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A book of maithili poem by amarnath jha amar

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Published by Ashwini Kumar Tiwari, 2018-12-11 13:10:20

थिर कएने मोन

A book of maithili poem by amarnath jha amar

िथर कएने मोन

( मैिथली किवता सं ह )

अमरनाथ झा ‘ अमर ’



िथर कएने मोन

( मिै थली किवता सं ह )



िथर कएने मोन

( मिै थली किवता सं ह )

लेखक

अमरनाथ झा ‘ अमर ‘

ISBN:

िथर कएने मोन

( मिै थली किवता सं ह )

कापीराईट : © अमरनाथ झा

पिहल सं करण :

मू य : _______ /- टाका मा ( INR )

काशक :

मु क :

आवरण : अि नी कु मार ितवारी

THIR KAINE MON
(A Collection of Mathili Poems by Amarnath Jha)

First Addition :

Price : ₹ ______ /- ( Only ) ( INR )

जयित जयित जगत जनिन ; कृ ण रंिजनी ।
कनक वरण सकल अगं
चीर लिसत नील रंग

चं वदिन , मदं हसँ िन ; मदं मं दनी ।
को कला समान बिै न
याम िबनु नािह चनै

िन य रास रसिन , बसिन नाग भिं जनी ।
"तजे नाथ" शरण आय
चरणकमल िचत लगाय

हे मातु एक पलक ; पाप भंिजनी ।

समपण

िपतामह
व० पि डत तजे नाथ झा

के सादर चरण म

काशक के दस सँ ------

अ पन गप .....

माँ शारदके अनकु पा आ मातभृ ाषा सँ जे कछु िलखा
सकल से अपनेक सम अिछ !

अमरनाथ झा
सेवािनवृत उप लखे ािनयं क
िव (अकं े ण)िवभाग िबहार

ितिथ :

थान : महरैल, झंझारपरु ,
मधबु नी ( िबहार )

...... दू श द !

‘िथर कयने मोन’ आदरणीय अमरनाथ झा ‘अमर’ के दोसर
का संकलन अिछ । अिह सँ पूव िहनक थम का सकं लन
‘अकानल डेग’ 2016 मे कािशत भेल । जतय अकानल डेग छोड़तै
अिछ िथर कएने मोन ओकर आगाँ के या ा पर ल जाइत अिछ ।

अिह का संकलन मे किव अपना के संयत आ संतिु लत
करबाक सहज यास करै छिथ त मोन के िथर करबाक वगत
उ ोष करैत छिथ । वष 2016 के 15 मई सँ 31 दस बर तक के
सािहि यक या ाक ठावँ सब एकि त भय इ का सून फु लायल
अिछ ।

अपन कताब अकानल डगे के छपबा कालक मनोभाव ,
आ थक िै क अतं द िव ास अिव ास मे किव सेहो उबडुब
करैत रहला सेहो भाव का मे य त पस र क का क शोभा मे
एकटा नव िवतान पसारय छै । अिह वषकिव राजिनितक ,
सामािजक , िै क आ मोनक तर पर जेना जने ाझमाइत रहला
से सबटा किवता म आलो कत भ उठल अिछ ! अपन मोन के बरे
बरे ि थर करैत छिथ आ अपना के बुझबैत चलैत छिथ जे हे किव !
िथर कएने मोन !

‘वसँ रु ी टेरै तं ’ सँ ल’ क’ वीणावादनीक अराधना ‘िमनती’
आ ‘सभक कामना पूण सफल हो’ तक एकस ठ किवता मे किव
सामािजक , राजिनितक , अ थक , मानिसक दं – अंत द , राग

– िवराग , ंृगार – िवयोग सभक रसा वाद करबै छिथ ।
कहल जाइ छैक जे किवता मा अपन अवतरण काल मे

किव के रहैत अिछ मुदा एक बेर जहन कागज पर आिब गले तहन
ओ ि सँ िनकिस समि के अंग भ’ जाइत अिछ । किव के भाव
एका मकनिह रिह पावै छै से िहनक किवता सँ या ा करैत अनुभूित

होइ छै लागै छै जने ा किव हमरे मोन मे पैिस हमरेभाव क
रहल होिथ .... त किव एक तरहे अपना संग सगं समाज आ पाठक
के सहे ो स बोिधत करैत छिथ ह जे ‘िथर कएने मोन’ !

आदरणीय अमरनाथ झा ‘अमर’ के सदुं र सखु द आ
अनवरत सािहि यक या ाक कामनाक संग ...

णाम !

अि नी कु मार ितवारी
सहायक अिभयतं ा ( यािं क )

एनएचपीसी िलिमटडे
ितिथ : 01/01/2017
थान : च बा ( िहमाचल देश )

.......... भिू मका !



अनु म

1. बसँ रु ी टेरै तं \17
2. अनचते ल धाप \18
3. से छली सीता \19
4. हारल मतीक गबु ार \22
5. योजनाक जोजना \24
6. पत-िबछनी \26
7. पावस-िपयासिल \28
8. गामक कामना \29
9. बबे स नीित \30
10. जिु न हो मोन अधीर \31
11. मित ह र, मछह र \32
12. लािग रहल मघे मदु ा \33
13. तखने परु ल उदशे \34
14. बरिस गले बाद र \35
15. बद रया झीनी रे झीनी \36
16. नाम ननै सखु \37
17 लोक-लाज \38
18 ठामगनु काजर,ठामगनु कारी \39
19 अपन-अपन झडं ा \41
20 ददु शा \43
21 मधु ावणी \44
22 चौमासी भोज \46
23 पं ह अग त अिछ \48
24 गित \51
25 नमन करी नकर जयबोल \52
26 सोझ बाट, सोझ बात \54
27 था हथु हाथ काश \55
28 कृ ण सौ ँ \56
29 जनमल कृ ण क हयै ा \57
30 बाधक टटका हाल \58

31 तीन गोट िणका \59
32 अिं तम उपाए \61
33 हाइकू \63
34 बटमा र \64
35 कनछल िपयास \65
36 गगं े ! हएत अहकँ उ ार \66
37 िथर के ने मोन \67
38 इत ततः \68
39 गगं !े िमय सकल अघ मोरे \69
40 पाइ \70
41 िसहा गले यो \71
42 मठोमाठ \72
43 िछटक \74
44 व0 काशीकातं िम "मधपु " क मरण करैत \75
45 मातृ नमन \76
46 अवलबं हमर \77
47 व ,सकं प,कम आ भोग \78
48 ध व त र आ धनतरे स \80
49 काितक पव सम \81
50 पखबे \82
51 ात-ृ िच पजू न \83
52 चता आ चतन \84
53 ार ध \85
54 य ो री \87
55 ज कक महंु पर चनू \88
56 तखने किव किवता लीखएै \89
57 नमन अमर बिलदान \92
58 कराधान आ कारीध'न \93
59 मनभाव ( िणका ) \94
60 िमनती \96
61 सभुक कामना पणू ; सफल हो ! \97

िथर कएने मोन | 17

बसँ रु ी टेरै तं

अपन पीठ अपनसे ँ ठोकए , घिू म-घिू म बजबै अिछ गाल ।
हो कतबो क लोल,आसमद, बिहरा नाचे अपन ह ताल ॥

दरू क ढोल सोहान लगै छै , लागए बािड़क पटुआ तीत ।
घ'र छोिड़ घरु मु रया नाचै , मा सधलै ेल अ पन हीत ॥

काठक हडं ी चढै ने दू बेर , न ह दोहरा के ठ क बास ।
नबका मु ला के मड़ू ै लेल , जमबऽ चाहै छै िव ास ॥

मीन-मेख िनकालै अनकर , सझु इ ने अ पन टेटर ।
थूक चा ट , पिु न , थकू फे कै छै , बिन गले यै े थेथर ॥

पािन डोलै छै पटे क सभहक , त र नै कछु मािन ।
तािन-तािन मु ा उसाहै , लागल छै त े आिन ॥

इं थ के र शासन होइ वा वैशािलक हो गणतं ।
दावानल सम धध क रहल छै , बँसुरी टेरै छै ई त॔ ॥

( 18/05/2016 )

18 | अमरनाथ झा ‘अमर’

अनचते ल धाप

हे ! दौिग चलबह
ठे िस खसबह
कनी पएर मा रए चलह ने
गोड़ जमाके , गोड़ उठाबह ।
थािह लएह पिहने
िहया लएह ठेकान
अजमा लएह दरू ी
तखन दहक धाप ।
फानै सँ पिहने पएर तऽ अड़ा लएह
मदु ा अड़ेबह कोना ?
एइ लए चाही िन सन आधार;
ठोस सहर जमीन
मदु ा त तऽ ठाढ़ छ' दलदिल मे
फानकै यास मे धँिसये ने जाह ।
एतबा तऽ अब से राखह यान
लटकल नै रिह जाह
ि शकं ु मे ; माझँ ठाम ।
आ, ए ना निञ अए जे
हाथो त'रक गले आ पएरो त'रक
छ बे बनैक स ी दबू े बिन जाह
ने घर'क ने घाटक
ने ऐइ पार ने ओइ पार
मझँ धार मे डूिब जाह ।
त ,निञ उठाबह अनचते ल धाप
वरदान छोिड़ भऽ जाह ने अिभशाप ।

( 28/05/2016 )

िथर कएने मोन | 19

से छलीह सीता

भिू म सँ उ प , भिू मजा
िवदहे क गेह , वदै ेही
जनक पु ी , जानक
िमिथलाक धीया, मिै थली
मदु ा, िशव-धनखु वाम हाथ टा र
जे नीपिथ िचनमार ;
से छलीह सीता ।

िसर वजक ण पर,
धनषु भंग लेल
आमिं त , प चँ ल,
दस सह राजाक
िवफल यासक के वदु ;
से छलीह सीता ।

धनखु भगं कएल ीराम
पुरलि ह मनकाम
वरण भेल ,पािण हण भले
अनसु रण,अनगु ामी भेलीह
महल सँ जंगल ध र
जगं ल सँ जहल ध र
पित भािमनी रहलीह ;
से छलीह सीता ।

20 | अमरनाथ झा ‘अमर’

असह वदे न सिह
शरण आ चरण गिह
कथमिप िवचिलत न ह
सहनशीलताक ितमू त बनिल;
से छलीह सीता ।

अपन मान स मान लेल
नारी च रतक उ थान लले
आहत , अपमान सँ
दले ि ह जे अि परी ा ;
से छलीह सीता ।

नारी शि , मातृशि क तीक
िपताक अछैतो, बपटु गर पु क
राजोिचत , वीरोिचत
ब िविध िशि त करौलि ह ;
से छलीह सीता।

आ, पु य के हने वीर !
अ मेधक अ के
पकिड़,बाि ह कएल थीर
जे छोड़ने छला राम
छोड़ा ने सकला ल मण
आबऽ पड़लि ह वयं राम क
ओहो भेला मु ध ,बालकक वीरता पर
ठकमूड़ी लागल ठाढ़
ओइ लव आ कु शक
शि व पा माय छलीह ;
से छलीह सीता ।

राजतं क द भक तीकार मे िथर कएने मोन | 21
पुनपरी ा लले वा य भेिल ( 24/05/2016 )
नारी च र क स मान लले
पिु न धरती मे समा गेलीह ;
से छलीह सीता ।

जिनकर िवयोग, िवछोह मे
राम क आराम न ह
वामांगीक प ाघात
ह रलले क स गणु ह रक ;
से छलीह सीता ।
त नै वदै ेही , ने जानक
आ ने मैिथली
नारी आ मातशृ ि क तीक
जिनकर अ पन नाम छलिन
मान आ स मान छलिन ;
से छलीह सीता ।

22 | अमरनाथ झा ‘अमर’

हारल मतीक गबु ार

अिबयौ अिबयौ यौ सरकार
लागल आहाँ के र दरकार
अहाँ िबनु कोनो नै परकार ;
ऐिह जगु मे ।

अहाँक बाल- ब ा , सार
सभके भेटल बड़का कार
गोली मारइ छइ कपार ;
ऐिह जुग मे ।

अहाकँ े सभटा छै अिधकार
जिहना चला दयौ सरकार
लगा िलय' जहले मे दरबार ;
ऐिह जुग मे ।

बूझू सभधन बाइस पसरे ी
रिखयउ हाथ मे हसँ रे ी
ककर स अलगौते मूड़ी ;
ऐिह जगु मे ।

ऐ मे ले , एइ मे पी
बा ह दोसर के , तोरा क
कं बल ओ ढ के घी ले पी ;
ऐिह जगु मे ।

अपने मुिखया छी सरकारी िथर कएने मोन | 23
सड़लो भु ा रो सँ भारी ( 31/05/2016 )
जनता भोिग रहलै नाचारी ;
ऐिह जगु मे ।

अपने चनू ल िछयै ितिनिध
मूनल मु ी रखने सभ िनिध
के जानछै ै िभत क गितिविध;
ऐिह जुग मे ।

अवसर भेटल ,अरजू पु
िनमहत पु तो -दर- पु त
त रजैत सरसमाज एकमु त ;
ऐिह जगु मे ।

घिु ड़ घरआएब िभनकल माछी
काटत ज खन कु कु रमाछी
लागत पाचँ बरख पर दातँ ी ;
ऐिह जुग मे ।

जाबत् जाित- धम यौपार
हते इ नगदो के र बहार
जीततै एहने बार बार ;
एिह जुग मे ।

24 | अमरनाथ झा ‘अमर’

योजनाक जोजना

अ योजना सफल भले एै
कोठी ग रबक भरल भेलैए
बोड़ाक बोड़े बाईक ला दके
असली ग रब उिघ रहलएै ।

ध ध इनरा आवास
कोठापित, लखपितके बास
खुड़पुजाइ नै जुटै छै जके रा
तके रा अखन ं ख'ढके आस ।

एहेन कतौ अकड़हर भले ैए
बुढ़बा पिसल कहर भेलैए
लचरल ,बढ़ू ,बौक भऽ बसै ल
धिनक, जुआने जबर भले एै ।

बाल िवकासक बात ने पछू ू
क कत ब रसात ने पछू ू

अमलाचमलाक िबलह बाँ ट सँ
कतेक होइ अिभघात ने पूछू ।

जेकरा निञ छइ बो रग, दमकल
डीजल लए, धनकु ी धमकल
लप क लैछ , डीजल अनदु ानो
िगरहत आहत , बसै ल ठमकल ।

ब ा जाइ पबिलक िव ालय िथर कएने मोन | 25
ना िलखा सरकारी आलय ( 08/06/2016 )
बनइ उपि थित , मा परी ा

से , साइ कल , पाबै टा लए ।

योजना सभ योजनभ र दरू
नीित बनल ,नीयत छइ ू र
फसलयोजनाक लाभ उठाबए
खते नै , जके रा ए ो धूर ।

जनते जँ ,अ हराएल रहतइ
वारथमे ओझराएल रहतइ
नीित , योजना सरकारो के र
क ,कोना सोझराएल रहतइ ।

26 | अमरनाथ झा ‘अमर’

पत-िबछनी

ब भेटओ मंगनीएं वा स तौआ अ
मदु ा र ह-ै बटँ ैले सभक चाही
जारिन आ इंधन ।
से सवसलु भ कहाँ छै; गरीब गरीबे छै
ते ँ पतिबछनी सभ
खरड़ा लऽ बौआइ छै
फगुनह ट सँ बसै ाख ध र
कलमे-कलम , गािछय-े गाछी
भोर सँ साझँ ध र अप यातँ
सं ह लए पाितत पात ।
ऊिघ लऽ जाइ गिजयाक गिजया
लगालै टाल, ब रसातक जोगार
आह छाड़िन के हेन दीब ।

मुदा िगरहथ सभ
कऽ रहलैए हरमाद
माघे मे तमा दै कलम-गाछी
कहै , झरै छै पात आ स'रै छै पात
तऽ भऽ जाइछै खाध
गाछ फौदाइ छै

फरै आ फु लाइ छै ।
तामल कलम खरड़तै कोना
ते ँ पतिबछनी, भऽ जाइ बले ला
ग रबक के सनु तै हौ अ ला !

हमरो घरक आगाँ ,बाड़ी मे िथर कएने मोन | 27
रंग-िवरंगक गाछ-िबरीछ ( 13/06/2016 )
आम,कटहर, जामु , इलची
वसंतक समय,परु ना पात झरै
पछबा बसात मे वा िनवात
दौगै पतिबछनीक झंडु
आवाल ,वृ ा, बिनता एक सगं
खरड़ा आ गिजया नने े।

अपन-अपन टेमल ज गह पर
कखनो भऽ जाइ आगा-ँ पाछाँ
भऽ जाइ सीमाक अित मण
भऽ जाइ झगड़ा-झझं ट,उकटा- पची
सबहक दाबी ,सबहक ह
मदु ा ओ जलु हटोलीक बु ढया
नै चलऽ दै ककरो स
कहै हम छी सनातनी, आ

आबै छी अदौ सँ
त अएलेह हमे िन मे ।
हम दखे ै छी, आ सोचै छी
अिगला यु
पािन ले हते ै क जारिन ले
शहरक गप जे हो
दहे ात मे इंधनके सम या ।

28 | अमरनाथ झा ‘अमर’

पावस-िपयासिल

काजर सन कारी अिछ मेघ
बा र जोगओने लटकल घघे ।
याह राितमे एकस र गहे
हे र रहल हम प के र नेह ।

िबजरु ी चम क डेराबए ान
तिड़त् श द सँ फाटए कान ।
ढनढन ढनकए गरजए जोर
भाल र सम कापँ ए तन मोर ।

पड़ए बु तँ खहरए मोन
चनकल िहयके र दरकए कोन ।
दादरु - झगुर करइछ चौल
िबरिहिन बदे नक उड़ए मखौल ।

एखन ँ कं त बसल दरु दसे
हंत भले सिख साजल भसे
भािमिन हे! खोलू ने के बा र
भीिज रहल प ठाढ़ दआु र ।

( 19/06/2016 )

िथर कएने मोन | 29

गामक कामना

गजु र क क , मदु ा घराड़ी बसू ।
नै उजिहया चढू , नै अिपयारी खसू ॥

जिड़ए जँ छोिड़ दबे , छीपक क आस छै ।
छीपू न ह हाथ , आ , नै अ हारी धसँ ू ॥

तकै ए चास – बास , अरजल जे परु खा के ।
बरजू कु ठाम बास , नै खोभारी रसू ॥

उजड़एै गाम आ , बिस रहल शहर छै ।
बसा िलअ' गाम के , नै पछारी हसँ ू ॥

हँिस रहल लोक आ , कािन रहल डीह छै ।
सराय सनक जीवनक , नै करारी फँ सू ॥

मानल जे गामिह रिह , गदु त न ह जीवन हो ।
लिसगर छै शहर , मुदा नै लसारी लसू ॥

( 24/06/2016 )

30 | अमरनाथ झा ‘अमर’

बबे स नीित

जाल फािड़ के भ ड़ा फानत
बालुक बा ह कोनाके मानत
ते ँ छननी स,ँ छानल जाइये
भरु ही माछ , लोक त' जानत ।

रही सगं ,सहमत, एकराय
एक-दोसर पर भेल सहाय
हाथझािड़ के आब ठाढ़ छी
जखन घेघ अिछ भले बलाय ।
कते पैघ पसरल अिछ जाल
बनल ितिल म िश ा संजाल
छै मोस क ल उख न करब
खसबऽ पड़तइ फे र महजाल ।
िश ा भले 'िछ आइ बबे साय
ग रबक सगं होइछै अ याय
ितभा आइ हक कनै छै
कोन तऽ होइ ठोस उपाय ।
नीित अहाँके र अिछ बड़ चस
भे ट रहल अिछ बड़ चाबस
मदु ा घेराएल तने ा ने छी जे
अपन ह संगी पर न ह बस ।

( 27/06/2016 )

िथर कएने मोन | 31

जिु न हो मोन अधीर

ब ा पिहने दै पेटकु िनयाँ
तकर बाद काटै घसु कु िनयाँ
ठाढ़ होइ , पिु न लड़े - लड़े
तखन ह बाट पर डेग बढै ।

जतेक दन पर डेग बढाबए
त र औ दा त के बीस
जनमीत ह ज फानए लागए
अजापु सम कटबए शीश ।
आबने िशशु के र ज म होइ छै
ज म लतै जनमइ छइ आस
डगे थीर न ह , दौगऽ लागइ
जने ा जनमला समरथ ास ।
वेद' ासो तपे बले तँ
अ ादश रचलि ह पूरान
तपने िबनु नै प रखमे आबै
वण शु ता के र पिहचान ।
काचँ -े कोिचल , सुसुम तले मे
छानब कोनिविध ,अगबे फे न
वेद बहए मएदान पैिस कए
तखन ह ल यके भेदतै गने ।
डेगा-डेगी , थािह-थािह कए
पिथक पथं पग धरए , िनधोख
सफल हते इ तपके र कामना
तखने भेटतइ फल भ रपोख ।

( 28/06/2016 )

32 | अमरनाथ झा ‘अमर’

मित ह र, मछह र

छापए टाइप क गाजँ अड़ाब,ै ट का लगबए, जाल खसाबए ।
दऽ मछे र अिपआरी खूनइ ; सहथ उसाहए माछँ फँ साबए ॥

ट आिँ ख बगलु बा यान , बोर छ ट कए , बिै स मचान ।
सािध द म छै बसं ी पथने , जिहना साधल जाय मसान ॥

िहलइ तरेड़ा , ख टी करइ ; छीपए त ण बंसीक छीप ।
वा , िघरनी सँ नाच नचाके , खेला माछँ के लै अिछ खीप ॥

ज चाहए मेहनितयो कम हो , घरे बिै स कए बझा ितआ र ।
हारल मािलक िझटुका बीछए माथ हाथ धए महूँ िचआ र ॥

छेऽक लगाबए धार म यमे , टेकथी ठाढ़ करए , िनवाध ।
ता पर सतं ोख कहाँ छै ! मा र घोिड़ रहल अिछ ाध ॥

कतबो रह साकांच माछ सभ , कोनो चािलमे फँ िसये जाए ।
ढलइ जके ाँ मँहु बाबऽ लागइ , बेर- बेर अवसर के गमाए ॥

सागर सनके देश हमर ई , न ह हो माछँ उख न , दवै !
नेता नीयित ाधा सम छै , म य याय जनतोक सदैव ॥

( 04/07/2016 )

लािग रहल मघे मदु ा -- िथर कएने मोन | 33
( 10/07/2016 )
सिू ख गले पोख र आ िबसुखल छै मेघ ।
प हले ै नै अदरा पनु वसओु नै लािग रहल ॥

घनघोर छिव दखे ाए , लािगके िवलिग जाए ।
वारांगना, िचतबै मन , हाथो नै लािग रहल ॥

िबतलइ अखाढ़ , भेलइ गऽबो निञ ठाढ़ ।
काले अकाल , मघे बरसै नै , भािग रहल ॥

शखं भेल बाध-बोन , बसलै नै चास-बास ।
िगरहथ बसै ल हतास , मोनो नै लािग रहल ॥

ोिषतपितका सन , चैन नै , बेचैन मोन ।
आहत भऽ आस मे , िन नै , जािग रहल ॥

कतऽ गेला जोितखी , आ मौसम िव ानी ।
अ ानी खेितहर सभ , भाँजो नै पािब रहल ॥

34 | अमरनाथ झा ‘अमर’

तखने परु ल उदशे

िवकल परान , वसतं सतौलक , ऊखम मन झरकौलक ।

सभ वदे न तँ सिह लेलक पर पावस न ह सिह पौलक
आब बचँ त न ह ाण , िपया मोर , आउ छोिड़ परदसे
िपया हे! घु रआउ अ पन देस ।

मोनक टैलीपैथी सनु ल ँ , िबनु रजबसे न दौगले अएल ँ
मनक तार संग प ँिच गले छी , कएल जाउ आदेश
धनी हे! अएल ँ अ पन देश ।

आह ट सिु न कािमिन ह ट बिै सली , झािँ प घोघतर चान नकु एली
कािमिन सँ मािनिन भऽ बैसिल , दािमिन सन ध र भषे
अरे बा! आब कोन कलशे ।

मान-मनौअिल , मनबिथ चान , मना-मना के छू टल घाम
जखन माथ पर अएलइ् चान , तखने परु ल उदशे
आबक ? बाचँ ल कछु ओ शषे ।

( 15/07/2016 )

िथर कएने मोन | 35

बरिस गले बाद र

मान-मनौअिल ब त भले ापर
मानिल बाद र आइ ।

यासल वसधु ा तृ , धरापर
पुनवसू ब रसाय ॥

कामिह िगरहथ ह तके भटल काज,
भले छल लोप ।

कािच-कू िच कए , हर-कोदा र लए
रोपऽ चललै रोप ॥

न ह पिनअएलै खेत, मदु ा मनमे
तँ जगलइ आस ।

आगओु क पािब भरोस वा रके ,
बसबऽ चललै चास ॥

ध वाद तोरा हे बाद र पु ख
ने रिखहह ख ।

भेटतै सान कसान धान के
पािब जते ै सब सु ख ॥

मदु ा हे बाद र ,चेता दै िछअह
मािनह' एकटा बात ।

भने बरिस जा अ रयानंघन,
बा ढ के रिखह'कात ॥

एइ िमिथला के र भाग मे आबइ
बा ढ , सगं भऽ वा र ।

रौदी-दहती एकसगं होइ ,
दहबै फू टल-उपजल सा र ॥

(सा र=धान)

( 18/07/2016 )

36 | अमरनाथ झा ‘अमर’

बद रया झीनी रे झीनी

बद रया झीनी रे झीनी
आराम ताप सँ क ही । बद रया झीनी रे झीनी ।

पावस थमे बु पड़ल जै ँ
सुरिभत माँ ट सुवास भरल तै ँ
बदंू क धार ओहार लगाबै
मन क शीतल क ही ।बद रया झीनी रे झीनी ।

तरिस रहल छल मन भेल बके ल
दरिस ने आबए धरती तबधल
जल िबनु मोन अनोन लगै छल
जनु शरबत िबनु चीनी ।बद रया झीनी रे झीनी ।

आिब गेलै सभ चता मेटल
हाल-बहे ाल के हाल भेटल
हएत अबाद बाध भले ह खत
िगरहथ टुटलै नीनी ।बद रया झीनी रे झीनी ।

छोिड़ घर - ार िनकसलै बाध
एकलगना भले कोनाके साध
करए नेहोरा जन-मजरू कए
मजदरु नी ा-पीनी ।बद रया झीनी रे झीनी ।

खते ीक लले तकइ आकास
कोनो धरािनय बसबै चास
िगरहथ हाथ नफा मे चाहए
नार-पआु र ने क नी । बद रया झीनी रे झीनी ।

( 20/07/2016 )

नाम ननै सखु िथर कएने मोन | 37
( 23/07/2016 )
स रसऽ नाम िगरीश जँ राखब
आकृ ित हते इ पहाड़ ?
हीनभावना त रहत ओ
भने चढ़िबयौ ताड़ ।

नाम ऊँ च कए रखला स ताँ
मान ऊँ च क होइ !
िनज गणु -धम- वभाव-भाव तँ
वा िनकासे होइ ।

सनु ने रिहयै वा यकाल मे
बक रखै छै पाइ
आब सनु ै छी कदन, जे राखै
मत ,बमे , जोगाइ ।

भारत सनक िवशाल वृ मे
दऽ रहलएै चाछँ
खोध र सँ धोध र बिन गले ै
लोकतं के र गाछ ।

आँिखक आ हर नाम ननै सखु
के दखे ओतइ बाट
नेतिह जँ अिनयिं त रहतै
चलतै बाट, कु बाट ।

38 | अमरनाथ झा ‘अमर’

लोक-लाज

भोगए ौप द-राज स'भ िमिल
मदु ा ने ककरो चा र
के सु शासन, के दु शासन
सब रहलैए उघा र ।

ौप द चीर गमौिल ठाढ़ अिछ
न ह बिँ च पओतइ धम
कृ ण बनल छिथ तमशगीर,
आ जािन रहल नै मम ।

भोटतं के र दाओ चढ़ल अिछ
लोकतं के र मान
चीर हरण स माझँ चौक पर
आफद मे छै जान ।

लोकतं नागं ट भऽ बसै ल
नंगटा लूटय लाज
के उठौत गोव न पवत
के सब अओतइ काज ?

( 25/07/2016 )

िथर कएने मोन | 39

ठामगनु काजर,ठामगनु कारी

क यू लगबाक पूब सचू ना पर
जेना लोक जोहयै ,े जोगबएै
खगताक सामान
जोगाड़एै खान-पान
तिहना होइए हमर इंतजाम
एक बोतल पािन
आ, पानक सभ सरमजाम ।

तीन बरखक पोती सँ
ओकर दादी ध र
सबहक च सक समान
स'भ एकि त,एक िच
टी वी ल'ग , एके ठाम ।

आ, हम िनतांत एकातं
बैिस नीरवता मे
भोगै छी क यूक दशं
आध घटं ा लले
समय गमाबी, लगैए फ का
स'भ म देखैए "काला टीका" ।

कछु नै फु राइए तै ँ सोचै छी
नज र गुज र नै लागए
तै ँ ने लगबै कारी ठोप कपार पर
आ, आँिख मे कऽ दै काजर
मदु ा आब तँ देखाइछै का रये कारी
लेभरा गेलएै

40 | अमरनाथ झा ‘अमर’

ि ,समाज,राज आ देशक भालपर ।
कछु लोक तँ लेभरा लै छै
वयं बिू झ-जािन
जािह सँ नै हो ची ह-मािन ।

तै ँ आइ ई टीका भऽ गले एै
पस र के िचतकाबर
ठामगनु काजर; ठामगुन कारी
स े लगै छै अजगुत बड़ भारी ।

( 28/07/2016 )

िथर कएने मोन | 41

अपन-अपन झडं ा

वा याव था म,े मनबै लए
पं ह अग त; वतं ता दवस पर

भात फे री आ झडं ो ोलन लेल
बनाओल जाइ कागतक झडं ा ।

सादा कागत पर
अड़ लक फू ल घिँ स आ ह रअर रंग सँ
बनाओल जाइ ितरंगा ।

बाँसक बीट सँ काटल जाइ,
नमहर िछपगर जआु एल हरौथक करची
बनै छलै वजदंड
गोन सँ सा ट ओकर टुरनी पर
फहरै छलै ितरंगा ।

वतं ता दवसक उ साह मे
स'भ रहै छल उ लिसत ;एक मना
ल य रहै छलै एके
मु भारतभालक अ यथना ।

मदु ा घड़ु ती काल,कखनो काल
भऽ जाइ रार,तकरार,अरािड़
हमर झडं ा ऊँ च तऽ हमर झंडा ऊँ च
उकटा पची मे पिहने गा र,फे र मा र
वजदंडे सँ दडं ,वएह बनै हिथयार
आ , ओही सँ दै तता र ।

42 | अमरनाथ झा ‘अमर’

स'भ उ साह,उ लास आ उमंग
भऽ जाइ छन मे भगं ,जनु पािनक तरंग ।

कछु एहने सन तँ नै भऽ रहलएै
एक ल य लए चलैत अनेक झडं ा मे
झंडाबरदारक टंगिघ ा वृित
उखािड़ तँ नै रहलैए झंडा के ।

िवपरीत वा िविभ दशामे लागल बल
किहयो हते ै ल य ाि मे सफल
क चाहै छै लोक, क हबे ाक चाही ?
क ापसारी वा क ािभसारी बल ?

ददु शा िथर कएने मोन | 43
( 03/08/2016 )
ा य िवकासक हाल ई दखे ू
बाट भरल छै थाल ई दखे ू
स से गाम सड़क बिन गेलै
मुदा एक रंगताल ई देखू ।

कानतूरलए बसै ल ितिनिध
अंगुरी धऽ मुननेअिछ कान
बेर-बेगरता, आतुरता मे
बाट ब ,जा रहलै जान ।

ई नै बझु बै बोका ितिनिध
छै सभटा चड़फिड़या
माल बनाबऽ मे छै मािहर
दएने रिह धड़फिड़या ।

दसू ए फट के र दरू ीक कारण
बाट भले छै ब
मास दवस सँ कौह र काटए
कानए नोर हक ।

44 | अमरनाथ झा ‘अमर’

मधु ावणी

प सजाय बसन अनकु ू ल
जाइ डाल लए तोड़ए फू ल ।

जोिहजािह कए जाहीजहू ी
संग बिहनपा पात लोढी ।

मनउपवनमे बस बनमाली
घड़ू ी सदन सजाकए डाली ।

पुजल प मी कए त नमे ा
कथा सनु ल बिस नहै र ठे मा ।

कए उपभोग सासरु ेक अ
अरबे चाउर आर सभ ब ।

मौना,िब ला, मनसा- था
िबसह र,मंगला-गौ रक कथा ।

मथन समु क , पृ वीज म
गगं ा , गौ र , सती के र मम ।

मोह भगं मएना के र ान
काितकगणपित ज मा यान ।

चनै , बै रसी , बाल बसंत
हो गोसौन कथा सँ अतं ।

होइ समापन वाचन बीनी िथर कएने मोन | 45
हासपूण फकरा सम चीनी । ( 04/08/2016 )

मिथके गणपित बाटँ िथसोहाग
अचल रहय अिहवातक भाग ।

एखन ँ छै एइ पवक निे म
आब तीके दागब टेिम ।

दवस चतदु श उरिमल आस
लागए बरख राम बनवास ।

पावस लाएल सखु द वसंत
जखन पधारल ह मर कं त ।

पािब पितक सगं पूजन पून
मधु ािविण भले ै "हिनमून" ।

कहिथअमर िशवके ँ गोहराय
गौरी- शकं र रहिथ सहाय ।

46 | अमरनाथ झा ‘अमर’

चौमासी भोज

आइ बड़ हलचल छै
ओकर आगं न आ दलान
जे ायशः रहै छलै
स दखन सु े मसान ।

तरहाड़ा खनू ल गले एै
खखनहर सभ आिब गेलैए
रा हल जएतै भात
अरबा चाउर महमह करैए ।

बड़का बड़का टोकना
राखल छै दािल लए
महग छै तै सँ क
हेतै राहिड़एक, गढ़गर कए ।

चढ़तै अठकिड़या कराह
टलो भ र क ामाल

चा रहाथक छोलनी, वा
बासँ क फ ा चलौतै िनधोख
बड़का बड़का ड बुक लऽ
परसल जेतै भ रपोख ।

हेतै ब िनघेस तऽ होउ
हते ै साग स ा भिु जया ब'ड़ी-झोरी
के पछु ैए भाटँ ा-अदौरी
दही, मधरू , बिु नयाँ आ
नकमािन सकरौरी ।

नोतल जएतै भ र सौजिनयाँ िथर कएने मोन | 47
मु तैक छै स'र समाज आ बिनयाँ । ( 09/08/2016 )

आ क पछू ल इंधन ?
तै लले छै ने बाँचल धन
मौज,े कोतर, िजरात ने कात भेलै
चा र क ा चौमास तऽ राखल खास छै
हतै ै वाहा, होउ मुदा नाकक सबाल छै
आिखर ओजे क भोज होइ ?
जयजयकार क रोज होइ ?

48 | अमरनाथ झा ‘अमर’

पं ह अग त अिछ

मोन आइ हमरो हठात भले म त अिछ
पं ह अग त अिछ पं ह अग त अिछ ।

तयै ारी भऽ रहलैए आयोजन बड़ भारी
मदु ा, कनके ए पर चतन होइ भयै ारी
क ेक महग आ क क े ई स त अिछ
पं ह अग त अिछ, पं अग त अिछ ।

साओन मे आएल ई डूिब रहल आस छै
चासक तऽ कथे कोन बचँ लो नै बास छै
बा ढ आिब दहा गले ै हालितजे प त अिछ
पं ह अग त अिछ, पं ह अग त अिछ ।

वरा य ाि पूव छलै सभे यो भारतीय
धम-जाित बाँ ट गेलै ि थित भेलै नारक य
अपन पटे कु रयाबै ,सुतारै सभ ह त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

िजनगी जे होम के लक वरा यक ाि लेल
धम जाित आिखर मे ओहो बाँ ट दले गले
दखे ा रहल बाट ओ , जे धएने कु र त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

मा र काट मचल आइ भोटक यौपारी मे
अ -पृ , दिलत, अ पसं यक जोगारी मे
महग भेल पािन आ शोिणत भेल स त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

िथर कएने मोन | 49

वग सनक दशे के र म तक जे वग छल
कु च राजनीित पिड़ हालित जनु नक भल
कागत-कलम छोिड़ िशशुक हाथ अ अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

संिवधान के र महलक चा खाम हीलै छै
अपन अपन गाड़ छोिड़ लक दै ढीले छै
सोशलो िमिडया भले लागै अ य त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

घटनाक िनरी ण मे जाित धम ठाढ़ छै
ब न ह, आिँ ख ता क , यायक बटमार छै
मूहँ -कान दिे ख-दिे ख लािग रहल ग त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

अजादीक मतलब मे आओर बात गौण भले
अिधकारे टा बझु ै लोक करतब बरे मौन भेल
लोकक अकरतब सँ शासनो तँ त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

भरल चौक- चौराहा ौपदीक चीर हरण
शीलभंग,बला कार,अपहरण चरण चरण
हाल सरू ित दिे ख सिू न मोनो उद त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

महगी आ जनसं या दनू ू बले गाम छै
बरे ोजगारी बढ़ल जाइ तगं ो जुआन छै
रंगताल दिे ख हमर दशे अ त त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

50 | अमरनाथ झा ‘अमर’

लोकक मुहँ धान पड़ए फू ट होइ लाबा
सदं भ जे जने ा हो, कहने रहिथ "बाबा"
क र जनबरी आ क र अग त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

लाल कला ािचर सँ लागए भाषण परु ान
सिू न सूिन आिजज मन, पा क गले छै कान
घोषणा तँ ढरे मदु ा उदय पवू अ त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

तयै ो गलु ामी सँ ,नीक जीबन जीबै छी
फा ट जाउ करम अपन सइू ताग सीबै छी
सभकु संग उ लासेमे हमरो दन गदु त अिछ
पं ह अग त अिछ , पं ह अग त अिछ ।

वदं े मातरम् ,भारत माताक जय !!

( 11/08/2016 )


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