शब्द सत्ता शशल्पी संवाद
भाग 2
दोस्तों!
“शब्द सत्ता” के शशल्पी नामक व्हाटसएप
समूह मंे होने वाली दैननक कववता ववननमय
वववरण आपके सामने प्रस्तुत है| आज
ददनांका 11.10.2020 की एक झलक देखिए|
डॉ दहमााशं ु शेिर
प्रेम भक्तत पर काव्य गोष्ठी
*कवव-गण*
सुवप्रया पाण्डे ("शसया")
अरूण कु मार दबु े
प्रेरणा पाररश
कु मार सौरभ
ददनाकां : 11-12.10.2020
कै से मैं तरे ा ऐतबार करूँू
कै से बता मैँ अब तुझसे प्यार करूूँ
मनंै े तो चाहा था बबना शतत के तझु े
तुझे ही शौक था मैं प्यार भी दहसाब
ककताब से करूूँ ....
कै से मंै तरे ा ऐतबार करूूँ ,
कै से बता मैँ तझु से प्यार करूँू ?
मनंै े तो चाहा था बबना शतत के तुझे,
तझु े ही शौक था कक मंै प्यार तुझसे
बेदहसाब करूूँ ...
इस दहसाब ककताब को
प्यार का नाम दंाू मंै कै से
प्यार को बना दांू मैं व्यापार कै से
होता नहींा प्यार सनम देिो ऐसे
ये तो है मंाददर के दीपक के जैसे।
प्यार की बात चली है तो चलाये रिना
कु छ दरू तलक तो ये ददया जलाये रिना
आजकल चंाद कदम ही चल पाता है ददल
लौ अपनी सांभाले आधँू ियों का गुरुर थमाए
रिना
प्यार पता ही चल जाये
तो ऐसे प्यार का तया करें
दहसाब ककताब तो आती नहीां
बस जी चाहता है कक बस प्यार करंे
ये मदंा दर है व्यापार नहींा
स्वाथत इसका आिार नहींा
ये तो लोगों इक पजू ा है
इसका कोई नाम ना दजू ा है।
ये तो दररया का पानी है
रुकती ना इसकी रवानी है
इसका तो यारों तया कहना
जीवन का तो है ये इक गहना।
तुम कौन हो?
मेरे गीतों का राग
या मेरी ग़ज़लों की आवाज
शब्दों में नछपा
मेरा बेइन्तहे ाँू प्यार
मेरी आिँू ों की प्यास
मेरे िामोश लबों का इांतज़ार
तुम कौन हो?
ना जाने कौन कौन
इन शब्दों को, आइना बनाता होगा
कौन इनमे अपने ख्वाब सजाता होगा
और म,ंै बेिबर
बस तझु को ही सोच कर
अपने ददल के एहसास
यूँ कागज़ पर उतार
ढूांढ़ती हूँ तुम्हे इस पार
तमु कौन हो?
मैं वही हूां जो श्याम की आिां ों में बसा था
कभी
मैं वही हूां जो मीरा ने भी ककया था कभी
मंै तो पववत्र हूंा ननरंातर हूंा
एहसासों का समदंा र हूां।
शलिना तो मंै भी बहुत कु छ चाहता हूँ
बस मेरी चाहत ही ऐसी है
कु छ शलि ही नहीां पता हूँ
*बहुत कु छ सोचा पर तया शलिा*ूं
*कभी आप, कभी म,ैं कभी हम शलिां*ू
*आप का प्यार शलिांू, आप की वफा शलिं*ाू
*आप की शरमो हया शलिांू,*
*आप की बातें शलिांू?*
*आप के साथ बबतायी हसीन रात शलिांू?*
*अब आप ही बताइए कक मैं तया शलिाूं?*
कई ददनों से सोचती हूँ शलि दूँ ू कु छ
जब से उसकी याद जरा ज्यादा आती है
कफर सोचता है मन
की रहने दो
तयों उसकी याद भी शब्दों में वपरो के
सरेआम रि दँू ू
कु छ और तो नहींा रहा अपना
बस ये याद ही रि लूँ
सजंा ोए जा इन यादों को
िशु बू से इनकी भर ले दामन
कहींा कोई कररश्मा हो जाए
वो हकीक़त में कफर आ जाए।
और तया सबूत दँू ू की
आज भी शसफत तुझसे प्यार करती हूँ
जो कभी पाया नहींा मनैं े
मंै उसे ही िोने से डरती हूँ
*हम सारे वादों को ननभाएांगे,*
*क्जदंा गी को सफल बनाएंागे,*
**तुम जो संाग बने रहो,**
*तुम वादा करके मकु र ना जाना।*
*मेरे ददत प्राथनत ाओंा को िोरी-कोटी ना
सुनाना।।*
*कफर भी तमु से ककया वादा ननभाउां गा,*
*तुम जो संाग बने रहो।*
*तुम्हारे कारण हर चाहत से इज़हार है
मेरा,*
*तुम्हारे कारण हर जीत से प्यार है मेरा,*
*मेरा सीरत ये बढ़ता रहेगा,*
*तमु जो सगंा बने रहो।*
*कल को कायनात बदल दांगू ा,*
*हर हार को जीत लंगाू ा,*
*हर कोशशश वो बार बार करुंा गा,*
*तमु जो सांग बने रहो।*
*तमु ्हारे हँूसी सपनों के शलए,*
*तमु ्हारे हैसी अपनो के शलए,*
*हर एक से मतलबी हो जाऊ,*
*तमु जो सांग बने रहो।*
प्यार पाना भी है िोना भी
हांसते ज्यादा तो पड़ता रोना भी
कफर भी ये ददत सब सहते हैं
जुबाां से कु छ ना कहते हंै।
अब जब यादों की बातें चली है
तो इतना ही कहना चाहता हूँ
तुम मुझे ना शमली तो ना सही
िशु तो मै इस बात से हूँ
तुम्हे तो छीन शलया उसने
पर मेरी यादों को छीन सके
इतना वो अभी काबबल नहींा
जब से तमु मझु े शमले हो, मेरा ददल मेरे
बस में ही नहींा.
ये ददल बस तुम्हंे िशु देिना चाहता है।
जब तुम िुश होते हूँ तो मुझे सारी
कयानात िुश नज़र आती है,
जब तुम उदास होते हूँ तो मुझे अपने आप
से नफरत होने लगता है!!
बस मेरा ददल तुझे भगवान की तरह पजू े!
या तू मेरी बन जा या अपना बना ले तू
मझु !े !
शब्द सत्ता ने सुलतान बना ददया
जो कभी मौन था
आज उसे मुस्कान बना ददया
बहुत बेकस कर ददया है तनू े इसे
तरे े साथ होके भी तरे ी किराक सी है
तरे े शलए सारी कायनात से लड़ जाए वो
उस जगंा में कै से जीते
जो तरे े खिलाफ सी है
*तुम मेरे पास होती हो तो मुझे लगता है
की दनु नया की हर ख़ुशी है मेरे पास ।*
*जब तुम मेरे पास नहीां तो मेरे पास
नहीां रहा ववश्वास*
*तमु ्हारे बबना इस ददल को और कु छ भी
नहीां सूझे ,*
*या तू मेरी बन जा या अपना बना ले तू
मझु े।*
मेरी क्ज़न्दगी मंे बस तरे ी कमी है
मेरी क्ज़न्दगी में बस तरे ी कमी है
सब कु छ है लेककन
सब कु छ है लेककन
कु छ भी नहीां है
*हृदय की अनकही बातें कभी जब लब पर
आती हैं।*
*स्वरों में कम्पन होती है. स्वयां पलकें
झुक जातींा हैं।*
*कहीां भी ददल नहींा लगता, शमलन की तीस
सताती है।*
*कभी जब तन्हाई मे. ककसी की याद
आती है।*
शब्दों का जादू तो कोई आपसे सीिे
हमे तो अपने हुनर का यूँ ही घमाडं था
िुद को जादगू र कहता था
पर आज पता चला मुझे
ये शब्द तो मझु से मीलों दरू बैठा था
मेरे उठे ववरह में पीर,
सिी वनृ ्दावन जाउंा गी,
मरु ली बाजे यमुना तीर,
सिी वनृ ्दावन जाउंा गी।।
श्याम सलोनी सूरत पे,
दीवानी हो गई,
अब कै से िारू िीर सिी,
सिी वनृ ्दावन जाउां गी।।
छोड़ ददया मेने भोजन पानी,
श्याम की याद मंे,
मेरे नैनन बरसे नीर,
सिी वनृ ्दावन जाउां गी।।
इस दनु नया के ररश्ते नाते,
सब ही तोड़ ददए,
तझु े कै से ददिाऊंा ददल धचर,
सिी वनृ ्दावन जाउंा गी।।
ननै लड़े मेरे धगरिारी से,
बावरी हो गई,
दनु नया से हो गई अाजं ानी,
सिी वनृ ्दावन जाउंा गी।।
मेरे उठे ववरह में पीर,
सिी वनृ ्दावन जाउंा गी,
मुरली बाजे यमुना तीर,
सिी वनृ ्दावन जाउंा गी
इस बार सददतयाँू कु छ ज़्यादा सदत है
बफत तो नहीां पड़ी,
पर सब कु छ ज़मा हुआ सा है
पेड़ो के पत्ते थमे है
जो देती थी तरे ा पगै ाम
वो हवा भी िामोश सी है
सब िआु ूँ िआु ँू है
क्जस चादूँ मंे ददिती थी तरे ी सूरत
ठां ड से, बादलों मंे वो भी छु पा हुआ है
ददल भी अब थम सा गया है
क्जन आिँू ों में तुम ही तरै ते थे सदा
उनकी नमी भी अब कहींा नहींा है
इस बार सददतयॉ ां कु छ ज़्यादा सदत हंै।
शसफत तरे ा साथ जरूरी है,तरे ा एहसास
जरूरी है..!!
लाि दरू रयाां चाहे तयों न हो,तरे ा मुझ पर
ववश्वास जरूरी है....!!!!*
साथ ककसी का हो या ना हो, बस तरे ा साथ
अब लाक्ज़मी है,*
हर तरन्नुम पर झूम उठता हूां अब हर
साज़ तमु - सा लगता है।
सूरज में गमी सा और अिां ेरों मंे चाांदनी
सा साथ लगता है।।
तरे े नज़्म मंे मुलाक़ात िुद से होती है
मेरी कववताओंा मंे नज़र आ गया ।
हूां तो मैं शसफत एक लफ्जज़ तेरे साथ ने
कववता बना ददया।।