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Published by , 2018-07-29 02:19:50

emagzine WITH EDITING

emagzine WITH EDITING

2018-19

श्री प्रकाश जावड़के र
मानव ससं ाधन ववकास मिं ी

श्री सतं ोष कु मार मल्ल [भा.प्र.से.]
आयकु ्त के . वि. संगठन नई दिल्ली

डॉ ई. टी अरासु
उपायुक्त के . वि. संगठन जबलपरु सभं ाग

श्रीमिी शाह दा परवीन (स ायक आयकु ्ि)
के . वव. संगठन जबलपुर सभं ाग

श्री चन्दन को ली (प्राचायय )
के न्द्रीय ववद्यालय क्रमांक 1 रीवा

मुख्य सपं ादक : श्री सी डी दबु े सपं ादक: [अगं ्रेजी] संपादक: [ससं ्कृ ि] आवरण सज्जा: मदु ्रण एवं
संपादक: [ह दं ी]: श्री बी के श्रीमिी के . जोस श्री शलै ाम्भर त्रिपाठी श्रीमिी शलै जा सकं ल्पना:
तिवारी श्रीमिी ववभा ससं सस ं श्रीमिी रवविा पाठक





Website: www.kvno1rewa.ac.in Kendriya Vidyalaya No.1
Ministry of HRD :- Govt. of India
Civil Lines, Rewa (M.P),486001

Phone No. 07662-258522

E-mail:[email protected]

From the Principal’s Desk

It gives me immense pleasure to present this
Edition of our Vidyalaya Patrika “Abhivyakti” 2018-19,
which is a mirror of the innocent faces of the growing
poets, artists and visionaries. Kendriya Vidyalaya No. 1
Rewa is already making remarkable progress in
Academics as well as in all other fields.

Life style, culture and attitude of children today
has undergone a rapid change. They are born with more potential, intellect and new
challenges. Educational system and CBSE new pattern also keep pace with this demanding
digital world, where focus is given to the all-round development of the child.

Kendriya Vidyalayas give ample opportunities to bring out the inborn traits and
talents of every child through various activities. Vidyalaya Patrika is the Centre of the
platform where a child gives vent to his/her thoughts and emotions. Students’ creativity
and imagination take a flight of fancy and build up confidence and leadership.

We are indebted to honorable Dr. E T. Arasu Deputy Commissioner, KVS RO (
Jabalpur) for giving us a wide horizon to spread our wings in the direction of excellence .
We are grateful to Shri. Mahesh Chandra Choudhary (IAS), worthy Chairman, VMC KV
No.1 Rewa for his guidance, co-operation and good wishes.

I Congratulate and thank the members of the Editorial Board for their sincere
effort to explore the young minds and make this publication a success.

With best wishes.

Chandan Kohli
Principal

सपं ादक की कलम से

अपने आपको लेखन के माध्यम से व्यक्त करना एक कला है । विद्यालय पत्रिका
एक माध्यम है विद्यालय के छािों और शिक्षकों को ऐसा ही मचं प्रिान करने का, जहां
उिीयमान नन्हें लखे कों की कलम से ननकला प्रिाह विचारों को मंथन िे सकता है। विद्यालय
पत्रिका “असभव्यक्क्ि” विद्यालय के इन्ही रंगों और संस्कृ नत को सँजोये आपके सामने प्रस्ततु
है। इस बार विद्यालय पत्रिका को ई-पत्रिका के रूप मंे प्रकाशित ककया जा रहा है। यह एक
नई पहल है तथा हमारे पयाािरण को संरक्षक्षत करने की दििा में हमारा एक प्रयास भी है। ई-
पत्रिका होने के कारण आिा है कक इसे पाठकों का विस्तार भी शमलेगा।

छािों ने बहुत ही उत्साह से पत्रिका हेतु लेख जमा ककए और उल्लेखनीय है कक लेख
ऑनलाइन माध्यम से भी प्राप्त हुए। सभी छाि इस हेतु प्रिसं ा के पाि है।ं इस पत्रिका के
प्रकािन मंे सभी शिक्षक साथथयों से प्राप्त सहयोग हेतु मैं आभारी हूँ। विद्यालय के कं प्यटू र
विभाग के िोनों सिस्य कु . मधशु लका एिं श्री राम शसहं गुरं ग का मंै वििषे धन्यिाि ज्ञवपत
करना चाहूंगी क्योंकक लेख संकलन तथा समाकलन में इन्होने वििेष योगिान दिया एिं इस
पत्रिका को अंनतम रूप िेने और आप तक पहुंचाने का तकनीकी भार सम्हाला।

हमारे विद्यालय के प्राचाया श्री चन्िन कोहली जी के मागिा िना में हम सबका यह
प्रयास “असभव्यक्क्ि” के सोपान पर पहुंचा, माँ सरस्िती के चरणों मंे यह “असभव्यक्क्ि”
समवपता है।

रवविा पाठक,
पीजीटी संगणक ववज्ञान

TOPPERS OF 2018-19

CLASS XII

ISHA SINGH 95.8
LALJI DWIVEDI 92.8
NIKHIL KUMAR PANDEY 92.6
DIKSHA SARAF 92.2
BADRI VISHAL MISHRA 91.6
NIKIT SINGH PARIHAR 90.4
ANIL SINGH 90.2
SWEKSHA GAUTAM 89.6
ABHISHEK SINGH 89.6
AMAN PRATAP SINGH 88.8

CLASS X

AVINASH GAUTAM 93.6
ANKITA DWIVEDI 93
SIDDHANT BHALLA 89.4
AYUSHI SINGH BAGHEL 89.4
VIJAY NARAYAN SHUKLA 88.4
YASHOVARDHAN SINGH 88
YASHRAJ NIGAM 86.8
KAUSHTUBH SHRIVASTAVA 85.2
ANKITA PATEL 85.2
KAUTUK ASTU 84.8

अनुक्रमणणका

क्र. शीर्कय नाम कक्षा और वगय

1 वकृ ्ष लगाओ सकृ ्टट श्री 1st ‘स’

2 अकं ों का जादू आयरु ् िोमर 4 ‘ब’
3 नारी के मानव अधधकार असं शका प्रजापति 5 ‘अ’
रेणुका समश्रा 5 ‘ब’
4 प ेसलयाँा 6 ’ब’
7 ‘अ’
5 सीखो असभनय साके ि 7 ‘अ’
7 ‘अ’
6 बटे ी मानसी पटेल 7 ’स’

7 प ेसलयााँ यश राज पटेल 7 ‘स’
8 ‘ब’
8 माँा सुधा कोल 8 ’स’
9 ‘अ’
9 लौ पुरुर्-सरदार वल्लभ भाई सौम्या समश्रा 9 ‘अ’
11 ‘अ’
पटेल

10 नोटबंदी पर कवविा यशस्वी पाण्डये

11 गुरु का दजाय हदव्या समश्रा

12 कोई न ीं पराया सुची ससं

13 हदया ऐसा जलाना ोगा प्राची को ली

14 अपनी कवविा के माध्यम से भाव्या पाठक

15 सशक्षक की’ मह मा आयरु ् ससं परर ार

16 सत्यमेव जयिे राके श कु मार श्रीवास्िव

टी.जी.टी (ह न्दी)

17 ससं ्कार डॉ.रजनीश पाण्डये

पी.र.टी

18 मरे ी कल्पना राके श कु मार श्रीवास्िव

टी.जी.टी (ह न्दी)

19 कौन सा शनू ्य रवविा पाठक
20 समाज और संस्कृ ति पी.जी.टी.(CS)

भगृ पु ति कु मार तिवारी

टी.जी.टी (ह न्दी)

21 SAVE GIRL CHILD KAVYA PATHAK 3 ‘B’
6 ’B’
22 COMPUTER SHORTCUT DIVYANSH SINGH
6 ’B’
KEYS 7 ‘A’
7 ‘A’
23 COMPUTER FULLFORM DIVYANSH SINGH 7 ‘A’

24 CLEANLINESS MANSI PATEL 7 ’C’

25 TRY,TRY AGAIN MANALI TOMAR 7 ‘C’

26 SIMPLE TRUTHS ARE VIKASH TRIPATHI 7 ‘C’

MORE POWERFUL TO 7 ’C’

EMPIRES 8 ‘B’
8 ‘C’
27 VERY INTERESTING ADARSH KUMAR 8 ‘C’
8 ‘C’
FACTS AGNIHOTRI
6 ‘स’
28 IMPORTANCE OF MOHIT PANDEY 6 ‘स’
9 ‘अ’
MATHEMATICS IN OUR 7 ‘अ’
7 ‘अ’
LIFE
7 ’स’
29 A LETTER TO MY MOM RAJ MISHRA
8 ‘अ’
AND DAD MY CHILD

30 GENERAL KNOWLEDGE SHREYANSH

MISHRA

31 FAITHFUL FRIENDS AYUSHI MISHRA

32 WONDERFUL NATURE SUCHI SINGH

33 MY MOTHER SUCHI SINGH

34 JOURNEY HIMANSHU SINGH

35 SOMETIMES JUST LET MOHIT PANDEY

IT BE

36 मम ् लक्ष्यम लक्ष्मी सा ू

37 मम ् कामना लक्ष्मी सा ू

38 प्र ेसलका: प्राची को ली

39 मानविायााः धचिनम ् पूजा तिवारी

40 ससं ्कृ ि कथा मानस ससं

41 ससं ्कृ ि श्लोकानुवाद श्वेिा पाठक

42 पयायवरणं गीिम ् ‘सशवम ् समश्रा

43
44

45

दहन्िी

वकृ ्ष लगाओ

जीवन के आधार ै वकृ ्ष
क िी ूं मंै बाि य सच ।
इनके त्रबना मारा जीवन अधरू ा
इन् ंे लगाकर उसको कर लो परू ा ।

वकृ ्ष लगाओ वकृ ्ष लगाओ
करो इनसे प्यार ।

मि मारो मि उजाडो

मि करो इनका सं ार ।

य फल देिे ैं, जल देिे ैं

और मंे छाया भी देिे ।

इनके नीचे बैठकर म

थोड़ा सा आराम कर लेिे ।

गंध को रिे, धएु ं को खािे
और जकड़े रखिे ंै समट्टी को ,

लेककन कफर भी देिे

शदु ्ध वा म सबको ।

इनके त्रबना कु छ न ीं ै म
खोकर इनको ना जी पाएगं े म

समटाकर इन वकृ ्षों को
स्वयं ी समट जाएगं े म |

सकृ ्टट श्री
एक ‘स’

1. 30 X 3367 = अकं ो का जादू
60 X 3367 =
90 X 3367 = 101010
120 X 3367 = 202020
150 X 3367 = 303030
180 X 3367 = 404040
210 X 3367 = 505050
240 X 3367 = 606060
270 X 3367 = 707070
300 X 3367 = 808080
909090
1010100

2. 33 X 3367 = 1111
66 X 3367 = 2222
99 X 3367 = 3333
132 X 3367 = 4444
165 X 3367 = 5555
198 X 3367 = 6666
231 X 3367 = 7777
264 X 3367 = 8888
297 X 3367 = 9999

AAYUSH TOMAR
IV ‘B’

नारी के मानव अधधकार

उत्पीड़न िोषण नहीं, शमले सिा अथधकार |
नारी का सम्मान हो , यह मानि अथधकार |
गहृ दहसं ा ककं थचत नहीं , शमले िातं पररिेि |
नारी गौरि िेि का, किर क्यों पाये क्लेि ?
यही तकाजा है , ‘िरि’ ,यही करूँ उध्िोष |
नर औ पररजन जागकर , िें नारी को जोि |
नारी है गहृ लक्ष्मी हंै सचमचु िरिान |
शमलंे उसे अथधकार सब , तब समाज की िान |
नारी में उजाा प्रबल, नारी नतृ ्य उजास
नारी है उत्कृ ष्ट ननत , नारी हंै विश्िास |
नारी ननत सुख से रहे , नारी हो खिु हाल |
यही चते ना कह रही , िह ना हो बािहाल |
नारी हो शिक्षक्षत अगर, तो उसका उत्थान |
हक सब नारी को शमले , शमले हमेिा मान |
प्रबल चते ना कह रही , जागे नारी आज |
नारी है हवषता अगर , हवषता सिा समाज |
नारी के अथधकार की, रक्षा करे समाज |
अब नारी घर-घर करे, अथधकारों सगं राज |
नारी रक्षा के शलए , उघत है आयोग |
अथधकारों के िास्ते , आज हंै सुखि योग |
िोषण सहना व्यथा है , उठे सिा आिाज़ |
हम सब शमल रच िंे ‘िरि’ , िोषणमकु ्त समाज ||

अंसशका प्रजापति

पाँचा वीं ‘अ’

प ेसलयााँ

1. खुली रात में पैिा होती
हरी घास पर सोती हूँ
मोती जसै ी मरू त मेरी
बिल की मैं पोती हूँ
बताओ क्या ?

उत्तर- ओस की बँूाद

2. ना मुझे इंजन की जररत
ना मझु े पेट्रोल की जररत
जल्िी-जल्िी परै चलओ
मजं जल अपनी पहुँच जाओ |

उत्तर- साईककल

3. रोज सबु ह को आता हूँ
रोज िाम को जाता हूँ
मेरे आने से होता उजाला
जाने से होता अँधेरा |

उत्तर- सरू ज

4. गोल-गोल आखँ ों िाला
लम्बे-लम्बे कानो िाल
गाजर खबू खाने िाला
इसका नाम बताओ कौन |

उत्तर- खरगोश

5. मगु ी अडं ा िेती है
गाय िधू िेती है
पर कौन है जो िोनों िेता है ?

उत्तर- दकु ानदार

रेणुका समश्रा
पााचँ वीं ‘ब’

सीखो

1. बोल सको िो मीठा बोलो |
कटु बोलना मि सीखो |

2. बदल सको िो कु पथ बदलो |
सुपथ बदलना मि सीखो |

3. जला सको िो दीप जलाओ |
ह्रदय जलाना मि सीखो |

4. त्रबछा सको िो फू ल त्रबछाओ |
शूल त्रबछाना मि सीखो |

5. समटा सको िो गवय समटाओ |
प्यार समटाना मि सीखो |

6. कमा सको िोपुण्य कमाओ |
पाप कमाना मि सीखो |

7. लगा सको िो बाग लगाओ
आग लगाना मि सीखो |

8. बोल सको िो सच बोलो |
झूठ बोलना मि सीखो |

असभनय साके ि
छटवीं ‘ब’

बेटी

जब जब जन्म लते ी है बेटी
खुशियाँ साथ लाती है बेटी |

ईश्िर की सौगात ही बटे ी
सुबह की पहली ककरण है बेटी |
तारों की िीतल छाया हंै बेटी
आगँ न की थचड़ड़या है बटे ी |
त्याग और समपणा शसखाती है बेटी
नये नये ररश्ते बनाती है बेटी |
जजस घर जाए, उजाला लाती है बेटी,
बार-बार याि आती है बेटी |
बटे ी की कीमत उनसे पूछो
जजनके पास नहीं है बेटी |

मानसी पटेल
सािवीं ‘अ’

प ेसलयां

1. चहे रे मरे े हंै 6 पर शसर एक भी नहीं, आंखंे मेरी है बहुत सारी पर िेख
सकती नहीं

उत्तर - डाइस ।
2. बीसों का सर काट शलया ना मारा ना खून ककया ।
उत्तर- नाखनू |
3. मेरे नाम से सब डरते हंै, मरे े शलए पररश्रम करते हंै |
उत्तर - परीक्षा |
4. एक गुिा के िो रखिाले, िोनों लबं े िोनों काले ।
उत्तर- मंछू
5. िेखो जािगू र का कमाल, डाले हरा ननकले लाल |
उत्तर- पान |

नाम - यश राज पटेल
कक्षा – सािवीं (अ)

माँा

माँा की ममिा करुण न्यारी
जैसे दया की चादर
शक्क्ि देिी तनि म सबको
बन अमिृ की गागर |

साया बन कर साथ तनभािी
चोट न लगने देिी
पीड़ा अपने ऊपर ले लिे ी
सदा सदा सखु देिी |
मााँ का आचाँ ल सब खुसशयों की
रंगा रंग फु लवारी
इसके चरणों में जन्नि ै
आनदं की ककलकारी |
अद्भिु मााँ का रूप सलोना
त्रबलकु ल रब के जैसा
प्रेम के सागर सा ल रािा
इसका अपनापन एसा |

सुधा कोल
सािवीं ‘अ’

लौ पुरुर् – सरदार वल्लभ भाई पटेल

सरिार िल्लभ भाई पटेल स्ितंिता सेनाननयों मंे से एक थे | सरिार पुरष
िल्लभ भाई पटेल ने िेि को आज़ाि कराने मंे अपना वििषे योगिान दिया था
| उन्हंे लौह पुरष नाम से भी जाना जाता है | उनका जन्म 31 अक्टू बर 1897
को हुआ था | उन्होंने सत्याग्रह आिं ोलन में भी दहस्सा शलया था | िह सत्य
और अदहसं ा के मागा मंे चलते थे | िह बचपन से ही बहुत प्रनतभािाली थे |
उनके वपता एक ककसान थे | उन्होंने अपनी आधी शिक्षा घर से प्राप्त की थी |
िह हमारे िेि के उप राष्ट्रपनत थे और गहृ मंिी भी थे | िह बहुत ही ईमानिार
थे | िह एक िकील थे | एक बार िह के स लड़ रहे थे तभी एक थचठ्ठी आई
उन्होंने थचठ्ठी खोली और जेब में डाल ली | जब के स खत्म हुआ तो िह बहुत
िखु ी हो गए उनके आिमी ने पूछा , जजसकी तरफ़ से िह लड़ रहे थे कक आप
क्यों इतने िखु ी है तो उन्होंने कहा कक मेरी पत्नी अब इस िनु नया मंे नहीं है |
उस आिमी ने कहा किर आप लड़ क्यों रहे थे ,तो उन्होंने ने कहा “ क्योंकक
मनैं े तुमसे पैसे शलए थे इसशलए मंै अपने िािे से मुकर कै से सकता था |
इसशलए उन्हें लौह परु ष कहा जाता है | िो इतने िुु ःख मंे भी रहकर अपना
काम पूरा ककये उनकी इस बात से हमे सीख लेनी चादहए | उनसे हमे शिक्षा
लेनी चादहए | उन्होंने अपना परू ा जीिन िेि की आज़ािी मंे लगा दिया | अंत
मंे मंै इतना ही में मैं इतना ही कहना चाहूँगी कक हमे उनके प्ररे णािायी विचारों
से सीख लेनी चादहए और अपने िेि के नागररक बनकर िेि की रक्षा करनी
चादहए |

सौम्या समश्रा
सािवीं ‘स’

नोटबदं ी पर कवविा

चाहे हो िो बैकं कोई, या हो कोई एटीएम,
शमलेगी या तो लाइन लबं ी, या शमलंेगे ना रकम,
चेक की बत्ती बना हम, कान अपना खुजायंेगे,
पर खाते में पैसे रहंे किर भी ननकाल न पाएंगे।

जजन्हंे क्लेि करना था कम, िो कर रहे हंै कै ि कम,
जजसे चुना था िेि ने, िो रहा है वििेि घूम,
लाइन मंे लगिा, जमा जनता के पैसे कराएँगे,
और लोन अपने शमिों के , माफ़ करते जाएंगे।

जनता तेरी शससककयों पे, न मोिी रोने आएगा,
भाषणों में घड़ी-घड़ी, घड़ड़याली आंसू बहायगे ा,
पनामा पेपर िालों को, िो हाथ न लगाएंगे,
आम जनता वपसे, िो मटरगश्ती उड़ाएंगे।

काले धन की मोिी को, परिाह कहाँ है मरे ी माँ,
जस्िस बंैकों मंे पड़े-पड़,े िो चौगनु े हो जाएंगे,
पदं ्रह लाख के िािे को, चनु ािी जमु ला बताएँगे,
और हमें ठंे गा दिखाकर खखलखखलाते जाएंगे !

यशस्वी पाण्डये
7 ’स’

गरु ु का दजाय

गुर का िजाा सबसे ऊँ चा, सारे दहिं सु ्तान में
िसों दििाएं बाचँ रही हंै, मंि ये सबके कान में।

गुर ही हंै जो सिा उबारे, पग-पग अंधकार के भय से
त्रबन शिक्षक के हम हैं ऐसे, त्रबना सगु ंध समु न है जसै े।

यही सार उद्िेशलत होता, सब धमों के ज्ञान में
िसों दििाएं बाँच रही हंै, मिं ये सबके कान मंे।

ककतना भी लक्ष्य कदठन हो, आसान बनाते गुरिर
सबकी राहों मंे आिा के , िीप जलाते गुरिर ।

गरु चाहंे तो प्राण िँू क िंे, पलभर में पाषाण मंे
िसों दििाएं बाचँ रही हैं, मिं ये सबके कान मंे ।

आिंका भय कदठनाई से, जब भी हम डरते हैं
तब गुर ही अथँ धयारे पथ पर, उजजयाला करते हंै ।

गरु पररितना कर सकते हैं, विथध के शलखे विधान मंे
िसों दििाएं बाँच रही हंै, मिं ये सबके कान में ।

हदव्या समश्रा
8 ’B’

कोई न ीं पराया

कोई न ीं पराया , मरे ा घर सारा संसार ै |
मंै न बधं ी ूाँ देश – काल की जंग लगी जंजीरों में,
मैं न खड़ी ूँा जाति – पाताँ ि की ऊाँ ची – नीची भीड़ो मंे |
मेरा धमय न कु छ स्या ी – शब्दों का ससर्य गुलाम ै ,
मैं बस क िी ूाँ कक प्यार ै िो घाट- घाट में राम ै ,
मझु से िुम न क ो महं दर – मक्स्जद पर मैं ससर टेक दाँ ू ,
मैं िो आराध्य ूँा , देवालय र द्वार ै |

कोई न ीं पराया , मरे ा घर सारा ससं ार ै |
क ीं र े कै से भी मुझको प्यारा र इंसान ै ,
मझु को अपनी मानविा पर ब ुि- ब ुि असभमान ै |
मैं ससखलािी ूँा कक क्जयो और जीने दो संसार को ,
क्जिना ज्यादा बााटँ सको िुम , बाटाँ ों अपने प्यार को |
सखु न िुम् ारा के वल , जग का भी उसमें कु छ भाग ै ,
फू ल डाल का पीछे , प ले उपवन का श्रंगृ ार ै |

कोई न ीं पराया , मेरा घर सारा ससं ार ै |

सचु ी ससं
आठवीं ‘स

हदया ऐसा जलाना ोगा

वियमान के चकाचौंध मैं
कल को न ीं भुलाना ोगा
र े सविय उजाला रदम
दीया ऐसा जलाना ोगा

जीि सके रण को जो
शास्ि ऐसा बनाना ोगा
अक्स्थदान करे अपनी जो
वैसा दधीधच को सामने आना ोगा
भरे ररयाली तनजनय मंे जो
कल्पिरु ऐसा लगाना ोगा
समट न सके कभी जो
कीतिमय ान ऐसा लगाना ोगा
स्पन्दन कर सके र हदल मंे जो
राग ऐसा सुनाने ोगा
आलोककि कर दे अन्िमणय को जो
दीया ऐसा जलाना ोगा
आत्मोत्सगय कर सके जो
योद्धा ऐसा बनाना ोगा
सवु ाससि कर दे कण-कण को जो
सगु धं ऐसा फै लाना ोगा
धो सके मैले मन को जो
तनझयर ऐसा ब ाना ोगा
नामोतनशान समटा दे िम का जो
दीया ऐसा जलाना ोगा

साभार

टू टे पिे (कवविा सगं ्र )

अशोक कु मार समश्र

अपनी कवविा के माध्यम से

अपनी कविता के माध्यम से इक बात बताने आई हूँ,
अपने अतं मना के कई, जज्बात जताने आई हूँ,
मंै जन्मी भारत की भशू म में, मनुहार सनु ाने आई हूँ,
जो सपने मुट्ठी मंे रक्खे ह,ंै उनको साकार बनाने आई हूँ,
अपने अंतमना के कई जज्बात जताने आई हूँ,
अपनी कविता के माध्यम से इक बात बताने आई हूँ ||

िीर भरत की िेन है भारत, पढ़ा था ऐसा ककस्सों में,
िीरो का पािन प्रेम है भारत, जो बटं ा आज कई दहस्सों मंे,
इस भारत की छोटी गशलयों से कु छ अंजान कहानी लाई हूँ
अपनी कविता के माध्यम से इक बात बताने आई हूँ ||

िीरो ने शसथं चत ककया लहु से उस धरती पर दहसं ा क्यों होती है ?
भाई-भाई को मार रहा, भारत माता क्यों रोती है ?
नारी, तुम के िल श्रद्धा हो, ये कहने िाले कहाँ गए ?
लक्ष्मीबाई की धरती पर, बहनों के सपने छले गए।
अपनी इस आिाज से म,ंै इक आिाज उठाने आई हूँ।
अपनी कविता के माध्यम से, इक बात बताने आई हूँ ||

भारत माता की सनु ्िर प्रनतमा, खड़ं डत होती सी लगती है।
घर में ही िशु ्मन बहुतेरे हैं , मदहमा, मंड़डत होती सी लगती है ।
सारे ककस्से िािी-नानी के , अब झूठे -झूठे से लगते हंै ।

ससं ्कार की धानी था जो, और संस्कृ नत का विस्तारक,
विश्ि-गुर का िजाा था, सिमा ान्य था मेरा भारत।
सोने की थचड़ड़या था जो भारत ,
मैं उसके स्िणा पखं लगाने आई हूँ ।
अपने अंतमना के कई, जज्बात बताने आई हूँ ।।

मेरा मन जो गीत गा रहा, उसके सुर तमु तक भी पहुंच।े
सभी सुरों का हो समागम, दहन्ि की धरती किर से चहके ।
इस मचं को आज नमन है मेरा यहाँ इक िीप जलाने आयी हूँ ,
अपने अतं मना के कई, जज्बात बताने आई हूँ,
अपनी कविता के माध्यम से इक बात बताने आई हूँ।।

बात बताने आई हूँ, मनुहार सुनाने आई हूँ।
साकार बनाने आई हूँ, आिाज उठाने आई हूँ।
जयगान सुनाने आई हूँ, मैं पंख लगाने आई हूँ।
इक िीप जलाने आई हूँ,॥

जय दहन्ि जय भारत

भव्या पाठक
9’ ब’

सशक्षक की मह मा

अगर शिक्षक की मदहमा के बारे में शलखा जाए ि परू े भी समुद्र को स्याही और पथृ ्िी को कागज
मान शलया जाए तो भी शलख पाना मुजश्कल है | किर भी मनंै े कु छ शलखने का सोचा और एक छोटी
सी कविता शलख डाली –

सोचा कु छ शलखू गरु की मदहमा में,
जो है सागर से भी गहरे,

जो है हिा से भी िीतल ,

है मदहमा जजनकी अतं ,

आकाि सी सोच ,

उस गरु के शलए िो िब्ि ही शलखूँ |
पर िब्ि नहीं शमलते मुझको,
जो कर सके उनका बखान ,

नहीं शमलता कोई उथचत िीषका ,

जो बाँध सके उनको सीमा मंे ,

क्या िँ ू सम्बोधन जो कर सके ,
उनके उपकारों का िणना |

तुको के बंधन मंे मैं उलझ सा जाता हूँ ,
हर अलंकार इस पंजक्त का, कु छ कम लगता है |
हर रस इस कविता का, अधूरा सा लगता है |
हार जाता हूँ उनकी मदहमा को, िब्िों में वपराने से |
तभी कोई िीतल हिा , कह जाती है चपु के से |
गुर महान है ईश्िर से,
उनकी उपमा मंे नहीं है िब्ि कोई |
अहसास है पर तुक नहीं कोई ,
गुर के शलए बस आिर ि सम्मान है ,

कोई नहीं कही कविता कोई | आयरु ् ससं परर ार

11वीं ‘अ’

EXCURSION



सत्यमेव जयिे

सत्य एक हदन बैठा था चपु चाप मन में उदास|
सोचिा क्या ो गया इसं ान को ?
क्जसके पास जािा ूाँ अपने को बिािा ूाँ
कफर भी कोई ववश्वास न ीं करिा
क्या ो गया इंसातनयि को ?
इसं ातनयि का नाम लेिे ी
इंसातनयि धचल्लाई
मझु को पकु ारने वाला कौन ै भाई
पास आ कर देखा
अरे! य िो सत्य ै मेरा भाई
दोनों ने ी ममिा की दु ाई
बोली समाज को क्या ो गया ै भाई
इिने मंे मानविा आई
आपस में गले समल रोकर धचल्लाई
मेरी सौिन ईटयाय ने मझु को भगाया
उसी ने सारी दतु नया को भरमाया
झूठ का स ारा ले

म सबके णखलाफ भड़काया
मेरी ईमानदारी का गला घोंटा
इिना सुन सत्य बौखलाया
बस-बस
अब िक मंै चपु र ा, स िा र ा,पर
अब चपु न र ूँागा

असत्य को असत्य ठ रा कर ी दम लँागू ा
शायद ! व भलू गया

एडी उठाने से कोई बड़ा न ीं ोिा
आज िक य भी न ी जान पाया ै
कक यगु ों – यगंु ों से सत्य जीििा आया ै
इससलये िो ‘सत्यमेव जयि’े क लािा ै|

स्वरधचि- राके श कु मार श्रीवास्िव
टी.जी.टी (ह न्दी)
के .वव.क्र.1 रीवा

संस्कार

संस्कार जीिन की पहली किया है। ससं ्कार रदहत समाज पििु त जीिनिलै ी का नमूना माि
होगा। ककं त ससं ्कार यह बड़ी कदठन प्रकिया है। जजस प्रकार धातु को वपघलाकर उपयकु ्त आकर दिया
जाता है, ठीक उसी प्रकार जन्म के बाि आिमी को मनषु ्य बनाने का काम संस्कार द्िारा ककया जाता
है। मनषु ्यता कई बार स्िाभाविक होती है और कई बार ससं ्काररत।

झठू और आडबं र ने हमें घेर शलया है। िैचाररक सथु चता का अभाि है। लोग एक िसू रे को
नीचा दिखाने मंे लगे ह।ैं थगरथगट की तरह रंग बिलना जैसे मानि का स्िाभाविक गुण है। अथधकारी
ि नेताओं के िही खास हंै जो उनकी नीनतयों की पीठ पीछे ननिं ा करते ह।ैं सलाह िेने िाले ि
िभु थचतं क हाशसए पर ह।ैं रंग बिलने की होड़ सी है।

ईमानिारी ि सतका ता की सपथ लेने िाले लोग सपथ लेने के बाि और भी भ्रष्ट हो जाते हंै
और यदि कोई भािािेि में ईमान की लड़ाई लड़ता है तो िह द्रोही हो जाता है। सच और ईमान जसै े
काल्पननक बातें हं।ै विज्ञान ने हमंे हमंे बहुत दिया है ककं तु हमारी भािनाओं ि मलू ्यों मे कमी आई है।
भािनािनू ्य जीिन ि मूल्य रदहत समाज हमारे सामने चनु ौती बन खड़े हैं। मिीनंे हमारी हर जरूरतों
को परू ा नहीं कर सकतीं।

समाज साथ से बनता है। परस्पर जरूरतों पर आधररत विश्िसनीयता हमारे शलए बहुत जरूरी
है। विज्ञान के चमत्कार, धन - िौलत, सामाजजक िीषसा ्थता सब हमारे मानशसक ि सामाजजक सुख
के शलए है। धमा के प्रनत समझ और ननष्ठा मे थगरािट आई है। पररिार टू ट रहे हं।ै सिलता ने सच का
गला सा घोंट दिया है, लोग हर हालत में जीतना ि सिल होना चाहते हैं। मूल्य उनके शलए महत्िपूणा
नहीं है। परु ाने समय में युद्ध के भी ननयम होते थ।े आज उनकी आिश्यकता नहीं है। सामाजजक
न्याय की आड़ में मनमानी हो रही है। कमजोर िोवषत है, िबगं पोवषत है।

समाज की प्राचीन ककं तु उपयोगी धमाािलंबी व्यिस्थाओं की ओर ननहारने की जररत है।
ईश्िर सब िेख रहा है। हम िसू रे को धोखा िे सकते हंै ककं तु अपनी आत्मा को नहीं। गलत परंपराओं

ि प्रकियाओं का असर अपने ही जीिन मे होकर रहेगा, थोड़ी िेर ही सही। गलत तरीके से पायी गई
सिलता का सुख, ज्यािा िेर तक नहीं रहता। हमारी गलत बातंे सबसे ज्यािा हमें ही तकलीि

पहुंचाती है।ं और सबसे बड़ी बात कक हम सब एक ही परमात्मा की एक जैसी संतानें हंै। सखु
और िुु ःख स्थाई नहीं ह।ंै आत्मा ही है जो नश्िर है और आत्म िानं त से बढ़कर कोई चीज नही। गल्ती
होना स्िाभाविक है। ककं तु क्षमा आनंि है। ईश्िर हमारे ह्रिय मे है। िही सच स्िरूप है। मूल्य सच के
सिााथधक ननकट है और क्षमा ईश्िरत्ि है। सच को स्िीकारें और सबसे प्यार करंे। जीिन के शलए
इससे बड़ा मलू ्य कु छ नहीं।

"आओ शमलकर किम बढ़ाएं,
सत्य-ननष्ठ हो राह बनाए।ं
जीिन कु छ दिनों की मेहरबानी,
एक साथ हो रचे कहानी।
आओ खिु की आह शमटाए,ं
एक ध्येय हो राष्ट्र बनाएं।

साभार।
डॉ रजनीश पाण्डये
(ओजस्वी )

मेरी कल्पना

मेरी कल्पना
अपने आप में पूणा
कोरी कल्पना से परे
यथाथा की कल्पना है,
जो मझु े
रंगीन ख्िाबों से हटाकर
सत्य, अदहसं ा ईमानिारी के पथ पर
ननरंतर चलने को प्रेररत करती है
जब भी
मंै िँ सता हूँ कु चिों के जाल मंे
िह धैया दहम्मत और जोि का पाठ पढ़ाकर
मेरा हौसला बलु िं कर
सहनिीलता की सीख िेकर
मझु े उबारती है उन बरु े हालात से
और आगाह करती है मझु े
हर बुराई से बचने को
झठू ी िान िोहरत से हटकर
ईमानिारी और सच्चाई के मागा पर चलने को

जब भी मैं होता हूँ उिास
िह प्रेम की ज्योनत अतं रतम में जलाकर
िखु ििा से ध्यान हटाकर
हर समस्या से जझू ने का हौसला बढ़ाकर
करती है प्रेररत |
और िेती है सीख , सािधान |
हर उस िख्स से जो तुम्हारे शलये घातक हो
उखाड़ िें को
हर उस रास्ते के पत्थर को
जो तम्हारी प्रगनत में बाधक हो ||

स्वरधचि- राके श कु मार श्रीवास्िव
टी.जी.टी (ह न्दी)
के .वव.क्र.1 रीवा

कौन सा शून्य ?

इस कविता के माध्यम से मनंै े िनू ्य (zero) तथा िनू ्य (अनंत तक िै ला
आकाि अथाात गगन) की तुलना कर िोनों को समझने का एक छोटा सा प्रयास ककया
है और पाया कक, िोनों ही परस्पर विपरीत नजर तो आते हंै, ककन्तु गढू मंे िोनों एक
िसू रे के परू क है। पररसीमन और विस्तार, प्रारम्भ और अतं जसै े महीन िब्िो से
पररभावषत िोनों िनू ्य कहीं न कहीं एक िजू े में विलोवपत से हो जाते हंै।

बठै े थे अके ले मगन से वििाल िनू ्य (गगन) को ननहारते ,
चाह थी, उस िनू ्य की वििालता, स्ियं मंे उतारते,
िनू ्य जो कु छ न होकर भी सब कु छ है,
उसके सिागां ीण से स्ियं को सिं ारते॥

कहतें है अनतं िनू ्य और िून्य अनंत है,
िनू ्य ही प्रारब्ध और िनू ्य ही अतं है,
सकू ्ष्म से सकू ्ष्म की पररभाषा िनू ्य है,
और

उन्ननत के उच्चतम शिखर की अशभलाषा िनू ्य है ॥

िनू ्य का ओर न छोर,
िनू ्य हो प्राप्य, िह डगर कठोर,
एक िनू ्य थामे जीिन की डोर,
एक िनू ्य मंे विलीन हो जीिन का हर िोर॥

एक िनू ्य मंे कु छ भी नही,ं
और िजू े मंे क्या कु छ नहीं ?
एक िून्य उपलब्धता रदहत,

िजू े मंे ससं ार समादहत,
एक िनू ्य की वििालता उसकी लघतु ा,

और िसू रा प्रसार की उन्मकु ्तता
एक सजृ ष्ट का धारक,
िजू ा सजृ ष्ट का कारक।

ककसको करें अतं ननदा हत?
िोनों ही परस्पर सजम्मशलत,

गुरता का गौरि,
लघतु ा का महत्ि,
िनू ्य से बेहतर ,
पररभावषत नहीं अन्य कोई तत्ि॥

अपलक ननहारते उस िनू ्य में लीन,
जीिन लगे उसी िून्य में आसीन,

क्या िनू ्य ही हर िनू ्य का,
और िनू ्य ही हर िनू ्य का चरम है?
आखखर क्यों उस िून्य में विचरण करता,

विचशलत सा यह अन्तमना है ???
रवविा पाठक

स्नािकोत्तर सशक्षक (संगणक ववज्ञान)

समाज और संस्कृ ति

यदि सादहत्य समाज का िपणा है तो सादहत्य ही ससं ्कृ नत का सबं ाहक भी | सादहत्य
सामाजजक सरोकारों को समेटते हुए मलू ्य स्थावपत करता है और यही मलू ्य आगे चलकर
ससं ्कृ नत के अगं बन जाते हंै | अपने व्यापक अथा एिं सिं भा मंे सादहत्य ‘ सुरसरर सम सब
कहँ दहत होई “ की अिधारणा शलए है , जजसमे सादहत्य भी है , िास्ि भी है , और सादहत्य
िास्ि भी , इनतहास बोध भी | सादहत्य का यही मानिण्ड मानि माि से अथिा मानि
ससं ्कृ नत से जोड़ िेता है | कह सकते है कक सादहत्य संस्कृ नत का सजृ न करता है और
संस्कृ नत मानिमाि का | सादहत्य अपने समय के सामाजजक िबाि को एहसास करता है ,
उसे उद्घादटत करता है , ससं ्कृ नत उसे कालजयी बना िेती है | िेि से लेकर उपननषद् , गीता
, कु रान , रामायण , महाभारत , सेक्सपीयर , न्यटू न , एड़डसन , तुलसी ,कबीर , गरु नानक
, गाधँ ी जसै े सादहत्य ,व्यजक्त एिं व्यजक्तत्ि इसशलए आज भी प्रसथं गक हैं क्योंकक इनके
सजृ न मंे ससं ्कृ नत एिं सासं ्कृ नतक मूल्य आज भी सामनयक हंै , प्रेरणािायी हंै |

संस्कृ नत शसद्धांतों एिं ससं ्कारों से उिरा ा बनती है । सादहत्य इसमे भाि विचार बीज
का काम करता है । संस्कृ नत के आयतन मंे सादहत्य गधा जाता है और सादहत्य की पररथध
में संस्कृ त को तरािा जाता है। ससं ्कृ त व्यजक्त िह नहीं जो शसिा ससं ्कारों में जजए बजल्क
सच्चे अथों में िह है जो अपनी योग्यता ,प्रनतमा से नए तथ्यों का ििना कराएं, जो समाज
तथा ससं ्कृ त सापेक्ष हो। आत्मिीपोभि, मतृ ्योमामा तृ मगमय, कमणा ्येिाथधकारस्ते मा िलेषु
किाचन, अथिा तो अदहसं ा परमोधमुा ः , अथिा तो िसुधैि कु टुंबकम आदि तथ्य हमारे
सासं ्कृ नतक मलू ्य है, और यही मलू ्य सभ्य मानि समाज के शलए सिैि मागिा िना करते रहंेगे।

सादहत्य से जड़ु कर जब ससं ्कृ त की बात करते हैं तो सादहत्यकार की भशू मका को
भुलाया नहीं जा सकता। सादहत्यकार योग्य दृश्य होता है यगु ोन पररजस्थनतयों ,अिस्थाओं

वििेषताओं ,थचतं ाओ को िही पूरी शिद्ित के साथ जीता है। िह समाज अथिा युिक

की उपेक्षा नहीं कर सकता। सादहत्य ही समाज का ,संस्कृ त का सगं ीत ि स्िर है ।

ककसी कवव ने ठीक ी क ा ै

अंधकार व देश ज ां आहदत्य न ीं ै

मुदाय ै व देश ज ां साह त्य न ीं ै

भारतीय सादहत्य के समानातं र दहिं ी सादहत्य मंे ससं ्कृ त बोध को हमेिा पररभावषत ककया
गया है महत्ि दिया गया है अनेकता में एकता समन्िय की भािना समरसता प्रजातातं ्रिक
लोकतंि एिं समाजिाि अनतथथ िेिो भि की भािना आदि जैसे संस्कृ त मूल्यों के साथ
सादहत्य मंे आत्मसात ककया है तलु सी का रामचररतमानस महाकाव्य सादहत्य और संस्कृ नत
के िाश्ित सबं ंध को उद्धररत करने के शलए पयापा ्त है सििा जक्तमान राम का मागा हेतु
समुद्र से विनती करना गुह को गले लगाना सच्चे राजधमा की वििेषता प्रजा के सुख मंे राजा
का सखु ननदहत है इसके अलािा नरोत्तमिास के कृ ष्ण ने अपने शमि मेहमान अनतथथ की
सेिा स्िागत का आििा रूप प्रस्तुत करना श्री कृ ष्ण द्िारा पहले िानं त प्रस्ताि और किर
ननराि हताि अजुना को कतवा ्य का बोध कराना यह सब यह शसद्ध करता है कक सादहत्य
ककस तरह संस्कृ नत की ननभरा ता को प्रिादहत ककए रहता है आधुननक सादहत्य मंे प्रेमचंि का
होली पाि जलु ्म और अन्याय सहकर भी मयािा ाओं एिं जीिन मूल्यों के आििा से मोह भंग
नहीं कर सका

आधनु नकता की चकाचौंध में विज्ञान और तकनीकी के बढ़ते चरण की प्रनतस्पधाा मंे
ससं ्कृ नत की रक्षा करना एक चनु ौती बन गया है आज मानि कें द्र में है और उसी के शलए
िनु नया सब गनतविथधयां हैं यह बात समाप्त होने लगी है मानि अब माि ससं ाधन है या तो
िह श्रशमक है या उपभोक्ता प्रकृ नत और पथृ ्िी जननी है उसका विकास करके हम अपना
विकास करें यह मान्यता धूशमल होने लगी है जीिन के आधार पानी और हिा व्यापार की
िस्तु बनते जा रहे हैं स्िी जननी है मां है धािी है यह दृजष्ट तजे ी से धंधु ली हो रही है
तकनीकी ने िनु नया की िरू ी कम की है ककं तु व्यजक्त की िरू रयां बढ़ती जा रही है यही िह

चनु ौनतयां है जजस पर गंभीरता से थचतं ा और थचतं न करने की आिश्यकता है उथचत अनथु चत
पर विचार करते हुए ससं ्कृ नतयों का आिान-प्रिान कोई बुरी बात नहीं ककं तु अपनी ससं ्कृ नत

की मूल चेतना को बचाए रखना महत्िपूणा है गांधी जी ने इस बात पर बल िेते हुए आ्िान
ककया था

हमंे अन्य ससं ्कृ नतयों से अच्छे प्रभाि ग्रहण करने के शलए अपने खखड़की िरिाजे खुले रखने
चादहए अथाता हमें खुले मन से अन्य संस्कृ नतयों से अच्छी बातंे सीखनी चादहए पर अपनी
ससं ्कृ नत की जड़ पर बनु नयाि पर कायम रहे

भगृ ुपति कु मार तिवारी
प्र० सना० सश० (ह दं ी)

ENGLISH

I AM A FLOWER , NOT A THORN,
DON’T KILL ME BEFORE I AM BORN

WHAT HARM DID I DO TO YOU?
I HAVE THE RIGHT TO LIVE TOO

I AM A CHILD, NOT A BRIDE,
DON’T SEND ME AWAY I AM AFRAID

WHY DO YOU LIKE TO HAVE A SON, NOT A DAUGHTER,
WHEREAS I CAN, FILL YOUR LIFE WITH JOY AND LAUGHTER.

I AM AN ANGEL OF THE UNFORGETTEN GRACE
AS YOU DEPEND ON CASTE AND RACE.

I AM GIRL, JUST LIKE A PEARL.
AND WANT AWARENESS TO UNFURL
WHY DON’T YOU JOIN HANDS TO SAVE ME
I AM NOT WANTING YOU TO FLEE

I CAN BE A SISTER, DAUGTER AND MAYBE A WONDER
BUT NEVER A BLUNDER.

TO GOD I CAN BE A SEEKER OR A PREACHER
BUT TO YOU I CAN BE DOCTOR OR A TEACHER.

COME ON, SAVE GIRL CHILD KAVYA PATHAK
ONLY BECAUSE SHE IS MILD
WHO CAUSE YOU NO HARM
AND ALWAYS KEEP YOUR HEART WARM.

COMPUTER

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BCR - Bar code reader

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MICR - Magnetic Ink character Recognization

COMPUTER – Common Oriented Machine Particular Use for
Technology Education Research

SPORTS DAY



CLEANLINESS

Cleanliness is next to goodliness
Leads next to fulfillness.

Wash your hands with soap and water,
Keep them neat and clean.

Clip your nails every week.
To keep the germs away

Throw the rubbish in the bins,
To keep the mosquitoes & flies at bay.

Keep all your food covered
So that no disease can occur

Mosquitoes should not be let to breed
In the water standing still

Also by using mosquitoes nets
People can fever all ill

Keep your surrounding neat & clean
Plant more and more tree.

Make ‘NO PLASTICS’ your slogan
And our mother earth will be free.

MANSI PATEL
VII ‘A’

TRY, TRY AGAIN

It's a lesson you should heed,
Try, try again.

If at first you don't succeed,
Try, try again.

Then your courage should appear,
For if you will persevere,
You will conquer, never fear,
Try, try again.

Once or twice, though you should fail,
Try, try again.

If you would at last prevail,
Try, try again.

If we strive, 'tis no disgrace,
Though we do not win the race;
What should you do in that case?
Try, try again.

If you find your task is hard,
Try, try again.

Time will bring you your reward,
Try, try again.

All that other folk can do,
Why, with patience, should not you?
Only keep this rule in view,
Try, Try again.

MANALI TOMAR
CLASS : 7 A

SIMPLE TRUTHS ARE MORE POWERFUL TO
EMPIRES

Keep your thoughts positive
Because your throughts becomes your words

Keep your words positive
Because your words became your behavior

Keep your behavior positive
Because your behaviour becomes your habits

Keep your habits positive
Because your habits became your values

Keep your values positive because your values becomes your destiny.

VIKASH TRIPATHI
VII A

VERY INTERESTING FACTS

1. A cat has 32 muscles in each ear.
2. Elephant are the only animals that cannot jump.
3. Cat’s urine glows under a black light.
4. Bats always turn left when exiting a cave.
5. Almonds are a member of the peach family.
6. Non – dairy creamer is flammable.
7. Giraffe have no vocal cords.
8. A pregnant gold fish is called a twit.
9. A sneeze travels out your mouth over 100 m.p.h.
10.A dragon fly has a lifespan of 24 hours.

ADARSH KU.AGNIHOTRI
VII ‘C’

IMPORTANCE OF MATHEMATICS IN OUR
LIFE

Mathematics is one of the most important subjects of our life. No matter
to which field or profession you belong to, its use is everywhere. That is
why it is necessary to have a good understand of the subject. Though the
basics of mathematics start from school but its usage continues till we
become adults and thus it can be said that math has become an integral
part. Imagining our lives without it is like a ship without a sail.

You might be surprised to know that we use mathematics every day even
without knowing it. From dialing numbers on phone to giving money for
making the payments, our world is surrounded by mathematics.

THE FULL FORM OF MATHEMATICS

M: Miracle of Nature

A: Art of Arithmetic

T: Tools of Knowledge

H: Habit of Problem Solving

E: Evaluation of Civilization

M: Magic of Numbers

A: Application of Rules

T: Tools of Knowledge

I: Ideas of Intellects

C: Creativity of Algebra

S: Since of learning

MOHIT PANDEY
VII C


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