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Published by bhaskarpandey.p, 2019-11-10 12:14:58

Poem

Poem

ह्रदय स्पंदन

एक जीवन यात्रा.........

जीवन


वो ज़िन्दगी क्या, जो जन्म और मृत्यु मंे ही ज़िमटी हुई,
जो गोद िे प्रारम्भ होकर कफ़न मंे ज़िपटी हुई,
ये तो बि एक पत्थर िा जीवन हो गया,
ज़जिको कभी ज़किी मूज़तिकार ने तराशा नही,ं
िंघर्ि की छीनी चिी नही ं ज़जि जीवन में,
वह जीवन तो मृत िामान ही जीवन है।

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द्वन्द जरूरी है



अपने भीतर एक द्वन्द जरूरी है,
खुद िे भी करना बात जरूरी है,

उि शख्ि को भी देखखये जो,
भीतर ही भीतर कु ढ़ रहा,
ख़तम होजाये शख्ि वो,
उििे पहिे बात कररये,
द्वन्द होजाये तो कररये,
पर बात को न बंद कररये,
ज़िंदा रखें उि शख्ि को,
वही शखख्ियत है आपकी।

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इंिान का चेहरा



इंिान का चेहरा ज़दखा िके ,
आईने की औकात क्या,

वो भी िोचता है कौन िा चेहरा ज़दखाऊं ,
उिे भी तो गुस्से िे तोड़े जाने का डर िगता है,
वो चेहरा जो भयानक है ज़किी ने है नही ं देखा,

उिका पता तो बि,
िोगों की ज़ििज़कयों िे िगता है।
वो चेहरा जो मुस्कु रा के िबिे ज़मिता है,,
उिकी अिज़ियत तो, अँधा भी पहचान जाता है।

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िंघर्ि



माना की मंै हार गया रण मंे,
पर मन िे अभी नही ं हरा हँ,

पंख हुए हैं दुबिि मेरे , पर
उड़ने का िाहि छिक रहा है,

िूयि हुआ चाहे प्रबि,
अब भी मेरी निरें उिपर टीकी हुई हंै,

िड़ते िड़ते चढ़ गयी हैं िांिें,
बाजु भी अब भरी हैं,

िंघर्ि मेरा अब छिक रहा है,
रक्त वाहज़नयों िे ज़नकि,
पर प्याि अभी भी बाज़क है,

ज़वस्तार हो आकाश का,
या गहराइयाँ िागर की हो,ं
तज़पश हो िूरज की चाहे,

ज़िन्दगी की धूप हो,
क्या िोचते है ये िभी की ज़िंदा हँ,

मंै इनके रहमो करम पर?
मनोबि की प्रतायंचा पर िाध खुद को,

ज़िर िडू ंगा, जब तक हैं प्राण,
तब तक मैं रण करंूगा।

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जीवन का ज़ििि एक पि .........
धन्यवाद!


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