शब्द सत्ता शशल्पी सवं ाद
भाग 34
दोस्तों!
“शब्द सत्ता के शशल्पी” नामक व्हाटसएप
समूह मंे होने वाली कववता ववननमय वववरण
आपके सामने प्रस्तुत है| इस बार के शशल्पी
सवं ाद मंे “होली” पर अलग अलग समय पर
साझा की गई कववताओं की एक झलक
देखिए|
डॉ हहमांशु शेिर
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 1
होली
अनुक्रमखणका
चूहे की होली
होली में
उत्सव है जीवन
मधरु संबधं की पपचकारी
डॉ. सतीश चन्द्र भगत
आज होली है
बजृ की होली
सरु ेन्द्र प्रजापतत
होली
भरत शसहं सोलंकी
होली
बबन्द्दु श्रीवास्तव
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 2
चहू े की होली
सजधज कर आए चूहे जी
होली में हुड़दंग मचाने |
मुननया- चुननया लेकर आई
रंग अबीर गलु ाल लगाने |
सबके घर से आ रही सगु धं
मन ही मन ललचाई बबल्ली |
चूहे की चहलकदमी देि
िुशशयों से इठलाई बबल्ली |
चूहे राजा आ जा आ जा
प्रीत लटु ाने आई बबल्ली |
शब्द सत्ता संवाद,भाग 34 3
छोड़ हुड़दंगी भागे चहू े
होली कहाँा मनाई बबल्ली |
भाग रहे थे डरकर चूहे
पीछे - पीछे आई बबल्ली |
रंग भरी लेकर वपचकारी
िेल रही थी रानी बबल्ली |
चहू े की होली में चकू ी
मन ही मन शमाया ी बबल्ली |
चूहे राजा िेले जमकर
होली मंे ललचाई बबल्ली |
शब्द सत्ता संवाद,भाग 34 4
होली मंे
मन करता है मैं भी जाऊाँ
होली की हुड़दंग मचाऊं
दादा जी के गाावँ मंे |
उनकी छड़ी ले जाऊाँ गा
हल्लम- हल्ला भी मचबाऊं गा
वो पीपल वाली छावं में |
छककर िाएं हलुआ- पआु
जमकर िेलें रंग होली में
घुघं रू भी बोले पांव में |
शब्द सत्ता संवाद,भाग 34 5
उत्सव है जीवन
जीवन हरा- हरा पेड़
जहाँा चचडड़यों की तरह
फड़फड़ाते हंै बच्चे
मनाते हंै उत्सव
प्यारे- प्यारे बच्चे |
जीवन है उत्सव
जहााँ हंसते हुए िेलते हंै
भांनत- भांनत के िेल
प्यारे- प्यारे बच्चे
बचपन- लड़कपन
शब्द सत्ता संवाद,भाग 34 6
आनंदमय जीवन मंे
हंसी- िुशी से
बबताते हंै समय
प्यारे- प्यारे बच्चे |
फू लों जसै ा हंसते हैं
चचडड़यों जसै ा चहकते
प्यारे- प्यारे बच्चे
होली की हुड़दंग शलए
माटी- माटी में रंग शलए
धलू ों में शलपटते बच्चे
खिल- खिल -खिलकर हंसते
शब्द सत्ता संवाद,भाग 34 7
बच्चे कहााँ ककसी से डरते हैं
िबू उछलते जीवन मंे
उत्सव - उत्साह उमंगें
भर -भर चचडड़यों जसै े
चहकते, फड़फड़ाते
प्यारे- प्यारे बच्चे |
मधरु संबधं की वपचकारी
फागुन मस्ती लेकर आया
तन- मन शीतल करने वाली
रंग- बबरंगे रंगने वाली
रंगों मंे घलु जाने वाली
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 8
मधुर सबं ंध की वपचकारी |
इन्द्रधनुषी रंग ननकल रही
ऊँा च- नीच का भेद- भाव
समतल कर, मधरु सबं धं
जागतृ करने वाली वपचकारी |
सब कहते हैं िशु शयों वाली
फागुनी बयारों से घलु शमल
तन - मन शीतल करने वाली
होली उमगं ों की वपचकारी |
शब्द सत्ता संवाद,भाग 34 9
पकवानों से भरी हो थाली
भूिे- नगं े सोए ना कोई
हर हदल हंसें- हंसाये सब हदन
भाईचारा मधुर-प्रेम की वपचकारी|
डॉ. सतीश चन्द्र भगत
आज होली है
यह धरती की अंगड़ाई है
िुशशयाँा भी िुब बौराई है
भाव, बोध, ववचार, स्वप्न
ढंग, तरंग, रंग मंे छाई है
शब्द सत्ता संवाद,भाग 34 10
आज मुक्त है, वात मचलता, चाहो जो
संगृ ार करो
आज होली है, अनजान पचथक सगं , मुक्त
ववहार करो
जो शाशमल हैं, प्यार मंे तरे े
उसे जा आशलगं न कर लो,
तोड़ो, रूहि-रीनत, नीनत को
अपररचचत से शमलन कर लो
आज न रोके गा कोई भी, जजसे चाहो वर लो
हृदय की झकं ृ त वीणा पर, राग रंग भर लो
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 11
प्रेम राग है, प्रेम रंग है
ईर्षयाा बैर धो, लो मन की
जीवन में जागनृ त ला दो
देिो हरर, मन दपणा की
आज नहीं बरजेगा कोई , मनमानी कर लो
होली है तो आज शमत्र को, पलकों मंे भर
लो
आघात प्रनतघात से भरे साल
और षड्यंत्र इरादों का
आज शानं त का संचध कर लो
तरुण, प्रफु जल्लत वादों का
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 12
शत्रु को भी मीठे ववषम्य से, बाहों मंे भर
लो
होली है तो परदेशी को, अपने वश में कर
लो
आज न कोई संधान करेगा, स्वतंत्र ववहार
करो
होली है तो चगरे हुए को, उठा अंगीकार करो
बजृ की होली
आज बजृ में ऐसी धमू मची है
सिी सहेली सब रंगोली रची है
शब्द सत्ता संवाद,भाग 34 13
गावत फाग, मदृ ंग संग ग्वाला
नाचे लशलता संग कृ र्षणा गोपाला
रंग गुलाल उड़े अम्बर रंगीला
हरी भरी धरती के चनु ररया पीला
मदन बसंत ऋतु मंे माधुरी बसी है
आज बजृ में ऐसी धमू मची है
रंग में रंगीन भयो, राधा की चुनररया
नघरी-नघरी आए जैसे लाली बदररया
बरसे फु हार राग मन मतंग बौराए
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 14
देिी-देिी गोवपयन के मन हशाएा
गोरी-गोरी राधा के यौवन अलसाए
श्याम वपया िेले, हरशस चचत लाए
आज बजृ की कली मंे प्रेम कसी है
आज बजृ मंे ऐसी धूम मची है
सुरेन्द्र प्रजापनत
होली
गजुं जया पापड दही बडे रबड़ी और शमठाई
िा पीकर सब गा रहे होली आई होली
आई।।
शब्द सत्ता संवाद,भाग 34 15
होली िेलत कफर रही हुररयारों की टोली
चंग शमरदंग ढफ बज रहे लो कफर से आयी
होली।।
बालसिा शमल सगं मै शशव की बटू ी
घोली।
ढोल बजाते रशसया गाते घूम रहे
हमजोली।।
भर वपचकारी रंग की डारी भीगी आचाँ ल
चोली।
सजना की आिँा ों के रंग से मंै साजन की
हो ली।।
देि ललक मदूं गई पलक वप्रय धीरे से यों
बोली।
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 16
उड़ रही गलु ाल हुए अधर लाल अब ले
जाओ तुम डोली।।
हदलमंे उमगं यौवन का संग बहे प्रेम रंग
रंगा अगं अंग नज़रें सजनी की डोली।
ले जाओ सगं होकर मलंग कफर शमल के
िेलंे होली।।
भरत शसहं सोलंकी
होली
मन मलै ा शुद्ध चचतं न से सधु रे।
तन मैला को साबनु ;
शरीर अस्वस्थ हो जब शसकु ड़े ।
याद करो डाक्टर बाबू।
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 17
जोचगरा सरररर सररर,
सररर,सररर सररर
हवा हम सब की हमसफर ।
जल धोती सब,जग जानी।
जहााँ शमलते हो हदल िोल के शमलो ।
नही शमलेगी जवानी ।
जोचगरा सररर सररर सररर
कभी बूढा ढोता बच्चा;
कभी बच्चा बढू ा ढोय।
तरे ा मेरा क्या करता;
वही कटेगा जो बोय।
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 18
जोचगरा सररर सररर ।
नोट बंद में कु छ नोट ननगल गये ।
जज एस टी की हो रही खिचातानी।
शस -ए को तमु कम मत समझो ।
ये सभं ल कर करते कररस्तानी । जोचगरा
सरदार सररर सररर सररर ।।
बबन्द्दु श्रीवास्तव
शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 34 19