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Published by Himanshu Shekhar Hindi Poet, 2021-02-05 10:46:55

05.02.2021

05.02.2021

शब्द सत्ता शशल्पी सवं ाद

भाग 26

दोस्तों!
“शब्द सत्ता के शशल्पी” नामक व्हाटसएप
समहू मंे होने वाली दैननक कववता ववननमय
वववरण आपके सामने प्रस्तुत है| आज 04
और 05 फरवरी 2021 को साझा की गई
कववताओं की एक झलक देखिए|

डॉ हहमाशं ु शेिर

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 1

हदनांक: 04-05.02.2021

दशावतार

इस अंक के शब्द शशल्पी गण

सुलेिा कु लश्रेष्ठ, बंेगलुरु

प्रेरणा पाररश

अरूण कु मार दबु े, पटना

सरु ेश वमाा
अमन बबश्नोई

मीनू वमाा
प्राणेन्द्र नाथ शमश्र

ववनीता शमाा, बंेगलूरु

भरत शसहं रावत भोपाल
डॉ. सतीश चन्द्र भगत

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 2

पेडों के झरु मटु से सूरज झांका चमक कर।
ककरणों के रूप को ननिारा दमक कर।
पंनियों ने रौनक कर दी चहचहाकर ।

लो ईश्वर ने कफर सबु ह कर दी नया हदन
बना कर।

सलु ेिा कु लश्रेष्ठ, बंेगलुरु

उदासीनता िोडो

कु ि भी नहीं बदलेगा
अगर सोच ना बदल सके ,
िोड उदासीनता जो हम
पहल ना कोई कर सके ,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 3

हर मुद्दे पे ही ये जो हम
चुप्पी का ताला जडते हंै,

ननशलपा ्त ननववका ार से

नीदं मंे जो सोते हैं,

भय भिू भ्रष्टाचार भी जब

तरं ा ना भंग करते हों ,

ववकार रूह़ियों पतन से

जगं ही ना करते हों,

लाचारी बेचारगी समाज की

हमको ना जब सताती हो,

दरू क़िर वो हदन नहीं
जब वक्त ऐसा आएगा,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 4

समाज और देश क्या

पररवार भी बबिर ये जाएगा,

िाशमयाजा उदासीनता का

भारी हमंे ना पड जाए,

नाव जीवन की कहीं

तफू ानों में ना निर जाए,
जाग जाओ, जागरूक बनो

बदलाव का समरूप बनो,

पहचान अपनी शक्क्त और

जान अपने फर्जा तुम
इक नई शुरुआत करो,

िोड उदासीनता

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 5

कतवा ्य आत्मसात करो।

प्रेरणा पाररश

हे गोपाल!

मझु े बस तरे ा ध्यान रहे।
मेरे गीतों की तान रहे।।
तू बन जा शब्द मेरी वाणी मंे,
ऐसा भाव पदै ा करो मन मंे।
कोई भय ना रहे मन मंहदर में।।।
नाही कोई मन में अशभमान रहे।
मझु े बस तरे ा ध्यान रहे।।

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 6

तू एक सच्चे सारथी की तरह,
सदा साथ रहकर बेडा पार करो।
जग करे भले नतरस्कृ त मझु को,
ककन्द्तु तमु हृदय से स्वीकार करो।।

समता व ममता का शमश्रण,
सच्चे वप्रयतम अलबेले हो।
पग-पग पर साथ रहो हरदम,
हमसफर तुमहीं तो अके ले हो।।

अरूण कु मार दबु े, पटना

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 7

आसं ू

महज पानी नहीं
दिु ों से
लडने का

कारगर हथथयार है आसं ू
इसे बेवजह

बहने मत देना।
गा़िे हदनों के शलए
अपने आसुओं को
सहेज कर रिना ।

सरु ेश वमाा

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 8

शलिते तो हम भी हंै ककसी की जबु ान नहीं
च़िता

इश्क़ तो हमने भी ककया है बस परवान
नहीं च़िता

हौंसला,हुनर चाहहए इन बुलंहदयों को िू ने
के शलए

यहााँ कोई बबना मेहनत यूँा ही आसमान
नहीं च़िता

अमन बबश्नोई

खिली है धपू आज

खिली है जब से धपू आज,

हदल गुनगुना रहा है राग,

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 9

मौसम गुलाबी हो गए हंै,
देिकर मेरे चेहरे की बहार।

धूप झाकं कर देि रहा है,
आगं न मंे आकर बार -बार।

शायद वह कु ि सोच मंे है,
कु ि गमु सुम िामोश भी है,

मेरे मन के हर्ा से,

थोडा वह अनजान भी है।

मत पिू ो, क्या हुआ है आज
अतं मना मंे िाई है, बहार।

अपने भी आश्चयचा ककत है,

देिकर मेरे नयनों का प्रकाश।

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 10

हवाएं चपु के से िर में आकर,
जानना चाहती है,मेरे हदल का राज।

शायद, वह कु ि अचशं भत है,
मेरे िशु ी मंे निपे राज से,
थोडी वह अनजान भी है।

पाकर खिली -खिली धपू को,
हृदय मेरा हैं, बाग -बाग।

गमा वसन को िोडकर,

कफर से हुआ है मन गलु र्जार।
शमला है,शीत के कहर से,

सबकी काया को ननजात।

िर से बाहर ननकलकर सब,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 11

ले रहे हंै रवव का प्रकाश।
खिली है जब से धपू आज
मन पुलककत हो, गा रहा है राग।

मीनू वमाा

इस खिली सी धूप सा

चलो हम भी खिल जाते हंै,

िोड सारी उलझनें

मधरु सा गीत गाते हंै,

ननकला है चमकता सूरज

बादलों को चीर कर,

हम भी आशाओं का सरू ज

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 12

ननराशा को हटा खिलाते हंै।

प्रेरणा पाररश

शाम के नाम: एक ग़र्जल
क्र्जन्द्दगी.....

अपने ही रार्ज बता, ककतने िु पाएगी हमसे,
क्र्जन्द्दगी ! ककतने गनु ाह और कराएगी
हमसे?

जो भी शमलता है, ररश्तों मंे बदल जाता है,
मतलबी ररश्ते भला, ककतने ननभायेगी
हमसे?

देके तकदीर तनू े, हाथ पावं बाधं े हंै,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 13

राह तरे ी मगर, रस्ते तो चलाएगी हमसे?

आसमां पार तो, तूने िु पा के रिा है,
शसतारे तोडने की, उममीद लगाएगी हमसे।

जवानी पार करते ही बहुत कमर्जोर पुशलया
है

बंता दे ककस कदम मे, वह ढहाई जाएगी
हमसे?

प्राणेन्द्र नाथ शमश्र

साहहत्य

साहहत्य समाज का दपणा है,
मनोभावों का उद्गार है,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 14

इसमंे गद्य एवं पद्य़ है,
मानव की अशभव्यक्क्त है,

कभी समाज का ननमाणा ,
कभी ववध्वंस का आइना है,

कभी इनतहास बताता,
कभी आशा जगाता,

यह लेिनी का सजृ न है,
हर भावों का थचतं न-मनन है,

यह लेिक का उद्गार है,
यह कवव के शब्दों का श्रगंृ ार है,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 15

क्जसे साहहत्य से प्यार नहीं,
उसके व्यक्क्तत्व का ननिार नहीं

ववनीता शमाा, बंेगलूरु

तलाश जारी है .......

(१)

सासं ें तो चल रही हंै

क्र्जन्द्दगी की तलाश र्जारी है,

हुजूम में इंसानों की
इंसाननयत की तलाश र्जारी है,

बह रही हंै मस्त हवाएं मदं मदं

कफर्जाओं में सकु ू न की तलाश र्जारी है,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 16

ररश्ते तो हैं कई क्र्जन्द्दगी में

िोए एहसासों की तलाश जारी है।

(२)

तलाशती हूाँ बीते पल
ढूंढती वो गुजरा कल,

तलाशती मााँ का दलु ार

भाई बहन की मीठी तकरार,

वो रूठना, वो मनहु ार

ढूंढती वो वपता का प्यार,

तलाशती सखियों का संग

दोस्ती के रंग उमंग,

वो गुडडया वो दनु नया

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 17

वो शहर वो गशलयााँ ,
वो ख़्वाबों की पररयााँ
वो पापड वो बररयाँं ाँ ,
ढूंढती वो अपनापन
तलाशती हूाँ वो जीवन,
लौटंेगे ना , है ये िबर
माने ना हदल, ये बेसबर.....
और ये तलाश अब भी जारी है.....

प्रेरणा पाररश

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 18

हाथों की लकीरें
मनुष्य को,

बीता हुआ सुि ही,
द:ु ि सबसे,

अथधक दे जाते है।
परु ानी िुशशयां ही.......

एहसास गम का,
अथधक हदलाते है।

हसीन सपने,
टू टते ख्वाबों पर हावी,

सदा हो जाते हैं।
हाथों की लकीरे भी,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 19

मुक्श्कलों में साथ,
ननभा नहीं पाते हैं।

बीती हुई,
यादो की िशु बू ही,
हमेशा हदल को धडकाते है।

मनषु ्य को.....
बीता हुआ सिु ही,

द:ु ि सबसे,
अथधक दे जाते है।

पुष्प पथ पर चलते वाले,
कष्टों से.....

िबडा जल्दी जाते हंै।

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 20

जीवन को कठपुतली.....
चदं लकीरों की,

समझने लग जाते हैं।

मीनू वमाा

गीत

फू लों का मकरंद तुमहारी बाहं ों में।

सासं ों का अनुबंध तमु हारी बाहं ों में।।

प्रणय ननवेदन करने में ऐसा डू बा।

शलि डाले कई िं द तमु हारी बांहों मंे।।

फू ले सरसों और आम बौराए हंै।

िेतों पर धानी सी चनू र लाए हंै।।

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 21

कू क रही कोयशलया मन भावन स्वर में।
जैसे लगा बसतं तुमहारी बाहं ों मंे।।
डोल रहा बागों मंे भ्रमर बना रशसया।

दीवानों सा है कशलयों का मन बशसया।।

मुहदत हुआ ज्यों वो पराग को पाकर के ।
शमला वही आनंद तुमहारी बाहं ों में।।
तोड हदए मनैं े सारे जग के बधं न।

मन मंे मेरे जब से महका प्रेम समु न।।

जग के बधं न मुझे कै द से लगते थे।
आकर हुआ स्विं द तमु हारी बांहों में।।

रावत आओ एक दजू े मंे िो जाएं।
दोनों शमलकर आओ एक हम हो जाएं।।

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 22

कौन कहेगा क्या इसकी थचतं ा कै सी।
िू ट गए सब द्वंद तुमहारी बाहं ों मंे।।

भरत शसहं रावत भोपाल

आ गया, अब तो श्याम,
मैं शरण तरे ी लो आ गया।

जाने कहााँ-कहाँा पर ,
भटका तेरा ये दीवाना।
दर यह तमु हारा बाबा ,
मेरा आखिरी हठकाना।।
क्जसपे ककया भरोसा,
उसने ही आिँा फे री।

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 23

लो आ गया, अब तो श्याम,

मैं शरण तरे ी।।

मुझे थामलो दिु ो से,
आया हूाँ हार करके ।
थक सा गया हूँा बाबा,
जग को पकु ार करके ।।
मझु े थामलो दिु ो से,
आया हूँा हार करके ।
थक सा गया हूँा बाबा ,
जग को पकु ार करके ।।
इक आश हदल मंे मेरे ,

बाकी है श्याम तरे ी ।

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 24

लो आ गया , अब तो श्याम ,
मई शरण तरे ी।

चरणों की धूल दे दे,
मझु को भी हे दयाननधान।

मझु े कर दो मेरे बाबा,
अपनी भक्क्त प्रदान।।

अरूण कु मार दबु े, पटना

तरूणी से गहृ णी

शसदं रू ने सज कर सबल ककया

अरुणा बन कर, वप्रय बधं न को,

प्रनतबबबं बत हुए श्रंगृ ार सभी

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 25

दपणा आया अशभनन्द्दन को।

पररपणू ा हुआ मेरा जीवन

मैं बनी धाररणी पथृ ा सदृश,

कहीं लव की ककलकारी गंूजे

कहीं खिल खिल कर हंसता है कृ श।

है प्रकृ नत सरीिा िर मेरा

बादल की बदंू ंे सावन मंे,

कभी प्रिर धपू दोनों के मन

ज्यों फसल, िेत के आगं न में।

बासतं ी पररधान पहन

नाच,ूं बन िेतों की बाली,

कभी ऊर्ा बन कर नतृ ्य करूं

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 26

कभी सधं ्या की मोहक लाली।

प्राणेन्द्र नाथ शमश्र

तमु हारे ख़त,
जो शलिे थे तुमने
तीस साल पहले,
आज डडथियों के पीिे
फटेहाल ननकले.....
क्जन्द्हें थामने पर
कांपता था मेरा हाथ,

वे आज
हाथों मंे पडे

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26 27

कर रहे हंै संताप....

प्राणेन्द्र नाथ शमश्र

आयी नई ककताब
रंग- बबरंगी
थचत्रों वाली
िपकर आयी

नई ककताब |
देिो लल्लू

उलट- पलट कर
कववता वाली
नई ककताब |
लाल टमाटर

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 26 28

जामनु काला 29
थचत्रों वाली

नई ककताब |
िेल - िेल मंे

हंसी- ठहाके
प़िे सभी शमल
नई ककताब |
प़ि- शलिकर िशु
रहे हमेशा
हम भी प़ि लंे
नई ककताब |

डॉ. सतीश चन्द्र भगत

शब्द सत्ता संवाद,भाग 26


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