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Published by shalini993tiwari, 2020-01-30 02:58:34

school magazine

िाता पपता


माँ की ममर्ा सबस प्यारी,


सार िग में सबस न्द्यारी,

सबक ददल को भाने िाली,


प्यार का मोल शसखान िाली.



वपर्ा का प्यार भी ह अनोखा,


सार िीिन को उमंगों स भरर्ा,
हाि पकड़कर चलना शसखाए,

िीिन की नयी राह ददखायें.




मार् वपर्ा की सिा करना,
प्यार नम्रर्ा में ही चलना,

सदाचार अपनार्े रहना,

िीिन खुशियों स र्ुम भरना.

द्िारा - दि सदठया


कक्षा— ६ ब

डाल दहलाकर आम बुलार्ा आम लगेंग इसीशलए यह


र्ब कोयल आर्ी ह। गार्ी मंगल गाना,


नहीं चादहए इसको र्बला, आम शमलग सबको,

ें
नहीं चादहए हारमोननयम, इसको


नछप-नछपकर पत्तों में यह र्ो नहीं एक भी खाना।


गीर् नया गार्ी ह!

सबक सुख क शलए बेचारी



गचक्-गचक् मर् करना र ननतकी, उड़-उड़कर आर्ी ह,


भौंक न रोिी रानी, आम बुलार्ा ह, र्ब कोयल


गार्ा एक, सुना करर्े हैं काम छोड़ आर्ी ह।



आख ं का प्रकाि



विद्वान ों की सभा में एक प्रश्न चला की सबस अच्छा प्रकाश वकसका है ? वकसी ने सरज कहा,
ाँ



वकसी ने चाद और वकसी ने वसतार ों का नाम वलया वकन्त एक अनभिी मनष्य ने कहा की
ाँ


सबस अच्छा प्रकाश अपनी आख ों का है । उसक वबना बहार का क ई प्रकाश उपय गी नहीों
ह सकता।




ाँ
ों


वजस मनष्य क े पास स्वय की आख और वििक है, िह सत्य का दशन कर सकता ह। दसर

क े प्रकाश और अनभि क े आधार पर चलन िाला आख ह न पर भी नत्रहीन ह।





ाँ
-विकम िमा ११र्ी विज्ञान


िाता पपता बहटयााँ

बेदटयाँ परायी नही ये दो पररिारों का प्यार ह,

माँ की ममर्ा सबसे प्यारी,
बेदटयाँ बोझ नही ये उस स्िगष का द्वार ह,

सार िग में सबस न्द्यारी, स्िस हम मिबूर समझर्े ह हर िक़्र्,







सबक ददल को भाने िाली, िो बटी मिबूरी नही धारधार र्लिार ह,
प्यार का मोल शसखाने िाली.

बेदटयां माँ की िान होर्ी ह,

बेटीयाँ वपर्ा का सममान होर्ी ह,


वपर्ा का प्यार भी ह अनोखा,
िो िानर्ी हो हर दुख को भी सुख में बदलना,

सार िीिन को उमंगों से भरर्ा,
बेटीयाँ उस माँ का िरदान होर्ी ह,

हाि पकड़कर चलना शसखाए,

िीिन की नयी राह ददखायें. बेटीयाँ सच की प्रमाि होर्ी ह,

बेदटयाँ घर का अशभमान होर्ी ह,
इनकी इज्िर् करना सीखो तयोंकक,
मार् वपर्ा की सेिा करना,


य शसफ लड़की नही उस दिी समान होर्ी

प्यार नम्रर्ा में ही चलना,

सदाचार अपनार्े रहना, - श्रुतत ििाव

िीिन खुशियों स र्ुम भरना.
११र्ी पर्ज्ञान


द्र्ारा दर् सहठया (६ ब)

सुदररयो िी खोलकर

सुदररयो-यो-यो

हँसकर मर् मोनर्यों
हो-हो

की िर्ाष करना
अपनी-अपनी छानर्यों पर



दुद्धी फ ू ल क झुक डाल लो ! काम-पीडड़र् इस भल आदमी


को
नाच रोको नहीं।

विर्-भरी हँसी स िलाओ।

बाहर स आए हए


यों, आदमी यह अच्छा है
इस परदिी का िी साफ नहीं।

नाच दखना

आँखें न डालना।

सीखना चाहर्ा ह।

यह ‘पचाई’ नहीं
***Himanshu sopra***
बोर्ल का दाऱू पीर्ा ह।


िैं सुिन हाँ "िुक्तत की आकांक्षा"



व्योम क नीचे खुला आिास मेरा; गचडड़या को लाख समझाओ


ग्रीष्म, िर्ाष, िीर् का अभ्यास मेरा; कक वपंिड़े क बाहर



झेलर्ा हँ मार माऱूर् की ननरर्र, धरर्ी बहर् बड़ी ह, ननमषम ह,







खलर्ा यों स्िदगी का खल हसकर। िहॉ ं हिा में उन्द् हें


िूल का ददन रार् मरा साि कक ं र्ु प्रसन्द्न मन हँ ू अपने स्िस् म की गध र्क नहीं शमलेगी।

मैं सुमन हँ…




यूँ र्ो बाहर समुर ह, नदी ह, झरना ह,


र्ोड़न को स्िस ककसी का हाि बढ़र्ा, पर पानी क शलए भटकना ह,

यहॉ ं कटोरी में भरा िल गटकना ह।

मैं विहस उसक गल का हार बनर्ा;




राह पर त्रबछना कक चढ़ना दिर्ा पर,

बाहर दाने का टोटा ह,

बार् हैं मर शलए दोनों बराबर।


यहॉ ं चुग् गा मोटा ह।


मैं लुटान को हृदय में भर स्नदहल सुरशभ-कन हँ ू


बाहर बहशलए का डर ह,


मैं सुमन हँ…

यहॉ ं ननद्िद्ि कठ-स् िर ह।







ऱूप का श्ृंगार यदद मैंन ककया ह,

कफर भी गचडड़या

साि िि का भी हमेिा ही ददया ह;
मुस्तर् का गाना गाएगी,
णखल उठा हँ यदद सुनहर प्रार् में मैं,


मार िाने की आिंका से भर होने पर भी,


मुस्कराया हँ अधरी रार् में मैं।






वपंिर में स्िर्ना अग ननकल सकगा,
मानर्ा सौन्द्दयष को- िीिन-कला का सर्ुलन हँ ू

ननकालेगी,
मैं सुमन हँ…

हरसूँ ज़ोर लगाएगी



और वपंिड़ा ट ू ट िान या खुल िान पर उड़
द्र्ारा : हपषवता तेलकार( ११ ब)
िाएगी।

पीयूषा बुगद ११र्ी


तनबंध


'द दी हिें आजादी, बबना खड् ग बबना ााल




साबरिती क संत तून कर हदया किाल '




प्रस्र्ािना- हमारा दि महान स्स्त्यों और पुरुर्ों का दि ह







स्िन्द्होंन दि क शलए ऐस आदिष कायष ककए हैं स्िन्द्हें भारर्िासी सदा याद रखेंग। कई

महापुरुर्ों न हमारी आिादी की लड़ाई में अपना र्न-मन-धन पररिार सब क ु छ अपषि


कर ददया। ऐस ही महापुरुर्ों में से एक ि महात्मा गांधी। महात्मा गांधी युग पुरुर् िे
स्िनक प्रनर् पूरा विश्व आदर की भािना रखर्ा िा।


ब चपन एिं शिक्षा- इस महापुरुर् का िन्द्म 2 अतट ू बर सन् 1869 को गुिरार् में


पोरबदर नामक स्िान पर हआ िा। आपका पूरा नाम मोहनदास िा। आपक वपर्ा


कमषचद गांधी रािकोट क दीिान ि। मार्ा पुर्लीबाई धाशमषक स्िभाि िाली अत्यंर्


सरल मदहला िी। मोहनदास क व्यडक्तत्ि पर मार्ा क चररि की छाप स्पष्ट ददखाई दी।









प्रारशभक शिक्षा पोरबदर में पूिष करन क पश्चार् रािकोट स मदिक परीक्षा उत्तीिष कर



आप िकालर् करने इग्लैंड चल गए। िकालर् करक लौटन पर िकालर् प्रारभ की। एक



मुकदम क दौरान आपको दक्षक्षि अफ्रीका िाना पड़ा। िहां भारर्ीयों की दुदिा दख बड़े



दुखी हए।


उनमें राष्ट्ीय भािना िागी और ि भारर्िाशसयों की सिा में िुट गए। अंग्रिों की



क ु दटल नीनर् र्िा अमानिीय व्यिहार के विरुद्ध गांधीिी ने सत्याग्रह आंदोलन आरंभ



ककए। असहयोग आदोलन एि सविनय अिज्ञा आदोलन का नर्ृत्ि ककया।



शसद्धांर्- गांधीिी न अंग्रिों स विरोध को प्रकट करन क शलए सत्याग्रह को अपना प्रमुख







अस्त् बनाया। सत्य, अदहंसाऱूपी अस्त्ों क सामन अंग्रिों की क ु दटल नीनर् र्िा अमानिीय

व्यिहार क विरुद्ध गांधीिी न सत्याग्रह आंदोलन आरभ ककए। असहयोग आंदोलन एिं





सविनय अिज्ञा आदोलन का नर्ृत्ि ककया। गांधीिी क उच्चादिों एि सत्य क सममुख


उन्द्हें झुकना पड़ा और ि हमारा देि छोड़ चले गए।

- अक्षत फरतया
११र्ी पर्ज्ञान

"िरा अपनाप" यहााँ सब क ु छ बबकता ह



दोस्र्ों रहना िरा समभल क ।।
रार्ों ददन बरसों र्क





बचन िाल हिा भी बच दर्े हैं,
मैंन उस भटकाया



गुब्बारो म डाल क।।

लौटा िह बार-बार

सच त्रबकर्ा ह, झुठ त्रबकर्ा ह,

पार करक महराबें


त्रबकर्ी ह हर कहानी।।

समय की
र्ीन लोक म फला ह,



मगर खाली हाि कफर भी त्रबकर्ा ह बोर्ल म


तयोंकक मैं उस े पानी।।

ककसी लालच में दौड़ार्ा िा कभी फ ू लों की र्रह मर् िीना।।
दौड़र्ा िा िह मर इिार पर




स्िस ददन णखलोग... ट ू ट कर
और िैसा का र्ैसा नहीं
त्रबखर िाओग।।

िका और मांदा स्िन ह र्ो पत्िर की र्रह

लौट आर्ा िा यह कहन े स्ियो,

स्िस ददन र्रािे गए... "खुदा"
कक रहन दो मुझ े


बन िाओग।
अपन पास


मैं हरा रहगा द्वारा- दीपंिु पाटीदार ११



िैस र्ुमहार पाँिों क नीचे की घास



मैंन दख शलया ह



र्ुमस दूर कहीं क ु छ ह ही नहीं


हम दोनों शमलकर


पा सक ें ग उस यहीं



िो क ु छ पान लायक ह।


- सुक्ष्िता िकर्ाना

हॉकी क िादगर – ध्यानचंद






29 अगस्र् 1905 क ददन भारर् क गौरि, हॉकी क


िादूगर कह िान िाल मिर ध्यानचंद का िन्द्म हआ




िा| इलहबाद में मिर ध्यानचंद को रार् में चाद


ननकलने पर प्रस्तटस करना पसंद िी और इसशलए

उनक दोस्र् उन्द्ह चंद कहन लग| 16 िर्ष की उम्र में




उन्द्होंने आमी ज्िाइन की| आमी ने ध्यानचंद को



यूनाइटड प्रोविन्द्स नाम की टीम में खलन की इिािर् दी| एमसटडषम में हए


ओलवपक में 1928 में हॉकी का पहला गोल्ड भारर् न िीर्ा और ध्यानचंद






ओलवपक में सबस ज्यादा गोल करन िाल णखलाड़ी िे|
उनक खल क दोरान भारर् न हॉकी में र्ीन बार गोल्ड मडल ओलवपक खलों








में िीर्ा| य िर्ष िे- 1928, 1932, और 1936| उन्द्होंन अपन खल िीिन में



1000 स अगधक गोल दाग| हॉलन्द्ड में लोगों न उनकी हॉकी स्स्टक इसशलए








र्ुड़िा कर दखी कक कही उसम कोई चुबक र्ो नही लगा| उनक खल स






प्रभाविर् होकर दहटलर न उनको सना में ऊचे पद का प्रस्र्ाि ददया िा स्िस


उन्द्होंन ठ ु करा ददया िा| यह िी उनकी दिभस्तर्| - िृदुला पंजाबी

11र्ी पर्ज्ञान


-

सहमी हई िी यह िमीन गम का सागर िा गहरा

सहमा िा सारा आसमां डूबा िा स्िसमें मरा पररिार


िीिन क इस मोड़ पर दि क शलए हआ िा िहीद



छाई गहरी खामोशियां।। इस बार् का िा उन्द् हें
अशभमान।।


हादस की गिाह

िी भारर् की सरिमीं इस हादस को दकर अंिाम


मार्ृभूशम की रक्षा में त या हआ उस िाशलम को

छोड़ी ना िी कोई कमी।। नसीब

त या िीर् ली उसन य िंग


छीन शलया उस िाशलम न

या हआ िो, ऐ खुदा, र्ेरी



मरी मां स उसका अशभमान
िन्द् नर् में िरीक।।

राक्षस क ऱूप में िा, ह प्रभु

द्र्ारा- फफजा खान ११र्ी

मिक्षक




शिक्षक समाि में उच्च आदिष स्िावपर् करन िाला व्यडक्तत्ि होर्ा ह। ककसी भी दि या समाि



क ननमाषि में शिक्षा की अहम ् भूशमका होर्ी ह। कहा िाए र्ो शिक्षक ही समाि का आईना

होर्ा ह।

दहन्द्दू धमष में शिक्षक क शलए कहा गया ह कक 'आचायष दिो भि:' यानी कक शिक्षक या आचायष




ईश्वर क समान होर्ा ह। यह दिाष एक शिक्षक को उसक द्वारा समाि में ददए गए योगदानों क



बदले स्िऱूप ददया िार्ा ह।



शिक्षक का दिाष समाि में हमिा स ही पूज्यनीय रहा ह। कोई उस 'गुरु' कहर्ा ह,



कोई 'शिक्षक' कहर्ा ह, कोई 'आचायष' कहर्ा ह, र्ो कोई 'अध्यापक' या 'टीचर' कहर्ा ह। य




सभी िब्द एक ऐस व्यडक्त को गचत्रिर् करर्े हैं, िो सभी को ज्ञान दर्ा ह, शसखार्ा ह





और स्िसका योगदान ककसी भी दि या राष्ट् क भविष्य का ननमाषि करना ह।

सही मायनों में कहा िाए र्ो एक शिक्षक ही अपन विद्यािी का िीिन गढ़र्ा ह और शिक्षक ही





समाि की आधारशिला ह। एक शिक्षक अपने िीिन क अर् र्क मागषदिषक की भूशमका अदा



करर्ा ह और समाि को राह ददखार्ा रहर्ा ह, र्भी शिक्षक को समाि में उच्च दिाष ददया िार्ा ह।

मार्ा-वपर्ा बच्चे को िन्द्म दर्े हैं। उनका स्िान कोई नहीं ल सकर्ा, उनका किष हम



ककसी भी ऱूप में नहीं उर्ार सकर्े, लककन एक शिक्षक ही ह स्िस हमारी भारर्ीय सस्क ृ नर्


में मार्ा-वपर्ा क बराबर दिाष ददया िार्ा ह, तयोंकक शिक्षक ही हमें समाि में रहने




योग्य बनार्ा ह इसशलए ही शिक्षक को 'समाि का शिल्पकार' कहा िार्ा ह।





गुरु या शिक्षक का सबध किल विद्यािी को शिक्षा दन स ही नहीं होर्ा बस्ल्क िह


अपन विद्यािी को हर मोड़ पर राह ददखार्ा ह और उसका हाि िामने क शलए हमेिा


र्ैयार रहर्ा ह। विद्यािी क मन में उमड़े हर सिाल का ििाब दर्ा ह और विद्यािी को






सही सुझाि दर्ा ह और िीिन में आग बढ़न क शलए सदा प्रररर् करर्ा ह।






एक शिक्षक या गुरु द्वारा अपन विद्यागिषयों को स्क ू ल में िो शसखाया िार्ा ह या िैसा

िे सीखर्े हैं, िे िैसा ही व्यिहार करर्े हैं। उनकी मानशसकर्ा भी क ु छ िैसी ही बन िार्ी





ह, िैसा कक ि अपन आसपास होर्ा दखर्े हैं इसशलए एक शिक्षक या गुरु ही अपन


विद्यािी को आगे बढ़ने क शलए प्रेररर् करर्ा ह।


सफल िीिन क शलए शिक्षा बहर् उपयोगी ह, िो हमें गुरु द्वारा प्रदान की िार्ी ह। विश्व में




किल भारर् ही ऐसा दि ह, िहां पर कक शिक्षक अपन शिक्षािी को ज्ञान दने क साि-साि





गुिित्तायुक्त शिक्षा भी दर्े हैं, िो कक एक विद्यािी में उच्च मूल्य स्िावपर् करन में बहर् उपयोगी ह।






िब अमररका िैस िडक्तिाली दि का राष्ट्पनर् आर्ा ह र्ो िो भारर् की गुिित्तायुक्त शिक्षा की


र्ारीफ करर्ा ह। ककसी भी राष्ट् का आगिषक, सामास्िक, सांस्क ृ नर्क विकास उस दि की शिक्षा





पर ननभषर करर्ा ह। अगर राष्ट् की शिक्षा नीनर् अच्छी ह र्ो उस दि को आग बढ़ने से कोई
रोक नहीं सकर्ा। अगर राष्ट् की शिक्षा नीनर् अच्छी नहीं होगी र्ो िहां की प्रनर्भा दबकर रह िाएगी।

बेिक, ककसी भी राष्ट् की शिक्षा नीनर् बेकार हो, लेककन एक शिक्षक बेकार शिक्षा नीनर् को भी






अच्छी शिक्षा नीनर् में र्ब्दील कर दर्ा ह। शिक्षा क अनक आयाम हैं, िो ककसी भी दि क

विकास में शिक्षा के महत्ि को अधोरेखांककर् करर्े हैं। िास्र्विक ऱूप में ज्ञान ही शिक्षा का



आिय ह, ज्ञान का आकांक्षी ह- विद्यािी और इसे उपलब्ध करार्ा ह शिक्षक।
एक शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षािी क सिाांगीि विकास का मूल आधार





ह। प्राचीनकाल स आिपयांर् शिक्षा की प्रासगगकर्ा एि महत्ता का मानि िीिन में


वििेर् महत्ि ह। शिक्षकों द्वारा प्रारभ स ही पाठ्यिम क साि ही साि िीिन मूल्यों की




शिक्षा भी दी िार्ी ह। शिक्षा हमें ज्ञान, विनम्रर्ा, व्यिहारक ु िलर्ा और योग्यर्ा प्रदान करर्ी ह।
शिक्षक को ईश्वरर्ुल्य माना िार्ा ह।

आि भी बहर् से शिक्षक, शिक्षकीय आदिों पर चलकर एक आदिष मानि समाि




की स्िापना में अपनी महर्ी भूशमका का ननिषहन कर रह हैं। लककन इसक साि-साि ऐस

भी शिक्षक हैं, िो शिक्षक और शिक्षा क नाम को कलककर् कर रह हैं और ऐस शिक्षकों




ने शिक्षा को व्यिसाय बना ददया ह स्िससे एक ननधषन शिक्षािी को शिक्षा से िंगचर्


रहना पड़र्ा ह और धन क अभाि से अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़र्ी ह।




आधुननक युग में शिक्षक की भूशमका अत्यर् महत्िपूिष ह। शिक्षक िह पि-प्रदिषक होर्ा



ह, िो हमें ककर्ाबी ज्ञान ही नहीं, बस्ल्क िीिन िीन की कला शसखार्ा ह। आि क समय


में शिक्षा का व्यिसायीकरि और बािारीकरि हो गया ह। शिक्षा का व्यिसायीकरि
और बािारीकरि दि क समक्ष बड़ी चुनौर्ी हैं।


पुरान समय में भारर् में शिक्षा कभी व्यिसाय या धधा नहीं िी। इसस िर्षमान छािों को बड़ी





कदठनाई का सामना करना पड़ रहा ह। शिक्षक ही भारर् दि को शिक्षा क व्यिसायीकरि




और बािारीकरि स स्िर्ि कर सकर्े हैं। दि क शिक्षक ही पि-प्रदिषक बनकर भारर् में


शिक्षा िगर् को नई बुलददयों पर ल िा सकर्े हैं।


गुरु एि शिक्षक ही िो हैं, िो एक शिक्षािी में उगचर् आदिों की स्िापना करर्े हैं और


सही मागष ददखार्े हैं। एक शिक्षािी को अपन शिक्षक या गुरु क प्रनर् सदा आदर और
क ृ र्ज्ञर्ा का भाि रखना चादहए। ककसी भी राष्ट् का भविष्य ननमाषर्ा कह िाने िाले शिक्षक

का महत्ि यहीं समाप्त नहीं होर्ा, तयोंकक िे न शसफ हमको सही आदिष मागष पर चलने क





शलए प्रररर् करर्े हैं बस्ल्क प्रत्यक शिक्षािी क सफल िीिन की नींि भी उन्द्हीं क हािों द्वारा





रखी िार्ी ह। ककसी भी दि या राष्ट् क विकास में एक शिक्षक द्वारा अपन शिक्षािी को दी
गई शिक्षा और िैक्षक्षक विकास की भूशमका का अत्यर् महत्ि ह।





आि (5 शसर्बर 2017) शिक्षक ददिस ह। आि का ददन गुरुओ और शिक्षकों को
अपने िीिन में उच्च आदिष िीिन-मूल्यों को स्िावपर् कर आदिष शिक्षक और एक आदिष
गुरु बनने की प्रेरिा दर्ा ह।


चेतन परिार कक्षा - 11 "र्ाणिज्य"

*तुि तूफान सिझ पाओग? *



द्वारा- हररर्ंिराय बच्चन






गील बादल, पील रिकि,

सूख पत्त, ऱूख र्ि घन



लकर चलर्ा करर्ा 'हरहर'--इसका

गान समझ पाओग?



र्ुम र्ूफान समझ पाओग?



गंध-भरा यह मंद पिन िा,

लहरार्ा इसस मधुिन िा,


सहसा इसका ट ू ट गया िो स्िप्न

महान, समझ पाओग?


र्ुम र्ूफान समझ पाओग?




र्ोड़-मरोड़ विटप-लनर्काए,



नोच-खसोट क ु सुम-कशलकाए,
िार्ा ह अज्ञार् ददिा को! हटो


विहगम, उड़ िाओग!


र्ुम र्ूफान समझ पाओग?






द्र्ारा— अमित डािोर

कक्षा—११र्ी पर्ज्ञान

स्र्चछ भारत का स्र्स्थ भारत का




स्िचछ भारर् का ,स्िस्ि भारर् का


सपना हो साकार


शमलिुलकर हम काम करेंग




दि का होगा नाि .........



1.एक कदम स्िचछर्ा कक ओर बढ़ाएग हम




दि को उन्द्ननर् कक ओर ल िायेंग हम

हमन अगर ठान शल आि




गन्द्दगी को कर देंग िड स साफ

शमलिुल कर हम काम करेंग


दि का होगा नाि


2. आओ अपना श्मदान दकर


स्िचछ भारर् बनायें हम




एक-एक हाि शमलकर अपनी एकर्ा को बढ़ाय हम

हमन अगर ठान ली आि



गन्द्दगी को कर देंग िड़ स साफ


शमलिुल कर हम काम करेंग


दि का होगा नाि



श्रीिती संगीता र्िाव


प्राथमिक मिक्षक्षका संगीत




क॰र्ी॰ िंदसौर

स्क ू ल जाते बच्चों की िां

उठ िार्ी ह बड़ा पनछलहरा में

कर दर्ी ह बच्चों का दटकफन र्ैयार


उन्द्हें नहा-धुला और दुलार कर

त्रबठा दर्ी हैं उन्द्हें बस ररतिे और ठल पर



और करर्ी रहर्ी हैं उन्द्हें र्ब र्क विदा
िब र्क ि नहीं हो िार्े आंखों स ओझल



स्क ू ल िार्े बच्चों की मा

सुननस्श्चर् करर्ी ह कक बच्च न


खाया कक नहीं दटकफन


िो नहीं खार्ी ह एक कौर त्रबना बच्चों को णखलाए





ि िाच पड़र्ाल करर्ी हैं, िक िुक, पाए प्रत्यक ग्रड की

करर्ी ह शमन्द्नर्ें ईश्वर स, तलास टीचरों स स्िसस









उनक बच्च की ग्रडडंग हो सक श्सॎठ और श्सॎठर्म्
स्क ू ल िार्े बच्चों की मा

मैं िायद नही िानर्ी कक ि


उस स्क ू ल की प्रधानाध्यावपका हैं

िहा त्रबना ग्रडडंग सब क ु छ शसखाया िार्ा है



कफर धीर-धीर बच्च बड़े हो िार्े हैं

और िो विदा कर दर्ी ह।


द्र्ारा- फफजा िरीफ खान ११र्ी

आओ मिक्षक हदर्स िनाय

आओ शिक्षक ददिस मनाय । आि कर गुरुओ का िदन । कर शिक्षकों का अशभनंदन।।।




अध्यापक गि सममाननर् हो, हम उनक गुि गािा गायें। आओ ,शिक्षक ददिस मनाय।।









गुरु ही हमें ज्ञान दर् ह । सार दुगुषि हर लर् ह।। दर् हमें दान विद्या का,




उनक आग िीि झुकाय। आओ ,शिक्षक ददिस मनाय।। शिक्षा िीिन सफल बनार्ी।


मन में नि प्ररिा िगार्ी।। शिक्षा में भविष्य उज्ज्िल हो, शिक्षा में हम ध्यान लगाय।



आओ शिक्षक ददिस मनाय।।।
-द्र्ारा अक्षक्षता
कक्षा—११र्ी पर्ज्ञान

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िनर्ा परिान ह,हाल बहाल ह ै
हर ओर हहाकार ह ,लूट और भ्रष्टाचार ह ै



इसानीयर् क नाम से,लोग अनिान ह.

न्द्याय की क ू शसषयो प ,बैठा िैर्ान ह ै


साधुओ क िेि में ,ठगों का सरदार ह.


िनर्ा परिान ह, हाल बेहाल ह.


बढ़ रहा दलहन और नर्लहन का दामह,


नेर्ाओ को शसफ “बीफ” से प्यार ह .

िनर्ा परिान ह ,हाल बेहाल ह ै



ककसी को मुस्स्लम स सरोकार ह ै
कोई दहन्द्दुत्ि का दठकदार ह ै

इसानीयर् क नाम पे सभी कगाल ह ै



िनर्ा परिान ,हाल बेहाल ह….



धमष क नाम प बट रहा समाि ह ै

लड़ रहा ,कट रहा सभी इसान ह ै



तया फक उनको स्िनक सर पे र्ाि ह ??





िनर्ा परिान ह,हाल बहाल ह…. त्रबगड़ रहा सदभाि ह,



कालीखो से णखलिाड़ ह सादहत्य का अपमान ह,
रो रहा सादहत्यकार ह,लौटा रहा पुरस्कारह ै

िनर्ा परिान ह,हाल बेहाल ह……




द्र्ारा— अनुष्का र्िा
११ पर्ज्ञान

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बापू क नाि पत्र


वप्रय बापू,





आप मुझे हमिा प्रररर् करर्े हैं। आपका पूरा िीिन ही एक पाठिाला की र्रह ह।


आपक द्िारा ककए गए कायष हमें प्ररिा दर्े हैं। हमें आपक र्ीन बदर बहर् याद आर्े हैं। ि








बदर पिु होर्े हए भी हमें बहर् क ु छ सीख दर्े हैं और उन्द्होंन मानि धमष को अपना शलया िा




लककन आि क मनुष्यों न पिु क अिगुिों को अपना शलया ह।




मनुष्य आपस में लड़र्े शभडर्े रहर्े हैं और मारपीट करर्े रहर्े हैं। आपन उस समय

अदहंसा का नारा ददया िा लककन आिकल इसक विपरीर् हर क्षि में दहंसा व्याप्र् है।


ह! अदहंसा क पुिारी, आि का आदमी बहर् बदल गया ह। अब अदहंसा स ‘अ’ अक्षर ही





अदृश्य हो गया ह और दहंसा चारों र्रफ बढ़र्ी िा रही ह। आपक द्िारा छ ु आछ ू र् को शमटान




का कायष बहर् नक िा। आि भारर् में छ ु आछ ू र् काफी हद र्क शमट गया ह। सभी िानर् क





लोग आपस में साि बैठर्े हैं। आपसी भाईचारा बढ़ गया ह। आि अनक दहंदू भी ईद क समय



रोिा इफ्र्ार पर मुस्स्लम भाइयों क साि शमलकर भोिन करर्े हैं।
आपसी भाईचारा, प्रेम, सद्भािना आदद यही भारर् दि की पहचान बन गया ह। दूसरे




दिों क शलए यह हरानी की बार् ह कक भारर् में विशभन्द्न सस्क ृ नर् क इर्न सार लोग एक






साि इर्न प्रम स कस रह लर्े हैं। आपन त्रबना हगियार क किल दहंसा क दम पर दि को












आिाद कराया। सभी भारर् िाशसयों क शलए यह गिष की बार् ह कक आपन भारर् दि में



िन्द्म शलया और भारर् को आिाद करा कर ही दम शलया।
आपने लोगों को शिक्षा का महत्ि समझाया। आप िकालर् करने अफ्रीका गए, िहां से

िकालर् करक कफर भारर् िापस आकर दि की सिा में लग गए यह आपके देि प्रेम को




दिाषर्ा ह। आपका व्यस्तर्त्ि अत्यंर् सरल और साधारि ह। आप एक िांनर्वप्रय, सत्य ि प्रेम

में आस्िा रखन िाल व्यस्तर् हैं। आि भी आप ककसी न ककसी ऱूप में हम सबक बीच अमर



ह।
धन्द्यिाद!


साक्षी टपि
11र्ीं ‘पर्ज्ञान’

िध्यप्रदि का स्थापना हदर्स



तया आप जानते हैं फक िध्यप्रदि का स्थापना हदर्स कब ह? िध्यप्रदि का स्थापना हदर्स 1




नर्म्बर 1956 ह िध्यप्रदि की राजधानी भोपाल ह जबफक सबसे बडा िहर इदौर िध्यप्रदि की






जनसंख्या 2001 क अनुसार 60,385,118 ह जबफक इसका क्षत्रफल 308,144 फकलोिीटर ह






भारर् क ददल में बस मध्यप्रदि क राज्यपाल रामनरि यादि और मुख्यमंिी शििराि शसंह चौहान


हैं। मध्यप्रदि 1 निंबर, 2000 र्क क्षेिफल क आधार पर भारर् का सबसे बड़ा राज्य िा। इस


ददन एिं मध्यप्रदि क कई नगर उस स हटाकर छत्तीसगढ़ की स्िापना हई िी।






प्रदि की सीमाऐं पाच राज्यों की सीमाओं स शमलर्ी हैं। इसक उत्तर में उत्तर प्रदि, पूिष में

छत्तीसगढ़, दक्षक्षि में महाराष्ट्, पस्श्चम में गुिरार् र्िा उत्तर-पस्श्चम में रािस्िान ह।





संस्क ृ तत िें िध्यप्रदि जगिगाते दीपक क सिान : भारर् की संस्क ृ नर् में मध्यप्रदि िगमगार्े


दीपक क समान ह, स्िसकी रोिनी की सिषिा अलग प्रभा और प्रभाि ह। यह विशभन्द्न संस्क ृ नर्यों



की अनेकर्ा में एकर्ा का िैस आकर्षक गुलदस्र्ा ह, मध्यप्रदि, स्िस प्रक ृ नर् ने राष्ट् की िेदी पर





िैस अपने हािों स सिाकर रख ददया ह, स्िसका सर्रगी सौन्द्दयष और मनमोहक सुगंध चारों ओर


फल रह हैं। यहा क िनपदों की आबोहिा में कला, सादहत्य और संस्क ृ नर् की मधुमयी सुिास र्रर्ी





रहर्ी ह। यहा क लोक समूहों और िनिानर् समूहों में प्रनर्ददन नृत्य, संगीर्, गीर् की रसधारा


सहि ऱूप स फ ू टर्ी रहर्ी ह। यहा का हर ददन पिष की र्रह आर्ा ह और िीिन में आनंद रस





घोलकर स्मृनर् क ऱूप में चला िार्ा ह। इस प्रदि क र्ुग-उर्ुग िैल शिखर विन्द्ध्य-सर्पुड़ा, मैकल









-कमूर की उपस्त्यकाओं क अंर्र स गूिर्े अनेक पौराणिक आख्यान और नमषदा, सोन, शसंध, चंबल,


बर्िा, कन, धसान, र्िा नदी, र्ाप्ती, शिप्रा, काली शसंध आदद सर-सररर्ाओं क उद्गम और शमलन





की किाओं स फ ू टर्ी सहस्त् धाराएं यहा क िीिन को आप्लाविर् ही नही करर्ी, बस्ल्क पररर्ृप्त भी

करर्ी हैं।




संस्क ृ तत संगि :मध्यप्रदि में पाच लोक संस्क ृ नर्यों का समािेिी संसार ह।य पाच सास्क ृ नर्क क्षि




ह :-




1. तनिाड 2. िालर्ा 3. बुन्दलखड 4. बघेलखड 5. ग्र्ामलयर (चंबल)


प्रत्यक सास्क ृ नर्क क्षि या भू-भाग का एक अलग िीिंर् लोकिीिन, सादहत्य, संस्क ृ नर्, इनर्हास,



कला, बोली और पररिेि ह। िीिनिैली, कला, सादहत्य और िागचक परपरा शमलकर ककसी अंचल

की सास्क ृ नर्क पहचान बनार्ी ह।


मध्यप्रदि की संस्क ृ नर् विविधििी ह। गुिरार्, महाराष्ट् अििा उड़ीसा की र्रह इस प्रदि को ककसी




भार्ाई संस्क ृ नर् में नही पहचाना िार्ा। मध्यप्रदि विशभन्द्न लोक और िनिार्ीय संस्क ृ नर्यों का




समागम ह। यहा कोई एक लोक संस्क ृ नर् नही ह। यहा एक र्रफ पाच लोक संस्क ृ नर्यों का




समािेिी संसार ह, र्ो दूसरी ओर अनेक िनिानर्यों की आददम संस्क ृ नर् का विस्र्ृर् फलक पसरा
ह।







शलंगानुपार् 930 ह प्रदि की साक्षरर्ा 70.6% ह िो िबलपुर में सिागधक 82.5% ह। इसक



बाद इदौर और भोपाल का नंबर आर्ा ह। िनसंख्या घनत्ि=236/ककमी, पुरुर् साक्षरर्ा=80.5%

मदहला साक्षरर्ा=60.00 प्रनर्िर् ह।
तनष्कषव :


मध्यप्रदि पाच सास्क ृ नर्क क्षि ननमाड़, मालिा, बुन्द्दलखड, बघलखड और ग्िाशलयर और धार-






झाबुआ, मंडला-बालाघाट, नछन्द्दिाड़ा, होिंगाबाद, खण्डिा-बुरहानपुर, बैर्ूल, रीिा-सीधी, िहडोल
आदद िनिार्ीय क्षिों में विभक्त ह।


तनिाड :


ननमाड़ मध्यप्रदि क पस्श्चमी अंचल में अिस्स्िर् ह। अगर इसक भौगोशलक सीमाओं पर एक





ें
दृवष्ट डाल र्ो यह पर्ा चला ह कक ननमाड़ क एक ओर विन्द्ध्य की उर्ुग िैल श्ृंखला और
दूसरी र्रफ सर्पुड़ा की सार् उपस्त्यकाएं हैं, िबकक मध्य में ह नमषदा की अिस्त् िलधारा।

पौराणिक काल में ननमाड़ अनूप िनपद कहलार्ा िा। बाद में इस ननमाड़ की संज्ञा दी गई।

कफर इस पूिी और पस्श्चमी ननमाड़ क ऱूप में िाना िाने लगा।


िालर्ा :

मालिा महाकवि कालीदास की धरर्ी ह। यहा की धरर्ी हरीभरी, धनधान्द्य स भरपूर रही ह।



यहां क लोगों ने कभी भी अकाल को नही दखा। विन्द्ध्याचल क पठार पर प्रसररर् मालिा की




भूशम सस्य, श्यामल, सुन्द्दर और उिषर र्ो ह ही, यहा की धरर्ी पस्श्चम भारर् की सबस अगधक



स्ििषमयी और गौरिमयी भूशम रही ह।


बुदलखड :



एक प्रचशलर् अिधारिा क अनुसार, िह क्षि िो उत्तर में यमुना, दक्षक्षि में विंध्य प्लटों की






श्णियों, उत्तर-पस्श्चम में चंबल और दक्षक्षि पूिष में पन्द्ना, अिमगढ़ श्णियों स नघरा हआ ह,








बुदलखड क नाम स िाना िार्ा ह। इसमें उत्तर प्रदि क चार स्िल- िालौन, झासी, हमीरपुर






और बांदा र्िा मध्यप्रदि क पांच स्िल- सागर, दनर्या, टीकमगढ़, छर्रपुर और पन्द्ना क

अलािा उत्तर-पस्श्चम में चंबल नदी र्क प्रसररर् विस्र्ृर् प्रदेि का नाम िा। कननंघम ने






'बुदलखड क अगधकर्म विस्र्ार क समय इसमें गंगा और यमुना का समस्र् दक्षक्षिी प्रदि िो






पस्श्चम में बर्िा नदी स पूिष में चन्द्दरी और सागर क स्िलों सदहर् विंध्यिाशसनी दिी क


मस्न्द्दर र्क र्िा दक्षक्षि में नमषदा नदी क मुहाने क ननकट त्रबल्हारी र्क प्रसररर् िा', माना ह।

बघेलखंड :

बघलखड की धरर्ी का संबंध अनर् प्राचीन भारर्ीय संस्क ृ नर् स रहा ह। यह भू-भाग





रामायिकाल में कोसल प्रार् क अंर्गषर् िा। महाभारर् क काल में विराटनगर बघलखड की




भूशम पर िा, िो आिकल सोहागपुर क नाम स िाना िार्ा ह। भगिान राम की िनगमन





यािा इसी क्षि स हई िी। यहा क लोगों में शिि, िाक्त और िैष्िि समप्रदाय की परमपरा




विद्यमान ह। यहां नािपंिी योगगयों का खासा प्रभाि ह। कबीर पंि का प्रभाि भी सिाषगधक ह।


ग्र्ामलयर :


मध्यप्रदि का चंबल क्षेि भारर् का िह मध्य भाग ह, िहां भारर्ीय इनर्हास की अनेक
महत्त्िपूिष गनर्विगधयां घदटर् हई हैं। इस क्षेि का सांस्क ृ नर्क-आगिषक क ें र ग्िाशलयर िहर है।





सास्क ृ नर्क ऱूप स भी यहा अनेक संस्क ृ नर्यों का आिागमन और संगम हआ ह। रािनीनर्क

घटनाओं का भी यह क्षेि हर समय कन्द्र रहा ह। 1857 का पहला स्िर्ंिर्ा संग्राम झांसी की



िीरागना रानी महारानी लक्ष्मीबाई ने इसी भूशम पर लड़ा िा।


सास्क ृ नर्क गनर्विगधयों का कन्द्र ग्िाशलयर अंचल संगीर्, नृत्य, मूनर्षकला, गचिकला अििा
लोकगचि कला हो या कफर सादहत्य, लोक सादहत्य की कोई विधा हो, ग्िाशलयर अंचल में एक




विशिष्ट संस्क ृ नर् क साि नििीिन पार्ी रही ह। ग्िाशलयर क्षि की यही सास्क ृ नर्क हलचल
उसकी पहचान और प्रनर्सॎठा बनाने में सक्षम रही है।




क्जल : मध् यप्रदि राज्य में क ु ल 51 स्िल हैं, िो ननमनानुसार हैं-


इदौर, अलीरािपुर, खरगोन, खडिा, उज्िैन, नछदिाड़ा, िबलपुर, झाबुआ, टीकमगढ़, दनर्या,


दमोह, दिास, धार, डडंडोरी, नरशसंहपुर, नीमच, पन्द्ना, बड़िानी, बालाघाट, बर्ूल, बुरहानपुर,


शभंड, भोपाल, मंडला, मंदसौर, मुरना, रर्लाम, रीिा, रािगढ़, रायसन, विददिा, सागर, सीधी,

शसंगरौली, शसिनी, सीहोर, सर्ना, िाहडोल, श्योपुर, शििपुरी, िािापुर, हरदा, होिंगाबाद,
छर्रपुर, उमररया, अनूपपुर, गुना,
अिोकनगर, ग्िाशलयर, कटनी, आगर मालिा...


भूगोल :





अक्षांि- 21°6' उत्तरी अक्षांि स 26°30' उत्तरी अक्षांि दिांर्र- 74°9' पूिी दिार्र स 82°48'
पूिी दिार्र



मध्यप्रदि में नमषदा महाकाल पिषर् क अमरकटक शिखर स, चंबल मह क पास िानापाओ








पिषर् स, र्ाप्ती नदी बर्ुल क मुलर्ाई स ननकलर्ी ह एिं माही ग्िाशलयर क समीप दक्षक्षिी



अरािली में ियसमंद झील स प्रारभ होर्ी ह। इनमें नमषदा, र्ाप्ती एिं माही भारर् की उन



नददयों में समाविष्ट ह, िो पूिष स पस्श्चम की र्रफ बहर्ी हैं। मध् य प्रदि की भौगोशलक



वििेर्र्ा यह भी ह कक कक रखा 14 स्िलों से होकर िार्ी ह।





जनसांक्ख्यकी :

िर्ष 2011 की िनगिना क अंनर्म आंकड़ों क अनुसार, मध् य प्रदि की क ु ल िनसंख्या


7,25,97,565 ह, स्िसमें 3,76,11,370 (51.8%) पुरुर् एिं 3,49,84,645 (48.2%) मदहलाएं






हैं, मध्यप्रदि का शलंगानुपार् 930 ह प्रदि की साक्षरर्ा 70.6% ह िो िबलपुर में सिागधक


82.5% ह। इसक बाद इदौर और भोपाल का नंबर आर्ा ह। िनसंख्या घनत्ि=236/ककमी,


पुरुर् साक्षरर्ा=80.5% मदहला साक्षरर्ा=60.00 प्रनर्िर् ह।

दीपक जाट कक्षा - 11 "र्ाणिज्य"

िहहला सिक्तिकरि तया ह ?


मदहला सिडक्तकरि को बहद आसान िब्दों में



पररभावर्र् ककया िा सकर्ा ह कक इसस मदहलाएँ



िडक्तिाली बनर्ी ह स्िसस िो अपन िीिन स िुड़े हर





फसल स्ियं ल सकर्ी ह और पररिार और समाि में




अच्छ स रह सकर्ी ह। समाि में उनक िास्र्विक


अगधकार को प्राप्त करन क शलय उन्द्हें सक्षम बनाना


मदहला सिडक्तकरि ह।

भारत िें िहहला सिक्तिकरि की तयों जरुरत ह ?


िैसा कक हम सभी िानर् ह कक भारर् एक पुरुर्प्रधान समाि ह िहाँ पुरुर् का हर क्षेि


मंक दखल ह और मदहलाएँ शसफ घर-पररिार की स्िममदारी उठार्ी ह साि ही उनपर







कई पाबंदीयाँ भी होर्ी ह। भारर् की लगभग 50 प्रनर्िर् आबादी किल मदहलाओं की ह




मर्लब, पूर दि क विकास क शलय इस आधी आबाधी की िरुरर् ह िो कक अभी भी




सिक्त नहीं ह और कई सामास्िक प्रनर्बधों स बधी हई है। ऐसी स्स्िनर् में हम नहीं






कह सकर् कक भविष्य में त्रबना हमारी आधी आबादी को मिबूर् ककय हमारा दि




विकशसर् हो पायगा। अगर हमें अपन दि को विकशसर् बनाना ह र्ो य िरुरी ह कक


सरकार, पुरुर् और खुद मदहलाओ द्वारा मदहला सिडक्तकरि को बढ़ािा ददया िाय।




मदहला सिडक्तकरि की िरुरर् इसशलय पड़ी तयोंकक प्राचीन समय स भारर् में लैंगगक


असमानर्ा िी और पुरुर्प्रधान समाि िा। मदहलाओ को उनक अपन पररिार और




समाि द्वार कई कारिों स दबाया गया र्िा उनक साि कई प्रकार की दहंसा हई और


पररिार और समाि में भदभाि भी ककया गया ऐसा किल भारर् में ही नहीं बस्ल्क







दूसर दिों में भी ददखाई पड़र्ा ह। मदहलाओ क शलय प्राचीन काल स समाि में चल




आ रह गलर् और पुरान चलन को नय ररर्ी-ररिािों और परपरा में ढ़ाल ददया गया


िा। भारर्ीय समाि में मदहलाओ को सममान दन क शलय माँ, बहन, पुिी, पत्नी क रुप







में मदहला दवियो को पूिन की परपरा ह लककन इसका य कर्ई मर्लब नहीं कक किल








मदहलाओ को पूिन भर स दि क विकास की िरुरर् पूरी हो िायगी। आि िरुरर् ह





कक दि की आधी आबादी यानन मदहलाओ का हर क्षेि में सिडक्तकरि ककया िाए िो


दि क विकास का आधार बनेंगी।







भारर् एक प्रशसद्ध दि ह स्िसने ‘विविधर्ा में एकर्ा’ क मुहािर को सात्रबर् ककया ह, िहाँ




भारर्ीय समाि में विशभन्द्न धमों को मानन िाल लोग रहर्े ह। मदहलाओ को हर धमष में




एक अलग स्िान ददया गया ह िो लोगों की आँखों को ढ़क हए बड़े पदे क रुप में और कई



िर्ों स आदिष क रुप में मदहलाओं क णखलाफ कई सार गलर् कायों (िारीररक और


मानशसक) को िारी रखन में मदद कर रहा ह। प्राचीन भारर्ीय समाि दूसरी भदभािपूिष






दस्र्ूरों क साि सर्ी प्रिा, नगर िधु व्यिस्िा, दहि प्रिा, यौन दहंसा, घरलू दहंसा, गभष में
बस्च्चयों की हत्या, पदाष प्रिा, कायष स्िल पर यौन िोर्ि, बाल मिदूरी, बाल वििाह र्िा


दिदासी प्रिा आदद परपरा िी। इस र्रह की क ु प्रिा का कारि वपर्ृसत्तामक समाि और
पुरुर् श्सॎठर्ा मनोग्रस्न्द्ि ह।


पुरुर् पाररिाररक सदस्यों द्वारा सामास्िक रािनीनर्क अगधकार (काम करन की आिादी,



शिक्षा का अगधकार आदद) को पूरी र्रह प्रनर्बगधर् कर ददया गया। मदहलाओं क णखलाफ


क ु छ बुर चलन को खुल विचारों क लोगों और महान भारर्ीय लोगों द्वारा हटाया गया



स्िन्द्होंन मदहलाओं क णखलाफ भदभािपूिष कायों क शलय अपनी आिाि उठायी। रािा राम



मोहन रॉय की लगार्ार कोशििों की ििह से ही सर्ी प्रिा को खत्म करने क शलय अंग्रि





मिबूर हए। बाद में दूसर भारर्ीय समाि सुधारकों (ईश्वर चर विद्यासागर, आचायष विनोभा





भाि, स्िामी वििकानंद आदद) ने भी मदहला उत्िान क शलय अपनी आिाि उठायी और कड़ा





सघर्ष ककया। भारर् में विधिाओं की स्स्िनर् को सुधारन क शलय ईश्वर चर विद्यासागर न

अपन लगार्ार प्रयास स विधिा पुनष वििाह अगधननयम1856 कीिुरुआर् करिाई।




वपछल क ु छ िर्ों में मदहलाओं क णखलाफ होन िाल लैंगगक असमानर्ा और बुरी प्रिाओं को



हटान क शलय सरकार द्वारा कई सार सिधाननक और कानूनी अगधकार बनाए और लागू










ककय गय ह। हालाँकक ऐस बड़े विर्य को सुलझान क शलय मदहलाओं सदहर् सभी का


लगार्ार सहयोग की िरुरर् ह। आधुननक समाि मदहलाओं क अगधकार को लकर ज्यादा



िागरुक ह स्िसका पररिाम हआ कक कई सारे स्ियं-सिी समूह और एनिीओ आदद इस








ददिा में कायष कर रह ह। मदहलाए ज्यादा खुल ददमाग की होर्ी ह और सभी आयामों में


अपने अगधकारों को पाने क शलय सामास्िक बधनों को र्ोड़ रही ह। हालाँकक अपराध इसक



साि-साि चल रहा ह।


कानूनी अगधकार क साि मदहलाओं को सिक्त बनान क शलय ससद द्वारा पास ककय गय






क ु छ अगधननयम ह - एक बराबर पाररश्शमक एतट 1976, दहि रोक अगधननयम 1961,


अनैनर्क व्यापार (रोकिाम) अगधननयम 1956, मडडकल टमनेिन ऑफ प्रग्नेंसी एतट 1987,



बाल वििाह रोकिाम एतट 2006, शलंग परीक्षि र्कनीक (ननयंिक और गलर् इस्र्ेमाल क
रोकिाम) एतट 1994, कायषस्िल पर मदहलाओं का यौन िोर्ि एतट 2013।
- िनोज क ु िार्त कक्षा- 11 "र्ाणिज्य"

मिक्षक हदर्स पर पर्िेष



आज की मिक्षा – चुनौततयााँ और सिाधान
-आलोक पंजाबी



आि िब कोई दो या र्ीन िर्ष का बच्चा ददन भर घर आगन में खलर्ा-ठ ु मकर्ा निर आर्ा



ह र्ो पड़ोशसयों को उसकी शिक्षा की गचंर्ा सर्ाने लगर्ी ह। “अभी र्क गचंटू को स्क ू ल में भर्ी



नहीं कराया?” िैस प्रश्न गचन्द्ह उसक चहकर्े बचपन पर निर गढ़ाए रहर्े हैं। य आलम होर्ा


ह कक कई बार र्ो पालकों को दबाि में आकर बच्चे को विद्यालय में प्रिि ददलिाना पड़ िार्ा


ह। शिक्षा क व्यिसायीकरि न इस प्रिृवत्त को बढ़ािा ददया तयोंकक उन्द्हें िल्दी स िल्दी अपन






ग्राहक को लपकना ह। िब 2 िर्ष का नन्द्हा सा बच्चा र्िाकगिर् “प्ल स्क ू ल” में पहचर्ा ह र्ो


उसक साि ननर् नए प्रयोग होना िुऱू हो िार्े हैं। अभी उसन फ ू लों की खुिबू और उसक रगो








से नार्ा िोड़ा ही होर्ा ह और उसे “ इस्ग्लि राइमस”रटिान की किायद िुऱू हो िार्ी ह।

णखलौनों को िह िी भर क छ ू ना, खलना चाहर्ा ह और उस णखलौनों क बहाने “ए” फ़ॉर एप्पल




शसखाया िान लगर्ा ह। िब िह ररश्र्ों को अपनी सहि बुद्गध स िानना चाह रहा होर्ा ह र्ो




उस गणिर् क अकों में उलझा ददया िार्ा ह। िब िह दुननयाँ को अपनी मासूम मुस्क ु राहट स







और र्ोर्ली बोली स चककर् करने िा रहा होर्ा ह र्ो उसे अचानक ररपोट काडष िमा ददया




िार्ा ह। और कोई पालकों स पूछ कक य बदहिासी तयों? र्ो कहर्े हैं कक िमान क साि नहीं







चल र्ो हमारा बच्चा वपछड़ िाएगा। कोई य र्ो पूछ कक अपन बच्चे को चलर्ा कफरर्ा

एनसाइतलोपीडडया बनाना चाहर्े हैं या कफर एक सिदनिील इसान स्िसक हृदय में प्रम और






करुिा का झरना बहर्ा हो।िो अपनी रुगचयों को साि लेकर सहि होकर सीख, पढ़ और
प्रसन्द्न होकर अपना िीिन िी सक।

डॉ सिषपल्ली राधाक ृ ष्िन ने अपने िन्द्मददन को शिक्षकों को समवपषर् ककया िा और र्ब से 5




शसर्बर को हम उनक िन्द्मददन को शिक्षक ददिस क ऱूप में मना रह हैं। उन्द्होंन कहा िा “


शिक्षक िह नहीं िो छाि क ददमाग में र्थ्यों को िबरन ठ ूंस, बस्ल्क िास्र्विक शिक्षक र्ो िह


ह िो उस आन िाल कल की चुनौनर्यों क शलए र्ैयार कर।“ ककन्द्र्ु आि ज्ञान को ठ ूँसने की







होड़ लगी ह। सहि, समपूिष व्यस्तर्त्ि का विकास नहीं हो पा रहा ह और युिा इस होड़ में


अपन मूल स्िऱूप को भूल रह हैं। अपन स्िभाि और रुगचयों को नहीं बस्ल्क “पैकि” और





“कमपस शसलेतिन” क सपन दख रह हैं। और बढ़र्ी कोगचंग तलासस और शिक्षा की दुकानों न






युिाओ की इस भूख को बढ़ाया ह। तयों िी रह हैं, य नहीं पर्ा। प्रमोिन और पैसा ही भगिान



होर्ा िा रहा ह। िीिन रसहीन होर्ा िा रहा ह। िुष्कर्ा और स्िािष मानिीय मूल्यों पर हािी

हो गए हैं ।





चेहर स मुस्कान और आखों में अपनपन का भाि खोर्ा िा रहा ह। इस कफसलर्े िीिन क








पीछ कारि हमारी शिक्षा प्रिाली भी ह। शिक्षा में अकों क खल, इनर्हास क र्थ्यों और



भौनर्की क सूिों का र्ो स्िान ह कक ं र्ु बोलन की कला, व्यिहार क र्रीकों, सबंधों ररश्र्ों को





ननभान की क ु िलर्ा और त्रबना र्नाि क खुिहाल िीिन िीन की बार् कहाँ ह? मूल्यों की



ककर्नी चचाष होर्ी ह आि की कक्षाओ में और ककर्नी बार भािविव्हल होकर शिक्षक बच्चों
क सामने प्रमपूिष िीिन का उदाहरि पि करर्े हैं? इन सब क बगैर िीिन की शिक्षाअधूरी ह।





आि हमार शिक्षि संस्िान गणिर्, विज्ञान,इनर्हास ,अिषिास्ि और कमप्यूटर का ककर्ाबी






ज्ञान र्ो द रह हैं कक ं र्ु विद्यािी को स्िय स पहचान करन में चूक रहें हैं। यही ििह ह कक






िो ददल स इिीननयर ह िो डॉतटर बनन की दौड़ में िाशमल ह। एक अच्छा णखलाड़ी भी




गणिर् क सूि याद करन में स्िय को खपा रहा ह। इन शिक्षि सस्िाओ में उन बच्चों को







अध्यापकों द्िारा कोसा िा रहा ह िो अच्छ अक नहीं ला पा रह ककन्द्र्ु अच्छ और प्यार

इसान होन की क ू बर् रखर्े हैं।





शिक्षकों स गैर शिक्षकीय कायष कराए िार्े हैं और काम क दबाि में एक शिक्षक स्िर्िर्ा
से काम नहीं कर पा रहा। अपनी आत्मा को शिक्षकीय धमष से नहीं िोड़ पा रहा। शिक्षक
इस खींचर्ान में बच्चों के साि न्द्याय करने में चूक रहे हैं।

इन सब चुनौनर्यों क होर्े हए राष्ि को सिदनिील, सच्चे दिभतर् और स्िममदार नागररक





सौंपना शिक्षा व्यिस्िा और शिक्षक का परम दानयत्ि ही नहीं ,धमष भी ह। सबसे िऱूरी ह कक






इस पिे स शसफ िो ही िुड़ें िो शिक्षा को व्यिसाय नहीं, धमष समझर्े हैं। और इस पिे को


उन्द्होंन मिबूरी में नहीं, शिक्षकीय स्िभाि की ििह स अपनाया हो । शिक्षा विभाग में

साहसी, उच्च शिक्षा प्राप्र् विद्िान और िीिन मूल्यों की समझ िाल लोगों का चयन ककया


िाए िो इस बोझ समझ कर नहीं बस्ल्क ददल स करें। िो िो बच्चों को पैसा कमाने की


मिीन नहीं बस्ल्क साहसी, दयालु और स्िममदार नागररक बनान का ख्िाब दखर्े हैं।िो िो





बच्चों की अयोग्यर्ा क शलए उन्द्हें कोसन की बिाय बच्चों क गुिों को पहचानें। उनस प्यार


से पेि आएं। कई बार अध्यापकों क र्ानों, उलाहनों से र्ग आकर बच्चे शिक्षि को बोणझल


और कष्टदायी समझ लर्े हैं।िही शिक्षक सफल हैं िो िीिन की शिक्षा दन में समिष हों


और खुिहाल िीिन िीन, कदठनाईयों पर िीर् हाशसल करन क सूि बर्ा पाए। डॉ राधाक ृ ष्िन









न कहा िा कक अगर हम दुननया क इनर्हास को दख,र्ो पाएग कक सभ्यर्ा का ननमाषि उन

महान ऋवर्यों और िैज्ञाननकों क हािों स हआ ह,िो स्िय विचार करन की सामथ्यष रखर्े








हैं,िो दि और काल की गहराइयों में प्रिि करर्े हैं,उनक रहस्यों का पर्ा लगार्े हैं और इस

र्रह से प्राप्र् ज्ञान का उपयोग विश्ि श्य या लोक-कल्याि क शलए करर्े हैं।




साि ही बहद िऱूरी ह कक शिक्षकों को गैर शिक्षकीय कायों में नहीं उलझाया िाए तयोंकक इन


कायों को समय सीमा में करन की बाध्यर्ा होर्ी ह और यही ििह ह की अपनी नौकरी पर







आच आन क भय स शिक्षक इन कायों को शिक्षि स अगधक प्रािशमकर्ा दन लगर्े हैं। यहीं


स शिक्षा मागष स भटक िार्ी ह। शिक्षा ही दि और समाि को समृद्ध और सुसस्क ृ र् बनार्ी









ह। ककसी भी दि को सामास्िक बुराइयों स मुतर् करन क शलए िऱूरी ह कक इस ददिा में

गचंर्न हो। ककर्ाबी ज्ञान से उठकर व्यस्तर्त्ि विकास और िीिन की शिक्षा पर भी उगचर्

ध्यान ददया िाए। बच्चों को उगचर् अनुगचर् का फसला लना शसखाया िाए। सबस महत्िपूिष ह



कक उन्द्हें स्िय सीखन क उगचर् अिसर प्रदान ककय िाए ।





--- आलोक पंजाबी,
81, आस्था, अग्रसेन नगर िंदसौर
9424094014










तनिा की, धो दता राकि झटक जाता था पागल र्ात भूलती थी िैं सीख राग

चााँदनी िें जब अलक ें खोल, धूमल िें तुहहन किों के हार; बबछलते थ कर बारम्बार,

कली स कहता था िधुिास मसखाने जीर्न का सगीत तुम्हें तब आता था करुिि!




बता दो िधुिहदरा का िोल; तभी तुि आये थे इस पार! उन्हीं िरी भूलों पर प्यार

- हपषवता सांखला



बबछाती थी सपनों क जाल गय तब स फकतन युग बीत

तुम्हारी र्ह करुिा की कोर, हए फकतने दीपक तनर्ावि! कक्षा 11


गई र्ह अधरों की िुस्कान नहीं पर िैंन पाया सीख

िुझे िधुिय पीडा ा़ िें बोर; तुम्हारा सा िनिोहन गान


सिद्ध जर् पर्पर्धता का िहत्त्र्




िैि विविधर्ा मुख्य ऱूप स एक मापदड ह स्िसमें अलग-अलग र्रह क पेड़-पौध और पिु-







पक्षी एक साि रहर्े ह| हर ककस्म की िनस्पनर् और पिुिगष पृथ्िी क िार्ािरि को बहर्र



बनान में अपना अमूल्य योगदान दर्े ह स्िसस आणिरकार पृथ्िी पर िीिन समृद्धिाली







बनर्ा ह,साि ही य सभी प्रिानर्यां एक दूसर की मूलभूर् िऱूरर्ों को पूरा करर्ी ह स्िसस

एक समृद्धिाली िैि विविगधर्ा का ननमाषि होर्ा ह|


िैि विविधर्ा क महत्िपूिष होन क पीछ र्क यह ह कक यह पाररस्स्िनर्कीय प्रिाली क










सर्ुलन को बना कर रखर्ी ह| विशभन्द्न प्रकार क पिु-पक्षी र्िा िनस्पनर् एक दूसर की



िऱूरर्ें पूरी करर्े ह और साि ही य एक दूसर पर ननभषर भी ह| उदाहरि क र्ौर पर




मनुष्य को ही ल लीस्िए| अपनी मूलभूर् आिश्यकर्ा िैस भोिन और आिास क शलए िह

भी पिु, पड़ और अन्द्य र्रह की प्रिानर्यों पर आगश्र् ह| हमारी िैि विविधर्ा की समृद्गध



ही पृथ्िी को रहन क शलए र्िा िीिन यापन क लायक बनार्ी ह|





एक अनुमान क मुर्ात्रबक पृथ्िी पर लगभग 3,00,000 िनस्पनर् र्िा इर्न ही िानिर ह

स्िसमें पक्षी, मछशलयां, स्र्नधारी, कीड़े, सींप आदद िाशमल ह| वपछली क ु छ िर्ास्ब्दयों में



कई िनस्पनर् एि िानिरों की प्रिानर्यां विलुप्र् हो गयी ह और आन िाल समय में कई









लुप्र् होन की कग़ार पर ह| यह िैि विविधर्ा क शलए िर्र का सकर् ह|



हालाँकक वपछल कई सालों स िैि विविधर्ा को समृद्ध बनाय रखन प िोर ददया िा रहा ह









परर्ु कफर भी क ु छ समय स इसकी गररमा में गगरािट दखी गयी ह स्िसकी आन िाल



समय में और भी ज्यादा गगरन की आिका िर्ाई िा रही ह| इसक पीछ मुख्य कारि ह




औद्योगगक फतटररयों स लगार्ार ननकलर्ा प्रदूर्ि| इस प्रदूर्ि क कारि ही कई





िनस्पनर्यों की और िानिरों की प्रिानर्यां विलुप्र् हो गयी ह और कई होन की कग़ार पर


ह| वपछल क ु छ समय स मनुष्य का र्कनीक की र्रफ इर्ना ज्यादा झुकाि हो गया ह की





िह इसक दुष्पररिाम को भी नहीं समझना चाहर्ा ह| इस बदलाि का एक सकर् र्ो साफ़






ह की आन िाल समय में हमार गृह पृथ्िी पर बहर् ही भयकर सकट खड़ा हो िायगा|




इसस िैि विविधर्ा का सर्ुलन र्ो ननस्श्चर् ऱूप स त्रबगड़ेगा ही र्िा मनुष्य क साि साि



िीििर्ुओ क िीिन पर भी प्रश्नगचन्द्ह खड़ा हो िायगा|









िैि विविधर्ा को कफर स समृद्ध बनान क शलए सबस पहल यह िरुरी ह की हम िार्ािरि








सबधी मुसीबर्ों क प्रनर् अत्यर् सिदनिील हो| सड़को प दौड़र्े बड़े बड़े िाहन बड़े पैमान पर


प्रदूर्ि फला रह ह िो मनुष्य िानर् क शलए बहर् बड़ा खर्रा ह| िार्ािरि की िुद्धर्ा को










बचान क शलए इन िाहनों पर अक ु ि लगाना होगा र्ाकक य िार्ािरि को और दूवर्र् न कर

पाए| फतटररयों स ननकलर्ा दूवर्र् पानी िल िीिन को िराब कर रहा ह| पानी में रहन




िाल िीिों की िान पर सकट पैदा हो गया ह| इस ननकलर्े दूवर्र् पानी का िल्दी स िल्दी





उगचर् प्रबंध करना होगा र्ाकक ये बड़ी आपदा का ऱूप न ले ले|कई दिों की सरकार लोगों क


बीच िैि विविधर्ा क त्रबगड़र्े सर्ुलन को लकर िागऱूकर्ा फला रही ह और कोशिि कर



रही ह की इस पर िल्दी काबू पाया िाय| यह आम आदमी की भी स्िममदारी ह की िह इस






नक कायष में दहस्सा ल और िार्ािरि को िुद्ध बनान में सरकार का सहयोग कर|







मनुष्य क र्कनीक क प्रनर् बढ़र्े प्रम को कम करन की िरुरर् ह| िह र्कनीक और नए






नए अविष्कार करन में इर्ना मग्न हो गया ह की उस अपन आसपास क िार्ािरि क बढ़र्े


प्रदूर्ि स कोई लना दना ही नहीं ह| मनुष्य को इस र्रफ सोचना होगा की दूवर्र् होर्े





िार्ािरि स शसफ उसका ही नुकसान हो रहा ह|हर एक िनस्पनर् र्िा िीि का िार्ािरि




को रहन क योग्य बनान में अलग-अलग उद्दश्य ह| इसशलए अगर हमें अपन िार्ािरि की




िुद्धर्ा को ऊचे स्र्र र्क पहँचाना ह र्ो हमें िैि विविधर्ा क सर्ुलन को बनाय रखन पर





अपना ध्यान क ें दरर् करना होगा|



मनुष्य क शलए यह त्रबलक ु ल सही समय ह की िो इस सकट को गभीरर्ा स ल और







िार्ािरि को िुद्ध बनान का सकल्प ल| साफ़ सुिरा िार्ािरि ही समृद्ध िैि विविधर्ा क

ननमाषि का आधार ह|
राजि क ु िार उपाध्याय

पी.जी.टी(जीर् पर्ज्ञान)
क ें द्रीय पर्द्यालय िंदसौर
मनुष्य को अपन लक्ष्य में कामयाब



होन क शलए खुद पर विश्िास होना

बहर् ज़ऱूरी है।


....िााँ का साथ िर क ु छ अलफाज........!!!!







सामन ककचन में माँ बड़बड़ा रही िीं..य लड़की कभी नहीं सुधरगी ! अर..समय


स उठो र्ो स्क ु ल समय स पहचों ! इन र्ानो पर झुझलार्ी हैं ! और कई बार





र्ो परिान करन क शलए िागर्े हए भी सोन का नाटक करर्ी हँ ! माँ का


साि पूरी र्रह महसूस करर्ी हँ.!!


िब पहली बार अपन िहर दूर गई र्ो माँ का बार -बार कॉल करक पुछना


खाना -खाया , समय स पहँच र्ो गई िीं ना र्बीयर् र्ो ठीक हैं उनकी इस

परिाह को दख कर महसूस हआ कक सकडों अनिान लोगों क बीच मैं किल






एक माँ की गरम हिली ह िो मुझे हर समय िामें रहर्ी ह और कहर्ी ह की





मैं र्ुझे इस दुननया की भीड़ म गुम न होन दुंगी...!!!



सोचर्ी हँ स्िदगी क सफ़र में माँ न होर्ी र्ो कया होर्ा..? मरा स्क ु ल घर



स िोड़ी ही दूर ह , कफर भी िह मुझे रोज़ाना छोड़न िार्ी ह ददन में उनकी


बचन आँख दरिाि स शसफ ृ मुझे ही ढ ूंढर्ी हैं..!!







ददनभर की इकट्ठी बार्ें िाम की चाय पर ही होर्ी ह ! रार् को िब उनस


शलपटकर सोर्ी हँ र्ो लगर्ा ह पूरी दुननया ह मर पास..!!




सब कहर्े ह र्ु र्ो िेर हैं रह लगी अकल लककन िेर को भी र्ो माँ की




िऱूरर् होर्ी ह...!!! हैं ना माँ....!!!!!!


दुननया का सबस अनमोल र्ोहफा हैं माँ....!!!

- फफजा खान
११ र्ाणिज्य

सिय







“संसार की सबस िूल्यर्ान र्स्तु सिय ही ह”| लककन िर्षमान में ज्यादार्र लोग ननरािामय
स्िंदगी िी रह ह और िे इर्िार कर रह होर्े ह कक उनक िीिन में कोई चमत्कार होगा,







िो उनकी ननरािामय स्िंदगी को बदल दगा| दोस्र्ों िह चमत्कार
आि ि अभी स िुऱू होगा और उस चमत्कार को करने िाल


व्यस्तर् आप ही ह, तयोंकक उस चमत्कार को आप क अलािा कोई



दूसरा व्यस्तर् नही कर सकर्ा| इस िुरुआर् क शलए हमें अपनी


सोच ि मान्द्यर्ाओ को बदलना होगा, तयोंकक “हिार साथ र्ही


होता ह जो हि िानते ह|”

आत्मविश्िास से आिय “स्िंय पर विश्िास एंि ननयंिि” स ह | दोस्र्ों हमार िीिन में



आत्मविश्िास का होना उर्ना ही आिश्यक ह स्िर्ना ककसी फ ू ल में खुिबू (सुगंध) का होना,
आत्मविश्िास क बगैर हमारी स्िंदगी एक स्िन्द्दा लाि क समान हो िार्ी ह| कोई भी





व्यस्तर् ककर्ना भी प्रनर्भािाली तयों न हो िह आत्मविश्िास क त्रबना क ु छ नही कर सकर्ा|


आत्मविश्िास ही सफलर्ा की नींि ह, आत्मविश्िास की कमी क कारि व्यस्तर् अपने द्िारा


ककय गए कायष पर संदह करर्ा ह| आत्मविश्िास उसी व्यस्तर् क पास होर्ा ह िो स्िंय स







संर्ुष्ट होर्ा ह एंि स्िसक पास दृड़ ननश्चय, महनर् ि लगन,साहस,िचनबद्धर्ा आदद
संस्कारों की समपनर् होर्ी ह| - सौरभ चौहान XI












MEANING OF KENDRIYA VIDYALAYA



K- kindness


E- Education


N- Nice Behavior


D- Dutifulness


R- Responsible



I-Intellectual


Y-Yet success


A-Active


V-Visual for making future


I-Information


A-Accurate


L-Lovely


A-Affectionate


Y-Yet very sincere


A-Ability to do every thing


th
BY-Laya Mourya 11 science



THOUGHT

If you want to…..



If you want to admire,
Admire god's creation.
If you want to kill,
Kill your pride.
If you want to give,

Give justice to everyone.
If you want do win,
Win the heart of others.
If you want to enjoy,
Enjoy the movement of life.

If you want to think,
Think about the good of mankind.
If you want to control,
Control your desires.
If you want to praise,
Praise the almighty.


Krishnapal Singh
th
11 commerce



Dhyan Chand ( 29 August - 1905 - 03 December 1979 )
was an India Hockey Player in the history of Hockey. He

was known for his extraordinary goal - scoring feats , in

addition to earning three Olympic gold medal in 1928 ,
1932 and 1936 during an era where India dominated field

Hockey . His influence extended beyond to these victo-

ries , extended , as India won the field Hockey events in
seven out of eight Olympics from 1928 to 1964 . Known

as the Wizard and Magician of Hockey for his superb ball

control .


Submitted by - Chelsi Ratnawat

Class. - 8 "A"





Your Best



If you always try your best.



Then You’ll never have to wonder.


About what you could have done.


If you had summoned all your thunder.



And If your best was not a good


As you hoped if would be,



You still could say ,


“ I have today



All that I had in me”


- Shubham Sharma


XI Commerce



Nature


Nature’s first green is gold,

Her hardest hue to hold.

Her early leaf’s a flower;

But only so an hour.

Then leaf subsides to leaf.


So Eden sank to grief,

So dawn goes down to day.

Nothing gold can stay.



By - Dev Sethiya

Class - 6th B

Women empowerment


Women empowerment has become the buzzword today with women

working alongside men in all spheres. They profess an independent

outlook, whether they are living inside their home or working out-

side. They are increasingly gaining control over their lives and taking

their own decisions with regard to their education career profession

and lifestyle.


With stead increase in the number of working women, they have

gained financial independence which has give them confidence to

lead their own lives and build their own identity. They are successful-

ly taking up diverse profession to prove that they are second to none


in any respect.


But while doing so, women also take care to strike a balance between

their commitment to their profession as well as their home and fami-

ly. They are playing multiple roles of a mother,daughter,sister,wife

and a working professional remarkable harmony and ease. With

equal opportunities to work they are functioning with a spirit of team

work to render all possible co-operation to their male counterparts in

meeting the deadlines and targets set their respective profession.


Women empowerment is not limited to urban, working women but

women in even remote towns and villages are now increasingly mak-

ing their voices heard loud and clear in society. They are no longer

willing to play a second fiddle to their male counterparts. Educated or

not ,they are asserting their social and political rights and making


their presence felt, regardless of their social-economic background.

She believed, she could, so she did.



Name-Ananya Soloman


Class-10 A

Do not tell


There are lots of things They won’t let me do-


I’m not big enough yet, They say.

So I patiently wait Till I’m all grown up ;


And I’ll show them all,

One day. I could show them now If they gave me the


chance, There are things I could do If I tried.

But nobody knows , No nobody knows, that I’m


Really a giant, Inside.






Trees

Trees are for birds.

Trees are for children.

Trees are to make tree houses in.
Trees are to swing swing on.

Trees are for the wind to blow through.

Tree are to hide behind in “ Hide and Seek.”
Trees are to have tea parties under.

Trees are for kites to get caught in.

Trees are to make cool shade in summer.
Trees are to make no shade in winter.

Trees are for apples to grow on, and pears.
Trees are to chop down and call “TIMBER-

R-R!”
Trees make Mothers say,

“What a lovely picture to paint!”

Trees make fathers say,
“What a lot of leaves to rake this fall !”



Angel Bhatiya
th
7 “A”

Understand your anger


Anger is the memory of being hurt. Being angry is just proof that you


didn’t complete the job of expressing your hurt when it first occurred.

You’re responsible for speaking your feelings, but expressing anger is

always a problem. It’s hard to express anger without hurting someone

else. The best way to express anger is to show you are hurt.


To resolve your anger, first posses you’re hurt. It’s hard to admit that

you’ve been hurt when you try to portray yourself as invincible or

above it all.


If you push away your feelings to protect yourself. You become less,

less connected to your best. Even if you conceal your pain. You still

hurt and angry. You become sensitive to hurt and seem irritable with

others. Your hidden feelings speak indirectly. Protecting another per-

son from your hurt and angry feelings is just another way of alienating

them. The longer you protect them, the more alienated you will feel.


After a while you won’t feel joy in right places and when others ask

what is wrong, you won’t even be able to tell them. It will seem like

such a complicated old story.


People who hurt and then prevent you from expressing that hurt dam-

age you the most.

Anyone who can bottle up your anger can control you; you need to be

free of danger to love.


When love is coated with anger it doesn’t feel like love, it still feels like

anger. Express your hurt at the correct time and place and you’ll al-

ways be free to love.


My hurt is on my lips.


My love will follow.

-Tikam Sharma


11 Science

DR. APJ ABDUL KALAM





The full name of A.P.J. Abdul Kalam is Avul Pa-

kir Jainulabdeen Abdul Kalam. He was a space
scientist who played a vital technological roles

in the DRDO (Defence Research and Develop-

ment Organization) and ISRO (Indian Space

Research Organization) and crafted the foun-
dation of their growth. A Muslim by faith, Mr.

Kalam stayed a pure vegetarian throughout his

life and had remembered by heart the teach-
ings of Holy Quran and Bhagvada Gita as well.

He also became the 11th President of India and was much popular

among the youths. United Nations designated his Birth Anniversary on

15th October, to be celebrated as the World Students’ Day every year, to

commemorate the role he played in the inspiration of youths in India
and abroad. APJ Abdul Kalam is popularly known as Dr. APJ Abdul

Kalam. He lives in Indian people’s heart as the Missile Man of India and

People’s President. Actually he was a great scientist who invented many
new inventions. He was the former President of India who born on

15th of October in 1931 (in Rameswaram, Tamil Nadu) however died

on 27th of July in 2015 (in Shillong, Meghalaya, India). His father name

was Jainulabudeen and mother name was Ashiamma. His full name was

Avul Pakir Jainulabdeen Abdul Kalam. He never got married to anyone.
He was a great man who has been awarded with the awards like Bharat

Ratna (in 1997), Padma Vibhushan (in 1990), Padma Bhushan (in

1981), Indira Gandhi Award for National Integration (in 1997), Rama-
nujan Award (in 2000), King Charles II Medal (in 2007), International

von Karman Wings Award (in 2009), Hoover Medal (in 2009), etc. in-

ternational von Karman Wings Award (in 2009), Hoover Medal (in

2009), etc. international von Karman Wings Award (in 2009), Hoover
Medal (in 2009), etc.

Nikshay Patidar

VII B

“KEY TO SUCCESS"



When your goal is near,

you may have little fear,

but my dear, don't lose hope here,
neither shed a singer tear,

just keep your mind clear,

Success will knock your door,
don't be scared anymore,

let the drops of confidence pour,

Into your heart and let them roar,
that you have to make a good score,

In this world of emulation,
by reaching your destination.



Rimjhim jain ,XI




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