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Published by pnmmnp, 2022-01-05 00:35:07

विष कन्या

विष कन्या

वष क या

आकाश मेघाछ न था। मुबं ई मे जनू जलु ाई का मह ना सफ बा रश का मह ना होता है। परू मंबु ई,
कभी कभी एक बड़े ताल कटोरे मे बदल जाती है। आज के आसार भी वसै े ह लग रहे थे। काले
बादल ने समचू ी मबंु ई को दरू दरू तक घेर लया था। थोड़ी रह देर मे आकाश से व यतु चमकने के

य, काल ना गन के जीभ जसै े लग रहे थे। मेघ का गजन – तजन भी अपनी चरम सीमा पर था।
वह ं, वल के चाल प ट के एक छोटे से घर से च लाने क आवाज़ भी आ रह थी, जसै े, मेघ को
चुनौती दे रह ह । कभी औरत चीखती, कभी मद। थोड़ी देर मे ब च के रोने क आवाज़ सनु ाई द
और यह आवाज़ धीरे धीरे दरवाजे के बाहर क तरफ और ज़ोर होती गयी। एक यि त अपनी ी
के बाल को दोन हाथ से पकड़े, बाहर क तरफ घसीट रहा था। ब चे च ला रहे थे, “छोड़ो, पापा!
छोड़ो!...माँ के बाल छोड़ दो...!!!!”

कु छ ह पल मे एक यवु ती दरवाजे के बाहर, बाल से घसटती हुयी दखी। उसने अपने बाल बचाने
के लए उस यि त के हाथ पकड़ रखे थे और ज़ोर देकर अपने को छु ड़ाने क को शश कर रह थी।
तीन और पाचँ साल क उ के दो ब चे उसके दोन ओर बलख बलख कर रो रहे थे। उस यि त
ने बड़ी ज लादगी से उसे घर से बाहर नकाला और च ला कर बोला, नकल... नकल जा यहाँ
से....!!! म तरे ा मंुह, दोबारा नह ं देखना चाहता!“ दोन ब चे, माँ के आसपास खड़े हो गए, यि त ने
दरवाजा अदं र से बदं कर लया।

नाम था बेबी, और अ छा नाम था श शकला पटनकर, प त का नाम रमेश पटनकर। बीस बाईस
साल क यवु ती बबे ी क शाद कम उ मे ह हो गयी थी। ब चे भी ज द हो गए थे। बेबी ने दोन
ब च का हाथ पकड़ा, दो मनट मौन बैठ रह । बाल बखरे हुये, गु से मे तमतमाया चेहरा और
च लाकर रोने से, सखु हुये आ नेय ने । चगं ार आँख मे भरे, एक ना गन क तरह उसने अपने
चार ओर देखा। आस पास के लोग अपने अपने काम मे लगे थे। कु छ ब चे उसक तरफ ताक रहे
थे जसै े यह उनके लए मनोरंजन हो। बना कसी को कु छ बोले, दोन ब च का हाथ थाम कर, वह
वहाँ से नकल गयी।

आपदा और वपदा मे कह ं पर भी शरण लया जा सकता है। मबुं ई जसै ी जगह मे बेबी ने भाई के
घर को ह चुना। य य प वह जानती थी क भाभी उसे पसदं नह ं करती है। ले कन कोई चारा न था।
कम से कम एक जान पहचान क जगह तो मलेगी। खी सूखी खाकर , ब च का पेट तो पाल
सके गी। दो बात सनु लेगी, जवाब नह ं देगी और या।? यह सोच कर वह भाई के घर क तरफ चल
पड़ी।

भाभी ने दरवाजा खोला। देख कर मसु कु राई। बेबी ब च के साथ अदं र चल गयी। चौसठ वग फु ट
छोटा सा कमरा। कमरे मे भाई, भाभी और उनके साथ मुझे भी ब च के साथ रहना पड़गे ा। ले कन

और कोई उपाय नह ं था। घर क प रि थ त बताने पर भाई या भाभी ने कु छ खास त या य त
नह ं क , सफ इतना कहा क यहाँ तु ह भी मेहनत करनी पड़गे ी। बेबी का मूक चेहरा देख कर, भाभी
ने कहा, हम लोग घर घर पाके ट का दधू पहुंचाते ह तुम चाहो तो उसमे हाथ बटं ा सकती हो। बबे ी के
पास कोई चारा नह ं था। वैसे मेहनत से वह कतराती भी नह ं थी, मान गयी।

दधू का पकै े ट, लोग के घर घर बाटं ते बांटते, िज़दं गी ने कसी तरह चलना शु कया। बहुत मेहनत
मश कत का काम था। सबको दधू ज द चा हए। “इतने लोग के यहाँ तो एक साथ जाया नह ं जा
सकता, थोड़ा तो समय लगेगा, ना !” बेबी सोचती और लोग के यहाँ ज़रा सी भी देर होने पर ऊं ची
नीची बात भी सनु नी पड़तीं। कु छ बोल नह ं पाती, यह तो एक सहारा था।

एक दन सबके यहाँ दधू बाँट कर लौटते लौटते वह बेदम हो गयी। आसमान पर सरू ज खर था।
गम मे बरु ा हाल। बबे ी को लग रहा था जसै े शर र अभी गर पड़गे ा। उससे चला नह ं जा रहा था।
सर मे च कर आ रहे थे और परै लड़खड़ाने लगे थे। थोड़ा आराम करने के लए, वह पास के
फु टपाथ पर बने एक बच के नीचे, एक पेड़ क छाया मे बठै गयी। आखँ बंद कर के थोड़ी देर बठै
रह । अभी रा ता लबं ा है और इतनी कड़ी धूप! पाँच सात मनट आराम करके तब नकलेगी, यह
सोचते सोचते उसे झपक आ गयी। कर ब पं ह मनट बाद उसने आखँ खोल ं।

“अभी या तबीयत थोड़ी अ छ लग रह है ? बहन !”

बच के दसू रे कोने मे बठै े एक यि त क आवाज़ सनु कर, बेबी अचकचा कर उठ बठै । बहन श द
उसके पी ड़त मन को एक ने हल आभास दे गया। वह सर को थोड़ा हलाते हुये, बेवजह ह का
मु कु राकर कर बोल , “ हा”ँ

“जानती हो बहन ? मुंबई मे एक ह भगवान ह?” अपने मधरु और ने हल आवाज़ मे वह यि त
बोला।

बेबी ने कह ं दरू ताकते हुये एक लान हंसी के साथ कहा, “ जानती हूँ, गणप त बा पा...”

वह यि त ह के ह के हंसने लगा और फर गंभीर होकर बोला, “ नह ,ं मुंबई मे एक ह भगवान है,
और वह है पया। बस, पया...गणप त बा पा को भी लोग पया चढ़ाकर खशु करते ह... पया है तो
तु हार क मत है और अगर पया नह ं है तो तु हार क मत क ड़े मकोड़ क तरह से भी बदतर
है!” बना पया, यहाँ कु छ नह ं, कु छ भी नह .ं ..!!!”

बेबी या न श शकला ने लंबी सांस भर , ‘ पये क क मत तो वह खुद भी समझ रह थी ले कन इस
भगवान को पाने के लए कतनी मेहनत करनी पड़ती है फर भी भगवान उसक तरफ ताकते तक
नह !ं दोबारा लंबी सांस लेते हुये वह बोल , “ जी ! आप ठ क कह रहे ह...”

उस यि त ने अपने बगै से एक छोट ब ल नकाल कर उसे पचु कारा और अदं र कर लया। फर
बोला, “ कतना कमा लेती हो ?”

मह ने मे कर ब छह सात सौ...” श शकला ने उदास मन से उ र दया।

“अ छा,” कहकर वह यि त कु छ पल चुप रहा फर बोला, “तुम िजतना एक साल मे कमाती हो,
उतना अगर एक मह ने मे कमाओ तो....कै सा लगेगा ?”

या और अ धक मेहनत करनी पड़गे ी ?” श शकला ने पछू ा।

नह ं ! काम इसी तरह का है, तु ह छोटे छोटे पकै े ट कु छ खास जगह पहुंचाने ह गे, बस ! ले कन
उसमे क मशन बहुत है। मह ने भर मे आठ नौ हज़ार तक तु हारा क मशन हो सकता है।“ लोभन
देते हुये वह यि त बोला।

बेबी का मन इतना पया एक मह ने मे पाने क आशा से आदं ो लत हो उठा। ले कन मन मे
व वधा ज़ र हुयी। वह समझ गयी क कु छ ऐसा काम है, जो काननू के खलाफ है। फर भी, पैसे

क लालसा मे डूबती हुयी, उसने पूछ लया,

“ले कन पु लस ?”

पु लस का सारा बदं ोब त ठ क से मनै ेज कया हुआ है। उ ह, पसै े का अपना ह सा, समय से मल
जाता है।

तभी, श शकला को अपने ब च क याद आ गयी। अगर वह कभी पु लस के ह थे चढ़ तो उसके
ब च का या होगा ? ब च के न छल, नर ह और बेबस मखु , उसके सामने से गुज़र गए। वह
बोल पड़ी,

ले कन कोई वपदा हुयी तब मेरे ब च का या होगा ?”

“ वपदा कस काम मे नह ं है, बहन ? आज तमु जो काम कर रह हो, सड़क पर मारे मारे चलकर
एक घर से दसू रे घर पैके ट बांटती हो, इसमे या वपदा नह ं है ? कभी, कह ं कोई दघु टना हो जाये
तो...! तब या होगा ब च का ? उस समय तो पसै े भी नह ं रहगे.... इस काम मे तो कम से कम
एक साल मे इतना कमा लोगी क आने वाले दस साल पीछे मड़ु कर देखने का नह .ं ... दस साल मे
तो ब चे अपने पाँव पर खड़े हो जाएगँ े, बहन ?”

श शकला चुपचाप माया वत होकर सनु ती रह ।

उस यि त ने उठते हुये कहा,” तुम अ छ तरह से आज सोच लो। अगर तमु राज़ी होओ, बहन ! तो
बताना….. कल, इसी समय इसी जगह..” कह कर वह यि त वहाँ से चला गया।

बेबी अपनी चतं ाओं मे यह एक नयी चतं ा लेकर घर गयी। मि त क मे झंझावत चल रहे थे।
स पूण जीवन ह एक माया है। माया मे माया का खचं ाव होता है। माया मे माया ह संुदर लगती
है। अगर माया हट जाये, तो फर यह जीवन या ध र हत हो जाये। अपना सुख, ब च का सखु ,
प रवार का सुख, आने वाल अ नि चत दिु चंताय तथा भ व य क चतं ा ह तो माया है। पया पसै ा
भी माया के व वध प मे से एक है। बेबी, जीवन का क ट सह रह थी। पए के अभाव मे जीवन
जीना उसने सीख लया था ले कन यह अभाव, एक गुलाबी काश क आभा मे धू मल हो गया और
दसू रे दन वह उसी व त उसी जगह पहुँच गयी।

उस क ाथ मक श ा, हशीश और ाउन शुगर से शु हुयी। छोटे छोटे पकै े ट और साफ सथु रा
लेनदेन। पैके ट लेने वाले भी ईमानदार, देने वाले भी व वसनीय। कसी का झमले ा नह ं, कोई झझं ट
नह ।ं न कसी क च लाहट, न कोई शोर। कतना आराम था इस नए धंधे मे। बेबी को ऐसा लग
रहा था जसै े सब शर फ ह और वह कु छ शर फ क ज रत को परू ा कर रह है। एक औरत होने के
नाते उस पर कोई शक भी नह ं करता और जहां भी जाती, स य लोग से मलकर बना कु छ कहे
सनु े, महु मागं े दाम पर छोटे छोटे पैके ट बेच आती, अपना क मशन पा जाती। दो साल के भीतर ह
उसक काया पलट गयी। बेबी से वह श शकला बेबी पाटनकर मडै म हो गयी। उसने स धाथनगर मे
एक घर कराए पर ले लया और उसके ब चे अ छे इंि लश कू ल मे पढ़ने लगे।

इस तरह ायः सात साल बीत गए। िजस तरह पैसा पैसे को खींचता है नशा भी नशे को खींचता है।
श शकला ने नशढ़े लोग को अ छ तरह पढ़ा और यह समझ गयी क नशा के लए वे कु छ भी कर
सकते ह। बस, फर या था !!! वह उ ह ं लड़क मे से कु छ को चनु कर, स का यापार करने
लगी। उसने,एक टॅ सी खर द और उन लड़क के ज रये टॅ सी वारा स क स लाइ करना शु
कर द । वह नि चंत थी। उसक उ अभी ततीस भी पार नह ं क थी और दस साल मे ह उसका
कारोबार अ छ तरह बढ़ गया था। सफ बढ़ ह नह ं गया था, और भी ब ने क उसमे परू गजंु ायश
थी। हर तरफ से फलती फू लती िज़ंदगी ने श शकला क खबू सरू ती को नखारना शु कर दया।
उसक उ अभी पतीस भी पार नह ं क थी। उसने भी अपनी सुंदरता क देख रेख करनी शु कर द
और आईने ने भी अपने दमखम से श शकला को शह दया। अब वह बेबी ह शकला से, वषक या
“बेबी श शकला” बन चुक थी।

सब कु छ ठ क ठाक चल रहा था। कसी ने अभी तक श शकला के ऊपर कोई भी शक नह ं कया
और वह अपना ग सा ा य सार करती रह । ले कन जीवन मे उतार चढ़ाव आते रहते ह। नावं
मझधार मे फसती है, नकलती है फर फँ सती है, फर नकलती है...यह तो जीवन है।

श शकला ग धंधे मे प रप व हो चुक थी। अभी तक उस पर कोई आचं नह ं आई थी अतः उसका
मनोबल भी बहुत बढ़ गया था। 1992 का साल, जेठ के मह ने क कड़ी दोपहर थी। श शकला के
कामकाजी लड़के , स लेकर टॅ सी से वतरण करने नकल चकु े थे। बाक टॉक, बेबी श शकला के

घर पर ह था। वह अके ले घर पर थी। अक मात दरवाजे पर कसी ने ज़ोर से कंु डी खटखटाई। बेबी
श शकला पाटनकर ने उठकर दरवाज़ा खोला। सामने एक वद धार पु लस को देखकर वह हत भ हो
गयी। सात साल मे पहल बार पु लस के सामने आई थी वह। वह भी अपने घर मे । घर के अदं र
अभी भी पैके स मे ग भरा रखा था। ग बचे कर कमाई गयी रकम भी कै श मे उसके पास घर पे
ह रखी हुयी थी। कतना पया रखा था, उसे मालमू नह ं ! पछले साल तक वह अपने पास कमाया

पया गनती थी ले कन अब इतना पया आने लगा था क एक साल से उसने गनना ह छोड़ दया
था। उसका दल कापँ ने लगा क कै से सभं ालेगी इस वषम प रि थ त को ? फर भी उसक चतुर
बु ध ने अपनी चतुराई नह ं खोई। कां टेबल ने हुकु म देने के अदं ाज़ मे कहा,

“तु हारा घर सच करने का ऑडर आया है !!!”

बेबी उफ श शकला ने अ सरा जसै ा जाल फे कते हुये, दरवाजे पर अपने शर र का टेक लगाया, कमर
पर मोहक अदं ाज़ मे हाथ रखा और अपनी छाती को उभारती हुयी कामुक मु ा मे बोल ,

“ सफ घर ?..... और….. मझु े सच नह ं करोगे, साहब?”

कां टेबल क आँख, श शकला क मादक आखँ से मलते ह शम से नीचे झुक ग । वह कट पतगं
क तरह नीचे गरने लगा। काम-माया सशर र सामने हो, और कामी पु ष, जलने न लगे!!! लि जत
होकर, आखँ नीची करते हुये, एक हारती हुयी हंसी के साथ बोला,

“ कु छ नह ं! बस ऐसे ह एक खबर थी क तु हारे घर मे ग है...इसी लए....!!!!”

फे का हुआ तीर अगर सह नशाने पर लग जाये तो तीरंदाज़ का हौसला बढ़ जाता है। श शकला बेबी
ने नयी चाल क पूर योजना तैयार कर ल । पीछे जाकर दपु टा ले आई और अपने सीने पर डाल
लया। कां टेबल के नजद क आकर, उसक थोड़ी को अपनी तजनी का सहारा देते हुये बोल ,

” साहब, वह ग तो म हूँ, मझु े चख कर तो देखो, कतना नशा है !!!, “

कां टेबल का नाम, धमराज कालोखे। बबे ी क बात, उस पर नशे क तरह छा गयी। उसके बाद से हर
स ताह वह बेबी श शकला के पास आने लगा। यहाँ से बेबी श शकला के जीवन का नया अ याय शु
हुआ। धमराज के साथ कभी वह जहु ू बीच जाती, कभी दोन मल कर पाव भाजी खाते, कभी कसी
रे तरां मे जाते। इस तरह उनक अतं रंगता, दन ब दन बढ़ती गयी और वे एक दसू रे के कर ब आ
गए। इसी बीच, बेबी समझ गयी क घर के भीतर अपने साथ स रखना, सुर त नह ं होगा। उसने
पास ह मे एक कमरा कराये पर लया, जो चारो तरफ से बदं था और िजसमे घसु ने के लए एक
मुंडरे से जाना पड़ता था।

धमराज क खास बनने के बाद, बेबी को एक सुर त छत मल गयी। उसने अपने दावं पच से, बेबी
श शकला को हर तरह से महफू ज रखा। ग का धंधा चलता रहा और पय का अबं ार लगता रहा।
एक दन जहु ू पर दोन बठै े हुये थे। धमराज ने बात बात मे ह कहा,

“बेबी ! म तु ह बहुत यार करता हूँ...”

“जानती हूँ,” बेबी ने सं त उ र दया...

म पहले दन ह समझ गया था क तमु कु छ गलत करती हो....धमराज ने दसू र तरफ देखते हुये
कहा।

या गलत करती हूँ....बेबी ने भकृ ु ट छोट करते हुये पूछा और बना के हुये फर बोल ,

“यह ... ग का धंधा....तो, इसमे गलत या है ? लोग लेते ह, म स लाइ करती हूँ.... दु नया मे इतनी
सार चीज़ बेची खर द जाती ह....गलत या है ?”

“नह ं, यह नशा है....!!!” धमराज ने कहा।

“तो या !! चाय, सगरेट,कॉफ नशा नह ं है...... खलु े आम लोग पीते ह....कोई कु छ नह ं कहता.....
और तो और... यार भी नशा ह तो है..... है न.... ?” बेबी ने दल ल देते हुये कहा।

“हाँ, वह तो है...”

“जानते हो धमराज ! इसमे पैसा भी बहुत है..... तुम िजतना पाते हो.... उससे कह ं यादा !!! तमु भी
कमा सकते हो”...बेबी ने लोभन दया।

अ धक कमाई करने क इ छा कसे नह ं होती। धमराज का मन डोल गया। उसने पछू ा कै से ?

क मशन स…े … तु ह अपने साथ थोड़ा सा रखना पड़गे ा और जब कह ं कोई स लाइ देनी हो तो म
लड़के भेज दँगू ी, तमु उ ह दे देना, तु हारा क मशन बन जाएगा... बस...तमु पु लस हो...तुम पर तो
कोई शक भी नह ं करेगा.....” मसु कु राते हुये श शकला ने कहा।

मरने के बाद पैसा कोई भी साथ नह ं ले जा सकता, ले कन जीते जी, जीवन भर पसै े कमाने क
ललक बनी रहती है। यह मानव कृ त है िजसके सामने मानव अ सर झकु जाते ह, धमराज भी
झकु गया। धमराज ने अ छे कमीशन क बात क , बेबी राज़ी हो गयी। वह इस बात पर आ व त
हो गयी क इससे पु लस भी हाथ मे रहेगी और स क स लाइ भी अ छ होगी। िजतनी अ धक
स लाइ, उतनी अ धक आमदनी। अ धक कमीशन धमराज को देने के बावजदू उसके पय मे इजाफा
होगा। मोलभाव उसके ह फायदे का है।

ग सा ा य बढ़ गया था और इस सा ा य मे व व त सै नक क ज़ रत होती है। गलत धधं मे
कानून कडा रहता है और ईमानदार क गारंट होती है। अपने भाइय से बेहतर श शकला को सै नक
कहाँ से मलत?े उसने अपने भाइय को भी इसी धंधे मे लगा लया। आमदनी बढ़ने लगी और बढ़ते
बढ़ते इस तरह हो गयी क श शकला बबे ी के लए पय को ठ क जगह रखना मुि कल हो गया।
अपने ह घर मे पय का तूप बना कर नह ं रखा जा सकता। श शकला को यिु त सूझी। उसने
कु छ रोजगार, अपने भाई के नाम करके कु छ पसै े उनमे लगा दये। बहुत सार जमीने खर द ं अपने
और अपनो के नाम के घर, लॅट, ज़मीन आ द मे पैसे का नवेश कया। उसके बावज़दू भी जब

पया अ धक रहा, उसने गहने खर दना शु कया। उसक उड़ान दन ब दन ऊं ची होती गयी। वह
और ऊपर उड़ने क लालसा लए उड़ती रह । धीरे धीरे श शकला बेबी पटनकर, एक नामी गरामी
ह ती बन गयी थी। शहर के सं ांत और धनी लोग मे उसका नाम आने लगा था।

ले कन हर प ी के उड़ान क सीमा होती है। वायमु ंडल के शेष प र ध पर इतनी हवा नह ं मलती क
उड़ान भर जा सके । श शकला क प र ध भी बाधं गयी थी । माच 2001 श शकला 30 ाम ह शश
के साथ रंगे हाथ पकड़ी गयी। अब तक वह शहर क एक बड़ी ह ती बन चुक थी। बड़ी ह ती को
छु ड़ाने और बचाने क ताक़त, धमराज मे नह ं थी, अतः बेबी श शकला पटनकर को जेल जाना पड़ा।

जेल से छू टने के बाद वह जब वापस लौट , उसने देखा क आस पास छोटे मोटे कु छ ग का धधं ा
करने वाले, कु कु रमु े क तरह उग चकु े थे। उसका यवसाय जलम न हो चुका था। “बाक लोग के
और अ धक बढ़ जाने से वह दोबारा सा ा ी नह ं बन पा”एगी। उसक लालसा अब और अ धक धन
क माने क नह ं थी, बि क वह खोयी हुयी शि त को वापस पाने क थी। तमाम लोग, उसक हु म
उदलू करते थे, वे सब छू ट जाएगँ े। वह पहले जसै ी हो जाएगी। गर ब बेबी तो नह ं ले कन बेबस बेबी
! वह दोबारा बबे स होना नह ं चाहती थी। उसे मालमू था क ग के साथ बहुत ऊं चे ऊं चे लोग जड़ु े
हुये ह और उनसे सपं क रखना ज़ र है। उनके सपं क से ह वह समाज मे जानी जाती है। वे अगर
छू ट गए तो वह समाज क धलू बन जाएगी। उसने उन छोटे मोटे धधं े बाज को उ ह रोकने क ठान
ल । तरु ंत धमराज से कहा,

“म अपने इलाके मे कसी और का दखल नह ं चाहती !” बेबी ने धमराज को यह संदेश भेजा।

तो म इसमे तु हार मदद कै से कर सकता हूँ...?”

वह सब म नह ं जानती, मझु े तमु ह कोई उपाय बताओ। म अपने े मे कसी गैर को नह ं देख
सकती, बस!

बहुत सोचने के बाद धमराज ने सलाह द , “ ठ क है, तुम पु लस इ फोमर (गु त सचू नाय देने वाल )
बन जाओ।“

ठ क है, मुझे या करना होगा?”

वह सब म देख लँगू ा और तु ह सब समझा दंगू ा। धमराज ने कहा।

योजना के अनसु ार ह काम हुआ। बबे ी पु लस इ फोमर बन गयी और अपने इलाके के सारे ग
पेड लेस को धमराज के ज रये, सलाख के पीछे कर दया। पनु ः वह अपना सा ा य बढ़ाना शु कर
द । उसके आस पास के कु कु रमु े धंधाबाज़ क ाहक ंखला भी उसी के े मे आ गयी। अब वह
पहले से अ धक शि तशाल सा ा ी बन चुक थी।

मंुबई क ग दु नया ने सन 2012 मे एक आ चयजनक पार खेल । मे फ न नामक ग, वसै े तो
नशे का ह मादक पदाथ था, ले कन उसे लेना गैर काननू ी नह ं था। चलती फरती भाषा मे ग
दु नया के लोग इसे “ मउ मउ” के नाम से पहचानते थे। श शकला बेबी पटनकर को यह नाम पसदं
आया। उसक ुधा-आतुर बु ध ने भ व य का भोजन तलाश लया था – मउ मउ। कु छ ह दन
मे धमराज के साथ उसने, राज थान, म य देश, गुजरात, महारा देश मे घमू कर मउ मउ
बनाने वाल सभी फ़ै ट र को अपने सीमा मे ले आयी और ग दु नया क अ त वदं माल कन बन
बैठ । सबसे बड़ी बात तो यह थी क “ मउ मउ” ग गैर काननू ी भी नह ं है, अतः पु लस के छाप का
भय भी अब नह ं रहा। अब उसे धमराज के सहायता क ज़ रत भी नह ं रह , ले कन साि न य ज़ र
था। धमराज अभी भी उसका ग पाटनर था। अभी भी उसके घर मे बेबी श शकला ने ग क मा ा
रखी हुयी थी।

जीवन, तालाब क तरह अचल नह ं है। नद क तरह चलता है। न दयां दखू ती भी है और उफनती
भी ह। उतार चढ़ाव िजस तरह नद के जीवन का एक ह सा ह, मानव जीवन का भी ह। श शकला
के जीवन मे फर एक उफान आया और यह उफान ग से नह ,ं उसके दल से संबि धत था। कु छ
अनचु र से श शकला को पता चला क धमराज कसी गैर औरत के साथ मलकर ग धंधा अलग से
चला रहा है। व वसनीय जानका रय से उसे यह भी पता चला क धमराज, उस म हला के मोह
पाश मे भी फं स गया है। भि त और धा बांट जाती है ले कन ेम बाटँ ा नह ं जाता। ेम पर
एका धकार जानवर मे भी होता है फर तो, श शकला एक नार है। नार अपने ेमी के धोखे को
बदा त नह ं कर पाती चाहे उसके लए ेमी को ह य न लटू ना पड़े।

श शकला मे योजना को समझने और तु ग त से नणय लेने क अ भतु मता थी। उसे मालमू
था क धमराज के सतारा वाले घर मे, उसी का “ मउ मउ” ग रखा हुआ है, िजससे उसक पाटन शप
का धंधा चलता है। उसने नणय ले लया क वह धमराज को धूल चटवाएगी। बस फर या था,
तरु ंत उसने थाने मे, परु ाने खबर देने वाल के प मे फोन कया।

“साहब ?”

कौन ?

म बेबी, मुख बर... बेबी श शकला !!!!

“ओह, हाँ, बोलो..... कु छ खबर है ?”

“हाँ साहब...आप ह के डपाटमट से खबर है....”.

“हमारे...??”

“ कसक ? कहाँ??”

“धमराज के सतारा वाले घर मे ग का टॉक है, अभी सच क िजये... मल जाएगी...”

“ठ क है...खबर प क है न ?... पु लस के भीतर का मामला है”...

“हाँ साहब... बलकु ल प क .... न मले, तो हमे सजा द िजएगा......और अगर मले ...साहब तो...?”

“तो ईनाम...... हाँ, खबर प क हुयी तो इनाम ज़ र मलेगा......!!!”
दो दन बाद, धमराज क गर तार अखबार के प न क सु खयाँ बन गयी। बेबी ने परू खबर, बड़े

यान से पढ़ । अखबार का एक एक श द, उसका कलेजा ठं डा कर रहा था। वह मंद मदं मु कु राइ
और मन ह मन मे कहा, “ आ शक, कल इ क़ मे फं सा था, आज गर तार हुआ। मेरा आ शक
गर तार हुया है तो मेरा भी उसके लए कु ग फज़ बतं ा है.... एक बार मलु ाक़ात तो करनी चा हए
!! देख, सलाख के पीछे कतनी आ शक़ अभी भी बाक़ है? “ यह वचार करने के बाद, वह धमराज
से मलने जेल गयी। थोड़ी देर मे धमराज सामने खड़ा था। बेबी उसक तरफ वजयी ि ट से ताकते
हुये बोल ,

‘ य ? कै से मजाज ह...साहब?”

कटा सुनकर धमराज का तन बदन जल गया। वह कु छ बोला नह ।ं गु से मे उसके नथनु े फू ल रहे
थे..... वह जानता था क यह बेबी का ह काम है य क उसके अलावा घर मे रखे ग क बात
कसी को पता नह ं थी।

“ऊँ ट, अब पहाड़ के नीचे आया क नह ं?..... देखो तो ! नया इ क़ तु हार कतनी मदद कर सकता
ह??? पुराने पर भरोसा नह ं था....ना. !!!!” बेबी ने यं य भरे श द मे कहा।

धमराज ने कोई उ र नह ं दया, सफ तमतमाई और लाचार आखो से एक बार बेबी क तरफ देखा
और सर नीचे कर लया।

बेबी समझ गयी क अब वह चकना घड़ा बन चकु ा है और उस पर उसक बात का कोई असर नह ं
हो रहा है... फर भी, अगर धमराज उससे खदु को बचाने के लए याचना करे तो वह उसे छु ड़ा सकती
है...ले कन धमराज तो इस तरह से कोई याचना नह ं कर रहा, बि क ोध दखा रहा है। फर भी
बेबी ने आ खर बार उससे कहा...”मुझे मालूम है, तुम मझु े अब यार नह ं करते ले कन म... म
बदल नह ं हूँ... तमु चाहो..... तो म तु ह छु ड़ा सकती हूँ.... तुम बदल गए होगे...ले कन म... म
वह हूँ...जो थी....”

धमराज ने उसक तरफ देखा और आखँ फे र ल । बबे ी समझ गयी क अब वह उसक सहायता के
लए कोई याचना नह ं करेगा...”ठ क है, तमु आराम करो” कहकर वह वहाँ से चल गयी।

बेबी क यह धारणा क धमराज उसका कु छ नह ं कर सकता, गलत नकल । पूछताछ के दौरान,
धमराज ने बता दया क बेबी श शकला उसक ग पाटनर थी। पु लस ने बेबी श शकला के साथ
धमराज के स ब ध क जाचं शु कर द । सतारा मे धमराज के अड़ोस पड़ोस के लोग ने बेबी
श शकला क फोटो पहचान लया और बताया क इस औरत का धमराज के साथ अ सर यहाँ आना
जाना होता था।

शना त पु ता हो गए थे। बेबी श शकला के , धमराज के साथ पाटन शप के , सुबतू भी मल गए थे।
उसे इतना भी समय नह ं मला क “ मउ मउ” का घर मे रखा टॉक कह ं और छपा सके । घर क
तलाशी हुयी और श शकला बबे ी इस बार फर पकड़ी गयी। अचानक आए इस आघात से बेबी
श शकला का धैय टू ट गया। उसने अपने वक ल से तरु ंत सपं क कया। वक ल ने बताया क मामला
अभी इतना सरल नह ं है। “ मउ मउ” अभी ग क सूची मे नह ं आ रहा, ले कन कु छ दनो बाद यह
न ष ध ग क सूची मे आ जाएगा। तब के स क सुनवाई मे हम यह दल ल दे सकते ह क जब
यह ग पकड़ा गया, उस समय यह न ष ध नह ं था, बाद मे हुआ है अतः इसका रखना गरै काननू ी
नह ं है। इस तरह के स को हडल करने मे सु वधा होगी और हमारे प मे भी जा सकता है।

कु छ दन मे यह हुआ। सरकार ने नयम पास कर दया क “ मउ मउ” न ष ध ग क ेणी मे
आता है। श शकला के वक ल ने के स लड़ा ले कन जज अ भयु त श शकला को छोड़ने के लए राज़ी
नह ं हुये। श शकला के वक ल से उ होने कहा क जब इसी ग को लेकर धमराज को नौकर से
स पड कर दया गया है फर दसू रे अ भयु त को कै से छोड़ा जा सकता है? जज कसी तरह मान
नह ं रहे थे। अतं तः वक ल हताश हो गए । इसी बीच कटघरे मे खड़ी बेबी श शकला ने जज क
तरफ मुखा तब होकर ढ़ आवाज़ मे कहा,

ले कन साहब ! मेरे घर से जो सामान पु लस ने ज़ त कया है, वह ग है ह नह ं?”

‘ले कन मउ मउ तो है और उस के स मे पहले ह एक अ भयु त बन चुका है। यह सामान अब
न ष ध क ेणी मे आता है। जज ने कड़े श द मे कहा और इसी लए तु ह अभी जमानत भी नह ं
मल सकती।“

“ले कन साहब! वह सामान तो “ मउ मऊ” भी नह ं है, यह तो म कहना चाहती हूँ।“ श शकला ने ढ़
आवाज़ मे कहा।

उसका आ म व वास उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। जज ने भकृ ु ट सकोड़ते हुये, पु लस और
वक ल क तरफ देखा। सबके सब चुप थे। वक ल को तो जसै े काटो और खून नह ।ं वह श शकला
क बात पर यक न नह ं कर पा रहा था क श शकला या कह रह है।!! फर भी, मुवि कल जो
कह रहा है उसको, उसी पर आगे बढ़ाना है। जज ने दोबारा पछू ा,

“ या कहा तुमने ? जो सामान तु हारे घर मे सच करके पकड़ा गया वह “ मउ मऊ” नह ं ह?”

“नह ं साहब, हाथ जोड़ते हुये हुये श शकला बोल ।“ जज ने पु लस क तरफ देखा और कहा
“ले कन आप ने तो ग “ मउ मउ” के आरोप लगाए ह ?

“जी हाँ, यअू र ऑनर ! वह “ मउ मऊ” ह है। हम लोग पहचानते ह।“

थोड़ी बहुत बहस के बाद जज ने आदेश दया क सफ देख कर पहचानने से काम नह ं चलेगा,
इसक रासाय नक जांच होनी चा हए और उसके बाद ह अ भयु त श शकला पर कोई आरोप लगाया
जा सकता है।“ यह कह कर उ होने ि शकला बेबी क जमानत मंजूर कर द ।

श शकला अब जेल से बाहर थी। लोग से मलने और बात करने पर उसे कोई पाबदं नह ं थी। उसने
अपने वण-शखंृ ला को गुंजायमान करने क सोच ह रह थी क उसके फोन क घटं बजी।

“हैलो”

“हेलो...... बेबी ने कहा... सतारा के थाने से फोन था। बबे ी श शकला सतक हो गयी।

“सुप रटं डट साहब बात करना चाहते ह।“ उधर से आवाज़ आई...

बेबी के चेहरे पर कु टल मु कान छा गयी, बोल , “हा,ँ उ ह द िजये...”.

“हैलो, कौन...बेबी....! हाँ, कै सी हो बेबी ? सनु ा है जमानत पर हो?”

“अरे, एस पी साहब, कै से याद कया साहब ?”...बेबी ने बहुत नम आवाज़ मे कहा।

एस पी साहब ने कहा क बेबी को जेल से बचाने मे पाँच लाख लगगे... “अगर राज़ी हो तो बात
आगे बढ़ाई जाये....”

बेबी मदृ लु मु कान मे बोल ...” अरे साहब, कु छ कम नह ं होगा ???

“नह ं, एक पसै ा भी कम नह ं,,,, पाचँ लाख कै श दो.....मामला परू ा घमू जाएगा, तु हारे ऊपर ज़रा भी
आचं नह ं आएगी....”

“ठ क है साहब.... !! बचना तो है मझु े... फर आप जसै ा अगर मेहरबान हो तो...बच ह जाऊँ गी...” बेबी
ने मठास भर आवाज़ मे कहा।

बेबी पाँच लाख देने के लए राज़ी हो गयी... दन तार ख, समय और जगह तय हो गयी। ले कन एक
रोष बेबी के माथे पर नज़र आ रहा था। इस यि त ने इससे पहले भी उससे दस लाख पये लए थे
और आज अवसर समझ कर पाँच लाख और मागं रहा है। इसका या भरोसा क कल फर कसी
बात पर फं सा कर और पैसे मागं े....!! “बेईमानी भी ईमानदार से करनी चा हए, ले कन यह बेईमानी
भी बेईमानी से करता है। इसे सबक़ सखाना बहुत ज़ र है वरना भ व य मे लगातार उगाह करता
रहेगा.....”बेबी के दमाग मे यह बात आई और उसने पु लस मु यालय मे एक बड़े ऑ फसर को फोन
कया। बेबी ने बड़े ऑ फसर को सतारा के एस पी का नाम बताते हुये कह दया क उसको बचाने के
लए वह पाचँ लाख मांग रहे ह। पछू ने पर बेबी ने नयत समय, जगह तथा दन भी बता दया।
थोड़ी देर दोन मे कु छ बातचीत चलती रह और फर बेबी ने फोन रख कर एक कटु मु कान से
सामने खड़क क तरफ झाकँ ते हुये आसमान पर नज़र टका द ।

फर वह हुआ जो बेबी चाहती थी। न द ट दन, एक बाज़ार मे, बेबी के हाथ से पाचं लाख र वत
लेते हुये एस पी साहब पकड़े गए। बबे ी ने एक घणृ ा मक मु कान से एस पी को नहारा और वापस
चल आयी।

एक स ताह बाद अदालत मे फर सुनवाई हुयी। बेबी और धमराज के घर से ज़ त कया हुआ पदाथ,
दो शहर के दो अलग अलग रासाय नक योगशालाओं मे जांच कया गया था। दोन क रपोट मे
यह बात आई क यह “ मउ मउ” नह ं है। जो पदाथ ज़ त हुआ था वह आजीनामोट है िजसका योग
साधारणतया चाइ नज खाने मे होता है।

याय अधं ा होता है. दये गये सुबतू के अनसु ार याय करता है. इ तहास गवाह है क अपराधी
अपराध पहले करते ह और याय उन पर वचार बाद मे करता है। इन दोन घटनाओं के बीच का
समय सा ी और सा य को कतना भा वत करता है, कोई नह ं कह सकता। धमराज और बबे ी
श शकला के घर से ज़ त कया गया पदाथ, “ मउ मऊ” से आजीनामोट मे कै से प रव तत हो गया,

यह अपराध और याय के बीच के समय क कहानी है जो अ सर रह य रहती है। यह प रवतन भी
एक रह य था और आज भी है।

जो भो, धमराज और बेबी श शकला दोन बाइ जत बर हो गए। अदालत से नकलने के बाद बाहर
धमराज क मुलाक़ात बेबी से हुयी। बेबी के चेहरे पर वजय क मु कान थी और धमराज के चेहरे
पर हारे हुये सपाह के माथे क शकन। वह पु लस मे रह कर भी खदु को नह ं बचा पाया और बेबी
अपराधी होकर भी न सफ खदु को बि क उसे भी बचा ल । बेबी के पास आकर धमराज ने कहा,

“अब हमार मलु ाक़ात दोबारा न हो तो अ छा है...”

मदृ लु मु कान भरते हुये और धमराज क आखँ मे ताकते हुये बबे ी बोल , “ यह तब धता अभी
से म कै से दे दँ.ू .... तु ह भी लंबा जीना है और मुझे भी....रा ते एक हुये तो मलु ाक़ात हो भी सकती
है...”

धमराज चपु हो गया....बबे ी ने फर कहा....धमराज! तुम मदाधं हो और म मद ! वष के लए
वषक या क ज़ रत तु ह ह पड़गे ी...... फर मलगे...कहकर मुसकु राते हुये वह अपनी गाड़ी मे बठै
गयी।


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