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Published by Himanshu Shekhar Hindi Poet, 2021-01-29 11:00:54

29.01.2021

29.01.2021

शब्द सत्ता शशल्पी संवाद

भाग 24

दोस्तों!
“शब्द सत्ता के शशल्पी” नामक व्हाटसएप
समहू मंे होने वाली दैननक कववता ववननमय
वववरण आपके सामने प्रस्तुत है| आज 29
जनवरी 2021 को साझा की गई कववताओं
की एक झलक देखिए|

डॉ हहमांशु शेिर

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 1

हदनाकं : 29.01.2021

इस अकं के शब्द शशल्पी गण

आशीष दीक्षित, कानपुर
राही राज, बंगलूरू

सावन 'ववथयाथथल', मधुबनी
प्रेरणा पाररश, हदल्ली

सुलेिा कु लश्रेष्ठ, बगंै लरु ु
सुरेश वमाा ,सीतामढ़ी
वप्रन्शु लोके श, रीवा

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 2

हदलों मंे िाईयां आए,
चाहे फिर दरू रयां आएं
मोहब्बत की है हमने पर,
मोहब्बत ही सदा आएं
तमु ्हारे लाि कहने से,
मोहब्बत हम ना तोडेंगे
कभी भी तमु चली आना,
मोहब्बत हम ना छोडेंगे

आशीष दीक्षित, कानपरु

िुद का क्या पररचय दंू
कु छ कु छ शलिता रहता हूँ

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 3

राही नाम है मेरा
राज की बाते करता हूँ ।
कभी कववता ,कभी कहानी
समाजजक दशा पर शलिता हूँ
नहीं मै डरता , नहीं घबराता ,
हदल की बाते करता हूँ ।
राही मेरा नाम है यारो
मंै राज की बातंे करता हूं ।

राही राज, बंगलरू ू

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 4

जमाना

अिसोस नहीं है मुझे िदु पर
जमाने पर अिसोस होता है
जमाना जा रहा है जजस ओर
उस सोच पर अिसोस होता है ।

कहां जा रहे है हमलोग
सब कु छ बदल रहा है ,
घर द्वार और आंगन का
स्वरूप बदलता जा रहा है ।
सयं कु ्त पररवार का दौड था
नामोननशान शमट रहा है

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 5

शसमट रहें हैं हमलोग ,
अपने भी पहचानने से इंकार कर रहा है।

कु छ सोचने की बात है
अब एक ही जन्म ले रहे हंै

भाई बहन अब तो
एक पररवार मे नहीं शमल रहे हंै

भाग रहे है िुद से
समाज से कट चुके हंै ।

राही राज, बंगलरू ू

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 6

दीप जला

घोर अँूधेरा, ववचशलत मन मेरा,
भस्मासरु ी तांडव, वजै ववक नरसंहार।
सनू ा आसमाँू; भयभीत सयू ा ववशाल,
वववव शांनत का एक दीप जला।
पथ अदृवय ईववर-अल्लाह तरे े द्वार,
त्राहह-त्राहह नर-नागेववर, दबु ला -बलवान।
अनंत ननद्रामय उस परमात्मा को जगा,

आस्था का एक दीप जला।
तमु तिशशला, तमु ही नालंदा,
सनु ओ वंसज सम्राट अशोक महान।

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 7

न झुके , न रूके , न हारे हैं,
अजय , ननभया , वसुंधरा की सन्तान।
ज्ञानमय वीरता का एक दीप जला।।

हे मानवतावासी, हे माूँ भारती के साहसी,

सुन ओ वीरों से सागरमय देश महान।

हे कृ ष्णा; हे अजनुा ; रणभूशम कु रुिेत्र,
इंसाननयत के कौरवो को कर परास्त।

धमा का एक दीप जला।।

उहदत हो रवव नन्हंे आिूँ ों में,

पक्षियों से सरु मय बजे शसतार।
गंगा की गोद में िेले नदं -फकशोर,

िसलों से िेलती बाररश की बौछार।

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 8

अटू ट सपनों का एक दीप जला।।
अडडग हहमालय ; प्रचण्ड दहाडे ,

अलौफकक सागर संगम कन्याकु मारी द्वारे।
प्रेम, सौंदय,ा श्रंगृ ारमय, पूवा की लाशलमा,
स्वखणमा रेथगस्तान से जन्में परमवीर
रजवाड।े
अिण्डता का एक दीप जला।।
तू शिं बजा...! तू पंि िै ला...!
उम्मीदों की असीम आसमाँू जला...।

पराजजत होगा अंधेरा; आयेगा फिर सवेरा ।
मानवता का एक दीप जला।।२।।

सावन 'ववथयाथथल' ,मधुबनी

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 9

पदे

फकतने ज़रूरी हंै
ये पदे भी ना हमारे शलए!
खिडफकयों पर जो लगाओ

धूप से हो बचाव,
बदन पर लगाओ
अजनबी नज़रों से बच जाओ,
जो लगा हो आिं ों पर तो
अच्छा है सब, कह
खुद को भरमाओ,
सोच पर अगर पड जाए पदाा

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 10

सोचना समझना ही भलू जाओ,
मौन के पदे में ददा छु पाओ,
और हंसी के पदे मंे ग़म,

बुद्थध पर जो डाल दो इसे
सही गलत का अंतर ही भुलाओ,

अपनी डिली अपना राग बजाओ,

अब कै सा पदाा पसंद है तुम्हंे
अपने वववेक से चनु लाओ,

खिडफकयों पर,दरवाजों पर,चेहरे पर,

अक्ल पर या सोच पर

जहां जी चाहे लगाओ,

पर ध्यान रिना

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 11

हर पदे के पीछे हम बेपदाा हंै,
देि रही है सब हमारी अंतरात्मा

सात परदों के भीतर से भी,
हर वक्त , हर पल ननगरानी मंे हंै हम

उसकी,
इसशलए सावधानी से,होशशयारी से

पदे का हो चनु ाव
ऐसा बडा ज़रूरी है।

प्रेरणा पाररश, हदल्ली

अब चपु नहीं रहूंगी मैं

अब ज़लु ्म न सहूंगी मैं

सुन लो ये बात सब आज ग़ौर से

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 12

डरती नहीं हूं मैं अब ज़ाशलम समाज से
वो दौर अब है बीत गया
मेरा गरु ूर जीत गया

ना चलेगा अब ये ज़ोर तरे ा
मुझ पे आज से,

के डरती नहीं हूं अब
इस ज़ाशलम समाज से।

प्रेरणा पाररश

नारी शजक्त

सपं णू ा सजृ ष्ट की ननमाणा करता हूं मैं

संतान की सशक्त रिक ,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 13

ईववर की प्रदान की गई अमूल्य ननथध ,
जजसकी व्याख्या की कोई नहीं ववथध।

इस संपूणा वववव की गररमा हूँ
जी हाँू नारी हूं म,ैं
जी हाूँ नारी हूं मंै ।

वपसती रही हूँ ससं ार के रस्मों ररवाजों में ,
दबती रही है मेरी आवाज कतवा ्यों के
उत्तरदानयत्व के जबाबों में ।

सब सहती रही हूँ मंै एक लबं े यगु से ,
मांगती हूँ अपना हक हे ननमोही समाज

तमु से।
बताओ मेरी क्या िता है ,

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 14

क्योंकी जाती है भ्रूण में ही मेरी हत्या है।
क्या है दोष मेरा ,

तमु को जवाब देना होगा।
मंै सशक्त थी सशक्त हूं और सशक्त

रहूंगी ,
अपने बच्चों के प्रनत समवपता रहूंगी।

मंै आहदशजक्त हूं,
मुझे समाप्त करना आसान ना होगा ,
अगर मैं ना रही तो यह समाज ना होगा
अगर मंै ना रही तो यह समाज ना होगा।

सलु ेिा कु लश्रेष्ठ, बगैं लुरु

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 15

इजल्तजा

तू बस टू टना मत
तू बस टू टना मत
फकतने भी दरू ूह हों रास्ते
फकतने भी काटं े हों तरे े वास्ते
फकतना भी धोिा शमले
फकतनी भी मलीन हों फकस्मत
तू बस टू टना मत
तू बस टू टना मत
रोना ,चीिना ,थचल्लाना
सहन करने की सीमा बढ़ाना

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 16

बहुत सभं लना,
मन को तोडना मरोडना

मगर अपना हौसला मत िोना

बचाए रहना अपनी अस्मत

तू बस टू टना मत

तू बस टू टना मत

फकतनी भी टू टें ख्वाहहशें

लगी हो फकतनी भी बहं दशें

तू हारना मत

तू बस टू टना मत

तू बस टू टना मत

याद रि तू टू टा,

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 17

तो बबिर जाएगा
कोई तझु े फिर सभं ालने ना आएगा

अरे,
अगर टू ट जाते हंै भगवान,
िंे क देते हैं लोग उन्हें भी,

समझ ननष्प्राण।
तरे ी सुदृढ़ता ही शलिे गी तरे ी फकस्मत,

तू बस टू टना मत
तू बस टू टना मत

सुलेिा कु लश्रेष्ठ, बंेगलुरु

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 18

दधू की मक्िी

दधू मंे मक्िी पडी हुई है
यह देिते हुए भी

उसने ग्लास के दधू को।
मक्िी सहहत
एक ही सासं में
गटक गया ।

फिर इत्मीनान से
मेरी ओर देिा

बस देिा ही नहीं ।
बजल्क बेहद ही

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 19

बेहूदे ढंग से
मसु ्कु राया भी

मझु े लगा

वह मसु ्कु रा नहीं

बजल्क एक सवाल

उछाल कर मुझसे

पूछ रहा हो

कहो,कै सा लगा ?

अब तो

भूल जाओगे

उस महु ावरे को फक, लोग

दधू की मक्िी की तरह

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 20

फकसी को

ननकाल िें कते है।

मंै भीतर -भीतर

कु ढ़ तो रहा था
पर समझ नहीं

पा रहा था

फक फकस पर कु ढ़ रहा हूँ
उस पर ,

अपने-आप पर

या फिर

उस महु ावरे पर ।
जजसे अभी-अभी

शब्द सत्ता संवाद,भाग 24 21

मेरे सामने ही हाशशये पर
धके ल हदया गया है ।

सुरेश वमाा ,सीतामढ़ी

ग़ज़ल

ज्ञान देने फक अद्भुत कला ज्ञात है।

आज पहली दफा रात में रात है।

चादं मुझको नहीं देिता रात में

पूछं आओ जरा फिरसे बरसात हैं

आज हमने मोहब्बत ननभाई नहीं

कौन जाने शमयां कौन सी जात है

हाथ मेरा फकसी ने हहलाया बहुत

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 22

स्वप्न टू टा हमारा लगी रात है।
कौन कहता है 'वप्रन्शू' मोहब्बत बरु ी
इवक करके ननभाना बडी बात है।

वप्रन्शु लोके श, रीवा

शब्द सत्ता सवं ाद,भाग 24 23


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