“ ईश्वर @ कोमल मसु ्कान “
आज से पहले
तुम्हंे कभी मंनै े
ईश्वर माना हीं नहीं |
बड़ों के लाख
बताने पर भी
अभी तक तमु ्हें
उस रूप में
जाना ही नहीं |
हा,ँा पर इतना
जरूर है कक,
मंकिरों और गिरजा घरों की
घंटियों में,
मलु ्लाओं की
सबु ह सुबह
िला फाड़ कर तमु ्हंे
नींि से जिाने की
गिगियों म,ंे
तुम्हारे गिपे होने की
आशंका स,े
जरूर मंै
आतंककत हो जाता हाँ |
मैं आतकं कत
हो जाता ह,ाँ
उसस के मले े में
तमु ्हंे चािर ओढ़ा
िम घोंिते
लककरी फकीरों के
हरकतों से |
उन पगं ितों से
हाथ िोना
जरूरी नहीं समझा जाता |
और तुम सज भी लते े हो
बड़े चाि स,े
फल चाहे
ककसी भी जात के
बािीचे का हो,
तमु हसं के
सज लते े हो |
तमु तो
सििै मरे े साथ रहे
स्कल के असेबं ली म,ें
प्राथनस ा या लचं ब्रेक में
खो खो खले ने के िौरान,
मुझे अजसनु बना
चारों ओर
अपना स्िरूप को
मेरे िोस्तों में िौड़ाते |
तुम गमलते हो मुझे अक्सर,
नन्हीं झागड़यों के
िागलयों पे झलत,े
गजन्हंे लघशु कं ा गनिारण
के िौरान
िखे ा करता हँा मंै
कौतहल िश
पगियों मंे िु प के
गततगलयों से करते बातें |
पर हा,ं
इतना जरूर है कक
फलों की िगलया या िोपी पहन,