शखे र सजृ न – 02
प्राक्कथन
“शखे र सजृ न” शीर्कष ई-पसु ्तिका की श्खृं ला का ननर्ाणष र्ेरे कु छ काव्य-
उद्गारो का सकंृ लन है जो एक अल्प अवधि र्ंे ककसी एक ववर्य पर
ललखे गए है| इन सभी कवविाओंृ या छृं दों या पद्यों या और जो भी नार्
पाठक गण देना चाहे, र्ें र्ौललकिा है िथा ये तवरधचि है| सभी रचनाएँ
तवाृिं :सखु ाय ललखी गई है| इस अकंृ र्ंे नवम्बर 2021 र्ंे हुई बबना र्ौसर्
की बाररश पर “ररर्झिर्” नार् से तवरधचि रचनाएृं सृंकललि हंै| ये र्ेरी
कल्पना पर आिाररि है, िथा इनका ककसी भी व्यस्क्ि, तथान, घटना,
या वतिु से कोई सबृं ंिृ नही है| अगर ये पाठको के ददल को छू जािी है,
िो र्ेरा सौभाग्य होगा| कृ पया इन रचनाओृं पर अपनी राय अवश्य दंे|
िन्यवाद|
डॉ दहर्ाशृं ु शखे र
30.12.2021
शेखर सजृ न 1 © डॉ हिम ांशु शखे र
ररर्झिर् बाररश
ररर्झिर् बाररश आ गई, गगन से बाहर आज,
कल बरसी थी छद्र् पर, आज शहर पे राज।
भीृगं ा परू ा शहर है, र्ागशष ीर्ष का दजू ,
बाररश ऐसे र्ाधंृ गए, ररर्झिर् की हो गंृूज।
जब भी बाररश चादहए, ना व्रि, यज्ञ, अनुष्ठान,
के वल ररर्झिर् पाठ का, करना है गणु गान।
इच्छा हो बलवान िो, घटना घट ही जािी,
लसद्दि से र्ाँगा िो पाया, यही राज सर्िािी।
शखे र सजृ न 2 © डॉ हिम शां ु शेखर
छद्र् ररर्झिर्
ररर्झिर् र्ंे देखंेगे श्ंृगार, ऐसा भी होिा चर्त्कार,
बाररश र्ें भींगृ े िो बेहाल, पर इश्क का चढिा है
खुर्ार।
ररर्झिर् बाररश का लेखा, बृूंदें की लय भीृगं ींृ रेखा,
अलकें पलकंे चेहरा देखा, ना आलशक थे, किर भी देखा।
ररर्झिर् सखू े र्ंे हररयाली, ये अिरों की बनिी लाली,
चेहरे, बागों की भर थाली, ये बाररश जैसी ही र्िवाली।
तवागि ररर्झिर् करिे कु र्ार, जो राज पटल पर हों
तवीकार,
बस आप से शोभा है अपार, एक घृंटा ले आए बहार।
शखे र सजृ न 3 © डॉ हिम ाशं ु शखे र
ररर्झिर् के रूपों की चचाष, से भरे आज की पररचचाष,
ना धचनंृ िि हो ररर्झिर् से, इसपे घृंटे भर का खचा।ष
ररर्झिर् से अच्छा ववर्य नहींृ, इसर्ंे सब सच है
गलि नहीृं,
ये बाररश है, और सावन भी, पर अन्य रूप ही वविल
नही।ंृ
ररर्झिर् ऐसा है शब्द सुनो, ररर् और झिर् को अलग
बुनो,
कलकल, दटपदटप सा शब्द नहींृ, इसे लयबद्ि नहींृ
उन्र्ुक्ि सनु ो।
ररर्झिर् से आई है र्ुतकान, चलो सभी लेकर कर्ान,
शखे र सजृ न 4 © डॉ हिम ंशा ु शखे र
िीर खींचृ कर कर सृंिान, सबको हँसना होगा र्हान।
ररर्झिर् ही सबसे है बेहिर, ये शब्द उसी के है उत्तर,
सब साथ रहंे, हँसना सीखंे, कु छ वाक्य सृखं ्या हो सत्तर।
ररर्झिर् पे शरे ्नाग भारी, ये ज्यादिी है, हे सुकु र्ारी,
आज िो ररर्झिर् ही होगा, कल शेर्नाग की हो बारी।
ररर्झिर् पे ऐसी िैयारी, पूनर् जी ने बाजी र्ारी,
ववद्यालय सारे व्यति हुए, अब दो घृंटे की है पारी।
ररर्झिर् तवप्नों की िैयारी, बबतिर से कु छ की है
यारी,
शेखर सजृ न 5 © डॉ हिम शां ु शखे र
कु छ व्यति हुए हंै पर कु छ, आलतय िार, ले रहे
खुर्ारी।
ररर्झिर् पे ना बाररश आई, ना प्रसन्निा खाललस
आई,
सब व्यति खड़े हैं कक्षा र्ंे, बच्चों पर ये नाललश
आई।
ररर्झिर् र्ैने शब्द चनु ा, ससृ ्ष्ट प्रसन्न हो कई गणु ा,
उनकी अरािना करिा हूँ, उनकी लशव भस्क्ि कई
गुणा।
ररर्झिर् होिी है सदा सनु ो, कलकत्ता र्ें िो कल ही
सुनो,
शखे र सजृ न 6 © डॉ हिम ंशा ु शेखर
बस शब्द पकड़कर बैठा हूँ, बाररश होिी बस राज
सुनो।
ररर्झिर् बाररश का वरदान, पािे हर् िब जब करे
ध्यान,
जल िरिी का ही अवदान, जल चक्र का कर आह्वान।
ररर्झिर् पे हर्ने शोर ककया, आपकी ननद्रा र्ें बोर
ककया,
हे देव! आप िो ज्ञान तिंृभ, ददन र्ंे ही र्नै े भोर
ककया।
ररर्झिर् है र्ेरा ववर्य जान, ना पटल ने इसपर ददया
ध्यान,
र्ुिपर थोड़ा जो ददया ध्यान, िपृ ्ि हुआ र्ेरा ये कान।
शेखर सजृ न 7 © डॉ हिम शंा ु शेखर
ररर्झिर् का ना सजंृ ्ञान ललया, किर सावन ने व्यविान
ककया,
अब कहिा र्ंै कै से बरसृंू, ववशेर्ण का कार् िर्ार्
ककया।
ररर्झिर् का यूंृ गणु गान ककया, ररर्झिर् ने िब
अवदान ददया,
लशव बिशूल, बिनेि खोल, किर, भतर् र्ेरा सब र्ान
ककया।
ररर्झिर् पर ललखनी है ककिाब, ऐसा र्िु को आया था
ख्वाब,
जब से कानिकष र्ें सावन हो, भावनाओृं का उठिा
सलै ाब।
शखे र सजृ न 8 © डॉ हिम ाशं ु शेखर
ररर्झिर् पर ललखंूृ क्या परु ाण, बाररश, सावन का बस
बयान,
पर ललखनेवाले ललखिे जािे, ये शब्द नहीृं, इसर्ें है
जान।
ररर्झिर् पर र्ेरा बचा ज्ञान, पर एक घटृं े का खत्र्
ध्यान,
ललखा है पर सािा प्रर्ाण, आिा भी ना आया है
बाण।
ररर्झिर् र्ें कंे दद्रि ककया ध्यान, बस यही र्ेरी पूजा, ये
ध्यान,
बस र्न ववचार से शनू ्य हुआ, िभी िो र्ुिर्ंे बची
जान।
शखे र सजृ न 9 © डॉ हिम ंशा ु शखे र
ररर्झिर् पे सौ पृंस्क्ि सजृं ्ञान, आठ नहीृं िइे स ये
ध्यान,
ववचार आ रहे नूिन कई, ररर्झिर् कर बढिे हंै
वविान।
ररर्झिर् र्ें डू बा हूँ र्हान, बबन बाररश ही भीृगं ा हूँ
ध्यान,
सब पूछंे गे जब आऊृं गा, ककस सावन का था ये बखान?
ररर्झिर् जवपए या शेर्नाग, लशव शृंभु के ये बने
भाग,
र्िु पे भी हुई है कृ पा उनकी, वरना र्ैं बस बोला ज्यों
काग।
शखे र सजृ न 10 © डॉ हिम शंा ु शखे र
ररर्झिर् कहिी है शरे ्नाग, ज्यों गगंृ ा से ननकलेगी
आग,
ना बदल सके प्रकृ नि उनकी, गरल वसृ ्ष्ट का ना हो
राग।
ररर्झिर् एक घंटृ े से छाई, ये पटल िु हारें ले आई,
बस बही भावनाएंृ हजार, ववचार नए कु छ ले आई।
ररर्झिर् कहना जो बदंृ हुआ, किर पटल शािृं हो, र्ृंद
हुआ,
दहर्ाशंृ ु का गोला है अर्ान्य, ररर्झिर् सबको पसृंद
हुआ।
ररर्झिर् पर इिना सब बेकार, ये पटल भर ददया है
आभार,
शखे र सजृ न 11 © डॉ हिम शंा ु शेखर
अब िक न गए बाहर कोई, क्या र्ेरे सर लटकी
िलवार?
ररर्झिर् चलिी है कलर् िार, पर त्याग पटल दे, ना
तवीकार,
अब िक ना कोई गया छोड़, र्ेरा नम्बर ही है इस
बार।
ररर्झिर् र्ंे अश्ु ना तवीकार, ये सखु सृंबोिन, इसपे
बहार,
सावन र्ंे रािा श्यार् रास, ये सोच नई, नूिन ववचार।
ररर्झिर् करिी आई िु हार, देवाधिदेव की कर
जयकार,
शखे र सजृ न 12 © डॉ हिम ाशं ु शखे र
भस्क्ि भर भावुकिा पुकार, कर र्हादेव अलभर्के
अपार।
ररर्झिर् निू न पथ पर सवार, भस्क्ि से लर्लिे
संृतकार,
जय जय की स्जिनी है पुकार, नीचे से ऊपर चलिी है
िार।
ररर्झिर् बाररश का वरदान, पािे हर् िब ही, कर
ध्यान,
जल िरिी का ही अवदान, जल चक्र का करिे
आह्वान।
ररर्झिर् होिा चक्र ये भान, सयू ष ककरणे भी इक
वरदान,
शेखर सजृ न 13 © डॉ हिम ंाशु शखे र
भस्क्ि वाष्प जल से ननर्ाषण, बरसे बनकर बादल
वरदान।
ररर्झिर् बूृंदों का बन बखान, वपण्ड नहींृ कण कण है
र्ान,
हर बदंूृ र्ंे बसिे हैं भगवान, आह्लाददि बच्चे और
जवान।
ररर्झिर् का करना गुणगान, शब्द र्ें ननदहि सखु
पहचान,
बनिा ध्वनन से सुनना वविान, सुर है पर ना, सनु ी ये
िान।
ररर्झिर् होिा शब्द सुजान, नसै धगकष आवाजो का
भान,
शखे र सजृ न 14 © डॉ हिम ाशं ु शखे र
ररर् से झिर्, अलग हंै जान, टपटप सा ना एक
सर्ान।
ररर्झिर् ददल र्ें बसा र्कान, सुना शब्द ददल चढे
र्चान,
सराबोर कर दे हर कान, कट जाएंृगे सारे व्यविान।
ररर्झिर् भस्क्ि की है वविान, भक्िों र्ंे शस्क्ि, दािी
कृ पाण,
बाररश जसै े वरदान दान, ये शब्द चिदु दषक गंजृू ायर्ान।
ररर्झिर् अलौककक दे िृकं ार, लय, िाल, सरु ों की दे
बहार,
इसपर िरू ्ेंगे, सब िैयार, ररर्झिर् ईश्वर का
चर्त्कार।
शखे र सजृ न 15 © डॉ हिम ंशा ु शखे र
ररर्झिर् चंृचला, चपल होिी, सांसृ ाररकिा अव्वल होिी,
सबंृ ोिन कर जो सिल होिी, र्ुख, कणष आस सिल
होिी।
ररर्झिर् सावन के ज्ञानी, ररर्झिर् ना आएगा पानी,
ररर्झिर् बाररश ने ठानी, ररर्झिर् ऐसे बनी कहानी।
ररर्झिर् होिा इश्क आिार, किसलन, सृंभालंे हंै िैयार,
ये पुष्प बाण सा करे वार, ये है अनंृग पर, दृश्य द्वार।
ररर्झिर् गृगं ा की नहीृं िार, गगंृ ा हर हर करिी पुकार,
गंृगा लशव चरणों को पखार, है जटा बनी ननकास
द्वार।
शखे र सजृ न 16 © डॉ हिम शंा ु शखे र
ररर्झिर् का िप र्ंे हुआ स्जक्र, कदठनाई द्योिक है
ये किक्र,
िप कठोरिा का परचर् ले, बाररश र्ंे िप, ये हुआ
स्जक्र।
सृधं ्या र्ंे िरिी सूख रही, ररर्झिर् बाररश ये चाहेगी,
िप्ि करे सूरज ददनभर, ठृं ढी िो होना चाहेगी।
ये बादल का छोटा किरा, नेपथ्य र्ंे आकर कहिा है,
डरो नहींृ िरिीवालों बस, सूयष से लड़िा रहिा है।
िप्ि ककरण की ले िु हार, अब शीिलिा करिी पकु ार,
ना है सावन का र्ाह सकल, पर हधथया सा बरसे
गहु ार।
शखे र सजृ न 17 © डॉ हिम शंा ु शेखर
बादल िरिी का पुि र्ान, घर छोड़ गया था आसर्ान,
अब िरिी का सारा वविान, वापस हो जाए हर प्रयाण।
िरिी बादल दोनों देखे, आखँ ें अपनी लर्लकर सेंके ,
िरिी ना ऊपर उठ सकिी बादल को ववरदहणी सी
िकिी।
सावन का बादल सावन र्ंे, अब कानिकष वाला आएगा,
हर बार बरस जाने को यृूं, कोई ददलवाला आएगा।
शेखर सजृ न 18 © डॉ हिम ंाशु शेखर