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Published by Himanshu Shekhar Hindi Poet, 2020-10-31 20:36:55

31.10.2020

31.10.2020

शब्द सत्ता शशल्पी संवाद

भाग 12: रश्मि रेखा

दोस्तों!

“शब्द सत्ता” के शशल्पी नामक व्हाटसएप
समहू में होने वाली दैननक कववता ववननमय
वववरण आपके सामने प्रस्तुत है| आज
ददनाांक 31.10.2020 को “जन्मददन” ववषय
पर साझा की गई कववताओंा की एक झलक
देखिए|

डॉ दहमााशं ु शेिर

जन्मददन ववशषे : रश्मम रेिा

इस अकंा के शब्द शशल्पी गण

बिन्दु श्रीवास्तव
प्राणेन्र नाथ शमश्र

सुवप्रया पाण्डे
डॉसतीश चन्र भगत .

प्रेरणा पाररश
आशीष दीक्षित

मीनू वमाा
सरु ेन्र प्रजापनत

जन्मददन

जन्मददन जगाता:::, जमाता:::, जेि का
जुगाड़ ।

गरीि िच्चों को न होता;
इनसे कोई सरोकार ।

आददकाल मंे इनकी कहााँ कोई
परछाई थी ।

सभ्यता ववकास िाद :-
इक्के -दकु ्के राज दरिारों;

आशशवाचा न के शलए;
शसर्ा इष्ट पूजाई थी।

स्वाशभमान का सवाल िना है ।
गोरों के नगाड़े से ।
हमंे पता है:-

मेरे देश के बिनोवा भावे ;
कभी पाटी नही पधारे थे
देश के गरीि िच्चे होते ;
उनके आाँिों के तारे थे ।

वतन के उन िच्चों को
देिें ।

श्जन्होंने कभी थाली नही
सजायी ।

मौज, मोमिवत्तयों, मुस्कान मशू ्च्छात
उनकी ।

जूठन, जंाग , के जुगाड़ में;
हैप्पी, झप्पी, पप्पी कह;
ककलोल नही मचाई।
मनाए इनको जरूर ।
मेधावी छात्रों को एक
कदम िढा ।
आत्मा को दीश्जये;
शभु शुरूर ।

कर्जूल िची के िोलसे हटा।
वतन र्ररमता िने ।

नव - ननमााण का ननशान छोड़।े
दे एक नई छटा ।

बिन्दु श्रीवास्तव

कभी ख्वािों में देिा है
कभी आहों मंे देिा है
कभी लहरों में देिा है
कभी राहों मंे देिा है ।

जनम ददन है तुम्हारा आज
रातंे है ये पूनम की

तमु ्हंे ऐ ददलनशींा ! हमने

चाांद की िाहों में देिा है ।

कल चांदा ननकल कर चला गया
आयगंे ी अमावस की रातंे

अि कहना िाकी कु छ भी नहींां ंा
हो गई ख़तम सारी िातंे।

चांादनी र्ै ली, शसतारे झूमते हैं
रोशनी लेकर नयी, आए हंै वो,
चादां भी झांाके झरोंिों से उन्हें
जन्मददन पर चाादं से िन आए जो

जन्म- ददन नहींा, िश्ल्क जन्म पर--:

यह, प्रथम रश्मम का आह्वान
नवजात की प्यारी ककलकारी,

मुददत, मधुर, मोहक, मांथथत
िथगया में प्रथम नततली प्यारी..

हे प्रथम रश्मम! तेजस्वी की
मेरा प्रथम स्नेह स्वीकार करो,

अलोक समाये मन मन में
हम सि पर तुम अथधकार करो !

प्राणेन्र नाथ शमश्र

जन्मददन

वह ददन भी आम था
गुमनाम था

जैसे सि को मेरे आने का
िेसब्री से इंातजार था
6 िेटों के िाद
पोती पाई थी
इसशलए मेरे िािा ने

1 महीने गाावं मंे शमठाई िटवाई थी
ति जन्मददन मनाना

ककतना आसान होता था
स्कू ल मंे टॉर्ी बिश्स्कट िांाटना भी

दोस्तों में िड़ा िास होता था
उस जमाने में छोटे-मोटे
तोहर्े नहीां शमला करते थे

एक जन्मददन पर किज तो
अगले पर टीवी हम शलया करते थे

शादी के िाद पहला जन्मददन
पनतदेव ने धमू धाम से मनाया

नया-नया था प्यार
तो हमंे कंे पटी र्ॉल घमु ाया

जन्मददन की चमक
जरा ढलने लगी थी
अके ले ही उस ददन का जमन मनाने

मंै ननकलने लगी थी
एक जन्मददन पर ईमवर से

अनमोल उपहार पाया
जि ठीक उसी ददन
भाभी ने एक नन्ही परी को जाया
वह ददन अि आम से
िहुत िास हो गया
जि से हम िुआ भतीजी
का जन्मददन एक साथ हो गया

सुवप्रया पाण्डे

जन्म ददवस

शुभ हो जन्म ददवस तुम्हारा
ऐसी कामना हमारी है |

नव दीप लेकर चलो तुम
दीप ऐसे जलते रहे,

सर्लता की मशंा ्जल चूमो
र्ू ल जैसे खिलते रहे |

िाली न हो हाथ तुम्हारा
ऐसी कामना हमारी है |

ऐसी लगन से िढो तुम
बिध्न-िाधा न आये कभी,

सुिमय संासार िनी रहे
आपदाएाँ न आये कभी |

मुाहं पर हो मसु ्कान तमु ्हारा
ऐसी कामना हमारी है |

डॉ. सतीश चन्र भगत

जन्मददन : एक आत्मननरीिण

श्जस ददन आिां ंे हमने िोलीां
मांा की गोदी मंे िदु को पाया,

मांा तो िस थी इक जररया
ववधाता ने हमको िनाया,
इस ददन को ही हम सभी
जन्मददन अपना मनाते हैं,
िशु ी मंे धरती पर आने के

ििू शमठाई िाते हैं,
पाकर इस ददन उपहार कई

र्ू ले ना हम समाते हैं।

शमट्टी से ही हंै ननशमता हम
शमट्टी में ही शमल जाना है,
ना लेकर आए थे ति कु छ
ना लेकर ही कु छ जाना है,
लोभ मोह कर्र क्यंूा इतना
कु छ भी ना जि अपना है,

जीवन है पल दो पल का
िीत जाता जैसे सपना है,
चल िठै इस जन्मददन सि
कमों का अपने दहसाि करंे,
ददिती हों जो कु छ त्रदु टयाां

उन सि का हम सुधार करें,
जि हम ना हों जग याद करे
कु छ तो ऐसा हम काम करें !

प्रेरणा पाररश

जन्मददन मुिारक

जन्मददन का तुम्हंे
मंै आशीष देता हूां
नया आयाम देता हूां
नया पैगाम गाता हूां

जवानी हो तो ऐसी हो
श्जसमें इंासान पलता हो
श्जसमें हैवाननयत गर है
तो समझो शतै ान िैठा है

जवानी को गढो ऐसे
नया आकार दे देना
इसे ककसी भी अथा कर देना
याूं ही ना व्यथा कर देना

लगाओ दम कमाओ यस
यही आशीष देता हूंा

नया आलोक िन चमको
यही मैं आश करता हूां

हजारों ख्वाि देिे थे
कभी उन िढू ी आािं ों ने
उन्हींा का ख्वाि िन जाओ
यही मंै आश करता हूंा

आशीष दीक्षित

"जन्मददन"

कर्र से जन्मददन आया है,
सि ने, धूम मचाया है।

तयै ारी कर रहे हैं तारे भी
प्रज्वशलत दीप ककए हंै, उसने भी।

सरू ज ने भी गगन से अपना
प्यार भरा, पगै ाम भेजा है।
मनंै े भी तहे ददल से......

अपना सलाम भेजा है।

कोयल ने भी अपनी तान को,

तरे े, इस ददन पर वारा है
रचनाकारों ने भी रच डाली
अनेक, कववता इस ददन की।

तरे े आगमन की िुशी मंे ,
चहक रहे हैं ,पिीगण भी,
जन्म ददन की िशु ी में,
प्रकृ नत भी मांत्रमुग्ध हो गई।

पाकर तरे ी मोदहनी झलक,
सूरज भी दे रहा,उषा का उपहार।।

घर का हर एक सदस्य,

िशु ी से है, झूम रहा।
िार-िार सि तुमको
हैप्पी िथडा े है, िोल रहे।

जीवन का हर पल हो िास,
हर ख्वादहश परू ी हो तमु ्हारी आज।

रि से, मेरी यही र्ररयाद
जमीन से अंिा र तक िस,
छाया रहे तुम्हारा ही राज।

जीवन में िशु शयों के झोंके ,
आते रहंे िार-िार।

सर्लता का सोपान करो तुम,
अपने हर प्रयास के िाद।

तोहर्े में िस सि दे जाए, तमु ्हंे,
िशु शयों का खिलखिलाते उपहार।।

मीनू वमाा

मााँ की स्वश्प्नल पीड़ा में
आशा की ककरण लहराई
नई सशृ ्ष्ट मंे नई कृ नत का
जीवन ने ली अंागड़ाई ।

स्वागत करो हे ग्राम देवता
शैशव-स्पंादन, स्वीकार करो
ऐ जागरण के दतू , रवव !
नव सौरभ को अगंा ीकार करो

सरु ेन्र प्रजापनत


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