The words you are searching are inside this book. To get more targeted content, please make full-text search by clicking here.

सत्र २०१ ९ - २० के लिए केन्द्रीय विद्यालय बालीगंज ई-पत्रिका

Discover the best professional documents and content resources in AnyFlip Document Base.
Search
Published by ballygungekv, 2019-10-06 03:36:25

KV Ballygunge ePatrika 2019-20

सत्र २०१ ९ - २० के लिए केन्द्रीय विद्यालय बालीगंज ई-पत्रिका

आमकु ्त का सॊदेश

श्री संतोष कु मार मल्ल

प्रिय साप्रियों ,

आप सभी के सतत ियासों से स्कू ली प्रिक्षा के क्षेत्र में कंे द्रीय प्रिद्यालय संगठन ने अत्यतं महत्िपरू ्ण स्िान

िाप्त प्रकया है । प्रिक्षर् ि अप्रिगम मंे निाचार ि ियोगों के साि अद्यतनता एिम् प्रनरं तरता इस संस्िा की

प्रििेषता है ।

इसी के साि हमें आने िाले समय की चुनौप्रतयों के प्रलए भी अपने आप को तयै ार करना है और यह तभी

संभि है जब हम सब एक टीम की तरह, हर स्तर पर परू ी ईमानदारी ि कमणठता से अपने दाप्रयत्िों का

प्रनिणहन करें ।

हमें अपनी व्यिस्िा के सबसे महत्िपरू ्ण अंग ‘ प्रिद्यािी ’ को जीिन की परीक्षा हेतु तयै ार करना है ताप्रक

िह एक प्रिप्रक्षत नागररक होने के सािसाि एक प्रजएमेदा-र व्यप्रि भी बने जो राष्ट्र प्रनमाणर् मंे अपनी

महती भपू्रमका अदा कर सके ।

िषण 2021 में होने िाली PISA की परीक्षा के प्रलए हमंे प्रिद्याप्रिणयों मंे गहन रचनात्मक सोच के सािसाि -

उस कौिल का प्रिकास भी करना है प्रजससे हमारे प्रिद्यािी समस्या के समािान को खोजने की सहज

क्षमता को िाप्त कर सकें । इस हेतु प्रिक्षर् अप्रिगम की िप्रआया में प्रनरं तर सुिार की आिप्रयकता है ।-

हमंे परू ्ण प्रिश्वास है प्रक आप सबके कप्रठन पररश्रम, ईमानदारी ि समग्रता से प्रकए गए ियासों से हम कंे द्रीय

प्रिद्यालय संगठन को एक प्रिश्व स्तरीय संस्िा बनाने के ियास में - अिप्रय सफल होंगें ।

िुभ कामनाओं के साि,

( संतोष कु मार मल्ल )

आयुि

उऩामकु ्त का सॊदेश

श्रीभती ऩी फी एस उषा

It is a matter of great pride that Kendriya Vidyalaya, Ballygunge is bringing out Vidyalaya
Patrika.
At the outset I would like to congratulate the entire Vidyalaya family for each of their
achievements for the last academic session. I am delighted to note that the school has been
successful in shaping the character and values of the fresh minds that are the future of the
nation. By publishing this Vidyalaya Patrika we can nurture and develop the innate talents of a
child. This not only goes to polish the child’s creativity but also shapes his/her personality.
Vidyalaya Patrika of course is confluence of ideas and achievements of all members of the
family. This magazine is not only a source of information about the Vidyalaya but also is an
indicator of the involvement of every student, teacher and staff. Vidyalaya Patrika always plays
a vital role in showcasing all the hidden writing talents of promising writers of the future.
I am very happy to extend my heartiest congratulations to the Principal, Editorial Board, Staff
members and the students for their sincere efforts in publishing the Vidyalaya Patrika.
‘JAI HIND’

Mrs. P.B.S. Usha
Deputy Commissioner
KVS RO Kolkata

Message from the Chairman's Desk

Brig. Narinder Singh

It gives me utmost pleasure to learn that the Vidyalaya Patrika of
Kendriya Vidyalaya Ballygunge is being published.

The Patrika provides an excellent platform to the budding writers to
unleash their creative talents. Every child is blessed with an innate
talent and it is the teachers who motivate and hone their skills and
expertise to transform them into glittering gems. I am sure this Patrika
will also be able to showcase the praiseworthy achievements of the school.

I extend my hearty congratulations to the Principal, the editorial board,
the members of the staff and the students for their diligent endeavor in
giving a shape to this publication.

Keep up the good work! My best wishes are always with you all !

Brig. Narinder Singh
Commander TA Group HQ and
Chairman V.M.C. K.V.Ballygunge

प्राचामाा के करभ से

डॉ सभु न रता

ऩरयवतना एक शाश्वत सत्म है औय एकभात्र स्थामी घटना है। सभम फदर यहा है। तकनीकी
प्रगतत की तेज गतत ने शशऺण सॊस्थानों भंे तेजी से प्रवेश ककमा है। कॊ प्मूटय सहामता प्राप्त
शशऺण औय इॊटयनटे के शरए तैमाय ऩहुॉच ने शशऺा ऺेत्र भें क्ातॊ त रा दी है। एक भाउस के क्क्रक
ऩय सूचना आऩके प्रैटय ऩय दी जाती है। इस भहत्वऩूणा भोड़ ऩय भौशरकता औय भानव भानस
की आवश्मक यचनात्भक बावना को फनाए यखना ददन की ऩुकाय है। मह मुग सूचना प्रोधोगगकी
का है, इस मगु भंे ई – ऩत्रत्रका का चरन फढ़ा है |अत् ववद्मारम के वेफसाइट ऩय ई- ऩत्रत्रका
अऩरोड है |दयू स्थ शशऺा हेतु मह भाध्मभ औय अगधक प्रबावशारी फन गमा है |
हभायी प्राथशभकता है की फच्चे सही ददशा भें सोचे क्मॊूकक हभायी सोच शब्द फन जाते है | शब्द
कभ,ा कभा आदत ,औय आदत हभाये चरयत्र तनभाणा के सहामक होते हंै | ववद्मारम ऩत्रत्रका ना
के वर सुदॊ य यचनाओॊ का सकॊ रन है अवऩतु ववद्मारम की वषा बय की उऩरक्ब्धमों का प्रततत्रफफॊ है|
ववद्मारम ऩत्रत्रका का उदेश्म ववद्मारम तथा सभाज भंे प्रभे औय शाॊतत का सॊदेश देते हुए स्वस्थ
ववचाय का तनभाणा कयना है |
स्कू र ऩत्रत्रका 'प्रततबा' एक ऐसा भॊच है, जो छात्र भन की आॊतरयक सभस्माओॊ को ऩकड़ता है। मह
उन्हंे अऩनी यचनात्भक प्रततबा ददखाने के शरए ऩमााप्त अवसय प्रदान कयता है । हाददाक आबाय
ववद्मारम प्रफधॊ सशभतत के अध्मऺ श्री त्रिगेडडमय. नरयदॊ य शसहॊ , एवॊ उऩामुक्त के .वव.एस
सॊबागीम कामारा म कोरकाता श्रीभती ऩी.फी.एस उषा क्जनका उदाय सहमोग, प्रोत्साहन एवॊ प्रये णा
सदैव होती यही है | ववद्मारम के सबी ववद्मागथमा ों , शशऺकों एवॊ ऩत्रत्रका के सॊऩादक भॊडरी को
उनके सत्प्रमासों हेतु हाददाक शबु काभनामंे |

डॉ सभु न रता
प्राचामाा

सॊऩादक के करभ से

स्कू र भगै जीन के प्रकाशन भें टीभ वका के साथ फहुत सायी प्रातनगॊ शाशभर थी औय भंै
बाग्मशारी थी कक भंै प्रेरयत सऩॊ ादकों की भंे टीभ थी, क्जसने भैगजीन के रेआउट की ऩरयकल्ऩना
कयने भंे एक भजफूत बशू भका अदा की । इन उत्साही रेखकों को अऩनी बावनाओॊ को कहातनमों,
कववताओॊ, चटु कु रों के भाध्मभ से देखते हुए औय ववशबन्न आॊख खोरने वारी चचाओा ॊ के भाध्मभ
से एक वमस्क बूशभका शुरू कयते हुए देखने एक प्माया अनुबव है। भैं उन तभाभ उबयते
रेखकों का शुक्गजु ाय हूॊ क्जन्होंने भेये आह्वान का जवाफ ददमा औय ऩत्रत्रका के शरए अऩने ववचाय
व्मक्त ककए। भंै छात्र सॊऩादकों की तनयॊतय कड़ी भहे नत को बी स्वीकाय कयती हूॊ, जो छात्रों को
अऩने ववचाय शरखने के शरए राभफॊद कयने भंे भहत्वऩूणा बशू भका तनबाते हंै औय कु शरता से
रेखन को सॊऩाददत कयते हैं। हभाये छात्र रेखकों ने अऩनी यचनात्भक सोच औय रेखन कौशर
का प्रदशना कयते हुए रेखन के कु छ अद्भतु टु कड़े यखे हंै। इस ससॊ ्कयण भंे शाशभर कामा अत्मतॊ
सयर हंै, रेककन तनक्श्चत रूऩ से एक फच्चे की ववचाय प्रकक्मा औय उसके स्वमशॊ सद्ध जीव भें
झाकॉ ने का अवसय प्रदान कयेगा |भैं ऩत्रत्रका की मोजना औय प्रकाशन की ऩयू ी प्रकक्मा के भाध्मभ
से अऩने तनयॊतय सहमोग औय भागदा शना के शरए अऩने प्राचामाा डॉ॰सुभनरता के प्रतत अऩनी
ईभानदायी से धन्मवाद देना चाहूॊगी । एक प्रततफद्ध औय सहामक ववद्मारम प्रफधॊ न, सभवऩता
शशऺक, देखबार कयने वारे औय सहकायी भाता-वऩता एक फार-कें दित ववद्मारम फनाने के शरए
साभजॊ स्मऩूणा रूऩ से शभश्रण कयते हंै। भंै उन सबी का गहयाई से धन्मवाद कयती हूॊ। हभायी
स्कू र ऩत्रत्रका एक भीर का ऩत्थय है जो हभाये ववकास को गचक्ह्नत कयती है, हभायी कल्ऩनाओॊ
को उजागय कयती है, औय हभाये ववचायों को औय आकाॊऺाओॊ जीवन देती है । मह यचनात्भक
कौशर के एक ववस्ततृ स्ऩके ्रभ को शरखने से रेकय सऩॊ ादन तक औय महाॊ तक कक ऩत्रत्रका को
डडजाइन कयने भंे बी शाशभर है। इस भाहौर भें, ववशबन्न प्रकाय की सोच गततववगधमों, यणनीततमों
औय सभहू की गततशीरता का गहन उऩमोग होना स्वाबाववक है ताकक कऺाएॉ जीवतॊ हो जाएॊ।
मह ऩत्रत्रका इस फात का प्रभाण है कक हभ अऩनी सपरताओॊ ऩय तनभााण कय यहे हंै। टीभवका
के .वी.फारीगजॊ की ऩहचान है। भझु े मकीन है कक सहमोगात्भक प्रमास के भाध्मभ से हभ अऩने
छात्रों को राबाक्न्वत कयने के शरए औय अगधक प्राप्त कय सकते हैं जो कक बववष्म हैं|

शशखा दास

सपरता ऩाने के शरए हभें ऩहरे विश्िास कयना होगा की हभ कय सकते
हैं

------ननकोस कजॊतजककस

सूची ऩत्र

1॰ होरी आई ये
२॰ कहानी – फदराव
३॰ कहानी – भकु ्श्करों ऩय ववजम
४॰ कववता – भेयी इच्छा
५॰ कववता-प्रकृ तत
६॰ कहानी- हाती क्मॉू हाया
7॰ फूझो तो जाने
८॰ कववता- फाऩू
९॰ कववता- भेया प्माया सा फचऩन
१०॰कववता- स्वच्छता
११॰कहानी- स्वच्छता
१२॰मात्रा ववत|ृ त-ॊ कोरकाता से कन्माकु भायी तक
१३॰कहानी- याजा औय फदॊ य
१४॰कववता –भाॉ
१५ ॰कहानी- कै से आमा जतू ा
१६॰कववता – गचडड़मा
१७॰ मात्रा वतृ ातॊ - भेयी दक्षऺण की मात्रा
१८॰कववता-वीययस
१९॰कववता –स्वच्छ बायत
२०॰कहानी – एक आभ रड़के की फहदयु ी
२१॰हॉसना भाना है
२२॰के न्िीम ववद्मारम ने दी स्काउट /गाइड की उऩादेमता
२३॰कववता – दशु ्भन की छाती ऩय

दोस्तों ! होरी आई है! -

सखु से हॉसना
जी बय गाना
भस्ती से भन को फहराना
ऩवा हो गमा आज-
साजन ! होरी आई है!
हॉसाने हभको आई है!

दोस्तों! होरी आई है!
इसी फहाने

ऺण बय गा रें
दखु भम जीवन को फहरा रें

रे भस्ती की आग-
साजन! होरी आई है!
जराने जग को आई है!

दोस्तों! होरी आई है!
यॊग उड़ाती
भधु फयसाती

कण-कण भंे मौवन त्रफखयाती,
ऋतु वसतॊ का याज-
रके य होरी आई है!

क्जराने हभको आई है!

दोस्तों ! होरी आई है!

खूनी औय फफया
रड़कय-भयकय-
भधकय नय-शोणणत का सागय
ऩा न सका है आज-
सधु ा वह हभने ऩाई है !
साजन! होरी आई है!

दोस्तों ! होरी आई है !
मौवन की जम !
जीवन की रम!

गॉूज यहा है भोहक भधभु म
उड़ते यॊग-गुरार

भस्ती जग भंे छाई है
दोस्तों! होरी आई है!

एभएभएभएभएभएभएभएभएभएभएभएभएभएभ व्वीय

(सशु ाॊत शसहॊ , कऺा नवी)ॊ

फदराि (प्रये णादामक कहानी)

क्जन्दगी भें फहुत साये अवसय ऐसे आते है जफ हभ फुये हारात का साभना कय यहे होते
है औय सोचते है कक क्मा ककमा जा सकता है क्मोंकक इतनी जल्दी तो सफ कु छ फदरना
सॊबव नहीॊ है औय क्मा ऩता भये ा मे छोटा सा फदराव कु छ क्ाॊतत रेकय आएगा मा नहीॊ
रेककन भंै आऩको फता दॉ ू हय चीज मा फदराव की शरु ुआत फहुत ही फतु नमादी ढॊग से
होती है|
कई फाय तो सपरता हभसे फस थोड़े ही कदभ दयू होती है कक हभ हाय भान रेते है
जफकक अऩनी ऺभताओॊ ऩय बयोसा यख कय ककमा जाने वारा कोई बी फदराव छोटा नहीॊ
होता औय वो हभायी क्जन्दगी भें एक नीव का ऩत्थय बी सात्रफत हो सकता है | चशरए
एक कहानी ऩढ़ते है इसके द्वाया सभझने भंे आसानी होगी कक छोटा फदराव ककस कदय
भहत्वऩूणा है |
एक रड़का सुफह सफु ह दौड़ने जामा कयता था | आते जाते वो एक फूढी भदहरा को देखता
था | वो फूढी भदहरा ताराफ के ककनाये छोटे छोटे कछु वों की ऩीठ को साफ़ ककमा कयती
थी | एक ददन उसने इसके ऩीछे का कायण जानने की सोची |
वो रड़का भदहरा के ऩास गमा औय उनका अशबवादन कय फोरा ” नभस्ते आटॊ ी ! भंै
आऩको हभशे ा इन कछु वों की ऩीठ को साफ़ कयते हुए देखता हूॉ आऩ ऐसा ककस वजह से
कयते हो ?” भदहरा ने उस भासभू से रड़के को देखा औय इस ऩय रड़के को जवाफ
ददमा ” भैं हय यवववाय मॊहा आती हूॉ औय इन छोटे छोटे कछु वों की ऩीठ साफ़ कयते हुए
सुख शातॊ त का अनुबव रेती हूॉ |”
क्मोंकक इनकी ऩीठ ऩय जो कवच होता है उस ऩय कचड़ा जभा हो जाने की वजह से
इनकी गभी ऩैदा कयने की ऺभता कभ हो जाती है इसशरए इन कछु वों को तैयने भें
भुक्श्करों का साभना कयना ऩड़ता है ,इसशरए कवच को साफ़ कयती हूॉ |
मह सुनकय रड़का फड़ा हैयान था | उसने कपय एक जाना ऩहचाना सा सवार ककमा औय
फोरा “फशे क आऩ फहुत अच्छा काभ कय यहीॊ है रेककन कपय बी आॊटी एक फात सोगचमे
कक इन जसै े ककतने कछु वे है जो इनसे बी फयु ी हारत भें है जफकक आऩ सबी के शरए मे
नहीॊ कय सकते तो उनका क्मा क्मोंकक आऩके अके रे के फदरने से तो कोई फड़ा फदराव
नहीॊ आमेगा न |
भदहरा ने फड़ा ही सॊक्षऺप्त रेककन असयदाय जवाफ ददमा कक बरे ही भेये इस कभा से
दतु नमा भें कोई फड़ा फदराव नहीॊ आमेगा रेककन सोचो इस एक कछु वे की क्जन्दगी भंे तो
फदराव आमेगा | तो क्मों ना हभ छोटे फदराव से ही शुरुआत कयंे|

(वप्रनतशा हारदाय कऺा निी)

)(आकाशॊ ा घोष

भेयी इच्छा

मह दआु है भये ी उस यफ से
भझु े रौटा दे भये े सऩने
जो देखे ते कबी भनंै े
जो यह गए है अधयू े

सोचता हू वो भये ा अतीत था
जो ना बरू ऩाउॉ गा भझु े मकीन था
काश वो ऩर रोट कय वाऩस आए
ऩछू ू ॊ तो भै उस यफ से ,क्मा हभ तुम्हे यास ना आए ?
द्ु ख होता है जफ दसू यो को देखता हू

उन्हें देख कय मही सोचता हू
कक क्मा हभ इतने गमे गजु ये थे
कक हभ वो बी हाशसर ना कय ऩाए
क्जनको ऩयू ा कयने भंे ददन यात गजु ये थे
शामद शरखा होगा कम्फख्त क्जन्दगी भंे मही
यहना ऩड़गे ा इन हारातो भंे अबी
ऩय मे ददर है की भानता नही
ववश्वास है इसे कक ददन रौट कय आएॊगे वही

कक ददन रौट कय आएॊगे वही

(ऋषब शभश्रा )

हे बगवान तये ी फनाई मह धयती ककतनी
ही सुन्दय

नए – नए औय तयह – तयह के
एक नही ककतने ही अनके यॊग

कोई गरु ाफी कहता
तो कोई फगंै नी तो कोई रार

तऩती गभी भंै
हे बगवान तुम्हाया चन्दन जैसे व क्स

सीतर हवा फहाते
खुशी के त्मौहाय ऩय
ऩजू ा के व त ऩय
हे बगवान तुम्हाया ऩीऩर ही
तुम्हाया रूऩ फनता
तुम्हाये ही यॊगो बये ऩछॊ
नीर अम्फय को सुनेहया फनाते
तेये चौऩामे ककसान के साथी फनते
हे बगवान तुम्हायी मह धयी फड़ी ही भीठ

(अनुष्का भॊडर ९ फ)

हाथी क्मों हाया

एक फाय एक व्मक्क्त, एक हाथी को यस्सी से फाधॊ कय रे जा यहा था | एक दसू या
व्मक्क्त इसे देख यहा था | उसे फढ़ा आश्चमा हुआ की इतना फढ़ जानवय इस हरकी
से यस्सी से फधॊ ा जा यहा है दसू ये व्मक्क्त ने हाथी के भाशरक से ऩछू ा ” मह कै से
सॊबव है की इतना फढ़ा जानवय एक हरकी सी यस्सी को नहीॊ तोड़ ऩा यहा औय
तमु ्हये ऩीछे ऩीछे चर यहा है|
हाथी के भाशरक ने फतामा जफ मे हाथी छोटे होते हंै तो इन्हें यस्सी से फाधॊ ददमा
जाता है उस सभम मह कोशशश कयते है यस्सी तोड़ने की ऩय उसे तोड़ नहीॊ ऩाते |
फाय फाय कोशशश कयने ऩय बी मह उस यस्सी को नहीॊ तोड़ ऩाते तो हाथी सोच रेते
है की वह इस यस्सी को नही तोड़ सकते औय फढे होने ऩय कोशशश कयना ही छोड़
देते है |

शशऺा – दोस्तों हभ बी ऐसी फहुत सी नकायात्भक फातंे अऩने ददभाग भें फठै ा रते े हैं
की हभ नहीॊ कय सकते | औय एक ऐसी ही यस्सी से अऩने को फाॊध रेते हंै जो सच
भें होती ही नहीॊ है |

(योहन नाथ, ३ फ)

फूझो तो जाने

ऩहेरी – आखॉ ें हंै ऩय अधॊ ी हूॉ
ऩयै हंै ऩय रॊगड़ी हूॉ
भॉुह है ऩय भौन हूॉ
फतराओ तो भैं कौन हूॉ ?

जिाफ – गुड़िमा

 ऩहेरी – हये यॊग की टोऩी भेयी, हये यॊग का है दशु ारा
जफ ऩक जाती हूॉ भंै तो
हये यॊग की टोऩी, रार यॊग का होता दशु ारा
भेये ऩेट भें यहती भोती की भारा
नाभ जया भेया फताओ रारा ?

जिाफ – हयी शभचा

ऩहेरी –यॊग है भेया कारा
उजारे भें ददखाई देती हूॉ
अधॉ ेये भें तछऩ जाती हूॉ

जिाफ – ऩयछाईॊ

ऩहेरी – ना भुझे इॊजन की जरूयत
ना भझु े ऩेरोर की जरुयत
जल्दी जल्दी ऩयै चराओ

भॊक्जर अऩनी ऩहुॉच जाओ

जिाफ – साईककर

 ऩहेरी – सफु ह सफु ह ही आता हूॉ
दतु नमा की ऽफयें राता हूॉ
सफको यहता भेया इॊतजाय
हय कोई कयता भुझसे प्माय

जिाफ – अख़फाय

ऩहेरी – दो आखय का नाभ है भेया
ककन्तु ऩावॉ है चाय
उन ऩावॉ से चर नही ऩाता
ऩूछ ऩहेरी हो तमै ाय

जिाफ – भटका

 ऩहेरी – क्ोध से सफ को द्ु ख देते हंै
प्माय से सफ को सखु देते हैं,
सच बी हभ हंै, झठू बी हभ हंै
फताओ तो हभ क्मा हंै ?

जिाफ – शब्द

ऩहेरी – रोहा खीचॊ ू ऐसी ताकत है (अननके त ऩार ३ फ)
ऩय यफड़ भझु े हयाता है
खोई सईू भंै ऩा रेता हूॉ
भेया खेर तनयारा है।

जिाफ – चुफॊ क




फाऩू

ससॊ ाय ऩजू ता क्जन्हंे ततरक,
योरी, पू रों के हायों से,
भैं उन्हें ऩूजता आमा हूॉ

फाऩू ! अफ तक अॊगायों से।

अगॊ ाय, ववबषू ण मह उनका
ववद्मतु ऩीकय जो आते हंै,

ऊॉ घती शशखाओॊ की रौ भें
चेतना नमी बय जाते हैं।

उनका ककयीट, जो कु हा-बॊग
कयके प्रचण्ड हुॊकायों से,

योशनी तछटकती है जग भंे
क्जनके शोणणत की धायों से।

झरे ते वक्ह्न के वायों को
जो तजे स्वी फन वक्ह्न प्रखय,

सहते ही नहीॊ, ददमा कयते
ववष का प्रचण्ड ववष से उत्तय।

अगॊ ाय हाय उनका, क्जनकी
सनु हाॉक सभम रुक जाता है,

आदेश क्जधय का देते हंै,
इततहास उधय झुक जाता है।

(प्राजॊ र घोष ७ स )

भेया प्माया सा फचऩन

भये ा प्माया सा फचऩन
माद आता है वह फारऩन//

ऩढने का एकदभ भन नहीॊ कयता था
ऩयीऺा आने ऩय बागने का भन कयता था//
खेरना कू दना था भये ा काभ,
वह ऩर वह माद ककतने होंगे उसके दाभ//
वह फचऩन के क्मा ददन थे भये े
घय से तनकर जाती थी, होते ही सवेये//
दोस्तो के साथ चऩु के से फगीचे भंे जाती थी
भौका शभरते ही पर चयु ाकय खाती थी//
भंै अऩनी भॉ कक प्मायी सी फेटी थी
ऩरयवाय के आधाय ऩय भैं सफसे छोटी थी//
ददर भें फहुत कु छ फातंे बी थी
वह यह ददन की प्मायी यातंे बी थी//
वह फचऩन की मादंे कबी नहीॊ रौटेंगी
रके कन वह ददर से बी कबी नहीॊ शभटंेगी//

(दीधधनत भर)

स्िच्छता

शहय-गरी भें चचाा है,
स्वच्छ बायत अशबमान की!
आओ फच्चों तुम्हें फताएॊ,

भहत्ता कचया दान की।
त्रफना प्रफॊधन फीभायी,

पै रे जो दशु ्भन जान की।
उगचत प्रफधॊ न खाद फनाता,
कयता भदद ककसान की।

शहय-गरी भंे चचाा है,
स्वच्छ बायत अशबमान की!

कऩड़े की झोरी ववकल्ऩ है
ऩॉरीगथन की थरै ी की।

रहय चर यही सबी ओय अफ,
भोदी के अशबमान की!
शहय-गरी भें चचाा है,

स्वच्छ बायत अशबमान की!
शौचारम के राब सभझना,

जरूयत हय इॊसान की।
तुम्हाये कॊ धों ऩय तनबया है,
सपरता इस अशबमान की!

शहय-गरी भें चचाा है,
स्वच्छ बायत अशबमान की!

(श्रीजत भजभू दाय निीॊ)

स्िच्छता अशबमान

दाभोदय कारोनी अबी नई फनी थी| सबी घय चभकते औय साप – सथु ये थे.

कारोनी के फगर भें एक तयणतार था| फहुत ददनों से उसकी सपाई नहीॊ हुई
थी| ऩानी जभा हो जाने से वह गॊदे ऩानी का ताराफ फन गमा था |उसी
ऩानी भें भच्छयों का ऩरयवाय चनै से यहता था | ताराफ से थोड़ी दयू ऩय कू ड़े
– कचये का ढेय जभा हो गमा था उस ऩय भक्खी का ऩरयवाय यहता था दोनों

ऩरयवायों भंे गहयी दोस्ती थी| एक ददन भोहल्रे के कु छ फच्चे हाथ भंे तयै ाकी
की ऩोशाक शरए आए ताराफ गन्दा देखा तो रौट गए|दसू ये ददन ताराफ का

गन्दा ऩानी तनकार कय उसभें साप ऩानी बया जाने रगा| उस सभम
भच्छयों का ऩरयवाय भक्खी के घय शभरने गमा था |जफ वे रौटे तो उन्हें
फड़ा झटका रगा | मह क्मा! गॊदे ऩानी की जगह ताराफ भें साप ऩानी
चभक यहा था| भच्छय त्रफना घय -फाय के हो गए |उन्हें सभझ भें न आमा
कक क्मा कयंे | ऩरयवाय की भादा भच्छय योने रगी | तबी उसे अऩनी सहेरी

भक्खी आती ददखाई दी |

भादा भच्छय ने ऩछू ा – क्मा हुआ फहन? तभु क्मों यो यही हो? भक्खी की
आॉखों भंे आॉसॊू थे | वह फोरी – अये कु छ भत ऩछू ो फहन, आज भये ा ददन
खयाफ है | भैं कारोनी के कई घयों भंे गई यसोई भंे घसु ी, भझु े कु छ बी
खाने को न शभरा आज सफने खाना ढककय यखा था | कहीॊ पर कटा औय
खुरा न शभरा | जठू े फयतन बी नहीॊ थे | भैं तो बखू ी रौट आई | ऐसा
यहा तो भंै बखू ी ही भय जाउॊ गी | भादा भच्छय फोरी – मह तो फहुत फयु ा
हुआ | औय देखो न भये ी ऩयेशानी, ताराफ भें साप ऩानी आ गमा | अफ भंै
अॊडे कहाॉ दॊगू ी? हभाया ऩरयवाय कै से फढ़ेगा? तबी भोहल्रे के फच्चों का झॊडु
उधय आता ददखाई ददमा | वे सफ ववद्माथी थे. साप ताराफ देखकय वे खुश

हुए| जफ चरने रगे तबी एकाएक उनकी नजय कू ड़े के ढेय ऩय ऩड़ी,वे उसके
ऩास जाकय रूक गए | एक ने कहा – महाॉ अबी कू ड़-े कचये का ढेय ऩड़ा है,
ककतनी गॊदी फदफू आ यही है |

दसू या फोरा – भच्छय औय भक्क्खमों की तो दावत हो यही है,चरो कर इसकी
सपाई कय देते हैं – कई फच्चे एक साथ फोर ऩड़े भंै एक फाल्टी राऊॊ गा – एक

रडके ने कहा-भैं झाड़ू राऊॊ गा दसू ये ने कहा-भैं ब्रीगचगॊ ऩाउडय राऊॊ गी – ककसी
रडकी की आवाज आई हा,ॉ मह ठ क होगा – सफने सहभतत जताई तो कर

सफु ह शभरेंगे – कहकय वे रौट गए| दसू ये ददन दाभोदय कारोनी के सबी फच्चे
व्मस्त थे उन्होंने झाड़ू औय पावड़े से कू ड़े को साप ककमा, कचये को फाल्टी
भंे बयकय कू ड़े के डडब्फे भें डारा, जगह साप कय वहाॉ ब्रीगचगॊ ऩाउडय डारा
दाभोदय कारोनी साप – सथु यी हो गई| ताराफ का गन्दा ऩानी औय कू ड़े का
ढेय कु छ न फचा| भक्खी ने भच्छयों से कहा – अफ हभाये शरए महाॉ खान-े
यहने को कु छ नहीॊ फचा चरो, ककसी नई जगह को ढूॊढें. जहाॉ हभ योग के
कीटाणु राएॊ औय हैजा पै राएॉ| हभ योग पै राएगॉ े तबी रोग हभसे डयेंग|े
भच्छय फोरे – औय हभ रोग बी भरेरयमा पै राएॉ,भादा भच्छय फोरी – तफ तो

भंै वहीॊ अॊडे दॊगू ी औय भये ा फड़ा – सा ऩरयवाय होगा,भक्खी औय भच्छयों का
झडॊु कपय ककसी गॊदी जगह की खोज भें तनकर ऩड़|े इस कहानी भें फच्चों की
सकक्मता ने अऩने कोरनी को भच्छय भकु ्त कय ददमा| इसी तयह से रोग
मदद गॊदगी के प्रतत जागरूक हो जाएॉ तो हभाया देश स्वच्छ औय सनु ्दय फन
जाएगा| आइमे आज हभ सफ सकॊ ल्ऩ रते े हंै कक हभ अऩने आसऩास को

साफ़ सथु या यखंेगें.

कोरकाता से कन्माकु भायी तक की मात्रा

भेये वऩता ने कन्माकु भायी की एक छोटी मात्रा की मोजना फनाई थी | हभने
31 ददसफॊ य को हावड़ा से शरु ू ककमा था। मह रेन 12665 कन्माकु भायी
सऩु यपास्ट एक्सप्रसे थी। सभम शाभ ४:१० फजे था। हभाये ऩास 3 फगै थ।े
हभ सीट ऩय फठै गए। रेन शरु ू हुई। शाभ को 8:०० फजे

हभने खाना खामा। उसके फाद हभ सो गए।
अगरे ददन हभ सफु ह उठे । भनैं े ददन भंे फाहय से देखा था। भझु े फाहय के
दृश्मों का फहुत आनदॊ आ यहा था। दक्षऺण के रोग ककसी बी जगह को
खारी नहीॊ यखते हंै। उन्होंने फहुत साय के रे के ऩेड़, नारयमर के ऩेड़, गन्ने
के ऩौधे रगाए थे।
रेन कई स्टेशनों को ऩाय कय गई। ततरुनरे वेरी भंे भनंै े ऩवन चक्क्कमाॉ
देखी हैं। भनैं े कोरकाता भें ऩवन चक्क्कमाॊ नहीॊ देखी थीॊ। भंै फडा
आश्चमचा ककत था। ऩवन चक्क्कमाॊ फड़े ऺते ्र भंे पै र हुई हैं। सफ घभू यहे
थे। ऩवन चक्क्कमाॊ ववशबन्न कॊ ऩतनमों की हैं। हभ 3 ददनों की मात्रा के फाद
रगबग सफु ह 10:30 कन्माकु भायी ऩहुॉचे थ।े
शाभ को हभने कन्माकु भायी के वकै ्स म्मकू ्जमभ (भामाऩयु ी) का दौया
ककमा था। वाकई मह अद्भतु था। हभने इसका आनदॊ शरमा था।

हभ शाभ 7 फजे तक होटर रौट आए थे। हभने यात का बोजन ककमा
औय सो गए।
अगरी सफु ह, हभ फ्रे श हुए औय कन्माकु भायी देवी के महाॉ गए औय वहाॉ
ऩजू ा की। उसके फाद हभ वववके ानॊद भेभोरयमर यॉक की मात्रा कयने के
शरए जहाज ऩय गए। मात्रा का आमोजन शशवऩगॊ कॉऩोयेशन द्वाया ककमा
गमा था। हभें मात्रा के शरए दटकट रेना होगा। प्रत्मेक दटकट की कीभत

50 रुऩमे है। हभंे रगबग 30 शभनट तक कताय भंे इॊतजाय कयना ऩड़ा।
जहाज आने के फाद हभंे राइप जकै े ट रने ी ऩड़ी औय जहाज भें चढ़ गमा।
वास्तव भंे मह मात्रा अद्भतु थी। ऩानी का यॊग सभिु ी हया था।
मह स्ऩष्ट औय कक्स्टर था। फहुत हवा थी। वहाॊ चरना फहुत भकु ्श्कर
था। हवा आऩको उड़ा यही थी। वववके ानदॊ स्भायक चट्टान सॊदु य थी। भनोयभ
दृश्म फहे तयीन था।

(अयऩा भण्डर,९)

याजा औय फॊदय

एक सभम की फात है, एक याजा ने एक ऩारतू फन्दय को अऩने सेवक के
रूऩ भें यखा हुआ था। जहाॉ – जहाॉ याजा जाता, वह फन्दय बी उसके साथ
जाता। याजा के दयफाय भंे उस फन्दय को याजा का ऩारतू होने के कायण कोई
योक – टोक नहीॊ थी। एक गभी के भौसभ के ददन याजा अऩने शमन ऩय
ववश्राभ कय यहा था। वह फन्दय बी शमन के ऩास फठै कय याजा को एक
ऩॊखे से हवा कय यहा था। तबी एक भक्खी आई औय याजा की छाती ऩय
आकय फठै गमी। जफ फन्दय ने उस भक्खी को फठै ा देखा तो उसने उसे
उड़ाने का प्रमास ककमा। हय फाय वो भक्खी उड़ती औय थोड़ी देय फाद कपय
याजा की छाती ऩय आ कय फठै जाती। मह देख कय फन्दय गसु ्से से रार हो
गमा। गुस्से भें उसने भक्खी को भायने की ठानी। कपय वो फन्दय भक्खी को
भायने के शरए हगथमाय ढू डने रगा। कु छ दयू ही उसे याजा की तरवाय ददखाई
दी। उसने वो तरवाय उठाई औय गसु ्से भंे भक्खी को भायने के शरए ऩयू े फर
से तरवाय याजा की छाती ऩय भाय दी। इससे ऩहरे की तरवाय भक्खी को
रगती, भक्खी वहाॉ से उड़ गमी। फन्दय के फर से ककमे गए वाय से भक्खी
तो नहीॊ भयी भगय उससे याजा की भतृ ्मु अवश्म हो गमी।

इसशरए कहते है कक भखू ा को अऩना सिे क फनाने भें कोई बराई नही!ॊ

(सामतॊ न देि )

भाॉ

जफ भैं छोटी फच्ची थी
भाॉ की प्मायी दरु ायी थी
भाॉ तो हभको दधू वऩराती,
भाॉ बी ककतनी बोरी बरी |

भाखन-शभश्री घोर णखराती
फड़े भजे से गोद भंे सरु ाती,

भाॉ तो ककतनी अच्छ हंै
सायी दतु नमा उनभंे हैं |

--- (रयमा कऩात 3 फ)

कहानी : कै से आमा जतू ा

एक फाय की फात है एक याजा था। उसका एक फ़िा-सा याज्म था। एक
ददन उसे देश घभू ने का विचाय आमा औय उसने देश भ्रभण की मोजना फनाई
औय घूभने ननकर ऩ़िा। जफ िह मात्रा से रौट कय अऩने भहर आमा। उसने
अऩने भतॊ ्रत्रमों से ऩैयों भें ददा होने की शशकामत की। याजा का कहना था कक भागा
भें जो कॊ क़ि ऩत्थय थे िे भेये ऩयै ों भंे चुब गए औय इसके शरए कु छ इॊतजाभ
कयना चादहए।

कु छ देय विचाय कयने के फाद उसने अऩने सैननकों ि भतॊ ्रत्रमों को
आदेश ददमा कक देश की सॊऩणू ा स़िकंे चभ़िे से ढॊक दी जाएॊ। याजा का ऐसा
आदेश सुनकय सफ सकते भंे आ गए। रेककन ककसी ने बी भना कयने की
दहम्भत नहीॊ ददखाई। मह तो ननश्श्चत ही था कक इस काभ के शरए फहुत साये
रुऩए की जरूयत थी। रेककन कपय बी ककसी ने कु छ नहीॊ कहा। कु छ देय फाद
याजा के एक फवु िभान भॊत्री ने एक मुश्क्त ननकारी। उसने याजा के ऩास जाकय
डयते हुए कहा कक भैं आऩको एक सुझाि देना चाहता हूॉ।

अगय आऩ इतने रुऩमों को अनािश्मक रूऩ से फफादा न कयना चाहंे
तो एक अच्छी तयकीफ भेये ऩास है। श्जससे आऩका काभ बी हो जाएगा औय

अनािश्मक रुऩमों की फफादा ी बी फच जाएगी। याजा आश्चमचा ककत था क्मोंकक
ऩहरी फाय ककसी ने उसकी आऻा न भानने की फात कही थी। उसने कहा
फताओ क्मा सझु ाि है। भतॊ ्री ने कहा कक ऩूये देश की स़िकों को चभ़िे से ढॊकने के
फजाम आऩ चभ़िे के एक टु क़िे का उऩमोग कय अऩने ऩैयों को ही क्मों नहीॊ ढॊक
रेत।े याजा ने अचयज की दृश्टट से भतॊ ्री को देखा औय उसके सझु ाि को भानते
हुए अऩने शरए जतू ा फनिाने का आदेश दे ददमा।

मह कहानी हभें एक भहत्िऩूणा ऩाठ शसखाती है कक हभेशा ऐसे हर
के फाये भंे सोचना चादहए जो ज्मादा उऩमोगी हो। जल्दफाजी भंे अप्रामोधगक हर
सोचना फुविभानी नहीॊ है। दसू यों के साथ फातचीत से बी अच्छे हर ननकारे जा
सकते हैं।

(भधुजा त्रफश्िास)

कऺा सातिी

धचड़िमा

गचडड़मा पु यापु या उड़ती है-, (याजषी त्रफस्िास ३फ)
हाथ रगाओ डयती है।

चीॊचीॊ कयती जाती है-,
हाथ ककसी के ना आती है।

सफको प्मायी रगती है,
ऩतॊ छमों भें न्मायी रगती है।

चोंच से दाने चगु ती है,
फड़ी सदॊु य, भोहक रगती है।

भेयी दक्षऺण की मात्रा

-
कम्प्मूटय भें वऩक्चसा का स्राइडशो खोरे फैठ हूॊ।फीच फीच भंे
भल्टीभीडडमा बी चरा रेती हूॊ।सफ फहुत अच्छा रग यहा है।वऩछरी मात्रा
की एक-एक स्भतृ त जीवॊत हो यही है।भन का उत्साह पू ट-पू ट ऩड़ता
है।भझु े के यर जाना है, तशभरनाडू , ददल्री जाना है, याजधानी ददल्री से
फ्राइट है।नेट ऩय एक-एक शहय का टेम्ऩयेचय देखती हूॊ| होटर के
रयसेप्शन ऩय 6 देशों का सभम फता यही घडड़माॊ रगी थी।होटर का कभया
इतना खूफसयू त औय स्वच्छ-सगु क्न्धत, कक उसे देखते ही थकान दयू होने
रगी। ।भयीन ड्राइव की बीड़ बयी सड़क थी।थोड़ा आयाभ कयने के फाद
शाभ को हभ भयीन ड्राइव के सभुिी ककनाये ऩहुॊचे, तो नौकाएॊ आ-जा यही
थी।हभ बी एक नौका भंे फैठ गए।इस मात्रा का मह प्रथभ नौका ववहाय
था ।शाभ धुॊधरा चकु ी थी, ठॊ डी औय तजे हवाएॊ चर यही थी।फन्दयगाह के
इस एक घण्टे के नौका त्रफहाय भंे हभने अनेक जहाज देखे, रयपाइनयी,
शशऩमाड,ा जहाजपै क्टयी, ठाठें भाय यहा सभिु देखा, ऩानी भें पै रे हुए जार
औय फाहय त्रफकती भछशरमाॊ देखी।

अगरे ददन यवववाय हभ सफसे ऩहरे डच ऩैरेस देखने गए, जो हभाये
होटर से कोई आठ ककरोभीटय दयू था। 1447 रेकय कोई अठायवीॊ शताब्दी
तक के वभाा शासकों की प्रततभाएॊ औय हगथमाय महाॊ देखनेको शभरे।महाॊ
से ऩीछे की सड़क ज्मुइश ऩरै ेस को जाती थी| कोई डढ़े फजे हभाया ऩाचॊ
घण्टे का भनु ाय का रम्फा ऩहाड़ी सपय शुरू हुआ।हय तयप टाटा के चाम

फागान, गहयी खाइमाॊ, भायथनयेसकी तयह दौड़ यहे चोदटमों ऩय खड़े ऩहाड़ी
यफड़व नारयमर के ऩेड़ थे औय जगह-जगह गचभतनमों से उठय हा धआॊु
था।ड्राइवय का प्रमास मही था, कक यात होने से ऩहरे गतॊ व्म तक ऩहुॊच
जाएॊ, अन्मथा यात होते ही महाॊ के घने जगॊ रों से हाथी तनकर कय
नकु सान ऩहुॊचा सकते हैं। फीस ककरो भीटय ऩयभटु ऩट्टी डभै था । महाॊ
रोग हाथी की सवायी बी कयते हंै ।

अफ हभ कन्माकु भायी भें थे। सभिु के फीच खड़ा वववेकानॊदस्भायक,
कन्माकु भायी के श्रॊगृ ाय होटर की छत से ददखाई दे यहा
वववेकानदॊ स्भायक, तशभर कवव गथरूवेरवू यकी सभवृ द्ध औय स्नेह का
प्रतततनगधत्व कय यहा 133 पु ट ऊंॅ चा बव्मस्भायक- आभॊत्रण ऩय
आभॊत्रण दे यहे थे। सात ऩतंै ारीस ऩय दटकटों का ववतयण शरु ू
हुआ।इतनी रम्फी राइन औय कपय पे यी (नौका) की बीड़। पे यी भंे फैठते
ही रोग रगाताय कु छ गाने रगे थे।क्मा गा यहे थे, मह तो स्ऩष्ट नहीॊ,
ऩय जैसे उत्तय बायत भंे वषै ्णोदेवी की मात्रा के सभम जम जमकाय कयते
जाते हैं, वसै ा ही कु छ रग यहा था।हभ सागय के उस ऩाइॊट ऩय ऩहुॊच
चकु े थे, जहाॊ तीन सभिु शभरते हैं- अयफभहासागय, फॊगार की खाड़ी औय
दहन्दभहासागय, त्रत्रवेणी भंे रोग स्नान कय यहे थे।स्वाभी वववेकानदॊ यॉक
भेभोरयमर 1970 भंे फना कय इस भहान सतॊ औय सधु ायक को सभवऩता
कय ददमा गमा।अफ ऩमु ्ऩहु यशशवऩगॊ कॉऩोयेशन व्दाया स्भायक के शरए,
पे यी सेवा आमोक्जत थी।सागय ककनाये से जया सा दयू , दो ववशारकाम
चट्टानों ऩय स्भायक फने थे।गथरूवेरवू यने गथरूकु यर नाभक धाशभका ऩुस्तक

शरखी थी| ऩास ही वववेकानदॊ स्भायक।महीॊ ऩय देवी कन्माकु भायी का

भदॊ दय था। दस हजाय वषा ऩयु ानी बायतीम ससॊ ्कृ तत को महाॊ आठसौ

ऩुतरों तथा अन्म अनेक उऩक्भों से भूता ककमा गमा था।ऩूया नौकाववहाय

प्रत्मेक बायतीम के अदॊ य आत्भववश्वास जगा यहा था, कक ववश्व भें तभु

ही श्रेष्ठ हो।यात की गाड़ी से वाऩसी यही। आश्चम,ा कक थकान का नाभ

तक नहीॊ था। (श्स्नग्धा)

िीययस

सशरर कण हूॉ, मा ऩायावाय हूॉ भंै
स्वमॊ छामा, स्वमॊ आधाय हूॉ भैं
सच है, ववऩक्त्त जफ आती हैं,
कामय को ही दहराती है,
सयू भा नहीॊ ववचशरत होत,े
ऺण एक नहीॊ धीयज खोत,े
ववघनों को गरे रगाते हैं,
काटों भें याह फनाते हैं।

भखु से न कबी उफ़ कहते हैं,
सकॊ ट का चयण न गहते हंै,
जो आ ऩड़ता सफ सहते हंै,
उद्दोग- तनयत तनत यहते हंै,
शरू ों का भरू नसाते हंै,
ऩय खदू ववऩक्त्त ऩय छाते हैं।

है कौंन ववघ्न ऐसा जग भंे,

दटक सके आदभी के भग भें ?
ऽभ ठ क ठे रता है जफ नय
ऩवता के जाते ऩाॉव उखड़,
भानव जफ जोय रगाता है,
ऩत्थय ऩानी फन जाता है।

(श्रीक्जता राहा)

स्िच्छ बायत

हभ है स्वच्छ बायत के येहने वारे,
नही फनाएॉगे बायत को कु डा-डान,
मही है हभाया भान औय सम्भान,
यखेंगे साफ़ हभाया बायत भहान।

इतनी सी फात हवाओॊ को फताए यखना,
योशनी होगी गचयगो को जराए यखना,

रहु देकय ही इसकी सफ़ाई कयेंगे ,
ऐसे ददर भे सफ़ाई फसाए यखना,
औयऐसे ही ददर भे ततयॊगा रहयाए यखना।

(स्िश्प्नर आचाम)ा

एक आभ ऱिके की फहादयु ी

एक शहय भे एक ऱिका यहता था श्जसका नाभ अशोक था।िह कऺा 9 भे ऩढ़ता था। िह
फहुत सभझदाय ऱिका था। सफ उसे चाहते थे।

एक ददन जफ िह ऩाठशारा जा यहा था तफ उसने देखा कक चाय आदभी एक फच्चे को
जफयदस्ती एक गा़िी भे रे जा यहे थे। तबी िह धचल्रामा कक चाय फदभाश एक फच्चे को
उठाके रे गए। उसके फाद िह अऩनी साईकर से तजे ़ यऩताय से उनका ऩीछा ककमा।

ऩीछा कयत-े कयते िह उन फदभाशों के अड्डे ऩय जा ऩहुॉचा। िहाॉ िो ऩशु रस को
पोन ककमा ।

ऩशु रस आई औयउन फदभाशों को ऩक़ि शरमा ।ऩशु रस औय विद्मारम की तयफ़ से उसे
फहुत साये इनाभ शभरे।

(अभत्मा ९ फ)

हॉसना भना है

१। अगॊ ्रेजी फोरने का बूत जफ ददभाग ऩय
चढ़ता है तो कु छ इस प्रकाय का भाहौर फन जाता है..

टीचय – कर तुभ कोगचगॊ नहीॊ आमे कहाॉ थे.?
स्टु डंेट – वो कर हभाये महाॊ भदॊ दय भंे
ब्मटु ीपु र रेजडी था ना, इसशरए नहीॊ आ ऩामा।

टीचय – ब्मटु ीपु र रेजडी से भतरफ ?
स्टु डेंट – भतरफ सनु ्दय काण्ड था।
टीचय अबी बी सदभें है

२. एक ऩहरवान फच्चे ने एक कभजोय फच्चे को थप्ऩड़ भाया |
कभजोय फच्चे ने ऩछू ा – “मह थप्ऩड़ गसु ्से से भाया है मा भजाक से ?

ऩहरवान फच्चे ने कहा – गसु ्से से |
कभजोय फच्चा फोरा – “कपय ठ क है, क्मोंकक भजाक भझु े त्रफरकु र ऩसॊद नहीॊ है |

३॰ एक फच्चे ने दसू ये फच्चे से ऩूछा, “क्मा तभु चीनी बाषा ऩढ़ सकते हों?”
दसू ये फच्चे ने कहा, "हाॊ -, अगय वह दहदॊ ी तथा अगॊ ्रेजी भें शरखी हो तो....

४॰ एक फच्चा यो यहा था | उसके वऩता ने योने का कायण ऩूछा | फच्चा फोरा – दस रुऩमे दो,
तफ फताऊॊ गा | यहे थे ?

वऩता ने फेटे को दस रुऩमे दे ददए औय कहा - अफ फताओ फेटे ! तुभ क्मों यो
फच्चा फोरा - भंै तो दस रुऩमे के शरए ही यो यहा था |

५॰ एक फच्चे ने दोस्त नयेशसे कहा जया अऩनी साइककर भुझे दे दो !
नयेश ने कहा नहीॊ -|
फच्चे ने कहा -अगय भुझे साइककर नहीॊ दी तो भेया ददर खट्टा हो जाएगा - |
नयेश झट से फोरा चीनी खा रेना थोड़ी -|
६॰ सतॊ ा औय फॊता दोनों बाई एक
ही क्रास भें ऩढ़ते थे।
अध्माऩक- तभु दोनों ने अऩने ऩाऩा का नाभ अरग क्मॉू शरखा है ?
सॊता -भडै भ कपय आऩ कहोगे ऩर भायी है, इसीशरए।

(अननके त ऩार ३ फ)

कें द्रीम विद्मारम भंे ‘दी बायत स्काउट/गाइड” की उऩादेमता

श्री फच्चे रार (टी जी टी दहदॊ ी)

देश – ववदेश के अनके भनीवषमों, ववचायकों , गचतॊ कों ,शशऺा- ववदों औय ऻातनमों ने
कहा है-‘भनबु वा ‘’ ,‘ फी ए ऩसना ’,‘भनषु ्म फनो ! ऐसा भनैं े अनके फाय काशी की
सत्सगॊ तत की चचाा भंे भें सनु ा है औय अऩनी ऺभता बय के अध्ममन –अध्माऩन भें
ऩामा है | तबी से आज तक भये ी क्जऻासु तक्षऺरा फवु द्ध उस‘भनषु ्म‘ तत्व की शोध
भें गहन ववहाय कयती यहती है की आणखयकाय मह‘भनषु ्म‘ फनना क्मा है ?
जो आदशा ‘भनषु ्म’ िह्भऋवषमों की चते ना भंे सजॉ ोमा हुआ है,उसको भनै े स्काउट /
गाइड की सॊस्था औय शशऺा भंे शऺात साकाय फारचय रूऩ भें देखा है| स्काउट /
गाइड की प्रततऻ व तनमभ वह सच्चा साॉचा है,
क्जसभंे एक वसै ा ही ‘भनषु ्म’ तनशभता होता है|

अगय सचभचु इस ऩववत्र आॊदोरन के कक्मान्वमन ऩय
ववशषे रूऩ से ध्मान ददमा जाए ,तो ववद्मारमी –वातावयण की फहे तयी भंे कोई सदॊ ेह
हो ही नहीॊ सकता है | ववद्मारम के ववववद कामों भंे , चाहे दघु टा नाओॊ से सयु ऺा
का प्रश्न हो , चाहे याष्रीम दटकाकयण का प्रश्न हो चाहे याष्रीम आऩदा –ववऩदा के
ददु दान हो , औय चाहे फाढ़ – सखू ा का दशु बऺा हो , स्काउट/गाइड सफ जगह
तन:स्वाथा बाव से स्काउट भास्टय /गाइड कप्तान की तनदेशन भें सेवायत यहते हैं |
जफ कबी कंै ऩ भंे प्रात् कारीन सबा भंे तयु ॊत फाद स्काउट ,गाइड का जादॊ ा -गान
सनु ता हूॉ ,क्जसभंे भहॉ तत्वदशशमा ों के 'भनषु ्म ' सवे कचय का दशना होता है , तफ
भये ा ह्रदम बी गदगद हो फारचय के साथ सभु धयु स्वय भें स्वय शभराकय गनु गनु ाने
रगता है |
स्काउट/गाइड की शशऺा ककसी ववशषे ऩेशवे ारे के शरए ही नहीॊ है , फक्ल्क मह
सकर ऩेशवे ारे के शरए खुरी है|भझु े दृढ़ आशा -ववश्वास है कक कंे िीम ववद्मारम
सगॊ ठन एक ददन तनश्चम उन भहान शशऺकों की गचयबीक्ष्सत भनषु ्म 'सेवकचय'
प्राप्त कय रगे ा |

दशु ्भन की छाती ऩय

(प्रकाश ठाकु य ऩी॰जी॰टी दहन्दी)

दशु ्भन की छाती ऩय हभको,
भूॊग आज दरनी ही दरनी,
फॊदकू ों की गोरी से अफ,
उनकी छाती कयनी छरनी |
नाभ ऩाक न ऩाक इयादे ,
हयदभ कयना झूठे वादे,
दहशतगदों का है साथी,
अफ उनकी होगी फयफादी |
भानवता से न प्माय क्जसको,
अभन कबी न बाता क्जसको,
पू र सयीखे फच्चों को जो,
भौत के घाट उतये उसको,
इॊसान नहीॊ हैवान कहूॉगा |
आधी आफादी ऩय फॊददश,
तारीभ ववयोधी ऩक्का जाशरभ,
भजहफ को फदनाभ कये जो,
रानत उसके एस जीवन को |
राख भराराओॊ को योके ,
उनके सऩने आग भंे झोंके ,
मह तो कु क्त्सत जीवन दृक्ष्ट,
हभंे फचानी है मह सकृ ्ष्ट |
चोय –घोय भौसये े बाई,
शाॊतत ववयोधी सफ दॊगाई,
तनज जीवन व्मथा फनामे,
ऐसे नासभझों को फोरो,
इस दतु नमा भंे कौन सभझाएॉ ?



Painting by Sayantanu Banerjee
Painting by Akshita Bibhuti

Painting by Srijoni Mondal

Music

“…But I’m sad to say that I’m on my way

And I won’t be back for many a day

My heart is down my head is turning around

I had to leave a little girl in Kingston town.”

These lines may be similar to you from Harry Belafonte’s “Jamaican farewell”.

Nowadays ‘genre’ word is commonly used. By genre we usually mean a part of
song or poetry. Music changes as per its geographical characters.
‘Ethnomusicology’ now have become one of the fields for research where with
music, many other subjects are taught such as nature, native cultures, society,
etc. Rustling of leaves or the sound of the waterfalls was music for our pre
ancestors which now have developed into different tunes. We must have heard
from our elders that from ‘Bhati’ area of Bangladesh, ‘Bhatiali’ music developed.
Similarly many folk songs of Bengal have developed from different places such as
‘Baul’, ‘Bhawaia’, ‘Bihu’, ‘Tusu’, ‘Bhali’, ‘Lavani’, etc. have developed.

Fusion music is very common nowadays. Also rock music is mixed with Indian
ragas to create rock ragas with the use of Indian rhythm and instruments.
Influence of environment is seen better when we observe the structure of the
instruments. For example, Bauls use ektara, classical singers use sitar, veena,
tanpura. Instruments takes different shapes as per the availability of resources to
make them. One of its example is flute. In India bamboo flutes are the most
common. But the same instrument is made out of copper and fibre in the western
countries where there is no availability of bamboo. But there is no difference in
the sound they produce. Music takes various shapes as per their origin and it is
considered to be the food of human heart.

Pranjwal Bhattacharya

A Time to Remember

It was early February, I recall; maybe 4th. Every moment the wind, needless to say,
would peek into our hanging sleeves and we were bound to shiver. I have kept
this realization along with me from years that nature has its own ‘techniques’ to
indicate hefty but obscure ideas to us. Much to my conscience, I was never
disappointed by this.

Even from the uninterrupted chirping of birds and constant commotion due to
worldly activities, his voice was clearly coming from far behind.

“Aarav! Come this way”, he yelled.

Krish and I had been the ‘best of friends’ from childhood. The situation seemed to
be more predominant on me than I ever was. Hence, I walked towards him.

“What’s the matter?”

“They say that some celebrity has showed up in Fritz Road.”

“Who?”

“You see, I myself got no letter to my cognizance. By the time we settle our
questions, she would disappear.”

“You’re right.”

Those were the last sayings which in turn led our feet to the destination. You see,
my vocabulary is fine but finding this word was actually difficult. ‘Desire’ – is the
source of our ultimate guidance, I say. Perhaps, it was taking a per cent more of
my mind packed in the fastened jar of brain.

Our eyes looked at the empty road. A stationery shop was lying all open with no
shopkeeper, leave the customers. We must have entered in graveyard where
there was divine and deathly silence. Shoving Krish to check the truthfulness
didn’t seem a worthy thought because my face was not in the mood to entertain
any bruises.

A small leaf went into my eyes as the breeze flew past. However, I didn’t shiver
this time. There was a strange feeling of extra-terrestrial warmth in the air of cold
February month.

I shook it off and opened my eyes. Krish stood awe- struck. A well- built man in his
fifties was being driven along the lone lane by a sharp eyed, long bearded black
driver in an expensive car. You know that in movies the background audio goes
null in a crucial scene. Similar was a condition – that of us.

“That’s dad”, came an exclamation from nearby. It was Krish who was in that
much hurry that he had mixed up his words.

“What? All these years, I knew that…” I gathered courage to say, “That your
father was a victim of a big accident which cost his life.”

“Here! What you are watching is the accident which took place.”

“What!”

“Chase them.”

We made a dash towards the vehicle – the centre of attraction by now. Though
not able to get hold of it, obviously, we beheld a wicked moment my vision
remembers the glimpse of.

The driver flew open the side door and jumped out of it. The aged man was
trapped in the car moving undirected. With time, the car dived in the nearby lake
and the man came to a very evil demise.

I was calculating what actually had happened just now whilst Krish had reached
the driver who was sprinting down the road after accomplishing a mission
successfully. Even before he could get hold of the cruel driver, the atmosphere
once again changed – this time, pretty harsh.

Wind speed was touching skies and it held me back. My surroundings had
befriended dust with it taking most of the attention. With the vision being blurred
every second, I took a gulp in horror.

But for our goodwill, the dilemma was all settled and things started reappearing
in vision. Proper circumstances came in shape. I could see a pedestrian being

directed by a policemen with a fat tummy. A hawker passed by and gave me a
curious look.

“Krish, what was this?”

“The so- called accident”, was the prompt reply, “Dad did not get drowned due to
his own fault. The case was something different. You know it now,”

“But how come we got a glimpse of it?”

“We saw it not by luck but fortune.”

His sentences were very illogical – to me. But these had a gravity which was able
to crush anyone.

“It was all planned. I must find out why.” Krish took a gasp.

But one thing in my frail memories that remains unrivalled and still remembered
by me is the crooked grin on the face of Krish after concluding those sentences. I
didn’t ask why he smiled at that time because it appeared inappropriate. But by
now, I think I have got a satisfactory explanation to the perplexing expression on
his face.

Before, he didn’t have the reason but just the cause. Now, he had a reason,
though not good for him.

Rest is history for you to solve. And when you finish, consider the chapter has
really come to an end.

Md. Arman Ansary

EARTHQUAKE MASTERPIECE

A masterpiece remains a masterpiece. It does not matter on what type of situation you are in
when you are painting it.
A few years ago on a particular day, a massive earthquake hit the city of Turin, Italy. People
were hurrying out of their houses with their beloved ones and with the essential stuff. They
were running towards a big field which was in the heart of the city with the fear of death in
their hearts. All the houses were vacant except one.

That one house belonged to a master painter, Accardo Lorenzo. He was busy putting the final
touches to an oil painting of his own. An art exhibition was to be held two days later in which,
that painting of his was to be the star attraction.

He loved his art so much, that he did not want to go away from that masterpiece. He signed his
name on the back of the painting. As soon as he turned to go, a big boom was heard. He looked
up and saw his death. He looked at the masterpiece one last time, and heaved a sigh. The
second floor of his house crashed upon his studio. Accardo Lorenzo was buried under the
rubble along with the masterpiece, his last work.

Six months later, Accardo Lorenzo’s house was searched for any remains by his family. The
painter’s lifeless body and along with it, his masterpiece was discovered. Though it was a simple
painting, true art lovers could understand how much love Accardo must have for his profession
that he finished it without even caring for his life.

The masterpiece was kept in the museum in the memory of Accardo Lorenzo. A few months
later, the painting was sold for an auction of millions. With that money, the Lorenzo household
donated some for the rehabilitation of the Turin Earthquake victims. The painting was indeed
an “Earthquake Masterpiece”.

Ritorni Dutta

To Every Living Soul…

Life is like a book,
Of thousands of and millions of pages indeed;
Sometimes filled with head-turning events,
And sometimes lines which hold no meaning.
If it starts with a prologue of five pages,
Which would introduce the name of the character,
Continue reading one-twenty pages,
Describing life’s many disasters.
Some events would reveal
Our humorous side,
While some would arise
Our mental power.
A few laughs and smiles like sunshine,
A bit of love for the heart’s sake;
Hatred which can never be forgotten,
Fear which clings to our brains.
It seems rather easy,
Reading the first few pages,
But sometimes when it gets boring or hard,
We wish to leave it to try something else.
But we should never do that,
For every book is special in some way;

It may be hard for us to understand, NIKITA KUMARI
But then-“If there is will, there is a way”. ASMITA
Continuing to read, we may cover
Seventy pages and call it a long short story.
And if it crosses ninety-six
It is going to be a novel sober.
So, you see, life is just like a book,
And you need to read on till it is over.

Friendship

Friendship is like a glass,
Handle it with care,
Once it’s broken,
It’s hard to repair.
Make new friends but don’t forget the old,
Because new is silver and
Old is gold.

Baby and River

Baby: River oh my River,
Who is your mother?
Who are your friends?

River: Oh my sweet Baby,
Fountain from mountain
Is my mother and my
Banks are my friends -
Never leave me lone
As I go they go along
Till I last, till I flow
Or I flood or I blow!

Baby: Rippling and burbling
Dazzling and twinkling
In soft moon lit night
Or in a sunny day
Beneath the vast sky
I love! I love! I love!
So much.... !
But hate your floods
And your blows
Too cruel as you go by.....

River: My Sweet baby
Name your mother
And name your friends..!

Baby: Says my mother
That our mother
Is the Nature
Is the supreme
And my friend
Is my mother

River: My baby then
Never hate me when

I blow or I flood....
As all deeds are
Caused by nature –
So dear baby,
Enjoy the beauty –
Avoid the odds
Obviate the odds
From your deeds
And your acts ..

Pragyasharva Karmakar

THE ELEPHANT’S ROPE

A gentleman was walking through an elephant camp and he spotted that the elephants
were not being kept in cages nor held by the chains. All that was holding them back from
escaping the camp was a small piece of rope tied to one of their legs.

As the man gazed upon the elephants, he was completely confused as to why the
elephants didn’t just use their strength to break the rope and escape the camp. They could
have easily done so, but for some reason they did not.

He saw a trainer nearby and asked the reason. The trainer said that when they are very
young, they use the same size rope to tie them. When they grow up, they believe the rope
can still hold them, so they never try to break free.
The man was amazed because they believed that they couldn’t break free and stuck right
where they were. Like the elephants, how many of us go through life hanging on to
believe that we cannot do something, simply because we failed at it once before?

Failure is part of learning;
We should never give up the struggle in life.

Bandana Pati

GENERATION GAP

As the earth is rotating and revolving on its own, the generation is also changing
by the time on its own. It feels so fortunate and delighted that we are in this era
which is so very convenient, technologically enhanced, cultured society as
compared to previous generation and even more educated citizens.

The people of our previous generations like our grand relatives who have been
cooperating with us to lead a happy life. Everything has changed according to the
generation, for instance, food, clothing, behavior, thought process etc. Age
difference creates change in thinking among the people.

The old generation prefers to large and joint families whereas the young
generation likes to lead a simple and luxurious life with a small family or they
prefer to lead a lonely life.

We can just imagine that at times people used to familiarize their children with
the benefits of apple and blackberry but now a days people teach them the
features of APPLE and BLACKBERRY and how to operate it. At times elders were
teaching their little ones how to do something but now, their little ones are even
smarter. At times, children used to ask every small questions to their parents but
now they just GOOGLE it. Generation is changing fast and will continue changing
till life is present in the earth.

So keep calm and lead a happy life with your present generation………
Rohit Banerjee


Click to View FlipBook Version