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लम्हे जिंदगी के मंच की प्रस्तुति : भक्ति रचनाओं का एक साझा संकलन | उन्नीस कवि, उनचालीस कविताएं, उन्नासी पृष्ठ|

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Published by Himanshu Shekhar Hindi Poet, 2024-05-20 11:24:17

काव्यार्घ्य

लम्हे जिंदगी के मंच की प्रस्तुति : भक्ति रचनाओं का एक साझा संकलन | उन्नीस कवि, उनचालीस कविताएं, उन्नासी पृष्ठ|

Keywords: लम्हे,हिमांशु,कवि,भक्ति

‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 49 शमले िो झलक उविय ी को तु म्हारी समा ननै तु मको हिाना नहीं अब। ऊषा िैन उवयिी राम नवमी राम नवमी को मनाना, लक्ष्य था हम पा गए, राम आए हैंअवि में, प्रार् प्रततमा पा गए। राम परु ु षोत्तम बन, ेपथ अनसु रर् ददखला गए, राम मयायदा शसखाकर, भतत सागर पा गए।। राम का है मान िन्मोयसव, यही समझा गए,


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 50 राम के सम्मख ु हुई नत, सज ृ ष्ि वंदन भा गए। राम मख ु दिनय ककए, पल ु ककत हु ए तन छा गए, राम आए तो िरा पर, संतिन सख ु पा गए।। राम का ले नाम कलयग ु , में तपोिन पा गए, राम से ही यज्ञ का हर, फल लगा है पा गए। राम का अवतार ही, उद्िार कताय गा गए, राममय िखे र हु आ, हृदयस्थ हो वो आ गए।। डॉ दहमांिुिेखर


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 51 नमन िारदे "उपवास मेरा प्रथमा से है यह कल्पारंभ मैंकरता हू ाँ हे िजतत ! िागतृ हो तु म अब मैंअकाल बोिन करता हू ाँ।" जस्थर बैठे थे रामचंद्र थी तीन ददनों की कदठन भजतत नवमी अष्िमी संधि पि ू ा के साथ प्रसन्न हो गईं िजतत। नवमी की रात दियन देकर बोलीं िजतत – "तु म हो अिेय


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 52 मैंतु म में समादहत होउंगी यद्ु िान्त है, रावर् की परािय। ववियी हो राम! तु म ्ववियी हो! होगी अिमय पर िमय िीत हारेगा दंभ और अहंकार िीतेगी हमेिा सयय, प्रीतत।" प्रािेंद्र नाथ ममश्र


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 53 प्रभ ुराम मन में प्रभ ु का ध्यान लगा कर तो देखखए। चरर्ों में उनके शसर झक ु ा कर तो देखखए। िीवन का अंिेरा भी तो शमि ही िाएगा। इक दीप रामनाम का िलाकर तो देखखए। अवसाद जिंदगी में आए न कभी भी। रि राम नाम की लगाकर तो देखखए। भाई का प्रेम भी तो समझ आ ही िायेगा। करके वरर् चरर् पादक ु ा तो देखखए। अमतृ की चाह भी तो परू ी हो ही िायेगी।


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 54 बनके तनषाद चरर् पखार कर तो देखखए। तर िाएगी अदहल्या रि पांव का छू कर। वन मागय का भी पयथर बनकर तो देखखए। अशभलाषा भी दरि की खाली न िाएगी। चाहत भी सबरी िैसी बनाकर तो देखखए। पयथर भी तैर िायगें े मज ु श्कल घड़ी में भी। बस राम नाम उन पर शलखकर तो देखखए। लंका थी िल गई मगर अहंकार न िला। लंके ि का भी अंत समझकर तो देखखए।


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 55 िो सयय न्याय दहत में अपमान सह गया। िीवन में ऐसा न्याय अपना कर तो देखखए। ददनेि ततवारी राम िैसा बनो राम िैसा बनो श्याम िैसा बनो सयय की राह पर तु म डि कर चलो भय मत ुत हो िरा ये संकल्प लो सर पर रहे हस्त


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 56 मात वपता का छूिे न कभी साथ वप्रय िनों का तु म ऐसे दयाल ु बनो दीन दख ु खयों के कष्ि हरो बड़ों का हृदय में सम्मान हो सही और ग़लत की पहचान हो राम न बन सको तो उनके सयय कमों पर चलो श्याम की अद्भतु लीला िगत िानता है श्याम की मिरु बांसरु ी बन िन िन के


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 57 हृदय में मिरु रस घोल दो मयायदा परु ु षोत्तम श्रीराम िय राम िय िय राम कर् कर् में बसे श्याम मेरे प्रभ ुराम मेरे प्रभ ु श्याम। रूबी िोम शिव बत्रनेत्र िारी हैं ििािारी हैं ििा में मां गंगा समाई हैं िशि को ललाि िारे


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 58 गले पर सपय िारे हैं भि ु ंग लपेिे शिव िन ू ी भी रमाते हैं िमिान वासी हैं मिान की राख शिव का श्रंगार है शिव भोले भंडारी हैं सज ृ ष्ि के संहारी हैं तीनों नेत्र खोलकर तांडव ददखाते हैं भांग का शलए प्याला रूप भोले का तनराला िैलिा के मन को


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 59 िंकर लभ ु ाते हैं भतू प्रेत इनके साथी हैं एकमात्र गहृ स्थ हैं एकमात्र स्वामी हैंपररवार जिनका संपर् ू य है हाथ में डमरु बत्रिल ू िारर् ककए हैं ववषपान कताय हैं नीलकंठ कहलाते हैं पावतय ी के स्वामी हैं संसार संचालक हैं संसार के पालन कताय हैं पावयती - शिव उयक ृ ष्ि प्रेम का उदाहरर् हैं नंदी पर सवार हैं शिविी बरात लाएं


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 60 भतू प्रेत साथ आएं नंदी पर सवार शिव भततों को सहु ाते हैं भततों की पक ु ार पर दौड़े चले आते हैं शिव देवों के देव महादेव हैं हे शिव िंभ ूतु म्हें मेरा बारंबार प्रर्ाम वैिाली शिव वंदना िय िय नागेश्वरा, ववश्वनाथ िंकरा, िल ू पाखर्, बत्रिल ू िारी, औघड़ बाघंबरा।


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 61 िगती अनरु जतत भजतत, चरर्ों में हो सदा, क्षमा हों अपराि सब, सदाशिव वविंभरा। ताप संताप हरो सख ु राशि प्रेमागार, ओम नमः शिवाय मन िपे पंचाक्षरा। िशििेखर,डमरूिर,गंगािर, करुर्ाकर, बत्रपरु ारी, मदहारी,िय िय धचदंबरा। आितु ोष, िंभ, ुिगत सियक, प्रलयकताय, कोदि कोदि नमन तु म्हें चंद्र मौशल, ईश्वरा। देवों के देव शिव तनववयकार ओंकार,


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 62 तु म्हीं में समाया हैसयय शिवम ् संदुरा। उमासदहत िोशभत तम ु भतू नाथ नंदीश्वर, सोमेश्वर, भोलेनाथ, त्र्यबं कम, ्रामेश्वरा। तनरंकार, कालेश्वर, योगेश्वर, महाकाल, अपनी िरर् में ले लो उमापतत महेश्वरा !!! स्मतृत श्रीवास्तव


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 63 पवनप ु त्र हन ु मान हुई चत्रै की पख ू र्मय ा, तब मनाओ, ददवस अवतरर् का, सभी गीत गाओ। करो हर ितन, ववर्घन बािा हिाओ, पवनपत्र ु रक्षा करे, ये मनाओ। नमन नाम अशभमान, पवनपत्र ु हनम ु ान। शमले बल अपररशमत, यही मााँग लाओ, तथा बद्ु धि जयादा, शमले ग ु नग ु नाओ। चलीसा पढ़ो बार्, बिरंग गाओ, चले आरती तो, समारोह पाओ। लगा िोि िय गान,


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 64 पवनपत्र ु हनम ु ान। बने राम के दतू , लंका ददखाओ, तनिानी ददया, मद ुद्रका तो तनभाओ। िहााँ िानकी थी, वहीं क ूद िाओ, बने कमय केंदद्रत, यही तो बताओ। सफल काम का दान, पवनपत्र ु हनम ु ान। गए थे मगर कमय, इतने ददखाओ, सभी वादिका पेड़ को, तोड़ िाओ। सही िब लगा स्वर्य, लंका िलाओ, डरा देख रावर्, सभी को ददखाओ। हरे ववर्घन, ये मान,


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 65 पवनपत्र ु हनम ु ान। बनो भतत भगवन, सदा ददल बसाओ, कहे चीर सीना, सभी को ददखाओ। बने आि भगवान, मंददर सिाओ, बने दीप माला, सभी डर भगाओ। शमले सदा सम्मान पवनपत्र ु हनम ु ान। डॉ दहमांिुिेखर िय श्री हन ु मान बिरंगबली हनम ु ान बिरंगबली हनम ु ान


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 66 वो राघव की हैंिान बिरंगबली हनम ु ान खेल क ूद में बिरंगी उपद्रव इतने कीना बचपन में ही सरू ि को अपने मख ु में लीना पवन सतु तो हरदम ही सबका करते कल्यार् सीता की सि ु लेने को पहु ाँच गए थे लंका अनम ु तत लके र माता की बिा ददया कफर डकं ा लंका फं ू की पल भर में बहु त थे वो बलवान िजतत लगी थी लक्ष्मर् को राम हु ए थे अिीर संिीवन लाने को तब दौड़ पड़े महावीर बिू ी लाए हनम ु त िब बचे लक्ष्मर् के प्रार्


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 67 राम लखन को अदहरावर् गया था ले पाताल बिरंगी ने देर न की छुड़ा लाए तयकाल अदहरावर् को मार ददया बचा लाए थे प्रार् अविपरु ी में सीता ने मोती की दी माला राम नहीं थे उसमें तो खण्ड खण्ड कर डाला सीना अपना चीर ददया देख लो सब भगवान तयाँ ू शसदं रू लगाया हैसीता से यह पछू ा उम्र बढ़ेगी स्वामी की माता ने यह बोला शसदं रू लगाया तन पर भतत हैंया भगवान संिय िैन


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 68 भजतत ग़ज़ल िग का ताना बाना तो उलझाता हैं कान्हा मेरे मन को ये भरमाता है। नश्वर लगता है िग सारा अब हमको मन मेरा िोगन िैसा बन िाता है। तेरी खाततर ददन भर तड़पे मन मेरा तेरा दियन पाने को ललचाता है। कान्हा- कान्हा िपते- िपते ददन बीते पि ू ा अचनय मझु को करना कब आता है। भावों की माला ले द्वारे आती हू ाँ


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 69 मस्तक तेरे चरर्ों में झक ु िाता है। िड़कन बनके ददल की लय तु म रहते मेरा कान्हा ही इसको िड़काता है। आिा कान्हा यह िीवन बीता सारा िाने कान्हा कब रहमत बरसाता है। ऊषा िैन उवयिी


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 70 िय मााँिारदे वंदन चंदन (दोहा) संकि सबका िालती, क ृ पा िारदे मात। मााँके सश ु मरन से किे, दख ु की काली रात। मेरे घि में हैबसी, छवव मनहर सख ु िाम। दया दृजष्ि मााँ की करे, मेरे परू न काम। मन में मेरे उपिते, कलव ु षत घोर ववचार। शमले चरर् की भजतत तो, हो मेरा उद्िार। िरर् शमले यदद िारदे, पाऊ ॅं तु मसे ज्ञान। भजतत शमली मााँकी मझु , ेयह मेरा अशभमान।


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 71 मझु े नहीं माता ठगें, लोभ मोह मद मान। सदा मातु बढ़ती रहे, मेरे क ु ल की िान। महेि चंद्र िमाय राि साथयक िीवन ईश्वर प्रदत यह िीवन, अनमोलक उपहार है। करने को िो है भेिा, करूं वहीं तब साकार है। साथकय क ु छ हो हमस,े िीवन सदप ु योग हो।


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 72 ददखे िहां ववक्रतता, बढ़ कर वदहष्कार हो। भल ू े गये उद्देश्य सब, आकर तया है करना। बने प्रभ ु के आज्ञाकारी, तनजश्चत कर भल ू गए। प्रभ ु ने ग ु र् सब देकर, अपने से मझु े ददया। ककया तया आकर यहां, प्रर् का ना मान ककया। साथयक कर यह िीवन,


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 73 मानवता का रूप िरें। प्रततमा मेरी पज ू ित हो, ऐसा क ु छ हम काम करें। िन्यवाद प्रभ,ु क्षमा त्रद ुि, सन् ुदर तया प्रभ ु की सज ृ ष्ि। क ु छ अच्छा हो हमस,े सबपर हो उसकी दृजष्ि।। मीरा श्रीवास्तव


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 74 भजतत ग़ज़ल 2122,1122,1122,22 देखने श्याम को रािा कक तरसती आाँखे ढू ाँढती श्याम को बचै ने हो भिकी आाँखें। ददय बबरहा का ददया श्याम सहे वो ककतना सध ुह ओ िाम भरे आह तड़पती आाँखें प्रीत रािा से हुई श्याम तनभाना भी था रोि रािा की कई बार बरसती आाँखे। अब न रािा को िरा होि कभी भी रहता श्याम की बाि में बस राह ही तकती आाँखें।


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 75 श्याम रािा को भला छोड़ गए तु म कैसे देख जिसको ही सदा श्याम कक हाँसती आाँखें। तयाँ ू शमलाये थे नयन फेर चले िाना था काि रािा से कभी श्याम न शमलती आाँखें। उविय ी श्याम अिरू े हैंबबना रािा के ददल में रािा ही बसी श्याम कक कहती आाँखें। ऊषा िैन उवयिी


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 76 भजतत ग़ज़ल 212, 212, 212, 212 बह रहे हैंयिोदा नयन सााँवरे मत करो आि ब्रि से गमन सााँवरे। याँ ू भल ु ाना नहीं श्याम आसान है हैकदठन भल ू ना कर मनन सााँवरे। बबन तु म्हारे नहीं भोर हो िाम हो फ ू ल खखलता नहीं हैचमन सााँवरे। लौि कर श्याम आना पड़गे ा तु म्हें आि देना पड़ेगा वचन सांवरे।


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 77 राधिका रो रही गोवपयााँ रो रही ददल िलाये बबरह की अगन सााँवरे। तोड़ कर प्रीत के तार िाने लगे प्रीत का तो नहीं ये चलन सााँवरे। इक निर डाल दो उवयिी पर कभी कर रही हैचरर् में नमन सााँवरे। ऊषा िैन उवयिी


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 78 अयोध्या में राम नाम चलो अविपरु ी को शमल करके िगमग दीपों से सिाएंगे प्रभ ु भव्य वविाल भवन पे हम तेरे नाम का ध्वि फहराएंगे तेरे नाम के हीरे-मोती से अब सबका दामन भर िाए राम राम िपते िपते भव बंिन से सब तर िाए िागेंगे सोए भानय सभी प्रभ ु राम क ृ पा बरसाएंगे चलो अविपरु ी को शमल करके


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 79 िगमग दीपों से सिाएंगे अद्भतु छवव लीलािारी की ना हिे नज़र इक पल को भी श्यामल सरूत है कमल नयन में खो िाए देखे िो भी मनमोहक ददव्य सलोना सा ये छवव हृदय में बसाएंगे चलो अविपरु ी को शमल करके िगमग दीपों से सिाएंगे मन बना अयोध्या िाम है सांसों में बसा तेरा नाम है


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 80 हे राम तु म्हीं में रमा है मन कहीं और नहीं आराम है तेरी भजतत में िो भी शमले हर पीड़ा को सयकारेंगे चलो अविपरु ी को शमल करके िगमग दीपों से सिाएंगे सार ग्रंथो में राम है जिनसे रोिन आठो िाम है हैएक सयय तु मसे भी बड़ा इस िग में तु म्हारा नाम है िन िन को तु म्हारे नाम की हम


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 81 मदहमा गा गाके सन ु ाएंगे चलो अविपरु ी को शमल करके िगमग दीपों से सिाएंगे पूिा श्रीवास्तव लागे रे कान्हा नीको सखी री मोहे, लागे रे कान्हा नीको। सखी री मोहे, लागे रे कान्हा प्यारो।। िब िब म,ैं तेरा ध्यान लगाऊं । केला और तु लसी के बबरवा लगाऊं , िब -िब म,ैं तेरा ध्यान लगाऊं ,


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 82 गेंदा, ग ु लाब के फ ू ल चन ु लाऊं , तेरे बहाने हरी-भरी बधगया सिाऊं , मोरों सी नाचं ू, गाउं, सखी री मोहे, लागे रे कान्हा प्यारो। िब- िब म, ैंतेरा ध्यान लगाऊं , मनोभावों को िद्ु ि कर िाऊं , गंगा और यमन ु ा को िद्ु ि करना चाहू ं, कमय करने में गतत पाऊं , मैंअि ु नय बनना चाहू ं । सखी री मोहे, लागे रे कान्हा प्यारो। िब -िब म, ैंतेरा ध्यान लगाऊं , दि ू - दही से मतखन बनाऊं ,


‘लम्हे जिन्दगी के’ मंच की प्रस्तुतत : काव्यार्घयय 83 िब -िब म, ैंतेरा ध्यान लगाऊं , गीता -ज्ञान और भागवत पढ िाऊं , मैंगोपी सी , बनना चाहू ं। सखी री मोहे, लागे रे कान्हा प्यारो। डॉ. रजश्म चौबे


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