चित्रोदगार
द्वितीय अकं
चित्रोदगार 1 ©काव्य कला मिं
प्राक्कथन
काव्य कला मंि कविता, छं द और सपं ्रषे ण को एक स्िस्थ
आधार प्रदान करने के ललए ननत प्रयासरत है| उपरोक्त चित्र
मिं के संस्थापक का है, जिस पर कविता ललखने का एक
प्रयास आि मिं पर ककया गया| यह अंक उस एक चित्र पर
मंि के सभी कवियों की कविताओ का संकलन है| इसमंे हर
कवि की कल्पनाशीलता मखु र होती ददखेगी और मिं की
विविधता में एकता भी निर आएगी| आरम्भ में आत्मोदगार
है| आशा है, इससे मिं की एक झलक तो पाठकों को लमलेगी|
धन्यिाद|
चित्रोदगार डॉ दहमांशु शखे र
29.12.2021
2 ©काव्य कला मिं
इस अंक के सारस्ित कविगण
© रािकु मार ियसिाल ......................................................................................... 5
© ररमझझम झा .................................................................................................... 6
© पल्लिी डडसेना ................................................................................................ 7
© प्राणंेद्र नाथ लमश्र .............................................................................................. 8
© सरोजिनी िौधरी ............................................................................................... 9
© पूनम सोनी .................................................................................................... 10
© ज्योनत बसु .................................................................................................... 11
© डॉ दहमाशं ु शखे र ............................................................................................. 12
© नीलम िदं ना .................................................................................................. 13
© अनुराग लसहरा................................................................................................ 14
© मनप्रीत कौर .................................................................................................. 14
© रािकु मार डायल............................................................................................. 15
© सकु ांनत ियसिाल........................................................................................... 15
© लीलाधर प्रिापनत ........................................................................................... 16
© सुरंेद्र प्रिापनत ................................................................................................ 17
© मनोि कु मार सैन........................................................................................... 18
चित्रोदगार 3 ©काव्य कला मंि
आत्मोदागार
छं दो में गायत्री हूँ, कहे कृ ष्ण महराि।
िदे ों के छः अंग में, एक अंग मंै राि।
पसु ्तक सारे ज्ञान के , देते यह उपदेश।
विद्या नहीं वििाद दहत, बजल्क शाजन्त संदेश।
कौन ककसे है लसखा रहा, के िल शारद मात।
सबको देती ज्ञान है, करती ज्ञात-अज्ञात।
मझु े पसु ्तकों ने बनाया- शब्द सा साथकथ कु छ...
नहीं तो िणथ ही था- अक्षर भी नहीं था।
औरउ एक गपु तु मत सबदहं कहउूँ कर िोरर।
शंकर-भिन बबना नर, भगनत न पािई मोरर।
चित्रोदगार 4 ©काव्य कला मिं
इन्हीं ककताबों से सीखा है, कै से तुम्हें मनाएूँ।
भला बताओ तमु ही कै स?े इनसे ऑखं िरु ाएं।
© रािकु मार ियसिाल
चित्रोदगार 5 ©काव्य कला मंि
मंि के उदगार
पढ़ ललख कर बना बालक मंि संिालक,
ओिस्िी लगता था बिपन से ही यह बालक।।
राम नाम के अलािा इन्हंे कु छ भी न भाए
लशि शंभू रखें इन पर अपनी कृ पा दृजष्ि बनाए।।
© ररमझझम झा
चित्रोदगार है राम नाम अनरु ागी
कृ पा दृजष्ि पा राम की
बन गया िह बड़ भागी
है छं द साधना मंे लीन
अध्ययन कर रहे है गंभीर
है िो प्रेरणा स्रोत सबके
6 ©काव्य कला मंि
राह प्रशस्त करने में प्रिीण
© पल्लिी डडसेना
िब रामायण लमलती मझु को
मंे किर से पढ़ने लग िाता,
मैं कहां हूं, कै से बठै ा हूं
होता नदहं उससे कु छ नाता।
िब रामायण लमलती मझु को..
यह काव्य, िगत मंे ऐसा है
जिसका कोई भी मेल नहीं,
है कौन सी घिना िीिन की
जिसमे प्रभु राम का खेल नही।ं
चित्रोदगार यह काव्य है िीिन दशाथता, ©काव्य कला मिं
7
िब रामायण लमलती मझु को
मंै किर से पढ़ने लग िाता...
हर शब्द, प्रदलशतथ दशनथ है
हर घिना िारों यगु से िडु ़ी
हर भाि समादहत हैं इसमंे
श्रखंृ लाबद्ध घिना की कड़ी।
जितना पढ़ता उतना ही यह
मोदहत मझु को है कर िाता
िब रामायण लमलती मझु को
मैं किर से पढ़ने लग िाता..
© प्राणेंद्र नाथ लमश्र
चित्रोदगार 8 ©काव्य कला मिं
राम पिु ारी रािकु मार िी
राम के हैं िे दास
राम भक्त बठै े हुए है
रामायण के पास
उलझे है शायद कोई
प्रश्न कदठन है आि
इस पसु ्तक में गणु यही
सकल सँूिारे काि।
© सरोजिनी िौधरी
है मरे ी मजं िल पर निर,,,
बहुत दरू है मझु े िाना,,
ललखा है मनैं े 'ग्रामा' ,,
चित्रोदगार मरे े शब्दों को,, ©काव्य कला मंि
9
िन-िन तक है पहुंिाना।।
मनंै े अपने ग्रुप मंे,,
कु छ लोगो को ददया है दठकाना,,
कविता का 'क' उन्हें आता नही,ं ,
पर समझे खदु को मनिु िर राना,,
िाहे कु छ भी हो िाए,,
पर अब मनैं े भी है ठाना,,
उन्हंे छं द िरूर है लसखाना।।
© पूनम सोनी
रखता था नछपाके
इन्हीं ककताबों में प्रमे सदं ेश तुम्हारे
बार बार पढ़ना
मन ही मन सपने गढ़ना
चित्रोदगार 10 ©काव्य कला मिं
चित्रोदगार छा िाती िहे रे पर मसु ्कान
*सकु * को सोि के
सखु के सपने देखना
मरे े शब्दों मंे भी तमु थी
अब भी हो
और रहोगी
मेरा राम प्रमे है
प्रमे तमु हो
तमु मंे मैं हूं
मैं राम का हूं
और शब्द राम है
बस अब तमु ्हंे पढ़ना है
तमु ्हंे सनु ाना है
© ज्योनत बसु
11 ©काव्य कला मंि
पसु ्तक मोिी खोलकर, पढ़ने का कर स्िागं ।
संस्थापक िी कह रहे, मिं रख रहा मागं ।।
मिं रख रहा मागं , सभी अब छं द तो ललखना।
मात्रा, गनत, यनत, देख, कवि बन मंि पे ददखना।।
कह शखे र हर द्िार, सनु गे ा उनकी दस्तक।
डरा रहे िो आि, खोलकर मोिी पसु ्तक।।
नीला ही है आकाश, पहनते िही रंग।
कु सी पर बठै े आि, सामने छात्र तगं ।।
सामने छात्र तगं , साधना छं द की करत।े
साधक सब के प्रश्न, सदा उत्तर दे भरत।े ।
कह शखे र कक सोि, प्रसगं समपणथ भी है।
धरती नीली और, आकाश नीला ही है।।
चित्रोदगार © डॉ दहमाशं ु शखे र ©काव्य कला मंि
12
कहानी इसमंे ललखी हमारी हैं।
कु छ बातें नयी कु छ परु ानी है।।
© नीलम िंदना
ये श्रीमान तो है खलु ी ककताब
किर भी नाम मंे इनके है राि,
शब्द हमारे मडं रा कर रह िाते
आपकी छं द योिना पर है नाज़,
काव्य कला की मडं ली बनाकर
दहल लमल करते है उत्तम काि,
चित्रोदगार कोई भजक्त कहे,कोई कहे विररक्त
मिं सयं ोिक का ये पहने है ताि,
13 ©काव्य कला मिं
तन धन सकु िी है मन में बसे राम
दास तुलसी बिा रहे हो सरु साि,
मान मयादथ ा रामायण की बतलाते
प्रभु से िाहते प्रभु राम सा समाि,,,
© अनुराग लसहरा
जज़ंदगी का फ़लसफ़ा पसु ्तके ही समझाती हैं
'राि' को राि जिंदगी के लसखलाती हैं . ...
© मनप्रीत कौर
उलझन आि उनसे हुई उपाय देखे सलु झाने के ,
शायद इस पसु ्तक में सझु ाि उनको मनाने के ।
रात ददन उनको िाहा किर भी लमलन नही हो पाया ,
चित्रोदगार 14 ©काव्य कला मिं
हर सखु और दखु मंे सदा हमने उनको ध्याया ।
कहो लमत्र कौन है िो , क्या तमु ्हारी िान है ?
हां बन्धु सि कहते तमु िो तो मरे े श्री राम है ।।
© रािकु मार डायल
प्रमे मझु से है, था ये मेरा भरम।
अब कर िकु े दोस्ती ककताबों से सनम।।
अिब उलझन है मरे े कलम की,
"पनत" पर ललखती नहीं है।
समय भी मजु श्कल से लमलता अभी,
इसललए मिं पर कम ददखती है।।
© सुकानं त ियसिाल
चित्रोदगार 15 ©काव्य कला मंि
राम िरण अनरु ागी है ,
राम िररत के पाठक ।
राम नाम के प्रमे ी पछं ी ,
राम भजक्त रस िातक ।।
ध्यान मनन चितं न करते ,
ज्ञान वपपासु साधक ।
धीर िीर गंभीर अनत ,
ससं ्कृ नत के सिं ाहक ।।
© लीलाधर प्रिापनत
चित्रोदगार चितं न, मनन मंे मग्न हैं ©काव्य कला मंि
और काव्य साधना में लीन
नीला िसन, नीले अम्बर मंे
छन्द बिा रहा है, िीण
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कोमल पवित्र भािना के िल
नहीं लमलता मागथ प्रकाश
हे राम! राममय कर देना
िीिन की, धनु त िै ले आकाश
© सरु ेंद्र प्रिापनत
राम नाम का पाठ करूँू म|ंै
किर क्यों भय संताप धरं म|ैं
राम लमले तो सब िग लमलता|
पषु ्प कमल सा िीिन झखलता|
चित्रोदगार शारदे कृ पा लमलती तब ही|
ले ननि भक्तों की सधु िब ही|
17 ©काव्य कला मिं
परम भक्त उनके राि रहें|
यश मंे उनके कु छ क्यों न कहंे?
© मनोि कु मार सनै
चित्रोदगार 18 ©काव्य कला मिं