकी त्रबहटया रानू
भाई िंगि ीत िीखने लगे। मुखजी मेरी ि पाठी थी। उन् ोंने मुझे कॉलेज के
फिं क्शन मंे गाना गाते िनु ा और क ा,”मझु े अपने
िादकलु ा - आप भाई ब नों में िबिे बड़ी ैं? िाथ स्टेज पर गाने वाले की ज़रूरत ै, क्या तुम
कववता जी- न ींि मैं घर मंे िबिे छोटी ूाँ। मारे मेरे िाथ गाओगी?”
घर मंे िब को ििंगीत का ब ुत शौक़ ै। मेरी ये शुरुआत थी मरे े बड़े स्टेज पर गाने की!

अक्तूबर-हदिंिबर २०१८ ◦ सिगिं ापरु िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 10

बातचीत

िादकलु ा - आपको अपना प ला स्टेज परफामिंे याद मंे ििगं ीत की सशिा देत।े वे ग्वासलयर घराने के
ै? थे और कु मार गंिधवु जी के ब ुत बड़े फ़ै न थे।

कववता जी - मैं हदल्ली मंे भी स्टेज पर आपके जीवन के प ले गुरु आपके अदिं र िंगि ीत के
क्लासिकल म्यूस्ज़क प्रनतयोधगताओिं मंे भाग सलया प्रनत प्रेम और ननष्ठा जगा दें इििे बे तर क्या
करती थी और इधर-उधर थोड़ा ब ुत गाया करती
थी। मंै ऑल इिंडडया रेडडयो में बच्चों के प्रोग्राम मंे ोगा! उनका य बड़ा काम था कक आठ नौ िाल
भी गाया करती थी! मरे े भाई और मंै दोनों ी इि की एक बच्ची 20समनट तक लगातार तानपरु ा
तर के प्रोग्राम ककया करते थे। ेमिंत जी के िाथ बजा िके त्रबना इधर-उधर हदमाग़ दौड़ाए। और
मैं ब ुत िी जग ों पर गाना गाने गई- उदयपरु , उिके बाद डढ़े घटंि े तक िंगि ीत की किा मंे जी
सशमला और न जाने क ााँ क ा!ाँ लगा कर बठै िके । इिके सलए ब ूत धयै ु चाह ए।

ेमतंि जी ने ी मझु े मन्ना डे जी िे समलवाया मारे गुरू जी ने म िबके अदिं र िगंि ीत के सलए
और क ा कक ये आपके िाथ बखबू ी डु एट गा अटू ट प्रमे पदै ा कर हदया।
िकती ै।
कफर जब मैं मुंिबई आई तो मनंै े ब ुत िे लोगों िे
िादकलु ा - आपका प ला कफ़ल्म का गाना कौनिा थोड़-े थोड़े िमय के सलए िंगि ीत िीखा। मंबुि ई मंे
था? मेरे प ले गुरु अह न्द्र कु मार। मनैं े शान के
कववता जी - ेमंित कु मार जी की करम िे ी मझु े वपताजी मानि मुखजी िे िीखा, वे एक म ान
मरे ा प ला कफ़ल्मी बािंगाली गीत समला ‘श्रीमान बांगि ला िगिं ीतकार और गायक थ।े उनका दे ान्त
पथृ ्वीराज’ मवू ी मंे। मनंै े कॉलेज बंिक करके इि ब ुत कम उम्र मंे ी ो गया। मनैं े मलय चिवती
गीत की ररकॉडडगंि की लता जी के िाथ। लता जी जी िे भी िंिगीत िीखा और गोववन्दप्रिाद जयपुर
ने परू ा गीत गाया मरे ी के वल चार पिंस्क्तयाँा ी थी। वाले जी िे लगभग दो िाल िीखा। पडंि डत जिराज
ये 1970 के अतिं की बात ै! जी िे छ : म ीने और पडंि डत रामनारायण जी िे
भी कु छ िमय िीखा!
िादकलु ा - जब आप हदल्ली िे मुबंि ई आए तो अपने गौतम मखु जी, ेमन्त कु मार के जमाता थे और
अपने ररयाज़ को कै िे ज़ारी रखा? अन्नपणू ाु जी के ववद्धाथी थ,े उन् ोंने भी मुझे
कववता जी - ये कोई मुस्श्कल बात न ीिं थी हदल्ली ििंगीत की सशिा दी।
में िंगि ीत के मरे े गुरुजी बलराम परु ी ब ुत ी
उम्दा टीचर थे और उन् ोंने मारे अदिं र ििगं ीत को इनके अलावा ब ुत िे िगंि ीतकार मरे े गजब गुरु
लेकर इतना प्यार घोल हदया था कक कु छ भी र े ंै। इनमें िबिे बड़े गरु ु र े- लक्ष्मीकांित
मे नत अखरती न ीिं थी! वे हदल्ली के गंिधवु प्यारेलाल। म जब ििंगीत िीखते ैं तो बहंि दश
म ाववद्यालय में पढ़ाते थ,े पर मारे घर आकर िीखते ंै, पर जब आप म बूब जिै े स्टू डडयो में

अक्तूबर-हदिबिं र २०१८ ◦ सिगिं ापुर ििंगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 11

बातचीत

गाना गाते ंै, िौ म्यसू ्ज़सशयन के िाथ तो आपके िादकलु ा - क्या अलग-अलग नानयकाओिं के िाथ,
अन्दर एक ुनर ोना चाह ए जो मनैं े ििंगीकारों िे आप अलग तर िे गाती थींि?
िीखा। मंै शहू टगंि के सलए गाया करती थी और बाद कववता जी - ााँ थोड़ा िा। उि िमय जब श्रीदेवी
मंे लताजी अिल गीत ररकॉडु ककया करती थीिं। मरे े के सलए गाती थी तो उनकी शस्सियत ध्यान मंे
गाने अधधकतर रेखा स्जतेन्द्र की कफ़ल्मों के सलए र ती थी। मनीर्ा कोईराला, शबाना जी इन की
ुआ करते थे। अलग शस्सियत थी।
उि ज़माने की िभी िवोच्च असभनते ्रत्रयों के सलए
जो लताजी जो गाती थींि, मैं उनके शूहटगिं के गीत िादकलु ा - क्या ककिी ख़ाि ीरोइन के िाथ आपकी
गाया करती थी। आवाज़ की जोड़ी बनी?
कववता जी - मझु िे ज़्यादा ये बात मेरे दशकु
िबिे बड़ी बात थी शास्त्रीय गायन के परे, ककि जानते ोंगे और ाँा मनैं े श्रीदेवी जी के सलए ब ुत
तर गाना गाया जाए जो म्यसू ्ज़क डायरेक्टर की िे गीत गाए ंै। कु छ शबाना जी और माधरु ी जी के
पििंद का ो और कफ़ल्म की स्स्िप्ट पर ठीक बठै े । सलए भी गाए ंै।

िादकलु ा - आपके पिदिं ीदा गाने कौन िे ैं?

कववताजी िगिं ीत सिखाती ु ईं

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बातचीत भरोिे मेरा कररयर कररयर चल जाएगा तो य
ममु ककन न ी।ंि आप ििंगीत का कररयर बॉलीवुड
कववता जी - मेरे सलए ‘ वा वाई’ ननश्चय ी और उिके परे दोनों ी देखना पड़गे ा।
िबिे बड़ा फ़े वरेट ै। क्योंकक य ब ुत ी
सिनैमहे टक गीत ै। स्जि तर िे ये कफ़ल्माया भाग्यवश मेरे सलए जब य मकु ़ाम आया तो मरे े
गया, ररकॉडु ककया गया, िब पूरी तर िे पाि अपने पनत का ि योग था। मरे े पनत
कमसशयु ल ै, त्रबना अपनी गुणवत्ता खोए। एक लक्ष्मीनारायण िुिामननयम बड़े क्लासिकल
तर िे ये एक आईटम िॉग ै जो कक त्रबलकु ल म्यूस्ज़सशयन ंै। उन् ोंने मरे े सलए िगिं ीत के दिू रे
भी चीप न ीिं ै। द्वार खोल हदए।
दिू रा पििदं ीदा गीत ै लव स्टोरी १९४२ और
तीिरा ै ख़ामोशी। पूरी ख़ामोशी की उनिे समलने के प ले मनैं े कभी ककिी सिम्फनी
एलबम। ऑके स्रा के सलए न ीिं गाया था। अब मनैं े ब ुत िे
‘ म हदल दे चकु े िनम‘ का टाइटल िोंग भी मुझे सिम्फ़नी ऑके स्रॉि के सलए गाया ै। सलकिं न िेटं र
ब ुत ी प्यारा लगता ै। य वाला गीत गाने में में जैज आहटुस्ट के िाथ परफ़ॉमु ककया ै। ये िब
ब ुत कहठन था, ब ुत िारे भाव थे इिके अदंि र,
पकड़ने मंे जहटल। इिे गाते ुए र िण मझु े मरे े पनत के िास्न्नध्य िे ी िभंि व ुआ ै।
ब ुत ी आनिदं आया|
उनके िाथ िे मरे े ििंगीत की रा ंे और भी खलु ती
िादकलु ा - क्या आप अभी भी कफ़ल्मों में गीत गाती गईं, मज़बूत ोती गईं। िच में सभन्न-सभन्न देशों
ंै? में जाकर, अलग-अलग तर के म्यसू ्ज़क के िाथ
परफ़ॉमु करने में ब ुत ी ख़शु ी समलती ै। म
कववता जी - न ीिं अब मैं कफ़ल्म ििगं ीत िे काफ़ी ब ुत यात्राएिं करते ैं।
कु छ दरू चली गई ूाँ; क्योंकक मेरे िाथ के म्यूस्ज़क
डायरेक्टिु अब िगिं ीत न ीिं दे र े ंै। मंै अधधकतर सिम्फोनी पीिैि करती ूँा। मरे े पनत
मरे ी आवाज़ िे मैच करते ुए पीिैि सलखते ैं।
कु छ अनंि तम अच्छे फ़ल्मी गीत मनंै े मगंि ल पाडंि े मनैं े लिदं न सिम्फ़नी, अमरीकी, िाजीसलयन,
और रॉक स्टार के सलए गाए ैं। लटै ववयन, जमनु ब ुत िे ऑके स्राज़ के िाथ
गाया ै।
एक बात क ना चा ती ूँा। आज का बॉलीवडु
सिधंि गग बदल चकु ा ै। एक िमय था जब लता िादकलु ा - आप टेंपल ऑफ़ फ़ाइन आर्टुि िे कै िे
जी, आशा जी ने बरिों बरि गाया। कफर म लोग जुड़ी ैं?
आए, म,ंै अलका, िाधना, अनरु ाधा। और मिबने
भी २५-३० िाल बॉलीवडु मंे गीत गाए। व ज़माना कववता जी — मेरे पनत देव के कारण म स्वामी
अलग था। अब जो भी नए गायक आते ैं वो लिबं े शान्तानदंि ाजी िे समले। िबिे प ले म उन् ें
िमय तक हटक न ींि पाते ंै । िो ककिी गायक चने ्नई एयरपोटु पे समले। उन् ोंने मेरे पनत को
के सलए य क ना कक के वल बॉलीवडु में गाने के मलेसशया में परफ़ॉमु करने के सलए बुलाया। म
िारे पररवार िह त मलेसशया गए। मनंै े भी

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बातचीत

स्वामीजी के सलए गाया। स्वामीजी िगिं ीत और कला भारतीय के िाथ-िाथ ह दंि सु ्तानी रेडडशन िे भी
को पूणतु : िमवपतु थे। उन् ोंने मंे अनायाि ी ब ुत िे बच्चे और युवा वायसलन वादन में आ गए।
ब ुत प्यार हदया और म िब उनिे खखचिं े चले इिसलए मंै िमझती ूँा कक मरे ी लेगेिी िे बड़ी
आए। कफर टंेपल ऑफ़ फ़ाइन आर्टिु के िभी उनकी ववराित ै।
िदस्य ने भी में ब ुत प्यार और िम्मान हदया
और स्वामी जी के चले जाने के बाद भी मने मंै अपनी तरफ़ िे क्लासिकल म्यसू ्ज़क गाने वालों
टंेपल ऑफ़ फ़ाइन आर्टुि िे अपने ििबं िंध उतनी ी को ह दिं ी कफ़ल्म के गाने कै िे गाने चाह ए उिकी
मज़बतू ी िे बनाए रख।े रेननगंि देती र ती ूाँ।

िादकलु ा — आप क्या िोचती ंै, कोई ऐिा सशष्य ै िादकलु ा - आपके ववचार में ककिी िफल गाने के
जो आपकी लेगिी, आपकी ववराित को आगे ले पीछे िबिे ज़्यादा ककिका ाथ ोता ै—गायक,
जाएगा? गीत के बोल, ििंगीत या कक उन एक्टिु का स्जन
पर वो गीत कफल्माया जाए।क्या िभी बराबर के
कववता जी - मेरी ववराित िे ब ुत अधधक फै क्टिु ैं।
म त्वपणू ु मेरे पनत की ववराित ै वे इि देश के कववता जी - कु छ क ा न ींि जा िकता। पर गाने
अनठू े वायसलन वादक ै। उनके जिै ा वायसलन इि का स्टेनयगिं पॉवर कफ़ल्म के चले जाने के िालों बाद
देश में तो क्या, परू े ववश्व मंे कु छ ी लोग बजा तक र ती ै। आज भी म मदन मो न जी, शकिं र
िकते ैं। जयतककशन जी के गीत िनु ते ंै जो लताजी, आशा
जी, ककशोर कु मार, मौ म्मदरफी, मन्नादा ने गाए
य वॉयसलन की िुिम्यम तकनीक ै स्जिे कोई
उनिे िीखे त्रबना िीख ी न ींि िकता। ककि तर ंै। भारतीय कफ़ल्मों के गीत सिनेमा िे प ले
िे भारतीय वायसलन पाश्चात्य वायसलनों की टक्कर ररलीज़ ो जाते ंै। कई बार तो ह ट गीत के कारण
का िोलो म्यसू ्ज़कल इिंस्ूमंेट बन िका, ये उनका लोग कफ़ल्म देखते ैं। गाईड के गान,े वो गाना ननै ा
िबिे बड़ा योगदान ै। बरिे ररमखझम ररमखझम ये िब िपु र ह ट गाने
रीलीज़ ुए और कई लोगों ने गानों की वज िे
वायसलन एक पाश्चात्य इिंस्ूमेंट ै िो ककिी कफ़ल्म देखी। ाँा कफल्मांिकन, अदाकारी ने गीत को भी
भारतीय वायसलननस्ट के सलए पश्चात वायसलननस्ट बड़ा ननखार हदया। मेरे ह िाब िे सलररसिस्ट,
के िाथ, जैिे की य ूदी मने न के िाथ, वायसलन कम्पोज़र और सिगिं र का तगड़ा कौम्बीनशे न ी
बजाना कोई आिान काम न ीिं और उन् ोंने इिे ककिी गीत को अमर बना िकता ै।
बख़बू ी ननभाया ै।ब ुत िे यवु ाओिं का उन् ोंने पथ
प्रदशनु ककया ै। 20 िाल अमरे रका में र ने के बाद *******
जब व भारत आए, तो उनिे प्ररे रत ो दक्षिण

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ववदेशी भार्ी के मखु िे

नेपाल और थाइलडंै मंे रोहहगं ्या का सफ़र और जीवन

2016 में मैं म्यामिं ार गई थी तब मुझे पता चला समररयम ज ीन
कक रोह गंि ्या अपना देश छोड़कर नेपाल और छात्रा-एन.यू.एि, सिगिं ापरु
थाईलडैं में शरण ले र े ंै| ‘नेपाल टाइम्ि´ इि
अखबार मंे भी इि बात की पसु ्ष्ट की थी कक
नेपाल मंे ब ुत बड़ी ििखं ्या मंे रोह गिं ्या शरणाथी
र ते ंै| प ले वे अधधकतर ऐिे देशों मंे जाकर
बिते थे ज ााँ मिु लमानों की िखंि ्या ज़्यादा थी|
पर नपे ाल और थाईलडंै मंे य स्स्थनत न ींि ै तो
कफर रोह गिं ्या य ाँा आकर क्यों बि र े ैं? उनके
इि िफ़र के बारे मंे जानने की उत्िुकता मन में
ुई और मनैं े य ी ववर्य अपनी पी.एच.डी
थीसिि के सलए चनु ा|

नेपाल और थाइलडंै मंे वे अवधै रूप िे र ते ैं। था? मैं जानना चा ती ूाँ रोह गिं ्या नपे ाल और थाईलडैं
वे य ाँा िुरक्षित म ििू करते ंै और उन् ें आशा की िरकार और UNHCR के िाथ कै िे बातचीत करते

ै कक काठमांिडू मंे UNHCR का मखु ्य कायाुलय ंै और उि देश के लोगों के िाथ उनके िम्बन्ध कै िे
ोने के कारण उन् ें शरणाधथयु ों का स्टेटि ंै। और िबिे बड़ी बात य कक इन िबका उनकी
समलना आिान ोगा| पर नपे ाली और थाइलडैं प चान पर क्या अिर पड़ र ा ै|
की िरकारें उनकी मदद न ींि करती,िं UNHCR
द्वारा उनको काननू ी मान्यता या पिै ा न ींि हदया वपछले िाल मैं नपे ाल गई थी और व ााँ रोह गंि ्या
जाता इिसलए उनकी मुस्श्कलंे बढ़ती जा र ी ंै। शरणाधथयु ों िे समली। नपे ाल मंे वे श र िे बा र बिाए
कफर भी रोह गंि ्या त्रबना ार माने कोसशश करते ुए दो सशववरों मंे र ते ैं स्जनको वे ख़दु ी चलाते
र ते ैं ताकक वे बे तर स्जन्दगी जी िकें ।
ैं। उनके सशववर काठमािंडू , कोरका और पोखरा इन
मैं अपने थीसिि मंे कु छ िवालों के जवाब श रों के पाि हदखाई पड़ते ंै| ालााकँ क वे मज़दरू ी
खोजने की कोसशश कर र ी ूँा कक रोह गंि ्या करते ंै, उनकी तनख्वा ब ुत कम ै कफर भी उन् ोंने
नपे ाल और थाइलडंै क्यों, कै िे और कब गए? वे अपने सशववरों मंे त्रबजली के सलए िोलर पैनल लगवाए
अपना गज़ु ारा कै िे करते ैं, उनका िफ़र कै िा
ैं, पानी की टिंककयााँ लगवाई ैं।

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ववदेशी भार्ी के मुख िे

उनके घरों की दीवारें बािंि और कागज़ िे बनी ंै, शरणाधथयु ों की मदद करते ंै, एक-दिू रे के िाथ
और छत टीन की| उनके बच्चे व ाँा पाि के स्कू लों अच्छे िम्बन्ध बनाए रखते ैं इिसलए इन
मंे पढ़ने भी जाते ंै| नपे ाली िरकार उनको परेशान शरणाधथयु ों के सलए थाईलडैं मंे र ना आिान ै|
न ींि करती, वे नपे ाल में र र े ंै। परन्तु मुस्श्कल य ै कक थाइलडंै और म्यांमि ार की
िरकार के बीच अच्छे िंिबधिं न ींि ैं तो थाइलडंै की
थाइलडैं मंे रोह गिं ्या शरणाथी पूरे देश में र ते ैं पसु लि उनको कभी-कभी ह राित में ले लते ी ै,
लेककन ज़्यादातर रोह गंि ्या दक्षिण थाईलडैं में र ते उनको धगरफ़्तार कर लेती ै|
य िब जानने के बाद मंै इि नतीजे पर प ुँाची ूँा
ंै। बकंै ाक में ब ुत रोह गंि ्या र ते ैं| वे िड़क के कक रोह गिं ्या का िफ़र और जीवन कहठन तो ै
ककनारे ख़ाि प्रकार की रोहटयाँा बचे कर अपना गुज़ारा लेककन वे ब ुत आशावादी ैं और उनको बे तर
करते ंै| िबु -शाम कई ठे लों पर अडंि ा, किं डंेस्ड दधू जीवन की उम्मीद ै।
या के ले भरकर रोहटयााँ बनाते ुए रोह गिं ्या हदखाई ——————————————-
देते ैं| जो कु छ िाल प ले व ााँ गए थे, वे अब
अच्छी तर बि गए ैं| वे नए आने वाले

रोहहगं ्या िरणाथी शिववर का चित्र ववककपीडडया से साभार

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काव्य-रि

पेबदं लगा कपड़ा

यँाू तो गाँाव मेरा और बड़े चा ता ूंि कक गाँाव में
िब लोगों में िमानता ो
बड़ों का ै एक िाड़ी देने की जग एकता ो भाईचारा ो
िबके घर में अन्न-विन ो
पर िच्चाई य ै कक देखते ंै उन् ंे कामुकता िे दखु ी न ककिी का मन ो ।

गााँव लगता न ीिं बड़ों का ै । और उनकी ननगा ंे डॉ. राजेश कु मार ‘माझँा ी’
ह दिं ी अधधकारी एविं ििपं ादक -
गावँा में ै एक दखु खया काकी काकी के हदल को तार-तार
जो हदनभर मे नत-मजदरू ी करके कर देती ंै र बार जासमया दपणु
बाल-बच्चों के सलए अपने जासमया समस्ल्लया इस्लासमया
र रोज ।
नई हदल्ली
करती ै जगु ाड़ मैं भी लाचार ूाँ

रोटी का चा कर भी उनके सलए

बड़े ी पररश्रम िे । नए वस्त्र न ीिं जटु ा पाता ूाँ

मनैं े देखा ै उनको जो कमाता ूाँ
अपनी बच्ची के फटे कपड़ों को पररवार मेरा चलता ै उििे
बारंिबार सिलते ुए खीचंि -तान कर ।

और िुई के चभु जाने िे न ीिं नए न ि ी पर

बल्की अपनी मजबूरी पर पुराने कपड़े घर के अपने

छु प छु पकर रोते ुए। यदा कदा मंै जाकर गावाँ

य ी न ीिं ककी को दे आता ूिं
उनकी िाड़ी भी और अपनी इि मजबरू ी पर
तार-तार ो गई ै छु पकर आिंिू मैं छलकाता ूाँ ।

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आम के पेड़ काव्य-रि

िालों प ले असमयााँ तोड़ने के सलए ..
जब मैं छोटा था .. कई िाल बीत गए ंै ..
गावाँ ककनारे .. िड़क पर अब मंै अपने गााँव मंे न ीिं र ता..
कँाू ड़ ताल के पाि .. अब क़रीम चच्चा वाले पेड़ भी न ींि ंै ..
आम के कु छ पेड़ थे .. अब कोई असमयााँ भी न ींि तोड़ता ..
करीम चच्चा के थे .. रा गीर अब व ाँा न ीिं ..पाि वाली चाय की दकु ान
पर अपने जैिे लगते थ.े . पर बैठते ंै ..
रा गीर, अक्िर .. गसमयु ों मंे, अब व ााँ कु छ पक्के मकान ैं ..
उनकी छााँव मंे बठै ... थोड़ी देर पेड़ों को कौन याद रखता ै भला ?
जठे की कड़कती धपू िे बचते थे मैं भी न .. क ााँ भटक गया ..
उन् ींि हदनों मैं उन पर गुम्मों के ननशाने िाधता पेड़ - लकड़ी ी तो ंै ..
था.. ककिी ठे के दार के आरे की भंेट चढ़ गये ोंगे ||

राजेंद्र नतवारी,
ववत्तीय प्रबधंि न,सिगिं ापरु

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िाह त्य िे िंिस्कृ नत तक मणृ ाल मोड़क

दस्तक इन्शरु न्ि प्लानर
शसगं ापुर मंे हहदं ी नाट्य उत्सव
सिगंि ापरु

दस-दस शमनट की दस लघुनाहटकाएँा

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िाह त्य िे िंिस्कृ नत तक

आपने 'डाििं फे स्स्टवल' या कफर 'कफल्म फे स्स्टवल' आरम्भ ो जाती ै। िवपु ्रथम पटकथा लेखकों की
के बारे में ब ुत िनु ा ोगा या देखा भी ोगा चयन प्रकिया ोती ै। पटकथा का चयन ोने के
परन्तु क्या आप ककिी 'नार्टय उत्िव ' में शासमल पश्च्यात ननदेशकों का चनु ाव ोता ै एवंि उन् ंे
ुए ैं ? सिगंि ापरु मंे र ते ुए य ाँा में 'ह दंि ी ककि नाटक का ननदेशन करना ै ये बताया जाता
नार्टय उत्िव' का अनुभव प्राप्त ो िकता ै य
मनैं े कभी िपने मंे भी न ींि िोचा था! ै। इिके पश्च्यात कलाकारों की चयन परीिा
िम्पन्न ोती ै। िबिे म त्वपूणु ोता ै
'दस्तक - ह दंि ी नार्टय उत्िव' इि उत्िव का प्रत्येक कलाकार को उिकी योग्यता के अनिु ार
मिचं न िामान्यतः नवम्बर के म ीने में ोता ै। काम /'रोल' हदया जाए। उिके बाद शुरू ोता ै
इि वर्ु 'दस्तक - ह दंि ी नार्टय उत्िव' ने अपने अभ्याि का अनवरत दौर, प्रत्येक शननवार और
तीिरे उत्िव का िफलतापवू कु मंचि न ककया ै। रवववार को र लघु नाहटका की टीम समलकर
'दस्तक' एक अनोखी और िजृ नात्मक िोच का अपना-अपना अभ्याि करती ै। चकंूि क अधधकतर
पररणाम ै - दि - दि समननट की दि लघु कलाकार कामकाजी मह ला या परु ुर् ै जो अपने
नाहटकाएंि , १० क ानीकार, १० ननदेशक! इि शौक के सलए पूणतु ः िमवपतु ै अतः अभ्याि का
िजृ नात्मक िोच का पररणाम य ुआ कक िम शननवार और रवववार को घटंि ो तक चलता
सिगंि ापुर ने पटकथा लेखकों को जन्म हदया, र ता ै। कलाकारों को असभनय की बारीककयाँा
नार्टय ननदेशकों को ननदेशन िीखने और अपनी सिखाने के सलए कई कायशु ालाएंि भी आयोस्जत की
कला प्रदशनु का मौका समला और िकै ड़ों जाती ंै। व्याविानयक कलाकार भारत िे आकर
कलाकारों को अपनी असभनय िमता मचिं पर य ाँा असभनय की कायशु ाला लेते ंै। ववगत दो
हदखने का िुअविर प्राप्त ुआ। उत्िव की वर्ो िे पटकथा लेखन की कायशु ाला का आयोजन
ननदेसशका - शलाका काखणकु -रणहदव,े कलात्मक य ाँा के स्थानीय कलाकार कर र े ै। ननदेशन
ननदेसशका - गौरी गुप्ता एवंि िमस्त टीम की ककि तर िफलतापूवकु ककया जाना चाह ए इिके
ऊजा,ु उत्िा और आत्मववश्वाि को नमन। सलए भी भारत िे व्याविानयक कलाकारों ने
आकर य ााँ के लोगो को प्रसशिण हदया ंै ।
नार्टय उत्िव के िफल प्रदशनु के पीछे अथक
और ननरिंतर प्रयाि की आवश्यकता ोती ै। इि वर्ु के उत्िव के मुख्य अनतधथ थे रेिी एवंि
िाधारणतः छः म ीने प ले िे य प्रकिया एडिअन पािगं जो स्थानीय रिंगमचंि के िुप्रसिद्ध

अक्तूबर-हदििबं र २०१८ ◦ सिगिं ापुर ििंगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 20

िाह त्य िे िंिस्कृ नत तक

कलाकार ै एविं इनकी खदु की 'पािंगड़मे ोननयम' ठीक करत-े करते ककतनी दयनीय ो जाती ै य
नामक नाटक किं पनी भी ै। हदखाया गया ै। 'ननझरु ी' में वीणा के असभनय ने
दशकु ों के मन पर एक असमट छाप छोड़ी। 'मीली'
हटककटों की त्रबिी तकरीबन तीन म ीने प ले शरु ू ने मे इि कटु ित्य िे अवगत कराया कक
ुई और देखते ी देखते िभी छः शो ाउि-फु ल भववष्य मंे में रोबोट के अधीन ोना पड़गे ा।
ो गए! य प्रत्यि प्रमाण ै दस्तक की अपूवु 'अस्स्तत्व' में 'किं टेम्पररी नतृ ्य के जररए मह लाओंि
लोकवप्रयता का ! रंिगमिंच पर उपस्स्थत कलाकार पर ोने वाले अत्याचार और मह लाओंि के शोर्ण
और परदे के पीछे के िभी कलाकारों, स्वयंि िेवकों को बख़बू ी दशायु ा गया। 'गुरु गड़ु और चले ा चीनी
के उत्िा और लगन की जीतनी भी तारीफ की ' में आज के िमाज की भ्रष्ट व्यवस्था दशाुई
जाये वो कम ै। य िबके समले - जुले कहठन गयी। 'श्री श्री ४२० ' एक ास्य नाहटका थी
पररश्रम का ी पररणाम ै कक लगभग ८० स्जिमे दशायु ा गया कक ककि तर िमाज में
कलाकारों की िशक्त टीम ने इि यात्रा को नए नए 'बाबा ' जन्म ले र े ैं और अपना उल्लू
अबाधधत पार कर िफलता की ऊंि चाईयों को प्राप्त िीधा कर र े ंै। 'कोलैटरल डमै जे ' मंे आतिकं वादी
ककया। इलाकों में ककि तर गे' ूिं के िाथ घुन भी वपिता

प्रत्येक नाटक की कथावस्तु पणू तु ः सभन्न थी ै' इिकी ममसु ्पशी कथा थी। 'फे ि ऑन द वाल'
स्जिने अपने लघु िमय मंे भी दशुकों के मन को में ककि तर आज का युवा काल्पननक और
खझझंि ोड़ कर रख हदया। इि वर्ु की दि लघु स्वप्नों की दनु नया में जीता ै और यथाथु का
नाहटकाओंि मंे एक नाहटका प्रसिद्ध िाह त्यकार िामना करने की ह म्मत न ीिं जटु ा पा र ा ै।
सशवानी द्वारा सलखखत 'िती ' नमक क ानी पर 'एक हदन बकंै मंे' ये नाहटका भारत की 'अकिं '
आधाररत थी। इिमंे एक रेल - यात्रा के दौरान नामक नार्टय िसंि ्था की प्रस्तुनत थी स्जिने दशकु ों
एक मह ला यात्री द्वारा अपने ि यात्रत्रयों का को ंििा – िंिाकर लोटपोट कर हदखाया गया ै।
िामान लटू ने की घटना का धचत्रण ै। 'ननझरु ी' में वीणा के असभनय ने दशकु ों के मन
'आर्यक ' नाहटका मराठी िाह त्यकार लक्ष्मण पर एक असमट छाप छोड़ी। 'मीली' ने मे इि
लोंढे की क ानी के ह दंि ी अनुवाद पर आधाररत कटु ित्य िे अवगत कराया कक भववष्य में में
थी। एक मनोधचककत्िक की दशा मनोरोधगयों को रोबोट के अधीन ोना पड़गे ा।

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िाह त्य िे ििंस्कृ नत तक

'अस्स्तत्व' मंे 'किं टेम्पररी नतृ ्य के जररए मह लाओिं ककि तर आज का यवु ा काल्पननक और स्वप्नों
पर ोने वाले अत्याचार और मह लाओंि के शोर्ण की दनु नया में जीता ै और यथाथु का िामना
को बख़बू ी दशाुया गया। 'गुरु गड़ु और चले ा चीनी' करने की ह म्मत न ीिं जटु ा पा र ा ै। 'एक
में आज के िमाज की भ्रष्ट व्यवस्था दशाईु गयी। हदन बकैं मंे' ये नाहटका भारत की 'अकंि ' नामक
'श्री श्री ४२० ' एक ास्य नाहटका थी स्जिमें नार्टय िसंि ्था की प्रस्तनु त थी स्जिने दशकु ों को
दशायु ा गया कक ककि तर िमाज मंे नए नए
'बाबा ' जन्म ले र े ंै और अपना उल्लू िीधा ंििा – िंिाकर लोटपोट कर हदया।
कर र े ंै। 'कोलटै रल डमै ेज' में आतिंकवादी इलाकों
मंे ककि तर गे ूाँ के िाथ घुन भी वपिता ै' अतिं मंे मैं य क ना चा ूँागी कक दस्तक को म
इिकी ममसु ्पशी कथा थी। 'फे ि ऑन द वाल' में िभी दशकु ों की ओर िे ब ुत ब ुत बधाई और
आने वाले वर्ों के सलए अनके शुभकामनाएँा !

टीम दस्तक

अक्तबू र-हदिबिं र २०१८ ◦ सिगिं ापुर िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 22

देश विदं ना ननशा ि गल
फरीदाबाद, ररयाणा
राष्रीय असभव्यस्क्त का अमर
प्रतीक—वंिदेमातरम ्

“वन्दे मातरम!् मारे राष्रीय गीत वंिदेमातरम ् के मूल रधचयता
िुजलांि िुफलाम ् मलयजशीतलाम ् बंिगला के िपु ्रसिद्ध कथा सशल्पी बिकं कमचन्द्र
शस्यश्यामलाम ् मातरम”् चर्टटोपाध्याय थे, स्जन् ोनंे 1876 मंे भारतीय
स्वतिंत्रता असभयान िे प्रेररत ोकर बागिं ला और
भारत के स्वतिंत्रता िंगि ्राम एविं स्वाधीनता आिदं ोलन िसिं ्कृ त शब्दों का उपयोग कर इि गीत की रचना
में स्जन नारों एवंि गीतों की उल्लेखनीय भसू मका की थी।
र ी, उनमंे विंदेमातरम ् का ववसशष्ट स्थान ै।
विंदेमातरम ् मातभृ सू म के प्रनत उमड़ र े प्रेम को बंककमिन्द िट्टोपाध्याय
लेकर बनाया गया एक गीत ै स्जिका मूल अथु ै, (ववकीपीडडया से साभार)
“मै अपनी माँा को प्रणाम करता ूाँ।” भारतीय
स्वतितं ्रता असभयान के िमय मंे वंदि ेमातरम ् ने
म त्वपूणु भसू मका ननभाई थी। उि िमय बिंगाल मंे
आज़ादी को लेकर कई रैसलयााँ आयोस्जत की गयी
थी, स्जनमंे वदंि ेमातरम ् के नारे लगाये जाते थे।
िभाओिं और रैसलयों मंे िभी देशभक्त उि िमय
विंदेमातरम ् के नारे लगाते थ।े इि नारे िे िांनि तकारी
और अह ििं ावादी दोनों ी िमान रूप िे अनुप्ररे रत
एवंि प्रफु स्ल्लत ोते थ।े पारस्पररक िम्बोधन में भी
राष्रभक्त विंदेमातरम ् का ी उपयोग करते, क्योंकक
य नारा िम्पणू ु राष्र की धमनु नरपेिता,
िाम्प्रदानयक िौ ादु,राष्रीय एकता एविं िानंि तकारी
चते ना का प्रतीक माना जाता था।

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देश विंदना

बिंककमचन्द्र चर्टटोपाध्याय नयी स्थावपत कलकत्ता नीनतयों व अत्याचारों िे पीडड़त भारतीय जनता के
यूननवसिटु ी के प्राचीन स्नातको में िे एक थ।े बी.ए. ववरोध की गनत मंदि पड़ने लगी, तब थके ुए प्राणी
व गलु ामी की जंिजीरों में जकड़े भारतीय जन-मानि
ोने के बाद वे त्रिहटश िरकार मंे सिववल कायकु ारी को जाग्रत करने का कायु इि गीत ने ककया। कफर
के पद पर कायरु त थे। बाद मंे वे डडस्स्रक्ट तो ने जाने ककतने देशभक्तों ने इि गीत को गाते
मस्जस्रेट और कफर डडस्स्रक्ट कलेक्टर भी बन।े ुए िंिते- िंिते अपने प्राणों को अपनी मातभृ सू म की
चर्टटोपाध्याय को भारतीय स्वततंि ्रता असभयान में स्वततंि ्रता की पावन अस्ग्न मंे झोंक हदया। ककतनी
काफी रुधच थी। क ा जाता ै कक वंदि ेमातरम ् की
रचना का ववचार बकिं कमचन्द्र चर्टटोपाध्याय के ी माताओिं ने अपने कलेजों के टु कड़ों को इि गीत
हदमाग मंे 1876 मंे गवमटंे ऑकफसियल के पद पर को गाते ुए स्वततिं ्रता ििंग्राम मंे भेजा ,लेककन य
र ते ुए आया था। िवपु ्रथम य अमर गीत “वेग सिलसिला लगातार जारी र ा। वदिं ेमातरम ् के म त्व
दशनु ” नामक पत्रत्रका मंे अप्रलै 1881 मंे प्रकासशत को दशाुने के सलये पत्र-पत्रत्रकाओिं ने अनके
ुआ था। 1882 मंे उन् ोंने इि गीत को अपने िम्पादकीय एविं आलेख प्रकासशत ककये। श ीदे
प्रसिद्ध उपन्याि “आनदंि मठ” मंे शासमल ककया आज़म िरदार भगत सििं ,राजगुरु, िखु देव,
था। ववसभन्न प्रकार के राष्रीय उत्िवों,जलूिों एवंि रामप्रिाद त्रबस्स्मल, बटु के श्वरदत्त, ठाकु र रोशन
जनिभाओिं मंे इि लोकवप्रय गीत की गजूंि िुनाई सिंि ,राजंेद्र ल ड़ी, ेमूकालानी, चदंि ्रशखे र आज़ाद
देने लगी। 1896 के कािगं ्रेि अधधवेशन मंे प ली आहद अनके िानंि तकाररयों, श ीदों ने वंदि ेमातरम ्
बार वदंि ेमातरम ् को राष्रविदं ना के रूप में गाया गया गीत गाते ुए और ंििते ुए फािंि ी के फिं दे को
था, स्जिकी िंगि ीत धनु गुरु रववदिं ्रनाथ टैगोर ने चमू ा और अपने को देश पर न्योछावर कर हदया।
स्वयंि तैयार की थी और कागिं ्रेि मंिच िे इिे प्रस्ततु उि िमय बिंगाल के िपु ्रसिद्ध पत्र “आनिंद बाजार”
ककया था। इिके पाचँा िाल बाद 1901 में दखखना ने सलखा कक िरकार को य िमझना चाह ए की
चरण िेन ने इिे कागंि ्रेि के िेशन मंे कलकत्ता मंे वदंि ेमातरम ् बोलने वाले लोग धीरे-धीरे मतृ ्यु के भय
गाया था। 1905 में कववनयत्री िरला देवी ने िे मुक्त ो र े ैं। बगंि ाल के एक और पत्र
बनारि के कांिग्रेि िेशन मंे गाया था। इिके बाद “बंगि वािी” ने उल्लेख ककया कक वंिदेमातरम ्
लाला लाजपत राय ने ला ौर िे वंिदेमातरम ् नाम राष्रभस्क्त का पररचायक ै,राष्रद्रो का न ी।िं य
का जनलु शुरू ककया। 1907 मंे सभकाजी कामा ने प्रकाश ै, अधंि कार न ींि। य मतृ ्यु रह त जीवन ै।
जमनु ी मंे नतरिंगे का प ला रूप (आकार) बनाया, विंदेमातरम ् गीत को राष्रीय मयाुदा बगंि -भिगं
स्जिके मध्य मंे विंदेमातरम ् सलखा ुआ था। आदिं ोलन के िमय प्राप्त ुई थी,स्जिकी कल्पना
20 नवम्बर 1909 को इि गीत का श्री अरत्रबदंि बिंककम बाबू आजीवन करते र े। बंिगाल के ववभाजन
घोर् ने िाप्ताह क अखबार “कमयु ोगीिं” मंे ह दंि ी के फलस्वरूप अगंि ्रेज िरकार के ववरुद्ध वंदि ेमातरम ्
रूपातंि र ककया था। श्री अरत्रबदंि घोर् ने और दिू री की इि लोकवप्रयता िे बौखलाकर अगिं ्रेजी िरकार ने
भी ब ुत िी भार्ाओिं मंे इि गीत का अनुवाद इि पर प्रनतबधंि लगा हदया और इिका प्रयोग एविं
ककया ै। जब कफरंिगी िरकार की दमनकारी असभवादन वस्जतु कर हदया।

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देश वदंि ना

लेककन इि दमनकारी नीनत के बावजदू भी अगिं ्रेज गीत देशवासियों को राष्टधमु की दीिा देने का
िरकार भारतीय जनता का मनोबल न धगरा िकी मतिं ्र बनेगा।” अपने इि लोकवप्रय एविं प्ररे णा स्रोत
और य गीत बिंगाल की िीमाओिं को लािघं कर गीत िे बकंि कमचन्द्र जी स्वयंि ककतने आश्वस्त
िम्पूणु देश का िववु प्रय गीत बन गया। थे,इिका ज्जवलितं प्रमाण इि कथन िे सिद्ध ोता
वंदि ेमातरम ् के द्वारा लोगों में राष्र के प्रनत एक
नयी भावना एवंि उत्िा का िंिचार ुआ। सशधथल ै जब उन् ोंने अपनी पतु ्री िे जोरदार शब्दों में
िी पड़ती राष्रीय एकता में इि गीत ने ििंजीवनी क ा था -“मरे ी कु हटया गगंि ा में डु बो दी जाये तो
का कायु ककया। इिी का िुखद पररणाम था कक भी कोई ानन न ींि ोगी। यहद य एक म ान
वदिं ेमातरम ् लोगों की आत्मा की ध्वनन बन गया गीत बचा र े तो भी देश के ह्रदय में मंै जीता
तथा वर्ों िे गलु ामी की बडे ड़यों में जकड़े भारत ने र ूँागा।”
स्वततंि ्रता का मंिु देखा और भारतीय इनत ाि मंे ननःिंिदे स्वततंि ्रता प्रास्प्त के पश्चात भी जनमानि
नवप्रभात ुआ। के हदलों हदमाग पर इि गीत का प्रभाव छाया
इि लोकवप्रय, उत्िा वधकु एविं प्ररे णादायक गीत ुआ ै। वतमु ान में भी प्रत्येक भारतीय वदिं ेमातरम ्
की मुख्य ववशरे ्ता य भी र ी ै की मातभृ ूसम की गीत के प्रनत ाहदुक िम्मान एवंि श्रद्धा रखता ै।
मह मा तथा उिकी वंिदना का स्जि िुन्दरतम ढंिग इिसलए म िमस्त भारतीयों का य पुनीत
िे वणनु ककया गया ै उतना शायद ी ककिी कत्तवु ्य ै कक इि गीत को अपने ह्रदय पटल पर
अन्य देश भस्क्त के गीत मंे देखने को समलता ै। यगु ों-युगों तक अकंि कत रखें और वतमु ान पररवशे मंे
विंदेमातरम ् के म त्व पर प्रकाश डालते ुए श्री राष्रीय कत्तवु ्य के ननसमत्त अपना िवसु ्व बसलदान
अरत्रबदिं घोर् ने भववष्यवाणी की थी-“एक हदन य करने को तत्पर र ें।

30 हदिबिं र 1976 को जारी ु आ वन्दे मातरम ् डाक हटकट

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ह दिं ी के वा क

आपदा में मनतभ्रम

वदे ा पाडिं ्या
छात्रा- न्ययू ाकु यनू नवसिटु ी

मारे जीवन में नई-नई घटनाएँा घटती ी र ती ैं लेककन कभी कभार ऐिी घटना घटती ै जो मन-
मस्स्तष्क पे अपनी छाप छोड़ कर ी जाती ै। िमझो ऐिी ी एक घटना मरे े और मरे े पररवार के िाथ
घटी। बात ै तीन िाल प ले की जब म ,यानन कक मंै ,मम्मी-पापा और मरे ी प्यारी िी छोटी ब न
छु र्टहटयााँ मनाने के सलए िू ज़ पर बरमूडा गये थ।े स्कू ल में छु र्टहटयााँ ोते ी म ननकल पड़।े न परीिा का
कोई तनाव था ,न स्ज़म्मेदारी की परवा ! सिफ़ु छु र्टहटयों में जी भर के मज़े करने और जश्न मनाने की

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ह दिं ी के वा क

असभलार्ा थी। उि उमंगि मंे िू ज़ कब बरमडू ा प ुाँच वो थलै ी स्जिमंे न के वल िे डडट काडु बस्ल्क
गया ,ये पता ी न ींि चला। ककनारें पे चर्टटानों िे पािपोटु लाइिंेि और पैिे भी थे ग़ायब ो चकु ी
टकराती ल रों की आवाज़ ,ऊाँ चे प ाड़ों का थी! ‘क ाँा गई थलै ी’ धीरे-धीरे आश्चयु िे ज़्यादा ,
मनमो क दृश्य और चारों ओर की ररयाली ी एक नई घबरा ट ने म िब को घेर सलया। ऐिा
प्रतीत ो र ा था जैिे कक बचे नै ी के बादलों ने
ररयाली ने म िभी का मन मो सलया। नया उत्िा भरे िूरज की ककरणों को ननगल सलया ै।
जोश ,उत्िा और उमंिग के िाथ म ननकल तो
पड़े थे ,पर क्या पता था कक कु छ ी घिटं ों मंे मारे डरावने ख़याल हदमाग़ मंे मडिं रा र े थे। पािपोटु के
त्रबना िू ज़ मंे वापि कै िे आने दंेगे ?िे डडट काडु
ाथों के तोते उड़ जाने वाले थ।े ग़लत ाथों मंे आ गया तो ?अनजान श र कोई
जान-प चान न ींि- करंे भी तो क्या करंे ?क ाँा
ज ाज िे उतर कर िीधे टैक्िी लेकर म िमुद्र खोजंे थलै ी को ?ककिको मदद के सलए क ंे?
तट की ओर गए। िाइवर ने बताया कक वो म
को छोड़ने के बाद दिू रे ग्रा क को छोड़ने जाएगा माँा की तो बोलती ी बिदं ो चकु ी थी। मेरी और
और कफर व वापि म को लेने आएगा। म पापा की धड़कन तेज दौड़ने लगी। म को
िमुद्र तट पर घमू े-कफरे और आनंिहदत वापि भी धचनिं तत देख टैक्िी िाइवर बोला”,डोन्ट वरी ,वी
आ गए ,लेककन जब पापा टैक्िी िाइवर को पिै े ववल डू द बेस्ट टू फाईंड यौर बगै ।”
देने के सलए डडक्की िे थलै ी लेने गए तो आश्चयु
िे चौंक उठे ।

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ह दिं ी के वा क

िाइवर ने एक दो फ़ोन भी लगाए शायद थलै ी का ले गया था। जब म थलै ी लेने के सलए उि
कु छ पता चले। बीच मंे जो ग्रा क टैक्िी में बठै े पररवार के पाि गए तो िच में दोनों थसै लयाँा
थे उनको भी फ़ोन लगाया ,पर कोई जवाब न ीिं। हदखने मंे एक दम एक ी थीिं ,और में ववश्वाि
जब मने िोचने की चषे ्टा की तो इि घटना के
सिफ़ु दो मतलब ननकाल िके -एक वो दिू रे ो गया कक ि ी मंे चोरी न ीिं बस्ल्क गलती ुई
ग्रा क जो मारे बाद टैक्िी में बठै े उन् ोंने मारी थी।
थलै ी चरु ा ली ,या दिू रा स्वयंि टैक्िी िाइवर ने चरु ा
ली जो सिफ़ु ि ानभु ूनत हदखाने का असभनय कर म िब की प्रिन्नता की कोई िीमा न ींि र ी।
र ा था। मम्मी और पापा पूरे मन िे िाइवर को धन्यवाद
करने लगे। मम्मी पूरी श्रद्धा िे बोली “ े
ज़ाह र था कक धयै ु रखने और मानसिक ितंि ुलन भगवान! आपका लाख-लाख धन्यवाद!”
बनाए रखने की मारी र कोसशश नाकाम ो र ी मेरी ब न ने अपने आिाँ ू पोंछ कर परू े उत्िा के
थी। माँा ाथ जोड़े आखाँ बिदं करके पूरी उम्मीद के िाथ क ा”,माँा अब म घर जा पाएिगं े माँ!ा ” िबके
िाथ भगवान का नाम ले र ी थी और मेरी छोटी चे रे पर कफर िे मसु ्कु रा ट छलकने लगी।
ब न के आािँ ू रुकने का नाम न ीिं ले र े थ।े
मरे ी भी धड़कन तेज दौड़ने लगी थी। टैक्िी इि ककस्िे ने म को िोचने पर मजबूर कर
िाइवर पाँचा जग ों पर फ़ोन कर चकु ा था ,लेककन हदया। मने क्या िोच सलया था और क्या
कोई जानकारी प्राप्त न ींि ो र ी थी। थलै ी का ननकला! म तो िाइवर पर श़क करने बठै गए थे
पता एक र स्य बनकर र गया था और प्रतीत जबकक िाइवर की वज िे ी बड़ा नकु ़िान टल
गया। मने इि घटना को चोरी मानने में ज़रा
ो र ा था कक िाइवर ने भी उम्मीद छोड़ दी। भी देरी न ींि की बस्ल्क एक बार भी न ींि िोचा
कक ये ककिी की गलती भी ो िकती थी। प्रतीत
मने बि मान ी सलया था कक अब थलै ी न ीिं
समलने वाली ,कक तभी टैक्िी िाइवर के फ़ोन की ोता ै कक अक्िर मारे नकारात्मक िोच की
घटंि ी बजी। गाड़ी में बठै े िभी लोग एक नई ववृ त्त मारे िकारात्मक िोच पर ववजय पा लेती
उम्मीद के िाथ चौंक उठे । कु छ बातचीत के बाद
टैक्िी िाइवर मिे बोला”,डू नॉट वरी! माइ ै। लेककन इि कक़स्िे िे िीखा कक अनधगनत
कु लीग ैज़ फाउंि ड यौर बगै ।” बुराइयाँा ोने के बावजूद भलाई अभी भी स्ज़दिं ा ै।

िाइवर ने िमझाया कक थलै ी चोरी न ीिं ुई थी , मााँ िे मशे ा िुना करती थी कक जो लोग िदैव
बस्ल्क दिू रा पररवार जो मारे बाद टैक्िी में बठै ा ि ी मागु अपनाते ै और भगवान मंे अटल
था वो अपनी थलै ी िमझ कर मारी थलै ी उठा ववश्वाि रखते ैं उनके िाथ कभी अननष्ट न ीिं

ोता।उि हदन माँा की बात िोल आने िच

प्रमाखणत ुई। ************

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मूिंग दाल लवा

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व्यजिं न

सामग्री

१. 200 ग्राम पीली मगिूं दाल

२. 200 ग्राम देिी घी

३. 200 ग्राम मावा

४.एक टेबल स्पनू िजू ींि
५. एक टेबल स्पनू बिे न
६. एक कप पानी

७. एक कप चीनी

८. के िर ऑप्शनल ैं

९. आधा टेबलस्पनू इलाइची पाउडर
९०. काटा ुआ वपिता
११. कटा ुआ बादाम

१२. काटा ुआ काजू पारुल अग्रवाल,

हलवा बनाने की ववचध उप प्रधानाचायाु,
सिगिं ापरु
१. मंगूि दाल को चार घटंि े के सलए सभगो लें।

२. भीगी ुई दाल को पीि लंे|
३. नास्न्स्टक कढ़ाई मंे घी गमु करंे|

४. इिमें िजू ी और बेिन डालंे, जब बेिन िाउन ो जाए..... तब उिमें वपिी ुई दाल डल दंे|
५. आग कम करदें और दाल को भरू ा ोने तक भून लंे|
६. एक बतनु मंे पानी लंे और उिमंे चीनी डालदंे, िाथ ी उिमंे के िर और इलायची पाउडर भी डाल दें|

७. चीनी घुलने तक इि चाशनी को पका लंे|
८. भुनी ुई दाल मंे मावा समलाएा|ँ
९. क़रीब ५ समननट तक इिे भूनें|

१०. अब इिमें चािनी डालकर धीरे धीरे पकाएाँ, जब तक दाल परू ी तर चाशनी को पीना ले।
११. लवे को कटे ुए काजू वपस्ता बादाम िे िजाएंि और गरमा-गरम परोिंे|

१२. लज़ीज़ मगिंू दाल लवा तैयार ै|

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क ानी

सईु वाली दकु ान ननतेश पाटीदार
भानपरु ा, स्जला-मन्दिौर (मध्यप्रदेश)

रवववार का हदन उिे त्रबल्कु ल पिदिं न ीिं था। दिू रे आवश्यकता म िूि न ींि ोती थी, शायद इच्छा
बच्चों की तर ईद-दीवाली की छु र्टहटयों में भी व न ींि ोती। वपछले िाल स्कू ल के एक नाटक मंे
हदलचस्पी न ींि लेता। उल्टा ऊपरवाले को र उि उिने राजकु मार िा ब का ककरदार ननभाया था,
हदन कोिता, जब व ककिी भी वज िे स्कू ल तब िे उिका वास्तववक नाम शायद ी ककिी को
न ीिं जा पाता। त्यौ ारों में उिकी उम्र के बच्चे याद र ा। उिके दोस्त उिे अब राजकु मार ी क ा
गबु ्बारे लेकर घमू ा करते और पतंगि उड़ाते, तब व करते थे। अव्याव ाररक ककन्तु ऐिा नाम जो
इिंदौर िे तीि ककलोमीटर दरू देवाि के बाज़ार में उिके गंभि ीर मुख पर िदैव मसु ्कान ला देता -
घडड़यााँ और पतिगं े बेचने जाया करता था। य बात राजकु मार!
अलग थी कक वक़्त उिके िाथ था न ींि और
उिकी उड़ान कई डोरों िे बधंि ी ुई थी। िफ़र के अब्बा चा ते थे कक व डडग्रीयों के चक्कर में ना
दौरान कई बार उिकी जेब में शा रुख की फ़ोटो पड़।े उनकी नज़र में पढ़े-सलखे बेरोज़गार, ख़ािकर
के अलावा कु छ न ींि बचता। ालाकिं क उिे दो बिें इंिजीननयरों की कोई ववशरे ् इज़्जत न ींि थी कफर
बदलनी पड़ती ककन्तु बि की छत पर लोगों के भी व चा ते थे कक राजकु मार स्कू ली पढ़ाई पूरी
सलए तर -तर के असभनय करता। इि तर करके उनके कारोबार मंे ाथ बटाए।ाँ 'तुम् ारे 12वींि
िफ़र कब ख़त्म ो जाता, ना उिे पता चलता, ना के ररज़ल्ट कब आ र े ैं? मााँ ने पूछा और उिके
िाथ-िाथ उिके दोनों छोटे भाइयों को भी खाना
ी उिके आिपाि वालों को। उिकी चौद िाल परोिा।
की उम्र भले ी कच्ची थी, ककन्तु ालातों ने
उिकी बदु ्धध को अिमय ी पररपक्व कर हदया
था।
स्कू ल के बाद अपने अब्बा की दकु ान पर बठै ता
था, अक्िर न ीिं बस्ल्क रोज़ और व ीिं घ्टों तक
पढ़ाई भी करता। कई बार रात को दकु ान में ी
िो जाता क्योंकक घर जाने की उिे कोई ववशरे ्

अक्तबू र-हदिबिं र २०१८ ◦ सिगंि ापरु िंगि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 31

क ानी

अब्बा पर इि बात का अिर न ींि ुआ। उनकी खखिक सलए। अब्बू ने खाना िमाप्त ककया और
त्रबरयानी खाने की गनत अभी भी विै ी ी थी -
अबाध्य। उिने प ले उनकी तरफ देखा कफर माँा तौसलये िे माँु पोंछते ुए बोले, 'बेटा! जब स्ज़न्दगी
की ओर देखकर बोला - 'कल दोप र बाद।' के रिंगमचिं पर उतरोगे तब अपने िारे डायलॉग
'क्या िोचा ै कफर स्कू ल के बाद? मेरी दकु ान पर
बठै ोगे या अपनी कोई दकु ान शरु ू करोगे?' अब्बा ने भलू जाओगे और कफर ककस्मत जैिा ननदेशन
कड़क स्वर में पूछा। उन् ें परू ी आशा थी कक उत्तर
इन दोनों मंे िे एक ोगा, कभी-कभी के वल प्रश्न करेगी तमु ् ें मजबूरन वैिा ी असभनय करना

ी न ीिं बस्ल्क उत्तर भी ‘सिलेबि’ िे बा र के आ पड़गे ा।' य क ते ुए व बा र ननकल गए।
जाते ंै। राजकु मार का खाना माँु तक आत-े आते र गया।
उिने दबी आवाज़ में क ा, 'मैं एस्क्टिंग करना
चा ता ूँा।' प ली बार माँा के ाथ की बनी उिकी पिदिं ीदा
इि बार अब्बा का खाना अचानक रुका और बार
गणु ा दि के कमरे मंे एक िन्नाटा पिर गया। त्रबरयानी थाली मंे जूठी छू ट गई। ◆
अपने गुस्िे पर बड़ी मुस्श्कल िे क़ाबू करते ुए ◆◆
बोले, 'अपनी ना ि ी तो मरे ी ख़रै कर लेते और
मरे ी भी ना ि ी तो एक बार छोटे भाइयों की ओर रवववार और िाथ ी 12वीिं के ररजल्ट का हदन।
मशे ा की तर दोप र 12 बजे के आिपाि अब्बा
ी देख लेते।'
राजकु मार ने िमझदारी की नमु ाइश करना चा ी खाना खाने चले गए। िड़कों पर िन्नाटा था। िारे
और बोला, 'अब्बा! मारे ालातों िे मंै भली-भााँनत बच्चे 'शस्क्तमान' देखने के सलए पंदि ्र समनट प ले
वाककफ़ ूाँ। मंै प ले इंिजीननयररगिं पूरी करके और िे ी टीवी के िामने दबु ककर बठै े र ते थ।े
िब स्ज़म्मेदाररयााँ ििंभालने के बाद एस्क्टंिग मंे राजकु मार इि िमय घर न ींि जा पाता क्योंकक
जाना चा ता ूँा। लेककन उिकी तयै ारी अभी िे उिे दकु ान िभंि ालनी पड़ती थी। कफर अगले हदन
करना ज़रूरी ै।' स्कू ल मंे जब बच्चे ‘द ग्रेट शतै ान िाइिंहटस्ट’
मााँ ने कु छ ना ी बोलना उधचत िमझा। दोनों डॉक्टर जकै ॉल या गंिगाधर की नकल करते और
छोटे भाई मौके की नज़ाकत को िमझकर चपु चाप क ाननयााँ िनु ाते तो व चपु चाप िनु ता र ता।
गंिगाधर-शस्क्तमान की तर एक ी शसि की
अलग-अलग क ाननयाँा थी उिकी स्ज़न्दगी। एक
कलाकार और कई ककरदार।

अक्तबू र-हदिंिबर २०१८ ◦ सिगंि ापुर ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 32

क ानी

अब्बा ने उिे आज दोप र बाद ी दकु ान िे जाने में सलए िो गया, सिवाय राजकु मार के । उिकी
हदया। व दौड़ता ुआ स्कू ल प ुाँचा, ज ााँ र कोई पूरी रात करवटें बदलकर गुज़री।
पछू र ा था, 'अरे भीया! ये राजकु मार कौन ै?' िुब खटीक भाई की चाय की दकु ान पर अब्बू को
एक पल के सलए व घबरा गया। उिे लगा कक मो ल्ले वालों ने ब ुत खरी-खोटी िुनाई। िब
पक्का व फै ल ो गया ै। उिकी ककस्मत ने उिे उनपर दबाव डालने लगे कक व राजकु मार का
कभी कु छ अच्छा ोने की उम्मीद करना ी भूला प्रवशे इंिजीननयररगंि कॉलेज मंे करवाए। लेककन
हदया था। वप्रसंि िपल के कमरे में व चपु चाप बैठा अच्छे नम्बर अच्छे कॉलेज में प्रवशे की एकमात्र
र ा। िोच र ा था कक अब्बा िाथ ोते तो पक्का ग्यारंिटी न ींि ोत,े बस्ल्क पैिा भी उतना ी अच्छा
य ीिं वपटाई ो जाती। -ख़ािा लगता ै। राजकु मार के नबंि र उम्मीद िे
'राजकु मार! आप अभी जाओ और घर िे समठाई ज़्यादा थे और अब्बू के पाि पैिे ज़रूरत िे कम।
लेकर आओ।' शाम की पाँाच बजे िे प ले पिै ों का बंिदोबस्त
जब वप्रसंि िपल ने य क ा तो उिके च रे पर एक करना था, स्जिकी राजकु मार को त्रबल्कु ल भी
चमक आ गई। ककन्तु य फोटो क्यों? व िोच उम्मीद न ींि थी। व हदनभर दकु ान पर बैठा र ा।
शायद य उिका मौन ववरोध था, लेककन अपने
ी र ा था कक वप्रसंि िपल ने बोला, 'फोटो कल के
अख़बार के सलए। स्जले मंे प ला स्थान आया ै वपता िे न ींि बस्ल्क अपनी चालबाज़ ककस्मत िे।
तमु ् ारा। अभी इिंटरव्यू के सलए प्रेि वाले आते
र बार कड़ी मे नत उिकी ख़राब कक़स्मत के
ोंगे, तब तक घर जाकर आ जाओ।'
आगे घुटने टेक देती थी, कफर ककिी मखू ु
तीन िाल िे अपनी गलु ्लक मंे उिने कु छ पैिे दाशनु नक की क ी ुई बात पर भी व कभी-कभी
जोड़ रखे थे, व आज तोड़ दी गई और परू े आखाँ े मिदंू कर यकीन कर लेता, स्जिने क ा था कक
मो ल्ले में समठाई बाटाँ ी गई। वपछली तीन पीहढ़यों िफलता के सलए 99% मे नत के िाथ-िाथ 1%
में इतने नम्बर पररवार मंे तो क्या पूरे मो ल्ले में
कोई ‘माई का लाल’ न ींि लाया था। दरू दशनु के ककस्मत की भी आवश्यकता ोती ै। दरअिल
मौिम ववभाग वालों को भी ननकट भववष्य मंे य
ररकॉडु टू टने की कोई िभिं ावना हदखाई न ींि देती िंिकट के िमय िारे तकु -ववतकु ब ाने बनाकर
थी। बावजदू इिके परू ा मो ल्ला एक िवाल ज़े न
अधंि ववश्वाि की शरण में चले जाते ंै।

चार बजे अब्बा का कॉल आया,

'एक रस्ट िे बात की ै बेटा! पैिों का इिंतज़ाम ो

गया ै, जल्दी िे अह ल्यादेवी इिंजीननयररगिं कॉलेज

प ुँाचो।'

अक्तबू र-हदििंबर २०१८ ◦ सिगंि ापुर ििंगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 33

क ानी

उिकी खशु ी का हठकाना न ीिं र ा। व जैि-े तैिे था या शायद भूल गया था - उिकी वो फोटो जब
मानिनू की प ली बाररश में भीगता ुआ व ाँा उिने राजकु मार िा ब की एस्क्टंिग की थी स्कू ल
प ुाँचा। चप्पल प नने के कारण उिकी पंेट कमर में।
तक कीचड़ के छीटों मंे िनी ुई थी। अब्बू ने हदल्ली का हदल क े जाने वाले कनॉट-प्लेि के
िभी औपचाररकताएँा पूरी कर ली थी, उिे बि एक रेस्तरााँ में व अपने दोस्तों के िाथ पाटी मंे
अपने स्तािर भर करने थे। उिने ककये भी मग्न था। कल िुब उिकी घर वापिी थी -
ककिी िा बज़ादे की तर । इिंदौर।
राजकु मार ने कॉलेज िे बा र ननकलते ुए क ा, 'तुम् ारी बाकी तनसवा आयी या न ींि राजकु मार?'
' में रस्ट का शकु िया अदा करना चाह ए।' कोहटयाजी ने शराब का ग्लाि देते ुए पूछा।
अब्बू ने बनावटी ँािी के िाथ क ा, ' ााँ ज़रूर 'जी आ गई िर। शकु िया! लेककन मैं य न ीिं
करना!' पीता,' उिने मसु ्कु राते ुए क ा।
'अजी! नई कंि पनी मंे तनसवा आधी िे बि कु छ
◆◆ कु छ ी ज़्यादा ै कफर भी चे रे पर सशक़न का
नाम-ओ-ननशाँा न ींि। मानना पड़गे ा भाई! जो म
बात आई और गई ो गई। बार िाल बीत गए।
छोटे भाइयों को भी जिै े-तैिे करके उिने नौकरी ोते तो ाथ-पाँवा फंे कने लगते,' नतवारीजी ने नशे
लायक बना हदया। इन िालों में उिे घर जाने का मंे बड़ा ी तीखा व्यिगं ्य ककया। उनकी इि बात
मौका मसु ्श्कल िे पिंद्र बार समला ोगा। फोन पर का जवाब देना भी उि िमय मखू तु ा ोती,
क्योंकक व िज्जजन वपछले आधे घ्टे िे मात्र
ी अम्मी िे बातें ो जाया करती और बच्चों िे ‘तरल पेय’ ी ले र े थे। ठोि खाने की तरफ़ तो
मस्ती। वक़्त के िाथ अब्बू के चे रे पर झरु रुयाँा उन् ोंने देखा तक न ीिं था।
और उनके बीच की दरू रयााँ बढ़ती गई। अब्बू ने
अभी तक खुद का मोबाइल न ींि सलया था। मुल्ला उिके एक परम समत्र ने पूछा, 'तमु इतनी िरलता
की दौड़ मस्स्ज़द तक और अब्बा की दौड़ दकु ान िे स्ज़िंदगी को स्वीकार कै िे कर लेते ो? व भी
तक। कफर स्जििे उन् ें बात करनी ोती, व ी इतने िालों िे और धतू ु ककस्मत के िाथ।'
'आउट ऑफ रीच' था तो ज़्यादा 'नेटवकु ' रखने का राजकु मार के मुख पर एक मुस्कु रा ट आ गई,
फायदा भी क्या? दकु ान का नक्शा धीरे-धीरे बदल
गया था लेककन उनकी गुल्लक मंे एक चीज़ आज
भी विै ी ी रखी थी, जो राजकु मार छोड़कर गया

अक्तूबर-हदिंबि र २०१८ ◦ सिगंि ापुर िंिगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 34

क ानी

ककन्तु उिमें ददु त्रबल्कु ल न ीिं था। वक़्त के िाथ- ै समत्र!'
िाथ उिके अतंि द्वु न्द ने िखु और दःु ख का अतिं र य बात राजकु मार के हदल को ग रे तक भेद
िमाप्त कर हदया था। य दोस्त उिकी परू ी गई। बाकी लोगों को डीजे के शोर मंे िनु ाई न ीिं
स्ज़न्दगी िे ना ि ी लेककन उि ह स्िे िे पररधचत हदया, शायद बात उनके मतलब की भी न ीिं थी।
था स्जिने राजकु मार को बरु ी ककस्मत और अच्छे बात ज ाँा प ुाँचना चाह ए थी, व ााँ यथावत पाँ ुच
मौकों के बीच ताउम्र चलने वाली जगंि का कु शल गई। ज़रूरी न ींि कक स्जिे भीड़ िनु े व ी अच्छी
योद्धा बनाया था। बात ो बस्ल्क ि ी िमय पर ि ी जग प ुाँचने
'स्ज़न्दगी मंे जो घहटत ो गया ो, उिको मौन वाली बात ी अिरदार ोती ै। उिने मॉकटेल का
स्वीकार कर लेना ी उधचत ै। इििे आप िखु ी एक और घटूँा सलया और अपनी बात पूरी करते
ुए राजकु मार िे क ा, 'जीवन जब तुम् ारी ओर
ो ना ो, ककन्तु दःु खी कभी न ींि ोंगे,' राजकु मार बढ़े, तब खलु ी बा ों िे स्वागत करते ुए उिे उिे
ने जब य क ा, तब अचानक डीजे बजना बदंि ो पणू तु या स्वीकार करो। िबकु छ घहटत ोने का
गया था। िभी को उिकी बात िुनाई दी। ॉल मंे इंितज़ार करना ककस्मत को जीतने का मौका देने
िन्नाटा था और आिपाि के लोगों ने भी मड़ु कर जैिा ै।'
उिकी ओर देखा। नतवारीजी स्जन् ंे अब खदु का राजकु मार थोड़ी देर बठै ा र ा। अपनी लाल आखँा े
भी ोश न ीिं था, बोल उठे -'वा ! वा ! भाई सलए व बा र ननकल आया। दरवाजे पर मैनजे र
राजकु मार! मज़ा आ गया। क्या बात बोली ै यार! ने उिे रोका भी न ींि क्योंकक ऐिी लाल आँाखें तो
आज िे मंै तेरा फै न ो गया दोस्त।' ालाँाकक व उिे रोज़ हदखाई देती थी - शरात्रबयों की। उिका
हदन में तीन बार राजकु मार िे य ी बात क ते दोस्त उिके पीछे -पीछे त्रबल्कु ल न ींि गया, क्योंकक
थे। िखणक ि ानभु ूनत एक लबिं ी लड़ाई पर ननकले
नशा एक ररिायकल प्रकिया ै। प्रत्येक बार नशे योद्धा को कमज़ोर करती ै। उिने मॉकटेल ख़त्म
मंे व्यस्क्त को र परु ानी चीज़ नई-नई लगती ै। ककया और अपने सलए आइििीम का ऑडरु कर
कई बार नतवारीजी को अपनी पत्नी में कॉलजे हदया।
वाली प्रसे मका हदखाई दे जाती। ालांिकक कफर उनका
नशा उतरने में अधधक िमय न ींि लगता था। ◆ ◆◆
राजकु मार के दोस्त ने मॉकटेल का एक घँूटा सलया
और बोला, 'मौन स्वीकृ नत न ीिं, बस्ल्क िम्पूणु
स्वीकृ नत ी जीवन में धचरस्थायी िुख का आधार

अक्तूबर-हदिबंि र २०१८ ◦ सिगंि ापुर ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 35

क ानी

जब भी व इिंदौर जाता तो िबिे प ले घर में व ी िुई वाली दकु ान थी स्जिपर राजकु मार
प ुाँचता और घर िे बा र ननकलने का उिका मन बचपन मंे बठै ा करता था। रात को उिके हदल्ली
भी न ीिं करता था। अपनी माँा और बीवी-बच्चों में वाले दोस्त का एक स्माइल के िाथ कमंेट आया,
'स्ज़िदं गी को पूरी तर स्वीकार करना अपने पापा
ी लगा र ता। लेककन इि बार व घर न ींि गया, को गले लगाने जिै ा ी ै। ैं न?'
बस्ल्क ोल्कर एयरपोटु िे िीधा परु ाने बाज़ार राजकु मार ने भी उिे मुस्कु राकर जवाब हदया, ' ाँा!
अब्बा की दकु ान पर प ुँाचा। एक ाथ कमर पर एकदम विै ा ी। शकु िया दोस्त!'
रखकर और दिू रे िे दीवार का ि ारा लेकर व दोस्त ने थोड़ी देर बाद उिे मैिेज ककया और पूछा
बमुस्श्क़ल खड़े ुए। गले मंे लटके मोटे चश्मंे को - 'तुम् ंे व रस्ट वाला समला या न ीं?ि शुकिया
जब उन् ोंने अपनी आँखा ों पर चढ़ाया, तब क ींि अदा भी कर पाए कभी उिका?'
जाकर उन् ंे राजकु मार हदखाई हदया। दोनों बाप-बटे े राजकु मार ने उत्तर हदया, ' ाँा ककया! लेककन ब ुत
जड़वत खड़े र े। स्ज़न्दगी तीि िाल के िारे देर ि।े पंिद्र िाल प ले कॉलेज में ी कर देना
ररटेक मानो एक ी शॉट मंे ले र ी थी। राजकु मार चाह ए था।'
के माँु िे सिफ़ु एक लफ्ज़ ननकला, 'अब्बू! 'कौन था वो र नमु ा?'
शकु िया!!' 'अब्ब!ू !'
य क ते ुए उिने अब्बा को बा ों में भर सलया। दोनों तरफ कु छ देर ख़ामोशी र ी। राजकु मार ने
दोनों की आाखँ ों िे िारे धगले-सशक़वे ब ते र े और
परू ा बाज़ार मानो इि िगंि म मंे डु बकी लगा र ा ी आगे बात परू ी की और क ा, 'अब्बू उि हदन
था। खटीक भाई अपनी दकु ान पर चाय उबलती खदु की दो छोटी दकु ानंे बचे आए थ।े बि एक
छोड़ आए लेककन दोनों को इि तर देखकर दकु ान बचाई स्जिमंे मंै बैठा करता था।'
उन् ोंने ऊपरवाले का धन्यवाद ककया। मदन 'कौन िी?'
िब्जीवाले ने तराजू मंे ी तरकारी छोड़ दी और 'िुई वाली दकु ान।'
अपने ग्रा क को बीच में लटकाकर दोनों बाप-बेटों
को समलने प ुाँच गया। मानो उिका कोई बरिों
परु ाना सवाब परू ा ो र ा था।
राजकु मार ने अब्बा के िाथ प ली िले ्फ़ी लेकर
फे िबकु पर फोटो शये र ककया, स्जिके बकै ग्राउंि ड

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काव्य-रि

गीत में जो ढल रहा है

नघि गई जो, वपट गई जो, बात व गाता न ींि ूाँ राके श खडंि ले वाल
गा चकु े स्जिको जारों लोग, दो राता न ीिं ूाँ अमरीका
भाव ूँा मंै व अनठू ा, शब्द की उँा गली पकड़ कर
चल हदया जो पंथि में तो लौट कर आता न ीिं ूँा व्यथु का िबंि ंधि कोई आज तक जोड़ा न ींि ै।
गीत मंे जो ढल र ा ै, मंै स्वयिं ी ूाँ अनावॄत जन्म लेती ैं जारों िािनं तयाँा मेरे िरु ों में
कोई कृ त्रत्रम भाव मनंै े आज तक ओढ़ा न ींि ै मैं ल ू बन कर उबलता ूाँ यगु ों के बााकँ ु रों में
मैं बदलता ूाँ हदशा के बोध अपनी लेखनी िे
गीत का िजकु मुझे तमु ने कवव अक्िर क ा ै मैं अटल ूँा शलै बनकर, ूाँ प्रवाह त ननझरु ों में
और ककतनी बार िंिबोधन मरे ा शायर र ा ै मंै ननरासशत स्वप्न को ूँा एक व ििदं ेश अनपु म
मैं उच्छॄ िं खल आाधँ धयों की डोर थामे घमू ता ूँा आि की स्जिने कलाई को कभी छोड़ा न ींि ै।
ककंि तु मरे ा िाथ उद्गम िे िदा जुड़ कर र ा ै
मैं ववचरता ूँा परे आकाशगिंगा के तटों के (ककताब वरै ाग से अनुराग तक)
पर धरा की डोर को मनै े अभी तोड़ा न ींि ै

मैं उफनती िागरों की ल र को थामे ककनारा
मंै िाँवरती भोर की आशा सलए अनंि तम सितारा
मैं िलु गते नैन की वीराननयों का स्वप्न कोमल
लड़खड़ाते ननश्चयों का एक मंै के वल ि ारा
मंै व ी ननणयु पगों को िौंपता जो गनत ननरंितर
और स्जिने मखु कभी बाधाओंि िे मोड़ा न ीिं ै।

जो अधँा ेरे की गफु ा में िूयु को बोता, व ी मैं
वि पर इनत ाि के करता ननरिंतर जो ि ी, मंै
उग र ा जो काल के अववराम पथ पर पषु ्प मैं ूँा
शब्द ने र बार स्वर बन कर कथा स्जिकी क ी, मंै
मैं सितारा बन ननशा के िाथ र पग पर चला ूाँ

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ह दंि ी के वा क

राष्ट्र के तनमाणक में ववद्याचथयक ों की भशू मका

ककिी भी राष्र के ननमाणु मंे ववद्याधथयु ों की अ म ् भसू मका ोती वेदान्त भारद्वाज
ै। आज के ववद्याधथयु ों में िे ी कल कोई सशिक, धचककत्िक,
छात्र- ए.िी.एि (आई),
असभयंति ा, राजनीनतज्ञ, वकील, उद्योगपनत या वजै ्ञाननक बनगे ा। वे
कल के भववष्य का ननमाुण करेंगे। ववद्याथी जीवन मनुष्य के सिगिं ापुर
जीवन का िबिे म त्वपूणु िमय ोता ै। अतः ववद्याधथयु ों का
ये कतवु ्य ै कक वे भरपरू उत्िा व ऊजाु शस्क्त िे स्जतना शीध्र अनशु ािन और एकाग्रता के म त्व को
िंभि व ो, िूचना एवंि ज्ञान प्राप्त करंे। ज्ञान अजनु के िाथ िाथ खोते जा र े ंै। आजकल बच्चों को
चररत्र ननमाुण व उत्तम स्वास्थ्य भी ववद्याथी जीवन का एक छोटी ी आयु िे इलेक्रॉननक उपकरण
अननवायु अगंि ोता ै इिसलए पढ़ाई, अनशु ािन और खले कू द के जिै े कक स्वचसलत दरू भार् और
बीच ि ी ितंि लु न बनाना ब ुत म त्वपूणु ै। इि अवस्था मंे ी किं प्यटू र इत्याहद उपलब्ध ो जाते ंै।
देखते ी देखते ववद्याधथयु ों को इन
म िियं म, लगन, पररश्रम, आत्मननभरु ता, नम्रता आहद गणु ों का उपकरणों की लत लग जाती ै। ये
ववकाि कर िकते ैं। िरलता, िादगी और स्जज्ञािु ोना एक उपकरण उपयोगी तो ैं पर इनके
िफल ववद्याथी के अननवायु गुण ंै। इन गुणों िे यकु ्त अत्यधधक उपयोग िे ोने वाली
ववद्याधथयु ों का भववष्य उज्जज्जवल ोता ै और वे राष्र ननमाुण में
अपना म त्वपूणु योगदान देते ंै। प्राचीन काल में ववद्याथी ाननयााँ कई गुना ज्जयादा ैं। प्रत्येक
गुरुकु ल में र कर सशिा ग्र ण करते थे। वतमु ान ववद्याथी जीवन सशिक और असभभावक का कतवु ्य ै
प्राचीन ववद्याथी जीवन िे काफी सभन्न ै। आज के ववद्याथी कक वे अपने बच्चों को िफल
अनुकू ल जीवन और िखु -िुववधा के अभ्यस्त ंै और वे पररश्रम, ववद्याथी जीवन जीने के सलये
मागदु शनु दंे स्जििे कक वे एक िफल
नागररक बनंे और राष्र ननमाुण में
अपना योगदान दे िकंे ।

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व्रत व त्यो ार

जनवरी से मािक तक के व्रत/त्योहार व शसगं ापरु समय

जनवरी
१ जनवरी अखडिं रामायण पाठ की पणू ाु ुनत
१५ जनवरी २०१९ मकर ििंिांनि त
२४ जनवरी २०१९ िंिकष्ट चौथ
फरवरी
१० फरवरी २०१९ वििंत पंिचमी

मािक
४ माचु २०१९ म ासशवरात्रत्र (श्री लक्ष्मी नारायण मंिहदर सिगंि ापरु )
२० माचु २०१९ ोसलका द न (श्री लक्ष्मी नारायण मंिहदर सिगंि ापुर)
२१ २०१९ माचु ोली (सिगिं ापुर में ववसभन्न स्थानों पर)

नोट: बदलाव िंभि व ै|

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िे त

औषधीय गणु ों से भरपरू करेला

करेले का नाम िनु ते ी मँाु मंे कड़वपे न का ख्याल आ जाता पनू म चघु
ै| य खाने में चा े कड़वा ो, लेककन इिके गुण बे द मीठे ह दिं ी अध्यावपका,
ैं| इिमें मौजदू और्धीय तत्व मारे शरीर को कई परेशाननयों
और रोगों िे बचाते ैं| करेले का जन्म स्थान दनु नया के उष्ण सिगिं ापरु
िते ्र अिीका तथा चीन माने जाते ंै| इिका वानस्पनतक नाम
'सममोडडकु ा करस्न्शया' ै| करेले मंे प्रचरु मात्रा मंे ववटासमन A,
B और C पाए जाते ैं। इिके अलावा कै रोटीन, बीटाकै रोटीन,
लूटीन, आइरन, स्जकंि , पोटैसशयम, मगै ्नीसशयम और मगै नीज
जिै े फ्लावोन्वाइड भी पाए जाते ैं| य समनरल्ि, ववटसमन्ि,
फाइबर और ऐिटं ीऑस्क्िडेंर्टि िे भी भरपरू ै| आइए एक नज़र
डालते ंै करेले के फायदों पर....

1) मधमु े (डायबीटीज) के मरीजों के सलए करेला रामबाण
और्धध ै क्योंकक इिमंे कै रेहटन नामक रिायन ोता ै स्जिे
लेने िे खनू मंे शगु र का स्तर ननयिंत्रत्रत र ता ै। करेले में
मौजदू ओसलओननक एसिड ग्लकू ोिाइड, शगु र को खनू मंे

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ना घुलने देने की िमता रखता ै| य शुगर टॉकसिििं और अनावश्यक विा कम ोती ै
लेवल को िंितसु लत करता ै| और मोटापा दरू ोता ै| करेले मंे
एिटं ीऑक्िीडंेट पाए जाते ंै| य शरीर के
2) करेले मंे मौजदू खननज और ववटासमन शरीर मेटाबोसलज्जम और पाचन तिंत्र को बे तर
मंे रोग प्रनतरोधक िमता को इतना बढ़ाते ैं बनाता ै, स्जििे वजन कम करने में मदद
स्जििे कैं िर जिै ी बीमारी का मकु ाबला भी समलती ै|
ककया जा िकता ै|
5) करेले के पत्तों को पत्थर पर नघिकर चटनी
3) करेले में ददु ननवारक गणु भी ोते ंै| सिरददु जिै ा बनाकर लेप लगाने िे त्वचा के रोग
काफ़ी िमय िे लगातार ोने लगे तो ऐिे ठीक ो जाते ैं| नमी अधधक तथा विा कम
मंे करेला काफ़ी फायदेमंिद िात्रबत ोता ै| मात्रा मंे ोने के कारण य गसमयु ों के सलए
इिके सलए करेले की पवत्तयों को पीि लें और ब ुत अच्छा ै| इिके प्रयोग िे त्वचा िाफ़
कफर इिे माथे पर लगाने िे आराम समलता| ोती ै। इिके इस्तमे ाल िे ककिी प्रकार के
फोड़-े फिुं िी न ींि ोते|
4) करेले का रि और एक नीबंि ू का रि समलाकर
िबु िेवन करने िे शरीर मंे उत्पन्न 6) गहठया या जोड़ों के ददु में करेले की िब्ज़ी
खाने और ददु वाली जग पर करेले की पत्तों
के रि िे मासलश करने िे आराम समलता ै|
करेले तथा नतल के तेल को बराबर मात्रा मंे
लेकर प्रयोग करने िे वात रोगी को आराम
समलता ै | करेला खाने िे घटु नों के ददु िे
भी रा त समलती ै|

7) करेले में ववटासमन िी भी भरपूर मात्रा में
पाया जाता ै| स्जि कारण इिका इस्तेमाल
शरीर में मोइस्चर बनाये रखता ै|

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8) कफ की सशकायत ोने पर करेले का िेवन करना करेला और्धीय गुणों का भडिं ार ै| भूख को
चाह ए| करेले में फास्फोरि ोता ै स्जिके कारण बढ़ाकर करेला मारी पाचन शस्क्त को
कफ की सशकायत दरू ोती ै| िुधारता ै| करेला पचने में ल्का ोता

9) करेले में फाइबर के गुण पाए जाते ंै, जो पाचन तंति ्र ै| बशे क य खाने मंे कड़वा ो, लेककन
को मजबूत बनाता ंै| िाथ ी य अपच और कब्ज़ इिके गुण बे द मीठे ंै| य एक ऐिी
की सशकायत को दरू करता ै| इििे एसिडडटी, छाती िब्ज़ी ै, जो काफ़ी िारी बीमाररयों को दरू
मंे जलन और खर्टटी डकारों की सशकायत भी दरू ो रखने मंे मदद करती ै| इिका िवे न ककिी
जाती ै| भी रूप में ककया जा िकता ै| करेले की
अनेक रेसिपी इिंटरनेट पर उपलब्ध ैं|
10) एक कप पानी मंे दो चम्मच करेले का रि, तुलिी मधमु े के रोधगयों के सलए तो करेला
के पत्तों का रि और श द समलाकर रात मंे िोते ‘अमतृ ’ तुल्य ै| जब करेले में इतने गुण ैं
िमय पीने िे अस्थमा, िोंकाइहटि जैिे रोगों में तो क्यों ना उिे अपने ननयसमत भोजन में
आराम समलता ै| शासमल ककया जाए!

11) पथरी रोधगयों को करेले का रि पीने और करेले *****
की िब्ज़ी खाने िे आराम समलता ै और पथरी
गलकर बा र ननकल जाती ै|

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