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Published by sangam.singapore, 2018-05-02 10:08:00

Singapore Sangam Jan-March 2018

Singapore Sangam Jan-March 2018

ISSN: 25917773

त्रमै ासिक ह दंि ी पत्रत्रका

जनवरी-मार्च २०१८ • अकंि १

सिगंि ापुर िंगि म

▪ अंिक १ ▪ जनवरी-मार्च २०१८

सम्पादक:
डॉ िधिं ्या सििं

तकनीकी सहयोग:

अनमोल सििं

संपकक :
ईमेल: [email protected]
नेशनल यनू नवसिटच ी ऑफ़ सिगिं ापरु ,
िटंे र फॉर लगंै ्वज़े स्टडीज़
फ़ै कल्टी ऑफ़ आर्टचि एडंि िोशल िाइििं ज़े
ब्लॉक AS4,#03-18
9 आर्टचि सलकंि , सिगिं ापरु 117570

प्रकासशत रर्नाओिं के ववर्ार लेखकों के अपने ंै| आवश्यक न ींि कक पत्रत्रका के िपंि ादक या प्रबधिं न िदस्य इििे ि मत ों।

िवाधच धकार िरु क्षित

© Singaporesangam

जनवरी-मार्च २०१८ ◦ सिगिं ापरु ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 1

िम्पादकीय

भाषा मारा अस्स्तत्व ै| इि अस्स्तत्व को िँजो रखने की
स्ज़म्मेदारी भी मारी ी ै| पत्र-पत्रत्रकाएँ ववर्ारों के माध्यम िे
दनु नया िे िम्बन्ध स्थावपत करती ंै| य पत्रत्रका भी इिी
कड़ी का ह स्िा ै|

सिगिं ापरु मंे ह दंि ी ककिी न ककिी रूप में लगभग िौ वषों िे
हदखाई-िनु ाई पड़ र ी ै| दि ज़ार िे भी ज़्यादा छात्र ज ाँ
ह दिं ी द्ववतीय भाषा के रूप में पढ़ र े ों, ज ाँ २०० िे भी
ज़्यादा ह दंि ी-सशक्षिकाएँ ों, व ाँ िे कोई ह दंि ी पत्रत्रका न ननकले
तो मन में मलाल बना र ना स्वाभाववक ै| आखखर मारे बारे मंे भी तो लोग जानंे, म र ते भले ववदेशी
भसू म पर ंै पर ह दिं ी को जीववत रखने का एक प्रयाि, एक लौ मने भी जला रखी ै| देर िे ी ि ी
सिगंि ापुर िे भी ह दिं ी पत्रत्रका का शभु ारम्भ ो र ा ै|
य पत्रत्रका ख़ाि ै क्योंकक इि पत्रत्रका मंे र वगच का ध्यान रखने की कोसशश की जाएगी| य ाँ के ह दंि ी
के कवव, लेखक, ववर्ारक अपने ववर्ार दनु नया तक प ुँर्ाएँगे और दनु नया के अन्य भागों िे भी लेखकों का
स्वागत य पत्रत्रका करेगी| िाथ ी इिमें छात्रों के सलए भी ववशषे कॉलम बनाने की कोसशश ै| ह दिं ी के
वा क तो व ी बनेंगे| ‘आई बी’, ‘आई जी िी एि ई’, ‘ओ लेवल’ ‘ए लेवल’ जिै े पाठ्यक्रमों में लेखन
मेशा र्नु ौती भरा ोता ै, ख़ािकर जब आप ववदेशी भसू म पर ों| इि पत्रत्रका के माध्यम िे उन िभी
छात्रों को न सिफ़च सिगंि ापुर बस्ल्क दनु नया के अन्य ह दंि ी पढ़ने वाले छात्रों िे जोड़ने का प्रयाि भी ककया
जाएगा|
य प ला अकंि ै अत: िामग्री िीसमत ै पर ‘सिगंि ापरु िगिं म’ का क्षिनतज व्यापक ै और इिकी
ििभं ावनाएँ अनंित ंै| आगे आने वाले अकिं ों में और भी अधधक ववववधता देखने को समलेगी|
उद्देश्य य ी ै कक य पत्रत्रका सिगंि ापरु की ह दिं ी ज़मींि िे जड़ु े और लोगों के बीर् र े| इिे ककिी गूढ़
िाह स्त्यक लबादे मंे ढापँ कर क ीिं ककिी कोने मंे स्थान न ीिं देना ै| य तभी िभिं व ोगा जब आपकी
हदली प्रनतकक्रयाएँ म तक प ुँर्ंेगी| आपकी प्रनतकक्रया ी इि पत्रत्रका को नई और ि ी हदशा देगी|

धन्यवाद िह त-

ििंध्या सिंि

जनवरी-मार्च २०१८ ◦ सिगंि ापुर िगिं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 2

इि अंिक में

सािययकी हहदं ी शिक्षण झलककयााँ
प्रो. िदानदिं शा ी
डॉ पीटर किडलडंै र 7
12
4

काव्य-रस संस्कृ यत ससं ्कृ यत पर्/क त्योहार 18
26
शादचलु ा झा 15काँवड़ यात्रा आशू प्रमोद 17 ििगं ीता सिंि
नोगजा

वर्देिी भाषी के िखु से काव्य-रस

रोनाल्ड वाई र्ने आलोक समश्रा

13 22

वर्ििक काव्य-रस अपनी बात व्यजं न

प्ररे णा समत्तल गौरव उपाध्याय ध्रवु बत्रा अरुणा सिंि

28 32

हहदं ी के र्ाहक 39 33 37

प्रके त कनौस्जया

हहदं ी के र्ाहक हहदं ी के र्ाहक व्याकरण हहदं ी के र्ाहक

िाथकच गपु ्ता अनषु ्का असशगड़च े िधंि ्या सिंि कृ वत्तका नारायण 47
49
41 43 46 सेहत िंिध्या सििं

जनवरी-मार्च २०१८ ◦ सिगिं ापुर िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 3

िामनयकी

मातभृ ाषा की नागररकता

प्रो. िदानन्द शा ी
काशी ह न्दू ववश्वववद्यालय

जाने कब िे लोकमन क ता र्ला आ र ा ै-कोि का नागररक ोना ै। मने औपननवसे शक प्रभओु िं
कोि पर पानी बदले नौ कोि पर बानी। जैिे की किौटी पर प ले दरजे की नागररकता ासिल
धरती के भीतर छु पा पानी एक कोि पर बदल करने की जी तोड़ कोसशश की। इि कोसशश में
जाता ै, वैिे ी नौ कोि की दरू ी तय करने पर
भाषा बदल जाती ै। भाषा का य बदलाव म प ले दरजे के नागररक ो पाये या न ींि
स्वाभाववक और प्राकृ नतक ै। इिीसलए भाषाई लेककन अपनी मातभृ ाषाओिं की नागररकता खो
ब ुलता और ववववधता भारत का वभै व ै। लेककन बैठे । मातभृ ाषाओिं की नागररकता खोने का अथच ै
इिके उलट तीन िौ िाल की औपननवसे शक मातभृ ाषाओिं के स्मनृ तकोष मंे िंधि र्त ज्ञान-ववज्ञान,
गुलामी में य िमझाने मंे िफल र ी ै कक कला-कौशल, अनभु व -िविं ेदन, सशल्प, िाह त्य
ववसभन्न भाषाओंि का ोना असभशाप ै। मारे और िगिं ीत िब कु छ खो बठै ना। इि तर म
औपननवेसशक प्रभु मको य भी िमझाने में िब कु छ खोते र्ले गय।े िब कु छ खो देने के
िफल ुए कक मारी मातभृ ाषाएँ देशी भाषाएँ ैं बाद मंे एक और औपननवसे शक ज्ञान प्राप्त ुआ
और इन् ें बोलना, बरतना, पढ़ना, पढ़ाना गँवार कक मातभृ ाषाओिं मंे नौकरी और रोजगार न ीिं ै।
अब र व्यस्क्त को रोजी रोजगार और िम्मान
ोने का प्रमाण ै। य प्रमाणपत्र जारी करने मंे तो र्ाह ए ी। और ये दोनों अगंि ्रेज़ी मंे ी मौजूद
उन् ोंने स्जतनी ोसशयारी की और दररयाहदली
हदखाई उििे कई गनु ा ज़्यादा इि प्रमाणपत्र ैं। इिसलए अगंि ्रेज़ी का दबदबा कायम ै। स्जिकी
को स्वीकार करते ुए म अनगु ृ ीत ुए। मने वज िे मारा िािसं ्कृ नतक जीवन पिगं ु िा ो
इि बात पर वैहदक ऋर्ाओिं िे भी ज़्यादा यकीन गया ै।
ककया कक देशज भाषाओिं को बरतना दिू रे दरजे स्जि तर मारी िामास्जक दृस्ष्ट मातभृ ाषाओंि के

जनवरी-मार्च २०१८ ◦ सिगिं ापरु िंिगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 4

िामनयकी

ववरुद्ध बनी और उन् ंे ीन िमझने लगी, उिी तर दवा की वाला मामला िात्रबत ुआ। क्योंकक मने
मारी अकादसमक दृस्ष्ट ननसमतच ुई। के वल य ी न ीिं इि बेगानेपन को दरू करने के सलए कोई उपाय न ींि
ुआ कक मने अपनी सशिा के सलए एक परायी ककया। देशज भाषाओिं की ज्ञान परम्परा को लेकर

भाषा को र्नु ा बस्ल्क िाथ ी िाथ लगातार अपने म किंु हठत बने र े। बावजदू इिके कक मारी धर्तंि न
को िमझाते और ववश्वाि हदलाते र े कक मारी परम्परा मंे जनपद, जनपदीयता और जनपदीय
मातभृ ाषाएँ नाकात्रबल ैं और वे सशिा के काम न ीिं भाषाओिं के म त्व के स्वीकार का भाव र ा ै।
आ िकतींि और अगर क ीिं उनिे सशिा का काम
सलया गया तो रोजी-रोटी के लाले पड़ जायेगं े। एक अथववच ेद का पथृ ्वीिकू ्त पथृ ्वी की मह मा का गान
तरफ मातभृ ाषाओंि की नाकात्रबसलयत का ितत ी न ीिं करता बस्ल्क व मंे पथृ ्वी िे जोड़ता ै-
अ िाि और दिू री ओर सशिा के माध्यम के रूप मंे
परायी भाषा का व्यव ार मंे एक अजब तरीके िे ‘माता भसू म: पुत्रोऽ ंि पधृ थव्या:’ यानी भूसम मारी माँ
दवु वधाग्रस्त करता ै। य दवु वधाग्रस्तता मारी ै और म पथृ ्वी के पतु ्र ैं। पथृ ्वी के स्जि ह स्िे
सशिा व्यवस्था को खोखला करती जा र ी ै।
सशिाववद कृ ष्णकु मार में बताते ंै -'उपननवेश र पर म ननवाि करते ैं उिके िाथ मारा
र्कु े देशों के सलए सशिा की एक बड़ी िमस्या अपनी आवयववक िम्बधंि ोता ै। भाषा भी भूसम िे जुड़ी
भाषाओंि को ज्ञान की ििंभाल और रर्ना के सलए ुई ै। मारे लोकमन मंे भी य बात बिी ुई ै।
बरतने की ै। यहद देशज भाषाओिं को ज्ञान की भाषा और भसू म का िम्बधंि नैिधगकच ै। अनेक
र्र्ा,च िंवि ार और रर्ना के कामों मंे न ीिं लाया जाता भाषाओिं का अस्स्तत्व भी नैिधगकच ै। पथृ ्वी िकू ्त
और ये भसू मकाएँ अगँ ्रेज़ी जैिी औपननवेसशक भाषा मंे की व्याख्या करते ुए वािुदेवशरण अग्रवाल क ते ंै
सिमटी र ती ै तो उच्र्सशिा की व्यवस्था और - 'आपि में सभन्नता ोना, अनेक भाषाओंि और धमों
िमाज के िम्बधिं ों मंे तनाव और अिंति ुलन बना का अस्स्तत्व कोई त्रुहट न ींि ै। असभशाप के रूप में
र ना और बढ़ना स्वाभाववक ै'। क ने की ज़रूरत उिकी कल्पना उधर्त न ींि ै।
न ींि कक य अितंि लु न और तनाव लगातार बढ़ता
गया ै और मारी सशिा, स्जिमें प्राथसमक िे लेकर
उच्र् सशिा तक िब शासमल ंै और िमाज के बीर्
बगे ानापन बढ़ता गया ै। देशज भाषाओंि में मौजदू
पारिंपररक ज्ञान की अव ेलना और मौसलक ज्ञान के
िजृ न में ववफलता के नाते सशिा प्रणाली लगातार
प्रश्नांिककत ुई ै। ऐिा न ीिं कक मारे नीनत
ननमाचताओंि का ध्यान सशिा प्रणाली की ववफलता पर
न ींि गया और उन् ोंने इिे ठीक करने की कोसशश

ी न ीिं की। लेककन मजच बढता ी गया ज्यौं ज्यौं

जनवरी-मार्च २०१८ ◦ सिगिं ापरु ििगं म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 5

िामनयकी

ऋवष की दृस्ष्ट मंे ववववधता का कारण भौनतक बात िे इतने िबु ्ध ुए कक उन् ोंने क हदया कक
पररस्स्थनत ै। नाना धम,च सभन्न भाषाएँ, ब ुधा जन- अिीका मंे अगंि ्रेजी ववभागों को बन्द कर देना र्ाह ए
ये िब यथौकि अथातच अपने ननवाि स्थानों के नाते और अिीकी भाषा ववभाग खोलने र्ाह ए। ऐिा न ींि
पथृ क ंै। इि स्वाभाववक कारण िे जूझना मनषु ्य कक अगिं ्रेजी िे उनकी कोई जाती दशु ्मनी थी। उनका
की मखू तच ा ै'। यानी ववववध भाषाओिं का और उनके ववरोध अिीकी भाषाओिं का दमन करने वाली अंिग्रेजी
बोलने वालों का ोना प्राकृ नतक ै। इिसलए भाषाएँ िे था।उन् ोंने ब ुत िाफ शब्दों मंे क ा कक मातभृ ाषा
श्रेष्ठ या ीन अथवा छोटी या बड़ी न ीिं ोतींि। मंे सलखने का आग्र कोई अगंि ्रेजी की प्रनतकक्रया मंे
भाषाई ववववधता प्राकृ नतक ननधधयाँ ंै। इन ननधधयों न ीिं ै बस्ल्क य शतास्ब्दयों िे जारी औपननवसे शक
को बर्ाना और बरतना मारी िामूह क स्ज़म्मेदारी लटू , स्जिने अिीका को आस्त्मक और आधथकच रूप
िे खोखला और राजनीनतक रूप िे ासशए पर डाल
ै। भाषाई ववववधता के वल भारत में न ींि दनु नया भर हदया ै, के ववरूद्ध िकारात्मक स्तिपे ै। मारे
में ै और इि ववववधता की रिा करना िमकालीन िामने भी य बात स्पष्ट र नी र्ाह ए कक म
दनु नया की ब ुत बडी र्नु ौती ै। भारत की तर अगिं ्रेजी या ककिी और भाषा के ववरोधी न ीिं ैं,
क्योंकक भाषाएँ मात्र िरस्वती का ववग्र ोती ैं।
अिीकी देश भी
लम्बे िमय तक मारा ववरोध भाषाई वर्सच ्व की उि राजनीनत िे ै
औपननवेसशक जो लोक भाषाओंि को लीलने पर आमादा ोती ै।
गुलामी झले ते र े
मंे य जानना ोगा कक औपननवसे शक प्रभओु ंि द्वारा
ंै। औपननवेसशक ननसमतच भाषा दृस्ष्ट िे भारत मंे भी मातभृ ाषाओिं की
शस्क्तयों ने जिै े आत्म त्या ो र ी ै। इिे रोकने के सलए के आगे
भारतीय भाषाओिं के तबा ी की पटकथा सलखी वैिे आना ोगा। और इि हदशा मंे प ला कदम य ोगा
ी अिीकी भाषाओंि के तबा ी की भी। इि मामले में कक म मातभृ ाषाओंि की नागररकता वावपि ासिल
अिीका िौभाग्यशाली ै कक व ाँ ‘न्गगू ी वा थ्यािंगों’ करंे। य ाँ क देना ज़रूरी लगता ै कक मातभृ ाषा की
जिै े ववर्ारक भी ुए ंै स्जन् ोंने भाषाई तबा ी को नागररकता ासिल करने का अथच बाकी भाषाओिं िे
औपननवेसशक िास्जश के रूप में प र्ाना और ववदाई न ीिं ै। भाषाओंि के देश का लोकततंि ्र वसै ्श्वक
इिके ववरुद्ध आवाज उठाई। उन् ोंने अिीकी लोगों
को र्ते ाया कक आँख मँदू कर पराई भाषा का ै। आप स्जतनी भाषाओंि के नागररक ोंगे दनु नया की
इस्तमे ाल और उि पर ननभरच ता एक तर िे भाषाई जहटलताओंि को िमझने में उतने ी िमथच ोंगे।
आत्म त्या ै। इििे मारे लोगों की िंिस्कृ नत एवंि
िमाज की स्मनृ तयाँ लपु ्त ो जायेंगी। न्गूगी इि जनवरी-मार्च २०१८ ◦ सिगंि ापरु िंिगम ◦ www.singaporesangam.com ◦ 6

सशिण कला

ऑस्रेसलयाई जानवरों के बारे में, बच्र्ों में उत्िकु ता कै िे
बढ़ाई जाए ?

डॉ. पीटर फ़्रीडलडंै र

ऑस्रेसलयाई राष्रीय
ववश्वववद्यालय

ाल ी मंे मैं िारनाथ में था। ै। एक हदन मेरे दोस्त ने मझु िे उबाऊ लगने लगता ै। तो क्या
ब ुत हदनों िे मंै व ाँ जाता ूँ क ा कक क्यों न स्कू ली बच्र्ों
और गाँव में मरे े एक दोस्त ैं को एक भाषण दँ।ू वे ब ुत ख़शु करूँ ? ियंि ोग िे शाम को गाँव
स्जनके पाि ग़रीब बच्र्ों के सलए
प ले एक स्कू ल था, जो अब ोंगे जब वे देखंेगे कक आप जिै े की दो र्ार लड़ककयाँ अगिं ्रेज़ी
न ींि र ा लेककन अब उनके अगंि ्रेज़ ह दंि ी में उनके िाथ
द्वारा एक ‘स्पॉनिरसशप’ योजना बातर्ीत कर र े ंै। ऐिी बात ‘कॉधर्गंि ’ के सलए आईं। अब भी
र्ल र ी ै। कभी-कभी घर की िुनकर मंै क्या क िकता था?
छत पर जब ववदेशी दोस्त आते मनंै े ाँ क ा। लेककन क्या करूँ ? ऐिी ालत ै कक र्ा े श र
मुझे मालमू ै कक अिल में
ैं तो ब ुत िारे स्कू ली बच्र्े अकिर जब लोग आते ैं और पाि मंे ै गाँव के लोग िोर्ते
इकर्टठा ो जाते ैं और घटिं े भाषण देते ैं उिमंे वे य ी नघिे
भर के सलए िंिगीत, नतृ ्य और -वपटे वाक्य क ते ंै जैिे कक - ैं कक लड़ककयों को सिफ़च व ींि
नाटक का छोटा िा कायकच ्रम
पेश ककया जाता ै। बदले मंे मंे ख़शु ी ै कक तमु को पढ़ने का तक पढ़ाना र्ाह ए कक शादी
ववदेशी दोस्त दो शब्द बोलते ंै मौका समल गया और उम्मीद ै
और उनके शब्दों का असभप्राय कक आगे र्लकर तुम िब अपनी करने लायक ो जाए,ँ और
ह दिं ी में अनवु ाहदत ककया जाता पढ़ाई में िफल ो – बच्र्ों को
दो र्ार ऐिे वाक्यों को िनु ने के ज़्यादा पढ़े-सलखे ोने िे कोई

फ़ायदा न ीिं ै। लेककन गाँव की

लड़ककयाँ भी लड़कों की तर

देखती ैं कक दनु नया मंे अब गावँ

के बा र ब ुत कु छ ै जो
आकषकच ो।

और इि नई दनु नया तक प ुँर्ने
की रा पढ़ाई ी ै। शाम ढलते

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सशिण कला

ी पढ़ाई कु छ ढीली ो गई, और र्ँकू क मंै ऑस्रेसलया िे ूँ,
ऑस्रेसलया के बारे मंे बात ोने लगी। ककिी ने पछू ा कक आपके घर
के पाि कै िे-कै िे जानवर ोते ंै? कफर मनंै े क ा कक, िभी लोगों
को मालमू ै कक ऑस्रेसलया कंि गारुओिं का देश ै, लेककन ब ुत कम
ग़रै -ऑस्रेसलयाई जानते ैं कक उि देश में ब ुत िारे ववधर्त्र जानवर

ैं जो क ींि और न ींि पाए जाते। कफर अमीना ने मुझिे पछू ा कक
ककि तर की धर्डड़याँ ोती ंै? ियिं ोग िे मरे े घर के पाि एक
दलु भच और अजीब धर्डड़या पाई जाती ै, स्जिका नाम ‘लाइर बड’च

ै, नर की पँूछ मोर की तर ै और ककिी द तक एक ववदेशी
बाजा, स्जिका नाम – लाइर – जैिा हदखता ै। पर उनमें एक और
ख़बू ी ै कक व आवाज़ों की नकल ूब ू करता ै| शायद प ले वे
सिफ़च दिू री धर्डड़यों की आवाज़ की नकल करती थी,िं लेककन अब वे
तकनीकी र्ीज़ों की आवाज़ की नकल भी करती ंै। तो स्जन जिंगलों
में ये पिी पाए जाते ंै जब आप मोबईल की आवाज़ िुनते ंै, तो
िोर्ना पड़ता ै, क्या िर्मुर् मोबईल’ ै या ‘लाइर बड’च ै? अिल
में य पिी ककिी भी आवाज़ की नकल कर िकता ै, ‘कार-
अलाम’च , ‘कार- ान’च , य ाँ तक की लकड़ी काटने की मशीन आरा की
आवाज़ की नकल भी।

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सशिण कला

जब लड़ककयाँ इि के बारे में िनु मुझे ऐिे गाँव के बच्र्ों को मशे ा तथ्य के िाथ कु छ
र ी थीिं तो मझु े लगा कक वे भाषण देना ै तो मझु े उि तर मज़ेदार मिाला भी समलाना
मसु ्श्कल िे ववश्वाि कर िकती रोर्क बनाना र्ाह ए कक र्ाह ए। एक बार ककिी िज्जन
थी कक ऐिा ो िकता ै। जानकारी के िाथ कु छ मज़दे ार ने मुझिे क ा कक ववद्याथी
लेककन मेरे दोस्त ने अपने बातंे भी ो। अलमारी की तर न ीिं ै, स्जिमें
मोबाइल पर ऐिा ‘स्क्लप’ ढूँढा
स्जि मंे य िाफ़ हदखाई और मैं अपने देश मंे ववश्वववद्यालय म ज्ञान भर िकते ैं। लेककन
िनु ाई देता ै कक ऐिा ोता ै। के ववद्याधथयच ों को ह दिं ी पढ़ाता ूँ अगर म ज्ञान के तथ्य को एक
उि ‘स्क्लप’ को देखकर उन और व ाँ भी ऐिा ी देखने को हदलर्स्प क ानी की तर पेश
लड़ककयों की ख़शु ी को देखकर समलता ै- अगर मैं के वल तथ्य कर िकते ंै तो बच्र्े अपने-आप
मेरी िमझ मंे आया कक अगर सिखाता ूँ तो ववद्याधथयच ों का उिको अपनाते ंै और अपने
ध्यान जल्दी िे घमू जाता ै, हदमाग़ की – दराज़ – भर देते ंै।

तो कु छ हदन बाद िमय आ गया और उि हदन धीरे धीरे िभी बच्र्े मरे े ख़्याल िे य भी एक ख़ाि
इकर्टठा ोने लगे। िर्मुर् उि हदन की तेज़ धपू को देखकर घर की छत बात ै कक ककिी भाषण या
के बजाय क्लाि घर के आँगन में ुआ। क्लाि तीन िे क्लाि दि के क्लाि की शरु ुआत मंे अगर म
बच्र्े िब मौज़दू थे, शायद कोई पर्ाि िाठ बच्र्।े छोटे िे बड़े िभी िभी लोगों को कु छ करने का
कायदे िे पसंि ्क्तयों में बैठकर मरे ा भाषण िनु ने के सलए इिंतज़ार में थे। मौका दे िकंे तो म लोगों का
मुझे मालूम था कक अलग-अलग स्कू लों िे आए थे, उनमंे सिफच य
िमानता थी कक िभी ‘स्पॉनिोड’च थ।े कफर ककिी अध्यावपका ने क ा कक
अपना-अपना नाम बताओ – और बच्र्ों ने इतनी जल्दी िे अपने नाम
बताए कक मेरी िमझ मंे न ींि आया कक कौन-कौन थे। तो मनंै े कफर िे
उनिे क ा कक कोई प ली किा का बच्र्ा ो तो ाथ उठाए – कोई न ींि,
दिू री भी न ींि, लेककन तीिरी के बच्र्ों को ाथ उठाने का आदेश देने के
बाद कु छ ाथ हदखाई हदए, और र्ौथी िे िातवींि किाओंि तक काफ़ी
बच्र्ों ने ाथ उठाए और आठवीिं िे दिवीिं तक कम बच्र्।े इि सिलसिले
में य भी स्पष्ट ो गया कक िभी बच्र्े लगभग र्ार या पारँ ् स्कलों में
पढ़ र े थे। तो बारी-बारी िे मनंै े स्कू ल के नाम बताकर ाथ उठाने को
क ा और बच्र्ों ने ाथ उठाए।

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सशिण कला

ध्यान पकड़ िकते ंै और बच्र्ों को य म िूि अिल में मुझे सिफच य क ना था ‘पॉिम’ नामक
ोता ै कक म इि मौके मंे शासमल ंै। नमस्ते ऑस्रेसलयाई जानवर ै जो रात में अपने त्रबलों िे
ननकालते ंै और लोगों के घरों के पाि बगीर्े और
क ने के बाद मनैं े उन िे पूछा कक कोई मुझको पेड़ों में र ते ैं और एक दिू रे के िाथ लड़ते ैं,
ककिी भी ऑस्स्रलाई जानवर का नाम बता िके गा लेककन आवाज़ और क ानी के िाथ य तथ्य
– और िभी के मँु िे किं गारू नाम की गँजू उठी। जोड़ने िे मझु े उम्मीद थी कक बच्र्ों का ध्यान
बँटेगा न ींि और उनको याद र ेगा कक ‘पॉिम’
ा,ँ मनंै े क ा, और ाथ िे ऐिा इशारा करने की नामक जानवर ऑस्रेसलया मंे ोता ै।
कोसशश की ककि तर किं गारू लाँघता ै और – ढों
ढों ढों - की आवाज़ के िाथ जंगि ल मंे लाँघते ुए उिके बाद मनैं े बच्र्ों िे पूछा कक क्या तमु लोगों
इधर उधर जाता ै। कफर मनंै े उनको ‘वालाबी’ के ने कभी एक ऐिा जानवर देखा स्जिकी बत्तख की
बारे मंे बताया जो छोटे और नन् े िे कंि गारू ैं जो तर र्ोंर् ो, लेककन स्जिके र्ार पावँ ैं और
प ाड़ों पर र ते ंै। उिके बदन पर लोम ो और पानी में र ता ै
कफर मनंै े ‘पॉिम’ के बारे में बताया, इि क ानी और उिके बच्र्े का जन्म अडिं े िे ोता ै?
को लेकर कक जब मंै प ले प ल इिंग्लडंै िे
ऑस्रेसलया आया तो रात को मालमू न ीिं एक
अजीब आवाज़ िनु ाई पड़ी जिै े – ‘ ीस्ििि’ –
‘ह स्िििि’ – और कफर मुझे डर लगने लगा कक
क ीिं कोई ववषैला िाँप शायद घर मंे घिु गया
लेककन िाँप न ीिं हदखाई हदया क्योंकक जब मनंै े
बवत्तयाँ जलाई तो छत के छज्जों के नीर्े मनैं े कु छ
धगल री जिै े जानवर देखें जो एक दिू रे के िाथ
शायद – य मरे ी जग ै – हदखाने के सलए इि
अजीब आवाज़ की ‘फु फकार’ काढ़े ों। देखखए

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सशिण कला तो ककिी ववषय को लेकर जिै े - ऑस्रेसलयाई
जानवरों के बारे मंे, बच्र्ों मंे उत्िकु ता कै िे
िभी बच्र्ों ने क ा कक ऐिा जानवर न ीिं ै – बढ़ाना? मंे य िोर्ना र्ाह ए कक दशकच के
लेककन मनैं े क ा ऐिा जानवर ै, और उिका ह िाब िे म उि मंे रि कै िे भर िकते ंै।
नाम ‘प्लैहटपि’ ै। कफल ाल उनकी कोई आवाज़ क ाँ तक मंै उि हदन िफल था मझु े मालूम
न ीिं ै, तो मैं मनोरिंजक न ीिं बना िका पर न ींि ै, लेककन उन बच्र्ों के र्े रों को देखकर
बताया अगर कोई भी जानवर प्लहै टपि’ पर मझु े लगा कक कम िे कम उनको मज़ा आया
आक्रमण करता ै तो व त्रबजली िे उिको डराने और मरे े दोस्त ने मुझिे क ा कक उन बच्र्ों
की कोसशश करता ै। को मशे ा याद र ेगा कक ककि तर िे एक
ववदेशी ने गाँव में आकर उनको ह दंि ी में
‘तो देखखए इि तर िे मनंै े दो र्ार और जानवरों ऑस्रेसलयाई जानवरों के बारे में बताया।
के बारे मंे बच्र्ों को बताया और अतंि में ‘लाइर
बड’च की बारी आई । इि में एक और ख़ाि
सिखाने की शलै ी का मौका भी आया, असभनय।
जब मनैं े इन धर्डड़यों की आवाज़ों की नकल करने
की शस्क्त हदखाने की कोसशश की तो मनैं े जंगि ल
में ट लने का नाटक ककया जैिे कक िुनने में
आया जंिगल में कोई आवाज़ ो – डरगिं डरगंि डरगंि
डरगिं - तो ाथ उठाकर कान के पाि रखा और
कफर अपने आप िे पछू ने का असभनय ककया कक
– क्या िर्मरु ् फ़ोन की घटिं ी ै कक ‘लाइर बड’च

ै?

मरे ा ख़्याल ै कक म पारँ ् इिंहियों का प्रयोग कर
ककिी भी बात को आकषचक बना िकते ंै, क ानी
बताना, कमरे का प्रयोग करके इधर-उधर जाना,
आवाज़ की नकल करना, इशारा करना, असभनय
करना, अगर म अपने भाषण को रोर्क बना
िकते ैं तो म भाषण को असभनय बना िकते

ै।

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Image courtesy High Commission of India (Singapore) झलककयाँ

होली हहदं ी काव्य गोष्ठी प्रर्ासी भारतीय हदर्स २०१८
ोली ो और सिगंि ापुर मंे गीत-कववता प्रवािी भारतीय हदवि के अविर पर
ह दंि ी कववता और ननबधिं लेखन
के दीवाने समल-जलु कववत्त की छावँ प्रनतयोधगता का आयोजन ुआ स्जिमें
मंे न बठै ंे , ऐिे तो ालात न ीि:ं ) िो सिगंि ापुर के छात्रों ने बढ़-र्ढ़कर
शादचलु ा जी के घर पर ोली की कवव ह स्िा सलया स्जििे ह दिं ी के प्रर्ार मंे
गोष्ठी का आयोजन था। प्रयोजन था एक और नगीना जुड़ गया|
ग रे-ग रे अपनी िांसि ्कृ नतक ववराित
मंे डू बना और यहद इि िमदृ ्ध िागर
िे उबरे तो दो अपनी भी िुना देना!

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काव्य-रि

युद्ध िंे बच्चे

शादचलु ा झा नोगजा
व्यापार ववकाि एविं ववपणन

ननदेशक, सिगंि ापरु

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काव्य-रि

भूरी धरती के स्या माथे पर क्यों तमु ् ारी जुबांि पे ताले ैं?
तुमने देखी ै यदु ्ध की कासलख? तुम् ारे मज़े पे त्रबछी दावत
र्ार पररवार का कलेवा ैं
खनू , बारूद मंे िने बच्र्!े
अपने ाथों मंे माँ का ाथ सलए अब तो कु छ शमच आदमी कर ले
टैंक, धथयार, और थगोले
एक आवाक बजे ुबािं बच्र्ी! न ींि करते ख़्याल बच्र्ों का
तुमने देखा ै अपने लालर् को तुम ी अब कु छ करो
बम धमाकों मंे यूँ बदलते ुए? न अब र्पु ो

ये जो र्सु ्प्पयाँ तमु ् ारी ैं, न ीिं ये वक्त आज र्पु ्पी का!
ककिी बच्र्े की र्ीख बनती ैं वक्त तुमिे ह िाब मागँ ेगा
लाल-कत्थई लब की ये रिंगत लटु ता बर्पन जवाब माँगेगा!

रंिग ै उनके िूखे खनू ों का! Pic Courtes y of Jim Fores t (Flickr)
छत फटी, रात र्ादँ उतरेगा
उनके मलबों मंे, घर तमु ् ारे भी
ढूँढती भाई को नज़र कोई
िुन के िायरन, नछपगे ी जाके क ाँ
एक थगोले के बर्े ह स्िे
जा के ककि पगतली पे फू टंेगे
तमु स्जिे िोर् कर परेशािं ो
वैिे मिंज़र वो रोज़ देखेगी
और पछू े गी तमु िे वो आखँ ें

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कावँ ड़ यात्रा

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ििंस्कृ नत

मुक्त ज्ञानकोश ववककपीडडया िे कभी बािधं तो कभी न र तो कभी अन्य िाधनों
र िाल श्रावण माि मंे लाखों की तादाद मंे कावंि डड़ये िे नहदयों के पानी को जल वव ीन िते ्रों में ले
जाने की कोसशश करता र ा ै। लेककन आबादी
िदु रू स्थानों िे आकर गगंि ा जल िे भरी कांवि ड़ लेकर का दबाव और प्रकृ नत के िाथ मानवीय
पदयात्रा करके अपने गांिव वापि लौटते ैं इि यात्रा व्यसभर्ार की बदौलत जल िंिकट बड़े रूप मंे
को कांिवड़ यात्रा बोला जाता ै। श्रावण की र्तदु चशी के उभर कर आया ै। कांिवड यात्रा का आयोजन
हदन उि गंगि ा जल िे अपने ननवाि के आिपाि अनत िनु ्दर बात ै। लेककन सशव को प्रिन्न
सशव मिंहदरों मंे सशव का असभषेक ककया जाता ै। करने के सलए इि आयोजन मंे भागीदारी करने
क ने को तो ये धासमकच आयोजन भर ै, लेककन वालों को इिकी म त्ता भी िमझनी ोगी।
इिके िामास्जक िरोकार भी ैं। कािवं ड के माध्यम प्रतीकात्मक तौर पर कािवं ड यात्रा का िदिं ेश
िे जल की यात्रा का य पवच िसृ ्ष्ट रूपी सशव की इतना भर ै कक आप जीवनदानयनी नहदयों के
आराधना के सलए ैं। पानी आम आदमी के िाथ लोटे भर जल िे स्जि भगवान सशव का
िाथ पेड पौधों, पशु-पक्षियों, धरती में ननवाि करने असभषेक कर र े ें वे सशव वास्तव मंे िसृ ्ष्ट का
वाले जारो लाखों तर के कीडे-मकोड़ों और िमरू ्े
पयावच रण के सलए बे द आवश्यक ै। उत्तर भारत की ी दिू रा रूप ैं। धासमकच आस्थाओिं के िाथ
भौगोसलक स्स्थनत को देखंे तो य ांि के मदै ानी िामास्जक िरोकारों िे रर्ी कावंि ड यात्रा वास्तव
इलाकों मंे मानव जीवन नहदयों पर ी आधश्रत ै। में जल िरंि ्य की अ समयत को उजागर करती

सािाजजक र् धाशिकक िहत्र् ै। कािंवड यात्रा की िाथकच ता तभी ै जब आप
जल बर्ाकर और नहदयों के पानी का उपयोग
नहदयों िे दरू बिे लोगों को पानी का िंरि ्य करके कर अपने खते खसल ानों की सिरंि ्ाई करंे और
रखना पड़ता ै। ालाकँ क मानिून काफी द तक अपने ननवाि स्थान पर पशु पक्षियों और
इनकी आवश्यकता की पनू तच कर देता ै तथावप कई पयावच रण को पानी उपलब्ध करवाएंि तो प्रकृ नत
बार मानिनू का भी भरोिा न ीिं ोता ै। ऐिे मंे की तर उदार सशव ि ज ी प्रिन्न ोंगे।
बार मािी नहदयों का ी आिरा ोता ै और इिके
सलए िहदयों िे मानव अपने इिंजीननयररगंि कौशल िे
नहदयों का पणू च उपयोग करने की र्षे ्टा करता ुआ

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िंिस्कृ नत

कारँा ्ड़ गीत

कावंि ड़ यात्रा के दौरान अनेक गीत और भजन गाए जाते ैं। ये गीत गात-े

गुनगुनाते और भस्क्त के रि मंे झूमते-नार्ते ु ए ये कांिवड़ यात्री अपनी
िकै ड़ों मील की यात्रा पूरी करके गगंि ाजी तक प ुँर् जाते ंै।

मेरे भोले नाथ क ाँ खो गये, इन काँवडड़यों आशु प्रमोद
के मले े में, न टौर, उत्तर प्रदेश,

तमु ् ंे ढूँढे ैँ माता पावतच ी, इन काँवडड़यों के भारत
मले े में।
रामशे ्वर तो न ीिं र्ले गय,े इन काँवडड़यों के मेले
कै लाश गई पर सशव न समले, ररद्वार गई में ?
पर सशव न समले,
घुष्मेश्वर गई पर सशव न समले, त्रयिबं के श्वर पर
क्या नीलकिं ठ प्रभु र्ले गये, इन कावँ डड़यों के भी क ीिं न हदख,े
मेले में ?
के दारनाथ ी गए ोंगे प्रभ,ु इन कावँ डड़यों के मेले
मस्ल्लकाजनुच मंे भी सशव न समले, नागेश्वर मंे।
मंे भी न ीिं समले,
जब ढूँढ-ढूँढ कर थक ारी, ढूँढा मिंहदर का र
क्या ववश्वनाथ को र्ले गए इन कावँ डड़यों के कोना,
मले े में ?
तो दधू द ी में छु पे समले, प्रभु बले पत्र में छु पे
म ाकाल गई पर सशव न समले, वैद्यनाथ गई समले,
पर सशव न समले,
इन कावँ डड़यों के मले े में। इन काँवडड़यों के मले े
क ींि िोमनाथ तो ना र्ले गए ों कावँ डड़यों मंे।
के मेले मे ?
मेरे भोले नाथ क ाँ खो गये, इन कावँ डड़यों के
ओँकारेश्वर गई सशव न समले भीमा शँकर गई मले े में,
सशव न समले,
तमु ् ें ढूँढे ँै माता पावतच ी, इन काँवडड़यों के मेले
में।

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पव/च त्यो ार

नर्र्षक का उद्गार

करते पर्क

पव’च शब्द का उद्गार ोते ी मारा रोम-रोम वषतच ो उठता ै। िंिगीता सििं
तीज-त्यो ार मारे जीवन मंे षोल्लाि की झंिकार भर देते ंै। ह दिं ी अध्यावपका, सिगिं ापरु
‘पव’च ववश्व के र कोने में ककिी न ककिी रूप मंे मनाया जाता
धासमकच मान्यता के अनिु ार १४
ै। भारतवषच तीज त्यौ ार मनाने मंे अग्रगण्य ै। मारे देश का जनवरी िे पवों का शिंखनाद ोता ै
कोई भी म ीना या ऋतु त्रबना उत्िव के न ीिं बीतता र्ा े व जो भारत के पूवी, पस्श्र्मी, दक्षिणी
ककिी भी वगच या िमदु ाय का क्यों न ो। ‘अनके ता मंे एकता’ और उत्तरी राज्यों मंे ववसभन्न रूपों व
को िाथकच करता मारा भारतवषच अपने आँर्ल मंे अनके त्यो ारों नामों के द्वारा बड़ी धमू धाम िे मनाया
को िमटे े ुए ै। जाता ै।
‘मकर ििकं ्रािनं त’ पवच अलग- अलग
आइए आज म ‘नववष’च की शरु ुआत करते ुए अपने कु छ प्रमुख
पवों का उल्लेख करते ंै – जिै ा कक िववच वहदत ै पवों का भारत
िे अटू ट िम्बन्ध ै तो आज म जनवरी मा िे शुरू ोने वाले
पवों को जानने की कोसशश करंेगे।

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पव/च त्यो ार

राज्यों मंे ववववध रूप मंे मनाया जाता ै। िुब ठण्ड की हठठु रन भी िु ानी लगती ै।
पंजि ाब में लो ड़ी, गजु रात मंे उत्तरायण, को रे की घनी र्ादर में भी िगंि म ो या काशी
तसमलनाडु मंे पोंगल, अिम मंे माघ त्रब ू और के गंगि ा के तट पववत्र श्रद्धालओु िं की जयकार
उत्तर प्रदेश मंे खखर्ड़ी के रूप मंे। िकंि ्रािंनत की िे गँूज उठते ंै।

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अनाज के दान, नतल के लड्डू , री मटर की घघु नी, पव/च त्यो ार
गन्ने के रि िे ताजे बनते गुड़ की िोंधी खशु ब,ू बाजरे
की खखर्ड़ी, उड़द दाल की कर्ौड़ी व तर –तर के लो ड़ी का उमिंग तो १३ जनवरी की रात को ी अलाव
पकवान आज भी भारत िे िदु रू बिे म प्रवासियों जलाकर रेवड़ी, मँूगफली और गन्ने के रि की खीर
को अपने स्वाद व ए िाि िे िराबोर कर देते ैं। खाकर नतृ ्य के िाथ आरम्भ ो जाता ै।

अिम में भी रतजगा कर लोग पवच की खसु शयाँ नतृ ्य
व गायन द्वारा प्रकट करते ैं। गुजरात प्रान्त तो
अपनी रिंग- त्रबरिंगी पतिंगों को उड़ाकर नीले अम्बर को
ितरंिगी कर देता ै। तसमलनाडु मंे पोंगल पवच तीन
हदनों तक परू ी ननष्ठा के िाथ श्रद्धापवू कच मनाया जाता

ै। इिमंे ऊजाच के स्रोत ियू च की आराधना िगु स्न्धत
र्ावल को अवपतच की जाती ै।

अभी म ििंक्रांिनत के खुमार िे उभरे ी ोते ैं कक
ववद्या की देवी िरस्वती के िम्मान मंे मनाए जाने
वाला पवच ‘विितं पंिर्मी’ अपनी िुखद अनभु नू त कराता

ै। वािंिती कपड़ों में िजे-धजे लोग देवी की पूजा कर
ज्ञान के प्रनत अपनी भावना प्रकट करते ैं, तो प्रकृ नत
भी क ाँ पीछे र ने वाली वो भी िरिों के पीले फू लों
के रूप मंे मनषु ्य के कदम िे कदम समलाते ुए अपनी
प्रिन्नता को प्रकट करती ै। खते ों में खखले टेिू के
फू ल मंे िखु द रंिगों की अनभु ूनत कराते ंै। आम के
पड़े ों पर कू कती कोयल मारे मन–मयूर को आह्लाहदत
कर देती ै। आम के पड़े पर ननकले बौर मंे अपनी
खशु बू िे मद ोश कर देते ंै।

देवों के देव म ादेव सशव की आस्था मंे मनाए जाने
वाला पवच ‘सशवरात्रत्र’ िम्पणू च भारत मंे ब ुत ी श्रद्धा
और आस्था के िाथ मनाया जाता ै।

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पव/च त्यो ार

वििंत ऋतु की िमापन का आगाज़ पेड़ों पर िूखते घर मंे पकते पकवान, मालपएु , गुखझया, रिंगों िे िने
पत्ते, वा में ठंि डक की कमी, िड़कों पर िखू ी कपड़,े र्े रों पर लाल अबीर गलु ाल, भगंि की ुडदंिग
लकडड़यों का ढेर ( ोसलका द न के सलए) में इन बूढ़े–जवान–बच्र्ों िबको मउम्र कर देती ै।
िर् ी ै पवच ी ै जो वतमच ान जीवन शलै ी मंे
पंिस्क्तयों को गनु गनु ाने पर मजबरू कर देते ंै ------- मग्न मानव को तनावमकु ्त कर आनन्द का अनुभव
---- कराते ंै।

‘बहे फगरु ्ा बहार, उरे िन िें गुलाल’
जी ाँ मारा मन पििंद पवच ोली अपने पूरे यौवन
िे मारे तन-मन को रिंगों िे िराबोर कर देता ै।

Across Down

2. िूयच 1. रावण
4. डािडं डया 3. कौआ
6. र्ाँद 4. दधू
7. पीला रंिग 5. रिंग
9. दीया 8. भाई-ब न

(उत्तर इिी अकंि में क ीिं)

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ववदेशी भाषी के मखु िे

ek icaÖI ihndI Baaषा ko naama

रोनाल्ड वाई र्ेन

भूतपवू च छात्र नेशनल यनू नवसिटच ी
ऑफ़, सिगंि ापुर

नमस्ते ह दंि ी भाषा, आप कै िी ैं? कमाल की बात गई; आपिे समलकर मैं बॉलीवडु िमझ िकता ूँ...
और ह न्दसु ्तानी िंिस्कृ नत ज़्यादा िाफ़ ो गई| िर्
ै कक लगभग एक िाल प ले म एक दिू रे को
न ीिं जानते थे| यद्यवप मंै बार-बार भारत आया और ै कक मेरी आपिे आखँ ें र्ार ो गईं, यानी कक मैं

कभी-कभी आप पर नज़रंे दौड़ाईं तथावप मंै आपिे आपके प्यार मंे पड़ गया| स्जतना िमय मंै आपके

ढिंग िे न ीिं समल पाया| आखख़र मंे सिगिं ापरु के NUS िाथ त्रबताता ूँ उतना फ़ायदा आप मुझे देती ंै|
ववश्वववद्यालय में एक क्लाि मंे मारा अिल में मे नत का फल मीठा ोता ै|

प ला पररर्य ुआ|

मझु े याद ै कक आप ककतनी मसु ्श्कल और
जहटल थीं|ि “ट, ठ, ड, ढ” और “त, थ, द,
ध” का फ़कक क्या है िझु े एकदि पता
नही;ं शब्दावली और व्याकरण के कारण
मझु े उलझन थी| कभी-कभी आपकी दोस्ती
मनंै े छोड़नी र्ा ी, मगर स्ज़द के कारण मंै
कभी घटु ने न ींि टेकँू गा| ज्यों-ज्यों मझु े
आपिे कम डर लगा, मारा ररश्ता घननष्ठ

ोता गया| व्याकरण हदलर्स्प और
उत्िाह त करने लगा, शब्दावली आिान ो

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ववदेशी भाषी के मखु िे

मारे िाथ-िाथ िफ़र में, आपकी जानकारी की आती र ती ंै| रोम श र एक हदन में न ींि बिा;
र्ा े व्यस्क्त ककतना भी बुद्धधमान ो परन्तु धीरे
तलाश करने के दौरान, ब ुत लोगों के द्वारा मरे ी -धीरे र कदम पर एक के बाद दिू री बात
मदद की जाती ै| उदा रण के सलए, जब मैं िीखता ै| आप र्ा ें या न र्ा ें लेककन य ऐिा

अध्यापकों िे िवाल पछू ता ूँ, वे मशे ा ख़शु ी- ोता ै; दो कदम आगे बढ़ना, एक कदम पीछे
ख़शु ी और धयै च िे ज़वाब देते ंै| िड़क पर आना| इि कारण आपिे समलकर मैं मे नत और
ररक्शावाले या र्ायवाले िे भी ब ुत कु छ िीख धयै च का मूल्य िमझ पाया और मैं जानता ूँ कक
िकता ूँ इिसलए आपके बारे मंे िीखने के अगर मंै अपने लक्ष्य पर ध्यान रखूँ तो ज ाँ र्ा
अलावा, वास्तव मंे मनंै े स्ज़दिं गी और दनु नया के व ाँ रा ोगी|
बारे में ब ुत कु छ िीखा| मनंै े क ाननयाँ िनु ी,िं
अनभु व ककए और यादंे इकर्टठा की|िं भाषा मेरा ववश्वाि ै कक स्वस्थ मन रखने के सलए,
इंििाननयत की रर्ना ै, इिमें ककतना िौन्दयच
भाषा िीखना एक अच्छा उपाय ै| कु छ िमय
और अमीरी ै! लेककन इिका मतलब य न ीिं ै प ले र्ँकू क पररवार में कु छ परेशाननयाँ ुई थीिं
इिसलए मैं िोर्ते-िोर्ते उदाि ो गया था|
कक िब तकलीफ़ ख़त्म ो गई ै और मैं ाथ

पर ाथ धरे बठै िकता ूँ| य कड़वा िर् ै कक
भाषा िीखने का रास्ता इतना लबंि ा ै कक इि

रास्ते पर र्नु ौनतयाँ और मुस्श्कलें एक, एक करके

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ववदेशी भाषी के मखु िे

अविाद भगाने के सलए मनंै े रोशनी का अ िाि ुआ| य उप ाए-ह दंि ी भाषा! आपकी
भाषा िीखना शरु ू ककया और य दरअिल मनैं े अ िाि ककया कक मे रबानी मेरे मन मंे बठै गई ै
उधर्त इलाज लगता ै क्योंकक ज़्यादा बड़ी बात भाषा िीखना लेककन य सिफ़च शुरुआत ै और
हदनभर व्यस्त ो जाता ूँ| जैिे- न ींि ै; बड़ी बात ै कक अलग
जिै े िमय बीत र ा ै, मरे ा ििंस्कृ नत में र िकना, अलग मारी मिसं ्ज़ल अभी दरू ै| मैं
जीने का तरीका बदल र ा ै ववर्ारधारा स्वीकार करना, अलग आपका िाथ कभी न ींि छोडूँगा|
क्योंकक र स्स्थनत में कु छ नए ररवाज़ िमझना और िब
शब्द और व्याकरण के ननयम ववसभन्नाताओंि को िरा ना|
िीखे और इििे मुझे आनदंि और ककतनी अनोखी ै, इिंिान का

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ववदेशी भाषी के मखु िे

रोनाल्ड की असली चचट्ठी

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काव्य-रि

कोई और समली ोती तो…

एक हदन श्रीमती जी नाराज़ ो ज़ोर ज़बरदस्ती िे अपनी
गयीिं बात न ींि मनवाती ूँ

िामने कु छ क ा न ींि इि भारी मँ गाई मंे बड़ी
आप ी बड़बड़ाने लगीिं िझू बूझ िे काम र्लाती ूँ
ख़र्े कम रखने की खानतर
कोई और समली ोती तो तुमको
खबू पता र्लता | मायके तक ना जाती ूँ

र बात तुम् ारी िनु ती ूँ शादी में जो समली िाडड़याँ आलोक समश्रा
िब क ा तुम् ारा करती ूँ मरीन इिंजीननयर, सिगंि ापरु
उनिे ी काम र्लाती ूँ
स्वस्थ और दीघाचयु र ो ेत-नात, ररश्तेदारी, दानयत्व
इि कारण व्रत भी रखती ूँ
ननभाती ूँ िबका
पवू च िरू ्ना हदए त्रबना कोई और समली ोती तो तुमको

खबू पता र्लता |

समत्रों को दावत देते ो

तुमको क्या मालमू मंै कै िे

इंितज़ाम िब करती ूँ

इतने कम वेतन मंे तमु ् ारे ै घर
खर्च कै िे र्लता

कोई और समली ोती तो तमु को
खबू पता र्लता |

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काव्य-रि

पड़ोिन अपने अल्िसे शयन के िंगि

बन-ठन िरै को जाती ै

उि वक़्त तवे पर मैं अपनी

नाज़ुक उँ गसलयाँ जलाती ूँ
तुमको खबर न ींि कक हदल पर

ककतनी छु ररयाँ र्लती ैं

िारे िपने िाड़ी के

पल्लू में ििजं ोये रखती ूँ
पापा ने तमु में क्या देखा, मुझको िमझ न ींि पड़ता

कोई और समली ोती तो तमु को खबू पता र्लता | ना समलती िालाना छु र्टटी

जन्महदन, शादी की िालधगर पर कभी न ीिं समलता अवकाश
िरत िे प्रतीिा करती ूँ स्जि हदन तमु घर पर र ते ो
याद रखोगे ये तारीखें
मन मंे आशा रखती ूँ र्ार गनु ा बढ़ जाता काम
लाकर दोगे कोई उप ार कफर भी कभी न ीिं तमु िे
या कफर फू लों ी का ार मंै कोई सशकायत करती ूँ
आि लगाए र ती ूँ नहदया की ननमलच धारा िी
प्रनतपल ब ती र ती ूँ
इिंतज़ार तो ज्यों का त्यों, पर व हदन भी ै र्लता बनता वषों की िेवा का बोलो ककतना ह िाब ै बनता
कोई और समली ोती तो तुमको खबू पता र्लता | कोई और समली ोती तो तमु को खबू पता र्लता |

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ववमशच

रामायण की एक म त्त्वपूणच िीख -दरू दसशतच ा

प्रेरणा समत्तल
ह दंि ी अध्यावपका, सिगंि ापुर

रामायण का र ककस्िा एक प्रेरणास्रोत ै। य एक ऐिा
झरना ै जो अनतंि काल िे ननरिंतर ब र ा ै और जो
कोई भी इिके िम्पकच मंे आता ै व इिकी शीतलता िे
ओतप्रोत ो जाता ै। लाखों वषों बाद भी रामायण िे
जड़ु ी प्रत्येक क ानी आज भी पूणतच या प्रािंिधगक ै। रावण
के जन्म की एक कथा ै जो कक दरू दसशतच ा की अद्भुत
समिाल ै। य में सिखाती ै कक अिम्भव कु छ भी
न ीिं। रावण के नाना अिुरराज िमु ाली ने अिुर कु ल में
एक ऐिी िंति ान का िपना देखा था जो अजेय ो तथा
स्जिके कारण एक अपराजेय अिुर िाम्राज्य की स्थापना

ो िके । िुमाली को भली-भाँनत ज्ञात था कक ज ाँ एक
ओर अिरु ों में शारीररक बल कू ट-कू टकर भरा ै व ींि ऋवष
-मनु न ज्ञान का अथा भण्डार ैं। इिसलए उन् ोंने अिरु
वशिं के उद्धार के सलए एक योजना बनाई और इि
योजना को कायाचस्न्वत करने के सलए उन् ोंने अपनी पतु ्री

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ववमशच

कै किी को अस्त्र बनाया। उन् ींि की दरू दसशतच ा का और ववश्रवा ऋवष िे वववा कर उनकी र्ार िितं ानों
पररणाम था कक अिुर कु ल की कायापलट ो गई रावण, कु म्भकरण, ववभीषण व िूपणखच ा को जन्म
और उिमें रावण जैिे र्ारों वेदों के ज्ञाता व प्रकाण्ड हदया।
पंडि डत का जन्म ुआ।
ववश्रवा ऋवष की पवू च पत्नी अपने पुत्र कु बेर को
उि काल में ववश्रवा ऋवष जो ब्रह्माजी के मानि लेकर आश्रम छोड़कर र्ली गई। आगे र्लकर
पतु ्र पलु त्स्य के बेटे थे, ने काफी तपोबल एकत्रत्रत ननष्ठु र-नशृ ंिि रावण ने अपने िौतेले भाई व धन के
कर सलया था। उनकी ख्यानत दरू -दरू तक फै ल र्कु ी देवता कु बेर िे न सिफ़च िोने की लिंका और उिका
थी। िमु ाली ने अपनी पतु ्री कै किी िे अनरु ोध ककया िाम्राज्य छीना बस्ल्क व पुष्पक ववमान भी छीन
कक व इि कायच मंे उनकी ि ायता करे। कै किी सलया जो के वल मन की गनत िे र्लता था। बाद में
राजकु मारी थी। व वन के कठोर जीवन िे भयभीत उिी ववमान मंे व िीता का अप रण करके उन् ें
थी। िमु ाली ने क ा बेटी अिरु कु ल का अस्स्तत्व लिंका लाया। रावण को मारने के बाद राम उिी
अब तुम् ारे ाथ मंे ै। तुम ववश्रवा ऋवष को प्रिन्न पुष्पक ववमान मंे अयोध्या लौटे थ।े
कर उनिे वववा करो। अिरु ों के पाि बल ै परन्तु
ज्ञान न ींि तथा ऋवष िमदु ाय मंे ज्ञान ै परन्तु बल िुमाली की दरू दसशतच ा का पररणाम य ुआ कक
न ीिं अतः दोनों गुणों का िंगि म अननवायच ै। कै किी उनकी मनोकामना दगु ना-र्ौगुना बढ़कर फलीभूत
ने रािि जानत के उद्धार के सलए उनकी य बात ुई। रावण अनत र्तरु , प्रनतभाशाली, तपस्वी,
मान ली। व ववश्रवा ऋवष के आश्रम के पाि ी शस्क्तशाली तो ो गया परन्तु अ ंिकार व माता
द्वारा सिखाई गईं राििी प्रववृ त्तयों के कारण भयिंकर
र ने लगी। अत्यार्ारी बना। उिने िारे देवताओिं को अपना दाि
उनके आने-जाने बना सलया। मानवों व ऋवषयों का जीना दभू र कर
का मागच स्वच्छ हदया और स्वयंि को ईश्वर िमझने लगा। व पथृ ्वी
करती। र प्रकार पर बोझ बन गया र्ारों तरफ ा ाकार मर् गया|
िे उनकी िवे ा फलस्वरूप उिका ववनाश करने के सलए रर को
करने लगी। एक स्वयिं इि धरती पर मानव रूप मंे अवतररत ोना
हदन अविर पड़ा। रावण में िारी राििी प्रववृ त्तयाँ ोने के
जानकर उिने बावज़दू भी लक्ष्मण को उिके र्रणों मंे बैठकर
वववा का उििे सशिा लेनी पड़ी और आज भी भारत के कु छ
अनरु ोध ककया स्थानों पर रावण की पजू ा की जाती ै।

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ववमशच

यहाँा पर राधशे ्याम रामायण की इन पकं्तियााँ का स्मरण हो आया:

जय-वर्जय,िाप से भगृ ुिुयन के ,त्रते ा िें यनश्चर
वर्कट हु ए |

दिकन्धर,कु म्भकरण बनकर,पथृ ्र्ी पर र्े ही
प्रकट हु ए ||

इन दोनों िें, अत्यतं क्रू र, वर्ख्यात बली
दिकन्धर था |

जजसके भुजदण्डों के बल से, थराकता सकल
चराचर था ||

यि,अजनन,पर्न,जल,सूय,क चन्र,सब उसकी सेर्ा
करते थे |

हदक्पाल, सुरेि, कु बरे , र्रुण, उसके प्रताप से
डरते थे ||

जग की छाती पर, सोने की लंका िें यनश्चर
रहता था |

हररनाि न लेने देता था, जगदीश्र्र बनकर
रहता था ||

आतकं यहाँा तक था उसका,चुपचाप कष्ट जग
सहता था |

िालाएँा जहााँ यज्ञ की थीं ,ऋवष-रक्त र्हााँ पर
बहता था ||

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स्क्वज़

आप रािायण के बारे िें ककतना जानते हैं

१ रािायण की रचना ककसने की? ६ सीता लंका िें ककस उपर्न िंे बंदी थीं?
a) वदे व्याि
b) वाल्मीकक a) परंि ्वटी
c) नारद b) दंिडकवन
d) श्रीगणशे c) अशोकवन
d) धर्त्रकू ट
२ रािायण िंे ककतने खंड हैं?
a) ७ ७ वर्श्र्ाशित्र ने राि को साथ ले जाने की बात क्यों की?
b) ५
c) ८ a) ताड़का वध के सलए
d) १० b) िुरिा वध के सलए
३ र्तिक ान रािायण िें ककतने श्लोक हंै? c) रावण को परास्जत करने के सलए
d) पत्थर िे तलवार ननकालने के सलए
a) १२०००
b) २५००० ८ सीता ककसकी अर्तार थीं?
c) २४०००
d) २५०० a) दगु ाच
b) लक्ष्मी
४ र्ाल्िीकक को नके कायक के शलए ककसने बदला? c) काली
d) पावतच ी
a) राम
b) नमु ान ९ िेघनाथ की पत्नी का नाि क्या था?
c) नारद
d) ववश्वासमत्र a) मंदि ोदरी
b) िपू नच खा
५ सीता के सम्िुख कौन हहरन के र्षे िंे आया? c) उसमलच ा
d) श्रुनतकीनतच
a) रावण
b) ताड़का १० रािायण की रचना ककस युग िें हुई?
c) िुबा ु
d) मारीर् a) ितयुग
b) द्वापर
c) त्रेता
d) कलयगु

(उत्तर इिी अकंि मंे क ी)िं
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काव्य-रि

एक स्र्प्न आाखँ ों िे पलता रहना चाहहए

एक स्वप्न आखँ ों मे पलता र ना िे भर लो इन् े
र्ाह ए इि तपती दपु री में, र गागर

धीरे धीरे ी ि ी, काम र्लता र ना छलकता र ना र्ाह ए
र्ाह ए
कभी जीत कभी ार, एक र्क्र िा गौरव उपाध्याय
कु छ पत्थरों िे दोस्ती, कु छ काटँ ों िे र्लता र ेगा डडस्जटल डटे ा स्रेटजी
हदल्लगी ो प्रोफ़े शनल, सिगंि ापुर
ौिले भरकर हृदय मंे, जीवन र्क्र
डगर कहठन ो तो ो ि ी,रास्ता र्लता र ना र्ाह ए
ननकलता र ना र्ाह ए
स्जििे समलो ऐिे समलो, जिै े वप्रयतम
र्ाँद की परछाई को, नदी अपना क े िे समलते ो प्रीत िंगि
या ना क े
ाथ जड़ु े ों , िर झकु ा ो, आभार
पवतच ों िे ननकल कर, झरना ब ता ननकलता र ना र्ाह ए
र ना र्ाह ए
िफ़र मे नये लोग समलेंगे, और कु छ
अपनों िे जो रूठ कर, तन् ा िफ़र पर छू ट जाएगँ े पुराने
र्ल पड़े
कु छ म ीने ी ो बिितं , मौिम
छू टता िा ो श र अगर, गाँव हदखता बदलता र ना र्ाह ए
र ना र्ाह ए
एक स्वप्न आखँ ों मे पलता र ना
पषु ्प बागों िे ो ओझल, और र्ाह ए
नततसलयाँ बेर्नै ों
धीरे धीरे ी ि ी, काम र्लता र ना
िूखी धरा पर दो बँूद ी, िावन र्ाह ए
बरिता र ना र्ाह ए

पानी अगर कम ो ज़रा भी,तो उम्मीद

जनवरी-मार्च २०१८ ◦ सिगिं ापरु िगंि म ◦ www.singaporesangam.com ◦ 32

अपनी बात

ध्रुर्, तुि कहााँ से हो?

ध्रवु बत्रा
(छात्र-यूननवसिटच ी ऑफ ांिगकांिग)

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अपनी बात

मरे ा के वल इक्कीि वषच का जीवन मुझे कई सभन्न मोड़ों रणवीर कपरू की प्रसिद्ध र्ल-धर्त्र ‘य जवानी ै
पर ले कर आया ै स्जिके कारण मेरा सिफ़च एक न ींि, दीवानी’ अभी बनी न ींि थी, मेरे मन मंे कु छ ऐिे ी
ववर्ार र्ल र े थे कक “तरे े सलए ी तो सिग्नल तोड़-ताड़
बस्ल्क मरे े इि ववश्व मंे तीन घर ंै – ह दंि सु ्तान के , आया हदल्ली वाली गलिच ंे ड छोड़-छाड़ के ।”1
(गुरुग्राम), सिगिं ापरु और ोंग कोंग। ालाँकक मनैं े अपने इि बात को ध्यान में रखते ुए कक मनैं े भारत में
जीवन का िबिे बड़ा भाग गरु ुग्राम मंे त्रबताया ै, मेरा पन्ि , और सिगंि ापुर और ोंग कोंग में के वल ढाई-ढाई
य मानना ै कक ह दंि सु ्तान और व ाँ के लोगों िे मेरा वषच त्रबताए ंै, य बोलना कक मंै ह न्दसु ्तानी ूँ,
“कनके ्शन” कु छ ढीला ो गया ै। और जो सिगिं ापुर और त्रबलकु ल ि ी ोगा। ककन्तु परन्त,ु मेरा य मानना ै
कक करीब पन्ि -िोल वषच की उम्र के आि-पाि, बच्र्ा
ोंग कोंग मंे िमय त्रबताया ै, उनके दौरान खदु को
सिगिं ापुर या ोंग कोंग के लोगों िे जड़ु ने के सलए मैं घर िे अके ले बा र ननकलना शुरू करता ै, दोस्तों के
ब ुत कम मानता ूँ। तो अब मेरी स्ज़न्दगी का िबिे िाथ घमू ना-कफरना शुरू करता ै, कु छ नादाननयाँ और
कहठन प्रश्न य बन जाता ै, कक “ध्रवु भाई, तमु ो कु छ शरारतंे करता ै, और इिी बीर्, अपने श र और
क ाँ िे?” इि नन ायत गंभि ीर प्रश्न का उधर्त उत्तर श र के लोगों िे जड़ु जाता ै। ये कु छ रर्नात्मक वषच
मनंै े गरु ुग्राम मंे न ीिं, बस्ल्क सिगिं ापुर मंे त्रबताए। तो य ाँ
जानने िे प ले, आपका इि गभंि ीर स्स्थनत को ि ी ढिंग िे मेरी प र्ान का य िकंि टकाल शुरू ोता ै।

िे िमझना ब ुत ज़रूरी ै।

इि क ानी की शरु ुआत ोती ै िन २०१२ में, जब मंै
के वल पन्ि वषच का ँिता-खेलता, दधू पीता
बच्र्ा था। यँू ी एक हदन मेरे वपताजी, स्जनको मैं
प्यार िे पापा बलु ाता ूँ, मझु िे आकर बोले, “बेटा,
अगर यूँ ी मै तुमको बोलँू कक अपना िामान बाधँ
लो, क्योंकक म सिगिं ापरु जाने की िोर् र े ैं, तो
तुम् ंे कै िा लगेगा?” तो यूँ ी मनंै े भी पापा िे क
हदया, “मुझे लगता ै य तो ब ुत ी बहढ़या

ोगा। स्ज़न्दगी कु छ हदलर्स्प ो जाएगी। और
र ी बात मरे े दोस्त और अनेक दोस्स्तयों की, तो
मंै हदल पर पत्थर रख के , उनको पीछे छोड़ दँगू ा,
और नए ररश्ते जोड़ लँगू ा।” ालाकँ क २०१२ में

1 ककस्मत ने खले कु छ ऐिा खले ा था कक हदल्ली वाली गलिच ें ड िे मुझे प्यार ो गया और य गाना गाने के सलए मुझे पािरं ् वषच इिंतज़ार करना पड़ा। आज 34
-कल, य मेरा िबिे मनपिंदि गीत ै।

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अपनी बात

सिगिं ापुर प ुँर्ते ी, भारत मंे एक नया नारा क्योंकक ववद्यालय में ह दिं ी भी बोलने और िनु ने को
प्रसिद्ध ुआ, “पढ़ेगा इंिडडया, तभी तो बढ़ेगा समल जाती थी, लोग भी अपने जिै े थे, लेककन
इंिडडया”। तो मरे े देशभक्त माता-वपता ने िोर्ा, कक गरु ुग्राम के लोगों िे ब ुत अलग। तो, अपने माता-
वपता के िाथ घर में र ते, और एक ह न्दसु ्तानी-
मारा िपु तु ्र, िबिे बहढ़या ववद्यालय मंे पढ़ेगा। अतिं राचष्रीय ववद्यालय मंे पढ़त,े मैं गुरुग्राम िे अलग
काफी खोज-बीन के बाद, मेरा दाखखला ‘एन-पी-एि तो ो गया, लेककन ह दंि सु ्तान िे जड़ु ा र ा। “नए
इंिटरनशे नल’ में ककया गया। ‘एन-पी-एि इंिटरनशे नल’ दोस्तों के िाथ 'ऐवंेयी ऐवंेयी लटु गया’ पर कई बार
भी एक ववधर्त्र प्रकार का अतिं राचष्रीय ववद्यालय ै नार्ा2, लेककन गुरुग्राम की ‘गोल्फ कोि’च िड़क को
ज ाँ अधधकािशं ववद्याथी तथा अध्यापकगण टापने में खझझकने लगा।”
ह न्दसु ्तानी ंै। इि बात का मझु े िुख तो ब ुत था,
क्या मंै सिगंि ापरु का नागररक बनने लगा? शायद
कु छ आदतंे मनैं े अपनानी शुरू कर दी थी, लेककन मैं
कफर भी सिगिं ापरु का न ीिं ुआ।
क्या मैं ह न्दसु ्तानी न ींि र ा? शायद कु छ आदतंे
मनंै े छोड़नी शुरू कर दी थी, लेककन मैं कफर भी,
ह न्दसु ्तानी ी था।
उिके बाद क्या ुआ? ोंग कोंग ववश्वववद्यालय में
मरे ा दाखखला ुआ तो मैं ननकल पड़ा ‘िाई नयगिं
पनु ’ में अपने जीवन के अगले पड़ाव के सलए।

ोंग कोंग प ुँर् कर मामला थोड़ा और गभंि ीर ोने
लगा। मरे ी मुलाकात कफर िे ुई ह न्दसु ्तानी लोगों
ि,े स्जनिे अब मैं कई तरीकों मंे अलग था। ज़रूर
सिगिं ापुर िे आए छात्रों को मरे ी क ानी थोड़ी
हदलर्स्प लगी, लेककन मंै उनकी टोली में भी न
घलु पाया। तो मनंै े खदु को िमझन,े जानने और
अपनी प र्ान बनाने की प्रकक्रया र्ालू की लेककन
कफल ाल इिका कोई ननष्कषच न ींि ननकला ै।

2 इि गीत पर म बच्र्ों ने पारिं ् बार, एक ी नृत्य का पािरं ् अलग-अलग दशकच ों के िामने प्रदशनच ककया। मुझे आज भी व नृत्य याद ै।
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अपनी बात

इि बीर् मनंै े र्ीनी िसंि ्कृ नत और भाषा भी िीखनी बात िुनने को समले तो वे घबरा जाते ैं। ाल ी
शुरू कर दी और खदु के सलए एक र्ीनी नाम3 भी मंे मनंै े थोड़ी और यसु ्क्त लगाई और अपने
ढूँढ सलया। तो कु छ लोगों ने क ा कक मैं ि पाहठयों को य बताना शुरू ककया कक अगर
“अतंि राषच ्रीय नागररक” बन गया ूँ, और य िनु ने ववश्व में मलेसशया के इलावा कोई और ‘ट्रूली
में मुझको ब ुत अच्छा लगता ै, लेककन मझु े इि एसशया’ का शीषकच लेने के योग्य ै तो व मैं ूँ।
तकच िे पूणच ितंि ुस्ष्ट न ीिं समली। इिी उलझन की
अवधध मंे, मरे े ववश्वववद्यालय को ऐिा लगा, कक िमस्या तो य गंिभीर ै। या शायद न ीि।ं क्या
अगर मंै आधा वषच इटली में पढूँगा तो मेरी सशिा एक देश या देश के लोगों िे जुड़ी ुई प र्ान ोना
और भी िमदृ ्ध ो जाएगी। अननवायच ै? क्या मैं मंै न ींि ो िकता? ऐिे कई
प्रश्न मेरे मन मंे घमू र े ैं, और कई मझु िे पछू े
२०१८ में मनंै े एक बार कफर अपना िामान बाधँ ा गए ंै। इनका ि ी उत्तर मरे े पाि न ींि ै लेककन
और मैं इटली के सलए र्ल पड़ा। अब मंै ‘समलान’ मैं बेशक इनकी तलाश का आनिदं ले र ा ूँ।
श र के ‘पोता-च रोमाना’ इलाके में बैठा अपने ववर्ार
सलख र ा ूँ क्योंकक य ाँ तो पानी सिर िे ऊपर
र्ला गया ै। अब प ली मुलाकात में अगर ककिी
को “सिगंि ापुर मंे र ने वाला, ोंग कोंग में पढ़ने
वाला ह न्दसु ्तानी, अब आपके श र में भी!” जैिी

3 मरे े र्ीनी समत्र मुझे अक्िर 杜甫 (दु फु ) बुलाते ैं जो िन ७५० के एक प्रसिद्ध कवव का नाम था।
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क्रीमी कॉनच खीर

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व्यजंि न

अरुणा सििं चार लोगों के शलए
ह न्दी अध्यावपका (सिगंि ापुर)
बनाने िंे लगने र्ाला सिय:

२०समनट

सािग्री:

१ लीटर फु ल क्रीम दधू
१ कप ताजे मकई के किे ुए दाने
र्ीनी स्वादानिु ार
िजाने के सलए ६ िे ८ वपस्ते छोटे-छोटे टु कड़ों मंे कटे ुए
ताजे गलु ाब की पंिखडु ड़याँ

वर्चध:

एक लीटर दधू को भारी तले के बतनच मंे गमच ोने के सलए रख दंे।
जब दधू थोड़ा गाढ़ा ोने लगे तो उिमंे एक कप किे ुए ताजे
मकई के दाने डाल दंे तथा उिे गाढ़ा ोने तक पकाएँ। दधू को बीर्-
बीर् मंे र्लाते र ें स्जििे कक दधू बतनच के पदैं े में न धर्पके । गाढ़ा

ो जाने पर उिमंे स्वादानुिार र्ीनी डाल लंे। ध्यान रखें ताजे मकई
के दाने मीठे ोते ैं। र्ीनी डालने के बाद बतनच को आग िे उतार

लंे तथा ककिी बतनच में पलटकर िीज मंे रख दंे। ठिं डा ोने पर
कटा वपस्ता व ताजे गलु ाब की पखंि डु ड़यों िे िजाकर परोिं।े

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ह दंि ी के वा क

वन रिा – जीवन िुरिा प्रके त कनौस्जया

र्कृ ्ष धरा का भूषण, करते दरू प्रदषू ण। (छात्र-ग्लोबल इस्न्डयन स्कू ल,
सिगंि ापरु )
बर्पन िे मनषु ्य को य ी सिखाया जाता ै स्जििे कक व इि
की उपयोधगता को िमझ िके । प्रार्ीन काल िे ी वनों का
म त्त्व देखा जा र ा ै। वनों मंे र कर मनषु ्य ने पेड़ों िे फल के
रूप में भोजन प्राप्त ककया, इिकी लकड़ी िे अस्त्र-शस्त्र बनाए
और खते ी–बाड़ी िीखी। ऋवष-मुननयों ने वनों में र कर ज्ञान प्राप्त
ककया। उन् ोंने वनों में गुरुकु ल बनाया और अपने सशष्यों को व ींि
पढ़ाया ताकक सशष्य वनों के म त्त्व को जान िकंे । विृ ों के पत्तों
पर ी मारे ग्रिंथों की पांिडु सलवपयाँ भी सलखी समलती ैं।

वनों िे इन्िान को ब ुत िारी र्ीज़ंे समलती ंै। जीवन के सलए
आवश्यक मलू भूत तत्त्व जिै े वा, भोजन और वस्त्र, में विृ ों िे

ी प्राप्त ोते ैं। विृ ों िे मंे ऑक्िीजन समलती ै जो जीवन के
सलए ब ुत आवश्यक ै। इनिे मारे वातावरण में प्रदषू ण कम

ोता ै और ग्लोबल वासमगिं जैिी िमस्या िे भी ननज़ात समल
िकती ै। पेड़ों िे लकड़ी समलती ै जो ईंधन के रूप में प्रयोग

ोती ै, िाथ ी िाथ घर बनाने और फनीर्र आहद के सलए भी
इि लकड़ी का इस्तमे ाल ोता ै। पेड़ों की पवत्तयों, जड़ों और छाल
िे ववसभन्न प्रकार की औषधधयाँ बनाई जाती ैं जो में बीमाररयों
िे छु टकारा हदलाती ंै। पड़े ों और वनों द्वारा जानवरों और पक्षियों
को र ने के सलए स्थान समलता ै िाथ ी म िब को भोजन
भी समलता ैं। वन वषाच-र्क्र मंे म त्त्वपूणच भूसमका ननभाते ंै। पेड़ों
की जड़ें समर्टटी को बािधं े रखती ंै स्जििे भू-िरण भी रुकता ै।

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ह दिं ी के वा क

आधनु नक िमय मंे पड़े ों की कटाई ब ुत ी आम बात बन गई ै।
जागरूक नागररकों और स्वयिंिवे ी िंगि ठनों के अथक प्रयािों िे
मानसिकता में कु छ बदलाव आया ै
परन्तु अभी भी िमस्या िलु झी न ीिं

ै। अगर वनों की िरु िा पर ध्यान
न हदया गया तो भववष्य में में
काफ़ी परेशाननयों का िामना करना
पड़ िकता ै। इिके सलए िरकार
को िमय-िमय पर विृ ारोपण
कायकच ्रमों का आयोजन करना
र्ाह ए और ववद्यालयों में
ववद्याधथयच ों को पड़े ों के म त्त्व पर
सशिा देनी र्ाह ए। िरकारें य भी
कोसशश कर र ी ैं कक वनों की
कटाई पर पाबन्दी लगाई जाए।

आशा ै कक आप िब लोग अधधक िे अधधक पड़े लगाएँगे क्योंकक जब
एक व्यस्क्त पेड़ लगाकर कदम बढ़ाता ै तो दि और लोग कदम
बढ़ाते ंै। अगर म वनों की रिा करंेगे तो मारा जीवन भी िरु क्षित

ोगा। इि प्रकार म धरती के प्रनत अपनी कृ तज्ञता भी व्यक्त कर
िकते ैं।
धरती करती यही पकु ार, र्कृ ्ष लगाकर करो श्गंृ ार।

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ह दिं ी के वा क

मेरी असभलाषा!

छोटी िी उम्र में क्या ोगी मरे ी असभलाषा?
अभी तो पनप र ी ै मेरी िोर् और मेरी भाषा,

क्या र्ा िकता ूँ मैं जो परू ा ो जाये?
कु छ भला औरों का ो और मेरा मन भी भर जाए|

बैठा ूँ ले कर कलम ककताब सलखने अपने िाथकच गपु ्ता
िपने
(छात्र-एन पी एि इंिटरनशे नल स्कू ल,
प ले ख्याल के िाथ कु छ ख़याली पलु ाव लगे सिगंि ापरु )
पकने

पेड़ पर लगी ो समठाइयाँ और नहदयों में ो
जिू

नंबि र आये शत प्रतीशत कोई मास्टर न समले
खड़ू ि|

शखे धर्ल्ली को भी दँ ू मात, ऐिी थी मरे ी
असभलाषा

आखँ मँदू कर जब इि िपने को मनैं े थोड़ा और
तराशा|

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ह दंि ी के वा क

य िब तो दनु नया दारी ै, मलू ्यवादी न खौफ़ ो ककिी आक्रमण का, न आतकंि वाद
डराए
ववर्ार
न मडंि राते ो म िब के िर पर यदु ्ध के
आज ै, ककन्तु कल न ीिं य माया का िाये

जंिजाल भाई र्ारा ो कण-कण में, िब हदलों मंे बि ो
प्यार
जानवर न ींि ूँ म,ंै जो रखँू स्वाथी
ऐिा ो तो ो जाये पल भर मंे मरे ी असभलाषा
ववर्ार िाकार|

मानव ूँ तो मानवता का करना ै मझु े कफर िोर्ा, कवव बन जाऊ, शब्दों िे करू
प्रर्ार
उद्धार|
िैननक िे क ींि कम न ी,िं एक कवव की कलम का
याद आये वो िैननक जो रिा करते ै वार
मारी
अपनी कववताओिं िे लगाऊँ भाईर्ारे की
पररवार को अपने छोड़ कर करते ैं युद्ध की गु ार
तैयारी
बंदि करो ननरथकच लड़ाई और व्यथच
िैननक बन जाऊँ तो कर िकता ूँ देश का अत्यार्ार|
उद्धार
कववता के माध्यम िे पूरी करूँ गा मंै अपनी
तभी कर िकता ूँ मंै अपनी असभलाषा को असभलाषा
िाकार|
ववर्ार ी मेरे शस्त्र ोंगे और, औज़ार ोगी मेरी
कफर िोर्ा, क्या देश के सलए जान देना ी ै मात्र भाषा
िमाधान
सलखने लगा अपनी कववता हदल को अपने खोल
और रूपों मंे भी कर िकता ूँ मंै कु छ र्लने लगा कलम कागज़ पर, उमड़ने लगे बोल।
योगदान|

कै िा ो अगर दनु नया में न ो कोई
लड़ाई

िीमा पर न कोई िने ा ो, बि िभी ो
भाई-भाई|

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ह दंि ी के वा क

एक छाते की आत्िकथा

अनषु ्का असशगड़च े बादलों के गरजने त्रबजली के जोर िे कड़कने की
(छात्रा- रैफल्ि गल्िच िके ंे डरी स्कू ल, ककच श आवाज़ िे मैं ड़बड़ाकर जाग उठा| मेरी नज़र
िामने की खलु ी खखड़की पर गई| अर्ानक आई
सिगिं ापरु )) घनघोर बाररश ने धरती को पानी िे िराबोर कर हदया
था|

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ह दंि ी के वा क

आमतौर िे बाररश के ऐिे मौिम मंे मंै भी बाररश क ाननयाँ िुनींि|
की फु ारों का भरपूर आनंिद लेता परन्तु दभु ाचग्यवश
आज मंै अके ले इि कमरे में बिंद पड़ा ूँ| मेरी इि वास्तव मंे मारे पूवजच ों का जन्म ज़ारों वषच पवू च
दयनीय स्स्थनत का कारण मेरा बढ़ु ापा और मरे ा र्ीन में ुआ था| प्रार्ीन काल िे ी अनेक देशों की
कमजोर शरीर ै| इि कारण आज कोई मेरा िाथ राननयाँ मारा उपयोग करती थीि|ं धर्लधर्लाती धपू
न ीिं र्ा ता ै|
ो या तजे बाररश म कभी भी उनका िाथ न ीिं
आज भी मुझे व हदन याद ै स्जि हदन मरे ा छोड़ते थ|े देखते ी देखते म उनकी जीवन शलै ी
जन्म ुआ था| मनैं े अपने आप को एक बड़े िे का अटू ट ह स्िा बन गए और में शान का प्रतीक
कारखाने में पाया था| व ाँ मेरे जैिे अनेक िाथी भी माना जाने लगा| मारी उपयोधगता देखकर राजा
थे, ककिी का शरीर मरे े जिै े लो े का था और ककिी म ाराजा भी मारा प्रयोग करने लगे| बड़े िे बड़े
का लकड़ी िे बना था| पलक झपकते ी मंे िमारो में उनके स्वणच रथ पर और युद्ध भूसम में
‘नायलोन’ की र्ादर िे िजाया गया| अपनी अपनी भी म िदैव उनका िाथ देते थ|े अपने बजु गु ों िे
रिंग त्रबरंिगी पोशाकों मंे म बड़े ी आकषकच नज़र िम्बधिं धत य जानकारी प्राप्त कर मरे ा मन गदगद
आ र े थे| व ाँ पर मनैं े अपने बारे में अनके
ो उठा|

इि आधनु नक काल मंे न म ल उिकी नज़र मझु पर पड़ी| उिने की भयिंकर धपू और मूिलाधार
ैं न ी राजा म ाराजा| उि बड़े स्ने िे मझु े उठाया और बाररश िे मंै उिे बर्ाता| मंै
खोला| मरे ी नीली पोशाक देखकर उिका घननष्ठ समत्र था जो
कारखाने िे ननकलकर मनंै े स्वयिं उिके र्े रे पर प्रिन्नता उिका र िमय िाथ देता| एक
को एक दकु ान मंे पाया| अपने झलकने लगी और देखते-देखते हदन अपने कु छ शरारती समत्रों िे
कई नए िाधथयों के िाथ इि उिने मझु े खरीद सलया| उिकी लड़ाई ो गयी और व
जग को िमझने की कोसशश गुस्िे िे मरे ा उपयोग करके
करता| य ाँ की जीवन शलै ी कु छ उि हदन मरे ी खशु ी का हठकाना अपने समत्रों पर आक्रमण करने
अलग थी| प्रनतहदन अनेक छोटे न ींि र ा| मेरा नया घर ब ुत ी लगा| इि लड़ाई मंे मैं ज़ख्मी
बड़े लोग इि दकु ान मंे आते िंुदि र था| मरे ा नया िाथी मेरा ुआ| कु छ िमय पश्र्ात बच्र्ों
और अपनी मनपििंद वस्तु बड़ा ी ध्यान रखता था| व की लड़ाई तो िमाप्त ो गई
खरीदकर ले जाते| एक हदन एक मुझे रोज अपने बस्ते मंे रखकर परन्तु मझु े ब ुत र्ोटें आईं और
बालक इि दकु ान मंे आया और अपने स्कू ल ले जाता| गसमयच ों

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ह दंि ी के वा क

मैं टू ट गया | मरे ी इि ददु चशा में, मरे े समत्र ने मरे ा िाथ छोड़ हदया और मुझे एक कोने मंे पटक हदया |
मंै अपनी दशा के बार मंे िोर् ी र ा था कक अर्ानक ककिी ने मुझे उठाया और थलै े में रखकर एक दकु ान में
ले गया| व ाँ मेरी मरम्मत शरु ू ुई| इतना िब कु छ ोने के बाद मेरे मन मंे आशा की एक ककरण जाग उठी
कक मंै शीघ्र ी स्वस्थ ो जाऊँ गा और एक उपयोगी िाथी िात्रबत ोऊँ गा|

उत्तर – र्गपक हेली

Across Down
2. िूयच - छठपूजा 1. रावण - दश रा
4. डािंडडया - नवरात्रत्र 3. कौआ - वपतपृ ि
6. र्ाँद - करवार्ौथ 4. दधू - नाग पंरि ्मी
7. पीला रिंग - बिंित परिं ्मी 5. रंिग - ोली
9. दीया - हदवाली 8. भाई-ब न - रिाबधंि न

उत्तर-रािायण जक्र्ज़ ६. e) अशोकवन
७. a) ताड़का वध के सलए
१. b) वाल्मीकक ८. b) लक्ष्मी
२. a) ७ ९. d) श्रुनतकीनतच
३. c) २४००० १०. c) त्रते ा
४. c) नारद
५. d) मारीर्

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व्याकरण

िुहार्रे/लोकोजक्तयाँा

1. य लड़का र्ा े िौ बार माफ़ी माँग ले, परन्तु िुधरेगा न ीिं। कभी ----------------------------------------
-------- िीधी ोती ै।
2. अरे भैया, प ले मझु े खाना खा लेने दो, मरे े ------------------------------------------------ र े ैं।
3. राघव अपनी माँ को अके ला पाकर खबू तिंग करता ै, लेककन वपताजी आए न ीिं कक --------------------
---------------------------- जाता ै।
4. आजकल िाध-ु म ात्माओंि के इतने मामले िामने आ र े ंै कक लगता ै िब के िब -----------------
------------------------------- ैं।
5. पुसलि ने प्रदशनच काररयों की भीड़ को नततर-त्रबतर करने के सलए जो भी समला, उिी को पीट हदया। --
---------------------------------------------- गए।
6. आजकल के लोग ------------------------------------------------ में तननक भी िंिकोर् न ींि करत।े
7. म ग़रीबों का ाल तो य ी ै| हदन भर ------------------------------------------------ की तर मे नत
करता ूँ, कफर भी भरपटे खाना न ींि समलता।
8. माता-वपता ने पुत्र को ब ुत िमझाया, पर उिके ------------------------------------------------।
9. तमु क्यों व्यथच मंे------------------------------------------------ ख़दु को परेशानी में डाल र े ो, एक हदन
व ी तमु ् ंे डकिं मार जाएगा।
10. य मत िोर्ो कक कोई तुम् ारी------------------------------------------------ िे डर जाएगा|

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ह दिं ी के वा क

िाता वपता सर्शक ्ेष्ठ अध्यापक होते हैं।

कृ वत्तका नारायण
छात्रा- द चम ववश्वववद्यालय, य.ू के .

पाररवाररक वातावरण बच्र्ों पर ग रा प्रभाव डालता माता-वपता अपने बच्र्ों की भलाई के सलए स्वयिं का
ै। उनका जीवन तराशने में माता वपता का एक ह स्िा बसलदान करने के सलए भी तयै ार र ते ंै
क्योंकक वे में प्यार करते ंै।
म त्वपणू च योगदान ोता ै। पठन-पाठन के िाथ
शारीररक, मानसिक व नैनतक ववकाि को लके र
बच्र्ों पर ध्यान देने की जरूरत ै। पौराखणक ग्रथिं ों
मंे माता-वपता का स्थान ईश्वर की भाँनत पजू नीय ै।
माता-वपता मंे जन्म देने के िाथ-िाथ मारा पालन-
पोषण भी करते ंै। व अपना ििंपणू च जीवन अपनी
िितं ान के उज्जवल भववष्य के सलए िमवपतच कर देते ैं।
व र पररस्स्थनत मंे मारे िाथ खड़े ोते ंै। व तो
िवशच ्रेष्ठ ी न ीिं अवपतु मारे आदशच की तर ैं इिसलए
मैं इि बात िे ि मत ूँ कक माता वपता िवशच ्रेष्ठ
अध्यापक ैं।
जाह र ै, मारे जीवन मंे प्रथम सशिक मारे माता
-वपता ंै। वे मंे "अिली दनु नया" तक प ुँर्ने िे
प ले र्लना, बोलना और अच्छी आदतंे सिखाते ंै।

में ि ी-गलत की प र्ान करवाते ंै।

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ह दंि ी के वा क

वे मारी िफलता की कामना करते ैं और मारी जझू ने की शस्क्त व ि योग देते ंै। वे ममें ननै तक
मलू ्यों का अकंि ु र बोकर अच्छे ििसं ्कार देते ंै। जीवन
अतंि ननहच त सशिा तब ोती ै जब बच्र्े अनजाने की र्नु ौनतयों का डट कर िामना करने का प्रोत्िा न
मंे माता-वपता की आदतों और व्यव ार की शलै ी देते ंै और ि ी मागदच शचन करते ंै। वे में के वल
की कॉपी करते ंै। बच्र्े के सलए उिके माता-वपता पसु ्तकीय ज्ञान ी न ींि अवपतु जीवन जीने की ि ी
कला सिखाते ंै और मंे व्यव ाररक ज्ञान की सशिा
ी िवपच ्रथम मागदच शकच ोते ंै। बच्र्े के ववद्यालय देते ंै। स्जििे म ववद्यालय व िमाज मंे
जाना शरु ू करने के बाद माता-वपता की स्ज़म्मदे ारी िामिजं स्य त्रबठाने तथा अपने आप को उिके अनरु ूप
और भी बढ़ जाती ै। माता-वपता बच्र्े की िमय डालने में ििम ो पाते ंै।
िाररणी, गृ -काय,च खान-पान, प नावे इत्याहद का अतः य क ना अनतशयोस्क्त न ींि ोगी कक जो मनषु ्य
ध्यान ैं। सशिकों को भी बच्र्े के िवांिगीण अपने माता वपता द्वारा हदखाए गए आदशच मागच पर
र्लता ै तथा उन् ें िम्मान देता ै व ननस्श्र्त रूप िे
ववकाि के सलए असभभावकों के ि योग की जीवन मंे जीवन मंे िफलता पाता ै और परमिखु को
प्राप्त करता ै। माता वपता िे बड़ा कोई सशिक न ींि
आवश्यकता ोती ै।
ो िकता।
बाल ववकाि के दिू रे र्रण के दौरान, ककशोरावस्था
में भी माता-वपता िला देने के सलए िबिे अच्छी

स्स्थनत मंे ोते ैं। वे अपने अनभु व िे मंे र स्स्थनत
के सलए जागरुक करते ंै। मंे मारे शारीररक व

मानसिक पररवतनच ों के सलए तयै ार करते ंै तथा उनिे

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िे त

सेहत की बात, दादी-नानी के नुस्ख़े
एलोर्ेरा या घतृ कु िारी

स्जिने भी अपना बर्पन भारत मंे गज़ु ारा ोगा उिने दादी या नानी के मँु िे घतृ कु मारी तेल का स्ज़क्र
अवश्य िनु ा ोगा| य पौधा आधनु नक ोते ज़माने के िाथ कफर मारी र्र्ाच का ववषय ै| आज र जग
एलोवेरा को सभन्न-सभन्न रूपों मंे देखा और पाया जा िकता ै| र्सलए देखते ैं इि थोड़े नकु ीले पौधे के
ककतने िरल और धारदार फ़ायदे ंै|

र्े रे की कास्न्त अगर धसू मल लगने
लगी ो तो घतृ कु मारी का एक टु कड़ा
लीस्जए और उिके गदू े को अपने
र्े रे पर लगाकर छोड़ दीस्जए| आप
ख़दु यकीन न ींि कर पाएँगे कक र्े रे
की न सिफ़च र्मक बढ़ गई ै बस्ल्क
रिंग िमान ोने लग गया ै| दाग-
धब्ब,े झुररचयाँ, आँखों के नीर्े काले घेरे
िब छू -मितं र ोने लगंेगे|

मु ाँिे तो जिै े तरुण अवस्था मंे जान के मके अप लगाए त्रबना आजकल काम ज़रा कम
दशु ्मन के रूप में नज़र आते ंै तो इन र्लता ै पर कई बार मके अप उतारने के
मु ािँ ों िे ननजात पाने का िरल िा उपाय बाद र्े रे में अजीब िा िूखापन आ जाता ै
तो उिके सलए भी रामबाण उपाय ै
ै| मु ाँिों पर घतृ कु मारी के गूदे को घतृ कु मारी का गूदा|
लगाकर छोड़ दीस्जए बाकी काम तो य
पौधा ख़दु ी कर लेगा|

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