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Published by Himanshu Shekhar Hindi Poet, 2021-01-27 14:26:34

26.01.2021

26.01.2021

शब्द सत्ता शशल्पी सवं ाद

भाग 23

गणतंत्र ददवस

दोस्तों!
“शब्द सत्ता के शशल्पी” नामक व्हाटसएप
समूह मंे होने वाली दैननक कववता ववननमय
वववरण आपके सामने प्रस्तुत है| आज 26
जनवरी 2021 को “गणतंत्र ददवस” पर साझा
की गई कववताओं की एक झलक देखिए|

डॉ दहमाशं ु शेिर

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 1

गणतंत्र ददवस

ददनांक: 26.01.2021

इस अंक के शब्द शशल्पी गण

सतीश चन्द्र भगत
प्रेरणा पाररश
सुरेश वमाा
ब दं ु श्रीवास्तव
आशीष दीक्षित

दीपक चौरशसया
मीनू वमाा
साववत्री

अरूण कु मार दु े
के शीराज

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 2

गणतंत्र ददवस हुत प्यारा

उत्साह उमंग का राष्ट्रीय पवा
गणतंत्र ददवस लगता है हुत
प्यारा- प्यारा मन मंे भाव जगाता
राष्ट्रीय झडं ा नतरंगा मनभावन |
उठो- जागो कहता है प्रनतपल
लक्ष्य की प्राप्प्त के शलए मन से
मंगलमयी गणततं ्र ददवस की
शुभ ेला में गाएं गीत सुहावन |
भारत की धरती पर खिला सुन्द्दर
रंग- ब रंगी फू लों से सजाएं

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 3

जीवन सफल नाएं जन- मन
िशू ू महकाएं स मनभावन |
शमलकर करंे हम भारत की सेवा
देश का नाम स ओर चमचम
चमके राष्ट्रीय झंडा की शान
ववश्व पटल पर दमके मनभावन |
सवं वधान ननमाता ाओं को करे नमन
अधधकार और कत्तवा ्यों का स
करे सम्मान कहता है संववधान
गणततं ्र ददवस की शान सहु ावन |

सतीश चन्द्र भगत

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 4

मुझको है भरोसा ऐ ददल

चहुँओर फै लेगी िशु हाली
दहाली ना कभी सताएगी,
दो रोटी होगी सहज सलु भ
सर पे छत शमल पाएगी,
शमट जाएंगे उदासी और ग़म
िुल के प़्िन्द्दगी मसु ्कु राएगी,
मझु को भरोसा है ऐ ददल
वो सु ह ़िरूर आएगी,
द्वेष वमै नस्य दहसं ा से

मोहभंग हो जाएगा,

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 5

आशाओं का रोशन सवेरा

आसमान पर छाएगा,

भागेगा ननराशा का तम

नव प्रभात मसु ्काएगा,

आत्मननभरा होगी जनता

कोई ना हाथ फै लाएगा,

जानत - धमा , सपं ्रदाय - पथं से

कोई पहचाना ना जाएगा,

भारत माता प्यारी ज

चैन की ंसी जाएगी,

मझु को भरोसा है ऐ ददल

वो सु ह ़िरूर आएगी,

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 6

वो सु ह ़िरूर आएगी।

प्रेरणा पाररश

तमु मझु े िनू दो............

मेरे महानायक 7
तुम्हंे पता था।
आजादी िून मांगती है।
चरिा से काते गए
कपास के सूत को तो
हरधगज नहीं ।
तुम जानते थे
लोहा ही लोहे को

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23

काट सकता है । 8
तभी तो तुमने वो
कालजयी नारा ददया
"तमु मुझे िून दो
मंै तमु ्हें आजादी दंगू ा"
आजादी के लािों दीवाने
तमु ्हारे इस नारे पर
तुम्हारे साथ हो शलए
तुम्हारी तरह वे भी
अपनी छाती के लहू से

मां भारती के
धूशमल चुनर को

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23

लाल टेस कर ददया

तुम्हारी और
उनकी शहादत

जाया नहीं गई

प्ल्क ेहद असरदार रहीं ।

लािों वीर-सपतू ों
को िोकर

लहू में शलथड़ी
आजादी शमली हमें ।

सददयों की गलु ामी से
मकु ्त तो हुए ।

पर उस समय हम

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 9

शशद्दत से शशमदा ा
हो जाते

ज यह गीत सनु ते है।
" दे दी हमे आजादी

ब ना िड़ग ब ना ढाल"

सरु ेश वमाा

सवं वधान

ववववध वववेचनाओं से सज-संभलकर;

शभु ागवन हुआ संववधान का।

संस्कृ नत सवोपरर हो गयी

मेरे देश महान ् का।

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 10

22 अध्याय मंे, 22 धचत्रकारी;
नंद ोस ने सजाया िु ककनारी

शेर,चक्र, घोड़,े मोर मगन को;
ऋवष मनु न, ुद्ध, गंगा और सप्तदल कमल

को ।
हस्त शलवप मंे, हस्त कला है ।
इन ववववधताओं का व्याख्यान है
मेरा देश महान है मेरा----।

त्याग-नतनतिा की तमन्द्ना;
तरंग-तंग से नही,---चाहे चना।

तप से ताली नही जायी ।
शसफा -शसफा

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 11

देश भप्क्त का तान है ।

मेरा देश महान----

धीर-धरु ंधर, लाय धौलाधगरी ;

शहीदों ने ददया संजीवनी वाला

प्राण है ।

मेरा----।

प्रथम चरण लाहौर में लहराया।

लता-लता को पता शभजवाया ।

लेके रहंेगे आजादी;

नही सहेंगे, ादा ी ।

अद्धा शतक में फहराया राग;

सजु लाम सुफलाम;

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 12

शस्य श्यामला मातरम ् ;
सवु ाशसत राग को;

शमला राष्ट्रीय मान है ।
मेरा देश महान है मेरा---।

ब दं ु श्रीवास्तव

भारतीय सवं वधान की प्रस्तावना से ननशमता
मेरी नई कववता

हम हंै भारत के आम लोग
हमको है इसकी स्वतंत्रता
ननरपेि पथं है राष्ट्र सनु ो

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 13

इसकी अपनी है संप्रभतु ा |
गणतंत्र देश का है स्वरूप

यह प्रजातंत्र का एक रूप

ये लोकतंत्र ये समाजवाद

भारत का है यह अलग रूप |

सामाप्जक आधथका राजनीनत

पर न्द्याय परस्पर है शमलता

अशभव्यप्क्त हो या हो ववश्वास

यह धमा को दे दी स्वतंत्रता |

ववश्वास रिो यह राज धमा

जो हर ववचार को सुनता है
स की अपनी है उपासना

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 14

अवसर की स को समता है |
तुम प्राप्त करो प्रनतष्ट्ठा को
और उन स मंे गररमा पाओ
तुम राष्ट्रीय एकता के पहरी
न राष्ट्र ंधतु ा ददिलाओ |
संकल्प आज तुम ले लो स
गणतंत्र ददवस के अवसर पर
सदी इक्कीस हो भारत की
संकल्प करो इस शुभ अवसर पर |

आशीष दीक्षित

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 15

लोकतंत्र में तंत्र चा है

लोकतंत्र में लोक नहीं,
गद्दारी पर रोक नहीं।
जो धरापुत्र पालन करता,
उसकी मतृ ्यु पर शोक नही।ं
जो सीमाओं पर रहता है,
हर ववपदाओं को सहता है।
ज हो जाती है शलदानी,
त तुम करते हो मनमानी।
तमु उसकी वीर शहादत की,
क्यों साि मांगते कफरते हो।

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 16

तुम राष्ट्रप्रेम पर प्रश्न उठाते,
ईश्वर से न डरते हो।

उस मां से जाकर पछू ो,
प्जसने अपना ेटा िोया है।

रैन चैन स त्याग ददया,

स घटु घुट कर ही रोया है।
देश मंे अंधधयारा छाया,

प्जसमें कोई आलोक नही।ं

अ ननदोषों की हत्या पर,

क्यों करता कोई शोक नही।ं

जगह जगह ़िरे ़िरे में,

भेदभाव अ छाई है।

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 17

धमा जानत पर ाटं ांटकर,

तुमने सत्ता पाई है।
अ सत्ताधीशों की हाथों में,

सत्ता की पतवारंे है।

देश है नौका के जसै े,

भव, सागर की जलधारे है।

डू जाए नौका चाहे,
पर छू टे न पतवार कही।ं

कु सी भी न नछन जाए व,
हो जाए न हार कहीं।

गशलयों के हर कोने में,

क्या ेटी संरक्षित है।

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 18

अ भी ककतने च्चे हंै,

गांवो मंे पड़े अशशक्षित हंै।

अधधकारो का पता नहीं,

ववधधयों का ज्यादा ज्ञान नही।ं

सत्ता से कफर प्रश्न ककया,

पर प्रश्नों का सम्मान नही।ं

कु छ पत्रकार जो ब के हुए,
सत्ताधीशों के हाथों से।

कु छ िेल िेलने आते हंै,

तरे े मेरे हालातों से।

कु छ ववध्वसं क समरसता के ,

कु छ फै लाते हैं भ्रष्ट्टाचार।

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 19

राष्ट्र एकता को िंडडत कर,
फै लाते हंै दरु ाचार।

आवा़ि उठाओ! गला कटाओ!
कौन उठाने जाएगा?

लोकतंत्र मंे आ गई कु सी
गला कौन कटवाएगा?
जसै े पािी मरती है,
रिा वाले आषाढ़ में।

लोकतंत्र मंे ततं ्र चा स,
जनता जाए भाड़ मंे।

दीपक चौरशसया

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 20

ना़ि है हमंे....

धाशमका स्वतंत्रता है जहां,
जहां शमलकर ही स रहते हंै,

करते ककसी से भेद नहीं,
चाहे धमा हो उनका कोई भी,
नाज है हमें उस भारत पर

प्जसके हम देशवासी हंै।
सम्माननत हंै प्स्त्रयां जहां,
जहां सच्चाई अभी तक प्जदं ा है,
जहां हर वगा जानत के लोग
शमलकर नतरंगा फहराते हैं,

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 21

नाज है हमंे उस भारत पर,

प्जसके हम देशवासी हंै।

जहां ेदटयां भी गगन मंे,

उड़ान भरती हंै।

दोस्ती में जहां देते जो धोिा नही,ं

कृ ष्ट्ण -सदु ामा की उपाधध पाते हैं
नाज है हमें उस भारत पर,

प्जसकी हम गौरव गाथा गाते हैं।

प्जस देश में गाधं ी- दु ्ध है जन्द्मे ,
जहां ड़-े ड़े शशवालय हंै।

नाज है हमें उस भारत पर,

धचडड़या सोने की जो कहलाती है।

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 22

जहां ऊं ची पवता चोटी भी,
देश का मुकु ट कहलाती है,

गंगा प्जसके पैरों को,
ननत्य- ननत्य धोया करती हैं।

जहां नतरंगा भी...
वीरों की शहादत पर,
अपना शीश झुकाता है।
नाज है हमंे उस भारत पर,
प्जसके हम देशवासी हैं।

मीनू वमाा

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 23

देश के युवाओं के शलए

वीर देश के कणधा ार मेरे

हो जाओ तयै ार

हो जाओ तैयार साधथयों

हो जाओ तैयार

राम वेश मंे छु पा है रावण

उसको तो पहचान जरा

आज यहां कोई लंका नहीं है

मानव में तकरार

मानव मंे तकरार साधथयों

हो जाओ तैयार 24

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23

एक समय था मानव दानव

दोनों का रंग रूप अलग

दानव को अपनाकर मानव

हो गया है ेकार

हो गया है ेकार साधथयों हो जाओ तयै ार

नहीं है यहां रणभशू म सजा
नहीं यहां कोई यदु ्ध नछड़ा
मन के अंदर कु रुिेत्र वन

कर पापों का सहं ार

पापों का सघं ार साधथयों

हो जाओ तैयार

राम जपने का समय गया

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 25

राम कमा को करो जरा

भाई भाई मंै प्रेम ढ़ाकर

लौटा दो संस्कार

लौटा दो ससं ्कार साधथयो

हो जाओ तैयार

राम के हनमु ान वीरों
हो जाओ तयै ार

सघं षों के सोपानो पे

ढ़ो नया इनतहास शलिो

मन मंे जला के ज्ञान का दीपक

शमटा दो अंधकार

शमटा दो अंधकार साधथयों

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 26

हो जाओ तयै ार
वीर देश के कणधा ार मेरे

हो जाओ तयै ार

साववत्री

जय दहन्द्द

जय दहन्द्द दोस्तों ।

चादँु , सूरज-सा नतरंगा,

प्रेम की गगं ा नतरंगा।

ववश्व में न्द्यारा नतरंगा,

जान से प्यारा नतरंगा।।

सारे दहदं सु ्तान की, 27

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23

शलदान-गाथा गाएगा ।
ये नतरंगा आसमाुँ पर,
शान से लहराएगा।।

अरूण कु मार दु े

गणतंत्र ददवस

गणतंत्र है मेरे देश का

ननश्चीत हमे अशभमान है

पर मंहगाई और गरी ीसे

हर आदमी परेशान है

ध्यानसे सोचो राज करने वालो

हम ईससे छु टकारा क पायगें े

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 23 28

सिु शांती की गहरी सांस हम
ोलो क ले पायगंे े

स तंत्र तुम्हाराही चल रहा है
गण की क तूम सोचते हो
अपना और पिका भला ही सोचते
जय गणततं ्र स कहते हो

के शीराज
श्री शरदकु मार समु न –ज्ञानेश्वर वेदपाठक (मंरपु कर)

शब्द सत्ता संवाद,भाग 23 29


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